तुलसीदास के दोहे और चौपाई

  1. तुलसीदास के दोहे
  2. तुलसीदास जी के 10 दोहे
  3. तुलसीदास का जीवन परिचय एवं दोहे Biography Of Tulsidas Hindi
  4. Tulsidas Famous Dohe Chaupai (तुलसीदास के प्रसिद्ध दोहे और चौपाई)
  5. Tulsidas ke Dohe
  6. Tulsidas Jayanti 2022 Five Motivational Dohe Quotes Author Of Ramcharitmanas Tulsidas
  7. मानस की ये चौपाईयां दूर कर देंगी तुलसीदास के नारी विरोधी होने का भ्रम
  8. Tulsidas Ke Dohe


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तुलसीदास के दोहे

Best Tulsidas Ke Dohe With Meaning in Hindi From Ramcharitmanas - पढ़िये श्रीरामचरितमानस रामायण के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास के दोहे अर्थ सहित। रामायण के रचना करने वाले तुलसीदास जी एक महान कवि, संत और साधू थे। वो एक महान हिन्दी साहित्य कवि थे। उन्होने संस्कृत और अवधि भाषा मे बहोत सारी मशहूर कविताए और दोहे लिखे। ➡ सुनहु तात माया कृत गुन अरू दोस अनेक गुन यह उभय न देखि अहि देखिअ सो अविवेक। अर्थ :हे भाई -माया के कारण हीं इस लोक में सब गुण अवगुण के दोस हैं।असलमें ये कुछ भी नही होते हैं।इनको देखना हीं नहीं चाहिये।इन्हें समझना हीं अविवेक है। 11. ➡ नर सरीर धरि जे पर पीरा।करहिं ते सहहिं महा भव भीरा। करहिं मोहवस नर अघ नाना।स्वारथ रत परलोक नसाना। अर्थ :मनुश्य रूप में जन्म लेकर जो अन्य लोगों को दुख देते हैं उन्हें जन्म मरण का महान तकलीफ सहना पड़ता है।लोग स्वार्थ के कारण अनेकों पाप करते हैं।इसीसे उनका परलोक भी नाश हो जाता है। यह भी पढे : ➡ पर हित सरिस धर्म नहि भाई।पर पीड़ा सम नहि अधमाई निर्नय सकल पुरान बेद कर।कहेउॅ तात जानहिं कोविद नर । अर्थ :दूसरों की भलाई के समान कोई धर्म नही है और दूसरों को दुख देने के समान कोई पाप नही है।यही सभी बेदों एवं पुराणों का विचार है। 13. ➡ सेवत विशय विवर्ध जिमि नित नित नूतन मार। अर्थ :काम वासना का सेवन करने से उन्हें अधिक भोगने की इच्छा दिनानुदिन बढ़ती हीं जाती है। 14. ➡ महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहुॅ सखा मति धीर। अर्थ :इस जन्म मृत्यु रूपी महान दुर्जन संसार को जो जीत सकता है-वही महानवीर है और जो स्थिर बुद्धि रूपी रथ पर सवार है-वही ब्यक्ति इसे जीत सकता है। 15. ➡ ताहि कि संपति सगुन सुभ सपनेहुॅ मन विश्राम भूत द्रोह रत मोह बस राम विमु...

तुलसीदास जी के 10 दोहे

गोस्वामी तुलसीदास जी जिन्हें महाकाव्य रामायण के रचयिता महर्षि बाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है वे अपनी रत्नावली से अत्यधिक प्रेम करते थे और एक बार भयंकर बारिश और तूफान की चिंता किये बिना भीषण अँधेरी रात में अपने पत्नी से मिलने अपने ससुराल पहुच गये लेकिन रत्नावली यह सब देखकर बहुत ही आश्चर्यचकित हुई और उन्हें राम नाम में ध्यान लगाने का नसीहत दी इसी उलहना ने तुलसी से “गोस्वामी तुलसीदास” (Goswami Tulidas) बना दिया. फिर इसके बाद तुलसीदास जी ने अनेक ग्रंथो की रचना की जिनमे रामचरितमानस उनकी प्रसिद्द रचना है तो आईये हम सभी तुलसीदास द्वारा रचित उनके दोहों को हिंदी अर्थ सहित Tulsidas Ke Dohe जानते है. तुलसीदास के दोहे:-1 काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान, तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान, हिन्दी अर्थ :- जब तक किसी भी व्यक्ति के मन में कामवासना की भावना, गुस्सा, अंहकार, लालच से भरा रहता है तबतक ज्ञानी और मुर्ख व्यक्ति में कोई अंतर नही होता है दोनों एक ही समान के होते है तुलसीदास के दोहे:- 2 सुख हरसहिं जड़ दुख विलखाहीं, दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं धीरज धरहुं विवेक विचारी, छाड़ि सोच सकल हितकारी हिन्दी अर्थ :- मुर्ख व्यक्ति दुःख के समय रोते बिलखते है सुख के समय अत्यधिक खुश हो जाते है जबकि धैर्यवान व्यक्ति दोनों ही समय में समान रहते है कठिन से कठिन समय में अपने धैर्य को नही खोते है और कठिनाई का डटकर मुकाबला करते है. तुलसीदास के दोहे:- 3 करम प्रधान विस्व करि राखा, जो जस करई सो तस फलु चाखा हिन्दी अर्थ :- ईश्वर ने इस संसार में कर्म को महत्ता दी है अर्थात जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल भी भोगना पड़ेगा तुलसीदास के दोहे:- 4 तुलसी देखि सुवेसु भूलहिं मूढ न चतुर नर सुंदर के किहि पेखु बचन स...

तुलसीदास का जीवन परिचय एवं दोहे Biography Of Tulsidas Hindi

तुलसीदास का जीवन परिचय एवं दोहे Biography Of Tulsidas In Hindi: सौरमंडल में जो स्थान सूर्य को दिया गया हैं वैसे ही हिंदी साहित्य में कवि गोस्वामी तुलसीदास जी को वह सम्मानीय पद प्राप्त हैं. वैसे तो तुलसीदासजी ने 12 से अधिक ग्रंथों की रचना की मगर रामचरितमानस उनकी अनुपम कृति थी जिसने उन्हें अमर बना दिया, यही वजह हैं कि 5 शताब्दी बीत जाने के बाद भी आज भी तुलसी को सम्मान के साथ याद किया जाता हैं. तुलसीदास का जीवन परिचय एवं दोहे Biography Of Tulsidas In Hindi इनके तेज से मध्यकाल में हिन्दू समाज फैली निराशा की भावना को ईश्वर भक्ति से जोड़कर पीड़ित जनमानस में आशा की किरण पैदा की. तुलसीदास जी की जीवनी और वर्ष के बारे में अन्य प्रमुख कवियों की तरह कोई स्पष्ट राय नही हैं. भले ही आज ये जीवित नही हैं, बल्कि इनकी मुख्य रचना रामचरितमानस आज भी प्रत्येक हिन्दू के लिए आदर्श ग्रन्थ का स्थान ले चूका हैं. कवितावली एवं विनयपत्रिका वर्णित कुछ लाइनों में इस बात का संकेत मिलता हैं. कि तुलसीदास जी ब्राह्मण कुल के थे. तुलसीदास का जीवन परिचय एवं दोहे में तुलसी का संक्षिप्त जीवनी दी गई हैं. हिंदी साहित्य के सर्वश्रेष्ट महाकवि तुलसीदासजी सगुण काव्यधारा में राम के उपासक थे. गोस्वामी तुलसीदास का जन्म सवत 1554 विक्रमी संवत (1497) उत्तरप्रदेश के बांदा जिले के राजापुर में हुआ था. Telegram Group इनके पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी था. बाल्यावस्था में ही माता-पिता का देहांत हो जाने के कारण तुलसीदास जी का लालन-पोषण गुरु नरहरिदास जी ने ही किया. बाबा नरहरिदास को तुलसीदास का गुरु अन्तः साक्ष्य के आधार पर माना जाता हैं. तुलसीदास भगवान श्रीराम के प्रति सर्वस्व समर्पण कर काव्य रचना करते थे. उनकी भक्ति भावना...

Tulsidas Famous Dohe Chaupai (तुलसीदास के प्रसिद्ध दोहे और चौपाई)

Tulsidas ke dohe Tulsidas Famous Dohe Chaupai/ तुलसीदास के प्रसिद्ध दोहे और चौपाई तथा उनकी व्याख्या/ Tulsidas ke Famous Dohe “दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान, तुलसी दया न छोडिये जब तक घट में प्राण” अर्थ :- तुलसीदास जी कहते हैं कि दया भावना धर्म का मूल है, उसका सार है. अभिमान तो केवल पाप को ही जन्म देता हैं, मनुष्य के शरीर में जब तक प्राण हैं तब तक दया भावना कभी नहीं छोड़नी चाहिए. “नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवास, जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास” अर्थ :- तुलसीदास जी कहते हैं कि राम का नाम कल्पतरु और कल्याण का निवास हैं. यह तुलसी का भाग्य है कि राम नाम का स्मरण करने से तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया. “सरनागत कहूँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि, ते नर पावॅर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि” अर्थ :- तुलसीदास जी कहते हैं कि जो इन्सान अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं. दरअसल, उनको देखना भी उचित नहीं होता, उससे हानि ही होती है. “तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ और, बसीकरण इक मंत्र हैं परिहरु बचन कठोर” अर्थ :- तुलसीदासजी कहते हैं कि मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं यह किसी को भी वश में करने का एक मंत्र है इसलिए मानव को कठोर वचन छोड़कर मीठे वचन बोलने का प्रयास करना चाहिए. “मुखिया मुखु सो चाहिये खान पान कहूँ एक, पालड़ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक” अर्थ :- तुलसीदासजी कहते हैं कि मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने पीने को तो अकेला हैं, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगो का पालन पोषण और विकास करता है. “सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस, राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास” अर्थ :- तुलसीदास जी कहते हैं कि मंत्री वैद्य और ग...

Tulsidas ke Dohe

एक श्रुत कथा के अनुसार तुलसीदास जी को अपनी पत्नी रत्नावली के प्रति अत्यंत प्रेम था । एक बार घनघोर बारिश और भयंकर तूफान के बीच वह अपनी पत्नी से मिलने हेतु एक अंधेरी रात में ससुराल पहुंच गए। जिस पर उनकी पत्नी ने उन्हें कुछ भला बुरा कहा:- (“अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति। नेक जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ॥”) Advt.-ez तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर । बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ॥ अर्थ:– इस दोहे में गोस्वामीजी शब्द और संवाद के महत्व को रेखांकित कर रहे हैं । गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं -कि मीठे वचन से सर्वत्र सब ओर प्रसन्नता और खुशी फैलती है । सुखकारी भावनाओं का प्रसार होता है । दूसरों को वश में करने का भी एकमात्र मंत्र मधुर वचन ही हैं । अतः मानव मात्र को कठोर वचन का परित्याग करके मधुरभाषी बनना चाहिए । -2- मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक । पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ॥ अर्थ:– तुलसीदास जी कहते हैं कि मुखिया( नेतृत्वकर्ता ) को मुख के समान होना चाहिए जो खाने-पीने को तो अकेला है, लेकिन विवेकपूर्वक सभी अंगों का पालन-पोषण करता है । अर्थात जो व्यक्ति कहीं भी किसी समूह का नेतृत्व कर रहा है उसको चाहिए कि उसके सभी सहचरों का अनुकूल पालन पोषण हो इसकी भी वह चिंता करें। यही गुण व्यक्ति को व्यक्तित्व में रूपांतरित कर देती है । Advt.-ez सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस । राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ॥ अर्थ:– गोस्वामी तुलसीदास जी का कहना है कि मंत्री वैद्य और गुरु यदि भय के कारण, डर के कारण अप्रिय परन्तु हितकारी वचन नहीं कह कर क्रमशः राजा , रोगी और शिष्य से प्रिय वाक्य कहने को मजबूर हों तो इससे शीघ्र ही इन तीनों का नाश तय है। अतः एक समझदार व्यक...

Tulsidas Jayanti 2022 Five Motivational Dohe Quotes Author Of Ramcharitmanas Tulsidas

Tulsidas Jayanti 2022: 4 अगस्त 2022 को रामचरितमानस के रचियता तुलसीदास (Tulsidas jayanti 2022 date) जी जयंती है. संत कवि गोस्वामी तुलसीदास के दोहे आज भी प्रासंगिक हैं. तुलसीदास जी ने ही भगवान श्रीराम के जीवन को रामचरितमानस में दर्शाया है. तुलसीदास जी के प्रेरणादायक दोहे जिसने जीवन में अपना लिए उसकी तरक्की तय है. इन दोहों में सफलता का राज छिपा है. आइए जानते हैं तुलसीदास जी के मोटिवेशनल कोट्स. राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार। तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर। अर्थात - तुलसीदास जी के अनुसार खुशहाल जीवन के लिए व्यक्ति को अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए. अपशब्द बोलने की बजाय राम का नाम जपे. इससे गुस्सा भी शांत होगा और रिश्तों में खटास भी नहीं आएगी. तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेक । साहस सुकृति सुसत्यव्रत राम भरोसे एक। अर्थात - विपरित हालातों में घबराएं नहीं. मुश्किल परिस्थिति में डर की बजाय बुद्धि का सही उपयोग करें. विवेक से काम लें. मुसीबत में साहस और अच्छे कर्म ही व्यक्ति को सफलता दिलाते हैं. ईश्वर पर सच्चा विश्वास रखें. तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर। सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि। अर्थात - तुलसीदास जी के अनुसार सुंदरता देखकर न सिर्फ मूर्ख बल्कि चालाक इंसान भी धोखा खा जाता है. मोर दिखने में बहुत सुंदर लगते हैं लेकिन उनका भोजन सांप है. इसलिए सुंदरता के आधार पर कभी व्यक्ति पर भरोसा न करें. आगें कह मृदु बचन बनाई। पाछें अनहित मन कुटिलाई॥ जाकर ‍चित अहि गति सम भाई। अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई अर्थात - तुलसीदान जी कहते हैं जो मित्र आपके सामने कोमल वचन बोले लेकिन मन में उसके द्वेष की भावना हो तो ऐसे दोस्त का तुरंत त्याग कर दें. ऐसे कुमित्र सफलता के मार्ग में...

मानस की ये चौपाईयां दूर कर देंगी तुलसीदास के नारी विरोधी होने का भ्रम

मानस की ये चौपाईयां दूर कर देंगी तुलसीदास के नारी विरोधी होने का भ्रम भारतीय संस्कृति में तुलसीदास जी का अहम स्थान है। तुलसी ने रामचरितमान के जरिए न सिर्फ राम को महापुरुष के रूप में प्रस्तुत किया है बल्कि इस धार्मिक ग्रंथ के जरिए समाज में स्त्रियों महत्ता को भी तमाम चौपाईयों के जरिए व्यक्त किया है। आइए जानते हैं कि भक्तिभाव से पढ़ी जाने वाली श्री रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसी ने नारी के बारे में क्या विचार प्रकट किए हैं जननी सम जानहिं पर नारी । तिन्ह के मन सुभ सदन तुम्हारे ।। मानव जीवन में नारियों के प्रति सम्मान को प्रतिस्थापित करते हुए तुलसीदास जी कहते हैं कि जो पुरुष अपनी पत्नी के अलावा किसी और स्त्री को अपनी मां के सामान समझता है, उसी के ह्रदय में ईश्वर का वास होता है। जबकि इसके विपरीत जो पुरुष दूसरी स्त्रियों के संग संबंध बनाता है वह पापी होता है और वह ईश्वर से हमेशा दूर रहता है। ढोल गंवार शूद्र पशु नारी। सकल ताडना के अधिकारी।। तुलसीदास जी की इस चौपाई के जरिए कुछ लोग तुलसीदास जी को नारी विरोधी बताते हैं लेकिन वास्तविकता ये है कि जो संत माता पर्वती के लिखते समय इस वाक्य का प्रयोग करते हैं कि उनके जन्मते ही धरती पर चारो तरफ खुशहाली छा गई। इसी तरह रामचरित मानस में माता सीता के सम्मान में तमाम तरह के शब्दों का प्रयोग करते हैं। उनके द्वारा लिखी गई रामचरितमानस में श्री हनुमान जी को अष्ट सिद्धि नव निधि दाता होने का आशीष भी माता सीता के द्वारा दिए जाने की कही जाती है। धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी। आपद काल परखिए चारी।। तुलसीदास जी ने मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिए जिन प्रमुख लोगों के योगदान की चर्चा अपनी चौपाई में की है, उसमें नारी को विशेष रूप से शामिल किया गया है। तुलसीदास...

Tulsidas Ke Dohe

एक ऐसे कवि जो अपनी मन मोहक कविताओं और अपनी वाणी से ज़िन्दगी जीने का हुनर सिखाते थे। जिन्हे रामायण के रचियता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है, ऐसी महान शख्सियत का नाम है, गोस्वामी तुलसीदास जी (Goswami Tulsidas Ji). रामभक्ति शाखा के महान कवि तुलसीदास जी का जन्म उत्तरप्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर नामक गाँव में हुआ था। इन्होनें रामचरितमानस जैसे पवित्र ग्रन्थ की रचना की और कई पुस्तकें लिखी जैसे कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका। तुलसीदास जी के दोहे संगति पर और चौपाइयों, छंदों ने जन मानस को राम भक्ति का सरल मार्ग दिखाया और जीवन दर्शन कराया। एक समय ऐसा भी था जब तुलसीदास जी अपनी पत्नी रत्नावली के प्रेम में इतने अनुरक्त (मग्न) रहते थे कि एक दिन बहुत बारिश और अँधेरी रात होने के बावजूद वे अपनी पत्नी से मिलने उनके ससुराल पहुंच गए। यह सब देखकर उनकी पत्नी दंग रह गई और उन्होंने तुलसीदास जी को व्यंग्य के रूप में ताना दे दिया जिससे आहत होकर तुलसीदास जी के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया जिससे वे “गोस्वामी तुलसीदास जी” बन गए और वहाँ से काशी चले गए। रत्नावली ने ऐसा क्या कहा: अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति नेक जो होती राम से, तो काहे भव-भीत अर्थात: मेरा शरीर तो चमड़े का बना है, जो एक दिन नष्ट हो जायेगा। इस नष्ट हो जाने वाले शरीर से प्रेम करो उससे अच्छा है की तुम राम नाम का जाप करो तो तुम्हारा कल्याण हो जाता। उस दिन से तुलसीदास जी राम भक्ति में डूब गए और कई किताबे लिख दी जिनमें “रामचरितमानस” भी है। • • • • • • • • संत तुलसीदास के दोहे हिंदी अर्थ सहित (1-20) बिना तेज की पुरुष की, अवशि अवज्ञा होय। आगि बुझे ज्यों राख की, आप छुवै सब कोय।। हिंदी अर्थ: तेजहीन व्यक्ति की बात पर कोई ध्यान...