उपाधियों का अंत

  1. भारतीय संविधान अनुच्छेद 18
  2. भारतीय संविधान के सभी अनुच्छेद
  3. मौलिक अधिकार (भाग
  4. Fundamental Rights
  5. Arvind Kumar Advocate: अनुच्छेद 18 :
  6. उपाधियों का अंत किस अनुच्छेद में है?
  7. मानव अधिकार के प्रकार और वर्गीकरण


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भारतीय संविधान अनुच्छेद 18

आज के इस आर्टिकल में मै आपको “उपाधियों का अंत | भारतीय संविधान अनुच्छेद 18 | Article 18 of Indian Constitution in Hindi | Article 18 in Hindi | भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 | Abolition of titles ” के विषय में बताने जा रहा हूँ आशा करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा । तो चलिए जानते है की – भारतीय संविधान अनुच्छेद 18 | Article 18 of Indian Constitution in Hindi [ Indian Constitution Article 18 in Hindi ] – उपाधियों का अंत– (1) राज्य, सेना या विद्या संबंधी सम्मान के सिवाय और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा । (2) भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा । (3) कोई व्यक्ति, जो भारत का नागरिक नहीं है, राज्य के अधीन लाभ या विश्वास के किसी पद को धारण करते हुए किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा । (4) राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से या उसके अधीन किसी रूप में कोई भेंट, उपलाब्धि या पद राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा । भारतीय संविधान अनुच्छेद 18 [ Indian Constitution Article 18 in English ] – “ Abolition of titles ”– ( 1 ) No title, not being a military or academic distinction, shall be conferred by the State. ( 2 ) No citizen of India shall accept any title from any foreign State. ( 3 ) No person who is not a citizen of India shall, while he holds any office of profit or trust under the State, accept without the consent of the President any title from any foreign State. ( 4 ) No person holding any office of profit or trust under the State shall, ...

भारतीय संविधान के सभी अनुच्छेद

भारतीय संविधान के सभी अनुच्छेद तथा अनुसूचियाँ |All Articles of Indian Constitution Hindi All Articles of Indian Constitution in Hindi | All Sanvidhan Anuched in Hindi अनुच्‍छेद विवरण 1 संघ का नाम और राज्‍य क्षेत्र 2 नए राज्‍यों का प्रवेश या स्‍थापना 2क [निरसन] 3 नए राज्‍यों का निर्माण और वर्तमान राज्‍यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन 4 पहली अनुसूची और चौथी अनुसूचियों के संशोधन तथा अनुपूरक, और पारिणामिक विषयों का उपबंध करने के लिए अनुच्‍छेद 2 और अनुच्‍छेद 3 के अधीन बनाई गई विधियां 5 संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता 6 पाकिस्‍तान से भारत को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार 7 पाकिस्‍तान को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार 8 भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्‍यक्तियों के नागरिकता के अधिकार 9 विदेशी राज्‍य की नागरिकता, स्‍वेच्‍छा से अर्जित करने वाले व्‍यक्तियों का नागरिक न होना 10 नागरिकता के अधिकारों को बना रहना 11 संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना 12 परिभाषा 13 मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्‍पीकरण करने वाली विधियां 14 विधि के समक्ष समानता 15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्‍म स्‍थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध 16 लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता 17 अस्‍पृश्‍यता का अंत 18 उपाधियों का अंत 19 वाक-स्‍वतंत्रता आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण 20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण 21 प्राण और दैहिक स्‍वतंत्रता का संरक्षण 22 कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण 23 मानव और दुर्व्‍यापार और बलात्श्रम का प्रतिषेध 24 कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध 2...

मौलिक अधिकार (भाग

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Fundamental Rights

साधारण 12. परिभाषा--इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, ''राज्य'' के अंतर्गत भारत की सरकार और संसद तथा राज्यों में से प्रत्येक राज्य की सरकार और विधान-मंडल तथा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्राधिकारी हैं। 13. मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ --(1) इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त सभी विधियाँ उस मात्रा तक शून्य होंगी जिस तक वे इस भाग के उपबंधों से असंगत हैं। (2) राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीनती है या न्यून करती है और इस खंड के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी। (3) इस अनुच्छेद में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-- (क) ''विधि'' के अंतर्गत भारत के राज्यक्षेत्र में विधि का बल रखने वाला कोई अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम, विनियम, अधिसूचना, रूढ़ि या प्रथा है ; (ख) ''प्रवृत्त विधि'' के अंतर्गत भारत के राज्यक्षेत्र में किसी विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा इस संविधान के प्रारंभ से पहले पारित या बनाई गई विधि है जो पहले ही निरसित नहीं कर दी गई है, चाहे ऐसी कोई विधि या उसका कोई भाग उस समय पूर्णतया या विशिष्ट क्षेत्रों में प्रवर्तन में नहीं है। 1[(4) इस अनुच्छेद की कोई बात अनुच्छेद 368 के अधीन किए गए इस संविधान के किसी संशोधन को लागू नहीं होगी। समता का अधिकार 14. विधि के समक्ष समता--राज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। 15. धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध...

Arvind Kumar Advocate: अनुच्छेद 18 :

उपाधिकिसीकेनामकेसाथजुड़ीहुईसंज्ञाहोतीहै।अनुछेद 18 किसीविशिष्टसम्मानआदिकेकारणप्राप्तविशेषाधिकारोंकीऔरनागरिकसमानतास्थापितकरनेकीघोषणाकरताहै।यहराज्यऔरप्राइवेटदोनोंकेप्रतिहीप्रतिबंधलगाताहै। 1.सेनाएवंशिक्षासम्बन्धीउपाधियोंकोछोड़करअन्यउपाधियोंकोसमाप्तकरताहैतथाराज्यद्वाराऐसीउपाधियाँदेनावर्जितहै। 2.भारतकाकोईनागरिककिसीविदेशीराज्यसेकोईउपाधिस्वीकारनहींकरेगा। 3.कोईव्यक्ति, राज्यकेअधीनलाभयाविश्वासकापदधारणकरताहै, वहकिसीविदेशीराज्यसेयाउसकेअधीनकिसीभीरूपमेंकोईभेंट, उपाधियापदबिनाराष्ट्रपतिकीसहमतिकेस्वीकारनहीँकरेगा। अनुच्छेद 18 केअपवाद अनुच्छेद 18 काखण्ड (1) सेनाऔरविद्यासंबंधीउपाधियोंकोअपवादस्वरूपरखताहै।ताकिविश्वविद्यालयतथासंगीतऔरकलाविषयकसंस्थाएंअपनेनेताओं, अध्यापकोंतथागुणीजनोंकोउपाधियाँदेकरसम्मानितकरसकें।इसीलिएभारतसरकारनेसैन्यमनोबलबनायेरखनेकेलिएपरमवीरचक्र, महावीरचक्र, वीरचक्रऔरअशोकचक्रजैसेपदकदिएजानेकीव्यवस्थाकीहै। अनुच्छेद 18 मेंजोउपाधियोंकाअंतकियागयाहैउसकामुख्यकारणथासामाजिकसमताकीस्थापना।किसीभीनागरिककोविशेषाधिकारप्रदाननकरना।इसीकारणब्रिटिशकालमेंसम्राटयावायसरायद्वारादीजानेवालीउपाधियोंकेसर- ए- हिन्द, सरनाईटहुडआदिकोसमाप्तकरदियागया। अनुच्छेद 18 कीघोषणाकेपालनमेंहीभारतसरकारने 4 नागरिकपुरस्कार -- भारतरत्न, पद्यविभूषण, पदमभूषणव्पद्यश्रीदिएजानेकीघोषणाकी।लेकिनकुछलोगोंनेऐसेपुरस्कारोंकोउद्देशिकामेंवर्णित 'प्रतिष्ठाऔरअवसरकीसमता'केविरुद्धहोनेकेआधारपरआलोचनाकी।न्यायालयनेअपनेनिर्णयमेंकहाहैकिइनसम्मानोंकोउपाधिकेरूपमेंअपनेनामकेसाथजोड़नागलतहै। बालाजीराघवनबनाम भारतसंघ, AIR 1996 SC 770 केवादमेंउच्चतमन्यायालयनेकहाहैकिनागरिकसम्मानकीवैधतापरन्तुसरकारद्वाराइनसम्मानोंकोरोकनागलत। Please Like, Comment and Share......

उपाधियों का अंत किस अनुच्छेद में है?

Explanation : अनुच्छेद 18 मे उपाधियों का अंत करने का प्रावधान करके समता के अधिकार को और प्रभावी बनाया है इसके प्रावधानों के अंतर्गत राज्य, सेना या विद्या संबंधी सम्मान के सिवाय और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा। भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा कोई व्यक्ति, जे भारत का नागरिक नहीं है, राज्य के अधीन लाभ या विश्वास के किसी पद को धारण करते हुए किसी विदेशी राज्य से कोई उपधि राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से या उसके अधीन किसी रूप में कोई भेंट, उपलब्धि या पद राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।

मानव अधिकार के प्रकार और वर्गीकरण

मानव अधिकारकी परिभाषा डी0 डी0 बसु के अनुसार-’’मानव अधिकार को उन न्यूनतम अधिकारों के रूप में परिभाषित करते हैं, जिन्हें प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी अन्य विचारण के, मानव परिवार का सदस्य होने के फलस्वरूप राज्य या अन्य लोक प्राधिकारी के विरूद्ध धारण करना चाहिये।’’ हैराल्ड लास्की के अनुसार-’’अधिकार मानव जीवन की ऐसी परिस्थितियां हैं, जिनके बिना सामान्यतया कोई व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं कर सकता।’’ डेविड सेल्वी के अनुसार-’’विश्व में प्रत्येक व्यक्ति मानव होने के नाते मानव अधिकारों का उपयोग करता है। मानव अधिकार कमाए नहीं जाते, और न ही किसी के द्वारा किसी को दिए जा सकते हैं, और न ही किसी समझौते द्वारा इनका निर्माण किया जा सकता है। ये अधिकार प्रत्येक व्यक्ति से संबंधित होते हैं।’’ होलैण्ड के मतानुसार-’’अन्य व्यक्ति के कार्यों को अपनी शक्ति के स्थान पर समाज के बल द्वारा प्रभावित करने की व्यक्तिगत क्षमता को अधिकार कहते हैं।’’ ए.ए. सईद के अनुसार-’’मानव अधिकार व्यक्ति की गरिमा से संबंधित हैं। व्यक्तिगत पहचान का स्तर आत्म-सम्मान को संरक्षित करता है, और मानवीय समुदाय को बढ़ावा देता है।’’ इस परिप्रेक्ष्य में जान जैक्स़स़ रूसो ने 200 वर्श पहले कहा था कि‘‘मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुआ है, पर हर जगह वह जंजीरों से जकड़ा हुआ है।’’ स्कॉट डेविडसन के अनुसार-’’मानव अधिकार की अवधारणा राज्य द्वारा व्यक्ति की सुरक्षा के लिए किए गए कार्य से निकटता से जुड़ी हुई है। यह राज्य द्वारा निर्मित उन सामाजिक परिस्थितियों और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों की ओर भी संकेत करती है, जिनके अंतर्गत व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सके।’’ मैकने के अनुसार-’’अधिकार मानव के सामाजिक हित की वे लाभदायक परिस्थ...