उषा का जादू क्या है और क्यों टूट रहा है

  1. 8. उषा
  2. उषा का जादू टूटने का कारण क्या?
  3. सूर्योदय से उषा का कौन
  4. उषा का जादू कब समाप्त होता है कविता के आधार पर बताएं?
  5. दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करेंनील जल में या किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे हिल रही हो। और ......... जादू टूटता है इस उषा का अब: सूर्योदय हो रहा है। from Hindi शमशेर बहादुर सिंह Class 12 CBSE
  6. Solved CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi A Set 2
  7. NCERT Solutions For Class 10 Sparsh II Hindi Chapter 5


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8. उषा

Answer ⇒ (C) S.N Class 12th Hindi 100 Marks Objective 1 कड़बक Objective Question 2 सूरदास Objectivbe Question 3 4 छप्पय Objective Question 5 कवित्त Objective Question 6 तुमुल कोलाहल कलह में 7 पुत्र वियोग Objective Question 8 उषा Objective Question 9 जन -जन का चेहरा एक 10 अधिनायक Objective Question 11 प्यारे नन्हें बेटे को Objectuive 12 हार-जीत Objective Question 13 गाँव का घर Objective Question

उषा का जादू टूटने का कारण क्या?

विषयसूची Show • • • • सूर्योदय होने पर उषा का जादू टूट जाता है क्योंकि सूर्य की किरणों के प्रभाव से आसमान में छायी लालिमा समाप्त हो जाती है। 497 Views निम्नलिखित काव्याशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर कीजिए- प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है) बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने नील जल में या किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो। और जादू टूटता है, इस ऊषा का अब सूर्योदय हो रहा है 1.काव्याशं में प्रयुक्त उपमानों का उल्लेख कीजिए। 2.पद्यांश की भाषागत दो विशेषताओं की चर्चा कीजिए। 3.भाव-सौदंर्य स्पष्ट कीजिए: नील जल में या किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो। 1.काव्यांश में प्रयुक्त उपमान नीला शंख जैसा प्रात: का नभ राख से लीपा हुआ चौका जैसा भोर का नभ गौर झिलमिल देह जैसे 2.इस पद्यांश की दो भाषागत विशेषताएँ हैं:। (i) सरल, सुबोध भाषा का प्रयोग किया गया है। (ii) बिंबात्मक एवं चित्रात्मक भाषा का प्रयोग है। 3.इन पंक्तियों में सूर्योदय की वेला के प्राकृतिक सौंदर्य की मनोहारी झलक प्रस्तुत की गई है। आकाश में क्षण- क्षण परिवर्तित होते सौंदर्य के रूप-चित्रण में कवि को सफलता प्राप्त हुई है। कभी लगता है कि नीले जल वाले सरोवर में किसी गोरी नायिका का शरीर झिलमिला रहा है। कवि की कल्पना अत्यंत नवीन है। सूर्योदय होने पर उषा का यह जादू टूटने लगता है। कवि ने उषाकालीन वातावरण को हमारी आँखों के सामने साकार रूप में उपस्थित कर दिया है। उत्प्रेक्षा और मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग है। 265 Views ‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन आकाश की पवित्रता, निर्मलता और उज्ज्वलता के लिए प्रयुक्त कथन को स्पष्ट कीजिए...

सूर्योदय से उषा का कौन

कविवर शमशेर बहादुर सिंह ने भोर के नभ को राख से लीपा गीला चौका इसलिए कहा गया है क्योंकि सुबह का आकाश कुछ-कुछ धुंध के कारण मटमैला व नमी- भरा होता है। राख से लीपा हुआ चौका भी सुबह के इस कुदरती रंग से अच्छा मेल खाता है। अत: उन्होंने भोर के नभ की उपमा राख से लीपे गीले चौके से की है। इस तरह यह आकाश राख से लीपे हुए गीले चौके के समान पवित्र है। सूर्योदय से पूर्व उषा का दृश्य अत्यंत आकर्षक होता है। नीले आकाश में फैलती प्रात:कालीन सफेद किरणें जादू के समान प्रतीत होती हैं। उषा काल में आकाश का सौंदर्य क्षण-क्षण परिवर्तित होता है। उस समय प्रकृति के कार्य-व्यापार ही ‘उषा का जादू’ है। निरस नीला आकाश, काले सिर पर पुते केसर-से रंग, प्लेट पर लाल खड़िया चाक, नीले जल में नहाती किसी गोरी नायकिा की झिलमिलाती देह आदि दृश्य उषा के जादू के समान प्रतीत होते हैं। सूर्योदय के होते ही ये सभी दृश्य समाप्त हो जाता है। इसी को उषा का जादू टूटना कहा गया है। सूर्योदय से पूर्व उषा का दृश्य अत्यंत आकर्षक होता है। नीले आकाश में फैलती प्रात:कालीन सफेद किरणें जादू के समान प्रतीत होती हैं। उषा काल में आकाश का सौंदर्य क्षण- क्षण परिवर्तित होता है। उस समय प्रकृति के कार्य-व्यापार ही ‘उषा का जादू’ है। निरम्र नीला आकाश, काली सिर पर पुते केसर-से रंग, स्लेट पर लाल खड़िया चाक, नीले जल में नहाती किसी गोरी नायिका की झिलमिलाती देह आदि दृश्य उषा के जादू के समान प्रतीत होते हैं। सूर्योदय के होते ही ये सभी दृश्य समाप्त हो जाता है। इसी को उषा का जादू टूटना कहा गया है।

उषा का जादू कब समाप्त होता है कविता के आधार पर बताएं?

Table of Contents Show • • • • सूर्योदय होने पर उषा का जादू टूट जाता है क्योंकि सूर्य की किरणों के प्रभाव से आसमान में छायी लालिमा समाप्त हो जाती है। 497 Views ‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन आकाश की पवित्रता, निर्मलता और उज्ज्वलता के लिए प्रयुक्त कथन को स्पष्ट कीजिए। ‘उषा’ कविता में प्रात:कालीन आकाश की पवित्रता के लिए कवि ने उसे ‘राख से लीपा हुआ चौका’ कहा है। जिस प्रकार चौके को राख से लीपकर पवित्र किया जाता है, उसी प्रकार प्रात:कालीन उषा भी पवित्र है। आकाश की निर्मलता के लिए कवि ने ‘काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो’ का प्रयोग किया है। जिस प्रकार काली सिल को लाल केसर से धोने से उसका कालापन समाप्त हो जाता है और वह स्वच्छ निर्मल दिखाई देती है, उसी प्रकार उषा भी निर्मल, स्वच्छ है। उज्ज्वलता के लिए कवि ने ‘नील जल में किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो’ कहा है। जिस प्रकार नीले जल में गोरा शरीरी कांतिमान और सुंदर (उज्ज्वल) लगता है, उसी प्रकार भोर की लाली में (सूर्योदय में) आकाश की नीलिमा कांतिमान और सुंदर लगती है। 4562 Views निम्नलिखित काव्याशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर कीजिए- प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है) बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धूल गई हो स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने। 1.काव्यांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए। 2.भोर के नभ को ‘राख से लीपा हुआ चौका’ क्यो कहा गया है? 3.सूर्योदय से पूर्व के आकाश के बारे में कवि ने क्या कल्पना की है? 1.इस काव्यांश में प्रात:कालीन नभ के सौंदर्य का प्रभावी चित्रण किया गया है। वह राख से लीपे हुए चौके के समान प्रतीत होता है। उसमें ओस का गीलापन है तो क...

दिये गये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या करेंनील जल में या किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे हिल रही हो। और ......... जादू टूटता है इस उषा का अब: सूर्योदय हो रहा है। from Hindi शमशेर बहादुर सिंह Class 12 CBSE

प्रसंग: प्रस्तुत काव्याशं प्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि शमशेरबहादुर सिंह द्वारा रचित कविता ‘उषा’ से अवतरित है। इसमें कवि सूर्योदय से ठीक पहले के प्राकृतिक सौदंर्य का चित्र उकेरता है। इसमें पल-पल परिवर्तित होती प्रकृति का शब्द-चित्र है। व्याख्या: इस काव्यांश में कवि ने भोर के वातावरण का सजीव चित्रण किया है। प्रात:कालीन आकाश गहरा नीला प्रतीत हो रहा है। वह शंख के समान पवित्र और उज्ज्वल है। भोर (सूर्योदय) के समय आकाश में हल्की लालिमा बिखर गई है। आकाश की लालिमा अभी पूरी तरह छँट भी नहीं पाई है पर सूर्योदय की लालिमा फूट पड़ना चाह रही है। आसमान के वातावरण में नमी दिखाई दे रही है और वह राख से लीपा हुआ गीला चौका-सा लग रहा है। इससे उसकी पवित्रता झलक रही है। भोर का दृश्य काले और लाल रंग के अनोखे मिश्रण से भर गया है। ऐसा लगता है कि गहरी काली सिल को केसर से अभी-अभी धो दिया गया हो अथवा काली स्लेट पर लाल खड़िया मल दी गई हो। कवि ने सूर्योदय से पहले के आकाश को राख से लीपे चौके के समान इसलिए बताया है ताकि वह उसकी पवित्रता को अभिव्यक्त कर सके। राख से लीपे चौके में कालापन एवं सफेदी का मिश्रण होता है और सूर्योदय की लालिमा बिखरने से पूर्व आकाश ऐसा प्रतीत होता है। गीला चौका पवित्रता को दर्शाता है। विशेष: 1. इस काव्यांश में प्रकृति का मनोहारी चित्रण किया गया है। 2. ग्रामीण परिवेश साकार हो गया है। 3. कवि शमशेरबहादुर सिंह ने सूर्योदय से पहले आकाश को राख से लीपे हुए गीले चौके के समान इसलिए कहा है क्योंकि सूर्योदय से पहले आकाश धुंध के कारण कुछ-कुछ मटमैला और नमी से भरा होता है। राख से लीपा हुआ गीला चौका भोर के इस प्राकृतिक रंग से अच्छा मेल खाता है। इस तरह यह आकाश लीपे हुए चौके की तरह पवित्र है। 4. कवि शमशेरबहा...

Solved CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi A Set 2

Download Solved CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi A Set 2 2019 PDF to understand the pattern of questions asks in the board exam. Know about the important topics and questions to be prepared for CBSE Class 10 Hindi board exam and Score More marks. Here we have given Hindi A Sample Paper for Class 10 Solved Set 2. Board – Central Board of Secondary Education, cbse.nic.in Subject – CBSE Class 10 Hindi A Year of Examination – 2019. Solved CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi A Set 2 हल सहित सामान्य निर्देश : • इस प्रश्न-पत्र में चार खण्ड है – क, ख, ग, घ | • चारों खण्डों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है । • यथासंभव प्रत्येक खण्ड के क्रमशः उत्तर दीजिए | खण्ड ‘क’ : अपठित बोध 1. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- इंद्रियनिग्रह का अर्थ है-बाह्य पदार्थों के आकर्षण को कम करना, अंतर्मुखी बनना, विषयों की ओर दौड़ने वाली इंद्रियों को रोकना, इंद्रियों का निग्रह करके हमें उन्हें अपने वश में लाना है। वे स्वेच्छाचारी न रहकर हमारे अधीन हो जाएँ और हम उनसे जो काम लेना चाहें, जहाँ लगाना चाहें वहीं वे लग जाएँ, ऐसा अभ्यास कर लेने से इंद्रियाँ हमारी उपासना में बाधक न बनकर साधक बन सकती हैं। अपनी इंद्रियों का सदुपयोग करने की कला से हम आत्मोत्थान कर सकते हैं। कानों का विषय है-सुनना। राग-द्वेष उत्पन्न करने वाली बातों को न सुनकर सत्पुरुषों की वाणी को सुनकर हमारा उद्धार सहज ही हो सकता है। इसी तरह एक-एक इंद्रिय के संयम से मनुष्य में कितनी अद्भुत शक्तियों का विकास होता है इसका कुछ विवरण पतंजलि के ‘योगसूत्र’ में पाया जाता है। वास्तव में इंद्रियाँ अपने आप में ...

NCERT Solutions For Class 10 Sparsh II Hindi Chapter 5

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