उत्तराखंड मेरी मातृभूमि

  1. लव जिहाद, विरोध प्रदर्शन और महापंचायत, उत्तराखंड के गढ़वाल में क्यों फैला है तनाव?
  2. कुमाउनी जनगीत : उत्तराखंड मेरी मातृभूमि , मातृभूमी मेरी पितृभूमि
  3. 68000 Government Posts Vacant In Uttarakhand Government Not Sending Proposal To UKPSC For Recruitment ANN
  4. Culture Of Reading Is Growing In The Hill State, Third Consecutive Book Fair Is Being Organized


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लव जिहाद, विरोध प्रदर्शन और महापंचायत, उत्तराखंड के गढ़वाल में क्यों फैला है तनाव?

लव जिहाद, विरोध प्रदर्शन और महापंचायत, उत्तराखंड के गढ़वाल में क्यों फैला है तनाव? 26 मई को एक कथित 'लव जिहाद' (Love Jihad) मामले में एक नाबालिग स्थानीय लड़की के साथ भागते समय पकड़े गए दो युवकों का सामूहिक विरोध हुआ। सिर्फ पुरोला ही नहीं, बल्कि गढ़वाल (Garhwal) में पिछले दो हफ्तों में कम से कम छह अन्य घटनाओं ने पहले से ही तनावपूर्ण हवा में घी का काम किया है • • • • • • उत्तराखंड के उत्तरकाशी (Uttarkashi) जिले में बसा एक छोटा सा शांत पहाड़ी इलाका पुरोला 15 जून को दक्षिणपंथी संगठनों की तरफ से बुलाई गई 'महापंचायत' (Mahapanchayat) से पहले 'तनावपूर्ण' है। पुलिस पुरोला की ओर जाने वाले हर गाड़ी की चेकिंग कर रही है, वहीं स्थानीय प्रशासन ने कड़ी चेतावनी जारी करते हुए धारा 144 लगा दी है. एक कथित 'लव जिहाद' मामले में दो युवक शामिल थे, उनमें से एक मुस्लिम था, जो 26 मई को एक नाबालिग स्थानीय लड़की के साथ भागते समय पकड़ा गया था, जिसके बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ। इसके बाद, कस्बे में कुछ पोस्टर दिखाई दिए, जिनमें मुस्लिम व्यापारियों को जाने के लिए कहा गया था, और कई डरे हुए लोग चले गए।

कुमाउनी जनगीत : उत्तराखंड मेरी मातृभूमि , मातृभूमी मेरी पितृभूमि

हजारों किलोमीटर का फासला हो, चाहे देश, काल, परिस्थितियां जो भी हों अपनी संस्कृति व परंपराओं से जुड़े रहना व उसे वहां दूर रहकर भी उसी रूप में अपनाना कोई डॉ. चन्दा पन्त त्रिवेदी जी से सीखे।यह रोचक और प्रेरणादायी कहानी है अमेरिका में रहने वाली उत्तराखंड (भारतीय) मूल की ऐपण कलाकार डॉ. चन्दा पन्त त्रिवेदी की, जो उत्तराखंड की प्रसिद्ध लोक कला ऐपण को अमेरिका में रहकर भी बना रही हैं। उनका ऐपण मोह ऐसा की वो खुद तो बनाती हैं ही मगर निस्वार्थ रूप से अपने यूट्यूब चैनल के जरिए ऐपण कला सिखाती भी हैं, ऐपण कला को नए प्रतिमान देने के लिए ऐपण कलाकारों के बीच ऐपण प्रतियोगिता भी आयोजित करती हैं। वर्ष 2011 से उन्होंने फेसबुक पर भी ऐपण कला को पेश करना शुरू कर दिया था। क़रीब 16 साल की उम्र से उनका ऐपण कला के प्रति मोह हो चुका था। सोशल मीडिया में उन्होंने आज तक अपने आप को गुप्त रखा, अपनी पहचान ना ही साझा किया और ना ही किसी को बताया क्योंकि मकसद था निस्वार्थ भाव से ऐपण कला को जीवंत रखना और ऐपण कला का विकास । Aipan art by Dr. Chanda pant triwedi • जानें, कौन हैं डॉ.चन्दा पन्त त्र भा रतकि चित्रकलाक कहानि शिलाचित्रों बै शुरू है बेर कंप्यूटर चित्रों तलक पुजि गे। य कतुक पुराणि छु यैक अंताज मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, चन्हूदड़ो व लोथल आदि उत्खन्न में मिली वस्तुओं बै लगाई जै सकीं।भारतकि चित्रकलाक अजन्ता शैली, गुजराती शैली, पाल शैली, जैन शैली, अपभ्रंश शैली, राजस्थानी शैली, मुगल शैली, पहाड़ी शैली, पटना शैली, सिख शैली, दक्कन शैली, लोक शैली, मधुबनी शैली, आधुनिक शैली दुनी भर में भौत प्रसिद्ध छन । रवीन्द्रनाथ टैगोर ज्यू कुनी - " कला मानव की बाह्य वस्तुओं की अपेक्षा स्वानुभूती की अभिव्यक्ति है।" पुराण जमा्न बटी आज तलक...

68000 Government Posts Vacant In Uttarakhand Government Not Sending Proposal To UKPSC For Recruitment ANN

Uttarakhand Vacant Government Posts: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) भले ही युवाओं को तेजी से रोजगार देने का दावा करें लेकिन सरकार में बैठे अधिकारी उनकी इस मुहीम को फटका लगा रहे हैं. हाल ये है कि आरक्षण समेत कई बिंदुओं को लेकर लोक सेवा आयोग ने भर्ती के जो प्रस्ताव संशोधित करने के लिए भेजे थे, छह महीने बाद भी वो आयोग को वापस नहीं भेजे गए. ऐसे में अब आयोग के पास कोई भर्ती प्रस्ताव नहीं है, जिसकी परीक्षा कराई जा सके. यह भी कह सकते हैं कि लोक सेवा आयोग के पास अब भर्ती संबंधी कोई काम नहीं रह गया है, जबकि उत्तराखंड अधीनस्थ चयन सेवा आयोग (UKSSSC) आयोग पहले से ही खाली है. सीएम धामी ने सभी विभागों को कड़े शब्दों में खाली पड़े पदों के प्रस्ताव शासन को भेजने के निर्देश दिए थे, लेकिन कई विभाग ऐसे हैं, जो अभी तक खाली पदों के प्रस्ताव शासन को नहीं भेजे. प्रदेश भर में तकरीबन 68000 पद सरकारी महकमों में खाली हैं. पिछली बार हुए भर्ती घोटाले के बाद सरकार एक्शन में आई और उत्तराखंड अधीनस्थ चयन सेवा आयोग से समूह ग की भर्ती का काम छीनकर लोक सेवा आयोग को दी. दो बार शासन को रिमाइंडर भेज चुका है आयोग लोक सेवा आयोग ने वक्त पर कैलेंडर जारी किया लेकिन शासन की ओर से आयोग को भर्तियों के अधियाचन भी नहीं जा पाए, जबकि आयोग की ओर से जो भर्तियों के प्रस्ताव के अधियाचन शासन से मांगे गए थे, वह फाइलों में धूल फांक रहे हैं. दो बार आयोग शासन को रिमाइंडर भेज चुका है. शासन की हीलाहवाली की वजह से आज तक खाली पदों के प्रस्ताव आयोग को नहीं भेजे गए. अब यह स्थिति पैदा हो गई है कि लोक सेवा आयोग के पास कोई प्रस्ताव नहीं है जबकि उत्तराखंड अधीनस्थ चयन सेवा आयोग पहले से ही शासन के लिए सफेद हाथी...

Culture Of Reading Is Growing In The Hill State, Third Consecutive Book Fair Is Being Organized

उत्तराखंड: कोरोना काल में पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में शराब के ठेकों पर लम्बी लाइन देखी जा रही थी, लेकिन कोरोना के बाद से प्रदेश की हवा कुछ-कुछ बदली-सी है. प्रदेश में पिछले पांच महीनों में दो पुस्तक मेलों का आयोजन किया जा चुका है और अब तीसरे की तैयारी है. टनकपुर, बैजनाथ के बाद यह पुस्तक मेला 20 व 21 मई को चंपावत में आयोजित होगा. प्रदेश में हो रहे इन पुस्तक मेलों को 'किताब कौथिग' नाम दिया जा रहा है, जिसका मतलब होता है 'किताबों का मेला'. ऐसे हुई पुस्‍तक मेले की शुरुआत... किताब कौथिग नाम रखने की वजह के पीछे के कारण पर बात करते, इन किताब कौथिगों को आयोजित करवाने में अहम भूमिका निभाने वाले हिमांशु कफलटिया बताते हैं कि कौथिग उत्तराखण्ड की अमूल्य धरोहर हैं. सदियों से पहाड़ की इस धरती पर धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, व्यापारिक, सामरिक कारणों से कौथिगों का आयोजन होता आया है. कालांतर में कुछ कौथिगों या मेलों ने भव्य रूप ले लिया, तो कुछ विलुप्त भी हो गए. दिसंबर 2022 में हेम पन्त और मैंने एक अभिनव प्रयास की शुरुआत की. हेम पंत पहाड़ी संस्कृति को बचाने के लिए काम कर रहे मंच 'म्योर पहाड़ मेरि पछ्यान' से जुड़े थे, तो मैं टनकपुर में एसडीएम पद पर रहते हुए 'सिटीजन पुस्तकालय अभियान' के माध्यम से समाज में पढ़ने लिखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहा था. जब इन दो विचारों का मिलन हुआ, तो उससे एक नया विचार किताब कौथिग अर्थात किताबों का मेला हमारे सामने आया। इस नए प्रयोग में टनकपुर के समाज के हर वर्ग ने अपना योगदान दिया और पहला किताब कौथिग बहुत ही सफल रहा. अब उत्तराखंड के युवा प्रशासनिक अधिकारी जैसे बागेश्वर की डीएम अनुराधा पाल व चम्पावत के डीएम नरेंद्र भंडारी किताब कौथिग परंपरा को बढ़ावा दे...