वीर लोरिक का बिरहा

  1. Veer Lorik : वीर योद्धा लोरिक और सुंदरी मंजरी की प्रेम और युद्ध की कहानी
  2. Lorik Shivdhar Ki Ladai Bhojpuri Mp3 Download (64.89 Mb)
  3. बलिया का इतिहास History of Ballia in Hindi ballia.nic.in
  4. Goverdhan Puja celebrated at Veer Lorik Pathar in Markundi
  5. GENERAL KNOWLEGE


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Veer Lorik : वीर योद्धा लोरिक और सुंदरी मंजरी की प्रेम और युद्ध की कहानी

अभीरों के कुल की उपशाखा मनियार के कुल में कुम्बे मनियार (कुआ गुआर) का जन्म हुआ। उनका मूल स्थान कन्नौज का गोरा गांव और लखनऊ के निकट माना जाता है। इसी मनियार कुल में वीर लोरिक का जन्म हुआ। इनके पिता का नाम कुआ और माता का नाम खुल्हनी या प्रगल्भा था। कुआ अपनी बिरादरी में पहलवान और वरिष्ठ व्यक्ति थे। उनकी पत्नी चतुर और धर्मपरायण थी। लोरिक का कर्म क्षेत्र पंजाब से लेकर बंगाल तक फैला था। लोरिकायन में वीर लोरिक देव के कई विवाहों की चर्चा है। पहला विवाह अगोरी गांव की मंजरी से हुआ, जिससे मोरिक नामक पुत्र हुआ। दूसरा विवाह चनमा (चंदा) से हुआ जिससे चनरेता नामक पुत्र हुआ। तीसरा विवाह हरदीगढ़ की जादूगरनी जमुनी बनियाइन से हुआ जिससे बोसारखा नामक पुत्र हुआ। डॉक्टर लक्ष्मी प्रसाद श्रीवास्तव ने अपने शोध ग्रंथ 'यदुवंशी लोकदेव लोरिक' में यह प्रमाणित किया है कि लोरिक का असली हरदीगढ़ और प्रसिद्ध कर्मक्षेत्र बिहार के सहरसा जिला का हरदी स्थान ही है। यह सहरसा जिला और अंग महाजन पद का हिस्सा रहा है। वैसे पंजाब से लेकर उत्तरप्रदेश और छत्तीसगढ़ से लेकर बिहार तक के लोक गायक अपने अपने क्षेत्र के हरदीस्थान को लोरिकायन वाला हरदीगढ़ मान लेते हैं। कुछ गायकों के अनुसार मिर्जापुर का हरई हरदी स्थान है तो कुछ भोरपुरी लोक गायकों के अनुसार छपरा का हरदी है। लोरिक और मंजरी की प्रेम कथा : लोरिकायन नामक ग्रंथ में लोरिक के संबंध में कई गाथाएं मिलती हैं जिसमें से एक कथा उसके और मंजरी के बीच के प्रेम संबंध की है। लोरिक को सोनभद्र के अगोरी राज्य के मेहर की बेटी मंजरी से प्रेम हो गया था। उसने मंजरी के पास अपना प्रेम प्रस्ताव भेजा तो मंजरी की रातों की नींद उड़ गई और वह भी लोरिक के सपने देखने लगी। परंतु मंजरी पर अगोरी राज्य क...

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Vir_ras_biraha लोरकी खण्ड लोरिक शिवधर मल्ल युद्ध Pravin Yadav वीर_रस_सुपरहिट _बिरहा Download Mp3 Filesize: 97.47 Mb, Duration: 42:35 34K Views, 3 years ago ► Subscribe Now लोरकी खण्ड लोरिक शिवधर मल्ल युद्ध Pravin Yadav वीर_रस_सुपरहिट _बिरहा ► Album Lorik Sivdhar Mall Yuddh ► Song Lorik Sivdhar Mall Yuddh Bir Ras Biraha ► Singer Pravin

बलिया का इतिहास History of Ballia in Hindi ballia.nic.in

भाषा चुने | हिंदी | बलिया नामकरण: बलिया का नाम बलिया, राजा बलि के नाम से पड़ा है, पौराणिक कथाओं के अनुसार महा प्रतापी राजा बलि ने बलिया को अपनी वैभवशाली राजधानी बनाया था। बलिया का इतिहास: वाल्मीकि, अत्री, वशिष्ठ, जमदग्नि, भृगु, दुर्वासा अनेक ऋषि मुनी, साधू संत, महात्माओं की तपोभूमि एवं आश्रम होने का गौरव वैदिक काल से ही बलिया इतिहास में समेटे हुए है। बलिया प्राचीन काल में कौशल साम्राज्य का अभिन्न अंग था। भारतवर्ष अपनी विविधताओं के साथ अपना गौरवशाली इतिहास को समेटे हुये है, ऐतिहासिक दृष्टि से जनपद बलिया का अतीत अत्यंत गौरवशाली और महिमामंडित रहा है। पुरातात्विक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक तथा औध्योगिक दृष्टि से बलिया का अपना विशिष्ट स्थान है। हिन्दू मुस्लिम सांप्रदायिक सदभाव, आध्यात्मिक, वैदिक, पौराणिक, शिक्षा, संस्कृति, संगीत, कला, सुन्दर भवन, धार्मिक, मंदिर, मस्जिद, ऐतिहासिक दुर्ग, गौरवशाली सांस्कृतिक कला की प्राचीन धरोहर को आदि काल से अब तक अपने आप में समेटे हुए बलिया का विशेष इतिहास रहा है। बलिया के उत्पत्ति का इतिहास निम्न प्रकार से है। इतिहास में बलिया की आज तक की जानकारी। बलिया का सम्पूर्ण इतिहास History of baliya in hindi ballia.nic.in बागी बलिया का इतिहास (Ballia): बलिया जिसे भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में अपने उल्लेखनीय योगदान के वजह से बागी बलिया (Rebel Ballia) के नाम से भी जाना जाता है, भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के बलिया ज़िले में स्थित एक नगर है। ददरी-मेला यहाँ का प्रसिद्ध मेला है जो आश्विन मास में शहर की पूर्वी सीमा पर गंगा और सरयू नदियों के संगम पर स्थित एक मैदान पर मनाया जाता है। मऊ, आजमगढ़, देवरिया, गाजीपुर और वाराणसी के रूप में पास के जिलों के साथ नियमित...

Goverdhan Puja celebrated at Veer Lorik Pathar in Markundi

वीर लोरिक पत्थर मारकुण्डी में मंगलवार को गोवर्धन पूजा समारोह का आयोजन कर पूजन-अर्चन किया गया। इस दौरान वीर लोरिक की प्रतिमा की भी विधि-विधान से पूजा अर्चना कर यदुवंशी समाज के विकास और उत्थान का आह्वान किया गया। पूजा समारोह में सैकड़ों की संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ी रही। सुबह से ही गोवर्धन पूजा को लेकर मारकुण्डी पहाड़ी गुलजार रही। गोवर्धन पूजा के अवसर पर जिले व आसपास के दूर-दराज के लोग पूजा में शामिल होने के लिए आए थे। पुजारी बाबा ने विधि-विधान से गोवर्धन की पूजा-अर्चना की। इस दौरान पतिवाह बाबा (राजेन्द्र यादव) ने लोगों को वीरलोरिक की गाथा सुनाई। इसके अलावा उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के उपदेशों और गोवर्धन पर्वत की महिमा के बारे में लोगों को बताया। गोवर्धन पूजा समारोह के कारण मंगलवार को मारकुण्डी पहाड़ी पर मेले जैसा माहौल रहा। पूरे दिन पहाड़ी पर लोगों के आन-जाने का क्रम लगा रहा। इससे दिन भी मारकुण्डी पहाड़ी गुलजार रही। इस दौरान आयोजित बिरहा कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया। दूर-दूर से आए बिरहा कलाकारों ने अपनी कला से लोगों को झूमने पर विवश कर दिया। शाम को दंगल प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया। दूर-दूर से आए पहलवानों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया। अध्यक्षता परमेश्वर यादव व संचालन दयाराम यादव ने किया। इस मौके पर रोशन लाल यादव, सपा जिलाध्यक्ष विजय यादव, हिदायत उल्ला खां, दयाराम यादव, जिला पंचायत अध्यक्ष अनिल यादव, पूर्व विधायक रमेश चन्द्र दुबे, गोविन्द यादव, संजय यादव, कमलेश उर्फ नेता यादव, चन्द्रभूषण यादव, कांता यादव, सुरेश यादव, संतोष यादव, शीतल यादव, भीम यादव, सईद कुरैशी, प्रमोद यादव आदि मौजूद रहे। वहीं सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर सीओ राजकुमार त्रिपाठी व कोतवाल मिथिलेश मिश्र डटे रहे...

GENERAL KNOWLEGE

*यज्ञ करने की इच्छा से परम पवित्र नैमिषारण्य में आगे कहे गये बहुत से मुनि आये। जैसे, असित, देवल, पैल, सुमन्तु, पिप्पलायन, सुमति, कश्यप, जाबालि, भृगु, अंगिरा, वामदेव, सुतीक्ष्ण, शरभंग, पर्वत, आपस्तम्ब, माण्डव्य, अगस्त्य, कात्यायन, रथीतर, ऋभु, कपिल, रैभ्य, गौतम, मुद्गल, कौशिक, गालव, क्रतु, अत्रि, बभ्रु, त्रित, शक्ति, बधु, बौधायन, वसु, कौण्डिन्य, पृथु, हारीत, ध्रूम, शंकु, संकृति, शनि, विभाण्डक, पंक, गर्ग, काणाद, जमदग्नि, भरद्वाज, धूमप, मौनभार्गव, कर्कश, शौनक तथा महातपस्वी शतानन्द, विशाल, वृद्धविष्णु, जर्जर, जय, जंगम, पार, पाशधर, पूर, महाकाय, जैमिनि, महाग्रीव, महाबाहु, महोदर, महाबल, उद्दालक, महासेन, आर्त, आमलकप्रिय, ऊर्ध्वबाहु, ऊर्ध्वपाद, एकपाद, दुर्धर, उग्रशील, जलाशी, पिंगल, अत्रि, ऋभु, शाण्डीर, करुण, काल, कैवल्य, कलाधार, श्वेतबाहु, रोमपाद, कद्रु, कालाग्निरुद्रग, श्वेताश्वर, आद्य, शरभंग, पृथुश्रवस् आदि।* *शिष्यों के सहित ये सब ऋषि अंगों के सहित वेदों को जानने वाले, ब्रह्मनिष्ठ, संसार की भलाई तथा परोपकार करने वाले, दूसरों के हित में सर्वदा तत्पर, श्रौत, स्मार्त कर्म करने वाले। नैमिषारण्य में आकर यज्ञ करने को तत्पर हुए। इधर तीर्थयात्रा की इच्छा से सूत जी अपने आश्रम से निकले, और पृथ्वी का भ्रमण करते हुए उन्होंने नैमिषारण्य में आकर शिष्यों के सहित समस्त मुनियों को देखा। संसार समुद्र से पार करने वाले उन ऋषियों को नमस्कार करने के लिये, पहले से जहाँ वे इकट्‌ठे थे वहीं प्रसन्नचित्त सूतजी भी जा पहुँचे।* *इसके अनन्तर पेड़ की लाल छाल को धारण करने वाले, प्रसन्नमुख, शान्त, परमार्थ विशारद, समग्र गुणों से युक्त, सम्पूर्ण आनन्दों से परिपूर्ण, ऊर्ध्वपुण्ड्रघारी, राम नाम मुद्रा से युक्त, गोपीचन...