वीर नारायण सिंह

  1. कौन थे, 1857 क्रांति के प्रथम आदिवासी शहीद वीर नारायण सिंह
  2. जनक्रांति वीर नारायण सिंह को जैसा मैंने जाना : शंकर गुहा नियोगी
  3. सोनाखान के जमींदार
  4. EXCLUSIVE: शहीद वीर नारायण सिंह को तोप से नहीं उड़ाया गया था बल्कि दी गई थी फांसी, how shaheed veer narayan singh died
  5. सोनाखन: दो बार हुआ वीर नारायण का क़त्ल
  6. शहीद वीर नारायण सिंह का जीवन परिचय
  7. वीर नारायण सिंह बिंझवार : महान क्रां‍तिकारी जिनके शव को अंग्रेजों ने तोप से बांध कर उड़ा दिया था...


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कौन थे, 1857 क्रांति के प्रथम आदिवासी शहीद वीर नारायण सिंह

Credible History is an endeavour to preserve authentic history as gleaned through the lens of established, respected historians who have spent their lives researching it via reliable sources. It aims to counter the propaganda being spread through a large section of mainstream media and social media platforms, and provide easy access to established historical resources Reading Time: 2 minutes read भारत का स्वतंत्रता आन्दोलन एक ऐसा जन आन्दोलन था जो जैसे-जैसे बढ़ता गया वैसे-वैसे उसकी शक्ति बढ़ती गई थी। यह आन्दोलन प्रदेशों और वर्गों के भेदभाव से ऊपर उठकर पूरे देश की जनता की संयुक्त इच्छा शक्ति की अभिव्यक्ति बन गया था। 1857 के पहले भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध आदिवासियों ने बार-बार विद्रोह किए थे और जिनके फलस्वरूप आदिवासी क्षेत्रों में अंग्रेजों को अपनी सत्ता स्थापित करने में बहुत संघर्ष करना पड़ा। ऐसे विद्रोहों का तो संदर्भ भी आसानी से नहीं मिलता है। यद्यपि पूरे देश भर में 1857 के पहले और उसके बाद हुए स्वतंत्रता आन्दोलन में आदिवासियों का योगदान महत्वपूर्ण था। 1857 का पहला विद्रोह सोनाखाना में अंग्रेज़ों द्वारा लगान वसूली के लिए की गई नई व्यवस्था, परपंरागत सामाजिक, धार्मिक और राज व्यवस्था को बदलने के प्रयासों, वनप्रबंधन के लिए लागू किए गए नये नियमों और शराब के निर्माण लगाई गई रोको के कारण आदिवादियों की जल, जंगल और जमीन की अपनी अनूठी संस्कृति प्रभावित हो रही थी। अंग्रेजों द्वारा इन उपायों का सहारा लेकर आदिवासियों की स्वाधीन चेतना को भी आहत किया गया था। इस तरह आदिवासियों ने अपनी संस्कृति और स्वायत्तता की रक्षा में अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम की ऐतिहासिक विरासत हैं। भारत ...

जनक्रांति वीर नारायण सिंह को जैसा मैंने जाना : शंकर गुहा नियोगी

वीर नारायण सिंह की शहादत दिवस (10 दिसंबर, 1857) पर विशेष [आज हम याद कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के अमर शहीद वीर नारायण सिंह को, जिन्हें आज के ही दिन ब्रिटिश हुक्मरानों ने सन् 1857 को तोप से बांधकर उड़ा दिया था। उनके बारे में पहली बार विस्तृत जानकारी सन् 1979 में शहीद शंकर गुहा नियोगी द्वारा उजागर की गई। उन्होंने इस संबंध में ‘आज की पीढ़ी और वीर नारायण सिंह की वसीयत’ शीर्षक यात्रा संस्मरण लिखा, जिसे छत्तीसगढ़ माईन्स श्रमिक संघ द्वारा प्रकाशित स्मारिका ‘छत्तीसगढ़ के किसान युद्ध का पहला क्रांतिकारी शहीद वीर नारायण सिंह’ में शामिल किया गया। उनकी इस यात्रा में सहदेव साहू भी शामिल रहे। प्रस्तुत लेख शंकर गुहा नियोगी की यात्रा संस्मरण के अंशों पर आधारित है। इसे हू-ब-हू रखा गया है। चूंकि अंश अलग-अलग पृष्ठों से लिए गए हैं, इसलिए पठनीयता बरकरार रखने के लिए आंशिक तौर पर संपादन किया गया है। मूल पाठ से संपादन को पृथक रखने के लिए बड़े कोष्ठक में रखा गया है। वीर नारायण सिंह पर आधारित इस लेख को प्रकाशित करने का हमारा एक मकसद यह है कि आज की युवा पीढ़ी उस संघर्ष को जाने और समझे, जो आज से 161 वर्ष पहले छत्तीसगढ़ के इलाकों में चल रहा था। उनका संघर्ष ब्रिटिश हुक्मरानों की साम्राज्यवादी नीतियों, स्थानीय सामंतों व साहूकारों के शोषण के खिलाफ था। दूसरा मकसद, आज के मौजूदा हुक्मरानों का ध्यान वीर नारायण सिंह की उपेक्षित विरासत की ओर आकृष्ट कराना भी है। यह उनकी जिम्मेदारी है कि वह छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी से जुड़े विरासतों को संरक्षित करें, बजाय इसके कि वह प्रतीकात्मक रूप से इमारतों आदि का नामकरण कर खानापूर्ति करें। तीसरा मकसद, अपने पाठकों को सोनाखान में आज की तारीख में चल रहे खनन माफियाओं के खेल...

सोनाखान के जमींदार

सोनाखान का विद्रोह (Sonakhan ka vidroh) छत्तीसगढ़ – सोनाखान जमींदारी सन् 1819-20 में सोनाखान के जमींदार रामराय ने अंग्रेजों के खिलाफ स्वाधीनता संग्राम की शुरुआत की थी। सन् 1818 में अंग्रेजी संरक्षणकाल के दौरान, छत्तीसगढ़ के जमींदारों की संख्या 27 थी, जो राजनैतिक, प्रशासनिक और पारिवारिक कारणों से सदैव घटती – बढ़ती रही। सन् 1826 में सम्बलपुर और सरगुजा की जमींदारियाँ छत्तीसगढ़ से अलग कर दी गई। ब्रिटिश काल में छत्तीसगढ़ के जमींदारों के साथ राजनैतिक, प्रशासनिक संबंध स्थापित करने के लिए कुछ विशेष नीति का अनुसरण किया गया जो निम्न है– 1. जमींदार को नियंत्रित व अपने प्रति ईमानदार बनाये रखा जाये। 2. केन्द्रीय शक्ति और जमींदारों के मध्य उचित सद्भावनापूर्ण सामंजस्य स्थापित रखना। 3. राजस्व व भूमि नीति से संबंधित मसलों में जमींदारों की ज्यादती पर निषेध लगाए रखना। अंग्रेजों के इस विशेष नीति के कारण उनका विद्रोह लम्बे समय तक नहीं चल सका। परंतु रामराय ने उसी दौरान ईस्ट इंडिया कम्पनी की साम्राज्यवादी आकांक्षा को पहचान लिया था। रामराय छत्तीसगढ़ इतिहास के सन्धि-युग की जानकर माने गए। छत्तीसगढ़ के सोनाखान नामक जमींदारी थी इस जमींदारी के अंतर्गत लगभग 300 गांव आते थे। इस क्षेत्र में पहले कलचुरियों का शासन था। नागपुर के भोंसले ने छत्तीसगढ़ के कलचुरियों पदच्यूत (ख़ारिज) किया था। उस समय फतेनारायन सिंह सोनाखान के जमीदार थे, उन्होंने भोंसले की सत्ता को अस्वीकार कर दिया था। उसी तरह जब सन् 1818 में भोंसले शासन और ईस्ट इंडिया कम्पनी के बीच संधि के अनुसार छत्तीसगढ़ी की शासन व्यवस्था ईस्ट इंडिया कम्पनी को सौंप दी गई थी। तब फतेनारायन सिंह के पुत्र रामराय अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। सोनाखान की जमीं...

EXCLUSIVE: शहीद वीर नारायण सिंह को तोप से नहीं उड़ाया गया था बल्कि दी गई थी फांसी, how shaheed veer narayan singh died

रायपुर: विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश अब अपना 72वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. भारत देश को आजादी के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा है. देश के सैकड़ों सेनानियों के सालों के संघर्ष और बलिदान का नतीजा है कि हम आज स्वतंत्र हैं. छत्तीसगढ़ अंचल में देश के आजादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वालों में नाम आता है शहीद वीर नारायण सिंह का. ये छत्तीसगढ़ के उन स्वतंत्रता सेनानियों में से हैं जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बड़ा विद्रोह किया था. अंग्रेजों के गोदाम से अनाज लूटकर गरीबों में बंटवा दिया था. इन्हीं से जुडे़ एक तथ्य को लेकर ETV भारत बड़ा खुलासा करने जा रहा है. इतिहास में उन्हें दी गई जानकारी के मुताबिक उन्हें तोप में जंजीर से बांधकर रायपुर के जयस्तंभ चौक में उड़ाया गया था. जबकि यह जानकारी पूरी तरह गलत है. ETV भारत तमाम दस्तावेजों के साथ ये खुलासा कर रहा है कि उन्हें तोप से नहीं उड़ाया गया था. बल्कि उन्हें फांसी दी गई थी. कैसे हुई थी छत्तीसगढ़ के सपूत शहीद वीर नारायण सिंह की मौत ? शहीद वीर नारायण सिंह काफी बड़ी शख्सियत थे. वे ऐसे बड़े परिवार में जन्मे थे कि यदि वे चाहते तो अंग्रेजों के साथ मिलकर आसानी से जिंदगी गुजार सकते थे. लेकिन जमींदार परिवार से होने के बाद भी उन्होंने आजादी को चुना और लड़ते-लड़ते शहीद हो गए. शहीद वीर नारायण सिंह के विद्रोह को लेकर अंग्रेजों में खासी नाराजगी रही है. अंग्रेज चाहते थे कि ये विद्रोह यहीं खत्म हो जाए और लोगों में भय पैदा हो. यही वजह है कि उन्होंने शहीद वीर नारायण को गिरफ्तार कर रायपुर सेंट्रल जेल में बंद कर दिया था. बाद में उन्हें फांसी दी गई. डाक टिकट 9 दिसंबर को ब्रिटिश सरकार ने लिखा था पत्र ETV भारत उस दस्तावेज को दिखाता है जिसमें अंग्रेज सरक...

सोनाखन: दो बार हुआ वीर नारायण का क़त्ल

छत्तीसगढ़ के सोनाखन गांव के सहस राम कंवर कहते हैं, ''वीर नारायण सिंह? वह एक लुटेरा था, एक डकैत. कुछ लोगों ने उसे महान व्यक्ति बना दिया है. हमने नहीं.'' आस-पास बैठे हुए दो-चार लोग हां में हां मिलाते हुए गर्दन हिलाते हैं. बाक़ियों की सोच वैसी ही है जैसी सहस राम की. यह दुखद था. हम सोनाखन की खोज में काफ़ी दूर से चलकर आए थे. यह 1850 के बीच के दशक में छत्तीसगढ़ के आदिवासी विद्रोह का प्रमुख केंद्र था. वह विद्रोह जो 1857 के महान विद्रोह से पहले ही शुरू हो चुका था और जिसने एक असली लोक-नायक को जन्म दिया था. यह वह गांव है, जहां वीर नारायण सिंह ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की थी. 1850 के दशक में यहां अकाल जैसी स्थिति ने हालात को पूरी तरह बिगाड़ दिया था. परिस्थितियां जैसे ही ख़राब हुईं, सोनाखन के नारायण सिंह का क्षेत्रीय ज़मींदारों से झगड़ा शुरू हो गया. आदिवासी बहुल इस गांव के सबसे बुज़ुर्ग, चरण सिंह कहते हैं, ''उसने भीख नहीं मांगी." शायद वह अकेले व्यक्ति हैं, जो नारायण सिंह के बारे में सबसे सकारात्मक सोच रखते हैं. ''उसने सौदागरों और मालिकों से कहा कि वे अपने गोदाम के दरवाज़े खोल दें और ग़रीबों को खाने दें.'' पहले की तरह ही, इस बार भी अकाल के दौरान, गोदाम अनाजों से भरे हुए थे. ''और उसने कहा कि जैसे ही पहली फसल तैयार होगी, लोग वे अनाज लौटा देंगे जो उन्हें दिए गए हैं. लेकिन जब उन्होंने मना कर दिया, तो उसने अपने नेतृत्व में गोदामों पर कब्ज़ा करके अनाज ग़रीबों में बंटवा दिया.'' इसके बाद जो आंदोलन शुरू हुआ, वह पूरे क्षेत्र में फैल गया, क्योंकि आदिवासियों ने अत्याचारियों पर हमला बोल दिया था. बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल के प्रोफ़ेसर हीरालाल शुक्ला बताते हैं, ''यह लड़ाई 1857 के विद्रोह से काफ़ी प...

शहीद वीर नारायण सिंह का जीवन परिचय

वीर नारायण सिंह (1795 - 1857) राज्य के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, एक सच्चे देशभक्त व गरीबों के मसीहा थे। परिचय सत्रहवीं सदी में राज्य की स्थापना की गई थी। इनके पूर्वज सारंगढ़ के जमींदार के वशंज थे। सोनाखान का प्राचीन नाम था। कुर्रूपाट डोंगरी में युवराज नारायण सिंह के वीरगाथा का जिन्दा इतिहास दफन है। युवराज नारायण सिंह के पास एक घोड़ा था जो कि स्वामीभक्त था। वे घोड़े पर सवार होकर अपने रियासत का भ्रमण किया करत थे। भ्रमण के दौरान एक बार युवराज को किसी व्यक्ति ने जानकारी दी कि सोनाखान क्षेत्र में एक नरभक्षी शेर कुछ दिनों से आतंक मचा रहा है जिसके चलते प्रजा भयभीत है। प्रजा की सेवा करने में तत्पर नारायण सिंह ने तत्काल तलवार हाथ में लिए नरभक्षी शेर की ओर दौड़ पड़े और कुछ ही पल में शेर को ढेर कर दिए। इस प्रकार से वीर नारायण सिंह ने शेर का काम तमाम कर भयभीत प्रजा को नि:शंक बनाया। उनकी इस बहादुरी से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें वीर की पदवी से सम्मानित किया। इस सम्मान के बाद से युवराज वीरनारायण सिंह के नाम से प्रसिध्द हुए। प्रजा हितैषी का एक अन्य उदाहरण सन् 1856 में पड़ा है जिसमें नारायण सिंह ने हजारों किसानों को साथ लेकर कसडोल के जमाखोरों के गोदामों पर धावा बोलकर सारे अनाज लूट लिए व दाने-दाने को तरस रहे अपने प्रजा में बांट दिए। इस घटना की शिकायत उस समय डिप्टी कमिश्नर इलियट से की गई। वीरनारायण सिंह ने शिकायत की भनक लगते हुए कुर्रूपाट डोंगरी को अपना आश्रय बना लिया। ज्ञातव्य है कि कुर्रूपाट गोड़, बिंझवार राजाओं के देवता हैं। अंतत: ब्रिटिश सरकार ने देवरी के जमींदार जो नारायण सिंह के बहनोई थे के सहयोग से छलपूर्वक देशद्रोही व लुटेरा का बेबुनियाद आरोप लगाकर उन्हें बंदी बना ल...

वीर नारायण सिंह बिंझवार : महान क्रां‍तिकारी जिनके शव को अंग्रेजों ने तोप से बांध कर उड़ा दिया था...

जब हम गरीबों को इन्साफ और उनका अधिकार दिलाने वाले चरित्रों की बात करते हैं तो सबसे पहले हमारे दिमाग में एक नाम आता है और वह है रॉबिनहुड। इसी के साथ वर्तमान में युवाओं से ऐसे किसी किरदार का पूछें तो वह KGF के रॉकी भाई का नाम तो अवश्य ही लेंगे। पर इन चरित्रों को कहीं न कहीं हम काल्पनिक ही मानते हैं। लेकिन एक ऐसी गाथा है जो वास्तविक है। उसके किरदार को अगर हम 'भारत का रॉबिनहुड' कहेंगे तो उचित ही होगा। यह ऐसा नाम है जिसे भारत के लोग कम ही जानते हैं। यह वह व्यक्ति है जिसने गरीब देशवासियों की जान के लिए अपनी जान का बलिदान कर दिया। जमींदार होते हुए भी यह साहूकारों से देशवासियों की भूख के लिए लड़ा। इस हुतात्मा का नाम है वीर नारायण सिंह बिंझवार जिन्हें 1857 के स्वातंत्र्य समर में छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद के रूप में जाना जाता है। वीर नारायण सिंह का जन्म छत्तीसगढ़ के सोनाखान में 1795 में एक जमींदार परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम राम राय था। कहते हैं इनके पूर्वजों के पास 300 गांवों की जमींदारी थी। यह बिंझवार जनजाति के थे। पिता की मृत्यु के बाद 35 वर्ष की आयु में वीर नारायण सिंह अपने पिता के स्थान पर जमींदार बने। उनका स्थानीय लोगों से अटूट लगाव था। 1856 में इस क्षेत्र में भीषण अकाल पड़ा। लोगों के पास खाने के लिए कुछ नहीं था। जो था वह अंग्रेज और उनके गुलाम साहूकार जमाखोरी करके अपने गोदामों में भर लेते थे। भूख से जनता का बुरा हाल था। अपने क्षेत्र के लोगों का इतना बुरा हाल वीर नारायण सिंह से देखा नहीं गया। उन्होंने कसडोल स्थान पर अंग्रेजों से सहायता प्राप्त साहूकार माखनलाल के गोदामों से अवैध और जोर जबरजस्ती से एकत्रित किया हुआ अनाज लूट लिया और भूखमरी से पीड़ित गरीब जनता को बांट दिया। इस कृत...