वीरगाथा काल की विशेषता है

  1. राजस्थानी साहित्य
  2. हिंदी साहित्य का इतिहास (पुस्तक)
  3. CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi Course A Set 1 with Solutions
  4. [Solved] रामचन्द्र शुक्ल ने आदि
  5. आदिकाल
  6. वीरगाथा काल
  7. आदिकाल (वीरगाथाकाल) की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं ?


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राजस्थानी साहित्य

राजस्थानी साहित्य से तात्पर्य अभिलेखीय साहित्य– शिलालेखों, अभिलेखों, सिक्कों तथा मुहरों में जो साहित्य उत्कीर्ण है उस साहित्य को अभिलेखीय साहित्य कहा जाता है। यद्यपि यह सामग्री अत्यल्प मात्रा में उपलब्ध होती है लेकिन जितनी भी सामग्री उपलबध होती है उसका साहित्यिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व है। राजस्थानी साहित्य की इतिहास परंपरा को हम निम्न रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं – काल-परक प्रवृत्ति-परक काल-क्रम 1. प्राचीन काल वीरगाथा काल 1050 से 1550 ई. 2. पूर्व मध्य काल भक्ति काल 1450 से 1650 ई 3. उत्तर मध्य काल श्रंगार, रीति एवं नीति परक काल 1650 से 1850 ई. 4. आधुनिक काल विविध विषयों एवं विधाओं से युक्त 1850 ई. से अद्यतन प्राचीन काल – वीरगाथा काल (1050 से 1550 ई.) भारतवर्ष पर पश्चिम दिशा से हो रहे निरंतर हमलों का अत्यधिक प्रभाव राजस्थान प्रदेश पर पड़ रहा था यहां के शासकों को संघर्ष करना पड़ रहा था। और ऐसी परिस्थिति में संघर्ष की भावना को बनाए रखने के लिए तथा समाज में वीर नायकों के आदर्श को प्रस्तुत करने के लिए वीर रसात्मक काव्यों का सृजन किया गया। इस काल में वीरता प्रधान काव्यों की प्रमुखता के कारण ही इस काल को वीरगाथा काल का नाम दिया गया है। 1169 तक, राजस्थानी भाषा अनिवार्य रूप से मौखिक थी और इसलिए 1169 ईस्वी से पहले कोई महत्वपूर्ण साहित्य कार्य मौजूद नहीं हैं। राजस्थान में साहित्य रचना के प्रमाण 13वीं शताब्दी से मिलते है राजस्थान साहित्य का प्रारम्भिक काल 11वीं शताब्दी से प्रारंभ होकर 1460 ई. तक माना जाता है। • इस प्रारंभिक काल में जैन विद्वानों, आचार्यों और भिक्षुओं का प्रभुत्व था इस काल के महत्वपूर्ण रचना कार्य : • भरतेश्वर बाहुबली घोर – ब्रजसेन सूरी • भरतेश्वर बाहुबली रास – शालिभद्र ...

हिंदी साहित्य का इतिहास (पुस्तक)

हिन्दी साहित्य का इतिहास को सबसे प्रामाणिक तथा व्यवस्थित इतिहास-लेखन में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल एक ऐसी क्रमिक पद्धति का अनुसरण करते हैं जो अपना मार्ग स्वयं प्रशस्त करती चलती है। विवेचन में तर्क का क्रमबद्ध विकास ऐसे है कि तर्क का एक-एक चरण एक-दूसरे से जुड़ा हुआ, एक-दूसरे में से निकलता दिखता है। लेखक को अपने तर्क पर इतना गहन विश्वास है कि आवेश की उसे अपेक्षा नहीं रह जाती। आदिकाल से लेकर आधुनिक काल तक आचार्य शुक्ल का इतिहास इसी प्रकार तथ्याश्रित और तर्कसम्मत रूप में चलता है। अपनी आरम्भिक उतपत्ति में आचार्य शुक्ल ने बताया है कि साहित्य जनता की चित्तवृत्ति का संचित प्रतिबिम्बित होता है। इन्हीं चित्तवृत्तियों की परम्परा को परखते हुए साहित्य-परम्परा के साथ उनका सामंजस्य दिखाने में आचार्य शुक्ल का इतिहास और आलोचना-कर्म निहित है। इस इतिहास की एक बड़ी विशेषता है कि आधुनिक काल के सन्दर्भ में पहुँचकर शुक्ल जी ने यूरोपीय साहित्य का एक विस्तृत, यद्यपि कि सांकेतिक ही, परिदृश्य खड़ा किया है। इससे उनके ऐतिहासिक विवेचन में स्रोत, सम्पर्क और प्रभावों की समझ स्पष्टतर होती है हिंदी साहित्य का विभाजन हिंदी साहित्य का आरंभ अपभ्रंश में मिलता है। हिंदी में तीन प्रकार के साहित्य मिलते हैं – गद्य, पद्य और चम्पू। गद्य और पद्य दोनों के मिश्रण को चंपू कहते है। खड़ी बोली की पहली रचना कौन सी थी इस पर तो विवाद है लेकिन अधिकतर साहित्यकार हिन्दी की पहली प्रामाणिक गद्य रचना लाला श्रीनिवासदास द्वारा लिखे उपन्यास ‘परीक्षा गुरु’ को मानते हैं। अनुक्रम • 1 परिचय • 2 संरचना • 3 समालोचना • 4 साहित्य के इतिहास की परम्परा। • 5 सन्दर्भ • 6 इन्हें भी देखें • 7 बाहरी कड़ियाँ परिचय [ ] शुक्ल जी ने इतिहास लेखन का यह कार्...

CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi Course A Set 1 with Solutions

• Extra Questions • CBSE Notes • RD Sharma Solutions • RD Sharma Class 12 Solutions • RD Sharma Class 11 Solutions • RD Sharma Class 10 Solutions • RD Sharma Class 9 Solutions • RD Sharma Class 8 Solutions • RS Aggarwal Solutions • RS Aggarwal Solutions Class 10 • RS Aggarwal Solutions Class 9 • RS Aggarwal Solutions Class 8 • RS Aggarwal Solutions Class 7 • RS Aggarwal Solutions Class 6 • ML Aggarwal Solutions • ML Aggarwal Class 10 Solutions • ML Aggarwal Class 9 Solutions • ML Aggarwal Class 8 Solutions • ML Aggarwal Class 7 Solutions • ML Aggarwal Class 6 Solutions • English Grammar • Words with Letters • English Summaries • Unseen Passages CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi Course A Set 1 with Solutions निर्धारित समय : 3 घंटे अधिकतम अंक : 80 सामान्य निर्देश: (क) इस प्रश्न-पत्र के दो खंड हैं- ‘अ’ और ‘ब’। (ख) खंड ‘अ’ में कुल 10 वस्तुपरक प्रश्न पूछे गए हैं। सभी प्रश्नों में उपप्रश्न दिए गए हैं। दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (ग) खंड ‘ब’ में कुल 7 वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं। प्रश्नों में आंतरिक विकल्प दिए गए हैं। दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए प्रश्नों के उत्तर दीजिए। खंड ‘अ’- वस्तुपरक प्रश्न ( अंक 40) अपठित गद्यांश (अंक 5) प्रश्न 1. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए। (1 × 5 = 5) विद्यार्थी-जीवन को मानव-जीवन की रीढ़ की हड्डी कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। विद्यार्थी काल में बालक में जो संस्कार पड़ जाते हैं, जीवनभर वही संस्कार अमिट रहते हैं। इसीलिए यही काल आधारशिला कहा गया है। यदि यह नींव दृढ़...

[Solved] रामचन्द्र शुक्ल ने आदि

"आचार्य रामचंद्र शुक्ल" ने आदिकाल को "वीरगाथा काल" नाम दिया है। अतः उपर्युक्त विकल्पों में से विकल्प (4) वीरगाथा काल सही है तथा अन्य विकल्प असंगत हैं। Key Points • आदिकाल :- 1050-1375 वि. • इस समय का साहित्य मुख्यतः चार रूपों में मिलता है : • सिद्ध-साहित्य तथा नाथ-साहित्य • जैन साहित्य • चारणी-साहित्य • प्रकीर्णक साहित्य आदिकाल के नाम निम्नलिखित हैं:-

आदिकाल

आदिकाल (वीरगाथा काल) आदिकाल हिंदी साहित्य का इतिहास (1000 ई० -1350 ई०)- हिंदी साहित्य का इतिहास के विभिन्न कालों के नामांकरण का प्रथम श्रेय जॉर्ज ग्रियर्सन को जाता है। आरंभिक काल के नामांकन का प्रश्न विवादास्पद है। इस काल को ग्रियर्सन ने “ चारण काल” मिश्र बंधु ने “ प्रारंभिक काल” महावीर प्रसाद द्विवेदी ने “ बीज वपन काल” शुक्ल ने आदिकाल- “ वीरगाथा काल” राहुल सांकृत्यायन ने सिद्ध “ सामंत काल” रामकुमार वर्मा ने “ संधिकाल व चारण काल” हजारी प्रसाद द्विवेदी ने “ आदिकाल” की संज्ञा दी है। आदिकाल का इतिहास हिन्दी साहित्य के इतिहास में लगभग 10वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के मध्य तक के काल को आदिकाल कहा जाता है। यह नाम ( आदिकाल) डॉ॰ हजारी प्रसाद द्विवेदी से मिला है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस काल को “वीरगाथा काल” तथा विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इस काल को “वीरकाल” नाम दिया है। आदिकाल के आधार पर साहित्य का इतिहास लिखने वाले मिश्र बंधुओं ने इसका नाम प्रारंभिक काल किया और आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने “बीजवपन काल” डॉ॰ रामकुमार वर्मा ने भी इस काल की प्रमुख प्रवृत्तियों के आधार पर इसको “चारण-काल” कहा है और राहुल संकृत्यायन ने “सिद्ध-सामन्त काल”। आदिकाल में तीन प्रमुख प्रवृतियां मिलती हैं- धार्मिकता, वीरगाथात्मकता व श्रृंगारिकता। आदिकाल का नामकरण हिन्दी साहित्य के इतिहास के प्रथम काल का नामकरण विद्वानों ने इस प्रकार किया है- # विद्वान नामकरण 1. डॉ॰ ग्रियर्सन चारणकाल, 2. मिश्रबंधु आरम्भिक काल 3. आचार्य रामचंद्र शुक्ल- वीरगाथा काल, 4. राहुल संकृत्यायन सिद्ध सामंत युग, 5. महावीर प्रसाद द्विवेदी बीजवपन काल, 6. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र वीरकाल, 7. हजारी प्रसाद द्विवेदी आदिकाल, 8. रामकुमार वर्म...

वीरगाथा काल

देशभाषा काव्य पहले कहा जा चुका है कि प्राकृत की रूढ़ियों से बहुत कुछ मुक्त भाषा के जो पुराने काव्य जैसे बीसलदेवरासो, पृथ्वीराजरासो आजकल मिलते हैं वे संदिग्ध हैं। इसी संदिग्ध सामग्री को लेकर थोड़ा-बहुत विचार हो सकता है, उसी पर हमें संतोष करना पड़ता है। इतना अनुमान तो किया ही जा सकता है कि प्राकृत पढ़े हुए पंडित ही उस समय कविता नहीं करते थे। जनसाधारण की बोली में गीत, दोहे आदि प्रचलित चले आते रहे होंगे जिन्हें पंडित लोग गँवारू समझते रहे होंगे। ऐसी कविताएँ राजसभाओं तक भी पहुँच जाती रही होंगी। 'राजा भोज जस मूसरचंद' कहने वालों के सिवा देशभाषा में सुंदर भावभरी कविता करने वाले भी अवश्य ही रहे होंगे। राजसभाओं में सुनाए जाने वाले नीति, श्रृंगार आदि विषय प्राय: दोहों में कहे जाते थे और वीररस के पद्य छप्पय में। राजाश्रित कवि अपने राजाओं के शौर्य, पराक्रम और प्रताप का वर्णन अनूठी उक्तियों के साथ किया करते थे और अपनी वीरोल्लासभरी कविताओं से वीरों को उत्साहित किया करते थे। ऐसे राजाश्रित कवियों की रचनाओं के रक्षित रहने का अधिक सुबीता था। वे राजकीय पुस्तकालयों में भी रक्षित रहती थीं और भट्ट, चारण जीविका के विचार से उन्हें अपने उत्ताराधिकारियों के पास भी छोड़ जाते थे। उत्तरोत्तर भट्ट, चारणों की परंपरा में चलते रहने से उनमें फेरफार भी बहुत कुछ होता रहा। इसी रक्षित परंपरा की सामग्री हमारे हिन्दी साहित्य के प्रारंभिक काल में मिलती है। इसी से यह काल 'वीरगाथा काल' कहा गया। भारत के इतिहास में यह वह समय था जबकि मुसलमानों के हमले उत्तर-पश्चिम की ओर से लगातार होते रहते थे। इनके धक्के अधिकतर भारत के पश्चिमी प्रांत के निवासियों को सहने पड़ते थे जहाँ हिंदुओं के बड़े-बड़े राज्य प्रतिष्ठित थे। गुप्त साम्राज्य के...

आदिकाल (वीरगाथाकाल) की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं ?

आदिकाल (वीरगाथाकाल) की प्रमुखविशेषताएँ • आदिकाल में अधिकांश रासो ग्रन्थ लिखे गये; जैसेपृथ्वीराज रासो, परमाल रासो आदि। इनमें आश्रयदाताओं की अतिशयोक्तिपूर्ण प्रशंसा है। • वीर और श्रृंगार रस की प्रधानता है। • युद्धों का सजीव वर्णन किया गया है। • काव्यभाषा के रूप में डिंगल और पिंगल का प्रयोग हुआ है। • काव्य-शैलियों में प्रबन्ध और गीति शैलियों का प्रयोग मिलता है। • सामूहिक राष्ट्रीय भावना का अभाव रहा है।