Vikas kya hai

  1. उपन्यास किसे कहते है? उपन्यास का विकास क्रम
  2. सतत् विकास लक्ष्य
  3. भारत में समावेशी विकास एवं चुनौतियाँ
  4. विकास प्रशासन का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ एवं क्षेत्र
  5. विकास किसे कहते है
  6. शारीरिक विकास (Physical Development)
  7. Vikas meaning in Hindi


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उपन्यास किसे कहते है? उपन्यास का विकास क्रम

Upanyan arth paribhasha visheshta vikas;उपन्यास शब्द 'उप' उपसर्ग और 'न्यास' पद के योग से बना है। जिसका अर्थ है उप= समीप, न्याय रखना स्थापित रखना (निकट रखी हुई वस्तु)। अर्थात् वह वस्तु या कृति जिसको पढ़कर पाठक को ऐसा लगे कि यह उसी की है, उसी के जीवन की कथा, उसी की भाषा मे कही गई हैं। उपन्यास मानव जीवन की काल्पनिक कथा है। प्रेमचंद के अनुसार "मैं उपन्यास को मानव जीवन का चित्रमात्र समझता हूँ। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उसके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्व है। बाबू गुलाब के अनुसार," उपन्यास जीवन का चित्र हैं, प्रतिबिंब नहीं। जीवन का प्रतिबिंब कभी पूरा नही हो सकता हैं। मानव-जीवन इतना पेचीदा है कि उसका प्रतिबिंब सामने रखना प्रायः असंभव है। उपन्यासकार जीवन के निकट से निकट आता हैं, किन्तु उसे भी जीवन में बहुत कुछ छोड़ना पड़ता हैं, किन्तु जहाँ वह छोड़ता हैं वहाँ अपनी ओर से जोड़ता भी हैं।" 6. जीवन की समग्रता का चित्र इस प्रकार उपस्थित किया जाता है कि पाठक उसकी अन्तर्वस्तु तथा पात्रों से अपना तादात्मीकरण कर सके। उपन्यास का विकास Upanyas ka vikas;हिन्दी उपन्यास का प्रारंभ 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से ही होता है। हिन्दी उपन्यास का विकास क्रम 1. भारतेंदु युग हिन्दी के भारतेन्दु युगीन मौलिक उपन्यासों पर संस्कृत के कथा साहित्य एवं परवर्ती नाटक साहित्य के साथ ही बंगाल उपन्यासों की छाया पाई जाती है। इस दृष्टिकोण से हिन्दी का प्रथम उपन्यास "परिक्षा गुरू" 1882 माना जाता हैं। भारतेंदु युग मे सामाजिक, ऐतिहासिक, तिलिस्मी, ऐय्यारी, जासूसी तथा रोमानी उपन्यासों की रचना परंपरा का सूत्रपात हुआ। इस युग की प्रमुख अनूदित कृति है बंकिमचन्द्र की "दुर्गेशनंन्दिनी"। 2. द्विवेदी युग 1900 से 19...

सतत् विकास लक्ष्य

सतत् विकास लक्ष्य • 18 Feb 2019 • 5 min read भूमिका वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की 70वीं बैठक में ‘2030 सतत् विकास हेतु एजेंडा’ के तहत सदस्य देशों द्वारा 17 विकास लक्ष्य अर्थात् एसडीजी (Sustainable Development goals-SDGs) तथा 169 प्रयोजन अंगीकृत किये गए हैं। क्या है सतत् विकास? ‘पर्यावरण तथा विकास पर विश्व आयोग’ (1983) के अंतर्गत बर्टलैंड कमीशन द्वारा जारी रिपोर्ट (1987) के अनुसार–‘आने वाली पीढ़ी की अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता से समझौता किये बिना वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु विकास ही सतत् विकास है।’ SDGs क्यों? MDGs (Millennium Development Goals) की अवधि 2015 में खत्म हो गई। पर्यावरण सुरक्षा के साथ मानव विकास हेतु। संयुक्त राष्ट्र का एजेंडा 2030 (17 विकास लक्ष्य) • गरीबी के सभी रूपों की पूरे विश्व से समाप्ति। • भूख की समाप्ति, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा। • सभी आयु के लोगों में स्वास्थ्य, सुरक्षा और स्वस्थ जीवन को बढ़ावा। • समावेशी और न्यायसंगत गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही सभी को सीखने का अवसर देना। • लैंगिक समानता प्राप्त करने के साथ ही महिलाओं और लड़कियों को सशक्त करना। • सभी के लिये स्वच्छता और पानी के सतत् प्रबंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करना। • सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच सुनिश्चित करना। • सभी के लिये निरंतर समावेशी और सतत् आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोज़गार तथा बेहतर कार्य को बढ़ावा देना। • लचीले बुनियादी ढाँचे, समावेशी और सतत् औद्योगीकरण को बढ़ावा। • देशों के बीच और भीतर असमानता को कम करना। • सुरक्षित, लचीले और टिकाऊ शहर और मानव बस्तियों का निर्माण। • स्थायी खपत और उत...

भारत में समावेशी विकास एवं चुनौतियाँ

भारत में समावेशी विकास एवं चुनौतियाँ! Read this article in Hindi to learn about:- 1. भारत में समावेशी विकास से आशय (Concept of Inclusive Development in India) 2. समावेशी विकास की चुनौतियां (Challenges for Inclusive Growth in India) 3. सरकार द्वारा समावेशी विकास की दिशा में किये जा रहे प्रयासों...समावेशी विकास से तात्पर्य ऐसे विकास से है जिसमें तेज आर्थिक विकास, उच्‍च घरेलू विकास दर तथा अधिक राष्‍ट्रीय आय प्राप्‍त होती है और स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा, स्‍वच्‍छ पेयजल, स्‍वच्‍छ पर्यावरण, पौष्‍टिक भोजन जैसी बुनियादी सुविधाओं का लाभ कमजोर वर्गों सहित सभी वर्गों तक पहुँचता है। इस प्रकार समावेशी विकास की रणनीति निर्धनता रेखा से नीचे रह रहे कमजोर वर्गों को रोजगार के अवसरों में वृद्धि तथा सामाजिक सेवाओं का लाभ वास्‍तव में इन तक पहुँचकर जीवन स्‍तर में गुणात्‍मक सुधार लाने पर केन्‍द्रित है। समावेशी विकास से तात्पर्य ऐसे विकास से है जिसमें तेजआर्थिक विकास, उच्‍च घरेलू विकास दर तथा अधिक राष्‍ट्रीय आय प्राप्‍त होती है और स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा, स्‍वच्‍छ पेयजल, स्‍वच्‍छ पर्यावरण, पौष्‍टिक भोजन जैसी बुनियादी सुविधाओं का लाभ कमजोर वर्गों सहित सभी वर्गों तक पहुँचता है। इस प्रकार समावेशी विकास की रणनीति निर्धनता रेखा से नीचे रह रहे कमजोर वर्गों को रोजगार के अवसरों में वृद्धि तथा सामाजिक सेवाओं का लाभ वास्‍तव में इन तक पहुँचकर जीवन स्‍तर में गुणात्‍मक सुधार लाने पर केन्‍द्रित है। (1) आधारभूत वस्‍तुओं तक सबकी पहुँच हो। (2) शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी, कमजोर वर्ग के लोगों को रोजगार वृद्धि प्रक्रिया से जोड़ा जाये तथा कृषि, ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में निवेश तथा आय वृद्धि के प्रभावी उपाय ...

विकास प्रशासन का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ एवं क्षेत्र

विकास प्रशासन दो शब्दों‘विकास’ तथा‘प्रशासन’ के योग या मेल से बना है।‘ कम वांछित परिस्थिति से अधिक वांछित परिस्थितियों की ओर अग्रसर होने की प्रक्रिया’ को विकास की संज्ञा देते हैं जबकि‘प्रशासन सरकार का कार्यात्मक पहलू है जिसका अभिप्राय सरकार द्धारा लोक-कल्याण तथा जन-जीवन को व्यवस्थित करने हेतु किये गये प्रयासों से हैं। 2. जॉन मोण्टगोमरी के अनुसार,” विकास प्रशासन का तात्पर्य अर्थव्यवस्था ( जैसे कि कृषि या उद्योग या इन दोनों में से किसी से भी सम्बन्धित पूंजीगत आधारिक संरचना) तथा कुछ सीमा तक राज्य की समाज सेवाओं (विशेषतया शिक्षा और लोक स्वास्थय) में नियोजित परिवर्तन लाना है। सामान्यत: राजनैतिक योग्यताओं में सुधार करने के प्रयासों से इसका सम्बन्ध नहीं होता।” 3. फेनसोड ने विकास प्रशासन को परिभाषित करते हुए “इसे नवीन मूल्यों का वाहक बताया है।“उनके अनुसार, “विकास प्रशासन में वे सभी कार्य साम्मिलित होते हैं जो विकासशील देशों ने आधुनिकीकरण एंव औद्योगिकीकरण के मार्ग पर चलने के लिए ग्रहण किए हैं या अपनाएं है। प्राय: विकास प्रशासन में संगठन और साधन सम्मिलित हैं जो नियोजन आर्थिक विकास तथा राष्ट्रीय आय का प्रसार करने हेतु साधन जुटाने और उनके आबंटन के लिए स्थापित किए जाते हैं।” 4. रिग्स के अनुसार, “विकास प्रशासन को दो परस्पर सम्बन्धी रूपों में प्रयुक्त किया जाता है। प्रथम, विकास प्रशासन का सम्बन्ध विकास कार्यक्रमों को लागू करने से , बड़े संगठनों, विशेष तौर पर सरकारों, के द्धारा प्रयुक्त प्रणालियों, नीतियों और उन नीतियों के विकासवादी उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु बनाई गई योजनाओं के कार्यान्वयन से हैं दूसरे, अप्रत्यक्ष रूप में प्रशासनिक क्षमताओं में वृद्धि लाना भी इसके अन्तर्गत सम्मिलित किया ज...

विकास किसे कहते है

देशों, क्षेत्रों या व्यक्तिओं की आर्थिक समृद्धि के वृद्धि को आर्थिक विकास कहते हैं। नीति निर्माण की दृष्टि से आर्थिक विकास उन सभी प्रयत्नों को कहते हैं जिनका लक्ष्य किसी जन-समुदाय की आर्थिक स्थिति व जीवन-स्तर के सुधार के लिये अपनाये जाते हैं। विकास शब्द की उत्पत्ति ही गरीब, उपेक्षित व पिछड़े सन्दर्भ में हुर्इ। अत: विकास को इन्हीं की दृष्टि से देखना जरुरी है। विकास को साधारणतया ढाँचागत विकास को ही विकास के रूप में ही देखा जाता है, जबकि यह विकास का एक पहलू मात्र है। विकास को समग्रता में देखना जरूरी है, जिसमें मानव संसाधन, प्राकृतिक संसाधन, सामाजिक, आर्थिक राजनैतिक, सांस्कृतिक, व नैतिक व ढाँचागत विकास शामिल हो। विकास के इन विभिन्न आयामों में गरीब, उपेक्षित व पिछडे वर्ग व संसाधन हीन की आवश्यकताओं एवं समस्याओं के समाधान प्रमुख रूप से परिलक्षित हों। वास्तव में विकास एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है जो सकारात्मक बदलाव की ओर इषारा करती है। एक ऐसा बदलाव जो मानव, समाज, देश व प्रकृति को बेहतरी की ओर ले जाता है। विभिन्न बुद्धिजीवियों द्वारा विकास को विभिन्न रूपों में परिभाषित किया है । क्लार्क जे0 के शब्दों में ‘‘विकास बदलाव की एक ऐसी प्रक्रिया है जो लोगों को इस योग्य बनाती है कि वे अपने भाग्य विधाता स्वयं बन सके तथा अपने अन्र्तनिहित समस्त सम्भावनाओं को पहचान सकें।’’ Developmen is a process of change that enables people to take charge of their own destinies and realise their full potential”. (Clark, J. ,1991). रॉय एंड राबिन्सन के अनुसार ‘‘किसी भी देश के लोगों के भौतिक, सामाजिक व राजनैतिक स्तर पर सकारात्मक बदलाव ही विकास है।’’ “Positive changes in the material, social, political and p...

शारीरिक विकास (Physical Development)

बालक काशारीरिक विकास मानव जीवन का प्रारम्भ उसके पृथ्वी पर जन्म लेने से पहले ही प्रस्फुटित होने लगता है। वर्तमान समय में गर्भधारण की स्थिति से ही मानवीय जीवन का प्रारम्भ माना जाता है। माँ के गर्भ में बच्चा 280 दिन या 10 चन्द्रमास तक विकसित होकर परिपक्वावस्था प्राप्त करता है। अतः शारीरिक दशा का विकास गर्भकाल में निश्चित किया जा सकता है। भ्रूणावस्था में शारीरिक विकास (Physical Development in Embryo Stage) शुक्राणु तथा डिम्ब के संयोग से गर्भ स्थापित होता है। इस अवस्था में बालक का शारीरिक विकास तीन अवस्थाओं में विकसित होकर पूर्ण होता है- 1. डिम्बावस्था इस अवस्था में पहले डिम्ब उत्पादन होता है। इस समय अण्डे के आकार का विकास होता है। इस समय उत्पादन कोष में परिवर्तन होने लगते हैं। इस अवस्था में अनेक रासायनिक क्रियाएँ उत्पन्न होती हैं, जिससे कोषों में विभाजन होना प्रारम्भ हो जाता है। 2. भ्रूणीय अवस्था इस अवस्था में डिम्ब का विकास प्राणी के रूप में होने लगता है। इस समय डिम्ब की थैली में पानी हो जाता है और उसे पानी की थैली की संज्ञा दी जाती है। यह झिल्ली प्राणी को गर्भावस्था में विकसित होने में मदद देती है। जब दो माह व्यतीत हो जाते हैं तो सिर का निर्माण, फिर नाक, मुँह आदि का बनना प्रारम्भ होने लगता है। इसके पश्चात् शरीर का मध्य भाग एवं टाँगें और घुटने विकसित होने लगते हैं। 3. भूणावस्था गर्भावस्था में द्वितीय माहसेलेकर जन्म लेने तक की अवस्था को भ्रणावस्था कहते हैं। तृतीय चन्द्र माह के अन्त तक भ्रूण 37 इंच लम्बा, 3/4 औंस भारी होता है। दो माह के बाद 10 इंच लम्बा एवं भार 7 से 10 ओंस हो जाता है। आठवें माह तक लम्बाई 16 से 18 इंच, भार 4 से 5 पौण्ड हो जाता है। जन्म के समय इसकी लम्बाई 20 इंच ...

Vikas meaning in Hindi

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