वसुधैव कुटुंबकम का सिद्धांत क्या है

  1. वसुधैव कुटुंबकम् का अर्थ क्या है?
  2. 'वसुधैव कुटुंबकम भारत का दर्शन है', श्री श्री रविशंकर के इन सात विचारों के मायने अहम
  3. वसुधैव कुटुम्बकम्


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वसुधैव कुटुंबकम् का अर्थ क्या है?

अगर आपको साधारण से शब्दों में बताया जाएं तो वसुधा “ शब्द का अर्थ पृथ्वी होता है वसुधैव और कुटुंबकम का अर्थ है सारी पृथ्वी एक कुटुंब/परिवार के समान।वसुधैव कुटुंबकम का अर्थ है जहांँ एक और पूरी वसुधा अर्थात हमारी पृथ्वी को एक परिवार के रूप में बांध देता है वही यह भावनात्मक रूप से मनुष्य को अपने विचारों और कार्यों के प्रभाव को विस्तृत करने की बात कहता है। वसुदेव कुटुंबकम् हमारे हिंदू धर्म जिसे सनातन धर्म भी कहते हैं का मूल मंत्र है जिसका अर्थ है पूरा विश्व भले ही वह किसी भी धर्म जाती रंग का सब एक परिवार के सामान है। हमारे धर्म में हीं नहीं यह हमारे भारत वर्ष के संस्कार का द्योतक है। विश्व के स्तर पर हम भारतीयों की विचारधारा का यह मूल है। वसुदेव कुटुंबकम् महा उपनिषद व कई अन्य ग्रंथों में लिखा हुआ है। इसका शाब्दिक अर्थ है धरती ही परिवार है। संसद भवन के प्रवेश कक्ष में भी यह लिखा हुआ है।पुराणों के अनुसार कहा गया है की आध्यात्म की दृष्टि से अधिक लोगों की आत्मीयता के बंधनों में बंधना, सुख-दुख को मिल-जुलकर बाँटना, अपने अधिकार को गौण रखते हुए कर्तव्य का पालन करना, पारिवारिकता है। पारिवारिकता के इस आत्मीयता के विकसित रूप को, समाजवाद या साम्यवाद कहते हैं।

'वसुधैव कुटुंबकम भारत का दर्शन है', श्री श्री रविशंकर के इन सात विचारों के मायने अहम

श्री श्री रविशंकर ने बताया कि कैसे निगेटिव विचारधारा के लोग ज्यादा एक्टिव हैं और पॉजिटिव विचारधारा रखने वाले लोग बातों को आसानी से ले लेते हैं। श्री श्री रविशंकर की ये बातें अहम • वसुधैव कुटुंबकम भारत का दर्शन है। योग और ध्यान बेहद लोकप्रिय हैं। • ध्रुवीकरण ज्यादा समय तक संभव नहीं है। यह मनुष्यों का स्वभाव है कि सभी साथ रहें। • इंग्लैंड और फ्रांस लंबे समय से आमने-सामने थे, लेकिन अब वे एक साथ हैं। • अमेरिका में राजनीतिक ध्रुवीकरण आज चरम पर है। • अंतरराष्ट्रीय मीडिया में पूर्वी देशों के खिलाफ बहुत अधिक पक्षपात है। सकारात्मक खबरों की तुलना में भारत के बारे में नकारात्मक खबरें अधिक हैं। • नकारात्मक सोच वाले लोग सकारात्मक लोगों की तुलना में अधिक सक्रिय होते हैं। • नकारात्मक मानसिकता वाले लोग अधिक सक्रिय होते हैं। सकारात्मक सोच वाले लोग इसे थोड़ा आसान लेते हैं। यह भी पढ़ेंः क्या है परिवर्तन? श्री श्री ने कहा- 'बदलाव तो नियति है। बदलाव बेहतरी के लिए हो तो उसे परिवर्तन कहते हैं और मुझे यकीन है कि हमें वैसा बदलाव नहीं चाहिए जिसमें दुख हो और दर्द हो। हमें लोगों को खुशहाली की ओर ले जाना है। इसके लिए जरूरी है कि physical, emotional, mental और spiritual बदलाव की बात हो।' 'टाइम ऑफ ट्रांसफॉर्मेशन" विषय के साथ 2 दिवसीय समिट आज से शुरू हो चुका है। नई दिल्‍ली में हो रहा खबरों का ये 'महाकुंभ' 26 अप्रैल को समाप्‍त होगा। समिट के दूसरे दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य अतिथि होंगे। पीएम मोदी इस साल के समिट "टाइम ऑफ ट्रांसफॉर्मेशन" की थीम पर अपने विचार रखेंगे। यह समिट शासन, राजनीति, आध्यात्मिक, अर्थव्यवस्था, नीति, बिजनेस, ग्लोबल की बड़ी और प्रभावशाली व्यक्तित्व का गवाह बनेगा। 'टाइम ऑफ ट्रांसफॉ...

वसुधैव कुटुम्बकम्

वसुधैव कुटुम्बकम् वसुधा एव कुटुम्बकम्)। यह वाक्य अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम् । उदारचरितानां तुवसुधैवकुटुम्बकम्॥ (महोपनिषद्, अध्याय ६, मंत्र ७१) अर्थ - यह मेरा अपना है और यह नहीं है, इस तरह की गणना छोटे चित्त (सञ्कुचित मन) वाले लोग करते हैं। उदार हृदय वाले लोगों के लिए तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है। महान लेखकों द्वारा इस का चर्चा बड़े बड़े ग्रंथ में है इन्हें भी देखें [ ] • • सन्दर्भ [ ]

बहस

बहस-तलब : ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ क्या वेद वाक्य है? ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ जैसी तमाम उक्तियों को ढाल बनाकर अक्सर ब्राह्मणवादी वाङ्मय में व्याप्त उन तमाम सामाजिक असमानताओं को ढंकने का फूहड़ प्रयास किया जाता रहा है, जो कि भारतीय सामाजिक ढांचे को बिगाड़ती रही हैं। ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ नामक यह उक्ति पौराणिक वेदों का हिस्सा रही है या इसे कहीं और से उतारा गया है, इसका आकलन कर रहे हैं द्वारका भारती अधिकतर भारतीय जनमानस में वेदों के प्रति इतनी गहरी श्रद्धा व निष्ठा देखी जाती है कि वेदों के नाम पर कुछ भी परोसा जाता है, उसे ईश्वर-वाक्य मानकर स्वीकार कर लिया जाता है। जैसे एक श्लोक है– ‘वसुधैव कुटुंबकम्’अर्थात ‘धरती पर रहनवाले सभी एक परिवार के सदस्य हैं’। इसके स्रोत के बारे में तमाम तरह भी भ्रांतियां देखने को मिलती हैं। लेकिन आम जन इसमें विश्वास करते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि आज भी भारतीय जनमानस में यह धारणा घर किये बैठी है कि यह वेद अपौरूषेय अर्थात् ईश्वर द्वारा रचे गये हैं और ईश्वर-प्रदत्त वस्तु उस प्रसाद के समान है, जिसे ग्रहण कर लेना ही चाहिए। यही सबसे बड़ा कारण है देश के हिंदू जनमानस में इन वेदों की स्थिति वही है जो कि एक ईसाई की बाइबिल में तथा एक मुस्लिम में कुरान में हो सकती है। यहां यदि कोई अंतर है तो यही है कि इन दोनों संप्रदायों – ईसाई व इस्लाम – में मात्र एक-एक धार्मिक ग्रंथ है, तो हिंदुओं के चार वेद (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद) तथा ग्यारह उपनिषद हैं, जिनको वे एक-ही दृष्टि से देखते हैं अर्थात् दिव्य ज्ञान। हिंदुओं की धारणा है कि इस ईश्वरीय ज्ञान के प्रतीक वेदों के अतिरिक्त विश्व में और कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं है। सदियों से हिंदुओं का आचार-व्यवहार इन वेदों द्वारा ही ...