यदा यदा ही धर्मस्य फुल श्लोक download

  1. यदा यदा हि धर्मस्य, Yada yada hi dharmasya Sloka Lyrics in Hindi
  2. यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
  3. यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक
  4. यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ! अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम !! – एक मचलता लेखक
  5. यदा यदा हि धर्मस्य श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय चार श्लोक ७ और ८ yada yada hi dharmasya shlok
  6. यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक का अर्थ हिंदी में
  7. Yada Yada Hi Dharmasya Sloka Lyrics


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यदा यदा हि धर्मस्य, Yada yada hi dharmasya Sloka Lyrics in Hindi

श्रीमद्भगवद्गीता का सबसे प्रसिद्ध और महाभारत सीरियल का टाइटल ट्रैक यदा यदा हि धर्मस्य को सुन के हमारा मान तन स्वतः ही भगवान श्री कृष्णा के चरणों को नमन करता है। यदा यदा हि धर्मस्य का पूरा श्लोक उसका मतलब हिंदी इंग्लिश और MP3 लिरिक्स। Yada Yada hi Dharmasya Sloka in Hindi यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे Yada Yada hi Dharmasya Lyrics in English Yada yada hi dharmasya Glanir bhavati bharata Abhyuthanam adharmasya Tadaatmaanam srijaamyaham Paritranaay saadhunaam Vinaashaay ch dushkritaam Dharmasanstha panaarthaay Sambhavaami yuge yuge Yada Yada hi Dharmasya Meaning यदा= जब यदा= जब हि = वास्तव में धर्मस्य = धर्म की ग्लानि: = हानि भवति = होती है भारत = हे भारत अभ्युत्थानम् = वृद्धि अधर्मस्य = अधर्म की तदा = तब तब आत्मानं = अपने रूप को रचता हूं सृजामि = लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ अहम् = मैं परित्राणाय= साधु पुरुषों का साधूनां = उद्धार करने के लिए विनाशाय = विनाश करने के लिए च = और दुष्कृताम् = पापकर्म करने वालों का धर्मसंस्थापन अर्थाय = धर्मकी अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए सम्भवामि = प्रकट हुआ करता हूं युगे युगे = युग-युग में Yada Yada hi Dharmasya Lyrics in MP3

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत

महत्वपूर्ण जानकारी • क्या आप जानते हैं: इस श्लोक का वर्णन महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने किया था, जब अर्जुन ने कुरुक्षेत्र में युद्ध करने से इनकार कर दिया था। यह श्लोक हिन्दू ग्रंथ गीता का प्रमुख और प्रसिद्ध श्लोकों में से एक है। यह श्लोक गीता के अध्याय 4 का श्लोक 7 और 8 है। यह श्लोक का वर्णन महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने किया था जब अर्जुन ने कुरूक्षेत्र में युद्ध करने से मना कर दिया था। यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥ अर्थ: मै प्रकट होता हूं, मैं आता हूं, जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं, जब जब अधर्म बढता है तब तब मैं आता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं। संस्कृत शब्द का हिंदी में अर्थ: — श्लोक 7 : यदा= जब यदा= जब हि = वास्तव में धर्मस्य = धर्म की ग्लानि: = हानि भवति = होती है भारत = हे भारत अभ्युत्थानम् = वृद्धि अधर्मस्य = अधर्म की तदा = तब तब आत्मानं = अपने रूप को रचता हूं सृजामि = लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ अहम् = मैं श्लोक 8 परित्राणाय= साधु पुरुषों का साधूनां = उद्धार करने के लिए विनाशाय = विनाश करने के लिए च = और दुष्कृताम् = पापकर्म करने वालों का धर्मसंस्थापन अर्थाय = धर्मकी अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए सम्भवामि = प्रकट हुआ करता हूं युगे युगे = युग-युग में

यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक

यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक |yada yada hi dharmasya sloka lyrics–>यह सूंदर श्लोक यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक |yada yada hi dharmasya sloka lyrics यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत I अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम II अर्थ: जब भी धार्मिकता में गिरावट और पापाचार में वृद्धि होती है, हे अर्जुन, उस समय मैं स्वयं को पृथ्वी पर प्रकट होता हूं। परित्राणाय सौधुनाम्विनशाय च दुष्कृताम्| धर्मसंस्था पन्नार्थाय संभवामि युगे युगे || अर्थ: धर्मियों की रक्षा के लिए, दुष्टों का सफाया करने के लिए,और इस धरती पर दिखने वाले धर्म के सिद्धांतों को फिर से स्थापित करने के लिए, युगों-युगों तक। नैनम चिंदंति शास्त्राणि नैनम देहाति पावकाः| न चैनम् केलदयंत्यपापो ना शोषयति मारुताः|| अर्थ: हथियार आत्मा को नहीं हिला सकते हैं, न ही इसे जला सकते हैं। पानी इसे गीला नहीं कर सकता और न ही हवा इसे सुखा सकती है। सुखदुक्खे समान कृतवा लभलाभौ जयाजयौ ततो युधाय युज्यस्व निवम पापमवाप्स्यसि | अर्थ: कर्तव्य के लिए लड़ो, एक जैसे सुख और संकट, हानि और लाभ, जीत और हार का इलाज करो। इस तरह अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने से आप कभी पाप नहीं करेंगे। ये यअहंकारम बलम दरपम कामम क्रोधम् च समश्रितः महामातं परमदेषु प्रदविष्णो अभ्यसुयाकः| अर्थ: अहंकार, शक्ति, अहंकार, इच्छा और क्रोध से अंधा, राक्षसी ने अपने शरीर के भीतर और दूसरों के शरीर में मेरी उपस्थिति का दुरुपयोग किया।

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ! अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम !! – एक मचलता लेखक

यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ! अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम !! एक समय विश्व में वैदिक धर्म की स्थिति काफी खराब थी। कई जातियाँ व उप-जातियाँ ऎसी थीं जो वेद, वेदांत और परमात्मा में कोई आस्था-विश्वास नहीं रखती थीं। एक वर्ग स्वयं को वैदिक धर्म का अनुयायी कहता था तो दूसरा जादू-टोने में विश्वास रखने वाला था। दोनों वर्ग स्वयं को परमात्मा में विश्वास रखने वाले कहते थे। लेकिन असलियत में उन्हे वैदिक धर्म से कोई वास्ता नहीं था। ऎसे ७२ अवैदिक समुदाय दुनिया में मौजूद थे। ऎसी स्थिति में लोगों के व्यक्तिगत एवम सामाजिक जीवन में निरंतर ह्रास आ रहा था। ऎसी हालत में समाज के उत्थान के लिए तथा भले लोगों कॊ सुरक्षा प्रदान करने के लिए सर्वेश्वर का अवतार लेकर धरा पर उतरना आवश्यक हो गया था। समाज की ऎसी दशा में प्रभु समय-समय पर इस धरती पर प्रकट होते रहे हैं। इस तरह वे धरती पर अपने विचारों का अनुपालन सुनिश्चित करते हैं। ऎसे अवतारों में से श्रीकृष्ण की शिक्षाओं की उप्योगिता सारे संसार के लिए तथा हर युग के लिए सार्थक साबित होती रही है। आज भी साधु-संत, योगी-तपस्वी उनकी शिक्षाओं में अटूट आस्था-विश्वास रखते हैं तथा समय-समय पर उनके बारे में प्रवचन करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने अपने उपदेशों की शुरुआत नवग्रहों में प्रथम सूर्यदेव से की। उसमें उन्होने सूर्यदेव को सनातन धर्म की शिक्षा दी। उनके बच्चों ने भी इसी धर्म को अपनाया। उसके बाद उनके वंशज भी इसी धर्म के अनुयायी बने रहे। लेकिन धीरे-धीरे इसका महत्व कम होता गया। ऎसी हालत में द्वापरयुग में भगवान कृष्ण ने पुन: अर्जुन को धर्म के पुनरुद्वर के ध्येय से फिर से सनातन धर्म की शिक्षा दी। महाभारत काल में भगवान ने नर रूप में अर्जुन को यह शिक्षा दी। भगवा...

यदा यदा हि धर्मस्य श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय चार श्लोक ७ और ८ yada yada hi dharmasya shlok

यदा यदा हि धर्मस्य श्लोक yada yada hi dharmasya sloka गीता का यह श्लोक बहुत ही प्रसिद्ध है | यह श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय चार श्लोक संख्या ७ और ८ से लिया गया है| यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत | अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥4.7॥ हे भरतवंशी अर्जुन! जब-जब धर्मकी हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने-आप को साकार रूप से प्रकट करता हूँ। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् | धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥4.8॥ साधुओं-(भक्तों-) की रक्षा करनेके लिये, पापकर्म करने वालों का विनाश करने के लिये और धर्मकी भली भाँति स्थापना करनेके लिये मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ। yada yada hi dharmasya meaning in hindi, yada yada hi dharmasya in hindi, yada yada hi dharmasya hindi Reference • •

यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक का अर्थ हिंदी में

गीता में मानव जीवन के उद्धार के लिए श्लोक हैं जिनमें आपको आपके कई प्रश्नों का उत्तर आसानी से मिल सकता है। उन्ही में से एक श्लोक है यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत जिसका अर्थ बहुत ही कम लोग जानते हैं। तो आज हम इस लेख की मदद से आपको इस श्लोक के बारे में जानकारी देने वाले हैं। आइए जानते हैं कि यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक का अर्थ हिंदी में क्या होता है। ( yada yada hi dharmasya sloka meaning in hindi ) यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक का अर्थ हिंदी में महाभारत युद्ध के समय जब अर्जुन ने अपने सामने, युद्ध क्षेत्र में अपने ही सगे सम्बन्धियों को देखा तो उनका मन विचलित हो उठा और उनका गांडीव हाथ से गिरने लगा। वे कहने लगे कि अपने ही सगे सम्बन्धियों, सखाओं, भाइयों को मारकर मैं इस महान पाप का भागी नहीं बनना चाहता! इससे तो अच्छा है मैं खुद ही युद्ध में मारा जाऊं या फिर इस युद्ध का परित्याग कर दूं। अर्जुन की ऐसी स्तिथि को देख कृष्ण ने उन्हें गीता का ज्ञान देकर उनका मनोबल बढ़ाया। गीता के इसी ज्ञान में यह श्लोक भी है। “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।” इस श्लोक का अर्थ है जब जब धर्म की हानि होगी और अधर्म बढ़ेगा तब तब मैं धरती पर अवतार लेकर आता रहूंगा और धर्म की रक्षा और स्थापना करूंगा एवं अधर्म का नाश करूंगा। इस श्लोक के आगे भी एक श्लोक है- परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे इसका अर्थ है कि मैं यानिकी कृष्ण हर युग में बार-बार अवतार लूंगा जो साधुओं की रक्षा करने के लिए, धरती पर पाप को खत्म करने के लिए, पापियों का संहार करने के लिए और धर्म को स्थापित करने के लिए होगा और में जनकल्याण करूँगा। श्रीकृष्ण द्वारा द...

Yada Yada Hi Dharmasya Sloka Lyrics

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानीं भवति भरत अभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदात्मनम् श्रीजाम्यहम् परित्राणाय सौधुनाम् विनशाय च दुष्कृताम् धर्मसंस्था पन्नार्थाय संभवामि युगे युगे नैनम चिंदंति शास्त्राणि नैनम देहाति पावकाः न चैनम् केलदयंत्यपापो ना शोषयति मारुताः सुखदुक्खे समान कृतवा लभलाभौ जयाजयौ ततो युधाय युज्यस्व निवम पापमवाप्स्यसि अहंकारम बलम दरपम कामम क्रोधम् च समश्रितः महामातं परमदेषु प्रदविष्णो अभ्यसुयाकः यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक हिंदी अर्थ हां पार्थ, मै प्रकट होता हूँ, मै आता हूँ। जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मै आता हूँ। जब जब अधर्म बढ़ता है तब तब मैं आता हूँ। ||हिंदी अर्थ|| धर्मियों की रक्षा के लिए, दुष्टों का विनाष करने के लिए मै आता हूँ। धर्म की स्थापना केलिए मैं आता हूँ और युग युग में जन्म लेता हूँ। आत्मा को नाही हथियार भेद सकते हैं, न ही आग इसे जला सकते हैं। पानी इसे गीला नहीं कर सकता, और न ही हवा इसे सुखा सकती है। ||हिंदी अर्थ|| कर्तव्य के लिए लड़ो, एक जैसे सुख और संकट, हानि और लाभ, जीत और हार का इलाज करो। इस तरह अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करने से आप कभी पाप नहीं करेंगे। अहंकार, बल , इच्छा और क्रोध से अंधा, राक्षसी ने अपने शरीर के भीतर और दूसरों के शरीर में मेरी उपस्थिति का दुरुपयोग किया। Yada Yada Hi Dharmasya Sloka Lyrics Yada Yada Hi Dharmasya Yada Yada Hi Dharmasya Glanir Bhavati Bharata Abhyuthanam Adharmasya Tadaatmaanam Srijaamyaham Paritranaay Saadhunaam Vinaashaay Ch Dushkritaam Dharmasanstha Panaarthaay Sambhavaami Yuge Yuge Nainam Chindanti Shastrani Nainam Dahati Paavakaah Na Chainam Kledayantyaapo Na Shoshayati Maarutaah Sukhadukkhe Same Kritva Laabhaalaabhau Jayaaja...