यशोधरा के माध्यम से गुप्त जी ने क्या संदेश दिया है ? स्पष्ट कीजिए

  1. मैथिलीशरण गुप्त कृत 'यशोधरा' के आधार पर यशोधरा का चरित्र
  2. Dwivedi yug ki Visheshta
  3. यशोधरा
  4. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त
  5. यशोधरा (काव्य)
  6. राजकुमारी यशोधरा
  7. राजकुमारी यशोधरा
  8. यशोधरा
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  10. यशोधरा (काव्य)


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मैथिलीशरण गुप्त कृत 'यशोधरा' के आधार पर यशोधरा का चरित्र

Advertisement यशोधरा का चरित्र-चित्रण ‘ यशोधरा‘ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित एक प्रसिद्ध खंडकाव्य है जिसमें गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा की विरह-वेदना का मार्मिक वर्णन किया गया है | गुप्त जी ने अपनी इस रचना के माध्यम से यशोधरा के प्रेम व त्याग को पाठकों के समक्ष लाकर उसके प्रति उस सम्मानित दृष्टिकोण को विकसित करने की चेष्टा की है जिससे उसे प्रायः वंचित रखा गया | यशोधरा का पीड़ा, विवशता और विरह-वेदना के बीच अपने पति के प्रति शुभाकांक्षा और पुत्र राहुल व अन्य पारिवारिक सदस्यों के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन करना न केवल उसे उच्च पद पर प्रतिष्ठित करता है वरन संपूर्ण नारी-जाति के प्रति सम्मान की भावना उत्पन्न करता है | मैथिलीशरण गुप्त कृत ‘यशोधरा’ के आधार पर यशोधरा का चरित्र-चित्रण निम्नलिखित बिंदुओं में किया जा सकता है — Advertisement (1) विचारशील यशोधरा विवेकशील व विचारशील है | वह सदैव विवेक से कार्य लेती है | प्रत्येक कार्य पर अच्छी प्रकार से चिंतन-मनन करने के पश्चात ही वह कुछ निर्णय लेती है | एक ओर वह मनुष्य होने के नाते अपना एक पृथक व्यक्तित्व रखती है तो वहीं दूसरी ओर पत्नी होने के नाते वह पति के कर्त्तव्यपालन में सहभागी बनना चाहती है | वह नहीं चाहती कि उसे एक स्वार्थिनी नारी के रूप में जाना जाये | एक स्थान पर वह गौतम से प्रश्न करते हुए पूछती है — “हाय स्वार्थिनी थी मैं ऐसी, रोक तुम्हें रख लेती? गौतम बिना उससे विदा लिए घर छोड़ कर चले जाते हैं इसलिए यशोधरा कहती है कि उसे अब गौतम का स्वागत करने का भी अधिकार नहीं रहा अर्थात उसे मलाल है कि वह सहर्ष अपने पति को इस पुण्य कार्य के लिए विदा न कर सकी | “विदा न लेकर स्वागत से ही वंचित यहाँ किया है |” (2) कर्तव्यपरायण यद्यपि यशोधरा वि...

Dwivedi yug ki Visheshta

Table of Contents • • • • • • • • देश प्रेम की भावना द्विवेदीयुगीन कवियों ने जनमानस के बीच राष्ट्रप्रेम का लहर चलाई। स्वतन्त्रता के प्रति जनमानस में चेतना का संचार किया। इस युग के रचनाकारों का राष्ट्रप्रेम भारतेन्दु युग की भाँति सामयिक रुदन से नहीं जुङा है, बल्कि समस्याओं के कारणों पर विचार करने के साथ-साथ उनके लिए समाधान ढूँढने तक जुङा है ’’हम क्या थे, क्या हो गए और क्या होंगे अभी। आओ मिलकर विचारें ये समस्याएँ सभी।।’’ यह युग कारणों की जङ तक जाने के पश्चात् उत्सर्ग और बलिदान के माध्यम से अपनी खोई हुई अस्मिता को प्राप्त करने के लिए प्रेरणा का माध्यम भी रहा है। ’’देशभक्त वारों मरने से कभी न डरना होगा। प्राणों का बलिदान देश की वेदी पर करना होगा।।’’ गयाप्रसाद शुक्ल ’सनेही’ की कविताओं में भी देशभक्ति की लहर दिखाई देती है। उदाहरण से स्पष्ट है ’’जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है। वह नर नहीं नर पशु निरा है और मृतक समान है।’’ मैथिलीशरण गुप्त की रचना ’भारत भारती’ में भी राष्ट्रप्रेम से सम्बन्धित कविताओं के लिखने के कारण अंग्रेजी सरकार ने इनकी इस कृति को जब्त कर लिया। नेट जेआरएफ हिंदी के बेहतरीन नोट्स के लिए यहाँ क्लिक करें सामाजिक समस्याओं का चित्रण यह युग सुधारवादी युग या जागरण सुधार काल भी कहलाता है। इस युग के कवियों ने सामाजिक समस्याओं, यथा – दहेज प्रथा, नारी उत्पीङन , छूआछूत, बाल विवाह आदि को अपनी कविता का विषय बनाया। प्रतापनारायण मिश्र नारी के वैधव्य जीवन और बाल विधवाओं की तरुण अवस्थाओं को देखकर रो पङते हैं ’’कौन करेजा नहीं कसकत, सुनी विपत्ति बाल विधवन की।’’ नारी की दयनीय दशा का चित्रण मैथिलीशरण गुप्त जी करते हुए कहते है कि ’’अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी। आँचल में ह...

यशोधरा

यशोधरा एक राजकुमारी यशोधरा (563 ईसा पूर्व - 483 ईसा पूर्व) राजा सुप्पबुद्ध और उनकी पत्नी पमिता की पुत्री थीं। यशोधरा की माता- पमिता राजा एक आदर्श नारी यशोधरा का विरह अत्यंत दारुण है और सिद्धि मार्ग की बाधा समझी जाने का कारण तो उसके आत्मगौरव को बड़ी ठेस लगती है। परंतु वह नारीत्व को किसी भी अंश में हीन मानने को प्रस्तुत नहीं है। वह भारतीय पत्नी है, उसका अर्धांगी-भाव सर्वत्र मुखर है। उसमें मेरा भी कुछ होगा जो कुछ तुम पाओगे। सब मिलाकर यशोधरा आर्दश पत्नी, श्रेष्ठ माता और आत्मगौरव सम्पन्न नारी है। परंतु गुप्त जी ने यथासम्भव गौतम के परम्परागत उदात्त चरित्र की रक्षा की है। यद्यपि कवि ने उनके विश्वासों एवं सिद्धान्तों को अमान्य ठहराया है तथापि उनके चिरप्रसिद्ध रूप की रक्षा के लिए अंत में 'यशोधरा' और 'राहुल' को उनका अनुगामी बना दिया है। प्रस्तुत काव्य में वस्तु के संघटक और विकास में राहुल का समधिक महत्त्व है। यदि राहुल सा लाल गोद में न होता तो कदाचित यशोधरा मरण का ही वरण कर लेती और तब इस 'यशोधरा' का प्रणयन ही क्यों होता। 'यशोधरा' काव्य में राहुल का मनोविकास अंकित है। उसकी बालसुलभ चेष्टाओं में अद्भुत आकर्षण है। समय के साथ-साथ उसकी बुद्धि का विकास भी होता है, जो उसकी उक्तियों से स्पष्ट है। परंतु यह सब एकदम स्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। कहीं कहीं तो राहुल प्रौंढों के समान तर्क, युक्तिपूर्वक वार्तालाप करता है, जो जन्मजात प्रतिभासम्पन्न बालक के प्रसंग में भी निश्चय ही अतिरंजना है। पन्ने की प्रगति अवस्था टीका टिप्पणी और संदर्भ · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · ...

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त

मैथिलीशरण गुप्त अट्ठारह सौ सत्तावन (१८५७) से पहले की बात है। गोरी हुकूमत और छोटे रजवाड़ों के जुल्म चरम पर थे। मध्य भारत का चंबल इलाका भी इसका शिकार था। कारोबार करना जोखिम भरा था डाकुओं और ठगो की तरह पिंडारी भी लुटेरे थे। गांव गांव में इन पंडारियों का आतंक था। अमीर और संपन्न घराने पिंडारीयों के निशाने पर रहते थे। ग्वालियर के पास भाड़े रियासत का धनवान कनकने परिवार इन पिंडलियों से दुखी होकर झांसी के पास चिरगांव जा बसा। झांसी रियासत हमेशा प्रजाति की हिफाजत को सर्वोच्च प्राथमिकता देती थी। कनकने परिवार के मुखिया सेठ राम चरण दास ने सुरक्षित होकर कारोबार किया और बेशुमार दौलत कमाई उनके पास अनेक रथ, घोड़ा, गाड़ियां और वगिया थी सैकड़ों नौकर चाकर थे कोठीया थी। लाड प्यार में पलकर बड़े हुए मैथिलीशरण का मन खेलने कूदने में बहुत लगता था पढ़ाई लिखाई में ज्यादा होशियार नहीं थे लेकिन पिताजी ने घर पर एक पंडित जी को भी लगा दिया। वो चाहते थे बेटा डिप्टी कलेक्टर बनें लेकिन नियति ने रास्ता कुछ और ही तय कर दिया था। तीसरे दर्जे तक मदरसे में तालीम के बाद पिताजी ने झांसी के मैकडॉनल्ड हाई स्कूल में दाखिला करा दिया। झांसी में जब यह स्कूल बनाया गया था तब उसमें सेठ राम चरण कनकने ने सबसे ज्यादा तीन हजार रुपए दान दिए थे उस जमाने के तीन हजार माने आज के करीब एक करोड़ रुपए। झांसी में भी मैथिलीशरण का मन पढ़ाई में नहीं लगा। दिन दिन भर चकरी चलाते और पतंग उड़ाने का तो जैसा जुनून था। जब भी कोई बारात या दूसरे गांव किसी जलसे में जाते तो पतंग उड़ाने वाले दोस्त भी ले जाते। दरअसल अंग्रेजी दर्जे की पढ़ाई से मैथिलीशरण चिढ़ने लगें थे। मैथिलीशरण की नियति इम्तिहान ले रही थी पत्नी और बच्चों की यादों से निकले ही ना थे कि पिताज...

यशोधरा (काव्य)

कवि मूल शीर्षक 'यशोधरा' मुख्य पात्र कथानक पति-परित्यक्तों यशोधरा के हार्दिक दु:ख की व्यंजना तथा प्रकाशन तिथि देश भाषा विधा मुखपृष्ठ रचना सजिल्द विशेष 'यशोधरा' काव्य में राहुल का मनोविकास अंकित है। उसकी बालसुलभ चेष्टाओं में अद्भुत आकर्षण है। यशोधरा उद्देश्य कथानक प्रस्तुत काव्य का कथारम्भ राहुल को दे देती है तथा स्वयं भी उनका अनुसरण करती है। इस कथा का पूर्वार्द्ध चिरविश्रुत एवं इतिहास प्रसिद्ध है पर उत्तरार्ध कवि की अपनी उर्वर कल्पना की सृष्टि है। यशोधरा: एक आदर्श नारी यशोधरा का विरह अत्यंत दारुण है और सिद्धि मार्ग की बाधा समझी जाने का कारण तो उसके आत्मगौरव को बड़ी ठेस लगती है। परंतु वह नारीत्व को किसी भी अंश में हीन मानने को प्रस्तुत नहीं है। वह भारतीय पत्नी है, उसका अर्धांगी-भाव सर्वत्र मुखर है- ;उसमें मेरा भी कुछ होगा जो कुछ तुम पाओगे। सब मिलाकर यशोधरा आर्दश पत्नी, श्रेष्ठ माता और आत्मगौरव सम्पन्न नारी है। परंतु गुप्त जी ने यथासम्भव गौतम के परम्परागत उदात्त चरित्र की रक्षा की है। यद्यपि कवि ने उनके विश्वासों एवं सिद्धान्तों को अमान्य ठहराया है तथापि उनके चिरप्रसिद्ध रूप की रक्षा के लिए अंत में 'यशोधरा' और 'राहुल' को उनका अनुगामी बना दिया है। प्रस्तुत काव्य में वस्तु के संघटक और विकास में राहुल का समधिक महत्त्व है। यदि राहुल सा लाल गोद में न होता तो कदाचित यशोधरा मरण का ही वरण कर लेती और तब इस 'यशोधरा' का प्रणयन ही क्यों होता। 'यशोधरा' काव्य में राहुल का मनोविकास अंकित है। उसकी बालसुलभ चेष्टाओं में अद्भुत आकर्षण है। समय के साथ-साथ उसकी बुद्धि का विकास भी होता है, जो उसकी उक्तियों से स्पष्ट है। परंतु यह सब एकदम स्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। कहीं कहीं तो राहुल प्रौंढों के समा...

राजकुमारी यशोधरा

यशोधरा और राहूल के साथ बुद्ध, जीवनसंगी पिता धर्म सनातन धर्म बौद्ध धर्म की श्रेणी का हिस्सा · · बुनियादी मनोभाव अहम व्यक्ति क्षेत्रानुसार बौद्ध धर्म · · बौद्ध साम्प्रदाय · बौद्ध साहित्य · · · राजकुमारी यशोधरा (563 ईसा पूर्व - 483 ईसा पूर्व) कोलीय वंश के राजा यशोधरा के जीवन पर आधारित बहुत सी रचनाएँ हुई हैं, जिनमें एक आदर्श नारी [ ] यशोधरा का विरह अत्यंत दारुण है और सिद्धि मार्ग की बाधा समझी जाने का कारण तो उसके आत्मगौरव को बड़ी ठेस लगती है। परंतु वह नारीत्व को किसी भी अंश में हीन मानने को प्रस्तुत नहीं है। वह भारतीय पत्नी है, उसका अर्धांगी-भाव सर्वत्र मुखर है। उसमें मेरा भी कुछ होगा जो कुछ तुम पाओगे। सब मिलाकर यशोधरा आदर्श पत्नी, श्रेष्ठ माता और आत्मगौरव सम्पन्न नारी है। परंतु गुप्त जी ने यथासम्भव गौतम के परम्परागत उदात्त चरित्र की रक्षा की है। यद्यपि कवि ने उनके विश्वासों एवं सिद्धान्तों को अमान्य ठहराया है तथापि उनके चिरप्रसिद्ध रूप की रक्षा के लिए अंत में 'यशोधरा' और 'राहुल' को उनका अनुगामी बना दिया है। प्रस्तुत काव्य में वस्तु के संघटक और विकास में राहुल का समधिक महत्त्व है। यदि राहुल सा लाल गोद में न होता तो कदाचित यशोधरा मरण का ही वरण कर लेती और तब इस 'यशोधरा' का प्रणयन ही क्यों होता। 'यशोधरा' काव्य में राहुल का मनोविकास अंकित है। उसकी बालसुलभ चेष्टाओं में अद्भुत आकर्षण है। समय के साथ-साथ उसकी बुद्धि का विकास भी होता है, जो उसकी उक्तियों से स्पष्ट है। परंतु यह सब एकदम स्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। कहीं कहीं तो राहुल प्रौंढों के समान तर्क, युक्तिपूर्वक वार्तालाप करता है, जो जन्मजात प्रतिभासम्पन्न बालक के प्रसंग में भी निश्चय ही अतिरंजना है। इन्हें भी देखे [ ] • • • • • बा...

राजकुमारी यशोधरा

यशोधरा और राहूल के साथ बुद्ध, जीवनसंगी पिता धर्म सनातन धर्म बौद्ध धर्म की श्रेणी का हिस्सा · · बुनियादी मनोभाव अहम व्यक्ति क्षेत्रानुसार बौद्ध धर्म · · बौद्ध साम्प्रदाय · बौद्ध साहित्य · · · राजकुमारी यशोधरा (563 ईसा पूर्व - 483 ईसा पूर्व) कोलीय वंश के राजा यशोधरा के जीवन पर आधारित बहुत सी रचनाएँ हुई हैं, जिनमें एक आदर्श नारी [ ] यशोधरा का विरह अत्यंत दारुण है और सिद्धि मार्ग की बाधा समझी जाने का कारण तो उसके आत्मगौरव को बड़ी ठेस लगती है। परंतु वह नारीत्व को किसी भी अंश में हीन मानने को प्रस्तुत नहीं है। वह भारतीय पत्नी है, उसका अर्धांगी-भाव सर्वत्र मुखर है। उसमें मेरा भी कुछ होगा जो कुछ तुम पाओगे। सब मिलाकर यशोधरा आदर्श पत्नी, श्रेष्ठ माता और आत्मगौरव सम्पन्न नारी है। परंतु गुप्त जी ने यथासम्भव गौतम के परम्परागत उदात्त चरित्र की रक्षा की है। यद्यपि कवि ने उनके विश्वासों एवं सिद्धान्तों को अमान्य ठहराया है तथापि उनके चिरप्रसिद्ध रूप की रक्षा के लिए अंत में 'यशोधरा' और 'राहुल' को उनका अनुगामी बना दिया है। प्रस्तुत काव्य में वस्तु के संघटक और विकास में राहुल का समधिक महत्त्व है। यदि राहुल सा लाल गोद में न होता तो कदाचित यशोधरा मरण का ही वरण कर लेती और तब इस 'यशोधरा' का प्रणयन ही क्यों होता। 'यशोधरा' काव्य में राहुल का मनोविकास अंकित है। उसकी बालसुलभ चेष्टाओं में अद्भुत आकर्षण है। समय के साथ-साथ उसकी बुद्धि का विकास भी होता है, जो उसकी उक्तियों से स्पष्ट है। परंतु यह सब एकदम स्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। कहीं कहीं तो राहुल प्रौंढों के समान तर्क, युक्तिपूर्वक वार्तालाप करता है, जो जन्मजात प्रतिभासम्पन्न बालक के प्रसंग में भी निश्चय ही अतिरंजना है। इन्हें भी देखे [ ] • • • • • बा...

यशोधरा

यशोधरा एक राजकुमारी यशोधरा (563 ईसा पूर्व - 483 ईसा पूर्व) राजा सुप्पबुद्ध और उनकी पत्नी पमिता की पुत्री थीं। यशोधरा की माता- पमिता राजा एक आदर्श नारी यशोधरा का विरह अत्यंत दारुण है और सिद्धि मार्ग की बाधा समझी जाने का कारण तो उसके आत्मगौरव को बड़ी ठेस लगती है। परंतु वह नारीत्व को किसी भी अंश में हीन मानने को प्रस्तुत नहीं है। वह भारतीय पत्नी है, उसका अर्धांगी-भाव सर्वत्र मुखर है। उसमें मेरा भी कुछ होगा जो कुछ तुम पाओगे। सब मिलाकर यशोधरा आर्दश पत्नी, श्रेष्ठ माता और आत्मगौरव सम्पन्न नारी है। परंतु गुप्त जी ने यथासम्भव गौतम के परम्परागत उदात्त चरित्र की रक्षा की है। यद्यपि कवि ने उनके विश्वासों एवं सिद्धान्तों को अमान्य ठहराया है तथापि उनके चिरप्रसिद्ध रूप की रक्षा के लिए अंत में 'यशोधरा' और 'राहुल' को उनका अनुगामी बना दिया है। प्रस्तुत काव्य में वस्तु के संघटक और विकास में राहुल का समधिक महत्त्व है। यदि राहुल सा लाल गोद में न होता तो कदाचित यशोधरा मरण का ही वरण कर लेती और तब इस 'यशोधरा' का प्रणयन ही क्यों होता। 'यशोधरा' काव्य में राहुल का मनोविकास अंकित है। उसकी बालसुलभ चेष्टाओं में अद्भुत आकर्षण है। समय के साथ-साथ उसकी बुद्धि का विकास भी होता है, जो उसकी उक्तियों से स्पष्ट है। परंतु यह सब एकदम स्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। कहीं कहीं तो राहुल प्रौंढों के समान तर्क, युक्तिपूर्वक वार्तालाप करता है, जो जन्मजात प्रतिभासम्पन्न बालक के प्रसंग में भी निश्चय ही अतिरंजना है। पन्ने की प्रगति अवस्था टीका टिप्पणी और संदर्भ · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · ...

मैथिलीशरण गुप्त कृत 'यशोधरा' के आधार पर यशोधरा का चरित्र

Advertisement यशोधरा का चरित्र-चित्रण ‘ यशोधरा‘ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित एक प्रसिद्ध खंडकाव्य है जिसमें गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा की विरह-वेदना का मार्मिक वर्णन किया गया है | गुप्त जी ने अपनी इस रचना के माध्यम से यशोधरा के प्रेम व त्याग को पाठकों के समक्ष लाकर उसके प्रति उस सम्मानित दृष्टिकोण को विकसित करने की चेष्टा की है जिससे उसे प्रायः वंचित रखा गया | यशोधरा का पीड़ा, विवशता और विरह-वेदना के बीच अपने पति के प्रति शुभाकांक्षा और पुत्र राहुल व अन्य पारिवारिक सदस्यों के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वहन करना न केवल उसे उच्च पद पर प्रतिष्ठित करता है वरन संपूर्ण नारी-जाति के प्रति सम्मान की भावना उत्पन्न करता है | मैथिलीशरण गुप्त कृत ‘यशोधरा’ के आधार पर यशोधरा का चरित्र-चित्रण निम्नलिखित बिंदुओं में किया जा सकता है — Advertisement (1) विचारशील यशोधरा विवेकशील व विचारशील है | वह सदैव विवेक से कार्य लेती है | प्रत्येक कार्य पर अच्छी प्रकार से चिंतन-मनन करने के पश्चात ही वह कुछ निर्णय लेती है | एक ओर वह मनुष्य होने के नाते अपना एक पृथक व्यक्तित्व रखती है तो वहीं दूसरी ओर पत्नी होने के नाते वह पति के कर्त्तव्यपालन में सहभागी बनना चाहती है | वह नहीं चाहती कि उसे एक स्वार्थिनी नारी के रूप में जाना जाये | एक स्थान पर वह गौतम से प्रश्न करते हुए पूछती है — “हाय स्वार्थिनी थी मैं ऐसी, रोक तुम्हें रख लेती? गौतम बिना उससे विदा लिए घर छोड़ कर चले जाते हैं इसलिए यशोधरा कहती है कि उसे अब गौतम का स्वागत करने का भी अधिकार नहीं रहा अर्थात उसे मलाल है कि वह सहर्ष अपने पति को इस पुण्य कार्य के लिए विदा न कर सकी | “विदा न लेकर स्वागत से ही वंचित यहाँ किया है |” (2) कर्तव्यपरायण यद्यपि यशोधरा वि...

यशोधरा (काव्य)

कवि मूल शीर्षक 'यशोधरा' मुख्य पात्र कथानक पति-परित्यक्तों यशोधरा के हार्दिक दु:ख की व्यंजना तथा प्रकाशन तिथि देश भाषा विधा मुखपृष्ठ रचना सजिल्द विशेष 'यशोधरा' काव्य में राहुल का मनोविकास अंकित है। उसकी बालसुलभ चेष्टाओं में अद्भुत आकर्षण है। यशोधरा उद्देश्य कथानक प्रस्तुत काव्य का कथारम्भ राहुल को दे देती है तथा स्वयं भी उनका अनुसरण करती है। इस कथा का पूर्वार्द्ध चिरविश्रुत एवं इतिहास प्रसिद्ध है पर उत्तरार्ध कवि की अपनी उर्वर कल्पना की सृष्टि है। यशोधरा: एक आदर्श नारी यशोधरा का विरह अत्यंत दारुण है और सिद्धि मार्ग की बाधा समझी जाने का कारण तो उसके आत्मगौरव को बड़ी ठेस लगती है। परंतु वह नारीत्व को किसी भी अंश में हीन मानने को प्रस्तुत नहीं है। वह भारतीय पत्नी है, उसका अर्धांगी-भाव सर्वत्र मुखर है- ;उसमें मेरा भी कुछ होगा जो कुछ तुम पाओगे। सब मिलाकर यशोधरा आर्दश पत्नी, श्रेष्ठ माता और आत्मगौरव सम्पन्न नारी है। परंतु गुप्त जी ने यथासम्भव गौतम के परम्परागत उदात्त चरित्र की रक्षा की है। यद्यपि कवि ने उनके विश्वासों एवं सिद्धान्तों को अमान्य ठहराया है तथापि उनके चिरप्रसिद्ध रूप की रक्षा के लिए अंत में 'यशोधरा' और 'राहुल' को उनका अनुगामी बना दिया है। प्रस्तुत काव्य में वस्तु के संघटक और विकास में राहुल का समधिक महत्त्व है। यदि राहुल सा लाल गोद में न होता तो कदाचित यशोधरा मरण का ही वरण कर लेती और तब इस 'यशोधरा' का प्रणयन ही क्यों होता। 'यशोधरा' काव्य में राहुल का मनोविकास अंकित है। उसकी बालसुलभ चेष्टाओं में अद्भुत आकर्षण है। समय के साथ-साथ उसकी बुद्धि का विकास भी होता है, जो उसकी उक्तियों से स्पष्ट है। परंतु यह सब एकदम स्वाभाविक नहीं कहा जा सकता। कहीं कहीं तो राहुल प्रौंढों के समा...