यशोधरा रचना है

  1. यशोधरा खंडकाव्य
  2. प्रेरणा पुंज यशोधरा किसकी रचना है? जानिए पूरी जानकारी
  3. यशोधरा मैथलीशरण गुप्त की रचना
  4. मैथिलीशरण गुप्त
  5. “यशोधरा’ काव्य की कला
  6. द्विवेदी युग के कवि और उनकी रचनाएँ
  7. द्विवेदी युग
  8. “यशोधरा’ काव्य की कला
  9. यशोधरा मैथलीशरण गुप्त की रचना
  10. द्विवेदी युग


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यशोधरा खंडकाव्य

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प्रेरणा पुंज यशोधरा किसकी रचना है? जानिए पूरी जानकारी

इस लेख में हम आपको प्रेरणा पुंज यशोधरा किसकी रचना है (Yashodhara Kiski Rachna Hai) यह बताएंगे। यह लेख उन लोगों की मदद कर सकती है, जो यशोधरा रचना से जुड़े जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़े। हमें उम्मीद है आपको हमारा यह Yashodhara Kiski Rachna Hai (यशोधरा किसकी रचना है) लेख जरूर पसंद आएगा। दोस्तों यह प्रश्न (प्रेरणा पुंज यशोधरा किसकी रचना है?) कई तरह के प्रतियोगी परीक्षाओं एवं बच्चों से स्कूल में पूछे जाते है। इसलिए सभी को इस प्रश्न का सही उत्तर जानना जरूरी है। अगर आप भी इस प्रश्न के सही उत्तर जानना चाहते है, तो आप बिल्कुल सही जगह पर है। तो चलिए इस यशोधरा के लेखक के बारे में जानते है। Yashodhara Kiski Rachna Hai 4 Conclusion प्रेरणा पुंज यशोधरा किसकी रचना है? (Yashodhara Kiski Rachna Hai) यशोधरा के लेखक मैथिलीशरण गुप्त है। यह रचना मैथिलीशरण गुप्त जी ने भगवान गौतम बुद्ध के गृह त्याग किया, जिससे उनकी धर्मपत्नी यशोधरा की बहुत विरह (पीड़ा) हुआ था। उस घटना को केन्द्र में रखकर इस महाकाव्य की रचना की। मैथिलीशरण गुप्त जी भारत के बहुत ही प्रसिद्ध कवि थे। मैथिलीशरण गुप्त जी की मुख्य जानकारी पूरा नाम मैथिलीशरण गुप्त पिता का नाम सेठ रामचरण जन्म 3 अगस्त, 1885 जन्म स्थान झांसी, उत्तर प्रदेश मृत्यु 12 दिसम्बर, 1965 पुरस्कार पद्मभूषण, साहित्य वाचस्पति, हिन्दुस्तानी अकादमी पुरस्कार आदि। मुख्य रचनाएं भारत-भारती, द्वापर, जयभारत, साकेत, यशोधरा, जयद्रथ वध, पंचवटी, झंकार, काबा-करबला आदि। FAQ उत्तर – मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म झांसी, उत्तर प्रदेश में 3 अगस्त, 1885 में हुआ था। Conclusion तो दोस्तो हमें उम्मीद है, हमने जो आपको Yashodhara Kiski Rachna Hai उनके बारे मे विस्त...

यशोधरा मैथलीशरण गुप्त की रचना

यशोधरा मैथिलीशरण गुप्त की कालजई रचना है इसके माध्यम से गुप्ता जी ने नारी के भावनाओं को उद्घाटित किया है। उनके त्याग और समर्पण के अद्वितीय भाव को उकेरने का प्रयास किया गया है। पुरुष प्रधान समाज में नारी के त्याग को नजरअंदाज किया गया था, जिसे गुप्तजी ने अपने साहित्य में प्रधान बना दिया। उन्होंने यशोधरा, उर्मिला जैसे उपेक्षित नारियों को उचित सम्मान दिलाने का प्रयत्न किया। आज के लेख में यशोधरा काव्य में मैथिलीशरण गुप्त की नारी के संदर्भ में क्या भावना है, उस पर विस्तार से चर्चा करेंगे और यशोधरा के त्याग चरित्र और समर्पण की भावना से अवगत होंगे। Table of Contents • • • • • • • • • • यशोधरा मैथलीशरण गुप्त की नारी भावना maithili sharan gupt ki nari bhavna गुप्तजी चेतना प्रवण कवि है। युग की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करना और युग- बोध को आत्मसात करना उनके लिए सहज था। यशोधरा घटना- प्रधान काव्य ना होकर चरित्र -प्रधान और काव्य प्रधान है। उनका केंद्र सिद्धार्थ ना होकर यशोधरा है , और उसी के मानसिक विकास दिखाने तथा मनोभावों का विश्लेषण करने के लिए घटनाओं का अनुषांगिक महत्व दिया गया है। उन्हें यशोधरा से जोड़ने के लिए कवि का आया स्पष्ट झलकता है। धाराप्रवाह बीच-बीच में टूट गया है इसका कारण गुप्त जी की विभक्त आस्था और मानसिकता और दुविधा भी है। गुप्त जी ने अपने काव्य में उन नारियों को स्थान दिया जो काव्य ग्रंथ में सदा के लिए उपेक्षित पात्र बन गई थी। जैसे केकई , मंथरा , उर्मिला , यशोधरा , आदि उनके काव्य गुरु ‘ महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ‘ हैं उंहीं के मार्गदर्शन पर उन्होंने काव्य लिखना आरंभ किया था। ” करते तुलसी भी कैसे मानस नाद महावीर का यदि उन्हें मिलता नहीं प्रसाद।।” आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ...

मैथिलीशरण गुप्त

• • • • • • • • • • • • • • • • मैथिलीशरण गुप्त ( Maithili Sharan Gupt, जन्म- जीवन परिचय मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म शिक्षा मैथिलीशरण गुप्त की प्रारम्भिक शिक्षा चिरगाँव, काव्य प्रतिभा इसी बीच गुप्तजी मुंशी अजमेरी के संपर्क में आये और उनके प्रभाव से इनकी काव्य-प्रतिभा को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। अतः अब ये लोकसंग्रही कवि मैथिलीशरण गुप्त जी स्वभाव से ही लोकसंग्रही कवि थे और अपने युग की समस्याओं के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील रहे। उनका काव्य एक ओर राष्ट्रकवि का सम्बोधन दिया। देश प्रेम काव्य के क्षेत्र में अपनी लेखनी से संपूर्ण देश में राष्ट्रभक्ति की भावना भर दी थी। राष्ट्रप्रेम की इस अजस्र धारा का प्रवाह बुंदेलखंड क्षेत्र के चिरगांव से कविता के माध्यम से हो रहा था। बाद में इस राष्ट्रप्रेम की इस धारा को देश भर में प्रवाहित किया था, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने। जो भरा नहीं है भावों से जिसमें बहती रसधार नहीं। वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं। पिताजी के आशीर्वाद से वह राष्ट्रकवि के सोपान तक पदासीन हुए। महात्मा गांधी ने उन्हें राष्ट्रकवि कहे जाने का गौरव प्रदान किया। महाकाव्य मैथिलीशरण गुप्त को काव्य क्षेत्र का शिरोमणि कहा जाता है। मैथिलीशरण जी की प्रसिद्धि का मूलाधार भारत–भारती है। भारत–भारती उन दिनों राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम का घोषणापत्र बन गई थी। साकेत और जयभारत, दोनों महाकाव्य हैं। साकेत रामकथा पर आधारित है, किन्तु इसके केन्द्र में विविध धर्मों, सम्प्रदायों, मत–मतांतरों और विभिन्न संस्कृतियों के प्रति सहिष्णुता व समन्वय की भावना गुप्त जी के काव्य का वैशिष्ट्य है। पंचवटी काव्य में सहज वन्य–जीवन के प्रति गहरा अनुराग और प्रकृति के मनोहारी चित्र हैं, तो भ...

“यशोधरा’ काव्य की कला

‘यशोधरा’ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित काव्य है। उसकी कलापक्षीय विशेषताएँ निम्नलिखित हैं भाषा –‘यशोधरा’ की भाषा सरल तथा सरस है। वह साहित्यिक खड़ी बोली है, भाषा में लाक्षणिकता का गुण विद्यमान है। उसमें कथा को स्पष्ट करने की सामर्थ्य है। शैली –कवि ने ‘यशोधरा’ की रचना गीतिशैली में की है। यह एक खण्डकाव्य है। इसमें प्रमुख पात्र यशोधरा की अपने पति द्वारा गृह त्याग से उत्पन्न मनोदशा का चित्रण हुआ है। शैली वर्णनात्मक तथा इतिवृत्तात्मक है। उसमें अनुप्रास, रूपक, उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश इत्यादि अलंकारों का सफल प्रयोग हुआ है। उक्ति वैचित्र्य का भी प्रयोग है। छंद –गीत छंद है, जो तुकान्त है। गीत की प्रमुख पंक्ति जिसे टेक कहते हैं। ‘सखि वे मुझसे कहकर जाते है।प्रत्येक चरण के पश्चात् इसको दोहराया गया है। कला –पक्ष की दृष्टि से ‘यशोधरा’ एक सफल रचना है।

द्विवेदी युग के कवि और उनकी रचनाएँ

द्विवेदी युग के कवि और उनके ग्रंथ आधुनिक कविता के दूसरे पड़ाव (सन्1903से1916)को द्विवेदी-युग के नाम से जाना जाता है। डॉ. नगेन्द्र ने द्विवेदी युग को ‘जागरण-सुधार काल’भी कहा जाता है और इसकी समयावधि1900से1918ई. तक माना। वहीं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने द्विवेदी युग को ‘नई धारा: द्वितीय उत्थान’ के अन्तर्गत रखा है तथा समयावधि सन्1893से1918ई. तक माना है। यह आधुनिक कविता के उत्थान व विकास का काल है। सन्1903ई. में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ‘सरस्वती’ पत्रिका के संपादक बने, संपादक बनने के बाद द्विवेदी जी हिंदी भाषा के परिष्कार पर विशेष ध्यान दिया। इन्होंने सरस्वती के माध्यम से कवियों को नायिका भेद जैसे विषय से हट कर अन्य विषयों पर कविता लिखने के लिए प्रेरित किया तथा ब्रजभाषा के स्थान पर काव्यभाषा के रूप में खड़ीबोली का प्रयोग करने का सुझाव दिया ताकि गद्य और काव्य की भाषा में एकरूपता आ सके। द्विवेदी जी ने भाषा संस्कार,व्याकरण शुद्धता और विराम चिन्हों के प्रयोग पर बल देकर हिंदी को परिनिष्ठित रूप प्रदान किया। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा है की, ‘खड़ीबोली के पद्य पर द्विवेदी जी का पूरा-पूरा असर पड़ा। बहुत से कवियों की भाषा शिथिल और अव्यवस्थित होती थी। द्विवेदी जी ऐसे कवियों की भेजी हुई कविताओं की भाषा आदि दुरुस्त करके सरस्वती में छापा करते थे। इस प्रकार कवियों की भाषा साफ होती गई और द्विवेदी जी के अनुकरण में अन्य लेखक भी शुद्ध भाषा लिखने लगे।’ द्विवेदी जी की हिंदी साहित्य में भूमिका एक सर्जक के रूप में उतना नहीं है जितना कि विचारक,दिशा निर्देशक,चिंतक एवं नियामक के रूप में। इस युग में अधिकतर कवियों ने द्विवेदी जी के दिशा-निर्देश के अनुसार काव्य रचना कर रहे थे। किन्तु कुछ कवि ऐसे भी थे जो...

द्विवेदी युग

Dwivedi Yug द्विवेदी युग (1900 से 1920 ई०) हिंदी साहित्य में दिवेदी युग बीसवीं सदी के पहले दो दशकों का युग है। द्विवेदी युग का समय सन 1900 से 1920 तक माना जाता है। बीसवीं शताब्दी के पहले दो दशक के पथ-प्रदर्शक, विचारक और साहित्य नेता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर ही इस काल का नाम “द्विवेदी युग” पड़ा। इसे “जागरण सुधारकाल” भी कहा जाता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी के ऐसे पहले लेखक थे, जिन्होंने अपनी जातीय परंपरा का गहन अध्ययन ही नहीं किया था, अपितु उसे आलोचकीय दृष्टि से भी देखा। उन्होंने वेदों से लेकर पंडितराज जगन्नाथ तक के संस्कृत साहित्य की निरंतर प्रवाहमान धारा का अवगाहन किया एवं उपयोगिता तथा कलात्मक योगदान के प्रति एक वैज्ञानिक नज़रिया अपनाया। कविता की दृष्टि से द्विवेदी युग “इतिवृत्तात्मक युग” था। इस समय आदर्शवाद का बोलबाला रहा। भारत का उज्ज्वल अतीत, देश-भक्ति, सामाजिक सुधार, स्वभाषा-प्रेम आदि कविता के मुख्य विषय थे। नीतिवादी विचारधारा के कारण श्रृंगार का वर्णन मर्यादित हो गया। कथा-काव्य का विकास इस युग की विशेषता है। मैथिलीशरण गुप्त, अयोध्यासिंह उपाध्याय “हरिऔध”, श्रीधर पाठक, रामनरेश त्रिपाठी आदि इस युग के यशस्वी कवि थे। जगन्नाथदास “रत्नाकर” ने इसी युग में ब्रजभाषा में सरस रचनाएँ प्रस्तुत कीं। दो दशकों के कालखंड में हिंदी कविता को श्रृंगारिकता से राष्ट्रीयता, जड़ता से प्रगति तथा रूढ़ि से स्वच्छंदता के द्वार पर ला खड़ा किया। द्विवेदी युग को जागरण सुधार काल भी कहा जाता है .द्विवेदी युग के पथ प्रदर्शक विचारक और सर्व स्वीकृत साहित्य नेता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर इसका नाम द्विवेदी युग रखा गया है। 1903 में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने “सरस्वती” पत्रिक...

“यशोधरा’ काव्य की कला

‘यशोधरा’ मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित काव्य है। उसकी कलापक्षीय विशेषताएँ निम्नलिखित हैं भाषा –‘यशोधरा’ की भाषा सरल तथा सरस है। वह साहित्यिक खड़ी बोली है, भाषा में लाक्षणिकता का गुण विद्यमान है। उसमें कथा को स्पष्ट करने की सामर्थ्य है। शैली –कवि ने ‘यशोधरा’ की रचना गीतिशैली में की है। यह एक खण्डकाव्य है। इसमें प्रमुख पात्र यशोधरा की अपने पति द्वारा गृह त्याग से उत्पन्न मनोदशा का चित्रण हुआ है। शैली वर्णनात्मक तथा इतिवृत्तात्मक है। उसमें अनुप्रास, रूपक, उपमा, पुनरुक्ति प्रकाश इत्यादि अलंकारों का सफल प्रयोग हुआ है। उक्ति वैचित्र्य का भी प्रयोग है। छंद –गीत छंद है, जो तुकान्त है। गीत की प्रमुख पंक्ति जिसे टेक कहते हैं। ‘सखि वे मुझसे कहकर जाते है।प्रत्येक चरण के पश्चात् इसको दोहराया गया है। कला –पक्ष की दृष्टि से ‘यशोधरा’ एक सफल रचना है। Categories • • (31.9k) • (8.8k) • (764k) • (248k) • (2.9k) • (5.2k) • (664) • (121k) • (72.1k) • (3.8k) • (19.6k) • (1.4k) • (14.2k) • (12.5k) • (9.3k) • (7.7k) • (3.9k) • (6.7k) • (63.8k) • (26.6k) • (23.7k) • (14.6k) • (25.7k) • (530) • (84) • (766) • (49.1k) • (17.1k) • (945) • (978) • (783) • (968) • (1.4k) • (897) • (1.9k) • (0) • (84) • (55) • (70) • (81) • (52) • (51) • (66) • (77) • (61) • (76) • (78) • (75) • (63) • (66) • (74) • (65) • (61) • (49) • (64) • (50) • (58) • (70) • (72) • (52) • (64) • (50) • (52) • (47) • (54) • (64) • (22) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (0) • (996) • (656) • (2.2k) • (2.4k) • (1.1k) • (1.8k) ...

यशोधरा मैथलीशरण गुप्त की रचना

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द्विवेदी युग

Dwivedi Yug द्विवेदी युग (1900 से 1920 ई०) हिंदी साहित्य में दिवेदी युग बीसवीं सदी के पहले दो दशकों का युग है। द्विवेदी युग का समय सन 1900 से 1920 तक माना जाता है। बीसवीं शताब्दी के पहले दो दशक के पथ-प्रदर्शक, विचारक और साहित्य नेता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर ही इस काल का नाम “द्विवेदी युग” पड़ा। इसे “जागरण सुधारकाल” भी कहा जाता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी के ऐसे पहले लेखक थे, जिन्होंने अपनी जातीय परंपरा का गहन अध्ययन ही नहीं किया था, अपितु उसे आलोचकीय दृष्टि से भी देखा। उन्होंने वेदों से लेकर पंडितराज जगन्नाथ तक के संस्कृत साहित्य की निरंतर प्रवाहमान धारा का अवगाहन किया एवं उपयोगिता तथा कलात्मक योगदान के प्रति एक वैज्ञानिक नज़रिया अपनाया। कविता की दृष्टि से द्विवेदी युग “इतिवृत्तात्मक युग” था। इस समय आदर्शवाद का बोलबाला रहा। भारत का उज्ज्वल अतीत, देश-भक्ति, सामाजिक सुधार, स्वभाषा-प्रेम आदि कविता के मुख्य विषय थे। नीतिवादी विचारधारा के कारण श्रृंगार का वर्णन मर्यादित हो गया। कथा-काव्य का विकास इस युग की विशेषता है। मैथिलीशरण गुप्त, अयोध्यासिंह उपाध्याय “हरिऔध”, श्रीधर पाठक, रामनरेश त्रिपाठी आदि इस युग के यशस्वी कवि थे। जगन्नाथदास “रत्नाकर” ने इसी युग में ब्रजभाषा में सरस रचनाएँ प्रस्तुत कीं। दो दशकों के कालखंड में हिंदी कविता को श्रृंगारिकता से राष्ट्रीयता, जड़ता से प्रगति तथा रूढ़ि से स्वच्छंदता के द्वार पर ला खड़ा किया। द्विवेदी युग को जागरण सुधार काल भी कहा जाता है .द्विवेदी युग के पथ प्रदर्शक विचारक और सर्व स्वीकृत साहित्य नेता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर इसका नाम द्विवेदी युग रखा गया है। 1903 में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने “सरस्वती” पत्रिक...