अंत अस्ति प्रारंभ श्लोक

  1. प्रतिबिम्ब (Reflection)
  2. 201+ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित
  3. अंतः अस्ति प्रारंभः – Sanskrit For You
  4. श्रीमद्‌भगवद्‌गीता : दुसरा अध्याय (सांख्ययोग)
  5. Vicharvrund – A Blog by Sultan Singh
  6. प्रतिबिम्ब (Reflection)
  7. 201+ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित
  8. अंतः अस्ति प्रारंभः – Sanskrit For You
  9. श्रीमद्‌भगवद्‌गीता : दुसरा अध्याय (सांख्ययोग)
  10. Vicharvrund – A Blog by Sultan Singh


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प्रतिबिम्ब (Reflection)

साल 2022 के अंत के साथ ही हम नव वर्ष 2023 का अभिनंदन करते हैं।‌ जैसा कि कहा गया है अंत अस्ति प्रारंभ अर्थात अंत ही प्रारंभ है कहने का तात्पर्य यह है कि जाने वाला साल हमें कई चीजें सीखा कर जाता है और हमें नए साल की नई चुनौती का सामना करने का सक्षम बनाता है।2020 में आई कोरोना जैसे महामारी से हम लड़कर बहार आए हैं और साल 2022 कई मायनों में सामान्य रहा। पिछले कुछ वर्षों में आई कठिनाइयों ने हमें मानसिक रूप से काफी दृढ़ बनाया है। हमारे स्वास्थ्य विशेषकर मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना सिखाया है। ग्लोबलाइजेशन और ऑनलाइन माध्यमों से दुनिया काफी सिमट गई है और हम सभी ने नए कौशल विकसित किए है और शिक्षा को नए आयाम प्रदान किए है। भारत के लिए यह साल काफी अच्छा रहा वैश्विक मंदी के इस दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था ने बेहतर प्रदर्शन किया जब युद्ध की वजह से विश्व में खाद्यान्नौ की कमी हुई तब भारत ने उसकी आपूर्ति की। विश्व के सारे बड़े देशों के द्वारा भी आने वाले दशक को भारतीय अर्थव्यवस्था का युग बताया जा रहा है इसलिए आने वाले साल से काफी उम्मीदें हैं। उद्यमिता के क्षेत्र में नए भारतीयों उद्यमीयो जीवन बहुत गंभीरता से जीने के लिए नहीं हैं। हँसना ,मुसकुराना, अच्छा संगीत, नाचना, मस्ती करना और उल्लास के साथ जीकर ही हम खुश रह सकते हैं। पर इन सब बातों के बीच जीवन में अभिव्यक्ति (manifestation) का होना बहुत जरूरी हैं। जब हम जीवन में किसी लक्ष्य को अभिव्यक्तकरतें हैं तब हमारा अवचेतन मन (sub conscious mind ) उस लक्ष्य के प्रति सचेत हो जाता हैं और सजगता से अपने लक्ष्य के बारे में आने वाली सारी जानकारी जुटाने लगता हैं। यह बात मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव से कह सकता हूँ। ब्लॉग लिखने की मेरी इच्छा काफी सालों...

201+ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित

Sanskrit Shlokas With Meaning in Hindi : भारत में संस्कृत भाषा को सभी भाषाओ के जननी माना जाता है, संस्कृत दुनिया की सबसे पुराणी भाषा है संस्कृत की महानता Sanskrit ke best slokas से है देश में संस्कृत भाषा को देव भाषा की उपाधि दिया गया है पुराने समय से ही संस्कृत श्लोको के आधार पर मानव रहा है। अगर आप भारतीय है और हिन्दू धर्म से तालुक रखते है तो आपको संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlokas) का ज्ञान होना चाहिए मनुष्य जाती के लिए संस्कृत हमारे जीवन का एक अनमोल हिस्सा रहा है पुराने समय से ही ऋषि-मुनियों ने कई सारे अद्भुत संस्कृत भाषा (sanskrit slokas) में बेहतरीन आयुषः क्षण एकोऽपि सर्वरत्नैर्न न लभ्यते। नीयते स वृथा येन प्रमादः सुमहानहो ॥ अर्थात् : सभी कीमती रत्नों से कीमती जीवन है जिसका एक क्षण भी वापस नहीं पाया जा सकता है। इसलिए इसे फालतू के कार्यों में खर्च करना बहुत बड़ी गलती है। (3) आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण, लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्। दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना, छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्॥ अर्थात् : दुर्जन की मित्रता शुरुआत में बड़ी अच्छी होती है और क्रमशः कम होने वाली होती है। सज्जन व्यक्ति की मित्रता पहले कम और बाद में बढ़ने वाली होती है। इस प्रकार से दिन के पूर्वार्ध और परार्ध में अलग-अलग दिखने वाली छाया के जैसी दुर्जन और सज्जनों व्यक्तियों की मित्रता होती है। (4) यमसमो बन्धु: कृत्वा यं नावसीदति। अर्थात् : मनुष्य के शरीर में रहने वाला आलस्य ही उनका सबसे बड़ा शत्रु होता है, परिश्रम जैसा दूसरा कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता है। (5) परान्नं च परद्रव्यं तथैव च प्रतिग्रहम्। परस्त्रीं परनिन्दां च मनसा अपि विवर्जयेत।। अर्थात् : पराया...

अंतः अस्ति प्रारंभः – Sanskrit For You

Product details: • The cost is inclusive of shipping charges • Cash on delivery extra charges • Printed on a 300 GSM Resin Coated Art Paper for long life • Dust and Water-resistant artwork • Acrylic frame with black fibre borders (1 inch) • Comes with hook/s preinstalled to hang the frame on the wall • We take necessary precautions to make sure the products are well sanitized and packed safely • GST Charges applicable

श्रीमद्‌भगवद्‌गीता : दुसरा अध्याय (सांख्ययोग)

मूळ दुसऱ्या अध्यायाचा प्रारंभ अथ द्वितीयोऽध्यायः अर्थ दुसरा अध्याय सुरु होतो. मूळ सञ्जय उवाच तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्‌ । विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ॥ २-१ ॥ संदर्भित अन्वयार्थ सञ्जय = संजय, उवाच = म्हणाले, तथा = तशाप्रकारे, कृपया = करुणेने, आविष्टम्‌ = व्याप्त, अश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्‌ = ज्याचे डोळे अश्रूंनी युक्त व व्याकूळ झालेले आहेत, (च) = आणि, विषीदन्तम्‌ = शोकयुक्त (अशा), तम्‌ = त्या(अर्जुना)ला, मधुसूदनः = भगवान मधुसूदन, इदम्‌ = हे, वाक्यम्‌ = वचन, उवाच = म्हणाले ॥ २-१ ॥ अर्थ संजय म्हणाले, अशा रीतीने करुणेने व्याप्त, ज्याचे डोळे आसवांनी भरलेले व व्याकूळ दिसत आहेत, अशा शोक करणाऱ्या अर्जुनाला भगवान मधुसूदन असे म्हणाले. ॥ २-१ ॥ मूळ श्लोक श्रीभगवानुवाच कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्‌ । अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ॥ २-२ ॥ संदर्भित अन्वयार्थ श्रीभगवान = श्रीभगवान श्रीकृष्ण, उवाच = म्हणाले, अर्जुन = हे अर्जुना, विषमे = अयोग्य वेळी, इदम्‌ = हा, कश्मलम्‌ = मोह, कुतः = कोणत्या कारणाने, त्वा समुपस्थितम्‌ = तुला झाला, (यतः) = कारण, अनार्यजुष्टम्‌ = हा श्रेष्ठ पुरुषांकडून आचरलेला नव्हे, अस्वर्ग्यम्‌ = स्वर्ग प्राप्त करून देणारा नव्हे, (च) = आणि, अकीर्तिकरम्‌ = कीर्ति देणारा पण नव्हे ॥ २-२ ॥ अर्थ श्रीभगवान श्रीकृष्ण म्हणाले, हे अर्जुना, या भलत्याच वेळी हा मोह तुला कशामुळे उत्पन्न झाला? कारण हा थोरांनी न आचरलेला, स्वर्ग मिळवून न देणारा आणि कीर्तिकारकही नाही. ॥ २-२ ॥ मूळ श्लोक क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते । क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ॥ २-३ ॥ संदर्भित अन्वयार्थ (अतः) = म्हणून, पार्थ = हे पार्था (अर्थात पृथपुत्र अर्जु...

Vicharvrund – A Blog by Sultan Singh

𝐕𝐢𝐜𝐡𝐚𝐫𝐯𝐫𝐮𝐧𝐝 𝕿𝖍𝖊 𝕺𝖕𝖊𝖓, 𝕷𝖎𝖛𝖊 𝖆𝖓𝖉 𝕯𝖎𝖌𝖎𝖙𝖆𝖑 𝖂𝖔𝖗𝖑𝖉 𝖔𝖋 𝕾𝖚𝖑𝖙𝖆𝖓 𝕾𝖎𝖓𝖌𝖍. 𝕿𝖍𝖊 𝖂𝖔𝖗𝖉 𝖁𝖎𝖈𝖍𝖆𝖗 𝖁𝖗𝖚𝖓𝖉 𝖗𝖊𝖕𝖗𝖊𝖘𝖊𝖓𝖙𝖎𝖓𝖌 𝖙𝖍𝖊 𝖎𝖓𝖓𝖊𝖗 𝖂𝖔𝖗𝖑𝖉 𝖔𝖋 𝕬𝖚𝖙𝖍𝖔𝖗 𝕴𝖙𝖘𝖊𝖑𝖋 𝖆𝖓𝖉 𝖍𝖎𝖘 𝕿𝖍𝖔𝖚𝖌𝖍𝖙𝖘, 𝕱𝖊𝖊𝖑𝖎𝖓𝖌𝖘 𝖆𝖓𝖉 𝕷𝖎𝖋𝖊. Are you ready to Explore the Content in Blog…? You can find Articles, Stories, Poetries and Many More from here. There are so many things you can intrested for in the blog. Some Articles based on Current time, Poetries based on Experential Journey of Life and Novels or Stories too. Which Represent the Creativenesss of Mine. Explore the Blog From Below… 𝕰𝖝𝖕𝖑𝖔𝖗𝖎𝖓𝖌 𝕾𝖊𝖑𝖋 श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय: | ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति Those whose faith is deep and who have practiced controlling their mind and senses attain divine knowledge. Through such transcendental knowledge, they quickly attain everlasting supreme peace.

प्रतिबिम्ब (Reflection)

साल 2022 के अंत के साथ ही हम नव वर्ष 2023 का अभिनंदन करते हैं।‌ जैसा कि कहा गया है अंत अस्ति प्रारंभ अर्थात अंत ही प्रारंभ है कहने का तात्पर्य यह है कि जाने वाला साल हमें कई चीजें सीखा कर जाता है और हमें नए साल की नई चुनौती का सामना करने का सक्षम बनाता है।2020 में आई कोरोना जैसे महामारी से हम लड़कर बहार आए हैं और साल 2022 कई मायनों में सामान्य रहा। पिछले कुछ वर्षों में आई कठिनाइयों ने हमें मानसिक रूप से काफी दृढ़ बनाया है। हमारे स्वास्थ्य विशेषकर मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना सिखाया है। ग्लोबलाइजेशन और ऑनलाइन माध्यमों से दुनिया काफी सिमट गई है और हम सभी ने नए कौशल विकसित किए है और शिक्षा को नए आयाम प्रदान किए है। भारत के लिए यह साल काफी अच्छा रहा वैश्विक मंदी के इस दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था ने बेहतर प्रदर्शन किया जब युद्ध की वजह से विश्व में खाद्यान्नौ की कमी हुई तब भारत ने उसकी आपूर्ति की। विश्व के सारे बड़े देशों के द्वारा भी आने वाले दशक को भारतीय अर्थव्यवस्था का युग बताया जा रहा है इसलिए आने वाले साल से काफी उम्मीदें हैं। उद्यमिता के क्षेत्र में नए भारतीयों उद्यमीयो जीवन बहुत गंभीरता से जीने के लिए नहीं हैं। हँसना ,मुसकुराना, अच्छा संगीत, नाचना, मस्ती करना और उल्लास के साथ जीकर ही हम खुश रह सकते हैं। पर इन सब बातों के बीच जीवन में अभिव्यक्ति (manifestation) का होना बहुत जरूरी हैं। जब हम जीवन में किसी लक्ष्य को अभिव्यक्तकरतें हैं तब हमारा अवचेतन मन (sub conscious mind ) उस लक्ष्य के प्रति सचेत हो जाता हैं और सजगता से अपने लक्ष्य के बारे में आने वाली सारी जानकारी जुटाने लगता हैं। यह बात मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव से कह सकता हूँ। ब्लॉग लिखने की मेरी इच्छा काफी सालों...

201+ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित

Sanskrit Shlokas With Meaning in Hindi : भारत में संस्कृत भाषा को सभी भाषाओ के जननी माना जाता है, संस्कृत दुनिया की सबसे पुराणी भाषा है संस्कृत की महानता Sanskrit ke best slokas से है देश में संस्कृत भाषा को देव भाषा की उपाधि दिया गया है पुराने समय से ही संस्कृत श्लोको के आधार पर मानव रहा है। अगर आप भारतीय है और हिन्दू धर्म से तालुक रखते है तो आपको संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlokas) का ज्ञान होना चाहिए मनुष्य जाती के लिए संस्कृत हमारे जीवन का एक अनमोल हिस्सा रहा है पुराने समय से ही ऋषि-मुनियों ने कई सारे अद्भुत संस्कृत भाषा (sanskrit slokas) में बेहतरीन आयुषः क्षण एकोऽपि सर्वरत्नैर्न न लभ्यते। नीयते स वृथा येन प्रमादः सुमहानहो ॥ अर्थात् : सभी कीमती रत्नों से कीमती जीवन है जिसका एक क्षण भी वापस नहीं पाया जा सकता है। इसलिए इसे फालतू के कार्यों में खर्च करना बहुत बड़ी गलती है। (3) आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण, लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्। दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना, छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्॥ अर्थात् : दुर्जन की मित्रता शुरुआत में बड़ी अच्छी होती है और क्रमशः कम होने वाली होती है। सज्जन व्यक्ति की मित्रता पहले कम और बाद में बढ़ने वाली होती है। इस प्रकार से दिन के पूर्वार्ध और परार्ध में अलग-अलग दिखने वाली छाया के जैसी दुर्जन और सज्जनों व्यक्तियों की मित्रता होती है। (4) यमसमो बन्धु: कृत्वा यं नावसीदति। अर्थात् : मनुष्य के शरीर में रहने वाला आलस्य ही उनका सबसे बड़ा शत्रु होता है, परिश्रम जैसा दूसरा कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता है। (5) परान्नं च परद्रव्यं तथैव च प्रतिग्रहम्। परस्त्रीं परनिन्दां च मनसा अपि विवर्जयेत।। अर्थात् : पराया...

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श्रीमद्‌भगवद्‌गीता : दुसरा अध्याय (सांख्ययोग)

मूळ दुसऱ्या अध्यायाचा प्रारंभ अथ द्वितीयोऽध्यायः अर्थ दुसरा अध्याय सुरु होतो. मूळ सञ्जय उवाच तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्‌ । विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ॥ २-१ ॥ संदर्भित अन्वयार्थ सञ्जय = संजय, उवाच = म्हणाले, तथा = तशाप्रकारे, कृपया = करुणेने, आविष्टम्‌ = व्याप्त, अश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्‌ = ज्याचे डोळे अश्रूंनी युक्त व व्याकूळ झालेले आहेत, (च) = आणि, विषीदन्तम्‌ = शोकयुक्त (अशा), तम्‌ = त्या(अर्जुना)ला, मधुसूदनः = भगवान मधुसूदन, इदम्‌ = हे, वाक्यम्‌ = वचन, उवाच = म्हणाले ॥ २-१ ॥ अर्थ संजय म्हणाले, अशा रीतीने करुणेने व्याप्त, ज्याचे डोळे आसवांनी भरलेले व व्याकूळ दिसत आहेत, अशा शोक करणाऱ्या अर्जुनाला भगवान मधुसूदन असे म्हणाले. ॥ २-१ ॥ मूळ श्लोक श्रीभगवानुवाच कुतस्त्वा कश्मलमिदं विषमे समुपस्थितम्‌ । अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यमकीर्तिकरमर्जुन ॥ २-२ ॥ संदर्भित अन्वयार्थ श्रीभगवान = श्रीभगवान श्रीकृष्ण, उवाच = म्हणाले, अर्जुन = हे अर्जुना, विषमे = अयोग्य वेळी, इदम्‌ = हा, कश्मलम्‌ = मोह, कुतः = कोणत्या कारणाने, त्वा समुपस्थितम्‌ = तुला झाला, (यतः) = कारण, अनार्यजुष्टम्‌ = हा श्रेष्ठ पुरुषांकडून आचरलेला नव्हे, अस्वर्ग्यम्‌ = स्वर्ग प्राप्त करून देणारा नव्हे, (च) = आणि, अकीर्तिकरम्‌ = कीर्ति देणारा पण नव्हे ॥ २-२ ॥ अर्थ श्रीभगवान श्रीकृष्ण म्हणाले, हे अर्जुना, या भलत्याच वेळी हा मोह तुला कशामुळे उत्पन्न झाला? कारण हा थोरांनी न आचरलेला, स्वर्ग मिळवून न देणारा आणि कीर्तिकारकही नाही. ॥ २-२ ॥ मूळ श्लोक क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते । क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप ॥ २-३ ॥ संदर्भित अन्वयार्थ (अतः) = म्हणून, पार्थ = हे पार्था (अर्थात पृथपुत्र अर्जु...

Vicharvrund – A Blog by Sultan Singh

𝐕𝐢𝐜𝐡𝐚𝐫𝐯𝐫𝐮𝐧𝐝 𝕿𝖍𝖊 𝕺𝖕𝖊𝖓, 𝕷𝖎𝖛𝖊 𝖆𝖓𝖉 𝕯𝖎𝖌𝖎𝖙𝖆𝖑 𝖂𝖔𝖗𝖑𝖉 𝖔𝖋 𝕾𝖚𝖑𝖙𝖆𝖓 𝕾𝖎𝖓𝖌𝖍. 𝕿𝖍𝖊 𝖂𝖔𝖗𝖉 𝖁𝖎𝖈𝖍𝖆𝖗 𝖁𝖗𝖚𝖓𝖉 𝖗𝖊𝖕𝖗𝖊𝖘𝖊𝖓𝖙𝖎𝖓𝖌 𝖙𝖍𝖊 𝖎𝖓𝖓𝖊𝖗 𝖂𝖔𝖗𝖑𝖉 𝖔𝖋 𝕬𝖚𝖙𝖍𝖔𝖗 𝕴𝖙𝖘𝖊𝖑𝖋 𝖆𝖓𝖉 𝖍𝖎𝖘 𝕿𝖍𝖔𝖚𝖌𝖍𝖙𝖘, 𝕱𝖊𝖊𝖑𝖎𝖓𝖌𝖘 𝖆𝖓𝖉 𝕷𝖎𝖋𝖊. Are you ready to Explore the Content in Blog…? You can find Articles, Stories, Poetries and Many More from here. There are so many things you can intrested for in the blog. Some Articles based on Current time, Poetries based on Experential Journey of Life and Novels or Stories too. Which Represent the Creativenesss of Mine. Explore the Blog From Below… 𝕰𝖝𝖕𝖑𝖔𝖗𝖎𝖓𝖌 𝕾𝖊𝖑𝖋 श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय: | ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति Those whose faith is deep and who have practiced controlling their mind and senses attain divine knowledge. Through such transcendental knowledge, they quickly attain everlasting supreme peace.