आर्यभट्ट का गणित में योगदान

  1. आर्यभट्ट का गणित में क्या योगदान था?
  2. Aryabhatta Biography In Hindi
  3. आर्यभट
  4. आर्यभट्ट की जीवनी
  5. आर्यभट्ट का गणित में क्या योगदान था?
  6. आर्यभट
  7. आर्यभट्ट का जीवन परिचय Biography Of Aryabhatta In Hindi
  8. गणितज्ञ आर्यभट्ट का जीवन परिचय
  9. Aryabhatta Biography In Hindi
  10. आर्यभट्ट की जीवनी


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आर्यभट्ट का गणित में क्या योगदान था?

Table of Contents Show • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • 1 आर्यभट्ट ने गणित में क्या योगदान दिया था? • 2 गणित के क्षेत्र में भारत की क्या देन है *? • 3 आर्यभट्ट ने क्या खोज की थी? • 4 रामानुजन का गणित में क्या योगदान था? आर्यभट्ट ने गणित में क्या योगदान दिया था? इसे सुनेंरोकेंउन्होंने सबसे पहले ‘पाई’ (p) की कीमत निश्चित की और उन्होंने ही सबसे पहले ‘साइन’ (SINE) के ‘कोष्टक’ दिए। गणित के जटिल प्रश्नों को सरलता से हल करने के लिए उन्होंने ही समीकरणों का आविष्कार किया, जो पूरे विश्व में प्रख्यात हुआ। एक के बाद ग्यारह शून्य जैसी संख्याओं को बोलने के लिए उन्होंने नई पद्ध्ति का आविष्कार किया। गणित के क्षेत्र में भारत की क्या देन है *? इसे सुनेंरोकेंगणित के क्षेत्र में भारत उल्लेख (i) आर्यभट्ट ने अक्षरों और संख्याओं के गुणों को दर्शाने के लिए अक्षरों का उपयोग करके स्थान मूल्य प्रणाली पर काम किया। उन्होंने नौ ग्रहों की स्थिति की खोज की और कहा कि ये ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि एक वर्ष में दिनों की सही संख्या 365 है। आर्यभट्ट ने खगोल विज्ञान में क्या योगदान दिया? इसे सुनेंरोकेंआर्यभट्ट एक महान गणितज्ञ और खगोल विज्ञानी थे। उन्होंने ही शून्य के सिद्धांत का आविष्कार किया था। आज जिस क्षेत्र को खगौल नाम से जाना जाता है यहीं पर आर्यभट्ट ने बीजगणित (अलजेबरा), रेखागणित (ज्योमेट्री) और त्रिकोणमिति (ट्रिगोनोमेट्री) के मूल सिद्धांतों की रचना की थी। आर्यभट्ट की विश्व को क्या क्या देन है? इसे सुनेंरोकेंआर्यभट का भारत और विश्व के ज्योतिष सिद्धान्त पर बहुत प्रभाव रहा है। भारत में सबसे अधिक प्रभाव केरल प्रदेश की ज्योतिष परम्परा पर रहा। आर्यभट भारतीय गणितज्ञों में स...

Aryabhatta Biography In Hindi

आर्यभट्ट की जीवनी इन हिंदी Aryabhatta Biography in Hindi Aryabhatta Life History in Hindi 🇮🇳 आर्यभट्ट की जीवनी इन हिंदी (Aryabhatta Biography in Hindi) class 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए और अन्य विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए लिखा गया है। शून्य की खोज करने वाले आर्यभट्ट (Aryabhatta who Invented Zero) शून्य और पाई के मान जैसी अद्भुत खोज करने वाले आर्यभट्ट को भला कौन नहीं जानता। ये आज के वैज्ञानिकों के लिए एक बहुत बड़ी प्रेरणा हैं। आर्यभट्ट प्राचीन समय के प्रसिद्ध खगोलशास्त्रियों, ज्योतिषविद व गणितज्ञों में से एक थें। उन्होंने अधिक साधन उपलब्ध न होने पर भी विज्ञान के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने इस बात का पता पहले ही लगा लिया था कि पृथ्वी गोल है और यह अपनी धुरी पर घूमती है तथा सूर्य व चंद्रमा की परिक्रमा करती है। आर्यभट्ट की प्रसिद्ध रचना आर्यभटिया में इनके जीवन और इनके कार्यों के बारे में विस्तार से जानकारी मिलती है। आइए इस पोस्ट में हम आपको आर्यभट्ट के बारे में और भी जानकारी देते हैं। आर्यभट्ट की जीवनी इन हिंदी – Aryabhatta who Invented Zero Biography in Hindi Language :- आर्यभट्ट का जन्म (When and Where was Aryabhata Born) : आर्यभट्ट के जन्म और जन्म स्थान के बारे में कोई सही जानकारी तो उपलब्ध नहीं है। लेकिन इनके जन्म से संबंधित कई अनुमान जरूर लगाए जा चुके हैं। उन अनुमान के अनुसार यह कहा जाता है कि गौतमबुद्ध के समय पर अश्मक देश के कुछ लोग मध्य भारत में नर्मदा नदी व गोदावरी नदी के बीच आकर बस गए थे। और मान्यताओं के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म दिसंबर, ई.स.476 में उसी स्थान पर हुआ था। वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार यह भी...

आर्यभट

अनुक्रम • 1 आर्यभट का जन्म-स्थान • 2 कृतियाँ • 2.1 आर्यभटीय • 3 आर्यभट का योगदान • 3.1 गणित • 3.1.1 स्थानीय मान प्रणाली और शून्य • 3.1.2 अपरिमेय (इर्रेशनल) के रूप में π • 3.1.3 क्षेत्रमिति और त्रिकोणमिति • 3.1.4 अनिश्चित समीकरण • 3.1.5 बीजगणित • 3.2 खगोल विज्ञान • 3.2.1 सौर प्रणाली की गतियाँ • 3.2.2 ग्रहण • 3.2.3 नक्षत्रों के आवर्तकाल • 3.2.4 सूर्य केंद्रीयता • 4 विरासत • 5 टिप्प्णियाँ • 6 इन्हें भी देखें • 7 सन्दर्भ • 7.1 अन्य सन्दर्भ • 8 बाहरी कड़ियाँ आर्यभट का जन्म-स्थान यद्यपि आर्यभट के जन्म के वर्ष का दक्षिणापथ या एक ताजा अध्ययन के अनुसार आर्यभट, हालाँकि ये बात काफी हद तक निश्चित है कि वे किसी न किसी समय आर्यभट अपनी खगोलीय प्रणालियों के लिए सन्दर्भ के रूप में [ कृतियाँ आर्यभट द्वारा रचित तीन ग्रंथों की जानकारी आज भी उपलब्ध है। दशगीतिका, उन्होंने उनकी प्रमुख कृति, आर्यभटीय, गणित और खगोल विज्ञान का एक संग्रह है, जिसे भारतीय गणितीय साहित्य में बड़े पैमाने पर उद्धृत किया गया है और जो आधुनिक समय में भी अस्तित्व में है। आर्यभटीय के गणितीय भाग में अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति शामिल हैं। इसमे आर्य-सिद्धांत, खगोलीय गणनाओं पर एक कार्य है जो अब लुप्त हो चुका है, इसकी जानकारी हमें आर्यभट के समकालीन आर्यभटीय के सूर्योदय की अपेक्षा इसमें मध्यरात्रि-दिवस-गणना का उपयोग किया गया है। इसमे अनेक खगोलीय उपकरणों का वर्णन शामिल है, जैसे कि शंकु-यन्त्र), एक परछाई यन्त्र ( छाया-यन्त्र), संभवतः कोण मापी उपकरण, अर्धवृत्ताकार और वृत्ताकार ( धनुर-यन्त्र / चक्र-यन्त्र), एक बेलनाकार छड़ी यस्ती-यन्त्र, एक छत्र-आकर का उपकरण जिसे छत्र- यन्त्र कहा गया है और कम से कम दो प्रकार ...

आर्यभट्ट की जीवनी

आर्यभट्ट प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलशास्त्री रहे हैं। उनका जन्म 476 ईस्वी में बिहार में हुआ था। उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय से पढाई की। उनके मुख्य कार्यो में से एक “आर्यभटीय” 499 ईस्वी में लिखा गया था। इसमें बहुत सारे विषयो जैसे खगोल विज्ञान, गोलीय त्रिकोणमिति, अंकगणित, बीजगणित और सरल त्रिकोणमिति का वर्णन है। उन्होंने गणित और खगोलविज्ञान के अपने सारे अविष्कारों को श्लोको के रूप में लिखा। इस किताब का अनुवाद लैटिन में 13वीं शताब्दी में किया गया। आर्यभटीय के लैटिन संस्करण की सहायता से यूरोपीय गणितज्ञों ने त्रिभुजो का क्षेत्रफल, गोलीय आयतन की गणना के साथ साथ कैसे वर्गमूल और घनमूल की गणना की जाती है, ये सब सीखा। खगोल विज्ञानं के क्षेत्र में, सर्वप्रथम आर्यभट ने ही अनुमान लगाया था कि पृथ्वी गोलाकार है और ये अपनी ही अक्ष पर घूमती है जिसके फलस्वरूप दिन और रात होते हैं। उन्होंने यह भी निष्कर्ष निकाला था कि चन्द्रमा काला है और वो सूर्य की रोशनी वजह से चमकता है। उन्होंने सूर्य व चंद्र ग्रहण के सिद्धान्तों के विषय में तार्किक स्पष्टीकरण दिये थे। उन्होंने बताया था कि ग्रहणों की मुख्य वजह पृथ्वी और चन्द्रमा द्वारा निर्मित परछाई है। उन्होंने सौर प्रणाली के भूकेंद्रीय मॉडल को प्रस्तुत किया जिसमे उन्होंने बताया कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड के केंद्र में है और उन्होंने गुरुत्वाकर्षण की अवधारणा की नींव भी रखी थी। उन्होंने अपने आर्यभटीय सिघ्रोका में, जो पंचांग ( हिन्दू कैलेंडर ) बनाने में प्रयोग किया जाता था, खगोलीय गणनाओ के तरीको को प्रतिपादित किया था। जो सिद्धान्त कोपर्निकस और गैलीलियो ने प्रतिपादित किये थे उनका सुझाव आर्यभट्ट ने 1500 वर्षो पूर्व ही दे दिया था। गणित के क्षेत्र में...

आर्यभट्ट का गणित में क्या योगदान था?

Table of Contents Show • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • 1 आर्यभट्ट ने गणित में क्या योगदान दिया था? • 2 गणित के क्षेत्र में भारत की क्या देन है *? • 3 आर्यभट्ट ने क्या खोज की थी? • 4 रामानुजन का गणित में क्या योगदान था? आर्यभट्ट ने गणित में क्या योगदान दिया था? इसे सुनेंरोकेंउन्होंने सबसे पहले ‘पाई’ (p) की कीमत निश्चित की और उन्होंने ही सबसे पहले ‘साइन’ (SINE) के ‘कोष्टक’ दिए। गणित के जटिल प्रश्नों को सरलता से हल करने के लिए उन्होंने ही समीकरणों का आविष्कार किया, जो पूरे विश्व में प्रख्यात हुआ। एक के बाद ग्यारह शून्य जैसी संख्याओं को बोलने के लिए उन्होंने नई पद्ध्ति का आविष्कार किया। गणित के क्षेत्र में भारत की क्या देन है *? इसे सुनेंरोकेंगणित के क्षेत्र में भारत उल्लेख (i) आर्यभट्ट ने अक्षरों और संख्याओं के गुणों को दर्शाने के लिए अक्षरों का उपयोग करके स्थान मूल्य प्रणाली पर काम किया। उन्होंने नौ ग्रहों की स्थिति की खोज की और कहा कि ये ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि एक वर्ष में दिनों की सही संख्या 365 है। आर्यभट्ट ने खगोल विज्ञान में क्या योगदान दिया? इसे सुनेंरोकेंआर्यभट्ट एक महान गणितज्ञ और खगोल विज्ञानी थे। उन्होंने ही शून्य के सिद्धांत का आविष्कार किया था। आज जिस क्षेत्र को खगौल नाम से जाना जाता है यहीं पर आर्यभट्ट ने बीजगणित (अलजेबरा), रेखागणित (ज्योमेट्री) और त्रिकोणमिति (ट्रिगोनोमेट्री) के मूल सिद्धांतों की रचना की थी। आर्यभट्ट की विश्व को क्या क्या देन है? इसे सुनेंरोकेंआर्यभट का भारत और विश्व के ज्योतिष सिद्धान्त पर बहुत प्रभाव रहा है। भारत में सबसे अधिक प्रभाव केरल प्रदेश की ज्योतिष परम्परा पर रहा। आर्यभट भारतीय गणितज्ञों में स...

आर्यभट

अनुक्रम • 1 आर्यभट का जन्म-स्थान • 2 कृतियाँ • 2.1 आर्यभटीय • 3 आर्यभट का योगदान • 3.1 गणित • 3.1.1 स्थानीय मान प्रणाली और शून्य • 3.1.2 अपरिमेय (इर्रेशनल) के रूप में π • 3.1.3 क्षेत्रमिति और त्रिकोणमिति • 3.1.4 अनिश्चित समीकरण • 3.1.5 बीजगणित • 3.2 खगोल विज्ञान • 3.2.1 सौर प्रणाली की गतियाँ • 3.2.2 ग्रहण • 3.2.3 नक्षत्रों के आवर्तकाल • 3.2.4 सूर्य केंद्रीयता • 4 विरासत • 5 टिप्प्णियाँ • 6 इन्हें भी देखें • 7 सन्दर्भ • 7.1 अन्य सन्दर्भ • 8 बाहरी कड़ियाँ आर्यभट का जन्म-स्थान यद्यपि आर्यभट के जन्म के वर्ष का दक्षिणापथ या एक ताजा अध्ययन के अनुसार आर्यभट, हालाँकि ये बात काफी हद तक निश्चित है कि वे किसी न किसी समय आर्यभट अपनी खगोलीय प्रणालियों के लिए सन्दर्भ के रूप में [ कृतियाँ आर्यभट द्वारा रचित तीन ग्रंथों की जानकारी आज भी उपलब्ध है। दशगीतिका, उन्होंने उनकी प्रमुख कृति, आर्यभटीय, गणित और खगोल विज्ञान का एक संग्रह है, जिसे भारतीय गणितीय साहित्य में बड़े पैमाने पर उद्धृत किया गया है और जो आधुनिक समय में भी अस्तित्व में है। आर्यभटीय के गणितीय भाग में अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति शामिल हैं। इसमे आर्य-सिद्धांत, खगोलीय गणनाओं पर एक कार्य है जो अब लुप्त हो चुका है, इसकी जानकारी हमें आर्यभट के समकालीन आर्यभटीय के सूर्योदय की अपेक्षा इसमें मध्यरात्रि-दिवस-गणना का उपयोग किया गया है। इसमे अनेक खगोलीय उपकरणों का वर्णन शामिल है, जैसे कि शंकु-यन्त्र), एक परछाई यन्त्र ( छाया-यन्त्र), संभवतः कोण मापी उपकरण, अर्धवृत्ताकार और वृत्ताकार ( धनुर-यन्त्र / चक्र-यन्त्र), एक बेलनाकार छड़ी यस्ती-यन्त्र, एक छत्र-आकर का उपकरण जिसे छत्र- यन्त्र कहा गया है और कम से कम दो प्रकार ...

आर्यभट्ट का जीवन परिचय Biography Of Aryabhatta In Hindi

इस पोस्ट Biography Of Aryabhatta In Hindi में आर्यभट्ट का जीवन परिचय (Aryabhatta Ki Jivani) जानने का प्रयास करेंगे। आर्यभट्ट प्राचीन भारत के महान गणितज्ञ थे। आर्यभट ने Aryabhatta In Hindi आर्यभट्ट की जीवनी Biography Of Aryabhatta In Hindi – आर्यभट्ट का जन्म 476 ईसवी में कुसुमपुर में हुआ था। इस स्थान का जिक्र आर्यभट्टीय ग्रन्थ में है। वेसे आर्यभट के जन्मस्थान के बारे में विरोध भी है। कुछ इतिहासकारो का मानना है कि आर्यभट्ट का जन्म महाराष्ट्र के अश्मक में हुआ था। आर्यभट ने अपने जीवन मे कई ग्रन्थो की रचना की थी। इनमे आर्यभट्टीय, दशगीतिका, तंत्र प्रमुख थे। आर्य सिद्धांत नामक ग्रन्थ भी आर्यभट की रचना है लेकिन यह एक विलुप्त ग्रन्थ है। आर्यभट्टीय ग्रन्थ में घनमूल, वर्गमूल, गणित का वर्णन है। आर्यभट ने इस ग्रन्थ में गणित और खगोल को समाहित किया और समझाया। इसमे अंकगणित, बीजगणित, त्रिकोणमिति जैसी गणित को बताया गया है। आर्यभट्टीय ग्रन्थ में कुल चार अध्याय है – गितिकपाद, गणितपाद, गोलपाद और कालक्रियापाद। इस ग्रन्थ में 108 छंद है। आर्यभट्ट को ज्योतिष का भी ज्ञान रहा था। उन्होंने अपने ग्रन्थो में ज्योतिष के बारे में भी लिखा था। आर्यभट को ज्योतिष विज्ञान का जनक भी कह सकते है। आर्यभट्ट का अंतरिक्ष विज्ञानं में योगदान Aryabhatta Ki Jivani गोलपाद नामक ग्रन्थ में आर्यभट्ट ने बताया कि आर्यभट्ट का यह मानना था कि चन्द्रमा और अन्य ग्रह आर्यभट्ट ने बताया कि ग्रहण होने का मुख्य कारण पृथ्वी पर पड़ने वाली या पृथ्वी की छाया होती है। उन्होंने बताया कि सूर्यग्रहण तब होता है जब पृथ्वी और सूर्य के बीच चन्द्रमा आ जाये। तब हमें सूर्य नही दिखाई पड़ता है। चन्द्रग्रहण में सूर्य और आर्यभट्ट का विश्वास था कि काल अनाद...

गणितज्ञ आर्यभट्ट का जीवन परिचय

Aryabhatta Biography in Hindi: आर्यभट्ट प्राचीन भारत के सबसे महान गणितज्ञ तथा खगोलशास्त्रियों में से एक थे। आज के समय में भी दुनियाभर के वैज्ञानिकों के लिए आर्यभट्ट प्रेरणा के स्रोत हैं। आर्यभट्ट खगोलशास्त्र तथा गणित के अलावा वे ज्योतिषविद भी थे। आर्यभट्ट की गिनती भास्कराचार्य, कमलाकर, वराहमिहिर तथा Image: Aryabhatta Biography in Hindi सबसे पहले आर्यभट्ट ने ही बीजगणित का प्रयोग किया था तथा उन्होंने अपनी प्रसिद्ध रचना “आर्यभट्टीका” (जो कि एक गणित की पुस्तक है) को कविता के रूप में लिखा था। आर्यभट्ट द्वारा लिखी हुई गणित की पुस्तक “आर्यभटीका” भारत के प्राचीन पुस्तकों में सबसे चर्चित पुस्तक है। आर्यभट्ट का जीवन परिचय | Aryabhatta Biography in Hindi विषय सूची • • • • • • • आर्यभट्ट का जन्म आर्यभट्ट का जन्म महाराष्ट्र के अशवमा क्षेत्र में सन् 456 ईसवी को हुआ था। आर्यभट्ट नालंदा विश्वविद्यालय में कार्य किया करते थे, उन्होंने अपने जीवन काल में खगोल, ज्योतिष तथा गणित की अनेक सारी रचनाएं लिखी और इस विषय में अपना एक विशेष योगदान दिया। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारत के आर्यभट्ट ने विश्व में सबसे पहले “पाई” एवं शून्य की खोज की थी। आर्यभट्ट की प्रमुख रचनाएं “आर्यभटीय व आर्यभट्ट सिद्धांत” है। आर्यभट्ट ने सन 550 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। आर्यभट्ट का प्रारंभिक जीवन आर्यभट्ट के जन्म स्थान को लेकर कई बातें होती है, जिसमें कुछ लोग महाराष्ट्र तथा कुछ लोग बिहार को उनका जन्म स्थान बताते हैं।‌ परंतु आर्यभट्ट ने अपने द्वारा लिखित ग्रंथ आर्यभट्टीका में अपना जन्म स्थान “कुसुमपुरा” बताया है। आर्यभट्ट के जन्म के समय कुसुमपुरा जो आज “पाटलिपुत्र” के नाम से जाना जाता है। यहां पर हिंदू और बौद...

Aryabhatta Biography In Hindi

आर्यभट्ट की जीवनी इन हिंदी Aryabhatta Biography in Hindi Aryabhatta Life History in Hindi 🇮🇳 आर्यभट्ट की जीवनी इन हिंदी (Aryabhatta Biography in Hindi) class 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए और अन्य विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए लिखा गया है। शून्य की खोज करने वाले आर्यभट्ट (Aryabhatta who Invented Zero) शून्य और पाई के मान जैसी अद्भुत खोज करने वाले आर्यभट्ट को भला कौन नहीं जानता। ये आज के वैज्ञानिकों के लिए एक बहुत बड़ी प्रेरणा हैं। आर्यभट्ट प्राचीन समय के प्रसिद्ध खगोलशास्त्रियों, ज्योतिषविद व गणितज्ञों में से एक थें। उन्होंने अधिक साधन उपलब्ध न होने पर भी विज्ञान के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने इस बात का पता पहले ही लगा लिया था कि पृथ्वी गोल है और यह अपनी धुरी पर घूमती है तथा सूर्य व चंद्रमा की परिक्रमा करती है। आर्यभट्ट की प्रसिद्ध रचना आर्यभटिया में इनके जीवन और इनके कार्यों के बारे में विस्तार से जानकारी मिलती है। आइए इस पोस्ट में हम आपको आर्यभट्ट के बारे में और भी जानकारी देते हैं। आर्यभट्ट की जीवनी इन हिंदी – Aryabhatta who Invented Zero Biography in Hindi Language :- आर्यभट्ट का जन्म (When and Where was Aryabhata Born) : आर्यभट्ट के जन्म और जन्म स्थान के बारे में कोई सही जानकारी तो उपलब्ध नहीं है। लेकिन इनके जन्म से संबंधित कई अनुमान जरूर लगाए जा चुके हैं। उन अनुमान के अनुसार यह कहा जाता है कि गौतमबुद्ध के समय पर अश्मक देश के कुछ लोग मध्य भारत में नर्मदा नदी व गोदावरी नदी के बीच आकर बस गए थे। और मान्यताओं के अनुसार आर्यभट्ट का जन्म दिसंबर, ई.स.476 में उसी स्थान पर हुआ था। वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार यह भी...

आर्यभट्ट की जीवनी

आर्यभट्ट प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलशास्त्री रहे हैं। उनका जन्म 476 ईस्वी में बिहार में हुआ था। उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय से पढाई की। उनके मुख्य कार्यो में से एक “आर्यभटीय” 499 ईस्वी में लिखा गया था। इसमें बहुत सारे विषयो जैसे खगोल विज्ञान, गोलीय त्रिकोणमिति, अंकगणित, बीजगणित और सरल त्रिकोणमिति का वर्णन है। उन्होंने गणित और खगोलविज्ञान के अपने सारे अविष्कारों को श्लोको के रूप में लिखा। इस किताब का अनुवाद लैटिन में 13वीं शताब्दी में किया गया। आर्यभटीय के लैटिन संस्करण की सहायता से यूरोपीय गणितज्ञों ने त्रिभुजो का क्षेत्रफल, गोलीय आयतन की गणना के साथ साथ कैसे वर्गमूल और घनमूल की गणना की जाती है, ये सब सीखा। खगोल विज्ञानं के क्षेत्र में, सर्वप्रथम आर्यभट ने ही अनुमान लगाया था कि पृथ्वी गोलाकार है और ये अपनी ही अक्ष पर घूमती है जिसके फलस्वरूप दिन और रात होते हैं। उन्होंने यह भी निष्कर्ष निकाला था कि चन्द्रमा काला है और वो सूर्य की रोशनी वजह से चमकता है। उन्होंने सूर्य व चंद्र ग्रहण के सिद्धान्तों के विषय में तार्किक स्पष्टीकरण दिये थे। उन्होंने बताया था कि ग्रहणों की मुख्य वजह पृथ्वी और चन्द्रमा द्वारा निर्मित परछाई है। उन्होंने सौर प्रणाली के भूकेंद्रीय मॉडल को प्रस्तुत किया जिसमे उन्होंने बताया कि पृथ्वी ब्रह्माण्ड के केंद्र में है और उन्होंने गुरुत्वाकर्षण की अवधारणा की नींव भी रखी थी। उन्होंने अपने आर्यभटीय सिघ्रोका में, जो पंचांग ( हिन्दू कैलेंडर ) बनाने में प्रयोग किया जाता था, खगोलीय गणनाओ के तरीको को प्रतिपादित किया था। जो सिद्धान्त कोपर्निकस और गैलीलियो ने प्रतिपादित किये थे उनका सुझाव आर्यभट्ट ने 1500 वर्षो पूर्व ही दे दिया था। गणित के क्षेत्र में...