अजमेर के चौहानों को किस नाम से जाना जाता है

  1. [Solved] निम्नलिखित में से किस शासक के अधीन दिल्ली सबस�
  2. ऐतिहासिक अजमेर
  3. मकर संक्रान्ति:कई जगह अलग
  4. राजस्थान के राजवंश Question
  5. राजस्थान के अभिलेख
  6. Ajmer Ke Chouhan
  7. अजमेर के चौहान/सांभर के चौहान/शाकम्भरी के चौहान
  8. चौहान वंश (अजमेर के चौहान)
  9. अजमेर
  10. चौहान वंश (अजमेर के चौहान)


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[Solved] निम्नलिखित में से किस शासक के अधीन दिल्ली सबस�

सही उत्‍तर तोमारराजपूत है । Key Points • बारहवीं शताब्दी के मध्य में अजमेर के चौहानों (जिन्हें चाहमानों के नाम से भी जाना जाता है) द्वारा पराजित तोमर राजपूतों ने दिल्ली को एक राज्य की राजधानी के रूप में स्थापित किया। • तोमरऔर चौहानों के समय में दिल्ली का एक व्यापारिक केंद्र के रूप में महत्व बढ़ गया। • यह शहर कई धनी जैन व्यापारियों का घर था जिन्होंने कई मंदिरों का निर्माण किया था। • देहलीवाल के सिक्के, जो यहाँ बने थे, व्यापक रूप से प्रचलन में थे। • तेरहवीं शताब्दी की शुरुआत में दिल्ली सल्तनत के निर्माण ने दिल्ली को एक ऐसे शहर में बदलना शुरू कर दिया जो उपमहाद्वीप के व्यापक क्षेत्रों पर शासन करता था। Important Points • चौहान गुर्जर-प्रतिहारों के सामंत थे, जिन्होंने राजस्थान की लड़ाई के दौरान नागभट्ट प्रथम को हराने और अरब आक्रमणों से सीमाओं की रक्षा करने में मदद की। • शाकंभरी के चौहान राजा अजयराज चौहान ने अजयमेरु शहर की स्थापना की, जो बाद में अजमेर के नाम से जाना जाने लगा। • गुलाम वंश का तीसरा और सबसे बड़ा दिल्ली सुल्तान इल्तुतमिश था। इल्तुतमिश को गुलामी में बेच दिया गया था, लेकिन उसने 1211 में अपने मालिक कुतुब उद-दीन ऐबक की बेटी से शादी कर ली। • 1290 से 1320 के बीच, खिलजी वंश ने दिल्ली सल्तनत पर शासन किया, जिसमें भारतीय उपमहाद्वीप के महत्वपूर्ण क्षेत्र शामिल थे।

ऐतिहासिक अजमेर

हेरिटेज डे पर विशेष -तेजवानी गिरधर- अरावली पर्वतमाला की उपत्यका में बसी इस ऐतिहासिक अजमेर नगरी की धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक दृष्टि से विशिष्ट पहचान है। जगतपिता ब्रह्मा की यज्ञ स्थली तीर्थराज पुष्कर और महान सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती को अपने आंचल में समेटे इस नगरी को पूरे विश्व में सांप्रदायिक सौहाद्र्र की मिसाल के रूप में जाना जाता है। यहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, पारसी, बौद्ध और आर्य समाज का अनूठा संगम है। यही वजह है कि इसे राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में भी जाना जाता है। पिछले कुछ सालों में नारेली स्थित ज्ञानोदय दिगम्बर जैन तीर्थ स्थल और साईं बाबा मंदिर के निर्माण के साथ ही इसका सांस्कृतिक वैभव और बढ़ा है। इसके अतिरिक्त सरकार ने इसे हेरिटेज और स्मार्ट सिटी बनाने की कवायद भी शुरू कर दी है। इस मौके पर पेश है एक रिपोर्ट, जिसमें अजमेर के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों की जानकारी दी जा रही है:- दरगाह ख्वाजा साहब अजमेर में रेलवे से दो किलोमीटर दूर अंतर्राष्टीय ख्याति प्राप्त सांप्रदायिक सौहार्द्र की प्रतीक सूफी संत ख्वाजा मोहनुद्दीन हसन चिश्ती (1143-1233 ईस्वी) की दरगाह है। इस्लाम को मानने वाले मक्का के बाद इसको सबसे पवित्र मानते हैं। वैसे देश-विदेश से आने वाले जायरीन में हिंदुओं की संख्या ज्यादा रहती है। गरीब नवाज के नाम से प्रसिद्ध ख्वाजा साहब की मजार को मांडू के सुल्तान ग्यासुद्दीन खिलजी ने सन् 1464 में पक्का करवाया था। मजार शरीफ के ऊपर आकर्षक गुम्बद है, जिसे शाहजहां ने बनवाया। उस पर खूबसूरत नक्काशी का काम सुलतान महमूद बिन नसीरुद्दीन ने करवाया। गुम्बद पर सुनहरी कलश है। मजार शरीफ के चारों ओर कटहरे बने हुए हैं। एक कटहरा बादशाह जहांगीर ने 1616 में लगवाया थ...

मकर संक्रान्ति:कई जगह अलग

मकर संक्रान्ति एक ऐसा त्यौहार है जो पूरे भारत देश में मनाया जाता है। लेकिन अलग-अलग जगहों पर इस पर्व को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इस त्यौहार को पौष मास में जब सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है तब मनाया जाता है। यह पर्व जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन पर पड़ता है। इसी दिन से सूर्य की उत्तरायण गति भी शुरू होती है। जिस वजह से इस त्यौहार को कहीं जगह पर उत्तरायणी भी कहा जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार मकर संक्रान्ति साल का पहला त्यौहार होता है। यह ज्यादातर हर राज्य में मनाया जाता है बस अलग अलग नाम से। यहां तक की यह त्यौहार कई पड़ोसी देशों में भी मनाया जाता है। तमिलनाडु में इस त्यौहार को पोंगल नाम से मनाते हैं तो कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति कहते हैं। आगे की स्लाइड्स में जानें दूसरे शहरों में इस त्यौहार को किस नाम से और कैसे मनाया जाता है। पौष संक्रान्ति बंगाल में इस पर्व को पौष संक्रान्ति के नाम से मनाया जाता है। इस दिन यहां स्नान करके तिल दान करने की प्रथा है। यहां गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है। कहा जाता है इसी दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। इस दिन लाखों लोगों की भीड़ गंगासागर में स्नान-दान के लिये जाते हैं। मकर संक्रमण कर्नाटक में मकर-सक्रांति को मकर संक्रमण कहते हैं। यहां भी फ़सल का त्योहार शान से मनाया जाता है। इस अवसर पर बैलों और गायों को सजाकर उनकी शोभा यात्रा निकाली जाती है। इस पर्व पर पंतगबाज़ी लोकप्रिय परम्परागत खेल है। लोहड़ी यह त्‍योहार हरियाणा और पंजाब में एक दिन पहले लोहड़ी के नाम से मनाया जाता है। इस दिन अँधेरा होते ही आग जलाकर पूजा करत...

राजस्थान के राजवंश Question

प्रश्न 1राजस्थान के प्रत्येक राज्य में महकमा बकायत (Mahakma Bagoit) होता था, जो - (अ)अच्छी फसल के समय शेष राजस्व वसूलता था। (ब)सरकारी कर्मचारियों की बकाया संग्रह करता था। (स)राजाओं के लिए ऋण संग्रह करता था। (द)राजा के बकायों का भुगतान करता था। उत्तर SHOW ANSWER प्रश्न 2अकबर द्वारा मानसिंह को निम्नलिखित किन मुगल प्रांतों का सुबेदार (राज्यपाल) नियुक्त किया गया था - (a) काबुल (b) गुजरात (c) बिहार (d) बंगाल नीचे दिए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए - (अ)a और d (ब)c और d (स)b, c और d (द)a, c और d उत्तर SHOW ANSWER प्रश्न 3लाटा अथवा लाटाई क्या था - (अ)भू-राजस्व व्यवस्था, जिसमें भुगतान नकद होता था। (ब)भू-राजस्व व्यवस्था, जिसमें भुगतान फसल के रूप में होता था। (स)राज्य द्वारा ली जाने वाली एक प्रकार की बेगार। (द)सामंत द्वारा अधिरोपित एक प्रकार का उपकर। उत्तर SHOW ANSWER प्रश्न 4निम्नलिखित में से किस राजपूत शासक ने मुगल बादशाह के खिलाफ विद्रोह किया - (अ)बीकानेर के महाराजा अनूपसिंह (ब)मारवाड़ के महाराजा जसवंतसिंह (स)मेवाड़ के महाराणा राजसिंह (द)आमेर के महाराजा बिशनसिंह उत्तर SHOW ANSWER प्रश्न 5राजस्थान के निम्नलिखित युद्धों पर विचार कीजिए : (i) गिंगोली का युद्ध (ii) सारंगपुर का युद्ध (iii) मतीरे की राड़ (iv) दत्ताणी का युद्ध इन युद्धों का सही कालानुक्रम है : (अ)(i), (iv), (iii), (ii) (ब)(ii), (iv), (iii), (i) (स)(i), (ii), (iii), (iv) (द)(i), (ii), (iv), (iii) उत्तर SHOW ANSWER प्रश्न 6मध्यकालीन मारवाड़ में शासक के बाद सर्वोच्च अधिकारी कौन था - (अ)दीवान (ब)प्रधान (स)मुसाहिब (द)अमात्य उत्तर SHOW ANSWER प्रश्न 7गागरोण का युद्ध किसके मध्य लड़ा गया - (अ)महमूद खलजी – I और ईडर का रायमल (ब)...

राजस्थान के अभिलेख

पुरातात्विक स्रोतों के अंतर्गत अभिलेख एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं इसका मुख्य कारण उनका तिथि युक्त एवं समसामयिक होना है जिन अभिलेखों में मात्र किसी शासक की उपलब्धियों का यशोगान होता है उसे प्रशस्तिकहते हैं अभिलेखों के अध्ययन को एपिग्राफी कहते हैं अभिलेखों में शिलालेख, स्तंभ लेख, गुहालेख, मूर्ति लेखइत्यादि आते हैं भारत में सबसे प्राचीन अभिलेख अशोक मौर्य के हैं शक शासक रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख भारत में संस्कृत का पहला अभिलेख है राजस्थान के अभिलेखों की मुख्य भाषा संस्कृत एवं राजस्थानी है इनकी शैली गद्य-पद्य है तथा लिपि महाजनी एवं हर्ष कालीन है लेकिन नागरी लिपि को विशेष रूप से काम में लिया जाता है राजस्थान में प्राप्त हुए 162 शिलालेख की सँख्या है इनका वर्णन ”वार्षिक रिपोर्ट राजपुताना अजमेर “ में प्रकाशित हो चुका है ! राजस्थान में पुरातात्विक सर्वेक्षण का कार्य सर्वप्रथम 1871 ई. में ए. सी.एल. कार्माइस प्रारंभ किया – 1. बड़ली का शिलालेख अजमेर जिले के बड़ली गांव में 443 ईसवी पूर्व का शिलालेख वीर सम्वत 84 और विक्रम सम्वत 368 का है यह अशोक से भी पहले ब्राह्मी लिपि का है। स्थानीय आख्यानो के अनुसार पद्मसेन बरलीका समृद्ध राजा था जिसने अजमेर की तलहटी में बीद्मावती नगरी इन्दरकोट बसाया था ।अजमेर जिले में 27 km दूर बङली गाँव में भिलोत माता मंदिर से स्तंभ के टुकडो से प्राप्त हुआ। राजस्थान तथा ब्राह्मी लिपि का सबसे प्राचीन शिलालेख है यह अभिलेख गौरीशंकर हीराचंद ओझा को भिलोत माता के मंदिर में मिला था यह राजस्थान का सबसे प्राचीन अभिलेख है जो वर्तमान में अजमेर संग्रहालय में सुरक्षित है अजमेर के साथ मद्यामिका[ चित्तोड] में जैन धर्म के प्रसार का उल्लेख। 2. घोसुंडी शिलालेख (द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व...

Ajmer Ke Chouhan

Table of Contents • • • • • • • • • चौहानों की उत्पत्ति को लेकर निम्न मत हैं। • पृथ्वीराज रासौ में इन्हें ‘ अग्निकुण्ड‘ से उत्पन्न बताया है, जो ऋषि वशिष्ठ द्वारा आबू पर्वत पर किये गये यज्ञ से उत्पन्न हुए चार राजपूत योद्धाओं- प्रतिहार, परमार, चालुक्य एवं चौहानों, में से एक थे। • मुहणोत नैणसी एवं सूर्यमल मिश्रण ने भी इसी मत का समर्थन किया है। • पं. गौरीशंकर ओझा चौहानों को सूर्यवंशी मानते हैं तो कर्नल टॉड ने इन्हें विदेशी ( मध्य एशिया ) माना है। • पृथ्वीराज विजय, हम्मीर महाकाव्य, सुर्जन चरित आदि ग्रन्थों तथा चौहान प्रशस्ति पृथ्वीराज तृतीय का बेदला शिलालेख आदि में भी चौहानों को सूर्य वंशी बताया गया है। • डॉ. दशरथ शर्मा बिजोलिया लेख के आधार पर चौहानों को ब्राह्मण वंश से उत्पन्न बताते हैं। • 1177 ई. का हाँसी शिलालेख एवं माउण्ट आबू के चंद्रवती के चौहानों का अचलेश्वर मंदिर का लेख चौहानों को चंद्रवंशी बताता है। • विलियम क्रूक ने अग्निकुण्ड से उत्पत्ति को किसी विदेशी जाति के लोगों को यहाँ अग्निकुण्ड के समक्ष पवित्र कर हिन्दू जाति में शामिल करना बताया है। • अभी तक भी इस संबंध में कोई एक मत प्रतिपादित नहीं हो पाया है। वासुदेव चौहान – • चौहानों का मूल स्थान जांगलदेश में सांभर के आसपास सपादलक्ष क्षेत्र को माना जाता है। • इनकी प्रारंभिक राजधानी अहिछत्रपुर (नागौर) थी। • बिजोलिया शिलालेख के अनुसार सपादलक्ष के चौहान वंश का संस्थापक वासुदेव चौहान नामक व्यक्ति था। • वासुदेव चौहान ने 551 ई. के आसपास इस वंश का शासन प्रारंभ किया। • बिजोलिया शिलालेख के अनुसार सांभर झील का निर्माण भी इसी ने करवाया था। • इसी के वंशज अजयपाल ने 7वीं शती में सांभर कस्बा बसाया तथा अजयमेरु दुर्ग की स्थापना की थी। विग्रह...

अजमेर के चौहान/सांभर के चौहान/शाकम्भरी के चौहान

अजमेर के चौहान वंश का इतिहास : आज की इस पोस्ट में अजमेर के चौहान/सांभर के चौहान/शाकम्भरी के चौहान के इतिहास से सम्बंधित महत्वपूर्ण लेख लिखा गया है। इसमें आप सभी द्वारा अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न शाकम्भरी के चौहान वंशज Trick PDF Download,चौहान वंश के प्रमुख शासकों के नाम, चौहान वंश गौत्र, चौहान वंश की कुलदेवी, संस्थापक, वंशावली आदि से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी दी गयी है। शाकम्भरी के चौहान - चौहान काल की जानकारी बिजौलिया शिलालेख देता है, जिसके अनुसार चौहान वत्स ऋषि वंशज है। चंदरबरदाई, मुहणौत नैणसी एवं सूर्यमल्ल मिश्रण के अनुसार चौहान की उत्पति आबू पर्वत पर गुरु वशिष्ठ के अग्निकुंड से हुई है, जिससे चार राजपूत योद्धाओं - प्रतिहार, परमार, चालुक्य तथा चौहान अग्निकुंड से पैदा हुए थे। कर्नल जेम्स टॉड, स्मिथ तथा कुक चौहानों को विदेशी बताते है। हम्मीर महाकाव्य, ओझा, हम्मीर रासौ के अनुसार चौहान सूर्यवंशी है। चौहानों का मूल स्थान सपादलक्ष माना जाता है, तो चौहानों की प्रथम राजधानी 'अहिछत्रपुर' (नागौर) थी। सबसे पहले चौहानों का हंसोट शिलालेख पाया गया। • वासुदेव चौहान ने 551 ई० में साँभर (सपादलक्ष) में चौहान वंश की स्थापना की। इसलिए इन्हें 'चौहानों का आदि पुरुष' कहते हैं। • सांभर झील के आस-पास के क्षेत्र को सपादलक्ष क्षेत्र कहा जाता है, इसकी राजधानी अहिच्छत्रपुर(नागौर) थी। • सोमेश्वर द्वारा निर्मित बिजौलिया शिलालेखानुसार साँभर झील का निर्माण वासुदेव ने करवाया, वास्तविकता में यह झील प्राकृतिक है। • अर्णोराज ने तुर्कों को पराजित करके 1137 ई० में आनासागर झील का निर्माण किया था। • अर्णोराज ने पुष्कर में वराह मन्दिर का निर्माण करवाया था। • अर्णोराज को गुजरात केचालुक्य शासक कुमारपाल ने आबू क...

चौहान वंश (अजमेर के चौहान)

-जगदेव चौहानो का पितृहन्ता कहलाता है। 8. विग्रहराज-चतुर्थ (1158-1163 ई.)- - विग्रहराज-चतुर्थ बिसलदेव के नाम से जाना जाता है। - विग्रहराज-चतुर्थ ने दिल्ली पर अधिकार किया उस समय दिल्ली का शासक तवर तौमर था। -दिल्ली पर अधिकार करते समय विग्रहराज-चतुर्थ द्वारा जयचन्द के पिता विजयचन्द की हत्या कर दि गयी। - विग्रहराज-चतुर्थ के समय इस विजय का उल्लेख पृथ्वीराज विजय मे मिलता है। - विग्रहराज-चतुर्थ ने गजनी के शासक अमीर खुसरव शाह को पराजित किया और पंजाब, मुल्तान, हिसार पर अधिकार कर लिया। -गजनी विजय का उल्लेख ललितराज विग्रह मे मिलता है। - विग्रहराज-चतुर्थ के दरबारी कवि सोमदेव के द्वारा ललितराज विग्रह नाट्क कि रचना कि गई जो की संस्कृत भाषा मे है। - विग्रहराज-चतुर्थ प्रथम चौहान शासक है। जिसने दिल्ली पर अधिकार किया था। -नरपती नाल्ह द्वारा विग्रहराज-चतुर्थ पर बिसलदेव रासो लिखा गया। - विग्रहराज-चतुर्थ के शासन कि जानकारी/राज्य विस्तार शिवालेख अभिलेख मे मिलता है। - विग्रहराज-चतुर्थ द्वारा टोंक मे बिसलपुर नगर/कस्बा बसाया गया जो कि वर्तमान मे टोडारायसिंह नगर कहलाता है। - विग्रहराज-चतुर्थ ने टोंक मे ही बिसलपुर बांध का निर्माण करवाया। - विग्रहराज-चतुर्थ और चालुक्य शासक कुमारपाल- - विग्रहराज-चतुर्थ चौहानो का प्रथम शासक था जिसने चालुक्य शासक कुमारपाल को पराजित करके नागौर, पाली, जालौर और सिरोही पर अधिकार कर लिया। - विग्रहराज-चतुर्थ को पृथ्वीराज विजय के रचियता जयानक ने अपने ग्रंथ मे कवि बांध्व कि उपाधि प्रदान कि है। - विग्रहराज-चतुर्थ ने हरिकेली नाट्क लिखा। - विग्रहराज-चतुर्थ ने सरस्वती कण्ठाभरण विधालय कि स्थापना अजमेर मे करवायी। -इसी विधालय कि दिवार पर हरिकेली नाट्क कि कुछ पंक्तिया अंकित है। -सरस्वती...

अजमेर

राजस्थान में स्थिति निर्देशांक: 26°26′42″N 74°43′05″E / 26.445°N 74.718°E / 26.445; 74.718 26°26′42″N 74°43′05″E / 26.445°N 74.718°E / 26.445; 74.718 देश संस्थापक अजयराज प्रथम या अजयराज द्वितीय नाम स्रोत अजयराज प्रथम या अजयराज द्वितीय शासन •सभा अजमेर विकास प्राधिकरण (ADA), अजमेर नगर निगम (AMC) क्षेत्रफल •कुल 55किमी 2 (21वर्गमील) ऊँचाई 480मी (1,570फीट) जनसंख्या (2011) •कुल 5,42,321 •घनत्व 9,900किमी 2 (26,000वर्गमील) भाषा •प्रचलित 305001 से 305023 दूरभाष कोड +91-145 RJ-01 वेबसाइट .ajmer .rajasthan .gov .in अजमेर (Ajmer) 1236 ईस्वी में निर्मित, तीर्थस्थल ख्वाजा मोइन-उद दीन चिश्ती, एक प्रसिद्ध फारसी सुफी संत को समर्पित है। अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह के खादिम भील पूर्वजों के वंशज हैं। 12 वीं सदी की कृत्रिम झील आना सागर एक और पसंदीदा पर्यटन स्थल है जिसका महाराजा अर्नोराज द्वारा निर्माण करवाया गया था। अजमेर दुनिया के सबसे पुराने पहाड़ी किलों में से एक है – तारागढ़ किला जो चौहान राजवंश की सीट थी। अजमेर जैन मंदिर (जो सोनजी की नसीयाँ के नाम से भी जाना जाता है) अजमेर में एक और पर्यटन स्थल है। तबीजी में यहां पर देश के प्रथम बीजीय मशाला अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई। अजमेर को भारत का मक्का, अंडो की टोकरी, राजस्थान का हृदय आदि उपनाम से जाना जाता है। उन्नत नस्ल की मुर्गी सर्वाधिक अजमेर में ही पाई जाती है । लाल्या काल्या का मेला उर्स पुस्कर का मेला प्रसिद्द मेले है। इतिहास [ ] अजमेर को मूल रूप से अजयमेरु के नाम से जाना जाता था। इस शहर की स्थापना ११वीं सदी के चहमण राजा अजयदेव ने की थी। इतिहासकार एक बाद के पाठ प्रबंध-कोश में कहा गया है कि यह 8 वीं शताब्दी के राजा अजय...

चौहान वंश (अजमेर के चौहान)

-जगदेव चौहानो का पितृहन्ता कहलाता है। 8. विग्रहराज-चतुर्थ (1158-1163 ई.)- - विग्रहराज-चतुर्थ बिसलदेव के नाम से जाना जाता है। - विग्रहराज-चतुर्थ ने दिल्ली पर अधिकार किया उस समय दिल्ली का शासक तवर तौमर था। -दिल्ली पर अधिकार करते समय विग्रहराज-चतुर्थ द्वारा जयचन्द के पिता विजयचन्द की हत्या कर दि गयी। - विग्रहराज-चतुर्थ के समय इस विजय का उल्लेख पृथ्वीराज विजय मे मिलता है। - विग्रहराज-चतुर्थ ने गजनी के शासक अमीर खुसरव शाह को पराजित किया और पंजाब, मुल्तान, हिसार पर अधिकार कर लिया। -गजनी विजय का उल्लेख ललितराज विग्रह मे मिलता है। - विग्रहराज-चतुर्थ के दरबारी कवि सोमदेव के द्वारा ललितराज विग्रह नाट्क कि रचना कि गई जो की संस्कृत भाषा मे है। - विग्रहराज-चतुर्थ प्रथम चौहान शासक है। जिसने दिल्ली पर अधिकार किया था। -नरपती नाल्ह द्वारा विग्रहराज-चतुर्थ पर बिसलदेव रासो लिखा गया। - विग्रहराज-चतुर्थ के शासन कि जानकारी/राज्य विस्तार शिवालेख अभिलेख मे मिलता है। - विग्रहराज-चतुर्थ द्वारा टोंक मे बिसलपुर नगर/कस्बा बसाया गया जो कि वर्तमान मे टोडारायसिंह नगर कहलाता है। - विग्रहराज-चतुर्थ ने टोंक मे ही बिसलपुर बांध का निर्माण करवाया। - विग्रहराज-चतुर्थ और चालुक्य शासक कुमारपाल- - विग्रहराज-चतुर्थ चौहानो का प्रथम शासक था जिसने चालुक्य शासक कुमारपाल को पराजित करके नागौर, पाली, जालौर और सिरोही पर अधिकार कर लिया। - विग्रहराज-चतुर्थ को पृथ्वीराज विजय के रचियता जयानक ने अपने ग्रंथ मे कवि बांध्व कि उपाधि प्रदान कि है। - विग्रहराज-चतुर्थ ने हरिकेली नाट्क लिखा। - विग्रहराज-चतुर्थ ने सरस्वती कण्ठाभरण विधालय कि स्थापना अजमेर मे करवायी। -इसी विधालय कि दिवार पर हरिकेली नाट्क कि कुछ पंक्तिया अंकित है। -सरस्वती...