अक्षय वट वृक्ष किस नगर में स्थित है

  1. अक्षय वट – तीर्थ नगरी शुक्रताल
  2. Akshay vat Prayagraj
  3. ये चार चमत्कारिक वट वृक्ष, नहीं होते कभी नष्ट । holy tree of hinduism
  4. ये चार चमत्कारिक वट वृक्ष, नहीं होते कभी नष्ट । holy tree of hinduism
  5. तीर्थराज प्रयाग का अमरवृक्ष अक्षयवट – Dharmdhara
  6. महाभारत कालीन है शुक्रताल का प्राचीन अक्षय वट वृक्ष


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अक्षय वट – तीर्थ नगरी शुक्रताल

अक्षय वट वृक्ष लगभग 5100 वर्ष पुराना चमत्कारी वृक्ष है l जिसकी शाखाएं 150 फीट की ऊंची व विशाल हैं l ऐसा मन जाता है कि इस दिव्या वृक्ष के नीचे बैठकर ऋषि सुखदेव ने ७ दिन तक अर्जुन के पोते, रजा परीक्षित तथा ऋषि मुनियों को श्रीमद भगवत पूरण की कथा सुनाई थी l इसी करना से यह वृक्ष देवत्व, सत्य, क्षमा और पवित्रता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। पौराणिक वट वृक्ष के बारे में मान्यता है कि पतझड़ के दौरान इसका एक भी पत्ता सूखकर जमीन पर नहीं गिरता अर्थात इसके पत्ते कभी सूखते नहीं है और इसका एक विशेष गुण यह भी है कि इस विशाल वृक्ष में कभी जटाएं उत्पन्न नहीं हुई। भक्तजन इस वृक्ष की परिक्रमा कर अपनी कामनाएं पूरी करने के लिए चारों ओर एक लाल धागा बांधते है।

Akshay vat Prayagraj

अक्षय वट इलाहाबाद अक्षय वट इलाहाबाद ( प्रयागराज ) में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहां पर आपको एक प्राचीन वटवृक्ष देखने के लिए मिलता है। वट वृक्ष का मतलब होता है बरगद का पेड़ । इस वट वृक्ष को ही अक्षय वट के नाम से जाना जाता है। अक्षय वट का अर्थ होता है, कि कभी नष्ट नहीं होने वाला वटवृक्ष। यह वटवृक्ष आज भी हरा-भरा आपको देखने के लिए मिलेगा। यह वटवृक्ष सतयुग में भी उपस्थित था और सतयुग में इस वटवृक्ष के नीचे श्री राम जी ने विश्राम किया था। द्वापर युग में इस वट वृक्ष के नीचे श्री कृष्ण जी ने विश्राम किया था। यह वटवृक्ष त्रेता युग में भी था। यह वटवृक्ष कलयुग में भी विद्यमान है और आप इस वटवृक्ष प्रयागराज में जाकर देख सकते हैं। अक्षय वट इलाहाबाद शहर में प्रयागराज ( इलाहाबाद ) किले के अंदर स्थित है। प्रयागराज ( इलाहाबाद ) किला गंगा नदी और यमुना नदी के संगम के पास ही में स्थित है। अक्षय वट के दर्शन करने के लिए किले के अंदर जाने के लिए रास्ता बना हुआ है। इस रास्ते में विकलांग लोग भी आराम से जा सकते हैं। छोटे से रास्ते से होते हुए आप मंदिर के परिसर में पहुंचते हैं। यहां पर आपको विशाल अक्षय वट वृक्ष देखने के लिए मिलता है। इसके साथ ही पताल पुरी मंदिर भी आपको यहां पर देखने के लिए मिलता है। आप पताल पुरी मंदिर के प्रवेश द्वार से मंदिर में प्रवेश करते हैं और पताल पुरी मंदिर के दर्शन करते हुए आप ऊपर आते है। आप अक्षय वट की परिक्रमा कर सकते हैं। अक्षय वट के नीचे आपको बहुत सारे भगवान जी की प्रतिमा देखने के लिए मिलते हैं। यहां पर श्री कृष्ण जी की आकर्षक प्रतिमा आपको देखने के लिए मिल जाएगी और भगवान शंकर जी की भी मूर्ति आपके यहां पर देखने के लिए मिल जाएगी। यहां पर अक्षय वट के बारे में बताया ...

ये चार चमत्कारिक वट वृक्ष, नहीं होते कभी नष्ट । holy tree of hinduism

How many shravan somvar in 2023 : आषाढ़ माह से वर्षा ऋ‍तु प्रारंभ हो जाती है। इसके बाद श्रावण माह आता है जिसमें भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व माना गया है। वैसे तो पूरे माह की व्रत रखते हैं परंतु इस माह में सोमवार के दिन व्रत रखने का खास महत्व होता है। आओ जानते हैं कि श्रावण मास कब से हो रहा है प्रारंभ, कितने सोमवार रहेंगे इस माह में? Halharini amavasya 2023 : आषाढ़ माह की अमावस्या को हलहारिणी अमावस्या कहते हैं। किसानों के लिए यह शुभ दिन है। यह दिन किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि आषाढ़ में पड़ने वाली इस अमावस्या के समय तक वर्षा ऋतु का आरंभ हो जाता है और धरती भी नम पड़ जाती है। फसल की बुआई के लिए यह समय उत्तम होता है। इसे आषाढ़ी अमावस्या भी कहा जाता है। How to Care for Indoor Plants in Hindi : घर में हरेभरे पौधा के होने से मन प्रसन्न रहता है और सकारात्मकता फैलती है। क्या आपके गमले में पौधे पनप नहीं पा रहे हैं? जल्दी से मुरझा जाते हैं या पौधों की अच्छी ग्रोथ नहीं हो पा रही है? ऐसे में जानिए हमारे द्वारा बताए गए मात्र 3 टिप्स। इन टिप्स को आजमाएंगे तो आपके पौधे भी हरेभरे होकर महकने लगेंगे। Lal kitab karj mukti ke upay : यदि आप कर्ज के तले दबे हुए हैं और इससे छुटकारा पाने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है तो घबराने की जरूरत नहीं है। हमारे द्वारा बताए गए उपाय करके आप ऋण मुक्त हो सकते हैं परंतु शर्त यह है कि आपके कर्म अच्छे होना चाहिए। उपाय तभी काम करते हैं जबकि आप सच्चे और अच्‍छे हैं। परिवार के प्रति जिम्मेदार हैं। Vidur Niti : भारत में कई महान नीतिज्ञ हुए। जैसे भीष्म, विदुर, मनु, चर्वाक, शुक्राचार्य, बृहस्पति, परशुराम, गर्ग, चाणक्य, भर्तृहरि, हर्षवर्धन, बाणभट्ट आदि ...

ये चार चमत्कारिक वट वृक्ष, नहीं होते कभी नष्ट । holy tree of hinduism

हालांकि आज हम बात कर रहे हैं ऐसे चार वृक्षों के रहस्य के बारे में जिनका हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्व है। उन वृक्षों के बारे में कम ही लोग जानते होंगे। यदि जानते भी होंगे तो उनके संबंध में क्या रहस्य है यह नहीं जानते होंगे। तो हम आपको आज बताएंगे कि उन वृक्षों के बारे में क्या मान्यता जुड़ी हुई है और क्या है उनका सच। अमर है अक्षयवट : जैसा की इसका नाम ही है अक्षय। अक्षय का अर्थ होता है जिसका कभी क्षय न हो, जिसे कभी नष्ट न किया जा सके। इसीलिए इस वृक्ष को अक्षय वट कहते हैं। वट का अर्थ बरगद, बढ़ आदि। इस वृक्ष को मनोरथ वृक्ष भी कहते हैं अर्थात मोक्ष देने वाला या मनोकामना पूर्ण करने वाला। यह वृक्ष प्रयाग में स्थित है। हिन्दुओं के पवित्र तीर्थों के नाम बदलने के दौरा में प्रयाग का नाम बदलकर मुगल बादशाह अकबर ने अल्लाहबाद कर दिया था जो बिगड़कर इलाहाबाद हो गया। यह वृक्ष इलाबाद के संगम तट पर हजारों वर्षों से स्थित है। 5267 वर्ष पुराने है वृक्ष : पुरात्व विज्ञान के वैज्ञानिक शोध के अनुसार इस वृक्ष की रासायनिक उम्र 3250 ईसा पूर्व की बताई जाती है अर्थात 3250+2017=5267 वर्ष का यह वृक्ष है। पर्याप्त सुरक्षा के बीच संगम के निकट किले में अक्षय वट की एक डाल के दर्शन कराए जाते हैं। पूरा पेड़ कभी नहीं दिखाया जाता। सप्ताह में दो दिन, अक्षय वट के दर्शन के लिए द्वार खोले जाते हैं। हालांकि देखरेख के अभाव में अब यह वृक्ष सूखने लगा है। अक्षय वट और इतिहासकार : अक्षयवट का जिक्र पुराणों में भी मिलता है लेकिन यह कहना आसान नहीं कि यह वही वृक्ष है या कि कोई दूसरा। सन 1030 में अलबरूनी ने इसे प्रयाग का पेड़ बताते हुए लिखा कि इस अजीबोगरीब पेड़ की कुछ शाखाएँ ऊपर की तरफ और कुछ नीचे की तरफ जा रही हैं। इनमें पत्ति...

तीर्थराज प्रयाग का अमरवृक्ष अक्षयवट – Dharmdhara

तीर्थराज प्रयाग में पहली बार दर्शन हेतु लाखों तीर्थयात्रियों के लिए अक्षय वट का द्वार खोल दिया गया है। इसके लिए बड़े हनुमान जी के समीप से नया मार्ग दिया गया है। इसके पास में ही पातालपुरी मंदिर स्थित है। प्रयागराज का किला एक ऐतिहासिक किला है इसमें अभी भी बहुत इतिहास बंद है जिसके पन्ने पलटने की आवश्यकता है। यहां का रानी महल, सरस्वती कूप, अशोक स्तंभ ऐसे ऐसे स्थल अभी भी हैं जिनके रहस्य को समझना आवश्यक है। यह वही किला है जहां रानी महल में जोधा बाई रहा करती थी और प्रतिदिन गंगा स्नान के लिए जाया करती थी। आज भी यमुना की ओर खुलने वाला एक दरवाजा जोधाबाई द्वार के नाम से प्रसिद्ध है। किले की एक-एक दीवार, एक-एक दरवाजे, उसके महल, सब कुछ इतिहास की धरोहर है। अक्षय वट पहले कभी भी किले से घिरा हुआ नहीं था। बाद में इसे किले के अंदर किया गया क्योंकि एक मान्यता थी की अक्षय वट का दर्शन कर उससे कूदकर जो गंगा में प्राण त्याग देते हैं उन्हें सीधे मोक्ष प्राप्त होता है। इस अटल विश्वास को देखते हुए मुगल काल में अक्षय वट के चारों ओर किले जैसी घेराबंदी कर दी गई और अक्षय वट किले के अंदर आ गया किले में सेना का अधिकार होने के कारण उस में प्रवेश वर्जित था। अतः किले के अंदर जाकर अक्षय वट का दर्शन करना मुश्किल सा हो गया था और आज भी सुरक्षा की पूर्ण आवश्यकता है। किला बनने से पहले यहां पर लगभग 600 मंदिर एवं प्राचीन मूर्तियां थी जिन्हें इधर उधर कर दिया गया या फिर वह नष्ट हो गयीं। मुझे तो ऐसा लगता है उन्ही में से कुछ मूर्तियां पातालपुरी मंदिर में संग्रहीत करा दी गई थी। अक्षय वट का नाम ही अपने आप में रहस्यमय है। अक्षय, अर्थात जिसका कभी क्षय ना हो। प्रयाग अक्षय क्षेत्र ही है जिस प्रकार से पाप और पुण्य यहां पर अक्...

महाभारत कालीन है शुक्रताल का प्राचीन अक्षय वट वृक्ष

तीर्थ नगरी शुक्रताल उत्तर भारत की ऐतिहासिक पौराणिक तीर्थ नगरी रही है। यहां पर करीब छह हजार साल पहले महाभारत काल में हस्तिनापुर के तत्कालीन महाराज पांडव वंशज राजा परीक्षित को श्राप से मुक्ति दिलाकर मोक्ष प्रदान करने के लिए गंगा किनारे प्राचीन अक्षय वट के नीचे बैठकर 88 हजार ऋषि मुनियों के साथ श्री शुकदेव मुनि जी ने श्रीमदभागवत कथा सुनाई थी । यह वट वृद्ध आज भी भक्ति सागर से ओतप्रोत हरा-भरा अपनी विशाल बाहें फैलाए अडिग खड़ा अपनी मनोहारी छटा बिखेर रहा है। पौराणिक वट वृक्ष के बारे में मान्यता है कि पतझड़ के दौरान इसका एक भी पत्ता सूखकर जमीन पर नहीं गिरता अर्थात इसके पत्ते कभी सूखते नहीं है और इसका एक विशेष गुण यह भी है कि इस विशाल वृक्ष में कभी जटाएं उत्पन्न नहीं हुई। करीब छह हजार वर्ष की आयु वाला ये वट वृक्ष आज भी युवा है। इस वृक्ष से 200 मीटर दूरी पर एक कुंआ है, जिसे पांडवकालीन कहा जाता है। क्षेत्रीय लोगों का कहना है कि वट वृक्ष जैसी धरोहर के प्रचार-प्रसार को शासन स्तर पर गंभीरता का अभाव है। हालांकि आश्रम के पीठाधीश्वर स्वामी ओमानंद महाराज बताते हैं कि देश के कोने-कोने से अनेक श्रद्धालु तीर्थ नगरी में आते हैं और एक सप्ताह तक रहकर श्रीमद भागवत कथा का आयोजन कराते हैं। इसके अलावा अनेक श्रद्धालु सत्यनारायण भगवान की कथा का आयोजन भी प्राचीन वट वृक्ष के नीचे बैठकर कराते हैं। मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से प्राचीन अक्षय वट वृक्ष पर धागा बांधकर मनौती मांगते हैं। उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।