असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था

  1. असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था?
  2. असहयोग आंदोलन (1920)
  3. खिलाफत और असहयोग आंदोलन (Khilafat and Non
  4. Explainer: असहयोग आंदोलन की समाप्ति‍ के बाद कैसे बदली स्वतंत्रता संग्राम की दिशा?
  5. असहयोग आन्दोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था ? वर्णन कीजिए।
  6. असहयोग आन्दोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था ? वर्णन कीजिए।
  7. Explainer: असहयोग आंदोलन की समाप्ति‍ के बाद कैसे बदली स्वतंत्रता संग्राम की दिशा?
  8. खिलाफत और असहयोग आंदोलन (Khilafat and Non
  9. असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था?
  10. असहयोग आंदोलन (1920)


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असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था?

असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध निम्नलिखित कारणों से था 1.असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध इसलिए था क्योंकि ब्रिटिश सरकार द्वारा थोपे गए रॉलेट एक्ट जैसे कानून के वापस लिए जाने के लिए जनआक्रोश या प्रतिरोध अभिव्यक्ति का लोकप्रिय माध्यम था। 2.असहयोग आंदोलन इसलिए भी प्रतिरोध आंदोलन था, क्योंकि राष्ट्रीय नेता उन अंग्रेज़ अधिकारियों को कठोर दंड दिलाना चाहते थे जो अमृतसर के जालियाँवाला बाग में शांतिपूर्ण प्रदर्शन में शामिल प्रदर्शनकारियों पर होने वाले अत्याचार के उत्तरदायी थे। उन्हें सरकार ने कई महीनों के बाद भी किसी प्रकार का दंड नहीं दिया था। 3.असहयोग आंदोलन इसलिए भी प्रतिरोध था, क्योंकि यह ख़िलाफत आंदोलन को सहयोग करके देश के दो प्रमुख धार्मिक समुदायों-हिंदू और मुसलमानों को मिलाकर औपनिवेशिक शासन के प्रति जनता के असहयोग को अभिव्यक्त करने का माध्यम था। 4.असहयोग आंदोलन इसलिए भी प्रतिरोध था, क्योंकि इसके द्वारा सरकारी नौकरियों, उपाधियों अवैतनिक पदों, सरकारी अदालतों, सरकारी संस्थाओं आदि का बहिष्कार किया जाना था। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करके, सरकार द्वारा आयोजित चुनावों में भाग न लेकर, सरकारी करों का भुगतान न करके तथा सरकारी कानूनों की शांतिपूर्ण ढंग से अवहेलना करके ब्रिटिश शासन के प्रति अपना प्रतिरोध प्रकट करना चाहते थे। 5.असहयोग आंदोलन ने सरकारी अदालतों का बहिष्कार करने के लिए सर्व साधारण और वकीलों को आह्वान किया। | गाँधी जी के इस आह्वान पर वकीलों ने अदालतों में जाने से मना कर दिया। 6.इस व्यापक लोकप्रिय प्रतिरोध का प्रभाव अनेक कस्बों और नगरों में कार्यरत श्रमिक वर्ग पर भी पड़ा। वे हड़ताल पर चले गए। जानकारों के अनुसार सन् 1921 में 396 हड़ताले हुईं जिनमें 6 लाख श्रमिक शामिल थे और...

असहयोग आंदोलन (1920)

असहयोग आंदोलन (1920) - भारतीय स्वतंत्रता संग्राम असहयोग आंदोलन 5 सितंबर 1920 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) द्वारा शुरू किया गया था। सितंबर 1920 में, कलकत्ता में कांग्रेस के अधिवेशन में, पार्टी ने असहयोग कार्यक्रम की शुरुआत की। असहयोग आंदोलन की अवधि सितंबर 1920 से फरवरी 1922 तक मानी जाती है। इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक नए अध्याय का संकेत दिया। जलियांवाला बाग हत्याकांड सहित कई घटनाओं के मद्देनजर असहयोग आंदोलन शुरू किया गया था और 1922 की चौरी चौरा घटना के कारण इसे बंद कर दिया गया था। असहयोग आंदोलन और महात्मा गांधी असहयोग आंदोलन के पीछे महात्मा गांधी मुख्य शक्ति थे। मार्च 1920 में, उन्होंने अहिंसक असहयोग आंदोलन के सिद्धांत की घोषणा करते हुए एक घोषणापत्र जारी किया। गांधी, इस घोषणापत्र के माध्यम से चाहते थे कि लोग: • स्वदेशी सिद्धांतों को अपनाएं • हाथ कताई और बुनाई सहित स्वदेशी आदतों को अपनाएं • समाज से अस्पृश्यता उन्मूलन के लिए कार्य करें गांधी ने 1921 में आंदोलन के सिद्धांतों की व्याख्या करते हुए पूरे देश की यात्रा की। असहयोग आंदोलन की विशेषताएं • यह आंदोलन अनिवार्य रूप से भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक शांतिपूर्ण और अहिंसक विरोध था। • विरोध के तौर पर भारतीयों को अपनी उपाधियाँ त्यागने और स्थानीय निकायों में मनोनीत सीटों से इस्तीफा देने के लिए कहा गया। • लोगों को अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा देने के लिए कहा गया था। • लोगों को अपने बच्चों को सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूलों और कॉलेजों से वापस लेने के लिए कहा गया। • लोगों को विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने और केवल भारतीय निर्मित वस्तुओं का उपयोग करने के लिए कहा गया। • लोगो...

खिलाफत और असहयोग आंदोलन (Khilafat and Non

Table of Contents • • • • • • • • • • • • खिलाफत और असहयोग आंदोलन 1919 से 1922 के मध्य अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध दो सशक्त जन-आंदोलन चलाये गये- खिलाफत और असहयोग आंदोलन। खिलाफत और असहयोग दोनों आंदोलन पृथक्-पृथक् मुद्दों को लेकर प्रारंभ हुए थे और दोनों का प्रत्यक्ष रूप से कोई संबंध नहीं था, फिर भी, दोनों ने ही भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को प्रोत्साहित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। आंदोलनों की पृष्ठभूमि खिलाफत और असहयोग आंदोलनों की पृष्ठभूमि उन घटनाओं की शृंखला में निहित है, जो रौलट ऐक्ट, 1919 के हिंदू-मुसलमान एकता को प्रदर्शित करने के लिए मुसलमानों ने कट्टर आर्यसमाजी नेता स्वामी श्रद्धानंद को दिल्ली की जामा मस्जिद के मिंबर से अपना उपदेश देने के लिए आमंत्रित किया था। अमृतसर में सिखों ने अपने पवित्र स्थान स्वर्ण मंदिर की चाभियां एक मुसलमान नेता डा. किचलू को सौंप दी थी। अमृतसर में यह राजनीतिक एकता सरकार के निर्मम दमन के कारण थी। खिलाफत आंदोलन बीसवीं सदी के आरंभिक वर्षों से ही एक नया शिक्षित मुस्लिम नेतृत्व उभरने लगा था, जो सर सैयद अहमद खाँ की वफादारी की राजनीति और पुरानी पीढ़ी के कुलीनवाद से दूर होकर पूरे समुदाय का समर्थन पाने का प्रयास कर रहा था। मुहम्मद अली के ‘कामरेड’ (कलकत्ता), अबुल कलाम आजाद के ‘ अल-हिलाल’ (कलकत्ता) या जफर अली खान के ‘ जमींदार’ (लाहौर) जैसी मुस्लिम पत्र-पत्रिकाओं के अखिल-इस्लामी और ब्रिटिश-विरोधी स्वर ने मुस्लिम युवकों को आकृष्ट किया। मुस्लिम समुदाय की लामबंदी के लिए 1910 में ‘ जीयतुल अंसार’ (भूतपूर्व छात्र सभा) और 1913 में दिल्ली में एक कुरान मदरसा शुरू किया गया था। नये शिक्षित मुस्लिम नेतृत्व के साथ-साथ उलेमा भी एक नई राजनीतिक शक्ति के रूप में भारत के ...

Explainer: असहयोग आंदोलन की समाप्ति‍ के बाद कैसे बदली स्वतंत्रता संग्राम की दिशा?

क्रांतिकारीआंदोलन - दृढ़संकल्पितभारतकाएकबड़ाकदम असहयोगआंदोलनकेस्वतःस्फूर्तउभारनेस्वतंत्रताकेलिएदृढ़संकल्पितभारतकेयुवाओंकोकाफीआकर्षितकिया।देशकेयुवाओंनेगांधीजीकेआह्वानपरउत्साहकेसाथबढ़चढ़करअसहयोगआंदोलनमेंभागलियाथा।चौरीचौराकांडकेबादअसहयोगआन्दोलनस्थगितकरदियागयाथा।इसघटनानेउत्साहीयुवकोंकोबहुतचोटपहुंचाई।आंदोलनकीअचानकवापसीउनकीआकांक्षाओंकेलिएएकझटकाथी।उनकाकांग्रेसीनेतृत्वकेप्रतिमोहभंगहुआ।कुछयुवकक्रांतिकारीनेताराष्ट्रवादीनेतृत्वकीबुनियादीरणनीतिऔरअहिंसकआन्दोलनकेऊपरप्रश्नचिह्नलगानेलगे।वेऔरविकल्पोंकीतलाशकरनेलगे।चूंकिनतोस्वाराजियोंकीराजनीतिकविचारधाराऔरनहीअपरिवर्तानवादियोंकेरचनात्मककार्यउन्हेंआकर्षितकरसकेथे, इसलिएवेइसविचारकेप्रतिआकर्षितहुएकिकेवलहिंसकतरीकेहीभारतकोमुक्तकरसकतेहैं। कुछप्रान्तोंमेंशिक्षितयुवकोंकाक्रन्तिकारी-सिद्धांतोंकीतरफझुकावहुए।उससमयकीकईपत्रिकाओं, जैसेआत्मशक्ति, सारथि, बिजलीआदिमेंऐसेआलेखऔरसंस्मरणछापेजातेजिसमेंक्रांतिकारियोंकेत्याग, बलिदानऔरशौर्यकागुणगानहोताथा। 1926 मेंप्रकाशितशरतचंद्रचट्टोपाध्यायके 'पथेरदाबी' मेंशहरीमध्यवर्गकीक्रान्तिकीबडाईकीगयीथी।शचीन्द्रनाथसान्यालकीलिखीपुस्तक 'बंदीजीवन' क्रांतिकारीआन्दोलनकेसदस्योंकेलिएतोधर्मग्रन्थकीतरहथी।इनसबसेक्रांतिकारीआन्दोलनोंकाएकनयादौरशुरूहुआ।इनक्रांतिकारियोंकामाननाथाकिनएतारेकेजन्मकेलिएउथल-पुथलआवश्यकहै।लेकिनइसकाअंतिमलक्ष्यहैउनसभीव्यवस्थाओंकीसमाप्तिजोमानवद्वारामानवकेशोषणकोसंभवबनातीहै।वेसशस्त्रक्रांतिकेमाध्यमसेऔपनिवेशिकसत्ताकोउखाड़फेंकनाचाहतेथे। क्रान्ति - एकविचारधारा क्रांतिसेआशयअकस्मातएवंतेजगतिसेहोनेवालेपरिवर्तनोंसेहै, जोआमूलबदलावकोजन्मदेताहैं।क्रांतिकारीराष्ट्रवादीजल्दी-से-जल्दीअपनीमातृभूमिकोविदेशीदासतासेमुक्तकरानाचाहतेथे।सरदारभगतसिंहऔर...

असहयोग आन्दोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था ? वर्णन कीजिए।

असहयोग आन्दोलन निम्नलिखित कारणों से एक तरह का प्रतिरोध ही था- (i) रॉलेट एक्ट की वापसी हेतु प्रतिरोध- असहयोग आन्दोलन गाँधीजी द्वारा ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा थोपे गये रॉलेट एक्ट जैसे कठोर कानून को वापस लेने हेतु जनता के आक्रोश एवं प्रतिरोध प्रकट करने का एक लोकप्रिय माध्यम था। (ii) जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के जिम्मेदार लोगों को बचाने की कार्यवाही का प्रतिरोध- असहयोग आन्दोलन इसलिए भी एक प्रतिरोध आन्दोलन था क्योंकि देश के राष्ट्रीय नेता उन ब्रिटिश अधिकारियों को दण्डित करवाना चाहते थे जिन्होंने जलियाँवाला बाग में निर्दोष लोगों की हत्या करवायी थी। उन्हें ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने इस घटना के कई महीने बीत जाने के पश्चात् भी किसी प्रकार से दण्डित नहीं किया था। (iii) खिलाफत आन्दोलन का सहयोग- असहयोग आन्दोलन इसलिए भी प्रतिरोध आन्दोलन था क्योंकि यह खिलाफत आन्दोलन के साथ सहयोग करके देश के दो प्रमुख धार्मिक समुदायों-हिन्दू और मुसलमानों को एक साथ लेकर औपनिवेशिक शासन के साथ जनता के असहयोग को प्रकट करने का एक माध्यम था। (iv) विदेशी शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार- असहयोग आन्दोलन इसलिए भी प्रतिरोध आन्दोलन था ताकि विदेशी शिक्षण संस्थाओं, सरकारी विद्यालयों एवं कॉलेजों से बाहर विद्यार्थियों व शिक्षकों का आह्वान किया जाए तथा देश के विभिन्न स्थानों पर राष्ट्रवादी लोगों द्वारा बनाई गई राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थियों को पढ़ने तथा शिक्षकों को अध्यापन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इस तरह से विदेशी सत्ता को शान्तिपूर्ण अहिंसात्मक प्रतिरोध के माध्यम से उखाड़े जाने के लिए वातावरण निर्मित किया गया। (v) श्रमिकों द्वारा हड़ताल करना- असहयोग आन्दोलन के रूप में इस व्यापक लोकप्रिय प्रतिरोध क...

असहयोग आन्दोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था ? वर्णन कीजिए।

असहयोग आन्दोलन निम्नलिखित कारणों से एक तरह का प्रतिरोध ही था- (i) रॉलेट एक्ट की वापसी हेतु प्रतिरोध- असहयोग आन्दोलन गाँधीजी द्वारा ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा थोपे गये रॉलेट एक्ट जैसे कठोर कानून को वापस लेने हेतु जनता के आक्रोश एवं प्रतिरोध प्रकट करने का एक लोकप्रिय माध्यम था। (ii) जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के जिम्मेदार लोगों को बचाने की कार्यवाही का प्रतिरोध- असहयोग आन्दोलन इसलिए भी एक प्रतिरोध आन्दोलन था क्योंकि देश के राष्ट्रीय नेता उन ब्रिटिश अधिकारियों को दण्डित करवाना चाहते थे जिन्होंने जलियाँवाला बाग में निर्दोष लोगों की हत्या करवायी थी। उन्हें ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने इस घटना के कई महीने बीत जाने के पश्चात् भी किसी प्रकार से दण्डित नहीं किया था। (iii) खिलाफत आन्दोलन का सहयोग- असहयोग आन्दोलन इसलिए भी प्रतिरोध आन्दोलन था क्योंकि यह खिलाफत आन्दोलन के साथ सहयोग करके देश के दो प्रमुख धार्मिक समुदायों-हिन्दू और मुसलमानों को एक साथ लेकर औपनिवेशिक शासन के साथ जनता के असहयोग को प्रकट करने का एक माध्यम था। (iv) विदेशी शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार- असहयोग आन्दोलन इसलिए भी प्रतिरोध आन्दोलन था ताकि विदेशी शिक्षण संस्थाओं, सरकारी विद्यालयों एवं कॉलेजों से बाहर विद्यार्थियों व शिक्षकों का आह्वान किया जाए तथा देश के विभिन्न स्थानों पर राष्ट्रवादी लोगों द्वारा बनाई गई राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थियों को पढ़ने तथा शिक्षकों को अध्यापन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इस तरह से विदेशी सत्ता को शान्तिपूर्ण अहिंसात्मक प्रतिरोध के माध्यम से उखाड़े जाने के लिए वातावरण निर्मित किया गया। (v) श्रमिकों द्वारा हड़ताल करना- असहयोग आन्दोलन के रूप में इस व्यापक लोकप्रिय प्रतिरोध क...

Explainer: असहयोग आंदोलन की समाप्ति‍ के बाद कैसे बदली स्वतंत्रता संग्राम की दिशा?

क्रांतिकारीआंदोलन - दृढ़संकल्पितभारतकाएकबड़ाकदम असहयोगआंदोलनकेस्वतःस्फूर्तउभारनेस्वतंत्रताकेलिएदृढ़संकल्पितभारतकेयुवाओंकोकाफीआकर्षितकिया।देशकेयुवाओंनेगांधीजीकेआह्वानपरउत्साहकेसाथबढ़चढ़करअसहयोगआंदोलनमेंभागलियाथा।चौरीचौराकांडकेबादअसहयोगआन्दोलनस्थगितकरदियागयाथा।इसघटनानेउत्साहीयुवकोंकोबहुतचोटपहुंचाई।आंदोलनकीअचानकवापसीउनकीआकांक्षाओंकेलिएएकझटकाथी।उनकाकांग्रेसीनेतृत्वकेप्रतिमोहभंगहुआ।कुछयुवकक्रांतिकारीनेताराष्ट्रवादीनेतृत्वकीबुनियादीरणनीतिऔरअहिंसकआन्दोलनकेऊपरप्रश्नचिह्नलगानेलगे।वेऔरविकल्पोंकीतलाशकरनेलगे।चूंकिनतोस्वाराजियोंकीराजनीतिकविचारधाराऔरनहीअपरिवर्तानवादियोंकेरचनात्मककार्यउन्हेंआकर्षितकरसकेथे, इसलिएवेइसविचारकेप्रतिआकर्षितहुएकिकेवलहिंसकतरीकेहीभारतकोमुक्तकरसकतेहैं। कुछप्रान्तोंमेंशिक्षितयुवकोंकाक्रन्तिकारी-सिद्धांतोंकीतरफझुकावहुए।उससमयकीकईपत्रिकाओं, जैसेआत्मशक्ति, सारथि, बिजलीआदिमेंऐसेआलेखऔरसंस्मरणछापेजातेजिसमेंक्रांतिकारियोंकेत्याग, बलिदानऔरशौर्यकागुणगानहोताथा। 1926 मेंप्रकाशितशरतचंद्रचट्टोपाध्यायके 'पथेरदाबी' मेंशहरीमध्यवर्गकीक्रान्तिकीबडाईकीगयीथी।शचीन्द्रनाथसान्यालकीलिखीपुस्तक 'बंदीजीवन' क्रांतिकारीआन्दोलनकेसदस्योंकेलिएतोधर्मग्रन्थकीतरहथी।इनसबसेक्रांतिकारीआन्दोलनोंकाएकनयादौरशुरूहुआ।इनक्रांतिकारियोंकामाननाथाकिनएतारेकेजन्मकेलिएउथल-पुथलआवश्यकहै।लेकिनइसकाअंतिमलक्ष्यहैउनसभीव्यवस्थाओंकीसमाप्तिजोमानवद्वारामानवकेशोषणकोसंभवबनातीहै।वेसशस्त्रक्रांतिकेमाध्यमसेऔपनिवेशिकसत्ताकोउखाड़फेंकनाचाहतेथे। क्रान्ति - एकविचारधारा क्रांतिसेआशयअकस्मातएवंतेजगतिसेहोनेवालेपरिवर्तनोंसेहै, जोआमूलबदलावकोजन्मदेताहैं।क्रांतिकारीराष्ट्रवादीजल्दी-से-जल्दीअपनीमातृभूमिकोविदेशीदासतासेमुक्तकरानाचाहतेथे।सरदारभगतसिंहऔर...

खिलाफत और असहयोग आंदोलन (Khilafat and Non

Table of Contents • • • • • • • • • • • • खिलाफत और असहयोग आंदोलन 1919 से 1922 के मध्य अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध दो सशक्त जन-आंदोलन चलाये गये- खिलाफत और असहयोग आंदोलन। खिलाफत और असहयोग दोनों आंदोलन पृथक्-पृथक् मुद्दों को लेकर प्रारंभ हुए थे और दोनों का प्रत्यक्ष रूप से कोई संबंध नहीं था, फिर भी, दोनों ने ही भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को प्रोत्साहित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। आंदोलनों की पृष्ठभूमि खिलाफत और असहयोग आंदोलनों की पृष्ठभूमि उन घटनाओं की शृंखला में निहित है, जो रौलट ऐक्ट, 1919 के हिंदू-मुसलमान एकता को प्रदर्शित करने के लिए मुसलमानों ने कट्टर आर्यसमाजी नेता स्वामी श्रद्धानंद को दिल्ली की जामा मस्जिद के मिंबर से अपना उपदेश देने के लिए आमंत्रित किया था। अमृतसर में सिखों ने अपने पवित्र स्थान स्वर्ण मंदिर की चाभियां एक मुसलमान नेता डा. किचलू को सौंप दी थी। अमृतसर में यह राजनीतिक एकता सरकार के निर्मम दमन के कारण थी। खिलाफत आंदोलन बीसवीं सदी के आरंभिक वर्षों से ही एक नया शिक्षित मुस्लिम नेतृत्व उभरने लगा था, जो सर सैयद अहमद खाँ की वफादारी की राजनीति और पुरानी पीढ़ी के कुलीनवाद से दूर होकर पूरे समुदाय का समर्थन पाने का प्रयास कर रहा था। मुहम्मद अली के ‘कामरेड’ (कलकत्ता), अबुल कलाम आजाद के ‘ अल-हिलाल’ (कलकत्ता) या जफर अली खान के ‘ जमींदार’ (लाहौर) जैसी मुस्लिम पत्र-पत्रिकाओं के अखिल-इस्लामी और ब्रिटिश-विरोधी स्वर ने मुस्लिम युवकों को आकृष्ट किया। मुस्लिम समुदाय की लामबंदी के लिए 1910 में ‘ जीयतुल अंसार’ (भूतपूर्व छात्र सभा) और 1913 में दिल्ली में एक कुरान मदरसा शुरू किया गया था। नये शिक्षित मुस्लिम नेतृत्व के साथ-साथ उलेमा भी एक नई राजनीतिक शक्ति के रूप में भारत के ...

असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध कैसे था?

असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध निम्नलिखित कारणों से था 1.असहयोग आंदोलन एक तरह का प्रतिरोध इसलिए था क्योंकि ब्रिटिश सरकार द्वारा थोपे गए रॉलेट एक्ट जैसे कानून के वापस लिए जाने के लिए जनआक्रोश या प्रतिरोध अभिव्यक्ति का लोकप्रिय माध्यम था। 2.असहयोग आंदोलन इसलिए भी प्रतिरोध आंदोलन था, क्योंकि राष्ट्रीय नेता उन अंग्रेज़ अधिकारियों को कठोर दंड दिलाना चाहते थे जो अमृतसर के जालियाँवाला बाग में शांतिपूर्ण प्रदर्शन में शामिल प्रदर्शनकारियों पर होने वाले अत्याचार के उत्तरदायी थे। उन्हें सरकार ने कई महीनों के बाद भी किसी प्रकार का दंड नहीं दिया था। 3.असहयोग आंदोलन इसलिए भी प्रतिरोध था, क्योंकि यह ख़िलाफत आंदोलन को सहयोग करके देश के दो प्रमुख धार्मिक समुदायों-हिंदू और मुसलमानों को मिलाकर औपनिवेशिक शासन के प्रति जनता के असहयोग को अभिव्यक्त करने का माध्यम था। 4.असहयोग आंदोलन इसलिए भी प्रतिरोध था, क्योंकि इसके द्वारा सरकारी नौकरियों, उपाधियों अवैतनिक पदों, सरकारी अदालतों, सरकारी संस्थाओं आदि का बहिष्कार किया जाना था। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करके, सरकार द्वारा आयोजित चुनावों में भाग न लेकर, सरकारी करों का भुगतान न करके तथा सरकारी कानूनों की शांतिपूर्ण ढंग से अवहेलना करके ब्रिटिश शासन के प्रति अपना प्रतिरोध प्रकट करना चाहते थे। 5.असहयोग आंदोलन ने सरकारी अदालतों का बहिष्कार करने के लिए सर्व साधारण और वकीलों को आह्वान किया। | गाँधी जी के इस आह्वान पर वकीलों ने अदालतों में जाने से मना कर दिया। 6.इस व्यापक लोकप्रिय प्रतिरोध का प्रभाव अनेक कस्बों और नगरों में कार्यरत श्रमिक वर्ग पर भी पड़ा। वे हड़ताल पर चले गए। जानकारों के अनुसार सन् 1921 में 396 हड़ताले हुईं जिनमें 6 लाख श्रमिक शामिल थे और...

असहयोग आंदोलन (1920)

असहयोग आंदोलन (1920) - भारतीय स्वतंत्रता संग्राम असहयोग आंदोलन 5 सितंबर 1920 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) द्वारा शुरू किया गया था। सितंबर 1920 में, कलकत्ता में कांग्रेस के अधिवेशन में, पार्टी ने असहयोग कार्यक्रम की शुरुआत की। असहयोग आंदोलन की अवधि सितंबर 1920 से फरवरी 1922 तक मानी जाती है। इसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक नए अध्याय का संकेत दिया। जलियांवाला बाग हत्याकांड सहित कई घटनाओं के मद्देनजर असहयोग आंदोलन शुरू किया गया था और 1922 की चौरी चौरा घटना के कारण इसे बंद कर दिया गया था। असहयोग आंदोलन और महात्मा गांधी असहयोग आंदोलन के पीछे महात्मा गांधी मुख्य शक्ति थे। मार्च 1920 में, उन्होंने अहिंसक असहयोग आंदोलन के सिद्धांत की घोषणा करते हुए एक घोषणापत्र जारी किया। गांधी, इस घोषणापत्र के माध्यम से चाहते थे कि लोग: • स्वदेशी सिद्धांतों को अपनाएं • हाथ कताई और बुनाई सहित स्वदेशी आदतों को अपनाएं • समाज से अस्पृश्यता उन्मूलन के लिए कार्य करें गांधी ने 1921 में आंदोलन के सिद्धांतों की व्याख्या करते हुए पूरे देश की यात्रा की। असहयोग आंदोलन की विशेषताएं • यह आंदोलन अनिवार्य रूप से भारत में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक शांतिपूर्ण और अहिंसक विरोध था। • विरोध के तौर पर भारतीयों को अपनी उपाधियाँ त्यागने और स्थानीय निकायों में मनोनीत सीटों से इस्तीफा देने के लिए कहा गया। • लोगों को अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा देने के लिए कहा गया था। • लोगों को अपने बच्चों को सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूलों और कॉलेजों से वापस लेने के लिए कहा गया। • लोगों को विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने और केवल भारतीय निर्मित वस्तुओं का उपयोग करने के लिए कहा गया। • लोगो...