भगत सिंह फांसी डेट

  1. Bhagat Singh Jayanti। भगत सिंह की फांसी रुकवाने के लिए महात्मा गांधी ने एक नहीं कई कोशिशें कीं । Mahatma Gandhi made many efforts to stop the hanging of Bhagat Singh ।
  2. फांसी पर लटकने से पहले भगत सिंह ने क्यों भगवान को याद नहीं किया। shaheed divas why bhagat singh not remembered god before hanging on 23 march 1931
  3. गांधी जी ने भगत सिंह को फांसी के फंदे पर लटकने के लिए छोड़ दिया था? पढ़ें, फ़ैक्ट
  4. भगत सिंह का जीवन परिचय, फांसी
  5. जब भगत सिंह को फांसी लगने का समय आया, तब वो लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे
  6. Shaheed Diwas 2020 Remembering Bhagat Singh Rajguru Sukhdev Pm Modi Gave Tribute


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Bhagat Singh Jayanti। भगत सिंह की फांसी रुकवाने के लिए महात्मा गांधी ने एक नहीं कई कोशिशें कीं । Mahatma Gandhi made many efforts to stop the hanging of Bhagat Singh ।

91 साल पहले 23 मार्च 1931 को शहीद-ए-आजम हालांकि, ये दावा सच नहीं है, ऐसे कई दस्तावेज सार्वजनिक हो चुके हैं जिनसे पुष्टि होती है कि महात्मा गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत से एक नहीं कई बार भगत सिंह की फांसी रुकवाने का आग्रह किया था. ऐतिहासिक दस्तावेजों से पता चलता है कि गांधी ने वाइसरॉय लॉर्ड इरविन से न सिर्फ दो बार भगत सिंह की फांसी स्थगित करने का आग्रह किया. बल्कि 23 मार्च, 1931 को एक पत्र लिखकर फांसी पर एक बार फिर विचार करने को भी कहा था. ये दावा बिल्कुल निराधार है कि महात्मा गांधी ने भगत सिंह की फांसी रुकवाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया. mkgandhi.org पर महात्मा गांधी की लॉर्ड इरविन से कई चरणों में हुई उस Gandhi Marg, Vol. 32 के हवाले से बताया है कि गांधी और इरविन के बीच 17 फरवरी से 5 मार्च, 1931 के बीच दिल्ली /इरविन पैक्ट को लेकर बातचीत हुई. बातचीत से पहले महात्मा गांधी ने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं दिया था कि वो भगत सिंह की फांसी को लेकर बात करेंगे. महात्मा गांधी ने 18 फरवरी को वाइसरॉय इरविन के सामने भगत सिंह का मुद्दा उठाया. हालांकि, अब यहां ये सवाल उठ सकता है कि क्या गांधी सिर्फ भगत सिंह की फांसी स्थगित करने को लेकर प्रयास कर रहे थे? फांसी रुकवाने के लिए नहीं? इसका जवाब भी चंदरपाल सिंह के इस रिसर्च पेपर में मिलता है. कानूनी तौर पर पीवी काउंसिल के फैसले के बाद वाइसरॉय की तरफ से फांसी रोका जाना संभव नहीं था. कांग्रेस पहले ही इसकी कानूनी संभावना तलाश चुकी थी. 29 अप्रैल, 1931 को विजय राघवचारी को लिखे पत्र में महात्मा गांधी ने स्वीकारा कि ''कानूनविद तेज बहादुर ने वाइसरॉय से इस बात पर चर्चा की है कि फांसी रोके जाने की कोई कानूनी संभावना है या नहीं, पर ऐसी कोई संभावना नहीं है.'' इस पत्...

फांसी पर लटकने से पहले भगत सिंह ने क्यों भगवान को याद नहीं किया। shaheed divas why bhagat singh not remembered god before hanging on 23 march 1931

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह को आज लाहौर सेंट्रल जेल में 90 साल पहले फांसी पर लटका दिया गया था. भगत सिंह के बारे में कहा जाता है कि जब वो फांसी पर चढ़ने जा रहे थे, तब उनसे कहा गया कि अंतिम क्षणों में वो एक बार भगवान याद कर लें लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया था. उन्हें लेकर ये उत्सुकता हमेशा बनी रही कि वो आस्तिक थे या नास्तिक. ईश्वर की सत्ता पर विश्वास करते थे या नहीं. वो अपने को धर्म के लिहाज से क्या मानते थे. इन सब सवालों के जवाब देते हुए उन्होंने एक लेख लिखा. जिसमें खुलकर ये लिखा कि वो असल में क्या हैं, उनकी आस्था क्या है, वो किसको मानते हैं. ये लेख आज भी बहुत प्रासंगिक है. शहीद-ए-आज़म भगत सिंह ने 27 सितंबर 1931 को जेल में रहते हुए एक लेख लिखा था. लेख का शीर्षक था ‘मैं नास्तिक क्यों हूं?’ इस लेख को लाहौर के जाने-माने अखबार ‘द पीपल’ ने प्रकाशित किया था. इस लेख में भगत सिंह ने ईश्वर के अस्तित्व पर कई तार्किक सवाल खड़े किए. " isDesktop="true" id="3529800"> लेख में संसार के निर्माण, इंसान के जन्म, लोगों के मन में ईश्वर की कल्पना, संसार में इंसान की लाचारगी, शोषण, दुनिया में मौजूद अराजकता और भेदभाव की स्थितियों का भी विश्लेषण किया. इस लेख को भगत सिंह के लेखन के सबसे चर्चित और प्रभावशाली हिस्सों में गिना जाता है. इसका कई बार प्रकाशन भी हो चुका है. ‘मैं नास्तिक क्यों हूं?’ लिखने के पीछे की वजह ‘मैं नास्तिक क्यों हूं?’ लेख लिखने के पीछे एक दिलचस्प किस्सा है. कहते हैं जब आज़ादी के सिपाही बाबा रणधीर सिंह को ये बात पता चली कि भगत सिंह को ईश्वर में यकीन नहीं है, तो वो किसी तरह जेल में भगत सिंह से मिलने उनके सेल पहुंच गए. जहां भगत सिंह को रखा गया था. रणधीर सिंह भी साल 1930-31 के दौर...

गांधी जी ने भगत सिंह को फांसी के फंदे पर लटकने के लिए छोड़ दिया था? पढ़ें, फ़ैक्ट

समाज और सोशल मीडिया पर रह रह कर ये दावा किया जाता रहा है कि गांधी जी ने आज़ादी के मतवाले भगत सिंह और उनके साथियों को अंग्रेज़ी क्रूरता के रहम-व-करम पर छोड़ दिया था। Roshan Singh Rajput नामक यूज़र ने ट्वीट किया, “यह वही गांधी है जिन्होंने भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी के फंदे पे लटकने दिया आजादी के दीवानों को मरने के लिए छोड़ दिया ऐसे गांधी का जयंती क्यों मनाएं आज लाल बहादुर शास्त्री जयंती है، वामपंथियो की उलझनें भी ऐतिहासिक हैं। जैसे ही आप उनसे सावरकर और गांधी का जिक्र छेड़िए, वे गांधी का पांव पकड़ लेंगे और जैसे ही आप भगत सिंह की फाँसी न रोकने में गांधी की भूमिका व उसके चलते 1929 के कराची अधिवेशन में गांधी गो बैक के नारों का जिक्र करें, वे गांधी पर आँखें लाल कर लेंगे।— abhishek upadhyay (@upadhyayabhii) इनके अलावा अलग अलग सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर अनेक य़ूज़र्स ने भगत सिंह की फांसी के संदर्भ में गांधी जी के बारे में इसी से मिलते-जुलते प्रशनवाचक दावे किये हैं। फ़ैक्ट चेक: DFRAC फ़ैक्ट चेक टीम ने उपरोक्त दावे की जांच-पड़ताल के कुछ की-वर्ड की मदद से इंटरनेट पर सर्च किया। टीम को अलग अलग मीडिया हाउसेज़ द्वारा पब्लिश कई रिपोर्ट्स मिलीं। दैनिक भास्कर द्वारा शीर्षक, “ क्या भगत सिंह को फांसी से बचा सकते थे:गांधी पर उठ रहे ऐसे 5 सवालों की कहानी” के तहत पब्लिश, दैनिक भास्कर ने इतिहासकार एजी नूरानी की किताब The Trial of Bhagat Singh के हवाले लिखा है कि भगत सिंह को बचाने में गांधी ने आधे-अधूरे प्रयास किए। भगत सिंह की मौत की सज़ा को कम करके उम्र कैद में बदलने के लिए उन्होंने वायसराय से जोरदार अपील नहीं की थी। रिपोर्ट के मुताबिक़ इतिहासकार और गांधी पर कई किताबों के लेखक अनिल नौरिया ...

भगत सिंह का जीवन परिचय, फांसी

Bhagat Singh Biography in Hindi: शहीद भगत सिंह भारतीय आजादी के महान विभूति है। आज भारत का प्रत्येक व्यक्ति जो स्वतंत्रता से अपने घर में रह पा रहा है, उसे शहीद भगत सिंह के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। महज 23 साल की उम्र में इस महान स्वतंत्रता सेनानी ने देश के लिए अपना प्राण निछावर कर दिया। जिस जमाने में बड़े-बड़े लोग अपनी आवाज लंदन तक नहीं पहुंचा पाते थे, उस जमाने में एक गरीब घर से ताल्लुक रखने वाले भगत सिंह ने कलम की ताकत पर ना केवल इंग्लैंड बल्कि रूस और इटली जैसे देशों को अपना दीवाना बना दिया था। Bhagat Singh Biography in Hindi भगत सिंह लेनिन और कार्ल मार्क्स जैसे लोगों की किताबें पढ़ते थे और अलग-अलग मैगजीन और न्यूज़पेपर में अपने विचार को आर्टिकल का रूप देकर लोगों के समक्ष रखते थे, जिसे पढ़कर बड़े-बड़े लोगों के दिल दहल जाते थे। आज भारत के प्रत्येक नागरिक को भगत सिंह का जीवन परिचय पता होना चाहिए। हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम जाने कि भगत सिंह कौन थे?, उन्होंने देश के लिए कौन सा बलिदान दिया और कैसे हमने अपनी स्वतंत्रता को अंग्रेजों से छीना है। यहाँ पर हम भगत सिंह का जीवन परिचय हिंदी में शेयर कर रहे है, जिसमें इनके प्रारंभिक जीवन, शिक्षा, परिवार, इनके द्वारा किये गये आन्दोलन, फांसी की सजा आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। विषय सूची • • • • • • • • • • भगत सिंह का जीवन परिचय (Bhagat Singh Biography in Hindi) नाम भगत सिंह जन्मऔर जन्म स्थान 27 सितंबर 1960, बंगा गाँव, तहसील जरनवाला, जिला लायलपुर, पंजाब (अब पाकिस्तान में) पिता का नाम सरदार किसान सिंह माता का नाम विद्यावती वैवाहिक स्थिति अविवाहित शिक्षा डी.ए.वी. हाई स्कूल (लाहौर), नेशनल कॉलेज (लाहौर) आन्दोलन भारतीय स्वतन्त्रता...

जब भगत सिंह को फांसी लगने का समय आया, तब वो लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे

शहीद भगत सिंह के प्रति मेरी श्रद्धा और उनके पैतृक गांव खटकड़ कलां में बिताए ग्यारह वर्ष मुझे इसकी गंभीरता के बारे में लगातार सचेत करते रहे. बहुत सी कहानियां हैं उनके बारे में. किस्से ऊपर किस्से हैं. इन किस्सों से ही भगत सिंह शहीद-ए-आजम हैं. मेरी सोच है या मानना है कि शायद शुद्ध जीवनी लिखना कोई मकसद पूरा न कर पाए. यह विचार भी मन में उथल-पुथल मचाता रहा लगातार. न जाने कितने लोगों ने कितनी बार शहीद भगत सिंह की जीवनी लिखी होगी और सबने पढ़ी भी होगी. मैं नया क्या दे पाऊंगा? यह एक चुनौती रही. सबसे पहले जन्म की बात आती है जीवनी में. क्यों लिखता हूं मैं कि शहीद भगत सिंह का पैतृक गांव है खटकड़ कलां, सीधी सी बात कि यह उनका जन्मस्थान नहीं है. जन्म हुआ उस क्षेत्र में, जो आज पाकिस्तान का हिस्सा है. चक विलगा नंबर 105 में 27 सितंबर, 1907 को जन्म हुआ और यह बात भी परिवारजनों से मालूम हुई कि वे कभी अपने जीवन में खटकड़ कलां आए ही नहीं, फिर इस गांव की इतनी मान्यता क्यों? क्योंकि स्वतंत्र भारत में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को श्रद्धा अर्पित करने के दो ही केंद्र हैं—खटकड़ कलां और हुसैनीवाला. इनके पैतृक गांव में इनका घर और कृषि भूमि थी. इनके घर को परिवारजन राष्ट्र को अर्पित कर चुके हैं और गांव में मुख्य सड़क पर ही एक स्मारक बनाया गया है. बहुत बड़ी प्रतिमा भी स्मारक के सामने है. पहले हैटवाली प्रतिमा थी, बाद में पगड़ीवाली प्रतिमा लगाई गई. इसलिए इस गांव का विशेष महत्त्व है. हुसैनीवाला वह जगह है, जहां इनके पार्थिव शवों को लाहौर जेल से रात के समय लोगों के रोष को देखते हुए चोरी चुपके लाया गया फांसी के बाद और मिट्टी का तेल छिड़क आग लगा दी, जैसे कोई अनजान लोग हों—भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव. दूसरे दिन भ...

Shaheed Diwas 2020 Remembering Bhagat Singh Rajguru Sukhdev Pm Modi Gave Tribute

नई दिल्ली: 23 मार्च का दिन भारत के इतिहास में बेहद खास दिन है. इस दिन को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है. साल 1931 में आज ही के दिन भारत में ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकने में अपना अहम किरदार निभाने वाले तीन महान क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर लटकाया गया था. उसी के बाद से से हर साल 23 मार्च को बलिदान दिवस मनाया जाता है. आज इस मौके पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देश के इन वीर जवानों की शहादत को नमन करते हुए लिखा,'' शहीद दिवस पर मां भारती के महान सपूत वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को कोटि-कोटि नमन. देश के लिए उनका बलिदान कृतज्ञ राष्ट्र सदा याद रखेगा. जय हिंद!.'' शहीद दिवस पर मां भारती के महान सपूत वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को कोटि-कोटि नमन। देश के लिए उनका बलिदान कृतज्ञ राष्ट्र सदा याद रखेगा। जय हिंद! — Narendra Modi (@narendramodi) वहीं देश गृहमंत्री अमित शाह ने भी भारत मां के सच्चे सपूतों को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा,''शहीद सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु ने न सिर्फ जीते जी देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया बल्कि अपने बलिदान से हर भारतवासी के हृदय में स्वाधीनता की अलख जगायी. यह तीनों राष्ट्रभक्त स्वतंत्रता आंदोलन के अमर प्रतीक हैं जो हमें सदैव राष्ट्र की सेवा और एकता के लिए प्रेरित करते रहेंगे.'' शहीद सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु ने न सिर्फ जीते जी देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया बल्कि अपने बलिदान से हर भारतवासी के हृदय में स्वाधीनता की अलख जगायी। यह तीनों राष्ट्रभक्त स्वतंत्रता आंदोलन के अमर प्रतीक हैं जो हमें सदैव राष्ट्र की सेवा और एकता के लिए प्रेरित करते रहेंगे। यहां पढ़िए भगत सिंह की शौर्य गाथा जिंदगी लंबी नहीं बल्कि बड़ी...