भक्तामर स्त्रोत संस्कृत में

  1. सामूहिक भक्तामर पाठ एवं स्वाध्याय विधि – Vidyasagar Ji Maharaj
  2. भक्तामर स्तोत्र हिन्दी में अर्थ सहित
  3. ।। श्री भक्तामर स्त्रोत
  4. श्री भक्तामर स्त्रोत
  5. भक्तामर स्तोत्र Sanskrit Shlok With Hindi


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सामूहिक भक्तामर पाठ एवं स्वाध्याय विधि – Vidyasagar Ji Maharaj

समयसागर जी महाराज इस समय बिना बारह में हैं सुधासागर जी महाराज इस समय ललीतपुर में हैं योगसागर जी महाराज का चातुर्मास नागपुर में मुनिश्री प्रमाणसागरजी महाराज गुणायतन में हैं दुर्लभसागरजी जी महाराज गजपंथा सिद्ध क्षेत्र में विराजमान हैं Youtube - Android पर आर्यिका पूर्णमति माताजी बड़ौदा में हैं। Android पर विनम्रसागरजी महाराज का चातुर्मास खजुराहो में सामूहिक भक्तामर पाठ एवं स्वाध्याय विधि प्रतिदिन करना है प्रयोजन- चेन-अमन, सुख, आत्मशांति के लिए सर्वप्रथम सभी ‘नौ’ बार णमोकार मंत्र पढ़े,सिर्फ वाचना करने वाला मन ही मन, स्वाध्याय स्थान में रहने वाले देवी-देवताओं को सादर हाथ जोड़कर जय जिनेन्द्र करें, और निवेदन करें कि हम सभी यहाँ कुछ समय ‘धर्म-ध्यान’, ‘भगवत् भक्ति’ करना चाहते है ,कृपया आप भी शामिल होकर हमें कृतार्थ करें और आने वाली आपत्तियों का निवारण करते हुए, होने वाली हमारी सभी भूलों को भूल समझकर क्षमा करें। सौ जाने, हमें खुशी होगी। अब ‘घी’ का एक दीपक (गाय का घी शुद्ध हो तोऔर अच्छा) इस प्रकार प्रज्जवलित कर रखें, चिमनी इत्यादि से ढककर, कि जिससे जीव हिंसा न हो ! (दीपक जिनवाणी माँ के समक्ष रखे, ना कि किसी तस्वीर के सामने।) अब:- लयबद्ध, न अधिक तेजी से, न अधिक धीमे और न ही जल्दी-जल्दी, शुद्ध उच्चारण करते हुए, भक्तामरजी का पाठ शुरू कीजिये (संस्कृत हो तो और अच्छा, नहीं तो हिन्दी वाला प्रतिदिन बदल-बदल कर या फिर एक जैसा ही) अब आगम का ग्रंथ जो सभी की समझ से मेल खाता हो प्रथमानुयोग या चरणानुयोग आदि किसी का भी कोई एक व्यक्ति वाचन करें, सभी श्रोता बन सुनें। विशेष: स्वाध्याय के समय जो भी बात समझ में न आये उसे ‘डायरी’ में नोट करते जाइये, फिर किसी साधु या आर्यिका संघ का जब भी योग-संयोग मिले, उ...

भक्तामर स्तोत्र हिन्दी में अर्थ सहित

(भक्तामर स्तोत्र के प्रथम श्लोक का अर्थ ) झुके हुए भक्त देवो के मुकुट जड़ित मणियों की प्रथा को प्रकाशित करने वाले, पाप रुपी अंधकार के समुह को नष्ट करने वाले, कर्मयुग के प्रारम्भ में संसार समुन्द्र में डूबते हुए प्राणियों के लिये आलम्बन भूत जिनेन्द्रदेव के चरण युगल को मन वचन कार्य से प्रणाम करके (मैं मुनि मानतुंग उनकी स्तुति करुँगा)| (भक्तामर स्तोत्र के तृतीय श्लोक का अर्थ ) देवों के द्वारा पूजित हैं सिंहासन जिनका, ऐसे हे जिनेन्द्र मैं बुद्धि रहित होते हुए भी निर्लज्ज होकर स्तुति करने के लिये तत्पर हुआ हूँ क्योंकि जल में स्थित चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को बालक को छोड़कर दूसरा कौन मनुष्य सहसा पकड़ने की इच्छा करेगा? अर्थात् कोई नहीं | (भक्तामर स्तोत्र के चतुर्थ श्लोक का अर्थ ) हे गुणों के भंडार! आपके चन्द्रमा के समान सुन्दर गुणों को कहने लिये ब्रहस्पति के सद्रश भी कौन पुरुष समर्थ है? अर्थात् कोई नहीं अथवा प्रलयकाल की वायु के द्वारा प्रचण्ड है मगरमच्छों का समूह जिसमें ऐसे समुद्र को भुजाओं के द्वारा तैरने के लिए कौन समर्थ है अर्थात् कोई नहीं | (भक्तामर स्तोत्र के दसवें श्लोक का अर्थ ) हे जगत् के भूषण! हे प्राणियों के नाथ! सत्यगुणों के द्वारा आपकी स्तुति करने वाले पुरुष पृथ्वी पर यदि आपके समान हो जाते हैं तो इसमें अधिक आश्चर्य नहीं है| क्योंकि उस स्वामी से क्या प्रयोजन, जो इस लोक में अपने अधीन पुरुष को सम्पत्ति के द्वारा अपने समान नहीं कर लेता | (भक्तामर स्तोत्र के 25 वें श्लोक का अर्थ ) देव अथवा विद्वानों के द्वारा पूजित ज्ञान वाले होने से आप ही बुद्ध हैं| तीनों लोकों में शान्ति करने के कारण आप ही शंकर हैं| हे धीर! मोक्षमार्ग की विधि के करने वाले होने से आप ही ब्रह्मा हैं| और हे स...

।। श्री भक्तामर स्त्रोत

भक्तामर प्रणत मौलिमणि प्रभाणा। मुद्योतकं दलित पाप तमोवितानम् ॥ सम्यक् प्रणम्य जिन पादयुगं युगादा। वालंबनं भवजले पततां जनानाम् ॥१॥ झुके हुए भक्त देवो के मुकुट जड़ित मणियों की प्रथा को प्रकाशित करने वाले, पाप रुपी अंधकार के समुह को नष्ट करने वाले, कर्मयुग के प्रारम्भ में संसार समुन्द्र में डूबते हुए प्राणियों के लिये आलम्बन भूत जिनेन्द्रदेव के चरण युगल को मन वचन कार्य से प्रणाम करके (मैं मुनि मानतुंग उनकी स्तुति करुँगा)| *** यः संस्तुतः सकल वाङ्मय तत्वबोधा। द् उद्भूत बुद्धिपटुभिः सुरलोकनाथैः ॥ स्तोत्रैर्जगत्त्रितय चित्त हरैरुदरैः। स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ॥२॥ सम्पूर्णश्रुतज्ञान से उत्पन्न हुई बुद्धि की कुशलता से इन्द्रों के द्वारा तीन लोक के मन को हरने वाले, गंभीर स्तोत्रों के द्वारा जिनकी स्तुति की गई है उन आदिनाथ जिनेन्द्र की निश्चय ही मैं (मानतुंग) भी स्तुति करुँगा| *** बुद्ध्या विनाऽपि विबुधार्चित पादपीठ। स्तोतुं समुद्यत मतिर्विगतत्रपोऽहम् ॥ बालं विहाय जलसंस्थितमिन्दु बिम्ब। मन्यः क इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ॥३॥ देवों के द्वारा पूजित हैं सिंहासन जिनका, ऐसे हे जिनेन्द्र मैं बुद्धि रहित होते हुए भी निर्लज्ज होकर स्तुति करने के लिये तत्पर हुआ हूँ क्योंकि जल में स्थित चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को बालक को छोड़कर दूसरा कौन मनुष्य सहसा पकड़ने की इच्छा करेगा? अर्थात् कोई नहीं| *** वक्तुं गुणान् गुणसमुद्र शशाङ्क्कान्तान्। कस्ते क्षमः सुरगुरुप्रतिमोऽपि बुद्ध्या ॥ कल्पान्त काल् पवनोद्धत नक्रचक्रं। को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम् ॥४॥ हे गुणों के भंडार! आपके चन्द्रमा के समान सुन्दर गुणों को कहने लिये ब्रहस्पति के सद्रश भी कौन पुरुष समर्थ है? अर्थात् कोई नहीं| अथवा प्रल...

श्री भक्तामर स्त्रोत

भक्तामर स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंगजी ने की थी। इस स्तोत्र का दूसरा नाम आदिनाथ स्तोत्र भी है। यह संस्कृत में लिखा गया है तथा प्रथम शब्द ‘भक्तामर’ होने के कारण ही इस स्तोत्र का नाम ‘भक्तामर स्तोत्र’ पड़ गया। श्री भक्तामर स्तोत्र जैन समुदाय का सबसे प्रसिद्ध स्तोत्र है। इसमें सातवीं शताब्दी में आचार्य मानतुंगा द्वारा संस्कृत में लिखे गए 48 छंद हैं। चलिए यहां पढ़ते हैं भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा – यह श्री भक्तामर स्त्रोत है । स्त्रोत के Lyrics के बाद PDF और Video भी है जरूर देखे। bhaktamar stotra lyrics भक्तामर-प्रणत-मौलि-मणि-प्रभाणा- मुद्योतकं दलित-पाप-तमो-वितानम् । सम्यक्-प्रणम्य जिन प-पाद-युगं युगादा- वालम्बनं भव-जले पततां जनानाम् ॥1॥ य: संस्तुत: सकल-वां मय-तत्त्व-बोधा- दुद्भूत-बुद्धि-पटुभि: सुर-लोक-नाथै: । स्तोत्रैर्जगत्-त्रितय-चित्त-हरैरुदारै:, स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ॥2॥ बुद्ध्या विनापि विबुधार्चित-पाद-पीठ! स्तोतुं समुद्यत-मतिर्विगत-त्रपोऽहम् । बालं विहाय जल-संस्थित-मिन्दु-बिम्ब- मन्य: क इच्छति जन: सहसा ग्रहीतुम् ॥3॥ वक्तुं गुणान्गुण-समुद्र ! शशांक-कान्तान्, कस्ते क्षम: सुर-गुरु-प्रतिमोऽपि बुद्ध्या । कल्पान्त-काल-पवनोद्धत-नक्र-चक्रं , को वा तरीतुमलमम्बुनिधिं भुजाभ्याम् ॥4॥ सोऽहं तथापि तव भक्ति-वशान्मुनीश! कर्तुं स्तवं विगत-शक्ति-रपि प्रवृत्त: । प्रीत्यात्म-वीर्य-मविचार्य मृगी मृगेन्द्रम् नाभ्येति किं निज-शिशो: परिपालनार्थम् ॥5॥ अल्प-श्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम, त्वद्-भक्तिरेव मुखरी-कुरुते बलान्माम् । यत्कोकिल: किल मधौ मधुरं विरौति, तच्चाम्र-चारु-कलिका-निकरैक-हेतु: ॥6॥ त्वत्संस्तवेन भव-सन्तति-सन्निबद्धं, पापं क्षणात्क्षयमुपैति शरीरभाजाम् । आक्रान्त-...

भक्तामर स्तोत्र Sanskrit Shlok With Hindi

सर्वरोगनाशक है भक्तामर स्तोत्र भक्तामर स्तोत्र के नियमित पढ़ने से कैंसर से मुक्ति मिल सकती है, भक्तामर स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंगजी ने की थी। इस स्तोत्र का दूसरा नाम आदिनाथ स्तोत्र भी है। यह संस्कृत में लिखा गया है तथा प्रथम शब्द ‘भक्तामर’ होने के कारण ही इस स्तोत्र का नाम ‘ भक्तामर स्तोत्र‘ पड़ गया। ये वसंत-तिलका छंद में लिखा गया है। हम लोग ‘भक्ताम्बर’ बोलते हैं जबकि ये ‘भक्तामर’ है। भक्तामर स्तोत्र में 48 श्लोक हैं। हर श्लोक में मंत्र शक्ति निहित है। इसके 48 के 48 श्लोकों में ‘म’, ‘न’, ‘त’ व ‘र’ ये 4 अक्षर पाए जाते हैं। इस स्तोत्र की रचना के संदर्भ में प्रमाणित है कि आचार्य मानतुंगजी को जब राजा भोज ने जेल में बंद करवा दिया था, तब उन्होंने भक्तामर स्तोत्र की रचना की तथा 48 श्लोकों पर 48 ताले टूट गए। मानतुंग आचार्य 7वीं शताब्दी में राजा भोज के काल में हुए हैं। इस स्तोत्र में भगवान आदिनाथ की स्तुति की गई है। भक्तामर स्तोत्र का अब तक लगभग 130 बार अनुवाद हो चुका है। बड़े-बड़े धार्मिक गुरु चाहे वो हिन्दू धर्म के हों, वे भी भक्तामर स्तोत्र की शक्ति को मानते हैंतथा मानते हैं कि भक्तामर स्तोत्र जैसा कोई स्तोत्र नहीं। अपने आप में बहुत शक्तिशाली होने के कारण यह स्तोत्र बहुत ज्यादा प्रसिद्ध हुआ। यह स्तोत्र संसार का इकलौता स्तोत्र है जिसका इतनी बार अनुवाद हुआ, जो कि इस स्तोत्र के प्रसिद्ध होने को दर्शाता है। मंत्र थैरेपी में भी इसका उपयोग विदेशों में होता है, इसके भी प्रमाण हैं। भक्तामर स्तोत्र के पढ़ने का कोई एक निश्चित नियम नहीं है। भक्तामर स्तोत्र को किसी भी समय प्रात:, दोपहर, सायंकाल या रात में कभी भी पढ़ा जा सकता है। इसकी कोई समयसीमा निश्चित नहीं है, क्योंकि ये सिर्फ भक्ति प...