भक्तिकाल हिंदी साहित्य का कौन सा काल है?

  1. हिन्दी साहित्य का इतिहास, कालबिभाजन, नामकरण और चार युग (Hindi Sahitya ka Itihaas, Kaal Vibhajan, Naamkaran, Aur Chaar Yug):
  2. भक्तिकाल हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग । Complete information of the Bhaktikal । भक्तिकाल की सम्पूर्ण जानकरी । Bhaktikal ki Jankari ।
  3. Hindi sahitya Quiz
  4. भक्ति काल किसे कहते हैं? भक्तिकाल का समय, विभाजन, प्रमुख कवि और विशेषताएँ
  5. भक्तिकाल: हिंदी साहित्य का स्वर्णकाल पर निबंध
  6. हिंदी साहित्य का इतिहास/भक्तिकाल


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हिन्दी साहित्य का इतिहास, कालबिभाजन, नामकरण और चार युग (Hindi Sahitya ka Itihaas, Kaal Vibhajan, Naamkaran, Aur Chaar Yug):

Table of Contents • • • • • • • • • • • हिन्दी साहित्य का इतिहास मुख्य रूप से हिन्दी भाषा का मूल उद्गम और उसके क्रमिक विकास को समझाता है क्योंकी साहित्य में परिवर्तित सामूहिक चित्तवृत्तियों को आधार बनाकर साहित्य की परंपरा का व्यवस्थित अनुशीलन ही साहित्य का इतिहास कहलाता है और यह अध्ययन मैं मुख्य रूप से हिंदी साहित्य या फिर हिंदी भाषा के विकास तथा इस भाषा में विभिन्न समय में किए गए रचनाओं के लेखन तथा उनके प्रामाणिकता और अध्ययन के उपर ही है। इस पोस्ट से हम हिंदी साहित्य के पृष्ठभूमि, कालबिभाजन, हिंदी साहित्य के नामकरण तथा हिंदी साहित्य के प्रमुख चार युग: आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिक काल के उपर संक्षेप मैं आलोचना करेंगे। हिंदी विश्व में सबसे अधिक बोले जाने वाले भाषाओं में से एक है। हिंदी की जड़ें प्राचीन भारत में इस्तेमाल की जाने वाली संस्कृत भाषा तक जाती हैं लेकिन मध्य युगीन भारत के अवधी, मागधी, अर्ध-मागधी और मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य को हिन्दी का आरम्भिक साहित्य माना जाता है। इसीलिए इसके साहित्य के इतिहास को भी विश्व के प्रमुख साहित्य में से एक माना जाता है। हिंदी भाषा का साहित्य मुख्यतः इस भाषा का विकाश तथा इसके विभिन्न रचनाओं जैसे काव्य, निबंध, उपन्यास, नाटक, गद्य रचना के वारे में है, जो इस साहित्य के वारे में लिखने के लिए अवशेषों के रूप में इतिहास कारों को सहायता प्रदान करती है। हिंदी साहित्य का प्रारंभ (Hindi Sahitya Ka Prarambh):- हिंदी साहित्य का प्रारंभ मुख्यतः सातवीं और आठवीं सदी के बीच में माना जाता है। कोई कोई पुस्तक में आपको इसका आरंभ सातवीं सदी में भी लिखा हुआ मिल जायेगा। पर अधिकांश इतिहासकार इसको आठवीं सदी ही मानते है। पर राहुल संस्कृतायन ने हिंदी ...

भक्तिकाल हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग । Complete information of the Bhaktikal । भक्तिकाल की सम्पूर्ण जानकरी । Bhaktikal ki Jankari ।

भक्तिकाल की सम्पूर्ण जानकरी Complete information of the B haktikal भक्तिकाल- एक परिचय B haktikal - an introduction हिन्दी साहित्य के इतिहास के वर्गीकरण में भक्तिकाल का द्वितीय स्थान है। भक्तिकाल का आरम्भ अधिकांश विद्वान सन् 1350 से मानते हैं, किन्तु आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी सन् 1375 से स्वीकारते हैं। इस काल को भक्ति का स्वर्ण युग कहा गया है क्योंकि इस काल में संत कबीर, जायसी, तुलसीदास, सूरदास इन समकालीन कवियों ने अपनी रचनाओं का निर्माण कर भक्ति को चरम पर पहुँचाया। उपासना भेद की दृष्टि से इस काल के साहित्य को दो भागों में बाँटा गया है। एक सगुण भक्ति और दूसरा निर्गुण भक्ति। निर्गुण के दो भेद किए गए है। संतो की निर्गुण उपासना अर्थात ज्ञानमार्गी शाखा तथा सूफियों की निर्गुण उपासना अर्थात प्रेममार्गी शाखा। सगुण में विष्णु के दो अवतार राम और कृष्ण की उपासना साहित्य सृजित है। इस पोस्ट में भक्तिकाल की सम्पूर्ण जानकारी (Bhaktikal ki jankari) प्रदान की जा रही है। Bhaktikal भक्तिकाल की परिस्थितियाँ- 1. राजनैतिक परिस्थितियाँ - हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल तक उत्तरी भारत में मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना हो चुकी थी। किन्तु इन दिनों मुगलों और अफगानों में परस्पर संघर्ष जारी हुआ । इस समय मुस्लिमों में हिन्दुओं से संबंध स्थापित कर अपना शासन दृढ करना शुरू किया। इस कालखण्ड में दिल्ली पर तुगलक वंश, लोधी वंश, बाबर, हुमायुं, अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ का शासन रहा है। मुगलवंश काल राजनीतिक दृष्टि से प्रायः यह काल अशान्त और संघर्षमय रहा था। इस काल में हिन्दुओं और मुसलिमों में द्वेष बढ गया था। जात-पात, छुआ-छूत, ऊँच-नीच की भावना अत्यधिक बढ गई थी। भक्तिकाल का साहित्य राजनीतिक वातावरण के प्रतिकूल है। कबीर...

Hindi sahitya Quiz

2. तुलसीदास रचित ’विनय पत्रिका’ में – (अ) विनय और भक्ति के पद है✔️ (ब) वैराग्य के पद हैं (स) बाल लीला के पद हैं (द) उपरोक्त सभी 3. केशवदास कवि होने के साथ-साथ – (अ) गायक भी थे (ब) आचार्य भी थे✔️ (स) संत भी थे (द) पाखण्ड-विरोधी भी थे 4. केशवदास की रचनाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण रचना कौन-सी है? (अ) कविप्रिया (ब) रसिकप्रिया (स) रामचन्द्रिका✔️ (द) विज्ञानगीता 5. ’कवित-रत्नाकर’ का रचयिता कौन था ? (अ) नरोत्तमदास (ब) केशवदास (स) सेनापति ✔️ (द) नंददास 6. ’’अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम’’, यह उक्ति किसकी है? (अ) कबीरदास (ब) मलूकदास ✔️ (स) नंददास (द) रहीमदास 7. सूफी सम्प्रदाय के प्रमुख कवि थे – (अ) जायसी ✔️ (ब) रहीम (स) रसखान (द) केशवदास 8. ’अखरावट’ और ’आखिरी कलम’ किसकी रचनायें है? (अ) रसखान (ब) खुसरो (स) जायसी ✔️ (द) कुतबन 9. नागमती का विरह वर्णन हिन्दी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ विरह-वर्णन है? यह किस ग्रंथ में है? (अ) अखरावट में (ब) पद्मावत में ✔️ (स) मधुमालती में (द) मृगावती में हिंदी साहित्य भक्तिकाल (QUIZ-22) 10. मीरा के पदों में – (अ) राजस्थानी भाषा का प्रयोग हुआ है ✔️ (ब) अवधी का प्रयोग हुआ है (स) खङी बोली का प्रयोग हुआ है (द) उपरोक्त सभी 11. महाप्रभु वल्लभाचार्य ने पुष्टिमार्ग की स्थापना की। पुष्टिमार्ग में ईश्वर प्राप्ति का सबसे मुख्य साधन है- (अ) ज्ञान (ब) वैराग्य (स) भक्ति ✔️ (द) गुरु 12. अष्टछाप के कवियों ने – (अ) केवल ब्रजभाषा में लिखा (ब) कृष्णभक्ति के केवल माधुर्य पक्ष को ग्रहण किया (स) किसी महाकाव्य की रचना नहीं की, केवल स्फुट रचनायें लिखीं (द) उपरोक्त सभी ✔️ 13. ’’इन मुसलमान हरिजनन पै, कोटिक हिन्दू वारिये’’, यह उक्ति किस कवि के बारे में है? (अ) जायसी के बारे में (ब) रह...

भक्ति काल किसे कहते हैं? भक्तिकाल का समय, विभाजन, प्रमुख कवि और विशेषताएँ

हिन्दीसाहित्यमेंआपनेकईतरहकेकालकेबारेमेंसुनाहोगा, जैसेभक्तिकाल, रीतिकाल, आदि।दरअसल, आचार्यरामचंद्रशुक्लनेहिंदीसाहित्यकेइतिहासकोचारभागोंमेंविभाजितकियाहै- वीरगाथाकाल, भक्तिकाल, रितिकालतथाआधुनिककाल।औरआजहमहिंदीसाहित्यकेस्वर्णयुग, भक्तिकालकासमय, विभाजन, प्रमुखकविऔरविशेषताएँकेबारेमेंबातकरनेवालेहैं। वैसेआपकीजानकारीकेलिएबतादूँकिविक्रम सम्वत् 1050 से 1375 तककासमयवीरगाथाकालमें, 1375 से 1700 तककासमयभक्तिकालमें, 1700 से 1900 तककासमयरितिकालमेंतथा 1900 सेअबतककासमयआधुनिककालमेंआताहै।औरसभीसमयोंमेंएक-से-बढ़करएकरचयिताहुएहैं। Table of Contents • • • • • • भक्तिकालकिसेकहतेहैं? भक्तिकालहिंदीसाहित्यकास्वर्णयुगकहाजाताहै।इसकासमयवि.सं 1375 से 1700 तककाहै।सूर, तुलसी, कबीर, जायसीयेचारोंमहाकविभक्तिकालमेंहीउत्पन्नहुए।इसीकालनेहिंदीहिन्दीसाहित्यगगनकेसूर्यऔरचंद्रमाकोजन्मदिया। यद्यपिइसकालमेंप्रेममार्गीतीनधाराएँप्रवाहितहुईं, तथापिइनतीनोंधाराओंमेंएकहीभक्तिकाअंतःस्रोतप्रचाहितहोताहुआदृष्टिगोचरहोताहैइसीलिएइसकोभक्तिकालकहाजाताहै।प्रेमभीभक्तिकाहीएकरूपहै। भक्तिकालकाविभाजन भक्तिकाव्यदोधाराओंमेंविभक्तहुआ, एक निर्गुणधाराऔरदूसरी सगुणधारा। • निर्गुणधाराकेप्रवर्त्तकोंनेनिराकारभगवानकीउपासनापरबालदियाहै। • निर्गुणधाराभीज्ञानमार्गीतथाप्रेममार्गीधाराओंमेंविभक्तहोगई। • ज्ञानमार्गीशाखाकेप्रमुखकविकबीरथेतथाप्रेममार्गीशाखाकेमालिकमुहम्मदजायसी। • इसीप्रकारसगुणधाराकेकवियोंनेसाकारभगवानकीउपासनापरबालदिया। सगुणधाराभीकृष्ण-भक्तिशाखाऔरराम-भक्तिशाखामेंविभक्तहोगई। कृष्ण-भक्तिकेप्रमुखकविसूरथेतथाराम-भक्तिशाखाकेतुलसी।इनदोनोंमहकवियोंनेसाहित्यकीइतनीश्रीवृद्धिकीजितनीकिसीकालमेंनहींहुई।भक्ति-कालकेसभीकविस्वच्छंदप्रकृतिकेथे, उन्हेंराज्याश्रयबिलकुलपसंदन...

भक्तिकाल: हिंदी साहित्य का स्वर्णकाल पर निबंध

भक्तिकाल: हिंदी साहित्य का स्वर्णकाल पर निबंध | Essay on The Golden Era of Hindi Literature in Hindi! भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का स्वर्णिम काल कहा जाता है । कविवर रहीम, तुलसी, सूर, जायसी, मीरा, रसखान आदि इसी युग की देन हैं जिन्होंने धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत कविताओं छंदों आदि के माध्यम से समाज के सम्मुख वैचारिक क्रांति को जन्म दिया । इन कवियों ने भक्ति भाव के साथ ही साथ लोगों में नवीन आत्मचेतना का संचार भी किया तथा अपने उन्नत काव्य के माध्यम से समाज को एक नई दिशा दी ।भक्तिकालीन काव्यधारा को प्रमुख रूप से दो शाखाओं में विभाजित किया गया है – (1) निर्गुण भक्ति शाखा तथा (2) सगुण भक्ति शाखा । निर्गुण मार्गी शाखा के प्रमुख कवि कबीर, रैदास आदि थे । इनमें कबीरदास जी सर्वाधिक प्रचलित हुए । वे इसी युग के श्रेष्ठ संत रामानंद के शिष्य थे जिन्होंने तत्कालीन समय में व्याप्त जात-पाँत के भेद-भाव को दूर कर समाज में मानवतावाद की स्थापना का प्रयास किया । कबीरदास जी ने उन्हीं के मार्ग का अनुसरण किया तथा अपनी काव्य रचना में निर्गुण मत का प्रचार-प्रसार किया । भक्ति युग की सगुण मार्गी शाखा को पुन: दो प्रमुख धाराओं-राममार्गी धारा तथा कृष्णमार्गी धारा के रूप में विभाजित किया जा सकता है । राममार्गी धारा के प्रमुख कवि तुलसीदास जी हुए हैं जिन्होंने भगवान राम की उपासना से संबंधित श्रेष्ठ काव्यों की रचना कर ख्याति प्राप्ति की । वहीं दूसरी ओर कृष्णमार्गी धारा के प्रमुख कवि सूरदास जी हुए हैं । सूरदास जी ने कृष्ण भक्ति का मार्ग अपनाते हुए कृष्ण लीला का जो सजीव चित्रण संसार के सम्मुख प्रस्तुत, किया वह अतुलनीय है । इसके अतिरिक्त निर्गुण शाखा के मलिक मुहम्मद ‘जायसी’ का नाम भी प्रमुख है जिन्होंने प्रेम के म...

हिंदी साहित्य का इतिहास/भक्तिकाल

[ (११) मीराबाई––ये मेड़तिया के राठौर रत्नसिंह की पुत्री, राव दूदाजी की पौत्री और जोधपुर के बसाने वाले प्रसिद्ध राव जोधाजी की प्रपौत्री थीं। इनका जन्म संवत् १५७३ में चोकडी नाम के एक गाँव में हुआ था और विवाह उदयपुर के महाराणा-कुमार भोजराजजी के साथ हुआ था। ये आरंभ ही से कृष्णभक्ति में लीन रहा करती थीं। विवाह के उपरांत थोड़े दिनों में इनके पति-का परलोकवास हो गया। ये प्रायः मंदिर में जाकर उपस्थित भक्तों और संतों के बीच श्रीकृष्ण भगवान् की मूर्त्ति के सामने आनंद-मग्न होकर नाचती और गाती थीं। कहते हैं कि इनके इस राजकुल-विरुद्ध आचरण से इनके स्वजन लोकनिंदा के भय से रुष्ट रहा करते थे। यहाँ तक कहा जाता है कि इन्हें कई बार विष देने का प्रयत्न किया गया, पर भगवत्कृपा से विष का कोई प्रभाव इनपर न हुआ। घरवालों के व्यवहार से खिन्न होकर ये द्वारका और वृंदावन के मंदिरों में घूम घूमकर भजन सुनाया करती थीं। जहाँ जातीं वहाँ इनका देवियों का सा समान होता। ऐसा प्रसिद्ध है कि घरवालों से तंग आकर इन्होंने गोस्वामी तुलसीदासजी को यह पद लिखकर भेजा था–– जाके प्रिय न राम वैदेही। सो नर तजिय कोटि बैरी सम जद्यपि परम सनेही॥ नाते सबै राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहाँ-लौं। अंजन कहा आँखि जौ फूटै, बहुतक कहाँ कहाँ लौं। पर मीराबाई की मृत्यु द्वारका में संवत् १६०३ में हो चुकी थी। अतः यह जनश्रुति किसी की कल्पना के आधार पर चल पड़ी। मीराबाई की उपासना 'माधुर्य' भाव की थी अर्थात् वे अपने इष्टदेव श्रीकृष्ण की भावना प्रियतम या पति के रूप में करती थीं। पहले यह कहा जा चुका है कि इस भाव की उपासना में रहस्य का समावेश अनिवार्य है इनके दो पद नीचे दिए जाते हैं–– ⁠मन रे परसि हरि के चरन। सुभग सीतल कमल-कोमल विविध-ज्वाला-हरन॥ जो चरन प्रहल...