भर्तृहरि का जीवन परिचय

  1. भर्तृहरि का जीवन परिचय In Sanskrit pdf
  2. नीति शतक श्लोक हिंदी अंग्रेजी अर्थ सहित Bhartrihari Neeti Shatak Hindi English
  3. महान कवि बाबा भर्तृहरि जी (Bhartṛhari)
  4. जीवन परिचय
  5. साहित्यकार तिथिवार : भर्तृहरि : अपने जीवन के प्रत्यक्ष अनुभव से सिखाने वाले रचयिता
  6. Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay : जानिए महाकवि जयशंकर प्रसाद की रचनाएं, साहित्यिक परिचय, साहित्यिक विशेषताएं
  7. Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay : जानिए महाकवि जयशंकर प्रसाद की रचनाएं, साहित्यिक परिचय, साहित्यिक विशेषताएं
  8. महान कवि बाबा भर्तृहरि जी (Bhartṛhari)
  9. जीवन परिचय
  10. साहित्यकार तिथिवार : भर्तृहरि : अपने जीवन के प्रत्यक्ष अनुभव से सिखाने वाले रचयिता


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भर्तृहरि का जीवन परिचय In Sanskrit pdf

विषयसूची Show • • • • • • • • • भर्तृहरि एक महान संस्कृत कवि थे। संस्कृत साहित्य के इतिहास में भर्तृहरि एक नीतिकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनके शतकत्रय (नीतिशतक, शृंगारशतक, वैराग्यशतक) की उपदेशात्मक कहानियाँ भारतीय जनमानस को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं। प्रत्येक शतक में सौ-सौ श्लोक हैं। बाद में इन्होंने गुरु गोरखनाथ के शिष्य बनकर वैराग्य धारण कर लिया था इसलिये इनका एक लोकप्रचलित नाम बाबा भरथरी भी है। == जीवन चरित == IMP इनके आविर्भाव काल के सम्बन्ध में मतभेद है। इनकी जीवनी विविधताओं से भरी है। राजा भर्तृहरि ने भी अपने काव्य में अपने समय का निर्देश नहीं किया है। अतएव दन्तकथाओं, लोकगाथाओं तथा अन्य सामग्रियों के आधार पर इनका जो जीवन-परिचय उपलब्ध है वह इस प्रकार है: परम्परानुसार भर्तृहरि विक्रमसंवत् के प्रवर्तक के अग्रज माने जाते हैं। विक्रमसंवत् ईसवी सन् से ५६ वर्ष पूर्व प्रारम्भ होता है जो विक्रमादित्य के प्रौढ़ावस्था का समय रहा होगा। भर्तृहरि विक्रमादित्य के अग्रज थे, अत: इनका समय कुछ और पूर्व रहा होगा। विक्रमसंवत् के प्रारम्भ के विषय में भी विद्वानों में मतभेद हैं। कुछ लोग ईसवी सन् ७८ और कुछ लोग ई० सन् ५४४ में इसका प्रारम्भ मानते हैं। ये दोनों मत भी अग्राह्य प्रतीत होते हैं। फारसी ग्रंथ कलितौ दिमन: में पंचतंत्र का एक पद्य 'शशिदिवाकर योर्ग्रहपीडनम्' का भाव उद्धृत है। पंचतंत्र में अनेक ग्रंथों के पद्यों का संकलन है। संभवत: पंचतंत्र में इसे नीतिशतक से ग्रहण किया गया होगा। फारसी ग्रंथ ५७९ ई० से ५८१ ई० के एक फारसी शासक के निमित्त निर्मित हुआ था। इसलिए राजा भर्तृहरि अनुमानत: ५५० ई० से पूर्व हम लोगों के बीच आये थे। भर्तृहरि उज्जयिनी के राजा थे। ये 'विक्रमादित्य' उपाधि धारण कर...

नीति शतक श्लोक हिंदी अंग्रेजी अर्थ सहित Bhartrihari Neeti Shatak Hindi English

॥ नीति शतकम् भर्तृहरिविरचितम् ॥ परिचय: भर्तृहरि विरचित नीति शतकम् में मनुस्मृति और महाभारत की गम्भीर नैतिकता, कालीदास की-सी प्रतिभा के साथ प्रस्फुटित हुई है। विद्या, वीरता, दया, मैेत्री, उदारता, साहस, कृतज्ञता, परोपकार, परायणता आदि मानव जीवन को ऊंचा उठानेेेे वाली उदात्त भावनाओं का उन्होेेेंनेेे बड़ी सरल एवं सरस पद्यावली में वर्णन किया है। उन्होंने इसमें जिन नीति-सिद्धांतों का वर्णन किया है वे मानव मात्र के लिए अंधरेेे में दीपक के समान हैं। पाश्चात्य लेखक आर्थर डब्ल्यू राइडर के अनुसार छोटे-छोटे पद्य अथवा श्लोक लिखने में भारतीय सबसे आगे हैं। उनका इस रीति पर अधिकार, कल्पना की उड़ान, अनुभूति की गहराई और कोमलता- सभी अत्युत्कृष्ट हैं। जिन व्यक्तियो ने ऐसे पद्य लिखे हैं उनमें भर्तृहरि अग्रणी हैं। नीति शतक के श्लोक हिंदी अंग्रेजी अर्थ सहित भर्तृहरि विरचितम् मंगलाचरणम् दिक्‍कालाद्यनवच्छिन्‍नानन्‍तचिन्‍मात्रमूर्तये । स्‍वानुभूत्‍येकमानाय नम: शान्‍ताय तेजसे ।। 1 ।। अर्थ: दशों दिशाओं और तीनो कालों से परिपूर्ण, अनंत और चैतन्य-स्वरुप अपने ही अनुभव से प्रत्यक्ष होने योग्य, शान्त और तेजरूप परब्रह्म को नमस्कार है । My salutation to the peaceful light, whose form is only pure intelligence unlimited and unconditioned by space, time, and the principal means of knowing which is self-perception. यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता, साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः। अस्मत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या, धिक् तां च तं च मदनं च इमां च मां च ।। 2 ।। अर्थ: मैं जिसके प्रेम में रात दिन डूबा रहता हूँ – किसी क्षण भी जिसे नहीं भूलता, वह मुझे नहीं चाहती, किन्तु किसी और ही पुरुष को चाहती है । वह पुरुष किसी और...

महान कवि बाबा भर्तृहरि जी (Bhartṛhari)

राजा भर्तृहरि एक महान शासक, तपस्वी एवं संस्कृत साहित्य के महान ज्ञाताओं में से एक थे। वे अपने समय में ही नहीं बल्कि आज भी शब्द विद्या के महान आचार्य कहे जाते हैं। भर्तृहरि ने वैराग्य धारण करने के बाद संस्कृत के कई ऐसे ग्रंथों की रचना भी की थी जो आज भी पढ़े जाते हैं। राजा भरथरी का जन्म गढ़ उज्जैन में हुआ था। उनसे जन्म के समय नामकरण के लिए काशी से ब्राह्मण आए थे। उन्‍होनें ज्‍योतिष गणना करके बताया कि यह बालक बारह वर्ष तक राज करेगा उसके बाद तेरहवें वर्ष में यह योगी बना जायेगा। बाबा भर्तृहरि जी संस्कृत साहित्य के एक ऐसे लोकप्रिय कवि हैं जिनके नाम से पढ़े लिखे अथवा अनपढ़ सभी भारतीय परिचित हैं। इनका पूरा नाम गोपीचन्द भर्तृहरि था जो लोक में तथा लोकगाथाओं में गोपीचन्द भरथरी के नाम से प्रसिद्ध हैं। ये ऐसे व्यक्ति थे जिन पर सरस्वती और लक्ष्मी की अपार कृपा थी। कारण यह कि भर्तृहरि विद्वान् लेखक तो थे ही साथ ही वे उज्जैन (मध्यप्रदेश) के राजा भी थे। जनश्रुति के अनुसार आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व भर्तृहरि जी मध्यप्रदेश में स्थित उज्जयिनी के राजा थे। ये परमार वंश में उत्पन्न हुए थे तथा विक्रमादित्य इनके छोटे भाई थे। ये वही विक्रमादित्य माने जाते हैं, जिन्होंने 57 ई० पू० में विक्रम संवत् चलाया था। विदेशी आक्रान्ताओं को भारत से भगाने के कारण विक्रमादित्य लोक कथाओं में वीर विक्रमाजीत के नाम से लोकविख्यात हुए हैं। विक्रमादित्य भर्तृहरि के भाई होने के कारण उनके मन्त्री थे। बाद में विद्याविलासी एवं ईश्वरभक्त भर्तृहरि ने विक्रमादित्य को ही राजकाज सौंप दिया था। धर्म और नीतिशास्त्र के लिए माने जाने वाले महान राजा से योगिराज बनने वाले उज्जैन के महान राजा भर्तृहरि, व्यक्तित्व के धनी, त्याग, वैराग्य औ...

जीवन परिचय

जीवन परिचय किसी व्यक्ति विशेष के जीवन वृतांत को जीवनी में किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के जीवन के अन्तर्वाह्य स्वरूप का घटनाओं के आधार पर कलात्मक चित्रण रहता है। इससे उसके गुण दोषमय व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होती है। सामान्यतः जीवनी में सारे जीवन में किए हुए कार्यों का वर्णन होता है पर इस नियम का पालन आवश्यक नहीं है। शिप्ले के अनुसार:- “जीवनी लेखक को अपने नायक के संपूर्ण जीवन अथवा उसके यथेष्ट भाग की चर्चा करनी चाहिए जीवनी में इतिहास साहित्य और व्यक्ति की त्रिवेणी होती है। परंतु इस में इतिहास की भांति घटनाओं का आंकलन नहीं होता इसमें मनुष्य के जीवन की व्याख्या एवं उसके व्यक्तिगत जीवन का अध्ययन प्रत्यक्ष और वास्तविक रुप से प्राप्त होता है।” जीवनी लेखक जीवनी लेखक अपने नायक के चरित्र में स्वाभाविकता लाने के लिए जीवन को क्रमशः अन्वेषित एवं उद्घाटित करना चाहिए अर्थात आरंभ से ही उसके केवल गुणों को ही नहीं वरन दोषों को भी तटस्थ भाव से वर्णन करना चाहिए। हमारे यहां जीवन चरित्र लिखने की विशेष परंपरा नहीं रही है व्यक्ति कालीन वार्ताओं नाभादास का ‘ भक्तमाल‘ आदि ग्रंथों में जीवन संबंधी इतिवृत्त मिल जाते हैं। लेखन जीवन परिचय के लेखन का आरंभ 19वीं शताब्दी के अंत से होता है कार्तिक प्रसाद खत्री , भारतेंदु , राधाकृष्ण दास , बालमुकुंद गुप्त आदि इस युग के प्रसिद्ध जीवनी लेखक हैं। आज जीवनी साहित्य नायक को जीवन तथ्यों को वैज्ञानिक रूप से प्रस्तुत करता है। आज के प्रमुख जीवनीकारों की कृतियों में – • रामविलास शर्मा कृत ‘निराला की साहित्य साधना’, • राहुल सांस्कृत्यायन कृत्य ‘नए भारत के नए लोग’, ‘सूरदास’, • पृथ्वी सिंह की ‘लेनिन’ तथा ‘कार्ल मार्क्स’, • विष्णु प्रभाकर कृत ‘आवारा मसीहा’, प्रमुख जीवनियां है। ...

साहित्यकार तिथिवार : भर्तृहरि : अपने जीवन के प्रत्यक्ष अनुभव से सिखाने वाले रचयिता

'हिंदी से प्यार है' समूह की इस "साहित्यकार तिथिवार" परियोजना के अंतर्गत हम प्रतिदिन आपको हिंदी साहित्य जगत के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर से मिलवाते हैं। इन प्रख्यात साहित्यकारों के जन्मदिन/पुण्यतिथि के अनुसार एक कैलेंडरनुमा प्रारूप में बँधी यह आत्मीय शब्दांजलि आप सभी का स्नेह पाकर अभिभूत है। हमारा प्रमुख आकर्षण तिथियों से परे रचनाकार हैं, जिनकी उपस्थिति से यह पटल पावन और शाश्वत हो गया है। विगत नवंबर माह से यह सफ़र सफलता के नए कीर्तिमान गढ़ता हुआ इस माह के साहित्यकारों की अनमोल धरोहर लेकर उपस्थित है। हे सुधी पाठकों! निम्नलिखित तीन श्लोक ध्यान देकर पढ़ें - द्रष्टव्येषु किमुत्तमं मृगदृशां प्रेमप्रसन्नं मुखं घ्रातव्येष्वपि किं तदास्यपवन: श्राव्येषु किं तद्वच:। किं स्वाद्येषु तदोष्ठपल्लवरसः स्पृश्येषु किं तत्तनु- र्ध्येय किं नवयौवनं सहृदयैः सर्वत्र तद्विभ्रमः।।७।। ( सहृदय रसिक जन के लिए देखने योग्य श्रेष्ठ वस्तु क्या है ? - मृगनयनी का प्रेम से प्रसन्न मुख। घ्राण के योग्य उत्तम पदार्थ क्या है ? - उसके मुख का श्वास। सुनने योग्य क्या है ? - उसके प्रिय वचन। स्वादिष्ट पदार्थों में सेवन योग्य क्या है ? - उसके ओष्ठपल्लवों का रस। स्पर्श योग्य क्या है ? - उसका शरीर। और ध्यान योग्य क्या है ? - उसका नवयौवन और हाव-भाव का विलास।) करे श्लाघ्यस्त्यागः शिरसि गुरुपादप्रणयिता मुखे सत्या वाणी विजयि भुजयोर्वीर्यमतुलम्। हृदि स्वच्छा वृत्तिः श्चुतमधिगतं श्रवणयो- र्विनाऽप्यैश्वर्ये प्रकृतिमहतां मण्डनमिदम्।।६५।। ( हाथों की शोभा दान में है , सिर की शोभा गुरुजन के चरणों में प्रणाम करने में है , मुख की शोभा सत्य बोलने में और भुजाओं की शोभा अपार बल प्रदर्शित करने में है। हृदय की श्लाघा स्वच्छता में और कानों की ...

Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay : जानिए महाकवि जयशंकर प्रसाद की रचनाएं, साहित्यिक परिचय, साहित्यिक विशेषताएं

महाकवि कथाकार नाटककार जयशंकर प्रसाद को कौन नहीं जानता। कक्षा पांचवी से लेकर 12वीं तक ग्रेजुएशन से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन तक हिंदी साहित्य में जयशंकर प्रसाद की रचनाएं देखने को मिलती हैं। जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय और रचनाएं ना केवल पढ़ने में सरल और सुलभ होती हैं बल्कि हमें यथार्थ ज्ञान और प्रेरणा भी देती है। छायावाद के कवि जयशंकर प्रसाद रचना को अपनी साधना समझते थे। वह उपन्यास को ऐसे लिखते थे मानो जैसे वह उसे पूजते हो। जयशंकर प्रसाद जी के बारे में अभी बातें खत्म नहीं हुई है उनकी कई सारी कविताएं कहानियां है जो आपको यथार्थ का भाव कराएंगी। आइए विस्तार से जानते हैं Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay के बारे में। नाम जयशंकर प्रसाद जन्म सन 1890 ईस्वी में जन्म स्थान उत्तर प्रदेश राज्य के काशी में पिता का नाम श्री देवी प्रसाद शैक्षणिक योग्यता अंग्रेजी, फारसी, उर्दू, हिंदी व संस्कृत का स्वाध्याय रुचि साहित्य के प्रति, काव्य रचना, नाटक लेखन लेखन विधा काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध मृत्यु 15 नवंबर, 1937 ईस्वी में साहित्य में पहचान छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक भाषा भावपूर्ण एवं विचारात्मक शैली विचारात्मक, अनुसंधानात्मक, इतिवृत्तात्मक, भावात्मक एवं चित्रात्मक। साहित्य में स्थान जयशंकर प्रसाद जी को हिंदी साहित्य में नाटक को नई दिशा देने के कारण ‘प्रसाद युग’ का निर्माणकर्ता तथा छायावाद का प्रवर्तक कहा गया है। This Blog Includes: • • • • • • • • • • • • • • • • Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay महान लेखक और कवि जयशंकर प्रसाद का जन्म – सन् 1889 ई. में हुआ तथा मृत्यु – सन् 1937 ई में हुई।बहुमुखी प्रतिभा के धनी जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था| बचपन में ...

Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay : जानिए महाकवि जयशंकर प्रसाद की रचनाएं, साहित्यिक परिचय, साहित्यिक विशेषताएं

महाकवि कथाकार नाटककार जयशंकर प्रसाद को कौन नहीं जानता। कक्षा पांचवी से लेकर 12वीं तक ग्रेजुएशन से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन तक हिंदी साहित्य में जयशंकर प्रसाद की रचनाएं देखने को मिलती हैं। जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय और रचनाएं ना केवल पढ़ने में सरल और सुलभ होती हैं बल्कि हमें यथार्थ ज्ञान और प्रेरणा भी देती है। छायावाद के कवि जयशंकर प्रसाद रचना को अपनी साधना समझते थे। वह उपन्यास को ऐसे लिखते थे मानो जैसे वह उसे पूजते हो। जयशंकर प्रसाद जी के बारे में अभी बातें खत्म नहीं हुई है उनकी कई सारी कविताएं कहानियां है जो आपको यथार्थ का भाव कराएंगी। आइए विस्तार से जानते हैं Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay के बारे में। नाम जयशंकर प्रसाद जन्म सन 1890 ईस्वी में जन्म स्थान उत्तर प्रदेश राज्य के काशी में पिता का नाम श्री देवी प्रसाद शैक्षणिक योग्यता अंग्रेजी, फारसी, उर्दू, हिंदी व संस्कृत का स्वाध्याय रुचि साहित्य के प्रति, काव्य रचना, नाटक लेखन लेखन विधा काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध मृत्यु 15 नवंबर, 1937 ईस्वी में साहित्य में पहचान छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक भाषा भावपूर्ण एवं विचारात्मक शैली विचारात्मक, अनुसंधानात्मक, इतिवृत्तात्मक, भावात्मक एवं चित्रात्मक। साहित्य में स्थान जयशंकर प्रसाद जी को हिंदी साहित्य में नाटक को नई दिशा देने के कारण ‘प्रसाद युग’ का निर्माणकर्ता तथा छायावाद का प्रवर्तक कहा गया है। This Blog Includes: • • • • • • • • • • • • • • • • Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay महान लेखक और कवि जयशंकर प्रसाद का जन्म – सन् 1889 ई. में हुआ तथा मृत्यु – सन् 1937 ई में हुई।बहुमुखी प्रतिभा के धनी जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था| बचपन में ...

महान कवि बाबा भर्तृहरि जी (Bhartṛhari)

राजा भर्तृहरि एक महान शासक, तपस्वी एवं संस्कृत साहित्य के महान ज्ञाताओं में से एक थे। वे अपने समय में ही नहीं बल्कि आज भी शब्द विद्या के महान आचार्य कहे जाते हैं। भर्तृहरि ने वैराग्य धारण करने के बाद संस्कृत के कई ऐसे ग्रंथों की रचना भी की थी जो आज भी पढ़े जाते हैं। राजा भरथरी का जन्म गढ़ उज्जैन में हुआ था। उनसे जन्म के समय नामकरण के लिए काशी से ब्राह्मण आए थे। उन्‍होनें ज्‍योतिष गणना करके बताया कि यह बालक बारह वर्ष तक राज करेगा उसके बाद तेरहवें वर्ष में यह योगी बना जायेगा। बाबा भर्तृहरि जी संस्कृत साहित्य के एक ऐसे लोकप्रिय कवि हैं जिनके नाम से पढ़े लिखे अथवा अनपढ़ सभी भारतीय परिचित हैं। इनका पूरा नाम गोपीचन्द भर्तृहरि था जो लोक में तथा लोकगाथाओं में गोपीचन्द भरथरी के नाम से प्रसिद्ध हैं। ये ऐसे व्यक्ति थे जिन पर सरस्वती और लक्ष्मी की अपार कृपा थी। कारण यह कि भर्तृहरि विद्वान् लेखक तो थे ही साथ ही वे उज्जैन (मध्यप्रदेश) के राजा भी थे। जनश्रुति के अनुसार आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व भर्तृहरि जी मध्यप्रदेश में स्थित उज्जयिनी के राजा थे। ये परमार वंश में उत्पन्न हुए थे तथा विक्रमादित्य इनके छोटे भाई थे। ये वही विक्रमादित्य माने जाते हैं, जिन्होंने 57 ई० पू० में विक्रम संवत् चलाया था। विदेशी आक्रान्ताओं को भारत से भगाने के कारण विक्रमादित्य लोक कथाओं में वीर विक्रमाजीत के नाम से लोकविख्यात हुए हैं। विक्रमादित्य भर्तृहरि के भाई होने के कारण उनके मन्त्री थे। बाद में विद्याविलासी एवं ईश्वरभक्त भर्तृहरि ने विक्रमादित्य को ही राजकाज सौंप दिया था। धर्म और नीतिशास्त्र के लिए माने जाने वाले महान राजा से योगिराज बनने वाले उज्जैन के महान राजा भर्तृहरि, व्यक्तित्व के धनी, त्याग, वैराग्य औ...

जीवन परिचय

जीवन परिचय किसी व्यक्ति विशेष के जीवन वृतांत को जीवनी में किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के जीवन के अन्तर्वाह्य स्वरूप का घटनाओं के आधार पर कलात्मक चित्रण रहता है। इससे उसके गुण दोषमय व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति होती है। सामान्यतः जीवनी में सारे जीवन में किए हुए कार्यों का वर्णन होता है पर इस नियम का पालन आवश्यक नहीं है। शिप्ले के अनुसार:- “जीवनी लेखक को अपने नायक के संपूर्ण जीवन अथवा उसके यथेष्ट भाग की चर्चा करनी चाहिए जीवनी में इतिहास साहित्य और व्यक्ति की त्रिवेणी होती है। परंतु इस में इतिहास की भांति घटनाओं का आंकलन नहीं होता इसमें मनुष्य के जीवन की व्याख्या एवं उसके व्यक्तिगत जीवन का अध्ययन प्रत्यक्ष और वास्तविक रुप से प्राप्त होता है।” जीवनी लेखक जीवनी लेखक अपने नायक के चरित्र में स्वाभाविकता लाने के लिए जीवन को क्रमशः अन्वेषित एवं उद्घाटित करना चाहिए अर्थात आरंभ से ही उसके केवल गुणों को ही नहीं वरन दोषों को भी तटस्थ भाव से वर्णन करना चाहिए। हमारे यहां जीवन चरित्र लिखने की विशेष परंपरा नहीं रही है व्यक्ति कालीन वार्ताओं नाभादास का ‘ भक्तमाल‘ आदि ग्रंथों में जीवन संबंधी इतिवृत्त मिल जाते हैं। लेखन जीवन परिचय के लेखन का आरंभ 19वीं शताब्दी के अंत से होता है कार्तिक प्रसाद खत्री , भारतेंदु , राधाकृष्ण दास , बालमुकुंद गुप्त आदि इस युग के प्रसिद्ध जीवनी लेखक हैं। आज जीवनी साहित्य नायक को जीवन तथ्यों को वैज्ञानिक रूप से प्रस्तुत करता है। आज के प्रमुख जीवनीकारों की कृतियों में – • रामविलास शर्मा कृत ‘निराला की साहित्य साधना’, • राहुल सांस्कृत्यायन कृत्य ‘नए भारत के नए लोग’, ‘सूरदास’, • पृथ्वी सिंह की ‘लेनिन’ तथा ‘कार्ल मार्क्स’, • विष्णु प्रभाकर कृत ‘आवारा मसीहा’, प्रमुख जीवनियां है। ...

साहित्यकार तिथिवार : भर्तृहरि : अपने जीवन के प्रत्यक्ष अनुभव से सिखाने वाले रचयिता

'हिंदी से प्यार है' समूह की इस "साहित्यकार तिथिवार" परियोजना के अंतर्गत हम प्रतिदिन आपको हिंदी साहित्य जगत के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर से मिलवाते हैं। इन प्रख्यात साहित्यकारों के जन्मदिन/पुण्यतिथि के अनुसार एक कैलेंडरनुमा प्रारूप में बँधी यह आत्मीय शब्दांजलि आप सभी का स्नेह पाकर अभिभूत है। हमारा प्रमुख आकर्षण तिथियों से परे रचनाकार हैं, जिनकी उपस्थिति से यह पटल पावन और शाश्वत हो गया है। विगत नवंबर माह से यह सफ़र सफलता के नए कीर्तिमान गढ़ता हुआ इस माह के साहित्यकारों की अनमोल धरोहर लेकर उपस्थित है। हे सुधी पाठकों! निम्नलिखित तीन श्लोक ध्यान देकर पढ़ें - द्रष्टव्येषु किमुत्तमं मृगदृशां प्रेमप्रसन्नं मुखं घ्रातव्येष्वपि किं तदास्यपवन: श्राव्येषु किं तद्वच:। किं स्वाद्येषु तदोष्ठपल्लवरसः स्पृश्येषु किं तत्तनु- र्ध्येय किं नवयौवनं सहृदयैः सर्वत्र तद्विभ्रमः।।७।। ( सहृदय रसिक जन के लिए देखने योग्य श्रेष्ठ वस्तु क्या है ? - मृगनयनी का प्रेम से प्रसन्न मुख। घ्राण के योग्य उत्तम पदार्थ क्या है ? - उसके मुख का श्वास। सुनने योग्य क्या है ? - उसके प्रिय वचन। स्वादिष्ट पदार्थों में सेवन योग्य क्या है ? - उसके ओष्ठपल्लवों का रस। स्पर्श योग्य क्या है ? - उसका शरीर। और ध्यान योग्य क्या है ? - उसका नवयौवन और हाव-भाव का विलास।) करे श्लाघ्यस्त्यागः शिरसि गुरुपादप्रणयिता मुखे सत्या वाणी विजयि भुजयोर्वीर्यमतुलम्। हृदि स्वच्छा वृत्तिः श्चुतमधिगतं श्रवणयो- र्विनाऽप्यैश्वर्ये प्रकृतिमहतां मण्डनमिदम्।।६५।। ( हाथों की शोभा दान में है , सिर की शोभा गुरुजन के चरणों में प्रणाम करने में है , मुख की शोभा सत्य बोलने में और भुजाओं की शोभा अपार बल प्रदर्शित करने में है। हृदय की श्लाघा स्वच्छता में और कानों की ...