छोटे संस्कृत श्लोक easy

  1. धर्म पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
  2. प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
  3. Sanskrit Shlok


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धर्म पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।। क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति।। भावार्थ: उठो, हे सज्जनों, सावधान रहो। श्रेष्ठ (ज्ञानी) पुरुषों को प्राप्त करके (जाकर) ज्ञान प्राप्त करें। त्रिकालदर्शी (बुद्धिमान व्यक्ति) उस पथ (दर्शन का मार्ग) को उस्तरा की तेज (पार करने में कठिन) धारा (बहुत कठिन) के समान (समान) कहते हैं। प्रथमेनार्जिता विद्या द्वितीयेनार्जितं धनं। तृतीयेनार्जितः कीर्तिः चतुर्थे किं करिष्यति।। भावार्थ: जिसने पहले अर्थात् ब्रह्मचर्य आश्रम में ज्ञान अर्जित नहीं किया, दूसरे अर्थात् गृहस्थ आश्रम में धन नहीं कमाया, तीसरा अर्थात् वानप्रस्थ आश्रम में यश नहीं अर्जित किया, वह चौथे अर्थात् संन्यास आश्रम में क्या करेगा? स जीवति गुणा यस्य धर्मो यस्य जीवति। गुणधर्मविहीनो यो निष्फलं तस्य जीवितम्।। भावार्थ: जिसने भी धार्मिक जीवन जिया है वह सदाचारी, गुणवान है और उसका जीवन सफल होता है और वह वही जीवन जीता है और जो लोग धर्म से दूर रहकर सद्गुणों और धार्मिक कर्मों से दूर रहते हैं,उनका जीवन निष्प्रभावी होता है, उनका जीवन मृत्यु के समान होता है। अविज्ञाय नरो धर्मं दुःखमायाति याति च। मनुष्य जन्म साफल्यं केवलं धर्मसाधनम्।। भावार्थ: जो अज्ञानी है, वही व्यक्ति धर्म को नहीं जानता, उसका जीवन व्यर्थ है और वह सदैव दुखी रहता है और जो धर्म के नियम का पालन करता है, वही व्यक्ति अपने जीवन को सफल बना सकता है। अपने जीवन को सुख और संपूर्णता के साथ जीता है। ।। ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।। भावार्थ: हे ईश्वर! हम दोनों शिष्य और शिक्षक की एक साथ रक्षा करें, हम दोनों एक साथ सीखने के फल का आनंद लें, हम दोनों को एक साथ ज्ञान प्राप्त कर...

प्रेरणादायक संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

आकारसदृशप्रज्ञः प्रज्ञया सदृशागमः | आगमैः सदृशारम्भ आरम्भसदृशोदयः || अर्थात- जैसा उसका शरीर था, वैसी ही उसकी बुद्धि भी थी, जैसी उसकी बुद्धि थी, वैसा ही उसे शास्त्रों का भी ज्ञान था, जैसा उसका शास्त्राभ्यास था, वैसे ही उसके उद्यम भी थे, और जैसे उसके उद्यम थे, वैसी ही उसकी सफलता भी होती है। न हि कश्चित विजानाति किं कस्य श्वो भविष्यति अतः श्वः करणीयानी कुर्यादद्यैव बुद्धिमान !! अर्थ- भविष्य का किसी को पता नहीं, कल क्या होगा यह कोई नहीं जानता है। इसलिए कल के करने योग्य कार्य को आज कर लेने वाला ही बुद्धिमान है! अर्थ : मनुष्य के शरीर में स्थित आलस्य ही मनुष्य का सबसे महान शत्रु होता है, तथा परिश्रम जैसा कोई मित्र नहीं होता, क्योंकि परिश्रम करने वाला व्यक्ति कभी दुखी नहीं होता, तथा आलस्य करने वाला व्यक्ति सदैव दुखी रहता है। षड् दोषा: पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता। निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता।। अर्थ : वैभव और उन्नति चाहने वाले पुरुष को ये छः दोषो का त्याग कर देना चाहिए : नींद, तन्द्रा (ऊंघना), डर, क्रोध, आलस्य तथा दीर्घ शत्रुता (कम समय लगने वाले कार्यो में अधिक समय नष्ट करना)। ब्राहम्णम् दशवर्षम् तु शतवर्ष तु भूमियम् | पितापुत्रौ विजानीयाद् ब्राह्मणस्तु तयोः || अर्थात :- यदि ब्राह्मण दस वर्ष का है,और क्षेत्रिय सौ वर्ष का है,तो इन दोनों के मध्य में ब्राह्मण आयु में अत्यंत छोटा होने पर भी पिता के स्थान वाला है,और सौ वर्ष का क्षत्रिय उस दस वर्षीय बालक के समक्ष पुत्र के स्थान वालावसमझने योग्य है। ब्राह्मणकुशलं पृच्छेत्क्षत्रबन्धुमनामयम् | वैश्यम् क्षेमं समागम्य शूद्रमारोग्यमेव च || अर्थात:- ब्राह्मण को देखकर उससे कुशल पूछो , क्षत्रिय बन्धु से अनामय, वैश्य से क्षेम और ...

Sanskrit Shlok

Sanskrit Shlok in Hindi : दोस्तों ये बात तो आप भी बहुत अच्छे से जानते हैं, की संस्कृत भाषा का हम सभी लोगो के जीवन में अहम रोल है। जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य के जो भी संस्कार होते हैं। वे सभी संस्कृत भाषा में होते हैं। संस्कृत भाषा प्राचीन काल से चलती आ रही है। पुराण उपनिषद व ग्रंथ भी संस्कृत में ही लिखे गए हैं। इसे देव भाषा भी कहते हैं। इन सभी बातों से पता चलता है की संस्कृत का ज्ञान होना हमारे लिए आवश्यक है। प्राचीन समय में ऋषि मुनि ज्ञान बढ़ाने हेतु संस्कृत में श्लोक का प्रयोग करते थे। जिन्हे पढ़कर वास्तव में मन को बड़ी ही शांति मिलती है। इसलिए दोस्तों आज की पोस्ट में हमने प्राचीन समय के कुछ चुनिंदा संस्कृत श्लोक और उनके अर्थ लिखे हैं। जिन्हे एक बार आपको जरूर पढ़ना चाहिए। तदा एव सफलता विषये चिन्तनं कुर्मः यदा वयं सिद्धाः भवामः!! अर्थ- तभी सफलता के विषय में चिंतन करे जब आप कार्य करके उसे पूरा कर पाए, वरना बिना कार्य किये सफलता के बारे में सोचना व्यर्थ है! निवर्तयत्यन्यजनं प्ररमादतः स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते गुणाति तत्त्वं हितमिछुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः स गुरु निर्गघते !! अर्थ- जो दूसरों को प्रमाद (नशा, गलत काम ) करने से रोकते हैं, स्वयं निष्पाप रास्ते पर चलते हैं, हित और कल्याण की कामना रखनेवाले को तत्त्वबोध (यथार्थ ज्ञान का बोध) कराते हैं, उन्हें गुरु कहते हैं! ॐ न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते !! अर्थ- इस सम्पूर्ण संसार में ज्ञान के समान पवित्र और कुछ भी नहीं है। वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा !! अर्थ- जिनका एक दन्त टुटा हुआ है जिनका शरीर हाथी जैसा विशालकाय है और तेज सूर्य की किरणों की तरह है बलशाली है। उनसे मेरी प्रा...