देशी गाय फोटो

  1. भारतीय गायों की देसी नस्लें
  2. गाय के गोबर से आभूषण, नेम प्लेट बनाने की उप्र की शिक्षिका की अनूठी पहल – ThePrint Hindi
  3. कत्तलीसाठी दुभत्या गायींची अवैध वाहतूक; गाडी पलटी झाली अन् समोर आली धक्कादायक बाब.. I Cow Smuggling
  4. खिल्लार गाय
  5. कोल्हापूरकरांचा नादखुळा! लाखोंचा खर्च करत गाईचं डोहाळे जेवण, नेटकरी म्हणतात हौसेला मोल नाही
  6. 'देशी गाय किसी काम की नहीं' सुनकर लगा धक्का, 4 लाख की नौकरी छोड़ शुरू कर दी डेयरी
  7. देसी गाय पालन एक उन्नत व्यवसाय: संपूर्ण जानकारी
  8. गाय के फोटो वाली 30 देशों की करेंसी, 40 डाक टिकट; 30 साल से कर रहे संग्रह
  9. देशी गाय और विदेशी( जर्सी,होलेस्टियन) गाय मे अंतर जानकार दंग रह जाएंगे । Rajiv Dixit – RajivDixitMp3.Com
  10. भारतीय गायों की देसी नस्लें


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भारतीय गायों की देसी नस्लें

साहीवाल प्रजाति साहीवाल भारत की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति है। यह गाय मुख्य रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पाई जाती है। यह गाय सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देती हैं जिसकी वजह से ये दुग्ध व्यवासायी इन्हें काफी पसंद करते हैं। यह गाय एक बार मां बनने पर करीब 10 महीने तक दूध देती है। अच्छी देखभाल करने पर ये कहीं भी रह सकती हैं।साहीवाल गाय मुख्य रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पाई जाती है। गिर प्रजाति गिर गाय को भारत की सबसे ज्यादा दुधारू गाय माना जाता है। यह गाय एक दिन में 50 से 80 लीटर तक दूध देती है। इस गाय के थन इतने बड़े होते हैं। इस गाय का मूल स्थान काठियावाड़ (गुजरात) के दक्षिण में गिर जंगल है, जिसकी वजह से इनका नाम गिर गाय पड़ गया। भारत के अलावा इस गाय की विदेशों में भी काफी मांग है। इजराइल और ब्राजील में भी मुख्य रुप से इन्हीं गायों का पाला जाता है। गिर गाय को भारत की सबसे ज्यादा दुधारू गाय माना जाता है। लाल सिंधी प्रजाति पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु लाल रंग की इस गाय को अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए जाना जाता है। लाल रंग होने के कारण इनका नाम लाल सिंधी गाय पड़ गया। यह गाय पहले सिर्फ सिंध इलाके में पाई जाती थीं। लेकिन अब यह गाय पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और ओडिशा में भी पायी जाती हैं। इनकी संख्या भारत में काफी कम है। साहिवाल गायों की तरह लाल सिंधी गाय भी सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देती हैं। लाल रंग की इस गाय को अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए जाना जाता है। राठी प्रजाति राठी गाय की नस्ल ज्यादा दूध देने के लिए जानी जाती है। राठी नस्ल का राठी नाम राठस जनजाति के नाम पर पड़ा। यह गाय राजस्थान के गंगानगर, बीकानेर और जैसलमेर इलाकों में ...

गाय के गोबर से आभूषण, नेम प्लेट बनाने की उप्र की शिक्षिका की अनूठी पहल – ThePrint Hindi

तिलहर थाना क्षेत्र के अंतर्गत प्राथमिक पाठशाला की अध्यापिका पूजा गंगवार खाली समय का उपयोग गाय के गोबर से आभूषण और अन्य चीजें बनाने में करती हैं और लोगों को इसका प्रशिक्षण भी देती हैं। पूजा गंगवार ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘बेकार समझकर सड़कों पर छोड़ी जा रही देशी गाय को संरक्षण देने और रोजगार के अवसर पैदा करने के उद्देश्य से मैंने यह कार्य शुरू किया और अब दूर दराज से लोग हमारे उत्पाद देखने और प्रशिक्षण लेने आ रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमने अयोध्या के आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय के 100 प्रोफेसर और सैकड़ों छात्र-छात्राओं को भी गाय के गोबर से उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दिया है और हमारे उत्पादों की अमेजॉन, फ्लिपकार्ट जैसी साइट पर इतनी भारी मांग है कि हम आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम जो वस्तुएं बनाते हैं उनमें अगरबत्ती, हवन सामग्री, वॉल हैंगिंग, नेमप्लेट, ट्राफियां शामिल हैं।’’ शाहजहांपुर के जिलाधिकारी उमेश प्रताप सिंह ने कहा, ‘‘पूजा गंगवार की पहल बहुत सराहनीय है। हमने अपने जिले में हर प्रधान को दस-दस देशी गाय पालने के लिए प्रोत्साहित किया है। पूजा की यह मुहिम गौ संरक्षण, महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उत्कृष्ट उदाहरण है।’’ राजकीय मेडिकल कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. सलीम अहमद के मुताबिक, ‘‘गाय के गोबर से बने उत्पाद सूखने के बाद अगर घर में रखे जाएं तो यह स्वास्थ्य की दृष्टि से कोई बुरा प्रभाव नहीं डालते हैं तथा इसमें औषधीय गुण होने के कारण यह स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।’’ जिला उद्योग केंद्र के सहायक महाप्रबंधक अरुण कुमार पांडे ने बताया कि जिलाधिकारी के निर्देश पर वह जल्द ही गाय के गोबर से उत्पाद निर्माण के संबंध में एक कार्यशाला आयोज...

कत्तलीसाठी दुभत्या गायींची अवैध वाहतूक; गाडी पलटी झाली अन् समोर आली धक्कादायक बाब.. I Cow Smuggling

यावेळी प्रवासी वाहतुकीसाठी वापरल्या जाणाऱ्या वाहनात एक देशी गाय, एक गीर जातीची गाय, एक जर्सी गाय अशा एकूण तीन गायी कमी जागेमध्ये निर्दयपणे कोंबून भरलेल्या अवस्थेत पोलिसांना आढळल्या. तिन्ही गायींचे चारी पाय व तोंड रस्सीने बांधल्याने या गायी जखमी व अशक्त झाल्या होत्या. पोलिसांनी तातडीने स्थानिकांच्या मदतीने या गायींना बाहेर काढून प्राथमिक उपचार केले. कतलीसाठी नेण्यात येणाऱ्या या गायी दुभत्या असल्याचे भयाण वास्तव यावेळी समोर आले. दरम्यान, अंधाराचा फायदा घेऊन गायींनी भरलेले वाहन सोडून चालक पसार झाला होता. पोलिसांनी हे वाहन जप्त करून वाहनातील तिन्ही गायींच्या चारापाण्याची सोय पुसेगाव पोलिस ठाण्याच्या आवारातच केली. याप्रकरणी पोलिस कॉन्स्टेबल विलास घोरपडे यांच्या फिर्यादीवरून अज्ञाताविरोधात पुसेगाव पोलिस ठाण्यात गुन्हा दाखल करण्यात आला आहे. पुढील तपास पोलिस उपनिरीक्षक बाळासाहेब लोंढे यांच्या मार्गदर्शनाखाली पोलिस हवालदार आनंदा गंबरे हे करत आहेत.

खिल्लार गाय

खिल्लार गाय मूळ देश भारत आढळस्थान पंढरपूर, मंगळवेढा, आटपाडी, सांगोला, खानापूर, कवठे महाकाळ, जत, सोलापूर, सांगली, चडचण, अथणी, विजापूर. पुणे, सातारा, कोल्हापूर, उस्मानाबाद, बेळगाव, बिजापूर, धारवाड, गुलबर्गा, बागलकोट मानक उपयोग शेतीकाम, शर्यत, अवजड वाहतूक आणि लांबपल्ल्याच्या प्रवासाला उपयुक्त वैशिष्ट्य वजन • • Bos (primigenius) indicus खिल्लार किंवा खिल्लारी गाय हा शुद्ध भारतीय गोवंश असून, प्रामुख्याने महाराष्ट्रातील हा महाराष्ट्रातील लोकप्रिय गोवंशांपैकी एक असून या गोवंशाला महाराष्ट्राची शान असे म्हणतात. शारीरिक रचना [ ] या गोवंशाचा रंग सहसा पांढरा असतो. काही प्रमाणात किंचीत मळकट रंग सुद्धा आढळतो. कातडी घट्ट चितकलेली व चमकदार असते. कातडीवरील केस चमकदार व बारीक असतात. यांची उंची जवळपास १४०-१५० सें मी पर्यंत असते. शिंगे गुलाबी, काळसर, लांब आणि पाठीमागे निमुळते असतात. कर्नाटक खिल्लार मध्ये शिंगे लहान निमुळती व मुळाशी जवळ असतात. तर माणदेशी खिल्लार मध्ये जाडजूड व मुळाशी थोडे दूर अशी शिंगे असतात. काटक शरीर व तापट स्वभाव यामुळे हे बैल अनेकदा मारके असतात. डोळे काळे व लांबट आकाराचे असतात. चेहऱ्याच्या तुलनेत कान लहान व शेवटला टोक असते. मान लांब व रुंद असते. गळ्याची पोळी म्हणजे गलकंबल मोठे नसते. वशिंड म्हणजे खांदे मध्यम असतात. माणदेशी खिल्लारचे वशिंड मध्यम असते. उत्तम आरोग्य असणाऱ्या या प्रजातीचे खूर गच्च व काळे असतात. शेपूट लांबलचक सापासारखे व शेपूटगोंडा काळा व झुपकेदार असतो. बैल मजबूत व तापट असल्याने हा गोवंश शर्यती व शेतीच्या कामासाठी सर्वोत्कृष्ट मानला जातो. खिल्लार गोवंशाचे उपप्रकार [ ] • काजळी खिल्लार: ज्या बैलाची / गाईची शिंगे, डोळ्याचा कड़ा, पापण्या, नाकपूड़ी, खुर, शेपुटगोंडा इ...

कोल्हापूरकरांचा नादखुळा! लाखोंचा खर्च करत गाईचं डोहाळे जेवण, नेटकरी म्हणतात हौसेला मोल नाही

मातृत्व ही महिलांच्या जिवनातील सुंदर अनुभव असतो.कुटुंबातील महिला गरोदर असेल तर संपूर्ण कुटुंबच तिचे कोड कौतुक करीत असतात. मात्र कोल्हापूर जिल्ह्यातील एका शेतकऱ्याने गायीचेही डोहाळ जेवण करीत, गायीच्या मातृत्वाचा उत्सव साजरा केला आहे. एका हौशी शेतकऱ्याने आपल्या लाडक्या गाईचं डोहाळे जेवण ठेवलं होतं. हौसेला मोल नसते. मग कृषी संस्कृती जपणाऱ्या भारतात बळीराजा आपल्या परिवाराची नाही तर कृषीसाठी लागणाऱ्या सर्व घटकांची काळजी घेत असतो. कृषी संस्कृतीचा महत्वाचा घटक असलेल्या गाईचे डोहाळे जेवण शेतकऱ्याने एखाद्या लग्नासारखे केले. हौसेपोटी लोक काय करतील याचा नेम नाही, याचंच एक उदाहरण समोर आलंय. कोल्हापुरात एका शेतकऱ्यानं चक्क आपल्या गाईचं डोहाळे जेवण घातलं आहे. एवढचं नाहीतर या कार्यक्रमासाठी या शेतकऱ्यानं लाखोंचा खर्च केलाय. गावच्या वेशीवर बॅनर लावण्यापासून ते घरासमोर मोठा मंडप घालण्यापासून सगळी हौस या मालकानं केली. यावेळी हजार लोकांच्या पगंती बसल्या. गाईला पंचारतीने ओवाळण्यात आले. महिलांनी तिला गोग्रास भरवला अन् ओटीपूजन केले. आठवणीतील क्षण कॅमेऱ्यात बंदीस्त करण्यात आले. देशी गाईबद्दल आदर व्यक्त करणाऱ्या या अनोख्या डोहाळ जेवणाला परिसरात चांगलीच चर्चा आहे. मालकानं या गाईचं नाव लावण्या ठेवलं असून, कार्यक्रमात लावण्याचं डोहाळे जेवण असा मोठा बॅनरही लावण्यात आला होता. • होम • ई-पेपर • फोटो • करिअर • हेल्थ • अर्थभान • बाजार • अर्थवृत्त • मनी-मंत्र • रेसिपी • ट्रेंडिंग • विचारमंच • संपादकीय • स्तंभ • विशेष लेख • महाराष्ट्र • शहर • मुंबई • पुणे • ठाणे • पिंपरी चिंचवड • नवी मुंबई • वसई विरार • पालघर • नाशिक / उत्तर महाराष्ट्र • नागपूर / विदर्भ • छत्रपती संभाजीनगर • कोल्हापूर • सत्ताकारण • देश-विदे...

'देशी गाय किसी काम की नहीं' सुनकर लगा धक्का, 4 लाख की नौकरी छोड़ शुरू कर दी डेयरी

गाजियाबाद. ‘देशी गायें ज्यादा दूध नहीं देती हैं और अब इनके बछड़ों की भी खेती में कोई जरूरत नहीं रही. देशी गायें उपयोगिता के नजरिए से एकदम बेकार हो चुकी हैं और इनसे अब कोई लाभ नहीं है. इनको केवल पूजा-पाठ के लिए रखा जा सकता है या फिर जो श्रद्धालु दान देकर गौशाला चलाते हैं, केवल उनमें ही इनकी जगह बची हुई है.’ लोगों में इस तरह की धारणा बहुत ज्यादा तेजी से घर कर रही है. क्योंकि साधारण किसान और पशुपालक भैंसों और जर्सी गायों को पालते हैं और उनके दूध देना बंद करने पर या बूढ़े हो जाने पर उन्हें कसाई को बेच देते हैं. जिससे उनकी आमदनी भी होती है. लेकिन देशी गायों के साथ ऐसा करने में कानूनी रोक के साथ-साथ उनकी धार्मिक मान्यता आड़े आती है. समाज में गहराई तक जड़ जमा चुकी इस धारणा को गाजियाबाद की हेथा डेयरी ने कमजोर करने का काम किया है. असीम रावत ने गाजियाबाद में हेथा डेयरी को सफलतापूर्वक मुनाफे में चलाकर ये दिखा दिया है कि देशी गायों से आज भी लाभ कमाया जा सकता है. सिकंदरपुर में हिंडन हवाई अड्डे के पास हेथा डेयरी है. हेथा डेयरी के संस्थापक असीम रावत की कहानी भी हर नया और बेहतर काम करने वालों के जीवन की तरह ही उतार-चढ़ाव से भरपूर है. असीम रावत ने लखनऊ के मशहूर लॉ मार्टिनियर कॉलेज से 12वीं की परीक्षा पास की. आगरा के आरबीएस कॉलेज से कंप्यूटर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया. हैदराबाद के IIIT से कंप्यूटर इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. इसके बाद असीम रावत ने करीब 14 साल तक आईटी सेक्टर में शानदार नौकरी की. जिसमें 11 साल तो उन्होंने केवल एचपी में नौकरी की. इस दौरान काम के सिलसिले में वे लगातार विदेश आते-जाते रहे और पूरी दुनिया घूमी. 14 साल की नौकरी के बाद असीम की तनख्वाह 4 लाख रुपये महीना थ...

देसी गाय पालन एक उन्नत व्यवसाय: संपूर्ण जानकारी

देसी नस्ल की गाय की सम्पूर्ण जानकारी गायपालन एक उन्नत व्यवसाय है,इसे बड़े या छोटे दोनों पैमाने पर किया जा सकता है। भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुधन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। • यह स्वरोजगार का एक साधन है, • करीब 16% लघु किसानों का आमदनी का स्रोत पशुपालन है। • पशुपालन 8.8% रोजगार प्रदान करती है • यह 4.11% जीडीपी में योगदान देती है। बाजार में दूध तथा इससे बनी चीजों की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है।इसका इस्तेमाल चाय से लेकर घरेलू पकवान तथा घी,दही,मख्खन,पनीर, मिठाई तथा दवाई के रूप में किया जाता है। गाय का दूध अत्यधिक पौष्टिक तथा सुपाच्य होता है। शिशुओं के विकास के लिए गाय का दूध महत्वपूर्ण होता है। इन दिनों गौपालन के क्षेत्र में नई नई वैज्ञानिक खोजें की गई है। जिससे कम मेहनत में अधिक लाभ कमा सकते हैं। साथ ही बाछा बाछी को बेच कर अतिरिक्त लाभ कमाया जा सकता है साथ ही गोबर के विभिन्न उपयोग है जैसे जलावन,गोबर गैस प्लांट,गोबर खाद (जो की ऑर्गेनिक खेती का सबसे महत्वपूर्ण अंग है) इत्यादि। भारत प्राचीन काल से ही एक कृषि प्रधान देश रहा है और देसी गाय युगों से भारतीय जीवन शैली का हिस्सा होने के साथ-साथ अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है. गाय का दूध और दुग्ध उत्पाद बहुसंख्यक भारतीय आबादी के लिए प्रमुख पोषण स्रोत हैं. देसी गाय का दूध A2 प्रकार का दूध है जो शिशुओं और वयस्कों में मधुमेह से लड़ने में मदद करता है और यहां तक ​​कि वैज्ञानिकों ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया कि यह विदेशी गायों के दूध से बेहतर है. जब उर्वरक और ट्रैक्टर अज्ञात थे, गाय संपूर्ण कृषि को बनाए रखने वाला एकमात्र स्रोत था. गायों के बिना कृषि संभव नहीं थी. गायों ने गोबर की खाद के रूप में उर्वरकों का स्रोत प्रदान किया, जबकि बैलों ने...

गाय के फोटो वाली 30 देशों की करेंसी, 40 डाक टिकट; 30 साल से कर रहे संग्रह

क्या आप जानते हैं कि गायों पर भारत ही नहीं विश्व के 40 देशों में भी डाक टिकट जारी हुए हैं। 30 देशों के नोट और सिक्कों पर गाय की तस्वीर छपी है। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी एक व्यक्ति के पास गायों से जुड़ी 35 हजार वस्तुओं का कलेक्शन हो सकता है। इतना कि उन्हें समझने में आपको दो दिन का वक्त लग जाए। विभिन्न देशों की करेंसी, जिन पर गाय की तस्वीर छपी है। रवि ने कैसे की शुरुआत रविप्रकाश का जन्म 1980 में हुआ। करीब दस साल की उम्र में उन्हें कुछ ऐसी माचिस मिली जिस पर गाय की तस्वीर थी। उन्हें यह अच्छी लगी और वह इस तरह की और माचिस डिब्बियां जुटाने लगे। उनकी यह शुरुआत शौक बन चुकी थी। इसके बाद कुछ भारतीय नोट मिले जिन पर गाय की तस्वीरें थीं। बस, इसी के बाद से उन्होंने गायों से जुड़ी वस्तुओं का संग्रह शुरू कर दिया और इसी के साथ गायों के प्रति उनका प्रेम बढ़ता गया। 1995 में रवि ने 15 साल की उम्र में दूध बेचने वाले के घर से 4 महीने की एक बछड़ी लाकर पाली थी, जिसका नाम धोरी रखा। उससे दो गायों ने जन्म दिया। उसी से उनके पास आज 62 गायें हैं। 30 साल में वह गायों से जुड़ी 35 हजार 720 वस्तुओं का कलेक्शन कर चुके हैं। इसके अलावा उनके संग्रह में गायों के चित्रित पोस्टकार्ड, डाक टिकट, माचिस बॉक्स, सिक्के, मिट्टी-काष्ठ, प्लास्टिक व घातु से निर्मित अनेक प्रकार की गाय व कृष्ण चित्र क वस्तुएं, गायों पर लिखा साहित्य, गायों के पहनने के विभिन्न आभूषण, श्रीकृष्ण व गाय पर आधारित फिल्में, मारवाड़ी कथाओं व गानों की कैसेट, गाय की आकृति व चित्रों वाली अनेक वस्तुएं हैं। 30 देशों की करेंसी, 40 देशों के टिकट आमतौर पर माना जाता है कि गाय केवल भारत में ही पूजनीय है, लेकिन विश्व के 30 देश ऐसे हैं, जिनकी करेंसी पर गाय की...

देशी गाय और विदेशी( जर्सी,होलेस्टियन) गाय मे अंतर जानकार दंग रह जाएंगे । Rajiv Dixit – RajivDixitMp3.Com

कृप्या बिना पूरी post पढ़ें ऐसी कोई प्रतिक्रिया ना दें ! कि अरे तुमने गाय मे भी स्वदेशी -विदेशी कर दिया ! अरे गाय तो माँ होती है तुमने माँ को भी अच्छी बुरी कर दिया !! लेकिन मित्रो सच यही है की ये जर्सी गाय नहीं ये पूतना है ! पूतना की कहानी तो आपने सुनी होगी भगवान कृष्ण को दूध पिलाकर मारने आई थी वही है ये जर्सी गाय !! सबसे पहले आप ये जान लीजिये की स्वदेशी गाय और विदेशी जर्सी गाय (सूअर ) की पहचान क्या है ? देशी और विदेशी गाय को पहचाने की जो बड़ी निशानी है वो ये की देशी गाय की पीठ पर मोटा सा हम्प होता है जबकि जर्सी गाय की पीठ समतल होती है ! आपको जानकर हैरानी होगी दुनिया मे भारत को छोड़ जर्सी गाय का दूध को नहीं पीता ! जर्सी गाय सबसे ज्यादा डैनमार्क ,न्यूजीलैंड , आदि देशो मे पायी जाती है ! डैनमार्क मे तो कुल लोगो की आबादी से ज्यादा गाय है ! और आपको ये जानकार हैरानी होगी की डैनमार्क वाले दूध ही नहीं पीते ! क्यों नहीं पीते ? क्योंकि कैंसर होने की संभवना है ,घुटनो कर दर्द होना तो आम बात है ! मधुमेह (शुगर होने का बहुत बड़ा कारण है ये जर्सी गाय का दूध ! डैनमार्क वाले चाय भी बिना दूध की पीते है ! डैनमार्क की सरकार तो दूध ज्यादा होने पर समुद्र मे फेंकवा देती है वहाँ एक line बहुत प्रचलित है ! milk is a white poison ! और जैसा की आप जानते है भारत मे 36000 कत्लखानों मे हर साल 2 करोड़ 50 गाय काटी जाती है और जो 72 लाख मीट्रिक टन मांस का उत्पन होता है वो सबसे ज्यादा अमेरिका और उसके बाद यूरोप और फिर अरब देशों मे भेजा जाता है ! आपके मन मे स्वाल आएगा की ये अमेरिका वाले अपने देश की गाय का मांस क्यो नहीं खाते ? दरअसल बात ये है की यूरोप और अमेरिका की जो गाय है उसको बहुत गंभीर बीमारियाँ है और उनमे एक बी...

भारतीय गायों की देसी नस्लें

साहीवाल प्रजाति साहीवाल भारत की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति है। यह गाय मुख्य रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पाई जाती है। यह गाय सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देती हैं जिसकी वजह से ये दुग्ध व्यवासायी इन्हें काफी पसंद करते हैं। यह गाय एक बार मां बनने पर करीब 10 महीने तक दूध देती है। अच्छी देखभाल करने पर ये कहीं भी रह सकती हैं।साहीवाल गाय मुख्य रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पाई जाती है। गिर प्रजाति गिर गाय को भारत की सबसे ज्यादा दुधारू गाय माना जाता है। यह गाय एक दिन में 50 से 80 लीटर तक दूध देती है। इस गाय के थन इतने बड़े होते हैं। इस गाय का मूल स्थान काठियावाड़ (गुजरात) के दक्षिण में गिर जंगल है, जिसकी वजह से इनका नाम गिर गाय पड़ गया। भारत के अलावा इस गाय की विदेशों में भी काफी मांग है। इजराइल और ब्राजील में भी मुख्य रुप से इन्हीं गायों का पाला जाता है। गिर गाय को भारत की सबसे ज्यादा दुधारू गाय माना जाता है। लाल सिंधी प्रजाति पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु लाल रंग की इस गाय को अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए जाना जाता है। लाल रंग होने के कारण इनका नाम लाल सिंधी गाय पड़ गया। यह गाय पहले सिर्फ सिंध इलाके में पाई जाती थीं। लेकिन अब यह गाय पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और ओडिशा में भी पायी जाती हैं। इनकी संख्या भारत में काफी कम है। साहिवाल गायों की तरह लाल सिंधी गाय भी सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देती हैं। लाल रंग की इस गाय को अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए जाना जाता है। राठी प्रजाति राठी गाय की नस्ल ज्यादा दूध देने के लिए जानी जाती है। राठी नस्ल का राठी नाम राठस जनजाति के नाम पर पड़ा। यह गाय राजस्थान के गंगानगर, बीकानेर और जैसलमेर इलाकों में ...