धर्मो रक्षति रक्षितः

  1. "धर्मो रक्षति रक्षित:" श्लोक का अर्थ एवं धर्म क्या है?
  2. Dharmo Rakshati Rakshitah
  3. धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः । तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्
  4. On Swa
  5. धर्मो रक्षति रक्षितः
  6. धर्मो रक्षति रक्षितः
  7. Dharmo Rakshati Rakshitah
  8. धर्मो रक्षति रक्षितः
  9. धर्मो रक्षति रक्षितः
  10. "धर्मो रक्षति रक्षित:" श्लोक का अर्थ एवं धर्म क्या है?


Download: धर्मो रक्षति रक्षितः
Size: 22.26 MB

"धर्मो रक्षति रक्षित:" श्लोक का अर्थ एवं धर्म क्या है?

धर्म के कई अर्थ बताए जाते है। किंतु इसका अर्थ अभी भी कई लोगों को स्पष्ट नहीं है। धर्म का अर्थ धर्म का एक अर्थ ‘नियम/नियमावली/नियम-समुह’ भी समझ में आता है। इसप्रकार, धर्म का अर्थ मुख्यत: ‘ईश्वरीय, नैतिक व प्राकृतिक नियमों’ से है, पर साथ ही इसमें अन्य ‘सामाजिक मान्यता प्राप्त नियम’ भी सम्मिलित है। अत: धर्म का अर्थ हुआ – किसी कार्य, स्थान या परिस्थिति विशेष के लिए बनाए गए कायदे-कानून, रुल्स, प्रोटोकॉल, नियम आदि। यानि, “भगवान ‘को’ मानने” के साथ ही “भगवान ‘की’ मानना” धर्म है। “भगवान ‘को’ मानने” पर – आप भगवान का अस्तित्व स्वीकारते है, जबकि “भगवान ‘की’ मानने” से तात्पर्य है कि – आप भगवान के बताए नियम, दिशा-निर्देश, आदेश, शब्द मानते हैं व उनपर चलते है। हम लोग धनुर्धर अर्जुन जैसे पुण्यात्मा, बुद्धिमान व योग्य नही है। इसलिए हमें समझाने के लिए भगवान स्वयं नही आने वाले। हमें भगवान के शब्द अपने माता-पिता, धार्मिक ग्रंथों, परिवार के बड़ों, सदगुरु, संतों व धार्मिक पुस्तकों आदि के माध्यम से स्वयं समझने होंगे। यहां सबसे महत्वपुर्ण है हमारा ‘ईश्वर प्रदत्त’ 1.5 किलो का मस्तिष्क। ईश्वर के शब्द समझने हेतु हमें ईश्वर द्वारा उपहार के रुप में मिला दिव्य मस्तिष्क (बुद्धि, विवेक, ज्ञान, विद्या आदि) सबसे प्रमुख हैं। इस ‘दिव्य मस्तिष्क’ की प्रामाणिकता किसी भी धार्मिक ग्रंथ से भी अधिक है, ये शुद्ध रुप से सीधे ईश्वर से हमें प्राप्त हुआ है। धर्म का अर्थ ‘नियम’ : उदाहरण :- 1) नैतिकता के नियम : चोरी नहीं करना :- चोरी करना पाप है, इसलिए चोरी नही करना चाहिए। चोरी, अर्थात किसी के अधिकार की कोई चीज उससे जबरदस्ती या उसकी अनुमति के बिना लेना। यदि किसी व्यक्ति ने चोरी नही की है, चोरी ना करने के नियम को माना है –...

Dharmo Rakshati Rakshitah

At Dharma Rath, our mission is to help people live fulfilling lives by understanding and embodying the principles of Dharma. We offer a range of services including workshops, courses, and one-on-one sessions to help individuals discover their true purpose and live in alignment with it. we will explore the concept of Dharma, its relevance in today’s world, and how Dharma Rath is helping people live fulfilling lives through its services. What is Dharma? Dharma is a complex concept that originated in India and is central to the major religions of Hinduism, Buddhism, Jainism, and Sikhism. At its core, Dharma refers to the natural order of the universe and one’s duty or responsibility to uphold it. It encompasses virtues such as honesty, compassion, self-discipline, and non-violence, and encourages individuals to live a life of moral and ethical integrity. In Hinduism, Dharma is closely tied to the caste system, where each individual is born into a particular caste with specific duties and responsibilities. However, the concept of Dharma extends beyond the caste system and is relevant to all individuals regardless of their social status or background. Why is Dharma Relevant Today? The relevance of Dharma in today’s world is undeniable. In our contemporary society, characterized by its rapid pace and constant turmoil, the principles of Dharma offer an invaluable source of stability and guidance. By embracing Dharma, we can effectively navigate the complexities and uncertainties ...

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः । तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्

. मरा हुआ धर्म मारने वाले का नाश, और रक्षित किया हुआ धर्म रक्षक की रक्षा करता है इसलिए धर्म का हनन कभी न करना, इस डर से कि मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले । (स० प्र० षष्ठ समु०) ‘‘जो पुरूष धर्म का नाश करता है, उसी का नाश धर्म कर देता है, और जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी धर्म भी रक्षा करता है । इसलिए मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले, इस भय से धर्म का हनन अर्थात् त्याग कभी न करना चाहिए ।’’ (स० वि० गृहाश्रम प्र०)

On Swa

Arjun was waiting for this day for the last 14 years. He was preparing for the war even while living in the forest. But when the day dawned and his relatives were standing against him, those he’d have to kill to win the war, he got massive cold feet. “What do I do with the victory and luxuries if these people are not around to enjoy it. I’d rather give up and become a sanyaasi”, he says. To pull him out of this distress, Krishna expounds the Gita explaining to him the right disposition towards work and also reminding him of his Swadharma. In the third Adhyay, Krishna says श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्। स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।।3.35।। śreyānsvadharmo viguṇaḥ paradharmātsvanuṣṭhitāt, svadharme nidhanaṁ śreyaḥ paradharmo bhayāvahaḥ. ;Better to die performing your own Swadharma even if (we may think) it’s without merit, than engaging in somebody else’s dharma (assuming we are good at it)’ The immediate questions is What is Swa-Dharma? There are three aspects here Prakriti, Samarthya and Kartavya • Prakriti: What is our natural inclination, our swabhaav – are we more calm and composed or competitive and aggressive? are we extroverted or introverted? Do we always jump in to take initiative, or would be rather have someone else take the lead and we’d happily follow? Are we happy to sit and think or want action? etc etc. This is what we call personality – for which we have so many tests these days, such as Myers Briggs, Enneagram etc. In Sankhya and Y...

धर्मो रक्षति रक्षितः

लेकिन इस सूत्र का मात्र इतना ही अर्थ नहीं है ! सच तो ये है कि ऋत शब्द के लिए हिन्दी में अनुवादित करने का कोई उपाय नहीं है। इसलिए इसको समझना ज्यादा जरुरी है, क्योकि यह शब्द अपने आप में बहुत ही विराट है। ‘प्राकृत’ शब्द से भूल हो सकती है। निश्चित ही वह एक आयाम है ऋत का, लेकिन बस एक आयाम! जबकि ऋत बहु आयामी है। ऋत का अर्थ है – जो सहज है, स्वाभाविक है, जिसे आरोपित नहीं किया गया है। जो अंतस है आपका, आचरण नहीं। जो आपकी प्रज्ञा का प्रकाश है, चरित्र की व्यवस्था नहीं जिसके आधार से सब चल रहा है, सब ठहरा है, जिसके कारण अराजकता नहीं है। बसंत आता है और फूल खिलते हैं। पतझड़ आता है और पत्ते गिर जाते हैं। वह अदृश्य नियम, जो बसंत को लाता है और पतझड़ को भी। सूरज है, चाँद है, तारे हैं। यह विराट विश्व है और कही कोई अराजकता नहीं। सब सुसंबद्ध है। सब एक तारतम्य में है। सब संगीतपूर्ण है। इस लयबद्धता का ही नाम ऋत है। वैदिक या हिंदू धर्म को इसलिए सनातन धर्म कहा जाता है, क्योंकि यही एकमात्र धर्म है जो ईश्वर, आत्मा और मोक्ष को तत्व और ध्यान से जानने का मार्ग बताता है। मोक्ष का मार्ग इसी धर्म की देन है। एकनिष्ठता, ध्यान, मौन और तप सहित यम-नियम के अभ्यास और जागरण मोक्ष का मार्ग है, अन्य कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है। मोक्ष से ही आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है। सत्य दो धातुओं से मिलकर बना है सत् और तत्। सत का अर्थ है ‘यह’ और तत का अर्थ है ‘वह’। दोनों ही सत्य हैं। अहं ब्रह्मास्मी और तत्वमसि। अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ और तुम ही ब्रह्म हो। यह संपूर्ण जगत ब्रह्ममय है। ब्रह्म पूर्ण है। यह जगत् भी पूर्ण है। पूर्ण जगत् की उत्पत्ति पूर्ण ब्रह्म से हुई है। पूर्ण ब्रह्म से पूर्ण जगत् की उत्पत्ति होने पर भी ब्रह्म की...

धर्मो रक्षति रक्षितः

धर्मो रक्षति रक्षितः एक लोकप्रिय संस्कृत वाक्यांश यो वाक्यांश पूर्ण मनुस्मृति श्लोकको अंश हो जसमा भनिएको छ: धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् यो वाक्य महाभारतमा पनि पाइन्छ। धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ⁠। तस्माद् धर्मं न त्यजामि मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ⁠।⁠। पुण्य त्याग गर्ने आफैं नष्ट हुन्छ। र जसले यसलाई जोगाउँछ उसले आफैलाई सुरक्षित राख्छ। त्यसैले म पुण्यको त्याग गर्दिन, यदि नष्ट भयो भने, यसले हामीलाई नष्ट गर्छ। अनुशासन पर्वमा अलि फरक श्लोक उल्लेख गरिएको छ। धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ⁠। तस्माद् धर्मो न हन्तव्यः पार्थिवेन विशेषतः ⁠।⁠। यो रिसर्च एण्ड एनालिसिस विंग र सन्दर्भहरू [ ]

Dharmo Rakshati Rakshitah

At Dharma Rath, our mission is to help people live fulfilling lives by understanding and embodying the principles of Dharma. We offer a range of services including workshops, courses, and one-on-one sessions to help individuals discover their true purpose and live in alignment with it. we will explore the concept of Dharma, its relevance in today’s world, and how Dharma Rath is helping people live fulfilling lives through its services. What is Dharma? Dharma is a complex concept that originated in India and is central to the major religions of Hinduism, Buddhism, Jainism, and Sikhism. At its core, Dharma refers to the natural order of the universe and one’s duty or responsibility to uphold it. It encompasses virtues such as honesty, compassion, self-discipline, and non-violence, and encourages individuals to live a life of moral and ethical integrity. In Hinduism, Dharma is closely tied to the caste system, where each individual is born into a particular caste with specific duties and responsibilities. However, the concept of Dharma extends beyond the caste system and is relevant to all individuals regardless of their social status or background. Why is Dharma Relevant Today? The relevance of Dharma in today’s world is undeniable. In our contemporary society, characterized by its rapid pace and constant turmoil, the principles of Dharma offer an invaluable source of stability and guidance. By embracing Dharma, we can effectively navigate the complexities and uncertainties ...

धर्मो रक्षति रक्षितः

धर्मो रक्षति रक्षितः एक लोकप्रिय संस्कृत वाक्यांश यो वाक्यांश पूर्ण मनुस्मृति श्लोकको अंश हो जसमा भनिएको छ: धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत् यो वाक्य महाभारतमा पनि पाइन्छ। धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ⁠। तस्माद् धर्मं न त्यजामि मा नो धर्मो हतोऽवधीत् ⁠।⁠। पुण्य त्याग गर्ने आफैं नष्ट हुन्छ। र जसले यसलाई जोगाउँछ उसले आफैलाई सुरक्षित राख्छ। त्यसैले म पुण्यको त्याग गर्दिन, यदि नष्ट भयो भने, यसले हामीलाई नष्ट गर्छ। अनुशासन पर्वमा अलि फरक श्लोक उल्लेख गरिएको छ। धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ⁠। तस्माद् धर्मो न हन्तव्यः पार्थिवेन विशेषतः ⁠।⁠। यो रिसर्च एण्ड एनालिसिस विंग र सन्दर्भहरू [ ]

धर्मो रक्षति रक्षितः

लेकिन इस सूत्र का मात्र इतना ही अर्थ नहीं है ! सच तो ये है कि ऋत शब्द के लिए हिन्दी में अनुवादित करने का कोई उपाय नहीं है। इसलिए इसको समझना ज्यादा जरुरी है, क्योकि यह शब्द अपने आप में बहुत ही विराट है। ‘प्राकृत’ शब्द से भूल हो सकती है। निश्चित ही वह एक आयाम है ऋत का, लेकिन बस एक आयाम! जबकि ऋत बहु आयामी है। ऋत का अर्थ है – जो सहज है, स्वाभाविक है, जिसे आरोपित नहीं किया गया है। जो अंतस है आपका, आचरण नहीं। जो आपकी प्रज्ञा का प्रकाश है, चरित्र की व्यवस्था नहीं जिसके आधार से सब चल रहा है, सब ठहरा है, जिसके कारण अराजकता नहीं है। बसंत आता है और फूल खिलते हैं। पतझड़ आता है और पत्ते गिर जाते हैं। वह अदृश्य नियम, जो बसंत को लाता है और पतझड़ को भी। सूरज है, चाँद है, तारे हैं। यह विराट विश्व है और कही कोई अराजकता नहीं। सब सुसंबद्ध है। सब एक तारतम्य में है। सब संगीतपूर्ण है। इस लयबद्धता का ही नाम ऋत है। वैदिक या हिंदू धर्म को इसलिए सनातन धर्म कहा जाता है, क्योंकि यही एकमात्र धर्म है जो ईश्वर, आत्मा और मोक्ष को तत्व और ध्यान से जानने का मार्ग बताता है। मोक्ष का मार्ग इसी धर्म की देन है। एकनिष्ठता, ध्यान, मौन और तप सहित यम-नियम के अभ्यास और जागरण मोक्ष का मार्ग है, अन्य कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है। मोक्ष से ही आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है। सत्य दो धातुओं से मिलकर बना है सत् और तत्। सत का अर्थ है ‘यह’ और तत का अर्थ है ‘वह’। दोनों ही सत्य हैं। अहं ब्रह्मास्मी और तत्वमसि। अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ और तुम ही ब्रह्म हो। यह संपूर्ण जगत ब्रह्ममय है। ब्रह्म पूर्ण है। यह जगत् भी पूर्ण है। पूर्ण जगत् की उत्पत्ति पूर्ण ब्रह्म से हुई है। पूर्ण ब्रह्म से पूर्ण जगत् की उत्पत्ति होने पर भी ब्रह्म की...

"धर्मो रक्षति रक्षित:" श्लोक का अर्थ एवं धर्म क्या है?

धर्म के कई अर्थ बताए जाते है। किंतु इसका अर्थ अभी भी कई लोगों को स्पष्ट नहीं है। धर्म का अर्थ धर्म का एक अर्थ ‘नियम/नियमावली/नियम-समुह’ भी समझ में आता है। इसप्रकार, धर्म का अर्थ मुख्यत: ‘ईश्वरीय, नैतिक व प्राकृतिक नियमों’ से है, पर साथ ही इसमें अन्य ‘सामाजिक मान्यता प्राप्त नियम’ भी सम्मिलित है। अत: धर्म का अर्थ हुआ – किसी कार्य, स्थान या परिस्थिति विशेष के लिए बनाए गए कायदे-कानून, रुल्स, प्रोटोकॉल, नियम आदि। यानि, “भगवान ‘को’ मानने” के साथ ही “भगवान ‘की’ मानना” धर्म है। “भगवान ‘को’ मानने” पर – आप भगवान का अस्तित्व स्वीकारते है, जबकि “भगवान ‘की’ मानने” से तात्पर्य है कि – आप भगवान के बताए नियम, दिशा-निर्देश, आदेश, शब्द मानते हैं व उनपर चलते है। हम लोग धनुर्धर अर्जुन जैसे पुण्यात्मा, बुद्धिमान व योग्य नही है। इसलिए हमें समझाने के लिए भगवान स्वयं नही आने वाले। हमें भगवान के शब्द अपने माता-पिता, धार्मिक ग्रंथों, परिवार के बड़ों, सदगुरु, संतों व धार्मिक पुस्तकों आदि के माध्यम से स्वयं समझने होंगे। यहां सबसे महत्वपुर्ण है हमारा ‘ईश्वर प्रदत्त’ 1.5 किलो का मस्तिष्क। ईश्वर के शब्द समझने हेतु हमें ईश्वर द्वारा उपहार के रुप में मिला दिव्य मस्तिष्क (बुद्धि, विवेक, ज्ञान, विद्या आदि) सबसे प्रमुख हैं। इस ‘दिव्य मस्तिष्क’ की प्रामाणिकता किसी भी धार्मिक ग्रंथ से भी अधिक है, ये शुद्ध रुप से सीधे ईश्वर से हमें प्राप्त हुआ है। धर्म का अर्थ ‘नियम’ : उदाहरण :- 1) नैतिकता के नियम : चोरी नहीं करना :- चोरी करना पाप है, इसलिए चोरी नही करना चाहिए। चोरी, अर्थात किसी के अधिकार की कोई चीज उससे जबरदस्ती या उसकी अनुमति के बिना लेना। यदि किसी व्यक्ति ने चोरी नही की है, चोरी ना करने के नियम को माना है –...