गोपी गीत लिरिक्स इन संस्कृत

  1. Lokgeet Lyrics in Hindi
  2. गोपी गीत
  3. श्री विष्णु स्तुति लिरिक्स
  4. Gopi Geet Lyrics
  5. gopi geet in sanskrit / गोपी गीत लिरिक्स इन संस्कृत
  6. गोपी गीत(Gopi Geet): गीत जो गोपियों ने श्री कृष्ण को सुनाया था
  7. Gopi Geet Lyrics in Hindi
  8. गोपी गीत लिरिक्स Gopi Geet Lyrics
  9. हिन्‍दी में गोपी गीत Gopi


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Lokgeet Lyrics in Hindi

Lokgeet Lyrics in Hindi तर्ज – ओ जाने वाले आजा तेरी याद सताये गुनाह क्या किया, जो ठुकरा दिया जाता है क्यों हमसे मुखड़ा मोड़ मेरे बेटा दूध वाला रिश्ता मत तोड़ मेरे बेटा हमको तू बुढ़ापे में मत छोड़ मेरे बेटा (1) दुख सुख बेटा मेरे हम सब सहेंगे भूखा जो रखेगा बेटा भूखा रहेंगें पर कुछ ना कहेंगे दुखता जिया, ठुकरा दिया, ऐसे में तू हमको, मत झकझोड़ मेरे बेटा, दूध वाला रिश्ता मत तोड़ मेरे बेटा (2) चार चार कुत्ता तैने, पारे हैं शिकारी, दो पेट बेटा तोपे पड़ रहे हैं भारी, मेरे कुँवर हजारी। दुखता जिया, ठुकरा दिया, बेशर्मी की चादर मत ओढ़ मेरे बेटा, दूध वाला रिश्ता मत तोड़ मेरे बेटा (3) बात मान बहू की बेटा, जुलम हम पै ढावै, एक दिन बुढापा बेटा, तोऊ पै आवै, तू तौ फिर पछतावै दुखता जिया, ठुकरा दिया, जीते जी मुकद्दर मत फोड़ मेरे बेटा, दूध वाला रिश्ता मत तोड़ मेरे बेटा (4) सह ना सकेंगे बेटा हम इस गम को, जाने से पहले जहर देजा तू हमको, झेल लेंगे सितम को, निकला नासिया, ठुकरा दिया, शर्मा की कविता से मिला जोड़ मेरे बेटा, दूध वाला रिश्ता मत तोड़ मेरे बेटा यह भी पढ़ें:- Lok Geet Lyrics तर्ज – क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छुपी रहे आज की मईया बहु बेटन के सबरे ताने सहलेगी। सास करेगी बहु की सेवा तो साझे मैं रहलेगी। (1) बहु बैठ खटिया के ऊपर सास पै हुकम चलावैगी। सास करेगी रोटी पानी बहु बैठ के खावैगी।। ऐसी हालत रही देश में तो उल्टी गंगा बहलेगी… सास करेगी बहु की सेवा तो साझे मैं रहलेगी। (2) बहु सोवैगी डबल बैड पै और सब फटे बिछईया पै। बेटा बहु की बात मान के जुलम करैगो मईया पै।। और रहें सब चुप्पी साधे बहु चाहे जो कहलेगी… सास करेगी बहु की सेवा तो साझे मैं रहलेगी। (3) बहु करेगी सैर सपाटे बच्चा सास ख़िलावैगी। बच्चा कूँ पीवै ...

गोपी गीत

Read in English जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि । दयित दृश्यतां दिक्षु तावका स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥1॥ शरदुदाशये साधुजातसत्स- रसिजोदरश्रीमुषा दृशा । सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिका वरद निघ्नतो नेह किं वधः ॥2॥ विषजलाप्ययाद्व्यालराक्षसा- द्वर्षमारुताद्वैद्युतानलात् । वृषमयात्मजाद्विश्वतोभया दृषभ ते वयं रक्षिता मुहुः ॥3॥ न खलु गोपिकानन्दनो भवा- नखिलदेहिनामन्तरात्मदृक् । विखनसार्थितो विश्वगुप्तये सख उदेयिवान्सात्वतां कुले ॥4॥ विरचिताभयं वृष्णिधुर्य ते चरणमीयुषां संसृतेर्भयात् । करसरोरुहं कान्त कामदं शिरसि धेहि नः श्रीकरग्रहम् ॥5॥ व्रजजनार्तिहन्वीर योषितां निजजनस्मयध्वंसनस्मित । भज सखे भवत्किंकरीः स्म नो जलरुहाननं चारु दर्शय ॥6॥ प्रणतदेहिनांपापकर्शनं तृणचरानुगं श्रीनिकेतनम् । फणिफणार्पितं ते पदांबुजं कृणु कुचेषु नः कृन्धि हृच्छयम् ॥7॥ मधुरया गिरा वल्गुवाक्यया बुधमनोज्ञया पुष्करेक्षण । विधिकरीरिमा वीर मुह्यती- रधरसीधुनाऽऽप्याययस्व नः ॥8॥ तव कथामृतं तप्तजीवनं कविभिरीडितं कल्मषापहम् । श्रवणमङ्गलं श्रीमदाततं भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः ॥9॥ प्रहसितं प्रिय प्रेमवीक्षणं विहरणं च ते ध्यानमङ्गलम् । रहसि संविदो या हृदिस्पृशः कुहक नो मनः क्षोभयन्ति हि ॥10॥ चलसि यद्व्रजाच्चारयन्पशून् नलिनसुन्दरं नाथ ते पदम् । शिलतृणाङ्कुरैः सीदतीति नः कलिलतां मनः कान्त गच्छति ॥11॥ दिनपरिक्षये नीलकुन्तलै- र्वनरुहाननं बिभ्रदावृतम् । घनरजस्वलं दर्शयन्मुहु- र्मनसि नः स्मरं वीर यच्छसि ॥12॥ प्रणतकामदं पद्मजार्चितं धरणिमण्डनं ध्येयमापदि । चरणपङ्कजं शंतमं च ते रमण नः स्तनेष्वर्पयाधिहन् ॥13॥ सुरतवर्धनं शोकनाशनं स्वरितवेणुना सुष्ठु चुम्बितम् । इतररागविस्मारणं नृणां वितर वीर नस्तेऽधरामृतम् ॥14॥ अ...

श्री विष्णु स्तुति लिरिक्स

Vishnu Stuti Lyrics In Hindi भगवान विष्णु की श्री विष्णु स्तुति लिरिक्स | Shri Vishnu Stuti Lyrics– suklambaradharam vishnum lyrics” आपको पसंद आयी होगी। इसको सबके साथ शेयर करे और उन्हें भी vishnu stuti lyrics in hindi , vishnu stuti pdf , विष्णु स्तुति pdf download , shuklambaradharam vishnum lyrics in hindi , shri vishnu stuti lyrics , vishnu stuti shuklambaradharam vishnum pdf , shree vishnu stuti lyrics , vishnu stuti meaning in hindi , विष्णु स्तुति इन संस्कृत , vishnu stuti lyrics in sanskrit , vishnu stuti”– shuklambaradharam vishnum lyrics , vishnu stuti shuklambaradharam vishnum lyrics in hindi , विष्णु स्तुति अर्थ सहित। Vishnu Stuti PDF Download नए भजन • श्री राधा कृष्णाय नमः भजन लिरिक्स |… • सुबह सुबह बोलो सरस्वती माता | Subha… • चल हो जा फकीर लिरिक्स | Chal Hoja F… • मेरा दिल तुझपे कुर्बा मुरलिया वाले … • रत्नाकर पचीसी | Ratnakar Pachisi • Thari Chakri Karu Main Khatu Shyam … • शिवरात्रि की महिमा अपार लिरिक्स | S… • हे राम हे राम भजन Lyrics | He Ram H… • छम छम नाचे देखो वीर हनुमाना लिरिक्स… • लागी लगन शंकरा 2 | Laagi Lagan Shan… • कभी माखन चुरा लिया कभी पर्वत उठा लि… • गुरु शिव को बना लीजिए लिरिक्स | Gur… • मैं हु तेरा ऐसा भिखारी पड़ा रहू बस … • प्रभु स्वीकारो मेरे प्रणाम लिरिक्स … • Meri Maa Tune Mujhe Bulaya Lyrics

Gopi Geet Lyrics

गीत जो गोपियों ने श्री कृष्ण को सुनाया था, गीत जो गोपियों ने श्री कृष्ण के विरह में गाया। जिसे प्रेम गीत, विरह गीत, गोपी गीत, गोपी गीत पाठ, गोपी भक्ति गीत भी कहते है। इससे श्री कृष्णा जी के चरणों में न सिर्फ प्रेम की प्राप्ति होती है बल्कि जीवन में साक्षात् युगल सरकार की अनुभूति होती है। गोपी गीत’ श्रीमदभागवत महापुराण के दसवें स्कंध के रासपंचाध्यायी का ३१ वां अध्याय है। इसमें १९ श्लोक हैं । रास लीला के समय गोपियों को मान हो जाता है । भगवान् उनका मान भंग करने के लिए अंतर्धान हो जाते हैं । उन्हें न पाकर गोपियाँ व्याकुल हो जाती हैं । वे आर्त्त स्वर में श्रीकृष्ण को पुकारती हैं, यही विरहगान गोपी गीत है । इसमें प्रेम के अश्रु,मिलन की प्यास, दर्शन की उत्कंठा और स्मृतियों का रूदन है । भगवद प्रेम सम्बन्ध में गोपियों का प्रेम सबसे निर्मल,सर्वोच्च और अतुलनीय माना गया है। श्रीमद भागवत के अन्तर्गत आने वाले गोपियों के पञ्च प्रेम गीत (वेणुगीत, युगल गीत, प्रणय गीत, गोपीगीत और भ्रमर गीत) इनमें से गोपी गीत का वर्णन इस प्रकार है- गोपी गीत गोप्य ऊचुः । (गोपियाँ विरहावेश में गाने लगीं) जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि । दयित दृश्यतां दिक्षु तावका- स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥ १॥ शरदुदाशये साधुजातस- त्सरसिजोदरश्रीमुषा दृशा । सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिका वरद निघ्नतो नेह किं वधः ॥ २॥ विषजलाप्ययाद्व्यालराक्षसा- द्वर्षमारुताद्वैद्युतानलात् । वृषमयात्मजाद्विश्वतोभया- दृषभ ते वयं रक्षिता मुहुः ॥ ३॥ न खलु गोपिकानन्दनो भवा- नखिलदेहिनामन्तरात्मदृक् । विखनसार्थितो विश्वगुप्तये सख उदेयिवान्सात्वतां कुले ॥ ४॥ विरचिताभयं वृष्णिधुर्य ते चरणमीयुषां संसृतेर्भयात् । करसरोरुहं कान्त कामदं शिरस...

gopi geet in sanskrit / गोपी गीत लिरिक्स इन संस्कृत

gopi geet in sanskrit / गोपी गीत लिरिक्स इन संस्कृत गोपी गीत गोप्य ऊचुः। जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि। दयित दृश्यतां दिक्षु तावका- स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते॥ १॥ शरदुदाशये साधुजातस- त्सरसिजोदरश्रीमुषा दृशा। सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिका वरद निघ्नतो नेह किं वधः॥ २॥ विषजलाप्ययाद्व्यालराक्षसा- द्वर्षमारुताद्वैद्युतानलात्। वृषमयात्मजाद्विश्वतोभया- दृषभ ते वयं रक्षिता मुहुः॥ ३॥ न खलु गोपिकानन्दनो भवा- नखिलदेहिनामन्तरात्मदृक्। विखनसार्थितो विश्वगुप्तये सख उदेयिवान्सात्वतां कुले॥ ४॥ विरचिताभयं वृष्णिधुर्य ते चरणमीयुषां संसृतेर्भयात्। करसरोरुहं कान्त कामदं शिरसि धेहि नः श्रीकरग्रहम्॥ ५॥ व्रजजनार्तिहन्वीर योषितां निजजनस्मयध्वंसनस्मित । भज सखे भवत्किंकरीः स्म नो जलरुहाननं चारु दर्शय ॥ ६॥ प्रणतदेहिनां पापकर्शनं तृणचरानुगं श्रीनिकेतनम्। फणिफणार्पितं ते पदांबुजं कृणु कुचेषु नः कृन्धि हृच्छयम्॥ ७॥ मधुरया गिरा वल्गुवाक्यया बुधमनोज्ञया पुष्करेक्षण । विधिकरीरिमा वीर मुह्यती- रधरसीधुनाऽऽप्याययस्व नः॥ ८॥ तव कथामृतं तप्तजीवनं कविभिरीडितं कल्मषापहम्। श्रवणमङ्गलं श्रीमदाततं भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः॥ ९॥ प्रहसितं प्रिय प्रेमवीक्षणं विहरणं च ते ध्यानमङ्गलम्। रहसि संविदो या हृदिस्पृशः कुहक नो मनः क्षोभयन्ति हि॥ १०॥ चलसि यद्व्रजाच्चारयन्पशून् नलिनसुन्दरं नाथ ते पदम्। शिलतृणाङ्कुरैः सीदतीति नः कलिलतां मनः कान्त गच्छति॥ ११॥ दिनपरिक्षये नीलकुन्तलै- र्वनरुहाननं बिभ्रदावृतम्। घनरजस्वलं दर्शयन्मुहु- र्मनसि नः स्मरं वीर यच्छसि॥ १२॥ प्रणतकामदं पद्मजार्चितं धरणिमण्डनं ध्येयमापदि। चरणपङ्कजं शंतमं च ते रमण नः स्तनेष्वर्पयाधिहन्॥ १३॥ सुरतवर्धनं शोकनाशनं स्वरितवेणुना सुष्ठु चुम्बितम्। इतर...

गोपी गीत(Gopi Geet): गीत जो गोपियों ने श्री कृष्ण को सुनाया था

गीत जो गोपियों ने श्री कृष्ण को सुनाया था जिसे गोपी गीत(gopi geet) गोपी गीत पाठ– गोपी भक्ति गीत कहते है।इससे श्री कृष्णा जी के चरणों में न सिर्फ प्रेम की प्राप्ति होती है बल्कि जीवन में साक्षात् युगल सरकार की अनुभूति होती है।यहाँ पर आप गोपी गीत हिंदी और गोपी गीत संस्कृत में(Gopi Geet in Sanskrit and Hindi with gopi geet lyrics) पढ़ सकते है। गोपी गीत हिंदी में हे प्यारे ! तुम्हारे जन्म के कारण वैकुण्ठ आदि लोकों से भी व्रज की महिमा बढ गयी है। तभी तो सौन्दर्य और मृदुलता की देवी लक्ष्मीजी अपना निवास स्थान वैकुण्ठ छोड़कर यहाँ नित्य निरंतर निवास करने लगी है , इसकी सेवा करने लगी है। परन्तु हे प्रियतम ! देखो तुम्हारी गोपियाँ जिन्होंने तुम्हारे चरणों में ही अपने प्राण समर्पित कर रखे हैं , वन वन भटककर तुम्हें ढूंढ़ रही हैं।।)॥ 1॥ शरदुदाशये साधुजातस- त्सरसिजोदरश्रीमुषा दृशा । सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिका वरद निघ्नतो नेह किं वधः ॥ २॥ हे हमारे प्रेम पूर्ण ह्रदय के स्वामी ! हम तुम्हारी बिना मोल की दासी हैं। तुम शरदऋतु के सुन्दर जलाशय में से चाँदनी की छटा के सौन्दर्य को चुराने वाले नेत्रों से हमें घायल कर चुके हो । हे हमारे मनोरथ पूर्ण करने वाले प्राणेश्वर ! क्या नेत्रों से मारना वध नहीं है? अस्त्रों से ह्त्या करना ही वध है।।)॥2॥ विषजलाप्ययाद्व्यालराक्षसा- द्वर्षमारुताद्वैद्युतानलात् । वृषमयात्मजाद्विश्वतोभया- दृषभ ते वयं रक्षिता मुहुः ॥ ३॥ हे पुरुष शिरोमणि ! यमुनाजी के विषैले जल से होने वाली मृत्यु , अजगर के रूप में खाने वाली मृत्यु अघासुर , इन्द्र की वर्षा , आंधी , बिजली, दावानल , वृषभासुर और व्योमासुर आदि से एवम भिन्न भिन्न अवसरों पर सब प्रकार के भयों से तुमने बार- बार हम लोगों की रक्षा की ...

Gopi Geet Lyrics in Hindi

परंतु प्रियतम ! देखो तुम्हारी गोपियाँ, जिन्होंने तुम्हारे चरणों में ही अपने प्राण समर्पित कर रक्खे हैं, वन-वनमें भटककर तुम्हें ढूँढ़ रही हैं ॥ १ ॥ हमारे प्रेमपूर्ण हृदयके स्वामी ! हम तुम्हारी बिना मोलकी दासी हैं । तुम शरत्कालीन जलाशयमें सुन्दरसे-सुन्दर सरसिजकी कर्णिकाके सौन्दर्यको चुरानेवाले नेत्रोंसे हमें घायल कर चुके हो। हमारे मनोरथ पूर्ण करनेवाले प्राणेश्वर ! क्या नेत्रोंसे मारना वध नहीं है ? अस्त्रोंसे हत्या करना ही वध है ? ॥२॥ पुरुषशिरोमणे ! यमुनाजीके विषैले जलसे होनेवाली मृत्यु, अजगरके रूपमें खानेवाले अघासुर, इन्द्रकी वर्षा, आधी, बिजली, दावानल, वृषभासुर और व्योमासुर आदिसे एवं भिन्न-भिन्न अवसरोंपर सब प्रकारके भयोंसे तुमने बार-बार हमलोगोंकी रक्षा की है ॥ ३॥ तुम केवल यशोदानन्दन ही नहीं हो; समस्त शरीरधारियोंके हृदयमें रहनेवाले उनके साक्षी हो, अन्तर्यामी हो । सखे ! ब्रह्माजीकी प्रार्थनासे विश्वकी रक्षा करनेके लिये तुम यदुवंशमें अवतीर्ण हुए हो ॥ ४ ॥ अपने प्रेमियोंकी अभिलाषा पूर्ण करनेवालोंमें अग्रगण्य यदुवंशशिरोमणे! जो लोग जन्म-मृत्युरूप संसारके चक्करसे डरकर तुम्हारे चरणोंकी शरण ग्रहण करते हैं, उन्हें तुम्हारे करकमल अपनी छत्रछायामें लेकर अभय कर देते हैं। व्रजवासियोंके दुःख दूर करनेवाले वीरशिरोमणि श्यामसुन्दर ! तुम्हारी मन्द-मन्द मुसकानकी एक उज्ज्वल रेखा ही तुम्हारे प्रेमीजनोंके सारे मानमदको चूर-चूर कर देनेके लिये पर्याप्त है । हमारे प्यारे सखा ! हमसे रूठो मत, प्रेम करो। हम तो तुम्हारी दासी हैं, तुम्हारे चरणोंपर निछावर हैं। हम अबलाओंको अपना वह परम सुन्दर साँवला-साँवला मुखकमल दिखलाओ ॥६॥ तुम्हारे चरणकमल शरणागत प्राणियोंके सारे पापोंको नष्ट कर देते हैं। वे समस्त सौन्दर्य-माधुर...

गोपी गीत लिरिक्स Gopi Geet Lyrics

गोपी गीत’ श्रीमदभागवत महापुराण के दसवें स्कंध के रासपंचाध्यायी का ३१ वां अध्याय है। इसमें १९ श्लोक हैं । रास लीला के समय गोपियों को मान हो जाता है । भगवान् उनका मान भंग करने के लिए अंतर्धान हो जाते हैं । उन्हें न पाकर गोपियाँ व्याकुल हो जाती हैं । वे आर्त्त स्वर में श्रीकृष्ण को पुकारती हैं, यही विरहगान गोपी गीत है । इसमें प्रेम के अश्रु,मिलन की प्यास, दर्शन की उत्कंठा और स्मृतियों का रूदन है । भगवद प्रेम सम्बन्ध में गोपियों का प्रेम सबसे निर्मल,सर्वोच्च और अतुलनीय माना गया है। गोपी गीत लिरिक्स गोप्य ऊचुः जयति तेऽधिकं जन्मना व्रज: श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि । दयित दृश्यतां दिक्षु तावका- स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥ १॥ (हे प्यारे ! तुम्हारे जन्म के कारण वैकुण्ठ आदि लोकों से भी व्रज की महिमा बढ गयी है। तभी तो सौन्दर्य और मृदुलता की देवी लक्ष्मीजी अपना निवास स्थान वैकुण्ठ छोड़कर यहाँ नित्य निरंतर निवास करने लगी है , इसकी सेवा करने लगी है। परन्तु हे प्रियतम ! देखो तुम्हारी गोपियाँ जिन्होंने तुम्हारे चरणों में ही अपने प्राण समर्पित कर रखे हैं, वन वन भटककर तुम्हें ढूंढ़ रही हैं।।) शरदुदाशये साधुजातस-त्सरसिजोदरश्रीमुषा दृशा । सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिका वरद निघ्नतो नेह किं वधः ॥ २॥ (हे हमारे प्रेम पूर्ण ह्रदय के स्वामी ! हम तुम्हारी बिना मोल की दासी हैं। तुम शरदऋतु के सुन्दर जलाशय में से चाँदनी की छटा के सौन्दर्य को चुराने वाले नेत्रों से हमें घायल कर चुके हो । हे हमारे मनोरथ पूर्ण करने वाले प्राणेश्वर ! क्या नेत्रों से मारना वध नहीं है? अस्त्रों से ह्त्या करना ही वध है।।) विषजलाप्ययाद्व्यालराक्षसा-द्वर्षमारुताद्वैद्युतानलात् । वृषमयात्मजाद्विश्वतोभया-दृषभ ते वयं रक्षिता मुहुः ॥ ३॥ ...

हिन्‍दी में गोपी गीत Gopi

विषयवस्तु • • • • • हिन्‍दी में गोपी गीत Gopi-geet-in-Hindi हिन्‍दी में गोपी गीत Gopi-geet-in-Hindi हिन्‍दी में गोपी गीत Gopi-geet-in-Hindi श्रीमद्भागवत के दशम् स्‍कन्‍ध में महारास के ठीक पूर्व भगवान व्रजनंदन द्वारा गोपियों के समर्पण को जांचने ऑंखमिचोली करते हुये कुछ समय के लिये अदृश्‍य हो गये । भगवान की अदृश्य हो जाने के कारण गोपियां भाव विहल होकर भगवान को पुकारने लगती हैं । इसी करुणामय पुकार का नाम है गोपी गीत । श्रीमद् भागवत महापुराण की गोपी गीत जो मूल संस्कृत में है, का भाव अनुवाद कर हिंदी में आपके लिए प्रस्तुत किया जा रहा है । पाठक की सुविधा के लिये नीचे टेबल में मूलपाठ भी दिया गया है । बहुत विनम्रता से कहना चाहूँगा यह कोई तुलना करने के लिये नहीं हैं, मूल पाठ की कोई तुलना संभव ही नहीं है, यह इसलिये दिया जा रहा जिससे पाठक मूल गोपीगीत का पाठ करते हुये हिन्‍दी गोपीगीत से भाव ग्रहण कर सकें – हिन्‍दी में गोपी गीत Gopi-geet-in-Hindi (छंद-हरिगीतिका छंद, तर्ज- श्रीरामचन्‍द्र कृपालु भज मन) हे ब्रज लला ब्रज धाम को, बैकुण्ठ सम पावन किये । ले जन्म इस ब्रज धाम में, सुंदर चरित हैं जो किये ।। जय देवकी वसुदेव सुत, जय नंद लाला यशुधरे । कर जोर कर सब गोपियां, प्रभु आपसे विनती करे ।।1।। हे श्याम तुम जब से लिये हो जन्म इस ब्रज धाम में । महिमा बढ़ी इसकी तभी, बैकुण्ठ सम सब धाम में ।। मृदुली रमा तब से यहां, करती सदा ही वास है । प्रभु आपके कारण बनी, ब्रज भूमि तो अब न्यास है ।।2।। पर देखलो प्रियतम प्रिये, तुहरी सभी हम गोपियां । निज प्राण को तेरे चरण, अर्पित किये हैं गोपियां ।। वन-वन फिरे भटकत गिरे, विरहन हुई हम ही जरे । पथ जोहती फिरती प्रिये, निज चक्षुयों में जल भरे ।।3।। इस प्राण के तुम प्राण...