Ham jal sansadhan ka sanrakshan kaise kar sakte hain

  1. इस तरीके से तुरंत सिद्ध हो जाते हैं मंत्र, जानिए रहस्य...
  2. संसाधन संरक्षण की आवश्यकता
  3. जल संरक्षण क्या है? उपाय, प्रमुख संस्थाएं! ( Jal Sanrakshan Kya Hai )
  4. shraddh karma: kab, kyon aur kaise?
  5. English to Hindi Transliterate
  6. English to Hindi Transliterate
  7. जल संरक्षण क्या है? उपाय, प्रमुख संस्थाएं! ( Jal Sanrakshan Kya Hai )
  8. इस तरीके से तुरंत सिद्ध हो जाते हैं मंत्र, जानिए रहस्य...
  9. संसाधन संरक्षण की आवश्यकता
  10. shraddh karma: kab, kyon aur kaise?


Download: Ham jal sansadhan ka sanrakshan kaise kar sakte hain
Size: 5.35 MB

इस तरीके से तुरंत सिद्ध हो जाते हैं मंत्र, जानिए रहस्य...

मुख्यत: 3 प्रकार के मंत्र होते हैं- 1.वैदिक 2.तांत्रिक और 3.शाबर मंत्र।..पहले तो आपको यह तय करना होगा कि आप किस तरह के मंत्र को जपने का संकल्प ले रहे हैं। साबर मंत्र बहुत जल्द सिद्ध होते हैं, तांत्रिक मंत्र में थोड़ा समय लगता है और वैदिक मंत्र थोड़ी देर से सिद्ध होते हैं। लेकिन जब वैदिक मंत्र सिद्ध हो जाते हैं और उनका असर कभी समाप्त नहीं होता है। मंत्र जप तीन प्रकार हैं:- 1.वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप। वाचिक जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है। मानस जप का अर्थ मन ही मन जप करना। उपांशु जप का अर्थ जिसमें जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनाई देती। बिलकुल धीमी गति में जप करना ही उपांशु जप है। मंत्र नियम : मंत्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मंत्र का सही उच्चारण। दूसरी बात जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उसका अर्घ्य पहले से लेना चाहिए। मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखा जाए। प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है। किसी विशिष्ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए। इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है। जप का दशांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए। इसी तरह लगातार जप का अभ्यास करते रहने से आपके चित्त में वह मंत्र इस कदर जम जाता है कि फिर नींद में भी वह चलता रहता है और अंतत: एक दिन वह मंत्र सिद्ध हो जाता है। दरअसल, मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है। अब सवाल यह उठता है कि सिद्ध होने के बाद क्या होता है या कि उसका क्या लाभ? आओ अगले पन्नों पर इसे जानते हैं। मंत्र सिद्ध होने पर क्या...

संसाधन संरक्षण की आवश्यकता

संसाधन संरक्षण : संसाधनों का सावधानीपूर्वक उपयोग करना और उन्हें नए सिरे से बनाने का समय देना। यह करने की आवश्यकता है क्योंकि संसाधन सीमित और संपूर्ण हैं। संसाधनों को पृथ्वी पर असमान रूप से वितरित किया जाता है क्योंकि वितरण विभिन्न भौतिक कारकों जैसे कि इलाके, जलवायु और ऊंचाई पर निर्भर करता है। भविष्य के उपयोग के लिए न्यायिक के साथ प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने या बचाने के लिए संसाधन संरक्षण के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा प्राकृतिक संसाधन भविष्य में गायब हो सकते हैं, इसलिए हम इसका उपयोग टोम्रोज़ पीढ़ी के लिए करने के लिए करते हैं। संरक्षण संसाधन के उपयोग, आवंटन और संरक्षण का एक नैतिक हिस्सा है। इसका प्राथमिक ध्यान प्राकृतिक दुनिया, इसके मत्स्य पालन, निवास और जैविक विविधता के स्वास्थ्य को बनाए रखने पर है। संसाधनों को दो भागो में विभाजित कर सकते हैं : 1. अक्षय नवीकरणीय 2. गैर-नवीकरणीय नवीकरणीय संसाधनों के उदाहरण है - हवा, पानी, प्राकृतिक गैस, पवन, सौर ऊर्जा आदि। गैर नवीकरणीय संसाधनों के उदाहरण है - कोयला, कच्चे तेल आदि। संसाधनों के संरक्षण के लिए उपाय : • पर्यावरण संसाधनों को एक सीमा में उपयोग करना चाहिए • हमें पर्यावरण संसाधनों को व्यर्थ में उपयोग नहीं करना चाहिए • हमें पर्यावरण संसाधनों का बर्बाद और बेकार नहीं करना चाहिए • हमें वनों को नहीं काटना चाहिए। • हमें व्यर्थ में पानी नहीं बहाना चाहिए • पारिस्थितिक संतुलन का समर्थन करके जीवन का समर्थन करना • यह सुनिश्चित करने के लिए कि आने वाली पीढ़ियां संसाधनों तक पहुंच बना सकेंगी • जैव विविधता के संरक्षण के लिए • यह सुनिश्चित करने के लिए कि मानव जाति जीवित रहे।

जल संरक्षण क्या है? उपाय, प्रमुख संस्थाएं! ( Jal Sanrakshan Kya Hai )

विषय सूची • • • • • • • जल संरक्षण क्या है? ( What is Water Conservation ) जल का संरक्षण केकरना बहुत जरूरी है क्योंकि जल एक अमूल्य वस्तु है । जल के बिना जीवन संभव नहीं है क्योंकि हम सब जल के बिना जीवित नहीं रह सकते हैं , जल के बिना जीवन की कल्पना करना असम्भव हैं । क्योंकि जल ही जीवन है । जल हमारे कई गतिविधियों के लिए जरूरी होता है । हमारे धरती पर कुल 71 % पानी है लेकिन हम सभी जानते हैं कि हमारे धरती पर केवल 1 % ही पीने योग्य पानी है । और बाकी के पानी पीने योग्य नहीं है , इसलिए जल का संरक्षण करना आवश्यक है । विश्व जल दिवस मनाया जाता है? हर साल 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है । जल प्रदूषण ( निवारण व नियंत्रण ) अधिनियम सन् 1974 ई० में पारित हुआ था । जल संरक्षण करने के उपाय ( Water Conservation Measures ) ( 1 ). वर्षा का पानी ( Rain Water ) वर्षा ही जल का मुख्य स्रोत है । इसलिए वर्षा के जल को हमें नालियों में व्यर्थ बहने नहीं देना चाहिए । इस जल को संग्रहीत करके रखना चाहिए । प्राचीन काल में वर्षा रहित क्षेत्रों में लोग कुओं , सीढ़ीदार कुओं ( बावड़ी ) , झीलों आदि में वर्षा के जल को सरंक्षित करके रखते थे । इनका उपयोग पूरा समुदाय करता था । वर्षा के जल को हम निम्न तरीकों से इकट्ठा कर सकते हैं ; • छत के ऊपर वर्षा जल संग्रहण इस विधि में हम छत के ऊपर इकट्ठे हुए वर्षा के जल को पाईपों की मदद से जमीन में बने गड्ढे या टैंक में इकट्ठा करते हैं । इकट्ठे किए गए पानी को हम बाद में उपयोग कर सकते हैं । • सड़कों पर हुई बारिश के पानी को सड़कों के किनारे बनाये गए नालियों , गड्ढों के द्वारा जमीन में जाने देते हैं , जिससे जमीन के नीचे पानी का स्तर बढ़ जाए या फिर पातालतोड़ कुआँ का निर्माण करत...

shraddh karma: kab, kyon aur kaise?

bhartiya shastron men aisi manyata hai ki pitrigan pitripaksh men prithvi par ate hain aur 15 dinon tak prithvi par rahne ke bad apne lok laut jate hain. shastron men bataya gaya hai ki pitripaksh ke dauran pitri apne parijnon ke as-pas rahte hain islie in dinon koi bhi aisa kam nahin karen jisse pitrigan naraj hon. pitron ko khush rakhne ke lie pitri paksh mane kuch baton par vishesh dhyan dena chahie. pitri paksh ke dauran brahman, jamata, bhanja, mama, guru, nati ko bhojan karana chahie. isse pitrigan atyant prasann hote hain. brahmanon ko bhojan karvate samay bhojan ka patra donon hathon se pakarakar lana chahie anyatha bhojan ka ansh rakshas grahan kar lete hain jisse brahmanon dvara ann grahan karne ke bavjud pitrigan bhojan ka ansh grahan nahin karte hain. pitri paksh men dvar par ane vale kisi bhi jiv-jantu ko marna nahin chahie balki unke yogya bhojan ka prabandh karna chahie. har din bhojan banne ke bad ek hissa nikalakar gay, kutta, kaua athva billi ko dena chahie. manyata hai ki inhen diya gaya bhojan sidhe pitron ko prapt ho jata hai. sham ke samay ghar ke dvar par ek dipak jalakar pitrignon ka dhyan karna chahie. hindu dharm granthon ke anusar jis tithi ko jiske purvaj gaman karte hain, usi tithi ko unka shraddh karna chahie. is paksh men jo log apne pitron ko jal dete hain tatha unki mrityutithi par shraddh karte hain, unke samast manorath purn hote hain. jin logon ko apne parijnon ki mrityu ki tithi gyat nahin hoti, unke lie pitri paksh men kuch vishesh tit...

English to Hindi Transliterate

© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.

English to Hindi Transliterate

© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.

जल संरक्षण क्या है? उपाय, प्रमुख संस्थाएं! ( Jal Sanrakshan Kya Hai )

विषय सूची • • • • • • • जल संरक्षण क्या है? ( What is Water Conservation ) जल का संरक्षण केकरना बहुत जरूरी है क्योंकि जल एक अमूल्य वस्तु है । जल के बिना जीवन संभव नहीं है क्योंकि हम सब जल के बिना जीवित नहीं रह सकते हैं , जल के बिना जीवन की कल्पना करना असम्भव हैं । क्योंकि जल ही जीवन है । जल हमारे कई गतिविधियों के लिए जरूरी होता है । हमारे धरती पर कुल 71 % पानी है लेकिन हम सभी जानते हैं कि हमारे धरती पर केवल 1 % ही पीने योग्य पानी है । और बाकी के पानी पीने योग्य नहीं है , इसलिए जल का संरक्षण करना आवश्यक है । विश्व जल दिवस मनाया जाता है? हर साल 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है । जल प्रदूषण ( निवारण व नियंत्रण ) अधिनियम सन् 1974 ई० में पारित हुआ था । जल संरक्षण करने के उपाय ( Water Conservation Measures ) ( 1 ). वर्षा का पानी ( Rain Water ) वर्षा ही जल का मुख्य स्रोत है । इसलिए वर्षा के जल को हमें नालियों में व्यर्थ बहने नहीं देना चाहिए । इस जल को संग्रहीत करके रखना चाहिए । प्राचीन काल में वर्षा रहित क्षेत्रों में लोग कुओं , सीढ़ीदार कुओं ( बावड़ी ) , झीलों आदि में वर्षा के जल को सरंक्षित करके रखते थे । इनका उपयोग पूरा समुदाय करता था । वर्षा के जल को हम निम्न तरीकों से इकट्ठा कर सकते हैं ; • छत के ऊपर वर्षा जल संग्रहण इस विधि में हम छत के ऊपर इकट्ठे हुए वर्षा के जल को पाईपों की मदद से जमीन में बने गड्ढे या टैंक में इकट्ठा करते हैं । इकट्ठे किए गए पानी को हम बाद में उपयोग कर सकते हैं । • सड़कों पर हुई बारिश के पानी को सड़कों के किनारे बनाये गए नालियों , गड्ढों के द्वारा जमीन में जाने देते हैं , जिससे जमीन के नीचे पानी का स्तर बढ़ जाए या फिर पातालतोड़ कुआँ का निर्माण करत...

इस तरीके से तुरंत सिद्ध हो जाते हैं मंत्र, जानिए रहस्य...

मुख्यत: 3 प्रकार के मंत्र होते हैं- 1.वैदिक 2.तांत्रिक और 3.शाबर मंत्र।..पहले तो आपको यह तय करना होगा कि आप किस तरह के मंत्र को जपने का संकल्प ले रहे हैं। साबर मंत्र बहुत जल्द सिद्ध होते हैं, तांत्रिक मंत्र में थोड़ा समय लगता है और वैदिक मंत्र थोड़ी देर से सिद्ध होते हैं। लेकिन जब वैदिक मंत्र सिद्ध हो जाते हैं और उनका असर कभी समाप्त नहीं होता है। मंत्र जप तीन प्रकार हैं:- 1.वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप। वाचिक जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है। मानस जप का अर्थ मन ही मन जप करना। उपांशु जप का अर्थ जिसमें जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनाई देती। बिलकुल धीमी गति में जप करना ही उपांशु जप है। मंत्र नियम : मंत्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मंत्र का सही उच्चारण। दूसरी बात जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उसका अर्घ्य पहले से लेना चाहिए। मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखा जाए। प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है। किसी विशिष्ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए। इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है। जप का दशांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए। इसी तरह लगातार जप का अभ्यास करते रहने से आपके चित्त में वह मंत्र इस कदर जम जाता है कि फिर नींद में भी वह चलता रहता है और अंतत: एक दिन वह मंत्र सिद्ध हो जाता है। दरअसल, मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है। अब सवाल यह उठता है कि सिद्ध होने के बाद क्या होता है या कि उसका क्या लाभ? आओ अगले पन्नों पर इसे जानते हैं। मंत्र सिद्ध होने पर क्या...

संसाधन संरक्षण की आवश्यकता

संसाधन संरक्षण : संसाधनों का सावधानीपूर्वक उपयोग करना और उन्हें नए सिरे से बनाने का समय देना। यह करने की आवश्यकता है क्योंकि संसाधन सीमित और संपूर्ण हैं। संसाधनों को पृथ्वी पर असमान रूप से वितरित किया जाता है क्योंकि वितरण विभिन्न भौतिक कारकों जैसे कि इलाके, जलवायु और ऊंचाई पर निर्भर करता है। भविष्य के उपयोग के लिए न्यायिक के साथ प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने या बचाने के लिए संसाधन संरक्षण के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा प्राकृतिक संसाधन भविष्य में गायब हो सकते हैं, इसलिए हम इसका उपयोग टोम्रोज़ पीढ़ी के लिए करने के लिए करते हैं। संरक्षण संसाधन के उपयोग, आवंटन और संरक्षण का एक नैतिक हिस्सा है। इसका प्राथमिक ध्यान प्राकृतिक दुनिया, इसके मत्स्य पालन, निवास और जैविक विविधता के स्वास्थ्य को बनाए रखने पर है। संसाधनों को दो भागो में विभाजित कर सकते हैं : 1. अक्षय नवीकरणीय 2. गैर-नवीकरणीय नवीकरणीय संसाधनों के उदाहरण है - हवा, पानी, प्राकृतिक गैस, पवन, सौर ऊर्जा आदि। गैर नवीकरणीय संसाधनों के उदाहरण है - कोयला, कच्चे तेल आदि। संसाधनों के संरक्षण के लिए उपाय : • पर्यावरण संसाधनों को एक सीमा में उपयोग करना चाहिए • हमें पर्यावरण संसाधनों को व्यर्थ में उपयोग नहीं करना चाहिए • हमें पर्यावरण संसाधनों का बर्बाद और बेकार नहीं करना चाहिए • हमें वनों को नहीं काटना चाहिए। • हमें व्यर्थ में पानी नहीं बहाना चाहिए • पारिस्थितिक संतुलन का समर्थन करके जीवन का समर्थन करना • यह सुनिश्चित करने के लिए कि आने वाली पीढ़ियां संसाधनों तक पहुंच बना सकेंगी • जैव विविधता के संरक्षण के लिए • यह सुनिश्चित करने के लिए कि मानव जाति जीवित रहे।

shraddh karma: kab, kyon aur kaise?

bhartiya shastron men aisi manyata hai ki pitrigan pitripaksh men prithvi par ate hain aur 15 dinon tak prithvi par rahne ke bad apne lok laut jate hain. shastron men bataya gaya hai ki pitripaksh ke dauran pitri apne parijnon ke as-pas rahte hain islie in dinon koi bhi aisa kam nahin karen jisse pitrigan naraj hon. pitron ko khush rakhne ke lie pitri paksh mane kuch baton par vishesh dhyan dena chahie. pitri paksh ke dauran brahman, jamata, bhanja, mama, guru, nati ko bhojan karana chahie. isse pitrigan atyant prasann hote hain. brahmanon ko bhojan karvate samay bhojan ka patra donon hathon se pakarakar lana chahie anyatha bhojan ka ansh rakshas grahan kar lete hain jisse brahmanon dvara ann grahan karne ke bavjud pitrigan bhojan ka ansh grahan nahin karte hain. pitri paksh men dvar par ane vale kisi bhi jiv-jantu ko marna nahin chahie balki unke yogya bhojan ka prabandh karna chahie. har din bhojan banne ke bad ek hissa nikalakar gay, kutta, kaua athva billi ko dena chahie. manyata hai ki inhen diya gaya bhojan sidhe pitron ko prapt ho jata hai. sham ke samay ghar ke dvar par ek dipak jalakar pitrignon ka dhyan karna chahie. hindu dharm granthon ke anusar jis tithi ko jiske purvaj gaman karte hain, usi tithi ko unka shraddh karna chahie. is paksh men jo log apne pitron ko jal dete hain tatha unki mrityutithi par shraddh karte hain, unke samast manorath purn hote hain. jin logon ko apne parijnon ki mrityu ki tithi gyat nahin hoti, unke lie pitri paksh men kuch vishesh tit...