हिंदी साहित्य के आदिकाल के कवि हैं?

  1. हिंदी साहित्य के आदिकाल का नामकरण एवं सीमांकन। – Dr. Sunita Sharma
  2. सिद्ध साहित्य
  3. हिन्दी साहित्य आदिकाल की प्रमुख रचनाएँ व काल विभाजन, Major compositions and time division of Hindi literature
  4. हिंदी साहित्य
  5. हिंदी साहित्य के काल : HindiPrem.com हिंदी साहित्य (Hindi Sahitya
  6. Aadikal
  7. आदिकाल का सामान्य परिचय


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हिंदी साहित्य के आदिकाल का नामकरण एवं सीमांकन। – Dr. Sunita Sharma

किसी भी विषय के इतिहास को समझने के लिए उसका काल विभाजन अत्यंत अनिवार्य होता है। काल विभाजन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा ऐतिहासिक तथ्यों का सुगमता से अध्ययन किया जा सकता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल का हिंदी साहित्य का इतिहास इसीलिए सर्वमान्य है क्योंकि उसमें विभिन्न साहित्यिक प्रवृत्तियों के अनुसार काल विभाजन किया गया है और प्रत्येक काल को एक निश्चित सीमा के अंदर रखा गया है। शुक्ल द्वारा हिंदी साहित्य के इतिहास को चार भागों में विभाजित किया गया है- आदिकाल (संवत् 1050 से 1375) भक्ति काल( संवत् 1375 से 1700) रीति काल (संवत् 1700-1900) आधुनिक काल ( संवत् 1900 से—) हिंदी साहित्य के प्रथम काल को आदिकाल नाम दिया गया। आदिकाल की सीमा एवं नामकरण को लेकर विद्वानों में पर्याप्त मतभेद है। हिंदी भाषा के उद्भव और विकास पर दृष्टिपात करने के पश्चात यह तो स्पष्ट है कि अपभ्रंश हिंदी से पूर्व प्रचलित भाषा थी तथा चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने इसे ही पुरानी हिंदी कहा है। जब अपभ्रंश भाषा हिंदी के रूप में विकसित हो गई उस समय जो रचनाएं लिखी गई वहीं से हिंदी साहित्य के आरंभिक काल की शुरुआत मानी जा सकती है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी का आरंभ संवत 1050 अर्थात् सन् 993 ई. मानते हैं, जब अपभ्रंश भाषा पूर्णता हिंदी के रूप में सक्षम हो रही थी। आचार्य शुक्ल ने आदिकाल की समय सीमा संवत 1050 से संवत 1375 तक मानी है। हिंदी साहित्य के लेखकों एवं साहित्यिक विचारकों के अनुसार हिंदी साहित्य का नामकरण एवं सीमांकन इस प्रकार है- प्रथम इतिहास लेखक गार्सा द तासी तथा शिव सिंह सेंगर द्वारा काल विभाजन एवं नामकरण की प्रक्रिया को नहीं अपनाया गया। सर्वप्रथम काल विभाजन का कार्य डॉ. जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा किया गया। उसके बाद के लग...

सिद्ध साहित्य

Table of Contents • • • • • • • • • सिद्ध साहित्य “बौद्ध धर्म के वज्रयान शाखा से जो साहित्य देशभाषा में लिखा गया वही सिद्ध साहित्य(Siddh Sahitya) कहलाता है।” बौद्ध धर्म विकृत होकर वज्रयान संप्रदाय के रूप में देश के पूर्वी भागों में फैल चुका था बिहार से लेकर आसाम तक यह फैले थे। बिहार के नालंदा और तक्षशिला विद्यापीठ इनके प्रमुख अड्डे माने जाते हैं। इन बौद्ध तांत्रिकों में वामाचार की गहरी प्रवृत्ति पाई जाती थी। राहुल सांकृत्यायन ने 84 सिद्धों के नामों का उल्लेख किया है। यह सिद्ध अपने नाम के अंत में आदर के रूप मे ‘ पा’ शब्द का प्रयोग करते थे जैसे : सरह पा, लुई पा “सिद्धों की भाषा संध्या भाषा के नाम से पुकारी जाती है जिसका अर्थ होता है कुछ स्पष्ट और कुछ अस्पष्ट “मुनि अद्वय वज्र तथा मुनिदत्त सूरी ने कहा है। बौद्ध- ज्ञान -ओ -दोहा नाम से हरप्रसाद शास्त्री ने इनका संग्रह प्रकाशित करवाया। सिद्ध साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ : • इस साहित्य में तंत्र साधना पर अधिक बल दिया जाता था। • जाति प्रथा और वर्ण भेद व्यवस्था का विरोध किया गया। • वैदिक धर्म का खंडन किया गया। • सिद्धो में पंचमकार की दुष्प्रवृत्ति देखने को मिलती है मांस,मछली, मदिरा,मुद्रा और मैथुन राहुल सांकृत्यायन ने 84 सिद्धों के नामों का उल्लेख किया है जिनमें सिद्ध सरहपा से यह साहित्य आरंभ होता है। सिद्धो की भाषा में उलट भाषा शैली का पूर्व रूप देखने को मिलता है जो आगे चलकर सिद्ध साहित्य के प्रमुख कवि सरहपा ⇒ सरहपा को हिन्दी का पहला कवि माना गया है। ⇒ इनका समय 769 ई.माना जाता है। ⇒ यह जाति से ब्राह्मण माने जाते हैं। ⇒ इन्हें सरहपाद,सरोज वज्र, राहुल भद्र आदि नामों से भी जाना जाता है। ⇒ इनके द्वारा रचित कुल 32 ग्रंथ थे। ⇒ जिनमें से द...

हिन्दी साहित्य आदिकाल की प्रमुख रचनाएँ व काल विभाजन, Major compositions and time division of Hindi literature

आधनिक आर्यभाषाओं केविकास के साथ ही 10वीं शताब्दीई० में हिन्दी का विकास हआ । इससे पूर्व अपभ्रंश तथा अवहट्ट में रचनाएं हो रही थीं। सिद्ध सन्तों तथा नाथपन्थी योगियों की वाणी में हिन्दी का प्राचीन रूप सामने आता है। अपभ्रंश तथा अवहट्ट से निकली बोलियों ने हिन्दी के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। चन्दबरदाई की रचना ' पृथ्वीराज - रासो ' हिन्दी भाषा की प्रथम रचनामानी जाती है। हिन्दी साहित्य के विकास तथा विस्तार के बाद इतिहास लेखन की प्रवृत्ति 19वीं शताब्दी में सामने आई । जार्ज ग्रियर्सन , शिवसिंह सेंगर , मिश्र - बन्धुओं ने हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखा, किन्तु आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने सर्वाधिक मानक इतिहास ' हिन्दी साहित्य का इतिहास ' लिखा। इनके द्वारा हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन अधिक प्रासंगिक और मान्य हुआ । आचार्य शुक्ल ने प्रवृत्तियों तथा कालक्रम के वैज्ञानिक आधार पर हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखा तथा काल विभाजन सामने रखा। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का काल विभाजन इस प्रकार है ---- 1- आदिकाल ( वीरगाथा काल )-- सम्वत् (1050) से सम्वत् 1375 तक। 2- मध्यकाल (2) ( i )- पूर्व मध्यकाल ( भक्तिकाल ) सम्वत् 1375 से सम्वत् 1700 तक। ( ii )- उत्तर मध्यकाल ( रीतिकाल ) सम्वत् 1700 से सम्वत् 1900 तक। 3- आधुनिक काल सम्वत् 1900 से सम्वत् 1984 तक । आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के इतिहास में आधुनिक काल का विभाजन भारतेन्दुकाल , द्विवेदीकाल तथा छायावाद के रूप में हुआ है , जबकि 1936 ई० के बाद छायावाद के अवसानोपरान्त प्रगतिवाद नामक काव्यधारा का अभ्युदय हुआ । प्रगतिवाद के बाद प्रयोगवाद , नई कविता , सठोत्तरी कविता , समकालीन कविता का दौर आया है। आदिकाल के दौरान रचना की प्रवृत्तियों में वीरगाथात्मकता क...

हिंदी साहित्य

अनुक्रम • 1 हिन्दी साहित्य का आरम्भ • 1.1 आदिकाल • 1.2 भक्ति काल • 1.3 रीति काल का परिचय • 1.4 आधुनिक काल • 1.5 नव्योत्तर काल • 2 हिन्दी की विभिन्न बोलियों का साहित्य • 3 हिन्दी साहित्य के लिए पुरस्कार • 4 इन्हें भी देखें • 4.1 प्रमुख हिंदी साहित्यकार • 4.2 हिन्दी के प्रमुख ग्रन्थ • 4.3 अन्य • 5 सन्दर्भ हिन्दी साहित्य का आरम्भ [ ] मुख्य लेख: भाषा के विकास-क्रम में हिन्दी साहित्य के लिए पुरस्कार [ ] स्थापना वर्ष पुरस्कार का नाम पुरस्कार प्रदान करने वाली संस्था 1922 1935 1954 1965 1983 भारतीय ज्ञानपीठ 1986 राजभाषा कीर्ति पुरस्कार राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार 1982 1986 1989 1991 1991 के के बिड़ला फाउंडेशन आजीवन साहित्य साधना पुरस्कार माधव प्रसाद मिश्र सम्मान महाकवि सूरदास सम्मान इन्हें भी देखें [ ] प्रमुख हिंदी साहित्यकार [ ] • • • हिन्दी के प्रमुख ग्रन्थ [ ]

हिंदी साहित्य के काल : HindiPrem.com हिंदी साहित्य (Hindi Sahitya

‘हिंदी साहित्य के काल (Hindi Sahitya)’ शीर्षक के इस लेख में हिंदी साहित्य से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है। विद्वानों द्वारा हिंदी साहित्य के इतिहास को चार भागों में बाँटा गया है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’में हिंदी के 900 वर्षों के इतिहास को चार भागों में विभक्त किया है – • आदिकाल या वीरगाथा काल –सन् 993 से 1318 तक • भक्तिकाल या पूर्व– मध्यकाल– 1318 से 1643 तक • रीतिकाल या उत्तर– मध्यकाल– 1643 से 1843 तक • आधुनिक काल– 1900 से 1974 तक वीरगाथाकाल या आदिकाल हिंदी साहित्य के पहले उत्थान काल को ‘आदिकाल’, ‘वीरगाथाकाल’ या ‘चारणकाल’ के नाम से जाना जाता है। भारत में यह राजे वीरगाथा काल की प्रमुख रचनाएं – पृथ्वीराज रासो, परमाल रासो (आल्हाखंड), बीसलदेव रासो, हम्मीर रासो, खुमाण रासो, विजयपाल रासो, जयचंद्रप्रकाश, विजयपाल रासो, जयमयंक-जस-चंद्रिका। भक्तिकाल (पूर्व मध्यकाल) भारत में चौदहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में भक्तिकाल की शुरुवात हुई। इस काल के कवियों को मुख्य रूप से दो शाखाओं में विभक्त किया गया है- ‘सगुण भक्ति’ मार्गी कवि और ‘निर्गुण भक्ति’ शाखा के कवि। सगुण भक्ति शाखा के कवियों द्वारा ईश्वर के सुंदर व मधुर रूप व उनकी महिमा का बखान किया गया है। वहीं निर्गुण भक्ति शाखा के कवियों द्वारा ईश्वर के निराकार रूप का वर्णन किया गया है। इन्हें ज्ञानमार्गी शाखा के कवि भी कहा जाता है। कबीरदास ज्ञानमार्गी शाखा के प्रमुख कवि हैं। इसे भी पढ़ें वाक्यांश के लिए एक शब्द सगुण भक्ति शाखा – इसमें ईश्वर के अवतार, सुदरता व मनोहर रूप का वर्णन किया गया है। इस शाखा के कवियों में कुछ ‘रामाश्रयी’ शाखा के तो कुछ ‘कृष्णाश्रयी’ शाखा के थे। वल्लभाचार्य को कृष्णभक्ति के प्रवर्तक के रूप...

Aadikal

Contents • • • • • • • • • • • • • • • • Aadikal | आदिकाल : हिंदी साहित्य का आरंभ Aadikal | आदिकाल : हिंदी साहित्य का आरंभ – हिंदी साहित्य का आरंभ का प्रश्न हिंदी भाषा के विकास से संबंध है। आठवीं सदी में साहित्यिक अपभ्रंश से इतर बोलचाल की लोक भाषा अपभ्रंश में साहित्य रचना होने लगी थी। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने उत्तर अपभ्रंश की रचनाओं को साहित्य की कोटि में न मानते हुए भी प्राकृत की अंतिम अपभ्रंश अवस्था से हिंदी साहित्य का आविर्भाव माना है। इन्होनें अपभ्रंश को “प्राकृताभास हिंदी” की संज्ञा दी है। अपभ्रंश किस बोलचाल की भाषा या लोक भाषा को विद्वानों ने उत्तरी या परवर्ती अपभ्रंश, पुरानी हिंदी या प्राकृतावास हिंदी कहा है। सर्वप्रथम चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी ने 1921 में काशी नगरी प्रचारिणी पत्रिका में उत्तर अपभृंश को पुरानी हिंदी की संज्ञा दी। Aadikal | आदिकाल : हिंदी का पहला कवि Aadikal | आदिकाल : हिंदी का पहला कवि – • शिव सिंह सेंगर ने 7 वीं शताब्दी के पुष्य या पुण्ड नामक कवि को हिंदी का प्रथम कवि माना है । • राहुल सांस्कृत्यायन ने 7 वीं शताब्दी के सरहपाद को हिंदी का पहला कवि माना है। • गणपति चंद्रगुप्त ने “भरतेश्वर बाहुबली के रचयिता” शालिभद्र सूरी को हिंदी का पहला कवि माना है। अतः सरहपाद को हिंदी का प्रथम कवि माना जा सकता है क्योंकि उनकी भावधारा सिद्धों और नाथों से होती हुई कबीर तक अपनी परम्परा बनाती है , साथ ही उनकी रचनाओं से हिंदी का आरंभिक रूप भी स्पष्ट होता है। Aadikal Ke Namkaran | आदिकाल के नामकरण Aadikal Ke Namkaran | आदिकाल के नामकरण : किस कवि ने आदिकाल को क्या नाम दिया ? निम्नानुसार देखा जा सकता है : सं. कवि रचना 1 ग्रिर्यसन सर्वप्रथम ग्रिर्यसन ने नामकरण किया है और नाम ...

आदिकाल का सामान्य परिचय

आदिकाल का सामान्य परिचय इस पोस्ट में आदिकाल का सामान्य परिचय, हिंदी का प्रथम कवि, हिंदी का प्रथम ग्रंथ, आदिकाल से संबंधित विभिन्न विद्वानों के प्रमुख कथन एवं महत्त्वपूर्ण कथन शामिल हैं। aadikal ka parichay चारण काल — जॉर्ज ग्रियर्सन प्रारंभिक काल — मिश्रबंधु, डॉ. गणपतिचंद्र गुप्त बीजवपन काल — आ. महावीरप्रसाद द्विवेदी वीरगाथाकाल — आ. रामचंद्र शुक्ल सिद्ध-सामत काल — महापंडित राहुल सांकृत्यायन वीरकाल — आ. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र संधिकाल एवं चारण काल — डॉ. रामकुमार वर्मा आदिकाल — आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी जय काल — डॉ. रमाशंकर शुक्ल ‘रसाल’ आधार काल — सुमन राजे अपभ्रंश काल — डॉ. धीरेंद्र वर्मा, डॉ. चंद्रधर शर्मा गुलेरी अपभ्रंश काल (जातीय साहित्य का उदय) — डॉ. बच्चन सिंह उद्भव काल — डॉ. वासुदेव सिंह सर्वमान्य मत के अनुसार आ. हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा सुझाए गए नाम ‘आदिकाल’ को स्वीकार किया गया है। हिंदी का प्रथम कवि महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने ‘सरहपा/ सरहपाद’ को हिंदी का प्रथम कवि स्वीकार किया है। सामान्यतया उक्त मत को स्वीकार किया जाता है। हिंदी का प्रथम कवि कौन हो सकता है, इस संबंध में अन्य विद्वानों के मत इस प्रकार हैं— 1. स्वयंभू (8वीं सदी) ― डॉ. रामकुमार वर्मा। 2. सरहपा (769 ई.) ― राहुल सांकृत्यायन व डॉ. नगेन्द्र 3. पुष्य या पुण्ड (613 ई./सं. 670) ― शिवसिंह सेंगर 4. राजा मुंज (993 ई/ सं. 1050)- चंद्रधर शर्मा गुलेरी 5. अब्दुर्रहमान (11वीं सदी) ― डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी 6. शालिभद्र सूरि (1184 ई.) ― डॉ. गणपतिचंद्र गुप्त 7. विद्यापति (15वीं सदी) ― डॉ. बच्चन सिंह हिंदी का प्रथम ग्रंथ जैन श्रावक देवसेन कृत ‘श्रावकाचार’ को हिंदी का प्रथम ग्रंथ माना जाता है। इसमें 250 दोहों में श्र...