हरि सिंह नलवा का इतिहास

  1. Hari singh nalwa birth anniversary: बच्चे रोते थे तो मां कहती थी, चुप हो जा वरना ‘नलवा’ आ जाएगा
  2. Hari Singh Nalwa
  3. सरदार हरि सिंह नलवा
  4. Hari Singh Nalwa Foundation Trust
  5. The Lion of Punjab : हरि सिंह नलवा का जीवन और सम्पूर्ण वीरगाथा
  6. हरि सिंह नलवा
  7. क्या आपने एक महान वीर योद्धा “सरदार हरि सिंह नलवा” का इतिहास पढ़ा है?
  8. सरदार हरि सिंह नलवा
  9. The Lion of Punjab : हरि सिंह नलवा का जीवन और सम्पूर्ण वीरगाथा
  10. हरि सिंह नलवा


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Hari singh nalwa birth anniversary: बच्चे रोते थे तो मां कहती थी, चुप हो जा वरना ‘नलवा’ आ जाएगा

• 8 hours ago • 14 hours ago • 15 hours ago • 18 hours ago • 18 hours ago • 19 hours ago • 22 hours ago • yesterday • yesterday • yesterday • yesterday • yesterday • yesterday • yesterday • yesterday • yesterday • yesterday • yesterday • yesterday • yesterday • yesterday • yesterday • yesterday • yesterday • 2 days ago • 2 days ago • 2 days ago • 2 days ago • 2 days ago • 2 days ago • 39.9°C Hari singh nalwa birth anniversary: रणजीत सिंह का सेनाध्यक्ष एक ऐसा योद्धा था, जिसके नाम से ही अफगान खौफ खाते थे, जिनको उसने नाकों चने चबवा दिए थे। बच्चे रोते थे तो मां कहती थी, चुप हो जा वरना ‘नलवा’ आ जाएगा। जिसने पठानों के विरुद्ध कई युद्धों का नेतृत्व किया, इस महान योद्धा का नाम हरि सिंह नलवा था। रणनीति व रणकौशल की दृष्टि से हरि सिंह नलवा की तुलना भारत के श्रेष्ठ सेनानायकों से की जाती है। 1100 रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें हरि सिंह नलवा का जन्म 28 अप्रैल, 1791 को पंजाब के गुजरांवाला में हुआ था। इनके पिता का नाम गुरदयाल सिंह उप्प्पल और मां का नाम धर्म कौर था। बचपन में उन्हें घर के लोग प्यार से ‘हरिया’ कहते थे। सात वर्ष की आयु में इनके पिता का देहान्त हो गया। 14 वर्ष की आयु में 1805 में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा वसन्तोत्सव पर करवाई गई प्रतिभा खोज प्रतियोगिता में हरि सिंह नलवा ने भाला चलाने, तीरंदाजी तथा अन्य प्रतियोगिताओं में अपनी अद्भुत प्रतिभा का परिचय दिया, जिससे प्रभावित होकर महाराजा रणजीत सिंह ने उन्हें अपनी सेना में भर्ती कर लिया। शीघ्र ही वह उनके विश्वासपात्र सेनानायकों म...

Hari Singh Nalwa

Kingdom of the Sikhs (1799-1849) The Kingdom of the Sikhs, or the Sarkar Khalsaji, was a manifestation of the spiritual path initiated by Guru Nanak that was eventually crystallized into the tradition of the Khalsa by Guru Gobind Singh. In 1799, the Sikhs established their kingdom in that part of the Indian subcontinent most traumatised by the invaders. Hari Singh 'Nalwa' General Hari Singh Nalwa (1791-1837) was the Commander-in-Chief of Maharaja Ranjit Singh's army along the northwest frontier of the Indian subcontinent, bordering Afghanistan. Hari Singh Nalwa served as the administrator of the most turbulent region within the Sikh Kingdom, the region referred today as Khyber Pakhtunkhwa. At the time of Nalwa's death, he was one of the wealthiest jagirdars (feudal lord) of the Sikh Kingdom. He gave away most of his wealth in charity, epitomising the saint-soldier tradition of the Sikh Gurus. ਹਰੀ ਸਿੰਘ ਨਲਵਾ ਲਮ ਤਦੀ ਬਹੁ ਚੁੱਕੀ ਤੁਰਕਾਂ ਕਲਮ ਮੇਰੀ ਫਟ ਜਾਵੇ, ਕਰਦੀ ਹਾਵੇ। ਦੇਵੀ ਦੇਵਤੇ ਛੱਪ ਖੜੋਤੇ ਕੌਨ ਅਗੇ ਹੁੰਨ ਆਵੇ, ਮੂੰਹ ਦੀ ਖਾਵੇ। I am writing a historical fiction novel based on a minor character during the reign of Majaraja Ranjit Singh ji. I need some information about General Nalwa Singh ji--mostly about his personal life. I have no information about his family, whether he was married, or had children, grand...

सरदार हरि सिंह नलवा

• कश्मीर के गवर्नर (दीवान) (1820–1) [1] [1] • हाज़रा के गवर्नर (दीवान) (1822–1837) [1] • पेशावर के गवर्नर (दीवान) (1834-5, 1836–7) [1] युद्ध/झड़पें • कसूर की युद्ध(1807), • अटॉक की युद्ध (1813), • मुल्तान की युद्ध (1818), • शोपियां की युद्ध (1819), • मंगल की युद्ध (1821), • मनखेरा की युद्ध (1821), • नौशेरा की युद्ध (1823), • युद्ध सिरीकोट (1824), • सायद की युद्ध (1827), • पेशावर की युद्ध (1834) • जमरूद की युद्ध (1837) सम्मान इजाज़ी-ए-सरदारी सम्बंध • गुरुदयाल सिंह (पिता) • धर्म कौर (माँ) Close ▲ हरि सिंह नलवा ने हरि सिंह नलवा हजारा के प्रशासक (गवर्नर) थे। सिख साम्राज्य की तरफ से उन्होने एक मुद्रालय (mint) स्थापित किया था ताकि कश्मीर और पेशावर में राजस्व इकट्ठा किया जा सके। महाराजा रणजीत सिंह के निर्देश के अनुसार हरि सिंह नलवा ने सर हेनरी ग्रिफिन ने हरि सिंह को "खालसाजी का चैंपियन" कहा है। ब्रिटिश शासकों ने हरि सिंह नलवा की तुलना

Hari Singh Nalwa Foundation Trust

सरदार हरि सिंह नलवा की 174वीं पुण्यतिथि प्रीती नलवा सरदार हरि सिंह नलवा (1791-1837) का भारतीय इतिहास में एक सराहनीय एवं महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत के उन्नीसवीं सदी के समय में उनकी उपलब्धियों की मिसाल पाना महज असंभव है। इनका निष्ठावान जीवनकाल हमारे इस समय के इतिहास को सर्वाधिक सशक्त करता है। परंतु इनका योगदान स्मरणार्थक एवं अनुपम होने के बावज़ूद भी पंजाब की सीमाओं के बाहर अज्ञात बन कर रह गया है। इतिहास की पुस्तकों के पन्नों में भी इनका नाम लुप्त है। आज के दिन उनकी शहीदी की 174वीं पुण्यओतिथि के अवसर पर इनकी अफ़गानिस्तान से संबंधित उल्लेखनीय परिपूर्णताओं को स्मरण करना उचित होगा। जहाँ ब्रिटिश, रूसी और अमरीकी सैन्य बलों को विफलता मिली, इस क्षेत्र में सरदार हरि सिंह नलवा ने अपनी सामरिक प्रतिभा और बहादुरी की धाक जमाने के साथ सिक्खक-संत सिपाही होने का उदाहरण स्थापित किया था। आज जब अफ़गान राष्ट्रपति हामिद करज़ई की सरकार भ्रष्टाचार से जूझ रही है, अपने ही राष्ट्र की सुरक्षा जिम्मेदारियों के लिये अंतरराष्ट्रीय बलों पर निर्भर है और अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा के लगभग 80,000 अमरीकी सैनिक अफ़गानिस्तान में तैनात, तालिबानी उग्रवादियों की आतंकी घटनाओं से बुरी तरह संशयात्मक है, यह जानना अनिवार्य है कि हरि सिंह नलवा ने स्थानीय प्रशासन और विश्वसनीय संस्थानों की स्थापना कर यहाँ पर प्रशासनिक सफलता प्राप्त की थी। यह इतिहास में पहली बार हुआ था कि पेशावरी पश्तून, पंजाबियों द्वारा शासित थे। इसलिये रणनीति और रणकौशल की दृष्टि से हरि सिंह नलवा की तुलना दुनिया के श्रेष्ठ जरनैलों से की जाती है। सरदार हरि सिंह नलवा का नाम श्रेष्ठतम सिक्खी योद्धाओं की गिनती में आता है। वह महाराजा रणजीत सिंह की सिक्ख फौज के सबसे...

The Lion of Punjab : हरि सिंह नलवा का जीवन और सम्पूर्ण वीरगाथा

The Lion of Punjab : हरि सिंह नलवा का जीवन और सम्पूर्ण वीरगाथा इस आर्टिकल मैं आपको एक ऐसे वीर योद्धा के बारे में बताने जा रहा हूं जो सिर्फ नाम का ही सिंह नहीं था बल्कि उससे असली शेर भी डरा करते थे. 30 अप्रैल 1837 को जमरूद पर एक भयंकर आक्रमण हुआ, हरि सिंह उस समय बीमार चल रहे थे फिर भी उन्होंने युद्ध में भाग लिया. भारत के इतिहास में ऐसे कई वीर योद्धा हुए हैं जिनके सिर्फ नाम से ही दुश्मन कांप जाते थे. इनकी वीरगाथा हम सभी बचपन से ही सुनते पढ़ते आ रहे हैं। लेकिन कुछ वीर योद्धा ऐसे भी हैं, जिनके बारे में हमारे इतिहासकारों ने हम भारतवासियों को बताना जरूरी नहीं समझा. आज मैं आपको भारत के वीर सपूत हरि सिंह नलवा की वीरता की कहानी बताने जा रहा हूं. हरि सिंह नलवा का बचपन हरि सिंह नलवा का जन्म 1791 में संयुक्त पंजाब प्रांत के गुजरावाला में हुआ था. हरि सिंह के पिता का नाम गुरुदयाल सिंह और मां का नाम धर्मा कौर था. लेकिन हरिसिंह जब 7 वर्ष के थे तो उसके सर से पिता का साया उठ गया, पर कहते हैं ना दोस्तों होनहार वीर वान के होते चिकने पात हरि सिंह बचपन से ही अस्त्र-शस्त्र विद्या सीखने लगे थे. 10 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते पंजाब का ये शेर घुड़सवारी, मरसालर्ट, तलवार और भाला चलाने में निपुण हो गया था. 1881 में, ब्रिटिश अखबारों के इतिहास की तुलना में कुछ लोग सोचते है कि नेपोलियन एक महान सेनापति था. कुछ लोग मार्शल हिंडनबर्ग, लॉर्ड किचनर, जनरल करोबज़ी, या वेलिंगटन के ड्यूक आदि का उल्लेख कर सकते हैं और कुछ आगे जाकर कह सकते हैं, हलाकू खान, चंगेज खान, चंगेज़ खान, रिचर्ड या अलाउद्दीन, आदि. लेकिन मैं आपको बता दूं कि भारतवर्ष में सिक्खों के हरिसिंह नलवा नाम का एक सेनापति प्रबल हुआ. यदि वह अधिक समय तक जी...

हरि सिंह नलवा

poora nam saradar hari sianh nalava janm janm bhoomi gujaraanvala, mrityu tithi mrityu sthan jamarood (ab pita/mata guradayal sianh aur dharma kaur upadhi 'saradar' dharmik manyata prasiddhi yuddh multan yuddh, jamaraud yuddh, noshera yuddh any janakari ek din shikar ke samay jab maharaja ranajit sianh par achanak saradar hari sianh nalava ( Hari Singh Nalwa, janm- jivan parichay hari sianh nalava ka janm 1791 mean ranajit sianh ke sena nayak hari sianh nalava maharaja ranajit sianh ke vijay abhiyan tatha sima vistar ke pramukh nayakoan mean se ek the. dridhata aur ichchhashakti aisa kaha jata hai ki ek bar hari sianh nalava ne peshavar mean varsha hone par apane kile se dekha ki anek afagan apane-apane makanoan ki chhatoan ko thok tatha pit rahe haian, kyoanki chhatoan ki viragati hari sianh ne afaganistan se raksha ke lie jamarood mean ek majaboot kile ka bhi nirman karaya. yah muslim akramanakariyoan ke lie maut ka kuaan sabit hua. afaganoan ne peshavar par apana adhikar karane ke lie bar-bar akraman kiye. vishesh yogadan shreshthatam sikh yoddha saradar hari sianh nalava ka nam shreshthatam sikkhi yoddhaoan ki ginati mean ata hai. vah maharaja ranajit sianh ki sikh phauj ke sabase b de janaral (senadhyaksh) the. maharaja ranajit sianh ke samrajy (1799-1849) ko 'sarakar khalasaji' ke nam se bhi nirdisht kiya jata tha. sikh samrajy, panne ki pragati avastha tika tippani aur sandarbh · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · ·...

क्या आपने एक महान वीर योद्धा “सरदार हरि सिंह नलवा” का इतिहास पढ़ा है?

सरदार हरि सिंह नलवा (1791-1837) का भारतीय इतिहास में एक सराहनीय एवम् महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत के उन्नीसवीं सदी के समय में उनकी उपलब्धियों की मिसाल पाना महज असंभव है। इनका निष्ठावान जीवनकाल हमारे इस समय के इतिहास को सर्वाधिक सशक्त करता है। परंतु इनका योगदान स्मरणार्थक एवम् अनुपम होने के बावज़ूद भी पंजाब की सीमाओं के बाहर अज्ञात बन कर रहे गया है। इतिहास की पुस्तकों के पन्नो भी इनका नाम लुप्त है। आज के दिन इनकी अफगानिस्तान से संबंधित उल्लेखनीय परिपूर्णताओं को स्मरण करना उचित होगा। जहाँ ब्रिटिश, रूसी और अमेरिकी सैन्य बलों को विफलता मिली, इस क्षेत्र में सरदार हरि सिंह नलवा ने अपनी सामरिक प्रतिभा और बहादुरी की धाक जमाने के साथ सिख-संत सिपाही होने का उदाहरण स्थापित किया था। आज जब अफगान राष्ट्रपति अहमदज़ई की सरकार भ्रष्टाचार से जूझ रही है, अपने ही राष्ट्र की सुरक्षा जिम्मेदारियों के लिये अंतरराष्ट्रीय बलों पर निर्भर है और अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के लगभग 300,000 अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान में तैनात, तालिबानी उग्रवादियों की आंतकी घटनाओं से बुरी तरह संशयात्मक है, यह जानना अनिवार्य है कि हरि सिंह नलवा ने स्थानीय प्रशासन और विश्वसनीय संस्थानों की स्थापना कर यहाँ पर प्रशासनिक सफलता प्राप्त की थी। यह इतिहास में पहली बार हुआ था कि पेशावरी पश्तून, पंजाबियों द्वारा शासित थे। जिस एक व्यक्ति का भय पठानों और अफगानियों के मन में, पेशावर से लेकर काबुल तक, सबसे अधिक था; उस शख्सीयत का नाम जनरल हरि सिंह नलुवा है। सिख फौज के सबसे बड़े जनरल हरि सिंह नलवा ने कश्मीर पर विजय प्राप्त कर अपना लौहा मनवाया। यही नहीं, काबुल पर भी सेना चढ़ाकर जीत दर्ज की। खैबर दर्रे से होने वाले इस्लामिक आक्रमणों से देश...

सरदार हरि सिंह नलवा

• कश्मीर के गवर्नर (दीवान) (1820–1) [1] [1] • हाज़रा के गवर्नर (दीवान) (1822–1837) [1] • पेशावर के गवर्नर (दीवान) (1834-5, 1836–7) [1] युद्ध/झड़पें • कसूर की युद्ध(1807), • अटॉक की युद्ध (1813), • मुल्तान की युद्ध (1818), • शोपियां की युद्ध (1819), • मंगल की युद्ध (1821), • मनखेरा की युद्ध (1821), • नौशेरा की युद्ध (1823), • युद्ध सिरीकोट (1824), • सायद की युद्ध (1827), • पेशावर की युद्ध (1834) • जमरूद की युद्ध (1837) सम्मान इजाज़ी-ए-सरदारी सम्बंध • गुरुदयाल सिंह (पिता) • धर्म कौर (माँ) Close ▲ हरि सिंह नलवा ने हरि सिंह नलवा हजारा के प्रशासक (गवर्नर) थे। सिख साम्राज्य की तरफ से उन्होने एक मुद्रालय (mint) स्थापित किया था ताकि कश्मीर और पेशावर में राजस्व इकट्ठा किया जा सके। महाराजा रणजीत सिंह के निर्देश के अनुसार हरि सिंह नलवा ने सर हेनरी ग्रिफिन ने हरि सिंह को "खालसाजी का चैंपियन" कहा है। ब्रिटिश शासकों ने हरि सिंह नलवा की तुलना

The Lion of Punjab : हरि सिंह नलवा का जीवन और सम्पूर्ण वीरगाथा

The Lion of Punjab : हरि सिंह नलवा का जीवन और सम्पूर्ण वीरगाथा इस आर्टिकल मैं आपको एक ऐसे वीर योद्धा के बारे में बताने जा रहा हूं जो सिर्फ नाम का ही सिंह नहीं था बल्कि उससे असली शेर भी डरा करते थे. 30 अप्रैल 1837 को जमरूद पर एक भयंकर आक्रमण हुआ, हरि सिंह उस समय बीमार चल रहे थे फिर भी उन्होंने युद्ध में भाग लिया. भारत के इतिहास में ऐसे कई वीर योद्धा हुए हैं जिनके सिर्फ नाम से ही दुश्मन कांप जाते थे. इनकी वीरगाथा हम सभी बचपन से ही सुनते पढ़ते आ रहे हैं। लेकिन कुछ वीर योद्धा ऐसे भी हैं, जिनके बारे में हमारे इतिहासकारों ने हम भारतवासियों को बताना जरूरी नहीं समझा. आज मैं आपको भारत के वीर सपूत हरि सिंह नलवा की वीरता की कहानी बताने जा रहा हूं. हरि सिंह नलवा का बचपन हरि सिंह नलवा का जन्म 1791 में संयुक्त पंजाब प्रांत के गुजरावाला में हुआ था. हरि सिंह के पिता का नाम गुरुदयाल सिंह और मां का नाम धर्मा कौर था. लेकिन हरिसिंह जब 7 वर्ष के थे तो उसके सर से पिता का साया उठ गया, पर कहते हैं ना दोस्तों होनहार वीर वान के होते चिकने पात हरि सिंह बचपन से ही अस्त्र-शस्त्र विद्या सीखने लगे थे. 10 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते पंजाब का ये शेर घुड़सवारी, मरसालर्ट, तलवार और भाला चलाने में निपुण हो गया था. 1881 में, ब्रिटिश अखबारों के इतिहास की तुलना में कुछ लोग सोचते है कि नेपोलियन एक महान सेनापति था. कुछ लोग मार्शल हिंडनबर्ग, लॉर्ड किचनर, जनरल करोबज़ी, या वेलिंगटन के ड्यूक आदि का उल्लेख कर सकते हैं और कुछ आगे जाकर कह सकते हैं, हलाकू खान, चंगेज खान, चंगेज़ खान, रिचर्ड या अलाउद्दीन, आदि. लेकिन मैं आपको बता दूं कि भारतवर्ष में सिक्खों के हरिसिंह नलवा नाम का एक सेनापति प्रबल हुआ. यदि वह अधिक समय तक जी...

हरि सिंह नलवा

poora nam saradar hari sianh nalava janm janm bhoomi gujaraanvala, mrityu tithi mrityu sthan jamarood (ab pita/mata guradayal sianh aur dharma kaur upadhi 'saradar' dharmik manyata prasiddhi yuddh multan yuddh, jamaraud yuddh, noshera yuddh any janakari ek din shikar ke samay jab maharaja ranajit sianh par achanak saradar hari sianh nalava ( Hari Singh Nalwa, janm- jivan parichay hari sianh nalava ka janm 1791 mean ranajit sianh ke sena nayak hari sianh nalava maharaja ranajit sianh ke vijay abhiyan tatha sima vistar ke pramukh nayakoan mean se ek the. dridhata aur ichchhashakti aisa kaha jata hai ki ek bar hari sianh nalava ne peshavar mean varsha hone par apane kile se dekha ki anek afagan apane-apane makanoan ki chhatoan ko thok tatha pit rahe haian, kyoanki chhatoan ki viragati hari sianh ne afaganistan se raksha ke lie jamarood mean ek majaboot kile ka bhi nirman karaya. yah muslim akramanakariyoan ke lie maut ka kuaan sabit hua. afaganoan ne peshavar par apana adhikar karane ke lie bar-bar akraman kiye. vishesh yogadan shreshthatam sikh yoddha saradar hari sianh nalava ka nam shreshthatam sikkhi yoddhaoan ki ginati mean ata hai. vah maharaja ranajit sianh ki sikh phauj ke sabase b de janaral (senadhyaksh) the. maharaja ranajit sianh ke samrajy (1799-1849) ko 'sarakar khalasaji' ke nam se bhi nirdisht kiya jata tha. sikh samrajy, panne ki pragati avastha tika tippani aur sandarbh · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · ·...