काका जी की बावड़ी

  1. राजस्थान के कलात्मक जल स्त्रोत
  2. 2023 की परीक्षा के लिए राजस्थान की प्रमुख बावड़ियां Rajasthan ki bavdiya
  3. राजस्थान की बावड़ीया
  4. काका कालेलकर
  5. रानी की बावड़ी, कोटा
  6. हरिहर काका: 10th CBSE Hindi संचयन भाग 2 Chapter 1
  7. जच्चा की बावड़ी


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राजस्थान के कलात्मक जल स्त्रोत

Advertisement बाबड़िया जल स्त्रोत के साथ-साथ लोगों की धार्मिक और सामाजिक जरूरतों को भी पूरा करती हैं, तथा प्राचीन कला को भी प्रदर्शित करती हैं। राजस्थान की कुछ प्रमुख कलात्मक बावड़िया इस प्रकार है। (1) आभानेरी की चांद बावड़ी • यह राजस्थान के दौसा में स्थित है। यह बावड़ी गुर्जर प्रतिहार कालीन कला का एक उत्कृष्ट नमूना है। • यह बावड़ी 300 फीट लंबी 200 फीट गहरी और 40 फीट चौड़ी है। • यह बावड़ी अपने ” तिलिस्म स्थापत्य”के लिए विश्व प्रसिद्ध है। • यह विश्व की सबसे गहरी बावड़ी भी मानी जाती है। • इस बावड़ी की सीढ़ियों को इस तरह से बनाया गया है कि उन्हें बिना नहीं जा सकता एवं कोई व्यक्ति इसकी सीढ़ियों से नीचे उतरता है तो वापस नहीं आ सकता बस शर्त है कि उसे कोई चिन्ह न मिले तब तक। • इस बावड़ी के आगे बाइक मोहर अंधेरी एवं उजली नामक दो लघु प्रवेश द्वार बनाए गए हैं। • यहां पर हजारों की संख्या में खंडित पाषाण मूर्तियां है। • यहां की मूर्तिकला, तक्षण कला एवं स्थापत्य कला के साथ-साथ खजुराहो की शैली भी दर्शनीय है। • इस बावड़ी के चारों और लाल पत्थर की ऊंची दीवारें हैं। (2) रामदेवरा की परचा बावड़ी • यह बावड़ी राजस्थान के जैसलमेर में स्थित है। • यह मीठे जल की बावड़ी है। • रामदेवरा आने वाले तीर्थयात्री परचा बावड़ी के पानी को पवित्र जल के रूप में मानते हैं और अपने साथ ले जाते हैं। • मान्यता के अनुसार इस बावड़ी का निर्माण बाबा रामदेव जी के आदेश अनुसार करवाया गया था। (3) रानी जी की बावड़ी • यह बावड़ी राजस्थान के बूंदी शहर में स्थित है। • बूंदी को ‘बावड़िया का शहर’ भी कहा जाता है। • यहां पर स्थित रानी जी की बावड़ी एशिया के सर्वश्रेष्ठ पारियों में से एक है। • इस बावड़ी का निर्माण 1999 ईस्वी में रामराजा अ...

2023 की परीक्षा के लिए राजस्थान की प्रमुख बावड़ियां Rajasthan ki bavdiya

नमस्कार मेरे प्रिय साथियों आज मैं आपको राजस्थान की कला,संस्कृति को आगे बढ़ाते हुए Rajasthan ki Bavdiya पर चर्चा करते हैं। बावड़िया क्या होती है? इन की परिभाषा क्या होती है? बावड़ियो को बनाने वाले क्या कहलाते हैं? बावड़िया में कहां के कलाकार है? बावड़िया की कला का आगमन कैसे हुआ? बावड़ियां का शहर किसे कहा जाता है? प्रमुख बावड़ियां यह सारी बातें आपको पता होनी चाहिए। हम इस आर्टिकल में विस्तार से राजस्थान की प्रमुख बावड़ियां इस पर चर्चा करने वाले हैं। Rajasthan ki Bavdiya • ऐसा जलकुंड जिसके तल या पेंदे तक पहुंचने के लिए सिंढिया लगी हो उसे बावड़ी कहा जाता है। • भारत में कुआं और बावडिया का निर्माण शिथियन जाति से प्रारंभ माना जाता है। • तो यह से एक अच्छा प्रश्न बन सकता है कि किस जाति या विदेशी जाति से बावड़िया की उत्पत्ति हुई है तो आपका उत्तर होगा शिथियन जाति। Bavdi Kya Hai • कभी-कबार प्रश्न साधारण परिचय से परीक्षा में बन जाता है साधारण परिचय आपको हर जगह लिखा हुआ नहीं मिलता है इसलिए पहले इन बातों पर चर्चा की है बावड़ियां के नामकरण तो आप हर मानक पुस्तक से पढ़ लेंगे उनसे कोई दिक्कत नहीं है लेकिन हमारा लक्ष्य सबसे अलग व परीक्षा में पूछे जाने वाला कंटेंट आपको उपलब्ध कराना है। • बावड़ियां का नाम याद रखने से काम नहीं चलेगा क्योंकि बावड़ियां के नाम लाखों विद्यार्थियों को याद है। लेकिन इसके साथ कुछ महत्वपूर्ण जानकारी भी होनी चाहिए। यह भी देंखे >>> PhonePe App घर बैठे कमाए प्रतिदिन 400 रुपये, बस करना होगा ये काम, जाने कैसे Bavdiya In Rajasthan बावड़ियां का साधा रण परिचय • राजस्थान में बावडियों का शहर बूंदी को कहा जाता है। • बावड़ी निर्माण के सर्वाधिक दक्ष कलाकार भीनमाल (जालौर) क्षेत्र के म...

राजस्थान की बावड़ीया

राजस्थान की बावड़ी रानीजी की बावड़ी :- यह बूँदी नगर में स्थित है जो बावड़ियों का सिरमौर है। इस अनुपम बावड़ी का निर्माण 1699 ई. में राव राजा अनिरुद्ध की रानी लाडकंवर नाथावती ने करवाया था। इस कलात्मक बावड़ी के तीन तौरणद्वार हैं। यह बावड़ी करीब 300 फीट लम्बी व 40 फीट चौड़ी है। यह एशिया की सर्वश्रेष्ठ बावड़ियों में से एक है। अलंकृत तोरण द्वारों की महराबे लगभग 30 मीटर ऊँची हैं। • अनारकली की बावड़ी :- छत्रपुरा क्षेत्र (बूँदी) में रानी नाथावती की दासी अनारकली द्वारा निर्मित बावड़ी। • काकीजी की बावड़ी :- इन्द्रगढ़ (बूँदी) में स्थित इस बावड़ी का निर्माण इन्द्रगढ़ के अधिपति सरदारसिंह की पत्नी महारानी आली ने करवाया था। • भावलदेवी बावड़ी :- बूँदी में स्थित इस भव्य बावड़ी का निर्माण भावलदेवी ने करवाया था। अंग्रेजी के ‘L’ अक्षर के आकार में निर्मित इस बावड़ी की लम्बाई 155 फीट एवं चौड़ाई 22 फीट 5 इंच है। बावड़ियों का शहर – बूँदी • नीमराणा की बावड़ी :- नीमराणा (अलवर) में इस 9 मंजिली बावड़ी का निर्माण • औस्तीजी की बावड़ी :- शाहबाद (बारां) में। • तपसी की बावड़ी :- शाहबाद (बारां) में। • बड़गाँव की बावड़ी :- बड़गाँव (अंता, बारां) में कोटा रियासत के तत्कालीन शासक • चमना बावड़ी :- • गुल्ला बावड़ी :- • नांदरघूस की बावड़ी :- बूँदी में। • धाबाई जी की बावड़ी :- नानकपुरिया (बूँदी) में। • नाग सागर कुण्ड :- बूँदी में बूँदी शासक • रंडी की बावड़ी :- बूँदी में। • कालाजी की बावड़ी, गुल्ला की बावड़ी, पठान की बावड़ी :- बूँदी में। • वीनौता की बावड़ी :- सादड़ी (चित्तौड़गढ़) में स्थित इस बावड़ी का निर्माण स्थानीय जागीरदार सूरजसिंह शक्तावत ने करवाया था। • राजाजी की बावड़ी :- बारां में। • सूर्यकुण्ड :- मानमोरी द्...

काका कालेलकर

अनुक्रम • 1 जीवन • 2 कार्यक्षेत्र • 3 साहित्य क्षेत्र में योगदान • 4 सम्मान • 5 सन्दर्भ • 6 बाहरी कडियाँ जीवन [ ] उनका जन्म 1 दिसम्बर 1885 को जिन नेताओं ने राष्ट्रभाषा प्रचार के कार्य में विशेष दिलचस्पी ली और अपना समय अधिकतर इसी काम को दिया, उनमें प्रमुख काकासाहब कालेलकर का नाम आता है। उन्होंने राष्ट्रभाषा के प्रचार को राष्ट्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत माना है। हमारा राष्ट्रभाषा प्रचार एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है। उन्होंने पहले स्वयं हिंदी सीखी और फिर कई वर्षतक दक्षिण में सम्मेलन की ओर से प्रचार-कार्य किया। अपनी सूझ-बूझ, विलक्षणता और व्यापक अध्ययन के कारण उनकी गणना प्रमुख अध्यापकों और व्यवस्थापकों में होने लगी। हिंदी-प्रचार के कार्य में जहाँ कहीं कोई दोष दिखाई देते अथवा किन्हीं कारणों से उसकी प्रगति रुक जाती, गांधी जी काका कालेलकर को जाँच के लिए वहीं भेजते। इस प्रकार के नाज़ुक काम काका कालेलकर ने सदा सफलता से किए। इसलिए ' काका कालेलकर जी का निधन 21 अगस्त 1981 में 96 साल की उम्र में हुआ। कार्यक्षेत्र [ ] आचार्य काका साहब कालेलकर जी का नाम काका कालेलकर उच्चकोटि के विचारक और विद्वान थे। उनका योगदान हिंदी-भाषा के प्रचार तक ही सीमित नहीं था। उनकी अपनी मौलिक रचनाओं से हिंदी साहित्य समृद्ध हुआ है। सरल और ओजस्वी भाषा में विचारपूर्ण निबंध और विभिन्न विषयों की तर्कपूर्ण व्याख्या उनकी लेखन-शैली के विशेष गुण हैं। मूलरूप से विचारक और साहित्यकार होने के कारण उनकी अभिव्यक्ति की अपनी शैली थी, जिसे वह हिंदी-गुजराती, काका साहब मँजे हुए लेखक थे। किसी भी सुंदर दृश्य का वर्णन अथवा पेचीदा समस्या का सुगम विश्लेषण उनके लिए आनंद का विषय रहे। उन्होंने देश, विदेशों का भ्रमण कर वहाँ के काका कालेलकर की लगभ...

रानी की बावड़ी, कोटा

रानी की बावड़ी Rani ki bawdi) • रानी की बावड़ी कोटा में बूंदी के पास स्थित एक प्राचीन बावड़ी है, जिसे "बूंदी की रानी जी की बावड़ी" के नाम से जाना जाता है। • इसका निर्माण राजपूतों के द्वारा किया गया था। • यह बावड़ी हड़ताली वास्तुकला का दावा प्रस्तुत करती हुई नजर आती है। • बावड़ी में एक मजबूत संकीर्ण प्रवेश द्वार है, जिसमें चार स्तंभ हैं जो ऊँची छत पर झुका हुआ है। • बूंदी की रानी की बावड़ी कोटा शहर की बहुत ही महत्वपूर्ण धरोहर स्मारक और पर्यटक स्थल है। • हर साल देश-विदेश के विभिन्न कोनों से पर्यटक इस प्राचीन स्थल का दौरा करते हैं। पन्ने की प्रगति अवस्था टीका टिप्पणी और संदर्भ

हरिहर काका: 10th CBSE Hindi संचयन भाग 2 Chapter 1

प्रश्न: कथावाचक और हरिहर काका के बीच क्या संबंध है और इसके क्या कारण हैं? उत्तर: हरिहर काका और कथावाचक (लेखक) दोनों के बीच में बड़े ही मधुर एवं आत्मीय संबंध थे, क्योंकि दोनों एक गाँव के निवासी थे। कथावाचक गाँव के चंद लोगों का ही सम्मान करता था और उनमें हरिहर काका एक थे। इसके निम्नलिखित कारण थे: • हरिहर काका कथावाचक के पड़ोसी थे। • कथावाचक की माँ के अनुसार हरिहर काका ने उसे बचपन में बहुत प्यार किया था। • कथावाचक के बड़े होने पर उसकी पहली दोस्ती हरिहर काका के साथ ही हुई थी। दोनों आपस में बहुत ही खुल कर बातें करते थे। प्रश्न: हरिहर काका को महंत और अपने भाई एक ही श्रेणी के क्यों लगने लगे? उत्तर: हरिहर काका एक निःसंतान व्यक्ति थे। उनके पास पंद्रह बीघे जमीन थी। हरिहर काका के भाइयों ने पहले तो उनकी खूब देखभाल की परंतु धीरे-धीरे उनकी पत्नियों ने काका के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया। महंत को जब यह पता चला तो वह बहला-फुसलाकर काका को ठाकुरबारी ले आए और उन्हें वहाँ रखकर उनकी खूब सेवा की। साथ ही उसने काका से उनकी पंद्रह बीघे जमीन ठाकुरबारी के नाम लिखवाने की बात की। काका ने जब ऐसा करने से मना किया तो महंत ने उन्हें मार-पीटकर जबरदस्ती कागज़ों पर अँगूठा लगवा दिया। इस बात पर दोनों पक्षों में जमकर झगड़ा हुआ। दोनों ही पक्ष स्वार्थी थे। वे हरिहर काका को सुख नहीं दुख देने पर उतारू थे। उनका हित नहीं अहित करने के पक्ष में थे। दोनों का लक्ष्य जमीन हथियाना था। इसके लिए दोनों ने ही काका के साथ छल व बल का प्रयोग किया। इसी कारण हरिहर काका को अपने भाई और महंत एक ही श्रेणी के लगने लगे। प्रश्न: ठाकुरबारी के प्रति गाँव वालों के मन में अपार श्रद्धा के जो भाव हैं उससे उनकी किस मनोवृत्ति का पता चलता है...

जच्चा की बावड़ी

अनुक्रम • 1 इतिहास • 2 बनावट व शिल्पकला • 3 विशेषता • 4 नरसिंह भगवान का मंदिर • 5 प्रहलाद कुण्ड इतिहास [ ] जच्चा की बावडी हिण्डौन का प्रसिद्घ दर्शनीय स्थल है। यह करसौली व खरैटा रोड़ पर प्रहलाद कुण्ड के समीप स्थित है। जनश्रुति के अनुसार इसका निर्माण लक्खी बनजारे कराया। इससे जुडी रोचक घटना तो यह है कि जब खुदाई में जल नहीं निकला तो किसी साधु ने कहा था कि यदि कौई गर्भवती स्त्री इसके अन्दर बच्चे को जन्म दे तो इसमें जल निकल सकता है। लोग कहते है जब एक बार इसका जल सूख गया और इसकी सफाई की गई तो इसके अन्दर बावड़ी के बीचों बीच एक पत्थर के तख्त पर बच्चे को आँचल पिलाती हुई लेटी महिला की प्रस्तर प्रतिमा देखी गई। इसी के नाम पर इसे जच्चा की बावड़ी नाम मिला। बनावट व शिल्पकला [ ] इसमें कोई दुविधा नहीं कि बावड़ी का निर्माण बड़े कलात्मक रूप से किया है। 200 फीट चौडी और 200 फीट लम्बी वर्गाकार बावड़ी में पानी तक पहुँचने के लिए जो सीढ़ियाँ बनाई गई है वे देखते ही बनती हैं। बावडी में ऊपर से नीचे तक पक्की सीढियाँ बनी हुई हैं, जिससे पानी का स्तर चाहे कितना ही हो, आसानी से भरा जा सकता है। यह बावडी 100 फ़ीट से भी ज्यादा गहरी है, जिसमें भूलभुलैया के रूप में 5000 सीढियाँ (अनुमानित)हैं। बावड़ी के चार कोनों में चार चबूतरे हैं। पता नहीं किस कारण बनाए गए थे और बीच में जच्चा कि लेटी प्रस्तर प्रतिमा है। बावड़ी के ऊपर कूऐं का ठाना है जिससे द्वारा जमीन की सिंचाई होती थी। इसके किनारे पर एक प्राचीन मकान है जो अब धाराशाही हो गया है। विशेषता [ ] इस बावड़ी के पानी की सबसे बडी विशेषता यह है कि कपडे धोने के लिए साबुन का प्रयोग नहीं किया जाता है। बिना साबुन के इसके जल में कपड़ा धोने पर बिल्कुल साफ हो जाते हैं। बावडी की ...