कन्याकुमारी तीर्थ नाम का आधार बताइए

  1. Kanyakumari Tourism
  2. पावन तीर्थ है कन्याकुमारी अंतरीप, यहां तीनों ओर सागरजल से घिरा है ये स्थान
  3. कन्याकुमारी शक्तिपीठ
  4. आखिर कया है कन्याकुमारी मंदिर का रहस्य, कैसे पड़ा इसका नाम कन्याकुमारी
  5. 150 'त' अक्षर से हिन्दू लड़कों के नाम अर्थ सहित
  6. भारतीकृष्ण तीर्थ


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Kanyakumari Tourism

7. कहा जाता है कि भगवान शिव ने असुर वाणासुर को वरदान दिया था कि कुंवारी कन्या के अलावा किसी के हाथों उसका वध नहीं होगा। प्राचीनकाल में भारत पर शासन करने वाले राजा भरत को 8 पुत्री और 1 पुत्र था। भरत ने अपने साम्राज्य को 9 बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी संतानों को दे दिया। दक्षिण का हिस्सा उनकी पुत्री कुमारी को मिला। कुमारी शिव की भक्त थीं और भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं। विवाह की तैयारियां होने लगीं लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि वाणासुर का कुमारी के हाथों वध हो जाए। इस कारण शिव और देवी कुमारी का विवाह नहीं हो पाया। कुमारी को शक्ति देवी का अवतार माना जाने लगा और वाणासुर के वध के बाद कुमारी की याद में ही दक्षिण भारत के इस स्थान को 'कन्याकुमारी' कहा जाने लगा। यह भी कहा जाता है कि शहर का नाम देवी कन्या कुमारी के नाम पर पड़ा है, जिन्हें भगवान कृष्ण की बहन माना गया है। 10. कन्याश्रम- सर्वाणी कन्याकुमारी : कन्याश्रम में माता का पृष्ठ भाग (पीठ) गिरा था। इसकी शक्ति है सर्वाणी और शिव को निमिष कहते हैं। कुछ विद्वान को मानना है कि यहां मां का उर्ध्वदंत गिरा था। कन्याश्रम को कालिकशराम या कन्याकुमारी शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है। यह शक्तिपीठ चारों ओर जल से घिरा हुआ है। ये एक छोटा सा टापू है जहां का दृश्य बहुत ही मनोरम है।

पावन तीर्थ है कन्याकुमारी अंतरीप, यहां तीनों ओर सागरजल से घिरा है ये स्थान

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कन्याकुमारी शक्तिपीठ

वर्णन 'कन्याकुमारी शक्तिपीठ' स्थान देवी-देवता शक्ति- शर्वाणि या नारायणी तथा भैरव निमिष या स्थाणु संबंधित लेख धार्मिक मान्यता कन्याकुमारी के मंदिर में ही भद्रकाली का मंदिर है। यह कुमारी देवी की सखी हैं। यह मंदिर ही शक्तिपीठ है, जहाँ देवी के देह का पृष्ठभाग अन्य नाम कन्यकाश्रम (कण्यकाचक्र), भद्रकाली मंदिर अन्य जानकारी देवी मंदिर के दक्षिण में मातृतीर्थ, पितृतीर्थ, भीमतीर्थ है। पश्चिम में थोड़ी दूर पर ही स्थाणु तीर्थ है। कन्यकाश्रम मंदिर समुद्रतट पर है। कन्याकुमारी शक्तिपीठ परिचय तीन सागरों ततस्तीरे समुद्रस्थ कन्यातीर्थमुपस्पृशेत्। तत्रो पस्पृश्य राजेंद्र सर्व पापैः प्रमुच्यते॥ अन्य तीर्थ देवी मंदिर के दक्षिण में मातृतीर्थ, पितृतीर्थ, भीमतीर्थ है। पश्चिम में थोड़ी दूर पर ही स्थाणु यातायात पन्ने की प्रगति अवस्था टीका टिप्पणी और संदर्भ

आखिर कया है कन्याकुमारी मंदिर का रहस्य, कैसे पड़ा इसका नाम कन्याकुमारी

कन्याकुमारी जो कि भारत के तमिलनाडु राज्य का ही एक शहर है और यह भारत की दक्षिणी अन्तिम सीमा है। इस शहर को यह नाम यहां पर स्थित कन्याकुमारी मंदिर के नाम पर है। कन्याकुमारी तीन सागरों के संगम का शहर है, पहली बंगाल की खाड़ी दूसरी अरब सागर और तीसरी हिन्द महासागर इन तीनों का संगम ही यहां का पवित्र स्थल है। आइये जानते है कि कैसे पड़ा इस मन्दिर का नाम कन्याकुमारी- पौराणिक कथाओं के अनुसार, कहते है कि एक बाणासुर नाम के राक्षस ने भगवान शिव की तपस्या की, जिसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसकी इच्छानुसार उसे अमरत्व का वरदान दिया और कहा कि तुम्हें कुमारी कन्या के अलावा कोई नहीं मार सकता। अमरत्व वरदान पाने के पश्चात् वाणासुर ने सभी जगहों पर उत्पात मचाना शुरू कर दिया, उसके इस उत्पात की वजह से सभी देवता परेशान होकर भगवान विष्णु की शरण में गये। तभी भगवान विष्णु ने उन सभी देवताओं को यज्ञ करने को कहा, "तभी देवताओं द्वारा किये गए यज्ञ की अग्नि से दुर्गा जी एक अंश से कन्या रूप में प्रकट हुई। कुमारी कन्या को देवी पार्वती का ही अवतार माना जाता है। कुमारी कन्या भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी, जिसके लिए उन्होंने दक्षिण समुद्री तट पर पूजा अर्चना और तपस्या की। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनका यह प्रस्ताव स्वीकार किया और विवाह की तैयारियां भी शुरू हो गयी। इस द्रश्य को देखकर सभी देवता चिन्तित हो गए और कहा कि यदि ऐसा हो गया, तो वाणासुर नाम के राक्षस का अन्त नहीं होगा। भगवान शिव को कुमारी कन्या से विवाह करने से रोकने के लिए देवर्षि नारद मुनि ने भगवान शिव को विवाह वाले स्थान पर जाने के लिए अधिक समय तक रोक रखा जिससं विवाह का शुभ मुहुर्त निकल जाये। इसीलिए कहा जाता है कि विवाह मुहुर...

150 'त' अक्षर से हिन्दू लड़कों के नाम अर्थ सहित

ऐसा कहा जाता है कि श्री गणेश के सभी नाम उनकी अनेकों विशेषताओं और अच्छे आचरण के अनुसार ही हैं। बुद्धि के देव श्री गणेश को विनायक, विघ्नहर्ता, बुद्धिनाथ, धूम्रवर्ण, एकाक्षर और इत्यादि बहुत सारे नाम दिए गए हैं और यह सभी नाम उनके व्यक्तित्व को भी दर्शाते हैं। जाहिर है आपने भी अपने नन्हे गणपति के लिए कुछ ऐसे ही नामों की खोज शुरू कर दी होगी जो आगे चलकर उसके व्यक्तित्व और आचरण को दर्शाएगा। परंतु नाम रखने से पहले आपको इसके कई पहलुओं पर विचार करने की आवश्यकता है कि आपके चैंप का नाम कैसा होना चाहिए। हिन्दू धर्म में अक्सर पेरेंट्स अपने बच्चे का नाम राशि और परंपराओं के अनुसार किसी विशेष अक्षर से रखते हैं। यदि आप भी बच्चे का नाम राशि के अनुसार किसी विशेष अक्षर से रखना चाहते हैं तो ध्यान रखें कि उसका नाम छोटा, सरल, परंपराओं में लिप्त एक अच्छे अर्थ के साथ होना चाहिए। यदि आप अपने बेटे के लिए राशि के अनुसार किसी विशेष अक्षर से एक प्रभावशाली, अच्छे अर्थ वाला, यूनिक और बेहतरीन नाम खोज रही हैं तो फर्स्टक्राई पेरेंटिंग हिंदी साइट में बहुत सारे ऐसे आर्टिकल्स हैं जिनमें आपकी पसंद को ध्यान में रखते हुए कई बेहतरीन नाम दिए हुए हैं। उन्हीं आर्टिकल्स में से एक यह भी है जिसमें लड़कों के लिए विशेष ‘त’ अक्षर से प्रभावशाली और बेहतरीन हिन्दू नाम की लिस्ट अर्थ सहित दी गई है, जानने के लिए आगे पढ़ें। ‘त’ से शुरू होने वाले हिन्दू लड़कों के नाम ‘त’ अक्षर से नाम मिलना थोड़ा कठिन है और यदि आप यूनिक व अच्छे से अच्छा नाम चुनना चाहती हैं तो इसके लिए आपको मेहनत करनी पड़ सकती है। पर अब आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है, यदि आप अपने बेटे के लिए राशि के अनुसार ‘त’ अक्षर से एक नया, पारंपरिक व अच्छे अर्थ के साथ प्रभावशाली नाम ...

भारतीकृष्ण तीर्थ

भारती कृष्ण तीर्थ जी महाराज भारती कृष्णतीर्थ जी महाराज (14 मार्च 1884 - 2 फ़रवरी 1960) परिचय [ ] 14 मार्च 1884 को जिन दिनों वे सन्‌ 1921 में उन्हें शंकराचार्य पद पर अभिषिक्त किया गया। उसी वर्ष उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस महासमिति की कार्यकारिणी का सदस्य मनोनीत किया गया। स्वामीजी ने राजधर्म और प्रजाधर्म विषय पर एक भाषण दिया जिसे सरकार ने राजद्रोह के लिए भड़काने का अपराध बताकर उन्हें गिरफ्तार कर कराची की जेल में बंद कर दिया। बाद में स्वामीजी कांग्रेस के चर्चित अली बंधुओं के साथ बिहार की जेल में भी रहे। कारागार के एकांतवास में ही स्वामीजी ने अथर्ववेद के सोलह सूत्रों के आधार पर गणित की अनेक प्रवृत्तियों का समाधान एवं अनुसंधान किया। वे बीजगणित, त्रिकोणमिति आदि गणितशास्त्र की जटिल उपपत्तियों का समाधान वेद में ढूढ़ने में सफल रहे। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने अनेक विश्ववविद्यालयों में गणित पर व्याख्यान दिए। कुछ ही दिनों में देश-विदेश में उनकी खोज की चर्चा होने लगी। स्वामीजी ने अंगरेजी में लगभग पांच हजार पृष्ठों का एक वृहद ग्रंथ ‘वंडर्स ऑफ वैदिक मैथेमेटिक्स’ लिखा। स्वामीजी के इस ग्रंथ का वैदिक गणित के नाम से हिंदी अनुवाद किया गया। स्वामी जी ने वैदिक गणित के अलावा ब्रह्मासूत्र भाष्यम, धर्म विधान तथा अन्य अनेक ग्रंथों का भी सृजन किया। ब्रह्मासूत्र के तीन खंडों का प्रकाशन कलकत्ता विश्वविद्यालय ने किया। सन्‌ 1953 में उन्होंने विश्वपुनर्निर्माण संघ की स्थापना की। उनका मत था कि आध्यात्मिक मूल्यों के माध्यम से ही विश्वशांति स्थापित की जा सकती है। स्वामी भारती कृष्णतीर्थ आ शंकराचार्य जी द्वारा स्थापित मठों के शंकराचार्य की शृंखला में एक ऐसे अनूठे धर्माचार्य थे। जिनके व्यक्तित्व में बहु...