मातृभूमि कविता हिंदी भावार्थ

  1. मातृभूमि
  2. मातृभूमि ~ मैथिलीशरण गुप्त
  3. आज का शब्द
  4. Padyaansh ka Bhaavaarth निम्नलिखित पद्यांश का भावार्थ लिखिए Madhyama
  5. हिंदी मंच


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मातृभूमि

सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है॥ नदियाँ प्रेम प्रवाह, फूल तारे मंडन हैं। बंदीजन खग-वृन्द, शेषफन सिंहासन है॥ करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस वेष की। हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की॥ जिसके रज में लोट-लोट कर बड़े हुये हैं। घुटनों के बल सरक-सरक कर खड़े हुये हैं॥ परमहंस सम बाल्यकाल में सब सुख पाये। जिसके कारण धूल भरे हीरे कहलाये॥ हम खेले-कूदे हर्षयुत, जिसकी प्यारी गोद में। हे मातृभूमि! तुझको निरख, मग्न क्यों न हों मोद में? पा कर तुझसे सभी सुखों को हमने भोगा। तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा? तेरी ही यह देह, तुझी से बनी हुई है। बस तेरे ही सुरस-सार से सनी हुई है॥ फिर अन्त समय तू ही इसे अचल देख अपनायेगी। हे मातृभूमि! यह अन्त में तुझमें ही मिल जायेगी॥ निर्मल तेरा नीर अमृत के से उत्तम है। शीतल मंद सुगंध पवन हर लेता श्रम है॥ षट्ऋतुओं का विविध दृश्ययुत अद्भुत क्रम है। हरियाली का फर्श नहीं मखमल से कम है॥ शुचि-सुधा सींचता रात में, तुझ पर चन्द्रप्रकाश है। हे मातृभूमि! दिन में तरणि, करता तम का नाश है॥ सुरभित, सुन्दर, सुखद, सुमन तुझ पर खिलते हैं। भाँति-भाँति के सरस, सुधोपम फल मिलते है॥ औषधियाँ हैं प्राप्त एक से एक निराली। खानें शोभित कहीं धातु वर रत्नों वाली॥ जो आवश्यक होते हमें, मिलते सभी पदार्थ हैं। हे मातृभूमि! वसुधा, धरा, तेरे नाम यथार्थ हैं॥ क्षमामयी, तू दयामयी है, क्षेममयी है। सुधामयी, वात्सल्यमयी, तू प्रेममयी है॥ विभवशालिनी, विश्वपालिनी, दुःखहर्त्री है। भय निवारिणी, शान्तिकारिणी, सुखकर्त्री है॥ हे शरणदायिनी देवि, तू करती सब का त्राण है। हे मातृभूमि! सन्तान हम, तू जननी, तू प्राण है॥ जिस पृथ्वी में मिले हमारे पूर्वज प्यारे। उससे हे भगवान! कभी हम रहें न न्या...

मातृभूमि ~ मैथिलीशरण गुप्त

साहित्य जगत में 'दद्दा नाम से प्रसिध्द राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म झांसी के चिरगांव ग्राम में हुआ। इनकी शिक्षा घर पर ही हुई। ये भारतीय संस्कृति एवं वैष्णव परंपरा के प्रतिनिधि कवि हैं, जिन्होंने पचास वर्षों तक निरंतर काव्य सर्जना की। लगभग 40 ग्रंथ रचे तथा खडी बोली को सरल, प्रवाहमय और सशक्त बनाया। इनकी मुख्य काव्य-कृतियां हैं- 'भारत-भारती, 'साकेत, 'यशोधरा, 'कुणाल-गीत, 'जयद्रथ-वध, 'द्वापर, 'पंचवटी तथा 'जय भारत। 'साकेत पर इन्हें 'मंगला प्रसाद पारितोषिक मिला था। ये 'पद्म-भूषण के अलंकरण से सम्मानित हुए। 1952 से 1964 तक ये राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे। मैथिलीशरण गुप्त की अविस्मरणीय कविताएँ हम समय-समय परप्रकाशित करते रहेंगे। आईये पढ़ें उनकी देशभक्ति रस की अद्भुत कविता मातृभूमि :

आज का शब्द

अपने विचारों, भावनाओं और संवेदनाओं को व्यक्त करने का सबसे सशक्त माध्यम मातृभाषा है। इसी के जरिये हम अपनी बात को सहजता और सुगमता से दूसरों तक पहुंचा पाते हैं। हिंदी की लोकप्रियता और पाठकों से उसके दिली रिश्तों को देखते हुए उसके प्रचार-प्रसार के लिए अमर उजाला ने ‘हिंदी हैं हम’अभियान की शुरुआत की है। इस कड़ी में साहित्यकारों के लेखकीय अवदानों को अमर उजाला और अमर उजाला काव्य हिंदी हैं हम श्रृंखला के तहत पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा है। हिंदी हैं हम शब्द श्रृंखला में आज का शब्द है- नीलांबर, जिसका अर्थ है-1. नीला कपड़ा या वस्त्र 2. शनैश्चर; शनि ग्रह 3. बलदेव, जिसका वस्त्र नीला हो। प्रस्तुत है मैथिलीशरण गुप्त की कविता: मातृभूमि.... जिसके रज में लोट-लोट कर बड़े हुए हैं घुटनों के बल सरक-सरक कर खड़े हुए हैं॥ परमहंस सम बाल्यकाल में सब सुख पाये जिसके कारण धूल भरे हीरे कहलाये॥ हम खेले-कूदे हर्षयुत, जिसकी प्यारी गोद में हे मातृभूमि ! तुझको निरख, मग्न क्यों न हों मोद में? पा कर तुझसे सभी सुखों को हमने भोगा तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा?

Padyaansh ka Bhaavaarth निम्नलिखित पद्यांश का भावार्थ लिखिए Madhyama

Padyaansh ka Bhaavaarth hindi mein likhie निम्नलिखित पद्यांश का भावार्थ हिन्दी में लिखिए Explain the following phrase in Hindi I have shared Padyaansh ka Bhaavaarth hindi mein likhie / निम्नलिखित पद्यांश का भावार्थ हिन्दी में लिखिए in Hindi and English for Madhyama Paper – 1. 1. पुष्प की अभिलाषा (Pushp ki abhilasha) मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक । संदर्भ :- यह पद्यांश ‘पुष्प की अभिलाषा’ नामक कविता से लिया गया है । इस कविता के कवि हैं श्री माखनलाल चतुर्वेदी । भावार्थ :- फूल माली से कहता है कि उसे तोड़कर उस रास्ते में फेंक देना , जहाँ महान शूरवीरों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व त्याग दिया । आगे अपनी इच्छा प्रकट करते हुए फूल कहता है कि वह उन शूरवीरों के पाँवों में पड़कर अपने आपको गर्वीला महसूस करता है । Context :- This passage is taken from a poem called ‘Desire of flowers’. The poet of this poem is Shri Makhanlal Chaturvedi. Meaning :- The flower tells the gardener to break it and throw it in the way, where the great knights gave up everything to protect the motherland. Further expressing his desire, Flower says that he feels proud by falling into the feet of those knights. 2a. एक बूँद (ek boond) देव मेरे भाग्य में क्या है बदा, मैं बचूँगी या मिलूँगी धूल में ? या जलूँगी फिर अंगारे पर किसी चू पडूँगी या कमल के फूल में ? संदर्भ :- यह पद्यांश ‘ एक बूँद’ नामक कविता से लिया गया है । इस कविता के कवि हैं श्री अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘ हरिऔध ‘| भावार्थ :- बादलों की गोदी में से निकलकर एक बूंद ने भगवान से पूछा कि उसके भ...

हिंदी मंच

मातृभूमि कविता- सहायक सामग्री മാതൃഭൂമി ............... പ്രകൃതിയുടെ പച്ചപ്പിൽ നീലാകാശപ്പുടവയുടുത്ത നീ എത്ര മനോഹരിയാണ് ! കിരീടമായ് സൂര്യ - ചന്ദ്രൻ മാരും - അരഞ്ഞാണമായ് അലസമായൊഴുകുന്ന സമുദ്രവും നിൻ്റെ അഴകായ് തിളങ്ങുന്നു ! ദേശവാസികളോടുള്ള പ്രമ പ്രവാഹം പോലെ നിൻ്റെ മാറിലൂടെ നദികൾ ഒഴുകിക്കൊണ്ടിരിക്കുന്നു. പൂക്കളും നക്ഷത്രങ്ങളും ആഭരണമായ് പരിലസിയ്ക്കുന്നു. ! വിഹഗ വൃന്ദങ്ങളുടെ കളകളാരവം സ്തുതിഗീതങ്ങളായ് മുഴങ്ങുന്നു ! അനന്ത നാഗത്തിൻ്റെ ഫണമാണ് നിൻ്റെ ഇരിപ്പിടം... മേഘങ്ങൾ പെയ്തിറങ്ങാൻ കൊതിയ്ക്കുന്ന അനുപമ സൗന്ദര്യമേ ! സമർപ്പിയ്ക്കട്ടെ നിൻ മുൻപിൽ ഞാൻ എന്നെത്തന്നെ ! ഭാരത മാതാവേ ! നീ സർവ്വേശ്വരൻ്റെ സർവ്വ ഗുണസമ്പന്നമായ സൃഷ്ടിയല്ലൊ ,.. ഈ മണ്ണിലിഴഞ്ഞ് ഞാൻ വളർന്നു... മുട്ടിലിഴഞ്ഞ് നിൽക്കാൻ പഠിച്ചു... അനശ്വരമായ പരമാനന്ദത്തെ ബാല്യത്തിൽ തന്നെ കൈവരിച്ച ശ്രേഷ്ഠ മുനി ശ്രീരാമകൃഷ്ണനെപ്പോലെ എത്രയോ സാത്വിക ജൻമങ്ങളാൽ പവിത്രമാണീ മണ്ണ് ! നിൻ്റെ മടിത്തട്ടിലെ വാത്സല്യമുണ്ടാണ് ഞങ്ങൾ കളിച്ചു വളർന്നത്.' ഹേ ഭാരതാംബെ ! നിന്നെ കാണുമ്പോൾ എങ്ങനെ ആത്മനിർവൃതിയില്ലാതിരിക്കും ! നീ തന്ന സന്തോഷങ്ങൾക്കു പകരം വെയ്ക്കാൻ എന്നിലെന്തുണ്ട് ! അന്നവും ജലവും നിറഞ്ഞ ഈ ദേഹം നിൻ്റെതു തന്നെ ! നിശ്ചലമാകുമ്പോൾ നിന്നിലേയ്ക്കു മടങ്ങുന്നവ ർ ! ജഡമായ് തീരുമ്പോൾ നിന്നിലലിഞ്ഞു ചേരുന്നതല്ലോ ഈ ദേഹം ! പരിഭാഷ. ഡോ. സംഗീത പൊതുവാൾ മാതൃഭൂമി ( മൊഴിമാറ്റം ) ഹരിത തടങ്ങളിൽ ശോഭിപ്പൂ നീലവസ്ത്രം സൂര്യ ചന്ദ്ര കിരീടവും , സമുദ്രമാം അരഞ്ഞാണവും സ്നേഹ പ്രവാഹമായ്‌ നദികളും , പുഷ്പ നക്ഷത്ര മോടിയും , സ്തുതി പാഠകരാം പക്ഷിവൃന്ദവും , ശേഷഫണമാം സിംഹാസനവും മേഘമാല തൻ അഭിഷേകവും , ഹാ ! ബലിയർപ്പിതമീ രൂപത്തിൻമുന്നിൽ ഹേ ! മാതൃഭൂമി , നീ സർവേശ്വരൻ തൻ സഗുണമൂർത്തി സത്യമിതുതാൻ നിൻ പൊടിപട...