महाराणा प्रताप के घोड़े का रंग कैसा था

  1. महाराणा प्रताप पर कविता
  2. चेतक की वीरता का अर्थ
  3. चेतक, महाराणा प्रताप के घोड़े की कहानी क्यों इतिहास इतना में प्रसिद्ध है
  4. महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का इतिहास
  5. Maharana Pratap Biography In Hindi
  6. चेतक, महाराणा प्रताप के घोड़े की कहानी क्यों इतिहास इतना में प्रसिद्ध है
  7. महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का इतिहास
  8. महाराणा प्रताप पर कविता
  9. Maharana Pratap Biography In Hindi
  10. चेतक की वीरता का अर्थ


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महाराणा प्रताप पर कविता

Sep 2, 2022 1. Maharana Pratap Poem in Hindi – राणा सांगा का ये वंशज राणा सांगा का ये वंशज, रखता था रजपूती शान। कर स्वतंत्रता का उद्घोष, वह भारत का था अभिमान। मानसींग ने हमला करके, राणा जंगल दियो पठाय। सारे संकट क्षण में आ गए, घास की रोटी दे खवाय। हल्दी घाटी रक्त से सन गई, अरिदल मच गई चीख-पुकार। हुआ युद्ध घनघोर अरावली, प्रताप ने भरी हुंकार। शत्रु समूह ने घेर लिया था, डट गया सिंह-सा कर गर्जन। सर्प-सा लहराता प्रताप, चल पड़ा शत्रु का कर मर्दन। मान सींग को राणा ढूंढे, चेतक पर बन के असवार। हाथी के सिर पर दो टापें, रख चेतक भरकर हुंकार। रण में हाहाकार मचो तब, राणा की निकली तलवार मौत बरस रही रणभूमि में, राणा जले हृदय अंगार। आंखन बाण लगो राणा के, रण में न कछु रहो दिखाय। स्वामिभक्त चेतक ले उड़ गयो, राणा के लय प्राण बचाय। मुकुट लगाकर राणाजी को, मन्नाजी दय प्राण गंवाय। प्राण त्यागकर घायल चेतक, सीधो स्वर्ग सिधारो जाय। सौ मूड़ को अकबर हो गयो, जीत न सको बनाफर राय। स्वाभिमान कभी नहीं छूटे, चाहे तन से प्राण गंवाय। 2. Maharana Pratap ki Kavita – गाथा फैली घर-घर है गाथा फैली घर-घर है, आजादी की राह चले तुम, सुख से मुख को मोड़ चले तुम, ‘नहीं रहूं परतंत्र किसी का’, तेरा घोष अति प्रखर है, राणा तेरा नाम अमर है। भूखा-प्यासा वन-वन भटका, खूब सहा विपदा का झटका, नहीं कहीं फिर भी जो अटका, एकलिंग का भक्त प्रखर है, भारत राजा, शासक, सेवक, अकबर ने छीना सबका हक, रही कलेजे सबके धक्-धक् पर तू सच्चा शेर निडर है, राणा तेरा नाम अमर है। मानसिंह चढ़कर के आया, हल्दी घाटी जंग मचाया, तेरा चेतक पार ले गया, पीछे छूट गया लश्कर है, राणा तेरा नाम अमर है। वीरों का उत्साह बढ़ाए, कवि जन-मन के गीत सुनाएं, नित स्वतंत्रता दीप जलाए...

चेतक की वीरता का अर्थ

चेतक महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम था। हल्दी घाटी-(1937 - 1939 ई0) के युद्ध में चेतक ने अपनी स्वामिभक्ति एवं वीरता का परिचय दिया था। अन्ततः वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित प्रसिद्ध महाकाव्य हल्दीघाटी में चेतक के पराक्रम एवं उसकी स्वामिभक्ति की कथा वर्णित हुई है। आज भी चित्तौड़ में चेतक की समाधि बनी हुई है। इतिहास से मेवाड़ के उष्ण रक्त ने श्रावण संवत 1633 विक्रमी में हल्दीघाटी का कण-कण लाल कर दिया। अपार शत्रु सेना के सम्मुख थोड़े-से राजपूत और भील सैनिक कब तक टिकते? महाराणा को पीछे हटना पड़ा और उनका प्रिय अश्व चेतक, जिसने उन्हें निरापद पहुँचाने में इतना श्रम किया कि अन्त में वह सदा के लिये अपने स्वामी के चरणों में गिर पड़ा। हल्दीघाटी के प्रवेश द्वार पर अपने चुने हुए सैनिकों के साथ प्रताप शत्रु की प्रतीक्षा करने लगे। दोनों ओर की सेनाओं का सामना होते ही भीषण रूप से युद्ध शुरू हो गया और दोनों तरफ़ के शूरवीर योद्धा घायल होकर ज़मीन पर गिरने लगे। प्रताप अपने घोड़े पर सवार होकर द्रुतगति से शत्रु की सेना के भीतर पहुँच गये और राजपूतों के शत्रु मानसिंह को खोजने लगे। वह तो नहीं मिला, परन्तु प्रताप उस जगह पर पहुँच गये, जहाँ पर सलीम (जहाँगीर) अपने हाथी पर बैठा हुआ था। प्रताप की तलवार से सलीम के कई अंगरक्षक मारे गए और यदि प्रताप के भाले और सलीम के बीच में लोहे की मोटी चादर वाला हौदा नहीं होता तो अकबर अपने उत्तराधिकारी से हाथ धो बैठता। प्रताप के घोड़े चेतक ने अपने स्वामी की इच्छा को भाँपकर पूरा प्रयास किया और तमाम ऐतिहासिक चित्रों में सलीम के हाथी के सूँड़ पर चेतक का एक उठा हुआ पैर और प्रताप के भाले द्वारा महावत का छाती का छलनी होना अंकित किया गया है। महावत के ...

चेतक, महाराणा प्रताप के घोड़े की कहानी क्यों इतिहास इतना में प्रसिद्ध है

चेतक कौन था चेतक महाराणा प्रताप के वफादार घोड़ा का नाम था। इस लेख मे महाराणा प्रताप के घोड़े की कहानी जानेंगे, जिन्होंने हल्दीघाटी के लड़ाई में अपना बलिदान देकर अपने महाराणा प्रातप की जान बचाई थी। उनकी स्वामिभक्ति और बलिदान को देखते हुए उसे दुनिया का सर्वश्रेष्ठ घोड़ा माना गया। अपने मालिक महाराणा प्रताप के साथ स्वामिभक्ति के कारण भारत के इतिहास में वह अमर हो गया। महाराणा प्रातप का घोड़ा चेतक करीब चार साल से उनके साथ रहा। अकबर और महारणा प्रताप के बीच लड़ी गई हल्दीघाटी के लड़ाई में चेतक ने 26 फिट नाले को फांदकर महाराणा प्रातप की जान बचाई और खुद शहीद हो गया। चेतक, महाराणा प्रताप के घोड़े की कहानी महाराणा प्रताप के घोड़े की कहानी– Maharana Pratap Horse story कुछ इतिहासकारों का मानना है पहले भारत के राजा अपने हथियार और हाथियों पर सवार होकर युद्ध में भाग लेती थी। लेकिन जब उन्हें पता चला की उनका प्रतिरोध विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले घोड़ों की तुलना में सुस्त है। तब उन्हें युद्ध में घोड़े की क्षमता का पता चला और उन्होंने अच्छी से अच्छी नस्ल के घोड़े को अपने सैन्य अभियान में शामिल करने लगे। इस भारतीय शासकों को युद्ध में काफी फायदा हुआ। इस प्रकार सदियों से घोड़ों और महाराजाओं का अटूट संबंध स्थापित हो गया। महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की कहानी – Maharana Pratap ke Ghode Chetak ki kahani चेतक महाराणा प्रताप सिंह का सबसे वफादार और प्रिय घोड़ा था। चेतक एक नीलवर्ण का ईरानी नस्ल का घोडा था। इस महाराणा प्रताप ने गुजरात के व्यपारी से खरीदा था। असल में महाराणा प्रताप ने गुजरात के चारण व्यापारी से तीन घोड़े खरीदे थे। इसमें एक का नाम चेतक, दूसरे का त्राटक और तीसरे का अटक रखा...

महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का इतिहास

राजपूताने का इतिहास इतना गौरवशाली , वीरता तथा पराक्रम से सुसज्जित है कि इस मिट्टी के कण कण में वीर योद्धाओं की रण कथाओं का वर्णन मिलता है आज के लेख में हम मेवाड़ के महाराणा प्रताप के घोड़े से जुड़े इतिहास को जानेंगे और हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक की निर्णायक भूमिका का उल्लेख भी करेंगे इतिहास हमेशा वीर योद्धाओं का लिखा जाता है परंतु इतिहास में चेतक जो इतिहास में राजा महाराजा अपने सवारी तथा एक स्थान से दूसरे स्थान युद्ध करने या अन्य किसी भी गतिविधि में भाग लेने जाने के लिए अश्व , हाथी आदि का प्रयोग करते थे जब मेवाड़ में महाराणा प्रताप का शासन था तब एक गुजराती व्यापारी घोड़ों का व्यापार करने के लिए मेवाड़ रियासत में आया था उस व्यापारी के पास अफगान नस्ल तथा काठियावाड़ी नस्ल के उच्चतम घोड़े थे गुजराती व्यापारी ने अपने तीन घोड़े के बारे में बताया कि यह किसी भी युद्ध परिस्थिति में युद्ध कर सकते है तथा अपने स्वामी के आदेशों को भली-भांति समझते भी है गुजराती व्यापारी ने तीन घोड़े जिनके नाम चेतक , त्राटक और अटक था को दुर्ग में लेकर गया और महाराणा प्रताप के समक्ष उपस्थित हुआ मेवाड़ में महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक हो चुका था और वे मेवाड़ के महाराणा का पदभार संभाल रहे थे महाराणा प्रताप के राज्य अभिषेक के कुछ वर्षों बाद जब एक सैनिक ने महाराणा प्रताप तक खबर पहुंचाई की एक घोड़ों का व्यापारी आया है जो अपने घोड़ों को उच्च नस्ल तथा युद्ध की विभिन्न रणनीतियों से पारंगत बता रहा है महाराणा प्रताप आदेश देते हैं कि उस घोड़ों के व्यापारी को दुर्ग में लेकर आए दुर्ग में प्रवेश करने के बाद गुजराती व्यापारी अपने तीन 3 अश्व चेतक , त्राटक और अटक के बारे में बताता है और अटक को परीक्षण के लिए के लिए चुना...

Maharana Pratap Biography In Hindi

Maharana Pratap Biography In Hindi- जन्म, माता पिता, पति, मेवाड़ के राजा, घोडा चेतक, राज्याभिषेक, हल्दीघाटी का युद्ध, वजन, महाराणा प्रताप की तलवार, और मृत्यु तथा उनसे जुड़े कुछ रोचक बाते। Maharana Pratap biography In Hindi दोस्तों आज हम बात करने वाले हैं, एक ऐसे महान राजा जो अपने ताकतवर शरीर के साथ-साथ एक महान योद्धा के रूप में भी जाने जाते थे। इन्होंने ना बल्कि राजपूतों का गौरव बढ़ाया बल्कि इन्होंने कई बार मुगलों को युद्ध में हराकर अपनी वीरता का परिचय दिया। जी हां हम बात कर रहे हैं, मुगल साम्राज्य को ध्वस्त करने वाले मेवाड़ के महाराणा प्रताप सिंह के बारे में। इस लेख में आपको महाराणा प्रताप से जुड़ी सभी जानकारी मिलेगी, कृपया इस लेख से आप अंत तक जुड़े रहिए। महाराणा प्रताप का पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया था। यह उदयपुर मेवाड़ में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे, जिनका जन्म 9 मई 1940 को राजस्थान के कुम्भलगढ़ में हुआ था। यह एकमात्र ऐसे राजा थे, जिनके सामने अकबर के साथ-साथ पूरा मुगल साम्राज्य कांपता था। उन्होंने अपने जीवन काल में कई बार मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया और कई मुगल राजाओं को युद्ध में हराकर अपना शौर्य और वीरता का परिचय दिया। महाराणा प्रताप का जीवन परिचय नाम प्रताप सिंह प्रसिद्ध नाम महाराणा प्रताप जन्मतिथि 9 मई 1540 जन्मस्थान राजस्थान के कुम्भलगढ़ उम्र 56 वर्ष राजा मेवाड़ के राजा पौत्र राणा सांगा माता पिता उदय सिंह/ जैवंता बाई पत्नी महारानी अजबदेके अलावा 9 रानियाँ बच्चे 17 बच्चे, जिनमे अमर सिंह, भगवान दास शामिल है. वजन 80 किग्रा लम्बाई 7 फीट 5 इंच मृत्यु 19 जनवरी 1597 मृत्यु स्थान चावंड, राजस्थान भाई-बहन 3 भाई (विक्रम सिंह, शक्ति सिंह, जगमाल सिंह), 2 बहने...

चेतक, महाराणा प्रताप के घोड़े की कहानी क्यों इतिहास इतना में प्रसिद्ध है

चेतक कौन था चेतक महाराणा प्रताप के वफादार घोड़ा का नाम था। इस लेख मे महाराणा प्रताप के घोड़े की कहानी जानेंगे, जिन्होंने हल्दीघाटी के लड़ाई में अपना बलिदान देकर अपने महाराणा प्रातप की जान बचाई थी। उनकी स्वामिभक्ति और बलिदान को देखते हुए उसे दुनिया का सर्वश्रेष्ठ घोड़ा माना गया। अपने मालिक महाराणा प्रताप के साथ स्वामिभक्ति के कारण भारत के इतिहास में वह अमर हो गया। महाराणा प्रातप का घोड़ा चेतक करीब चार साल से उनके साथ रहा। अकबर और महारणा प्रताप के बीच लड़ी गई हल्दीघाटी के लड़ाई में चेतक ने 26 फिट नाले को फांदकर महाराणा प्रातप की जान बचाई और खुद शहीद हो गया। चेतक, महाराणा प्रताप के घोड़े की कहानी महाराणा प्रताप के घोड़े की कहानी– Maharana Pratap Horse story कुछ इतिहासकारों का मानना है पहले भारत के राजा अपने हथियार और हाथियों पर सवार होकर युद्ध में भाग लेती थी। लेकिन जब उन्हें पता चला की उनका प्रतिरोध विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले घोड़ों की तुलना में सुस्त है। तब उन्हें युद्ध में घोड़े की क्षमता का पता चला और उन्होंने अच्छी से अच्छी नस्ल के घोड़े को अपने सैन्य अभियान में शामिल करने लगे। इस भारतीय शासकों को युद्ध में काफी फायदा हुआ। इस प्रकार सदियों से घोड़ों और महाराजाओं का अटूट संबंध स्थापित हो गया। महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की कहानी – Maharana Pratap ke Ghode Chetak ki kahani चेतक महाराणा प्रताप सिंह का सबसे वफादार और प्रिय घोड़ा था। चेतक एक नीलवर्ण का ईरानी नस्ल का घोडा था। इस महाराणा प्रताप ने गुजरात के व्यपारी से खरीदा था। असल में महाराणा प्रताप ने गुजरात के चारण व्यापारी से तीन घोड़े खरीदे थे। इसमें एक का नाम चेतक, दूसरे का त्राटक और तीसरे का अटक रखा...

महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का इतिहास

राजपूताने का इतिहास इतना गौरवशाली , वीरता तथा पराक्रम से सुसज्जित है कि इस मिट्टी के कण कण में वीर योद्धाओं की रण कथाओं का वर्णन मिलता है आज के लेख में हम मेवाड़ के महाराणा प्रताप के घोड़े से जुड़े इतिहास को जानेंगे और हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक की निर्णायक भूमिका का उल्लेख भी करेंगे इतिहास हमेशा वीर योद्धाओं का लिखा जाता है परंतु इतिहास में चेतक जो इतिहास में राजा महाराजा अपने सवारी तथा एक स्थान से दूसरे स्थान युद्ध करने या अन्य किसी भी गतिविधि में भाग लेने जाने के लिए अश्व , हाथी आदि का प्रयोग करते थे जब मेवाड़ में महाराणा प्रताप का शासन था तब एक गुजराती व्यापारी घोड़ों का व्यापार करने के लिए मेवाड़ रियासत में आया था उस व्यापारी के पास अफगान नस्ल तथा काठियावाड़ी नस्ल के उच्चतम घोड़े थे गुजराती व्यापारी ने अपने तीन घोड़े के बारे में बताया कि यह किसी भी युद्ध परिस्थिति में युद्ध कर सकते है तथा अपने स्वामी के आदेशों को भली-भांति समझते भी है गुजराती व्यापारी ने तीन घोड़े जिनके नाम चेतक , त्राटक और अटक था को दुर्ग में लेकर गया और महाराणा प्रताप के समक्ष उपस्थित हुआ मेवाड़ में महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक हो चुका था और वे मेवाड़ के महाराणा का पदभार संभाल रहे थे महाराणा प्रताप के राज्य अभिषेक के कुछ वर्षों बाद जब एक सैनिक ने महाराणा प्रताप तक खबर पहुंचाई की एक घोड़ों का व्यापारी आया है जो अपने घोड़ों को उच्च नस्ल तथा युद्ध की विभिन्न रणनीतियों से पारंगत बता रहा है महाराणा प्रताप आदेश देते हैं कि उस घोड़ों के व्यापारी को दुर्ग में लेकर आए दुर्ग में प्रवेश करने के बाद गुजराती व्यापारी अपने तीन 3 अश्व चेतक , त्राटक और अटक के बारे में बताता है और अटक को परीक्षण के लिए के लिए चुना...

महाराणा प्रताप पर कविता

Sep 2, 2022 1. Maharana Pratap Poem in Hindi – राणा सांगा का ये वंशज राणा सांगा का ये वंशज, रखता था रजपूती शान। कर स्वतंत्रता का उद्घोष, वह भारत का था अभिमान। मानसींग ने हमला करके, राणा जंगल दियो पठाय। सारे संकट क्षण में आ गए, घास की रोटी दे खवाय। हल्दी घाटी रक्त से सन गई, अरिदल मच गई चीख-पुकार। हुआ युद्ध घनघोर अरावली, प्रताप ने भरी हुंकार। शत्रु समूह ने घेर लिया था, डट गया सिंह-सा कर गर्जन। सर्प-सा लहराता प्रताप, चल पड़ा शत्रु का कर मर्दन। मान सींग को राणा ढूंढे, चेतक पर बन के असवार। हाथी के सिर पर दो टापें, रख चेतक भरकर हुंकार। रण में हाहाकार मचो तब, राणा की निकली तलवार मौत बरस रही रणभूमि में, राणा जले हृदय अंगार। आंखन बाण लगो राणा के, रण में न कछु रहो दिखाय। स्वामिभक्त चेतक ले उड़ गयो, राणा के लय प्राण बचाय। मुकुट लगाकर राणाजी को, मन्नाजी दय प्राण गंवाय। प्राण त्यागकर घायल चेतक, सीधो स्वर्ग सिधारो जाय। सौ मूड़ को अकबर हो गयो, जीत न सको बनाफर राय। स्वाभिमान कभी नहीं छूटे, चाहे तन से प्राण गंवाय। 2. Maharana Pratap ki Kavita – गाथा फैली घर-घर है गाथा फैली घर-घर है, आजादी की राह चले तुम, सुख से मुख को मोड़ चले तुम, ‘नहीं रहूं परतंत्र किसी का’, तेरा घोष अति प्रखर है, राणा तेरा नाम अमर है। भूखा-प्यासा वन-वन भटका, खूब सहा विपदा का झटका, नहीं कहीं फिर भी जो अटका, एकलिंग का भक्त प्रखर है, भारत राजा, शासक, सेवक, अकबर ने छीना सबका हक, रही कलेजे सबके धक्-धक् पर तू सच्चा शेर निडर है, राणा तेरा नाम अमर है। मानसिंह चढ़कर के आया, हल्दी घाटी जंग मचाया, तेरा चेतक पार ले गया, पीछे छूट गया लश्कर है, राणा तेरा नाम अमर है। वीरों का उत्साह बढ़ाए, कवि जन-मन के गीत सुनाएं, नित स्वतंत्रता दीप जलाए...

Maharana Pratap Biography In Hindi

Maharana Pratap Biography In Hindi- जन्म, माता पिता, पति, मेवाड़ के राजा, घोडा चेतक, राज्याभिषेक, हल्दीघाटी का युद्ध, वजन, महाराणा प्रताप की तलवार, और मृत्यु तथा उनसे जुड़े कुछ रोचक बाते। Maharana Pratap biography In Hindi दोस्तों आज हम बात करने वाले हैं, एक ऐसे महान राजा जो अपने ताकतवर शरीर के साथ-साथ एक महान योद्धा के रूप में भी जाने जाते थे। इन्होंने ना बल्कि राजपूतों का गौरव बढ़ाया बल्कि इन्होंने कई बार मुगलों को युद्ध में हराकर अपनी वीरता का परिचय दिया। जी हां हम बात कर रहे हैं, मुगल साम्राज्य को ध्वस्त करने वाले मेवाड़ के महाराणा प्रताप सिंह के बारे में। इस लेख में आपको महाराणा प्रताप से जुड़ी सभी जानकारी मिलेगी, कृपया इस लेख से आप अंत तक जुड़े रहिए। महाराणा प्रताप का पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया था। यह उदयपुर मेवाड़ में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा थे, जिनका जन्म 9 मई 1940 को राजस्थान के कुम्भलगढ़ में हुआ था। यह एकमात्र ऐसे राजा थे, जिनके सामने अकबर के साथ-साथ पूरा मुगल साम्राज्य कांपता था। उन्होंने अपने जीवन काल में कई बार मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया और कई मुगल राजाओं को युद्ध में हराकर अपना शौर्य और वीरता का परिचय दिया। महाराणा प्रताप का जीवन परिचय नाम प्रताप सिंह प्रसिद्ध नाम महाराणा प्रताप जन्मतिथि 9 मई 1540 जन्मस्थान राजस्थान के कुम्भलगढ़ उम्र 56 वर्ष राजा मेवाड़ के राजा पौत्र राणा सांगा माता पिता उदय सिंह/ जैवंता बाई पत्नी महारानी अजबदेके अलावा 9 रानियाँ बच्चे 17 बच्चे, जिनमे अमर सिंह, भगवान दास शामिल है. वजन 80 किग्रा लम्बाई 7 फीट 5 इंच मृत्यु 19 जनवरी 1597 मृत्यु स्थान चावंड, राजस्थान भाई-बहन 3 भाई (विक्रम सिंह, शक्ति सिंह, जगमाल सिंह), 2 बहने...

चेतक की वीरता का अर्थ

चेतक महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम था। हल्दी घाटी-(1937 - 1939 ई0) के युद्ध में चेतक ने अपनी स्वामिभक्ति एवं वीरता का परिचय दिया था। अन्ततः वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। श्याम नारायण पाण्डेय द्वारा रचित प्रसिद्ध महाकाव्य हल्दीघाटी में चेतक के पराक्रम एवं उसकी स्वामिभक्ति की कथा वर्णित हुई है। आज भी चित्तौड़ में चेतक की समाधि बनी हुई है। इतिहास से मेवाड़ के उष्ण रक्त ने श्रावण संवत 1633 विक्रमी में हल्दीघाटी का कण-कण लाल कर दिया। अपार शत्रु सेना के सम्मुख थोड़े-से राजपूत और भील सैनिक कब तक टिकते? महाराणा को पीछे हटना पड़ा और उनका प्रिय अश्व चेतक, जिसने उन्हें निरापद पहुँचाने में इतना श्रम किया कि अन्त में वह सदा के लिये अपने स्वामी के चरणों में गिर पड़ा। हल्दीघाटी के प्रवेश द्वार पर अपने चुने हुए सैनिकों के साथ प्रताप शत्रु की प्रतीक्षा करने लगे। दोनों ओर की सेनाओं का सामना होते ही भीषण रूप से युद्ध शुरू हो गया और दोनों तरफ़ के शूरवीर योद्धा घायल होकर ज़मीन पर गिरने लगे। प्रताप अपने घोड़े पर सवार होकर द्रुतगति से शत्रु की सेना के भीतर पहुँच गये और राजपूतों के शत्रु मानसिंह को खोजने लगे। वह तो नहीं मिला, परन्तु प्रताप उस जगह पर पहुँच गये, जहाँ पर सलीम (जहाँगीर) अपने हाथी पर बैठा हुआ था। प्रताप की तलवार से सलीम के कई अंगरक्षक मारे गए और यदि प्रताप के भाले और सलीम के बीच में लोहे की मोटी चादर वाला हौदा नहीं होता तो अकबर अपने उत्तराधिकारी से हाथ धो बैठता। प्रताप के घोड़े चेतक ने अपने स्वामी की इच्छा को भाँपकर पूरा प्रयास किया और तमाम ऐतिहासिक चित्रों में सलीम के हाथी के सूँड़ पर चेतक का एक उठा हुआ पैर और प्रताप के भाले द्वारा महावत का छाती का छलनी होना अंकित किया गया है। महावत के ...