मुद्रण के संदर्भ में महात्मा गांधी के क्या विचार थे

  1. महात्मा गांधी कैसा रामराज्य चाहते थे
  2. वर्तमान समय में गांधी जी के विचारों की प्रासंगिकता
  3. महात्मा गांधी के नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों पर निबंध
  4. गांधी और उनके विचार
  5. महात्मा गांधी तथा रवींद्रनाथ टैगोर के विचार : शिक्षा


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महात्मा गांधी कैसा रामराज्य चाहते थे

भारत में ‘रामराज्य’ शब्द के अर्थ को लेकर कई भ्रांतियां रही हैं. कई विद्वान इस शब्द के प्रयोग से बचते रहे हैं. लेकिन अब जबकि इस शब्द के अर्थ का नए सिरे से राजनीतिक दुरुपयोग हो रहा है और इसके एक संकीर्ण अर्थ को राजनीतिक रूप से स्थापित करने की अज्ञानतापूर्ण कोशिश हो रही है, तो ऐसी स्थिति में हमें गांधी के सपनों का वास्तविक ‘रामराज्य’ फिर से समझने की जरूरत है. ऐसा नहीं है कि स्वयं गांधीजी के समय में इस शब्द के प्रति भ्रांतियां नहीं थीं. कई मौकों पर खुद उन्हें इस पर स्पष्टीकरण देना पड़ा था. इसलिए विभिन्न अवसरों पर उनके रामराज्य संबंधी वक्तव्यों का पुनर्पाठ इस मायने में बहुत ही महत्वपूर्ण हो सकता है. दांडी मार्च के दौरान ही ऐसी ही भ्रांतियों के निवारण के लिए उन्हें 20 मार्च, 1930 को हिन्दी पत्रिका ‘नवजीवन’ में ‘स्वराज्य और रामराज्य’ शीर्षक से एक लेख लिखना पड़ा था. इसमें गांधीजी ने कहा था- ‘स्वराज्य के कितने ही अर्थ क्यों न किए जाएं, तो भी मेरे नजदीक तो उसका त्रिकाल सत्य एक ही अर्थ है, और वह है रामराज्य. यदि किसी को रामराज्य शब्द बुरा लगे तो मैं उसे धर्मराज्य कहूंगा. रामराज्य शब्द का भावार्थ यह है कि उसमें गरीबों की संपूर्ण रक्षा होगी, सब कार्य धर्मपूर्वक किए जाएंगे और लोकमत का हमेशा आदर किया जाएगा. ...सच्चा चिंतन तो वही है जिसमें रामराज्य के लिए योग्य साधन का ही उपयोग किया गया हो. यह याद रहे कि रामराज्य स्थापित करने के लिए हमें पाण्डित्य की कोई आवश्यकता नहीं है. जिस गुण की आवश्यकता है, वह तो सभी वर्गों के लोगों- स्त्री, पुरुष, बालक और बूढ़ों- तथा सभी धर्मों के लोगों में आज भी मौजूद है. दुःख मात्र इतना ही है कि सब कोई अभी उस हस्ती को पहचानते ही नहीं हैं. सत्य, अहिंसा, मर्यादा-पाल...

वर्तमान समय में गांधी जी के विचारों की प्रासंगिकता

हम लोग 21 वीं सदी में हैं। 21 वीं सदी को आमतौर पर “विकास की युग” के रूप में जाना जाता है। क्या हम नहीं जानते, कि विकास की इस अंधी दौड़ में कोई विपत्ति आएगी? तेजी से जनसंख्या वृद्धि, उत्पादन, और खपत, बेरोजगारी, गरीबी, नस्लीय भेदभाव, आर्थिक असमानता, सामाजिक अन्याय, भ्रष्टाचार जैसी सभी प्रकार की समस्याओं के बीच हमें आज जीना पड़ रहा है। औद्योगीकरण मानव जाति के लिए अभिशाप होने जा रहा है। वर्तमान में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और नैतिक अधिकारों के साथ-साथ मूल्यों का उन्नयन और शोषण हो रहा है। विकास के साथ हमें इन समस्याओं के बारे में सोचना होगा और अपनी आवश्यकताओं के अनुकूल समाधानों का पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए। समकालीन दुनिया की उपरोक्त समस्याओं के लिए सबसे उपयुक्त समाधान गांधीजी के सिद्धांतों का पालन करना है। यह गांधी का दर्शन है जो हमें इस विधेय से बचा सकता है। गांधी के विपुल लेखन, भाषण, और वार्ता अपने समय के साथ-साथ वर्तमान दुनिया के भारतीय जीवन के हर बोधगम्य पहलू को कवर करते हैं। इस आर्टिकल का उद्देश्य 21 वीं सदी में गांधीवादी दर्शन की प्रासंगिकता को बताना है| मोहनदास करमचंद गांधी जी का जीवन मानव जीवन में सत्य और अहिंसा के मूल्यों को स्थापित करने के प्रयास की कहानी है। महात्मा गांधी केवल उनकी ही श्रेणी में आते हैं। वह भी एक आविष्कारक थे, लेकिन एक अलग तरह के, एक अनोखा तरीका था विरोध का, संघर्ष का, मुक्ति का और सशक्तिकरण का। उनकी सेना युद्ध करने में नहीं, बल्कि शांति स्थापित करने में लगी थी। उनका हथियार, हथियार और गोला-बारूद, नहीं था बल्कि “सत्य बल”, और “सत्याग्रह” था। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में सत्य और अहिंसा के प्रयोग का सहारा लेकर भारत और ब्रिटेन को आपसी द्व...

महात्मा गांधी के नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों पर निबंध

इस पृथ्वी पर लाखों लोग जन्म लेते हैं, जीते हैं और अंत में मर जाते हैं। मानवों की इस भीड़ में कुछ ही ऐसे होते हैं जो ऐतिहासिक रूप में महान बनते हैं। यह महानता उनके एक विशिष्ट पहचान और विशेष कार्यों को दर्शाती है। हमें अपने जीवन में ऐसे व्यक्तियों का उदहारण देना चाहिए और उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। महात्मा गांधी ऐसे ही महानतम उदहारण के रूप में है जो कई लोगों के लिए एक प्रेरणा का नाम है। उनके महानतम कार्यों से न केवल भारत के ही बल्कि दुनिया भर के लोगों के बीच गांधी जी एक प्रेरणा का विषय है। उनकी महान विचारधारा और उनके नैतिक मूल्य इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुए हैं। महात्मा गांधी हमेशा से ही अपने जीवन में अपने नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों का पालन किया, उनके नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों से आज भी सारी दुनिया के लोग प्रभावित है। मैंने यहां एक दीर्घ निबंध प्रस्तुत किया है, जो आपको महात्मा गांधी के नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों से अवगत कराएगा। इस निबंध के माध्यम से छात्रों को उनके प्रोजेक्ट और पढ़ाई में काफी मदद मिलेगी। महात्मा गांधी के नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों पर दीर्घ निबंध (Long Essay on Moral Values and Principles of Mahatma Gandhi in Hindi, Mahatma Gandhi ke Naitik Mulyon aur Siddhanton par Nibandh Hindi mein) 1200 Words Essay परिचय महात्मा गांधी अपनी अवधारणाओं, मूल्यों और सिद्धांतों और सत्य और अहिंसा के वो महान अनुयायी थे। उनके जैसा कोई अन्य व्यक्ति फिर कभी पैदा नहीं हुआ। बेशक वो शारीरिक रूप से मर गए है, लेकिन उनके नैतिक मूल्य और सिद्धांत आज भी हम सभी के बीच जीवित हैं। महात्मा गा ं धी – राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को लोकप्रिय रूप से बापू या राष्ट्रपिता के रूप में जाना जाता है...

गांधी और उनके विचार

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में महात्मा गांधी और उनके विचारों का उल्लेख किया गया है। साथ ही वर्तमान समय में उनकी प्रासंगिकता पर भी चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं। जो बदलाव तुम दुनिया में देखना चाहते हो, वह खुद में लेकर आओ -महात्मा गांधी महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी जी के बारे में कहा था कि “भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था।” गांधी के विचारों ने दुनिया भर के लोगों को न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि करुणा, सहिष्णुता और शांति के दृष्टिकोण से भारत और दुनिया को बदलने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपने समस्त जीवन में सिद्धांतों और प्रथाओं को विकसित करने पर ज़ोर दिया और साथ ही दुनिया भर में हाशिये के समूहों और उत्पीड़ित समुदायों की आवाज़ उठाने में भी अतुलनीय योगदान दिया। साथ ही महात्मा गांधी ने विश्व के बड़े नैतिक और राजनीतिक नेताओं जैसे- मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला और दलाई लामा आदि को प्रेरित किया तथा लैटिन अमेरिका, एशिया, मध्य पूर्व तथा यूरोप में सामाजिक एवं राजनीतिक आंदोलनों को प्रभावित किया। महात्मा गांधी - परिचय गांधी जी का जन्म पोरबंदर की रियासत में 2 अक्तूबर, 1869 में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी, पोरबंदर रियासत के दीवान थे और उनकी माँ का नाम पुतलीबाई था। गांधी जी अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। मात्र 13 वर्ष की उम्र में गांधी जी का विवाह कस्तूरबा कपाड़िया से कर दिया गया। गांधी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा राजकोट से प्राप्...

महात्मा गांधी तथा रवींद्रनाथ टैगोर के विचार : शिक्षा

प्रश्न: “कई अर्थों में रवींद्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी शिक्षा के बारे में एक जैसा सोचते थे। हालाँकि, उनमें अंतर भी थे।” स्पष्ट कीजिए। (150 words) दृष्टिकोण • शिक्षा प्रणाली पर महात्मा गांधी तथा रवींद्रनाथ टैगोर के विचारों का उल्लेख करते हुए भूमिका लिखिए। • उनके विचारों में समानताओं तथा असमानताओं का विश्लेषण कीजिए। • एक उपयुक्त निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए उत्तर का समापन कीजिए। उत्तर महात्मा गांधी तथा रवींद्रनाथ टैगोर दोनों शिक्षा को मानवीय मस्तिष्क तथा चेतना के विकास के एक उपकरण के रूप में देखते थे तथा उनका मानना था कि साक्षर होने या केवल लिखने-पढ़ने की प्रक्रिया को ही शिक्षा नहीं माना जा सकता है। इस संदर्भ में: गांधीजी के विचार: • महात्मा गांधी का मानना था कि औपनिवेशिक शिक्षा ने भारतीयों के मस्तिष्क में हीनता की भावना का विकास किया है। • इस कारण वे पश्चिमी संस्कृति को श्रेष्ठतर समझने लगे और उनमें अपनी संस्कृति के प्रति गौरव की भावना समाप्त हो गई। • परिणामस्वरूप शिक्षित भारतीय ब्रिटिश शासन की प्रशंसा करने लगे। • उन्होंने इस बात पर अत्यधिक बल दिया कि शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषा होना चाहिए, क्योंकि अंग्रेज़ी शिक्षा जन सामान्य को एक दूसरे से जोड़ नहीं पाती। • उनके विचार में पश्चिमी शिक्षा वास्तविक अनुभवों तथा व्यावहारिक ज्ञान की बजाय पढ़ने और लिखने (अर्थात् सैद्धांतिक ज्ञान) पर केन्द्रित थी तथा इस कारण इसमें कौशल विकास का अभाव है। टैगोर के विचार: • टैगोर के अनुसार, बाल्यावस्था में विद्यालयी शिक्षा प्रणाली के कठोर तथा सीमाबद्ध अनुशासन के बजाय स्व-अध्ययन पर जोर दिया जाना चाहिए। • शिक्षक को बालक को समझने हेतु अधिक कल्पनाशील होना चाहिए ताकि वह उनकी जिज्ञासाओं को विकसित करने में ...