Paryavaran se aap kya samajhte hain

  1. वर्गीकरण किसे कहते है? परिभाषा, प्रकार, लक्षण, उद्देश्य
  2. पर्यावरण क्या है
  3. पृथ्वी को बचाने के लिए पर्यावरण संरक्षण क्यों ज़रूरी है? » Prithvi Ko Bachane Ke Liye Paryaavaran Sanrakshan Kyon Zaruri Hai
  4. पर्यावरण का अध्ययन क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिये।
  5. Prakritik paryavaran se aap kya samajhte hain?
  6. ज्ञान का अर्थ, परिभाषा प्रकार, स्रोत, महत्व


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वर्गीकरण किसे कहते है? परिभाषा, प्रकार, लक्षण, उद्देश्य

vargikaran arth paribhasha prakar uddeshya;संकलित समंको का मौलिक स्वरूप अत्यन्त जटिल एवं अव्यवस्थित होता है और इन्हें इसी रूप मे विश्लेषण एवं निर्वाचन हेतु प्रयुक्त नही किया जा सकता जब तक कि इन्हें संक्षिप्त करते हुए इनको स्वजातीयता के आधार पर अलग-अलग वर्गों मे विभक्त न कर दिया जाए। वर्गीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें एकत्रित समंको को उनकी विभिन्न विशेषताएंओं के आधार पर अलग-अलग समूहों, वर्गों या उपवर्गों मे क्रमबद्ध किया जाता हैं। काॅनर के शब्दों में, " वर्गीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा तथ्यों को यथार्थ रूप मे या कल्पित रूप से उनकी समानता और सादृश्यता के आधार पर वर्गो या विभागों मे विभाजित किया जाता है और जो इकाई की विभिन्नता के मध्य गुणों की एकता को व्यक्त करती हैं।" वर्गीकरण के प्रकार (vargikaran ke prakar) 1. गुणात्मक वर्गीकरण जब तथ्यों को 'वर्णन' 'गुणों' के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है तो उसे गुणात्मक वर्गीकरण कहते हैं। उदाहरणार्थ- साक्षरता, ईमानदारी, चरित्र आदि। गुणात्मक वर्गीकरण दो प्रकार का हो सकता है--- (a) सरल वर्गीकरण इसमे सामग्री को एक गुण के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। यह हमें स्पष्ट तथा निशिचत करना पड़ता है कि वह गुण उसमे उपस्थित है या नही। (b) बहुगुण वर्गीकरण जब सामग्री का विभाजन एक से अधिक गुणों के आधार पर किया जाता है तो उसे बहुगुण वर्गीकरण कहा जाता हैं। इसमें सर्वप्रथम हम एक गुण की उपस्थिति और अनुपस्थित के आधार पर वर्गीकरण करते है फिर किसी अन्य गुण के आधार पर उसे उपवर्गों मे विभाजित करते है और इसके बाद भी वर्गीकरण किसी और गुण के आधार पर हो सकता हैं। 2. वर्गान्तरानुसार वर्गीकरण इस वर्गीकरण मे केवल उसी सामर्गी का समावेश होता है जो संख्या मे गिनी जा सकती...

पर्यावरण क्या है

• • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • पर्यावरण किसे कहते हैं | Paryavaran Kya Hai Hindi पर्यावरण फ्रेंच शब्द ‘Environ’ से उत्पन्न हुआ है और environ का शाब्दिक अर्थ है घिरा हुआ अथवा आवृत्त। यह जैविक और अजैविक अवयव का ऐसा समिश्रण है, जो किसी भी जीव को अनेक रूपों से प्रभावित कर सकता है। अब प्रश्न यह उठता है कि कौन किसे आवृत किए हुए है। इसका उत्तर है समस्त जीवधारियों को अजैविक या भौतिक पदार्थ घेरे हुए हैं। अर्थात हम जीवधारियों के चारों ओर जो आवरण है उसे पर्यावरण कहते हैं। पर्यावरण की विशेषताएं | Characteristics of Environment • जैविक (Biotic) तथा अजैविक (Abiotic) तत्व जब जुड़ते हैं तो यही योग पर्यावरण (Environment) कहलाता है। • पर्यावरण के मुख्य तत्वों में जैव विविधता और ऊर्जा आते है। स्थान और समय का परिवर्तन पर्यावरण में होता रहता है। • जैविक और अजैविक पदार्थों के कार्यकारी संबंधों पर ही पर्यावरण का आधार स्थित होता है। जबकि इसकी कार्यात्मक की निर्भरता ऊर्जा के संचार पर होती है। • पर्यावरण के अंदर ही जैविक पदार्थ उत्पन्न होते हैं, जिनका कार्य अलग स्थानों पर अलग-अलग ही होता है। मुख्यत: पर्यावरण सामान्य परिस्थिति को संतुलित करने की ओर ही अग्रसर होता है। • • इसे एक बंद तंत्र भी कह सकते हैं। इन सभी के अंतर्गत प्रकृति का पर्यावरण तंत्र नियंत्रित होता है। तब इस नियंत्रक क्रियाविधि को होमियोस्टैटिक क्रिया विधि के नाम से जाना जाता है। इसी से यह नियंत्रण में रहता है। पर्यावरण की परिभाषा, पर्यावरण किसे कहते हैं उदाहरण सहित | Definition of Environment in Hindi हमारे आस पास पाए जाने वाले सभी वस्तुएँ पेङ-पौधे, जीव जंतु, नदी, तालाब, हवा, मिट्टी, तथा मनुष्य एवं उसके क्रियाएँ इन सभी के ...

पृथ्वी को बचाने के लिए पर्यावरण संरक्षण क्यों ज़रूरी है? » Prithvi Ko Bachane Ke Liye Paryaavaran Sanrakshan Kyon Zaruri Hai

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। नमस्कार दोस्तों आज आप का सवाल है पृथ्वी को बचाने के लिए परिवर्तन क्यों जरूरी है तो पृथ्वी को बचाने के लिए पर्यावरण संरक्षण इसलिए जरूरी होता है क्योंकि सारी वनस्पति पेड़-पौधे जीव-जंतु सारी पृथ्वी पर निवास करते करते हैं तथा इनके संरक्षण हेतु पर्यावरण का संरक्षण करना बहुत जरूरी है क्योंकि अगर पर्यावरण सुरक्षित नहीं होगा तो पृथ्वी पर प्रदूषित होगा पर्यावरण शुद्ध होगा तो पृथ्वी पर जीवन जीवन जीवन संभव नहीं होगा पर्यावरण को तरस में करने के लिए सन 1962 में 1972 में एक अधिनियम और सम्मेलन किया गया था इस अधिनियम के अनुसार पर्यावरण संरक्षण व विकास के दस्तावेज जारी किए जिसे एजेंडा 21 का नाम दिया गया धन्यवाद दोस्तों namaskar doston aaj aap ka sawaal hai prithvi ko BA chane ke liye parivartan kyon zaroori hai toh prithvi ko BA chane ke liye paryavaran sanrakshan isliye zaroori hota hai kyonki saree vanaspati ped paudhe jeev jantu saree prithvi par niwas karte karte hai tatha inke sanrakshan hetu paryavaran ka sanrakshan karna BA hut zaroori hai kyonki agar paryavaran surakshit nahi hoga toh prithvi par pradushit hoga paryavaran shudh hoga toh prithvi par jeevan jeevan jeevan sambhav nahi hoga paryavaran ko taras mein karne ke liye san 1962 mein 1972 mein ek adhiniyam aur sammelan kiya gaya tha is adhiniyam ke anusaar paryavaran sanrakshan va vikas ke dastavej jaari kiye jise agenda 21 ka naam diya gaya dhanyavad doston नमस्कार दोस्तों आज आप का सवाल है पृथ्वी को बचाने के ...

पर्यावरण का अध्ययन क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिये।

सवाल:पर्यावरण का अध्ययन क्यों आवश्यक है? स्पष्ट कीजिये। पर्यावरण का अध्ययन आवश्यक है क्योंकि यह हमें अपने पर्यावरण की समझ, संरक्षण और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है। यह हमें पर्यावरणीय समस्याओं की पहचान करने, समझने और उनका समाधान ढूंढने में मदद करता है। निम्नलिखित कुछ मुख्य कारण पर्यावरण का अध्ययन आवश्यक है: 1. पर्यावरणीय समस्याओं की पहचान: पर्यावरण का अध्ययन हमें विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याओं की पहचान करने में मदद करता है, जैसे कि जलवायु परिवर्तन, वनों का अपवनन, जल संकट, जलवायु प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण आदि। 2. संरक्षण और प्रबंधन: पर्यावरण का अध्ययन हमें पर्यावरणीय संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए उचित नीतियों, तकनीकी उपायों और कार्यान्वयन की आवश्यकता की समझ प्रदान करता है। यह हमें समुदायों को जागरूक करने, संरक्षण कार्यक्रमों की योजना बनाने और संसाधनों के उचित उपयोग की नीतियों की स्थापना करने में मदद करता है। 3. प्रदूषण नियंत्रण: पर्यावरण का अध्ययन हमें प्रदूषण के स्रोतों, प्रभावों और नियंत्रण के उपायों की समझ प्रदान करता है। यह हमें प्रदूषण कम करने और नवाचारी तकनीकों का उपयोग करके पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए नीतियों और उपायों को विकसित करने में मदद करता है। 4. जल संरक्षण: पर्यावरण का अध्ययन हमें जल संरक्षण की महत्वपूर्णता की जागरूकता प्रदान करता है। यह हमें जल संकट, जल संरक्षण के तरीकों, जल वितरण और जल संसाधनों के प्रबंधन के लिए नीतियों और कार्यक्रमों की समझ प्रदान करता है। 5. पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन: पर्यावरण का अध्ययन हमें पर्यावरणीय प्रभावों का मूल्यांकन करने की क्षमता प्रदान करता है। यह हमें पर्यावरणीय प्रभावों के आर्थिक, ...

Prakritik paryavaran se aap kya samajhte hain?

सवाल: Prakritik paryavaran se aap kya samajhte hain? हमारे आसपास सभी भौतिक वस्तुओं को हम पर्यावरण कहते हैं। पर्यावरण मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं। 1. प्राकृतिक पर्यावरण और 2. मानव निर्मित पर्यावरण। प्राकृतिक पर्यावरण से तात्पर्य है, कि मानव सहयोग के बिना कोई भी भौतिक वस्तु को एवं प्राकृतिक पर्यावरण कहते हैं। उदाहरण जंगल, पर्वत, पहाड़, जीव, जंतु एवं मनुष्य आदि है।

ज्ञान का अर्थ, परिभाषा प्रकार, स्रोत, महत्व

मस्तिष्क में आई नवीन चेतना तथा विचारों का विकास स्वयं तथा देखकर होने लगा इस प्रकार से वह अपने वैचारिक क्षमता अर्थात् ज्ञान के आधार पर अपने नवीन कार्यों को करने एवं सीखने, किस प्रकार से कोई भी काम को आसान तरीके से किया जाये और उसे किस प्रकार से असम्भव बनाया जाये। इसी सोच विचारों की क्षमता या शक्ति को हम ज्ञान कहते है, जिसके आधार पर हम सभी प्रकार के कार्यों को करते है एवं निरन्तर आगे बढ़ते है अर्थात उन्नति करते है, यह उन्नति तरक्की और आगे बढ़ने की शक्ति ही व्यक्ति को और आगे बढ़ाने और अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देती है जिससे वह सदैव सत्कर्म एवं निरन्तर उचित कार्य करता है और आगे बढ़ता रहता है इस प्रकार से सरल एवं सुव्यवस्थित जीवन को चलाने की प्रक्रिया ही हमें ज्ञान से अवगत कराती है। • प्रकृति (Nature) • पुस्तकें (Books) • इंद्रिय अनुभव (sense experience) • साक्ष्य (Evidence) • तर्क बुद्धि (Logic intelligence) • अंतर्ज्ञान (Intuition) • अन्त:दृष्टि द्वारा ज्ञान (Wisdom through insight) • अनुकरणीय ज्ञान (Exemplary knowledge) • जिज्ञासा (Curiosity) • अभ्यास (Practice) • संवाद (Dialogue) 1. प्रकृति(Nature)-प्रकृति ज्ञान का प्रमुख स्रोत है एवं प्रथम स्रोत है प्रत्येक मनुष्य ज्ञान प्राप्त करता है जन्म से पूर्व एवं जन्म के पश्चात जैसे अभिमन्यु ने चक्र व्यहू तोड़कर अन्दर जाना अपनी माता के गर्भ से ही सीखा था और हम आगे किस प्रकार से प्रत्यके व्यक्ति अपनी योग्यतानुसार प्रकृति से सीखता है जैसे- फलदार वृक्ष सदैव झुका रहता है कभी भी वह पतझड की तरह नहीं रहता हमेशा पंछियों को छाया देता रहता है। 2. पुस्तकें (Books) -किताबें ज्ञान का प्रमुख स्रोत है प्राचीन समय मैं जब कागज का निर्माण नहीं हुआ ...