प्रथम गुरु माता-पिता श्लोक

  1. श्रीरामचरितमानस भावार्थ सहित
  2. स्त्री पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
  3. Sanskrit Shlok on father
  4. साधना : प्रथम अंक
  5. सबसे अच्छी प्रेरणादायक 25 संस्कृत श्लोक सुभाषितानी,सुविचार व अनमोल वचन हिन्दी अर्थ सहित? Motivational Sanskrit shlok With meaning in hindi
  6. गुरु पूर्णिमा
  7. अष्टांग नमस्कार
  8. प्रथम शैलपुत्री द्वितीय ब्रह्मचारिणी श्लोक, दुर्गा गायत्री मंत्र, शैलपुत्री गायत्री मंत्र, ब्रह्मचारिणी गायत्री मंत्र, चन्द्रघंटा गायत्री मंत्र, कूष्माण्डा गायत्री मंत्र, स्कंदमाता गायत्री मंत्र, कात्यायनी गायत्री मंत्र, कालरात्रि गायत्री मंत्र, महागौरी गायत्री मंत्र, सिद्धिदात्री गायत्री मंत्र, Pratham Shailputri Dwitiya Brahmacharini Shloka, Durga Gayatri Mantra, Shailaputri Brahmacharini Chandraghanta Kushmanda Skandamata Katyayani Kaalratri Mahagauri Siddhidhatri Gayatri Mantra
  9. स्त्री पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित
  10. गुरु पूर्णिमा


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श्रीरामचरितमानस भावार्थ सहित

भावार्थ:- फिर उन्होंने माता को अपना अखंड अद्भुत रूप दिखलाया, जिसके एक-एक रोम में करोड़ों ब्रह्माण्ड लगे हुए हैं॥201॥ चौपाई: अगनित रबि ससि सिव चतुरानन। बहु गिरि सरित सिंधु महि कानन॥ काल कर्म गुन ग्यान सुभाऊ। सोउ देखा जो सुना न काऊ॥1॥ भावार्थ:- अगणित सूर्य, चन्द्रमा, शिव, ब्रह्मा, बहुत से पर्वत, नदियाँ, समुद्र, पृथ्वी, वन, काल, कर्म, गुण, ज्ञान और स्वभाव देखे और वे पदार्थ भी देखे जो कभी सुने भी न थे॥1॥ चौपाई: देखी माया सब बिधि गाढ़ी। अति सभीत जोरें कर ठाढ़ी॥ देखा जीव नचावइ जाही। देखी भगति जो छोरइ ताही॥2॥ भावार्थ:- सब प्रकार से बलवती माया को देखा कि वह (भगवान के सामने) अत्यन्त भयभीत हाथ जोड़े खड़ी है। जीव को देखा, जिसे वह माया नचाती है और (फिर) भक्ति को देखा, जो उस जीव को (माया से) छुड़ा देती है॥2॥ चौपाई: तन पुलकित मुख बचन न आवा। नयन मूदि चरननि सिरु नावा॥ बिसमयवंत देखि महतारी। भए बहुरि सिसुरूप खरारी॥3॥ भावार्थ:- (माता का) शरीर पुलकित हो गया, मुख से वचन नहीं निकलता। तब आँखें मूँदकर उसने श्री रामचन्द्रजी के चरणों में सिर नवाया। माता को आश्चर्यचकित देखकर खर के शत्रु श्री रामजी फिर बाल रूप हो गए॥3॥ चौपाई: अस्तुति करि न जाइ भय माना। जगत पिता मैं सुत करि जाना॥ हरि जननी बहुबिधि समुझाई। यह जनि कतहुँ कहसि सुनु माई॥4॥ भावार्थ:- (माता से) स्तुति भी नहीं की जाती। वह डर गई कि मैंने जगत्पिता परमात्मा को पुत्र करके जाना। श्री हरि ने माता को बहुत प्रकार से समझाया (और कहा-) हे माता! सुनो, यह बात कहीं पर कहना नहीं॥4॥ भावार्थ:- कौसल्याजी बार-बार हाथ जोड़कर विनय करती हैं कि हे प्रभो! मुझे आपकी माया अब कभी न व्यापे॥202॥ चौपाई: बालचरित हरि बहुबिधि कीन्हा। अति अनंद दासन्ह कहँ दीन्हा॥ कछुक काल बीतें...

स्त्री पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

स्त्री (नारी) पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित | Sanskrit Shlokas on woman respect with Hindi meaning दोस्तों, भारतीय संस्कृति में नारी को देवी स्वरुप माना जाता है| नारी एक माँ, बेटी, जीवन दायनी, पत्नी, बहन जाने कितने रिश्तों को निभाती है| माँ ही बच्चे की प्रथम गुरु भी होती है| हमारे शाश्त्रों और हिन्दू ग्रंथों में नारी के महिमा को संस्कृत श्लोकों के माध्यम से व्यक्त किया है| हिंदी अर्थ:- अर्थात, माता देवताओं से भी बढ़कर होती है। न कन्यायाः पिता विद्वान् ग्रह्णियात् – शुल्कम् अणु-अपि। गृह्णन् – शुल्कं हि लोभेन स्यान् नरो अपत्यविक्रयी ।। हिंदी अर्थ:- विद्वान् पिता, कन्यादान में कुछ भी उसके बदले में मूल्य न लेवे, यदि लोभ से कुछ ले लेता है, तो वह संतान को बेचने वाला होता हैं। बालिका अहं बालिका नव युग जनिता अहं बालिका । नाहमबला दुर्बला आदिशक्ति अहमम्बिका ।। हिंदी अर्थ:- में एक आधुनिक युग की स्त्री हूँ, में शक्तिहीन नहीं हूँ| में आदिशक्ति हूँ, में अम्बिका हूँ पितृभिर् भ्रातृभिश् च-एताः पतिभिर् देवरैस् तथा। पूज्या भूषयितव्याश् च बहुकल्याणम् ईप्सुभिः।। हिंदी अर्थ:- पिता, भाई, पति और देवर को स्त्रियों का सत्कार और आभूषण आदि से उनको भूषित करना चाहिए। इससे बड़ा शुभ फल होता है। अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामः मातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरूषो वेदः। हिंदी अर्थ:- जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो तो तभी मनुष्य ज्ञानवान होगा। अतुलं तत्र तत्तेजः सर्वदेवशरीरजम्। एकस्थं तदभून्नारी व्याप्तलोकत्रयं त्विषा॥ हिंदी अर्थ:- सभी देवताओं से उत्पन्न हुआ और तीनों लोकों में व्याप्त वह अतुल्य तेज जब एकत्रित हुआ तब वह नारी बना। राष्ट्रस्य श्व: नारी अस्ति हिंदी अर्थ:- नारी की कल है ‘...

Sanskrit Shlok on father

sanskrit shlok on father पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिता हि परमं तपः। पितरि प्रीतिमापन्ने प्रीयन्ते सर्वदेवताः॥ पितरौ यस्य तृप्यन्ति सेवया च गुणेन च। तस्य भागीरथीस्नानमहन्यहनि वर्तते॥ सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमयः पिता। मातरं पितरं तस्मात् सर्वयत्नेन पूजयेत्॥ मातरं पितरंश्चैव यस्तु कुर्यात् प्रदक्षिणम्। प्रदक्षिणीकृता तेन सप्तदीपा वसुन्धरा॥ Hindi Translation:- पद्मपुराण में कहा गया है कि पिता धर्म है, पिता स्वर्ग है और पिता ही सबसे श्रेष्ठ तप है। पिता के प्रसन्न हो जाने पर सम्पूर्ण देवता प्रसन्न हो जाते हैं। जिसकी सेवा और सदगुणों से पिता-माता संतुष्ट रहते हैं, उस पुत्र को प्रतिदिन गंगा-स्नान का पुण्य मिलता है। माता सर्वतीर्थमयी है और पिता सम्पूर्ण देवताओं का स्वरूप है। इसलिये सब प्रकार से माता-पिता का पूजन करना चाहिये। माता-पिता की परिक्रमा करने से पृथ्वी की परिक्रमा हो जाती है। English Translation:- My Father is my heaven, my father is my dharma, he is the ultimate penance of my life. If he is happy, all deities are pleased.Whose service and virtues keep father and mother satisfied, That son gets the blessings of bathing in the Ganges every day. Mother is omniscient and father is the form of all deities. That is why parents should be worshiped in every way. The orbit of the parents revolves around the earth. पन्चान्यो मनुष्येण परिचया प्रयत्नतरू । पिता माताग्निरात्मा च गुरुश्च भरतर्षभ ।। Hindi Translation:- भरतश्रेष्ठ ! पिता, माता अग्नि, आत्मा और गुरु – मनुष्य को इन पांच अग्नियों की बड़े यत्न से सेवा करनी चाहिए। English Translation:- Bharat Shrestha! Father, Mother fire, Soul ...

साधना : प्रथम अंक

प्रस्तुत लेख ‘श्री राधाकृष्ण श्रीमाली’ की पुस्तक- ‘दस महाविद्या’- साधना रहस्य, द्वारा: शास्त्रों में कहा कहा गया है कि मनुष्य के तीन प्रत्यक्ष देव हैं – १. माता, २. पिता, ३. गुरु इन्हें ब्रह्मा, विष्णु, महेश की उपाधि दी गई है। माता जन्म देती है इसलिए ब्रह्मा है। पिता पालन करता है इसलिए विष्णु है। गुरु कु-संस्कारों का संहार करता है अतः शिव है, शंकर है। वह न केवल कु-संस्कार की गहरी जड़ों को काटता है, वरन एक सच्चे माली की भूमिका भी अदा करता है। “गुरु ही परब्रह्म है। गुरु ही परम गति है। गुरु ही पर-विद्या है। गुरु ही परायण योग्य हैं। गुरु ही पराकाष्ठा हैं। गुरु ही परम धन हैं। वह उपदेष्ट होने के कारण श्रेष्ठ से भी श्रेष्ठ हैं।” – अद्वयतारक उपनिषद “गुरु जो आदेश दे उसका पालन शिष्य को बिना विचारे, संतोष युक्त भाव से करना चाहिए। इस विद्या को गुरु से प्राप्त करें। गुरु की सदा सुश्रूषा करें, इसी से मनुष्य का सच्चा कल्याण होता है। श्रुति में कहा गया है कि गुरु ही साक्षात् हरी हैं, कोई अन्य नहीं।” – ब्रह्मविद्या उपनिषद पादुका से पर कोई भी मंत्र नहीं है, श्री गुरु से पर कोई देव नहीं है, शक्ति दीक्षा से उत्तम कोई दीक्षा नहीं है और गुरू पूजन से परे कोई पुष्य नहीं होता है। गुरु मूला: क्रिया सर्वा, लोकेस्मिन कुलनायिके । तस्मात सेवयो गुरुनित्यम, सिद्धथम भक्ति संयुतै :।। अर्थात्- उपासना की समस्त क्रियाएँ गुरु मूल ही होती हैं अर्थात गुरू ही के द्वारा सही उपासना की पद्धति का ज्ञान होता है। हे कुलनायिके! इसलिए सिद्धि प्राप्त करने के लिए भक्त युक्त होकर मनुष्यों को गुरु की नित्य सेवा करनी चाहिए। ———— अगला अंक : गुरु दीक्षा टिप्पणी : पुन: निवेदन करना चाहूँगी कि प्रस्तुत लेख ‘श्री राधाकृष्ण श्रीमाली...

सबसे अच्छी प्रेरणादायक 25 संस्कृत श्लोक सुभाषितानी,सुविचार व अनमोल वचन हिन्दी अर्थ सहित? Motivational Sanskrit shlok With meaning in hindi

हमारे ऋषि-मुनियों ने संस्कृत भाषा (easy sanskrit slokas) में कई सारी बातें Sanskrit Shlokas in hindi) में लिखी है। तो आइये जानते हैं प्रेरणादायक नीति श्लोक हिंदी अर्थ सहित। संस्कृत भाषा भारत ही नहीं विश्व की प्राचीनतम भाषा होने के साथ ही सभी भाषाओं की जननी है। Sanskrit sloks with meaning in hindi संस्कृत भाषा में पग-पग पर विश्व कल्याण और मानवता का पाठ पढ़ाने वाले श्रेष्ठ वाक्यांश समाहित है। व्यक्ति के मार्गदर्शन के लिए तथा सभी पक्षों के विकस के लिए ( संस्कृत श्लोक,संस्कृत में सूक्तियां, संस्कृत में आदि कयी ऐसे महान हमारे ग्रंथों से लिये गये है। अत: इसी प्रकार संस्कृत श्लोक ज्ञानवर्धक और को इस " संस्कृत सुभाषितानि " में हिन्दी अर्थ, संस्कृत भावार्थ सहित समाहित करने का छोटा सा प्रयास किया गया है। Sanskrit sloks with meaning in hindi धर्म, ज्ञान और विज्ञान के मामले में भारत से ज्यादा समृद्धशाली देश कोई दूसरा नहीं। भारत ने दुनिया को सभी तरह का ज्ञान दिया और आज उस ज्ञान के कारण पश्‍चिम और चीन जगत के लोग अपना जीवनस्तर सुधारने में लगे हैं। Sanskrit sloks with meaning in hindi } 50 संस्कृत सुभाषितानी सुविचार व अनमोल वचन } शास्त्रों के 65 संस्कृत सुभाषितानी संस्कृत सुविचार } मनुस्मृति के 31 महत्वपूर्ण शिक्षाप्रद सूक्तियां } 22 संस्कृत सुभाषितानी सुविचार एवं अनमोल वचन } जीवन पर 50 सर्वोच्च विचार व अनमोल वचन } 51 महत्वपूर्ण अंग्रेजी शिक्षाप्रद सूक्तियां } संस्कृत में 40 शिक्षाप्रद सूक्तियां अर्थ सहित Motivational Sanskrit shlok With meaning in hindi श्लोक - 1 आकारसदृशप्रज्ञः प्रज्ञया सदृशागमः | आगमैः सदृशारम्भ आरम्भसदृशोदयः || अर्थात- जैसा उसका शरीर था, वैसी ही उसकी बुद्धि भी थी, जैसी...

गुरु पूर्णिमा

शास्त्रों में कहा गया है कि माता-पिता संतान को जन्म दे सकते हैं, अच्छे संस्कार दे सकते हैं, परन्तु उसे मोक्ष और मुक्ति का मार्ग दिखाने वाला गुरु ही होता है। इसलिए गुरु को पिता से श्रेष्ठ माना जाता है। गुरु सभी बंधनों से मुक्त होता है, इसलिए वह अपने शिष्यों को मुक्ति दिला सकता है। गुरु का महत्व और 'गुरु' शब्द का अर्थ - गुरु-शिष्य परंपरा हमारे राष्ट्र और संस्कृति की एक अनूठी विशेषता है। गुरु वह है जो हमारी अज्ञानता को दूर करता है। शिक्षक हमारे गुरु हैं। इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन सभी छात्रों को अपने गुरुओं का ह्रद्य से धन्यवाद करना चाहिए। शिक्षकों के चरणों में कृतज्ञता अर्पित करनी चाहिए और 16 जुलाई 2019, गुरुपूर्णिमा के शुभ दिन को ही 'शिक्षक दिवस' के रुप में मनाया जाना चाहिए। आगे बढ़ने से पूर्व आईये हम यहां गुरु शब्द का अर्थ समझ लें। गु का अर्थ है अंधकार और "यू' का अर्थ है 'हटाना'। गुरू वह है जो हमारे जीवन से विकार की अज्ञानता को दूर करता है और हमें सिखाता है कि आनंदमय जीवन कैसे जिया जाए। गुरु महिमा संत, महात्माओं के शब्दों में • एक स्थान पर संत तुलाराम ने कहा है कि जब तक हमें कोई सदगुरु नहीं मिलता, हम मोक्ष (अंतिम मुक्ति) का मार्ग नहीं खोज सकते। इसलिए गुरु की तलाश पूरी होते ही, हमें सबसे पहले उसके पैरों को पकड़ना चाहिए, अर्थात हमें उनकी कृपा पाने के लिए प्रयास करना चाहिए। सदगुरु अपने शिष्य को मोक्ष के योग्य बनाता है। सदगुरु की महानता अथाह है, और यहाँ तक कि उन्हें पारस कहना भी उनकी महानता को कम करता है, गुरु महिमा का वर्णन करना अपर्याप्त है। गुरु से ज्ञान प्राप्ति के अतिरिक्त इस सांसारिक जीवन से मुक्ति का अन्य कोई मार्ग नहीं है। योग और यज्ञ व्यक्ति में अहंकार बढ़ाते है, सर्वोच्...

अष्टांग नमस्कार

अष्टाङ्ग नमस्कार या अष्टाङ्ग दण्डवत् प्रणाम्, हिंदू धर्म में मनुष्य के चार गुरु माने जाते हैं। माता, पिता, आचार्य और सद्गुरु। एक शिशु की प्रथम गुरु उसकी माता है जो उस मूक प्राणी को वाणी प्रदान करती है। प्रायः अच्छे घरों में माता बालक को बोलना सिखाने के लिए -जय- शब्द का उच्चारण कराने का अभ्यास कराती है। इसका अर्थ दूसरों को प्रणाम या नमस्कार करना है। सभ्यता के विकास में यह प्रणाम या नमस्कार भी तीन प्रकार का हो जाता है। समय, स्थान, भाषा, धर्म और अवस्था के अनुरूप प्रणाम करने की विधि और बोले जाने वाले शब्द भी भिन्न भिन्न हो जाते हैं। पहला प्रणाम समान आयु के सामान्य जनों को किया जाता है। दूसरा अपने से बड़ों के प्रति हाथ जोड़ कर किया जाता है। तीसरा प्रणाम श्रद्धाभाव में अति विशिष्ट पुरुषों के प्रति किया जाता है। ये अति विशिष्ट पुरुष हैं - परमात्मा, देवता, माता, पिता, आचार्य और गुरुदेव। सद्ग्रंथों में आत्मिक ज्ञान या मंत्रदाता गुरु का दर्जा अति उच्च वर्णन किया है जिन्हें दण्डवत् प्रणाम करने का विधान है। प्रणाम करने वाला भक्त अपने शरीर के आठ अंग - दो हाथ, दो पैर, दो आँखें, पेट और मस्तक भूमि पर स्पर्श कर के अर्थात् सीधा दण्ड के समान लेट कर अपने वंदनीय को प्रणाम करता है। इसमें उसका भाव यह होता है कि मैं आपके संम्मुख मन वचन कर्म से समर्पण हूँ, वंदना करते हुए आप का आशीर्वाद मांगता हूँ, मुझ असमर्थ को अपनी आज्ञा और सामर्थ्य प्रदान कर उठ कर जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दें।

प्रथम शैलपुत्री द्वितीय ब्रह्मचारिणी श्लोक, दुर्गा गायत्री मंत्र, शैलपुत्री गायत्री मंत्र, ब्रह्मचारिणी गायत्री मंत्र, चन्द्रघंटा गायत्री मंत्र, कूष्माण्डा गायत्री मंत्र, स्कंदमाता गायत्री मंत्र, कात्यायनी गायत्री मंत्र, कालरात्रि गायत्री मंत्र, महागौरी गायत्री मंत्र, सिद्धिदात्री गायत्री मंत्र, Pratham Shailputri Dwitiya Brahmacharini Shloka, Durga Gayatri Mantra, Shailaputri Brahmacharini Chandraghanta Kushmanda Skandamata Katyayani Kaalratri Mahagauri Siddhidhatri Gayatri Mantra

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स्त्री पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित

स्त्री (नारी) पर संस्कृत श्लोक हिंदी अर्थ सहित | Sanskrit Shlokas on woman respect with Hindi meaning दोस्तों, भारतीय संस्कृति में नारी को देवी स्वरुप माना जाता है| नारी एक माँ, बेटी, जीवन दायनी, पत्नी, बहन जाने कितने रिश्तों को निभाती है| माँ ही बच्चे की प्रथम गुरु भी होती है| हमारे शाश्त्रों और हिन्दू ग्रंथों में नारी के महिमा को संस्कृत श्लोकों के माध्यम से व्यक्त किया है| हिंदी अर्थ:- अर्थात, माता देवताओं से भी बढ़कर होती है। न कन्यायाः पिता विद्वान् ग्रह्णियात् – शुल्कम् अणु-अपि। गृह्णन् – शुल्कं हि लोभेन स्यान् नरो अपत्यविक्रयी ।। हिंदी अर्थ:- विद्वान् पिता, कन्यादान में कुछ भी उसके बदले में मूल्य न लेवे, यदि लोभ से कुछ ले लेता है, तो वह संतान को बेचने वाला होता हैं। बालिका अहं बालिका नव युग जनिता अहं बालिका । नाहमबला दुर्बला आदिशक्ति अहमम्बिका ।। हिंदी अर्थ:- में एक आधुनिक युग की स्त्री हूँ, में शक्तिहीन नहीं हूँ| में आदिशक्ति हूँ, में अम्बिका हूँ पितृभिर् भ्रातृभिश् च-एताः पतिभिर् देवरैस् तथा। पूज्या भूषयितव्याश् च बहुकल्याणम् ईप्सुभिः।। हिंदी अर्थ:- पिता, भाई, पति और देवर को स्त्रियों का सत्कार और आभूषण आदि से उनको भूषित करना चाहिए। इससे बड़ा शुभ फल होता है। अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामः मातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरूषो वेदः। हिंदी अर्थ:- जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो तो तभी मनुष्य ज्ञानवान होगा। अतुलं तत्र तत्तेजः सर्वदेवशरीरजम्। एकस्थं तदभून्नारी व्याप्तलोकत्रयं त्विषा॥ हिंदी अर्थ:- सभी देवताओं से उत्पन्न हुआ और तीनों लोकों में व्याप्त वह अतुल्य तेज जब एकत्रित हुआ तब वह नारी बना। राष्ट्रस्य श्व: नारी अस्ति हिंदी अर्थ:- नारी की कल है ‘...

गुरु पूर्णिमा

शास्त्रों में कहा गया है कि माता-पिता संतान को जन्म दे सकते हैं, अच्छे संस्कार दे सकते हैं, परन्तु उसे मोक्ष और मुक्ति का मार्ग दिखाने वाला गुरु ही होता है। इसलिए गुरु को पिता से श्रेष्ठ माना जाता है। गुरु सभी बंधनों से मुक्त होता है, इसलिए वह अपने शिष्यों को मुक्ति दिला सकता है। गुरु का महत्व और 'गुरु' शब्द का अर्थ - गुरु-शिष्य परंपरा हमारे राष्ट्र और संस्कृति की एक अनूठी विशेषता है। गुरु वह है जो हमारी अज्ञानता को दूर करता है। शिक्षक हमारे गुरु हैं। इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन सभी छात्रों को अपने गुरुओं का ह्रद्य से धन्यवाद करना चाहिए। शिक्षकों के चरणों में कृतज्ञता अर्पित करनी चाहिए और 16 जुलाई 2019, गुरुपूर्णिमा के शुभ दिन को ही 'शिक्षक दिवस' के रुप में मनाया जाना चाहिए। आगे बढ़ने से पूर्व आईये हम यहां गुरु शब्द का अर्थ समझ लें। गु का अर्थ है अंधकार और "यू' का अर्थ है 'हटाना'। गुरू वह है जो हमारे जीवन से विकार की अज्ञानता को दूर करता है और हमें सिखाता है कि आनंदमय जीवन कैसे जिया जाए। गुरु महिमा संत, महात्माओं के शब्दों में • एक स्थान पर संत तुलाराम ने कहा है कि जब तक हमें कोई सदगुरु नहीं मिलता, हम मोक्ष (अंतिम मुक्ति) का मार्ग नहीं खोज सकते। इसलिए गुरु की तलाश पूरी होते ही, हमें सबसे पहले उसके पैरों को पकड़ना चाहिए, अर्थात हमें उनकी कृपा पाने के लिए प्रयास करना चाहिए। सदगुरु अपने शिष्य को मोक्ष के योग्य बनाता है। सदगुरु की महानता अथाह है, और यहाँ तक कि उन्हें पारस कहना भी उनकी महानता को कम करता है, गुरु महिमा का वर्णन करना अपर्याप्त है। गुरु से ज्ञान प्राप्ति के अतिरिक्त इस सांसारिक जीवन से मुक्ति का अन्य कोई मार्ग नहीं है। योग और यज्ञ व्यक्ति में अहंकार बढ़ाते है, सर्वोच्...