रानी दुर्गावती

  1. Rani Durgavati
  2. रानी दुर्गावती का इतिहास
  3. रानी दुर्गावती की जीवनी
  4. रानी दुर्गावती जीवनी
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Rani Durgavati

Born 5 October 1524 ( 1524-10-05) Died 24 June 1564 (1564-06-24) (aged39) Narrai Nala, Spouse Vir Narayan Father Keerat Rai Religion Rani Durgavati (5 October 1524 – 24 June 1564) was the ruling Queen of Life [ ] Durgavati was born on 5 October 1524 at the fortress of In 1542, she was married to Queen regnant [ ] Dalpat Shah died in 1550 and due to the young age of Vir Narayan, Durgavati took the reins of the Gondwana kingdom. Rani Durgavati moved her capital from After the death of War with the Mughal [ ] In 1562, When Rani heard about the attack by Asaf Khan she decided to defend her kingdom with all her might although her Diwan Beohar Adhar Simha (Adhar Kayastha) To fight a defensive battle, she went to Narrai, situated between a hilly range on one side and two rivers Rani's domains were very federal and feudal, much more decentralised than a usual non-tribal kingdom. There were fortress districts, which were administrative units, were controlled either directly by the queen or through subordinate feudal lords (jagirdars) and junior rajas. Around half of the villages were in the hands of feudal lords. These local rajas recruited and contributed much of the soldiers, and also contributed arms to the sovereign Rani during the times of war. The recruitment standards, training and equipment of these soldiers were not uniform, and were often substandard. Also, the feudal lords held much sway over sections of the army during a war. This decentralized structure created disadva...

रानी दुर्गावती का इतिहास

रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) का परिचय भारतीय इतिहास में कई वीरांगनाओ ने अपने साहस, शौर्य और पराक्रम के माध्यम से महान कार्य किए हैं। इनमें से एक नाम है – रानी दुर्गावती। रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) भारत की एक प्रसिद्ध चन्देल क्षत्राणी वीरांगना थीं। वो 1550 से 1564 तक गोंडवाना साम्राज्य की शासक महारानी थीं। इन्होंने अपने पति की मृत्यु के बाद गोंडवाना का शासन संभाला था, अपने 15 साल के शासन में अपने शौर्य के दम पर इन्होंने गोंडवाना को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया था। रानी दुर्गावती जी की जयंती को 5 अक्टूबर मनाई जाती है? रानी दुर्गावती की पूरी कहानी हमें उनके अद्भुत साहस, समर्पण और देशभक्ति का एहसास कराती है। उनके जीवन में संघर्षों और परिश्रम के माध्यम से वे एक महिला के रूप में अपनी सीमाएं छोड़कर आगे बढ़ीं और अपने देश की सेवा की। रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) का जन्म व प्रारंभिक जीवन रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) का जन्म 5 अक्टूबर 1524 को कालंजर के किले में (बांदा, यूपी) चंदेल वंश में हुआ था। उनका जन्म अष्ठमी के दिन हुवा था इसलिए पिता ने इनका नाम माता दुर्गा के नाम पर दुर्गावती रखा था । रानी दुर्गावती के पिता का नाम कीरत राय (कीर्तिसिंह चंदेल) और माता का नाम महोबा था। दुर्गावती अपने पिता की इकलौती संतान थी। रानी दुर्गावती बचपन से ही योद्धा बनना चाहती थी, उन्होंने बचपन में हि तीरंदाजी, तलवारबाजी और शस्त्र चलाने सिख लिए थे, उन्हें शेर एवं चीते जैसे बड़े जानवरों के शिकार का बड़ा शौक था। आप इसे भी पढ़ सकते हैं : रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) का विवाह व शासनकाल रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) का विवाह सन 1542 में गोंड राजवंश के राजा दलपत शाह से हुआ था, जो गढ़ा राज्य के राजा स...

रानी दुर्गावती की जीवनी

रानी दुर्गावती भारत की एक महान वीरांगना थीं उन्होने अपने विवाह के चार साल बाद अपने पति दलपत शाह की असमय मृत्यु के बाद अपने पुत्र वीरनारायण को सिंहासन पर बैठाकर उसके संरक्षक के रूप में स्वयं शासन करना शुरू किया। तो आइए आज इस आर्टिकल में हम आपको रानी दुर्गावती की जीवनी – Rani Durgavati Biography Hindi के बारे में बताएगे। 1.5 मृत्यु रानी दुर्गावती की जीवनी – Rani Durgavati Biography Hindi जन्म दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर 1924 को महोबा में हुआ था। बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 की दुर्गा अष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। उनके पिता का नाम राजा कीर्तिसिंह चंदेल था। दुर्गावती के पिता महोबा के राजा थे। महारानी दुर्गावती राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थी। दुर्गावती अपने नाम के अनुसार ही तेज, सुशील, साहसी और सुंदरता के कारण उनकी प्रसिद्धि चारों ओर फैल गई। दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी लेकिन फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर गोण्डवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह मडावी ने अपने पुत्र दलपत शाह मडावी से विवाह करके, उसे अपनी पुत्रवधू बनाया था। योगदान दुर्भाग्यवश विवाह के चार साल बाद ही राजा दलपत शाह की असमय मृत्यु हो गई। उस समय दुर्गावती की गोद में उनका तीन वर्षीय नारायण ही था। इसलिए रानी ने खुद ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। उन्होंने अनेक मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया। युद्ध इनके शासन में राज्य की बहुत उन्नति हुई। दुर्गावती को तीर तथा बंदूक चलाने का अच्छा अभ...

रानी दुर्गावती जीवनी

रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर सन 1524 को महोबा में हुआ था. दुर्गावती के पिता महोबा के राजा थे. रानी दुर्गावती सुन्दर, सुशील, विनम्र, योग्य एवं साहसी लड़की थी. महारानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं। बांदा जिले के कालिंजर किले में 1524 ईसवी की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी। दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी लेकिन फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर गोण्डवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह मडावी ने अपने पुत्र दलपत शाह मडावी से विवाह करके, उसे अपनी पुत्रवधू बनाया था। दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय नारायण ही था। अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। उन्होंने अनेक मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं। वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया। रानी दुर्गावती का यह सुखी और सम्पन्न राज्य पर मालवा के मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया, पर हर बार वह पराजित हुआ। महान मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा। रानी ने यह मांग ठुकरा दी। विवाह के एक वर्ष पश्चात् दुर्गावती का एक पुत्र हुआ. जिसका नाम वीर नारायण रखा गया. जिस समय वीरनारायण केवल तीन वर्ष का ...

रानी दुर्गावती

पूरा नाम रानी दुर्गावती जन्म जन्म भूमि मृत्यु मृत्यु स्थान अभिभावक राजा कीर्तिराज पति/पत्नी कर्म भूमि प्रसिद्धि रानी, वीरांगना विशेष योगदान रानी दुर्गावती ने अनेक मंदिर, मठ, नागरिकता भारतीय धर्म अन्य जानकारी रानी दुर्गावती ( Rani Durgawati, जन्म: जीवन परिचय वीरांगना महारानी दुर्गावती शौर्य और पराक्रम की देवी थर-थर दुश्मन कांपे, पग-पग भागे अत्याचार, नरमुण्डों की झडी लगाई, लाशें बिछाई कई हजार, जब विपदा घिर आई चहुंओर, सीने मे खंजर लिया उतार। चौरागढ़ का जौहर आसफ़ ख़ाँ रानी की मृत्यु से बौखला गया, वह उन्हें अकबर के दरबार में पेश करना चाहता था, उसने राजधानी चौरागढ़ (हाल में ज़िला नरसिंहपुर में) पर आक्रमण किया, रानी के पुत्र राजा वीरनारायण ने वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की, इसके साथ ही चौरागढ़ में पवित्रता को बचाये रखने का महान् जौहर हुआ, जिसमें अकबर और दुर्गावती तथाकथित महान् मुग़ल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद सम्मान रानी दुर्गावती कीर्ति स्तम्भ, रानी दुर्गावती पर डाकचित्र, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, रानी दुर्गावती अभ्यारण्य, रानी दुर्गावती सहायता योजना, रानी दुर्गावती संग्रहालय एवं मेमोरियल, रानी दुर्गावती महिला पुलिस बटालियन आदि न जाने कितनी कीर्ति आज नमन कर रहा है। सुनूगीं माता की आवाज, रहूंगीं मरने को तैयार। कभी भी इस वेदी पर देव, न होने दूंगी अत्याचार। मातृ मंदिर में हुई पुकार, चलो मैं तो हो जाऊँ बलिदान, चढ़ा दो मुझको हे भगवान!! पन्ने की प्रगति अवस्था टीका टिप्पणी और संदर्भ भारतीय इतिहास कोश | लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य | प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान | पृष्ठ संख्य...