रीतिकाल के वीर रस के प्रसिद्ध कवि हैं

  1. रीतिकाल के कवि और उनकी रचनाएँ
  2. Kavitt class 12 bhawarth & Objective
  3. रीतिकाल
  4. उत्तर मध्यकाल (संवत् 1700
  5. भूषण
  6. आइये मिलते है वीर रस के कुछ श्रेष्ठ कवियों से व पढ़ते हैं रक्त शिराओं में अग्नि प्रज्वलित कर देने वाली उनकी वीर रस की कविताएं
  7. रीति काल
  8. आइये मिलते है वीर रस के कुछ श्रेष्ठ कवियों से व पढ़ते हैं रक्त शिराओं में अग्नि प्रज्वलित कर देने वाली उनकी वीर रस की कविताएं
  9. रीतिकाल के कवि और उनकी रचनाएँ
  10. रीतिकाल


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रीतिकाल के कवि और उनकी रचनाएँ

रीतिकाल की रचनाएं रीतिकाल के कवि रीतिकाल के प्रमुख कवि चिंतामणि, मतिराम, राजा जसवंत सिंह, भिखारी दास, याकूब खाँ, रसिक सुमति, दूलह, देव, कुलपति मिश्र, सुखदेव मिश्र, रसलीन, दलपति राय, माखन, बिहारी, रसनिधि, घनानन्द, आलम, ठाकुर, बोधा, द्विजदेव, लाल कवि, पद्माकर भट्ट, सूदन, खुमान, जोधराज, भूषण, वृन्द, राम सहाय दास, दीन दयाल गिरि, गिरिधर कविराय, गुरु गोविंद सिंह आदि हैं। रीतिकाल के कवि और उनकी रचनाएँ क्रम कवि (रचनाकर) रचनाएं (उत्तर-मध्यकालीन/रीतिकालीन रचना) 1. चिंतामणि कविकुल कल्पतरु, रस विलास, काव्य विवेक, शृंगार मंजरी, छंद विचार 2. मतिराम रसराज, ललित ललाम, अलंकार पंचाशिका, वृत्तकौमुदी 3. राजा जसवंत सिंह भाषा भूषण 4. भिखारी दास काव्य निर्णय, श्रृंगार निर्णय 5. याकूब खाँ रस भूषण 6. रसिक सुमति अलंकार चन्द्रोदय 7. दूलह। कवि कुल कण्ठाभरण 8. देव शब्द रसायन, काव्य रसायन, भाव विलास, भवानी विलास, सुजान विनोद, सुख सागर तरंग 9. कुलपति मिश्र रस रहस्य 10. सुखदेव मिश्र रसार्णव 11. रसलीन रस प्रबोध 12. दलपति राय अलंकार लाकर 13. माखन छंद विलास 14. बिहारी बिहारी सतसई 15. रसनिधि रतनहजारा 16. घनानन्द सुजान हित प्रबंध, वियोग बेलि, इश्कलता, प्रीति पावस, पदावली 17. आलम आलम केलि 18. ठाकुर ठाकुर ठसक 19. बोधा विरह वारीश, इश्कनामा 20. द्विजदेव श्रृंगार बत्तीसी, श्रृंगार चालीसी, श्रृंगार लतिका 21. लाल कवि छत्र प्रकाश (प्रबंध)। 22. पद्माकर भट्ट हिम्मत बहादुर विरुदावली (प्रबंध) 23. सूदन सुजान चरित (प्रबंध) 24. खुमान लक्ष्मण शतक 25. जोधराज हमीर रासो 26. भूषण शिवराज भूषण, शिवा बावनी, छत्रसाल दशक 27. वृन्द वृन्द सतसई 28. राम सहाय दास राम सतसई 29. दीन दयाल गिरि अन्योक्ति कल्पद्रुम 30. गिरिधर कविराय स्फुट छन्द ...

Kavitt class 12 bhawarth & Objective

Kavitt class 12 bhawarth & Objective , कवित्त का व्‍याख्‍या तथा भावार्थ Kavitt class 12 bhawarth & Objective | कवित्त का व्‍याख्‍या तथा भावार्थ कवित्त का व्‍याख्‍या तथा भावार्थ: इस पोस्‍ट में कक्षा 12 हिंदी पद्य भाग के पाठ पाँच ‘छप्‍पय ( Kavitt class 12 bhawarth & Objective)’ के सम्‍पूर्ण व्‍याख्‍या को पढ़ेंगे। जिसके लेखक भूषण हैं। कवित्त का व्‍याख्‍या तथा भावार्थ | Kavitt class 12 bhawarth & Objective • कवित्त कवि– भूषण लेखक-परिचय जीवनकाल : (1613-1715) जन्मस्थान : टिकवापुर, कानपुर, उत्तरप्रदेश पिता : रत्नाकर त्रिपाठी उपनाम : कवि भूषण (चित्रकूट के सोलंकी राजा रुद्रसाह द्वारा इन्‍हें‘कवि भूषण’ की उपाधि‍ प्राप्‍त) आश्रयदाता : छत्रपति शिवाजी, शिवाजी के पुत्र शाहजी और पन्ना के बुंदेला राजा छत्रसाल विशेष : रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि चिंतामणि त्रिपाठी और मतिराम भूषण के भाई के भाई के रूप में जाने जाते हैं। कृतियाँ : शिवराज भूषण, शिवा बावनी, छत्रसाल दशक, भूषण हजारा, भूषण उल्लास, दूषण उल्लास आदि। यह रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि हैं इनका हिंदी जनता में बहुत सम्मान है। यह एक वीर रस के कवि हैं। कवित्त ( 1) इन्द्र जिमि जंभ पर बाड़व ज्यौं अंभ पर , रावन सदंभ पर रघुकुल राज है | प्रस्तुत पंक्तियाँ में कवि भूषण शिवाजी के शौर्य का बखान करते हुएकहते हैं कि शिवाजी का मलेच्छ पर उसी प्रकार राज है जिस प्रकार इंद्र का यम पर, समुन्द्र की अग्नि का पानी पर और राम का दंभ से भरे रावण पर है। इन पंक्तियों में भूषण ने शिवाजी के शौर्य की तुलना इंद्र समुन्द्र, अग्नि और राम के साथ की है। पौन बारिबाह पर संभु रतिनाह पर , ज्यौं सहस्रबाहू पर राम द्विज राज है | प्रस्तत पंक्तियाँ में कवि भूषण शिवाजी के शौर्य का बखान करते ...

रीतिकाल

रीतिकाल रीतिकाल का सामान्य परिचय – [1643 ई.-1843 ई. ] रीति से विद्वानों का तात्पर्य पद्धति ,शैली तथा काव्यांग निरूपण से है | रीतिकाल को श्रृंगार काल, अलंकृत काल आदि नामों से जाना जाता है | इस काल का नाम “रीतिकाल”रखने का श्रेय आचार्य रामचंद्र शुक्ल को है | यद्यपि शुक्ल जी ने रस या भाव की दृष्टि से श्रृंगार काल कहने की छूट दी है |आचार्य शुक्ल ने रीतिकाल का प्रवर्तक आचार्य चिंतामणि को माना है | विभिन्न विद्वानों ने रीतिकाल को श्रृंगार काल ,अलंकृत काल ,रीतिकाव्य ,कलाकाव्यआदि नामों से उद्बोधन करते है | प्रत्येक काल के पीछे विद्वानों द्वारा काव्य प्रवृत्तियों एवं उस समय की सामाजिक ,राजनीतिक ,साहित्यिक परिस्थितियों को ध्यान में रख कर दिया गया है | सामान्यतया इस काल के कवि अधिकतर राजदरबारों में रहा करते थे | अत: वे कवि अपने आश्रयदाता को प्रसन्न करने के लिये उनके विचारों के अनुरूप कविता पाठ करते थे | श्रृंगार परक रचनाओं की अधिकता थी| इसी काल में इस धारा के विपरित ऐसे कवि भी हुये है जो स्वच्छंद विचारधारा से उन्मुख होकर कविता पाठ करते थे | ऐसे कवियों की श्रेणी में आलम ,बोधा ,ठाकुर ,घनानंद आदि को रखा जा सकता है | एक बात स्पष्ट है कि इस काल को देखा जाय तो अलंकार की दृष्टिसे कविता उत्कृष्ट ऊचाईं पर पहुची है| कवियों की चमत्कार प्रवृत्ति के कारण काव्य में उत्तरोत्तर निखार आता गया | अलंकारों एवं छंदों का काव्य में विभिन्न प्रकार से प्रयोग होने लगे | “ रामचंद्रिका” में तो छंदों की विविधता इस सीमा तक पहुँच गई कि विद्वानों ने इसे “ छंदों का अज़ायबघर” तक कह दिया | हिंदी साहित्य को कलापक्ष की दृष्टि से देखा जाय तो इस काल के कवियों ने अपना उत्कृष्ट योगदान देकर हिंदी साहित्य को नई पहचान दी है | री...

उत्तर मध्यकाल (संवत् 1700

प्रकरण 1 (सामान्य परिचय) • चरखारी के मोहनलाल मिश्र ने ‘श्रृंगारसागर’, नामक एक ग्रंथ श्रृंगारसंबंधी लिखा। नरहरि कवि के साथी करनेस कवि ने 'कर्णाभरण',श्रुतिभूषण' और 'भूपभूषण'नामक तीन ग्रंथ अलंकार संबंधी लिखे। • हिन्दी में रीतिग्रंथों की अविरल और अखंडित परंपरा का प्रवाह केशव की ‘कविप्रिया’ के प्राय: 50 वर्ष पीछे चला। • हिन्दी रीतिग्रंथों की परंपरा चिंतामणि त्रिपाठी से चली, अत: रीतिकाल का आरंभ उन्हीं से मानना चाहिए। • हिंदी में लक्षणग्रंथ की परिपाटी पर रचना करने वाले जो सैकड़ों कवि हुए हैं वे आचार्य की कोटि में नहीं आ सकते।वे वास्तव में कवि ही थे। • हिन्दी के अलंकारग्रंथ अधिकतर ‘चंद्रालोक’ और ‘कुवलयानंद’के अनुसार निर्मित हुए। • हिन्दी में लक्षणग्रंथ की परिपाटी पर रचना करने वाले जो सैकड़ों कवि हुए हैं वे आचार्य की कोटि में नहीं आ सकते। • केशवदास ने रूपक के तीन भेद दंडी से लिए, अद्भुत रूपक, विरुद्ध रूपक और रूपक रूपक। • महाराजा जयवंत सिंह ने अपने ‘भाषाभूषण’ की रचना ‘चंद्रालोक’ के आधार पर की,पर उसके अलंकार की अनिवार्यता वाले सिद्धांत का समावेश नहीं किया। • भूषण अच्छे कवि थे। जिस रस को उन्होंने लिया उसका पूरा आवेश उनमें था, पर भाषा उनकी अनेक स्थलों पर सदोष है। • सूरदास की भाषा में यत्र-तत्र पूरबी प्रयोग, जैसे-मोर, हमार, कीन,अस, जस इत्यादि,बराबर मिलते हैं। • रीतिकाल के कवियों के प्रिय छंद कवित्त और सवैये ही रहे। • वास्तव में श्रृंगार और वीर इन्हीं दो रसों की कविता इस काल में हुई। प्रधानता श्रृंगार की ही रही। इससे इस काल को रस के विचार से कोई श्रृंगारकाल कहे तो कह सकता है। • रीतिग्रंथों का विकास अधिकतर अवध में हुआ। • इसमें संदेह नहीं कि काव्यरीति का सम्यक समावेश पहले-पहल आचार्य केशव ने ...

भूषण

जीवन परिचय भूषण वीर रस के कवि थे। हिन्दी रीति काल के अन्तर्गत, उसकी परम्परा का अनुसरण करते हुए वीर-काव्य तथा वीर-रस की रचना करने वाले प्रसिद्ध कवि हैं। इन्होंने शिवराज-भूषण में अपना परचिय देते हुए लिखा है कि ये कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। इनका गोत्र कश्यप था। ये ‘रत्नाकर त्रिपाठी’ के पुत्र थे तथा यमुना के किनारे त्रिविक्रमपुर (तिकवाँपुर) में रहते थे, जहाँ बीरबल का जन्म हुआ था और जहाँ विश्वेश्वर के तुल्य देव-बिहारीश्वर महादेव हैं। चित्रकूटपति हृदयराम के पुत्र रुद्र सुलंकी ने इन्हें ‘भूषण’ की उपाधि से विभूषित किया था। तिकवाँपुर कानपुर ज़िले की घाटमपुर तहसील में यमुना के बाएँ किनारे पर अवस्थित है। शिवसिंह संगर ने भूषण का जन्म 1681 ई. और ग्रियर्सन ने 1603 ई. लिखा है। कुछ विद्वानों के मतानुसार भूषण शिवाजी के पौत्र साहू के दरबारी कवि थे। कहने की आवश्यकता नहीं है कि उन विद्वानों का यह मत भ्रान्तिपूर्ण है। वस्तुत: भूषण शिवाजी के ही समकालीन एवं आश्रित थे। भूषण छत्रपति शिवाजी और पन्ना के राजा छत्रसाल बुंदेला के आश्रय में रहने वाले ऐसे रीतिकालीन कवि हैं जिन्होंने वीर रस की कविताएं लिखकर अपूर्व ख्याति अर्जित की है। इनका जन्मकाल।1613 ई० में माना गया है। भूषण के विषय में कहा जाता है कि उनकी पालकी में स्वयं महाराज छत्रसाल में अपना कंधा लगाया था।भूषण ने जिन दो नायकों को अपने वीरकाव्य का विषय बनाया है, वे अन्याय-दमन में तत्पर हिंदू धर्म के संरक्षक, दो इतिहास प्रसिद्ध वीर महाराज शिवाजी एवं छत्रसाल बुंदेला थे। अतः उनके द्वारा वर्णित प्रशस्तियां रीतिकाल के अन्य कवियों जैसी झूठी खुशामद नहीं थी। तभी तो भूषण के उद्धार सारी जनता के हृदय की संपत्ति बन गई। आचार्य शुक्ल के अनुसार- इन दो वीरों का जिस उत्...

आइये मिलते है वीर रस के कुछ श्रेष्ठ कवियों से व पढ़ते हैं रक्त शिराओं में अग्नि प्रज्वलित कर देने वाली उनकी वीर रस की कविताएं

[Kavishala Labs] हिंदी साहित्य व्यापक और समृद्ध है. साहित्य की विभिन्न शाखाएं समाज को राह दिखाने का कार्य करती हैं. साहित्य की इन विधाओं में काव्य साहित्य का विशेष महत्व है. कविता की विशेषता है कि बड़ी ही सरलता से किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेती है. प्रारम्भ से ही कविता ने मानव मन को संबल देने का कार्य किया है. स्थिति चाहे प्रेम की हो, विरह की हो, वेदना की हो या फिर आनंद की. कविता ने सदैव मानव मन को सम्मोहित किया है. हिंदी कविता न केवल मानव मन को आकर्षित व सम्मोहित करती है बल्कि उसमे नई चेतना और ऊर्जा भरने का कार्य भी करती है. जब स्थिति प्रतिकूल हो, निराशा व पराजय की शंका मन में भरी हो तो ऐसे समय में वीर रस की कविताएं न केवल मानव मन को संबल देती हैं बल्कि उसमे नई चेतना जाग्रत कर देती है. आइये मिलते है वीर रस के कुछ श्रेष्ठ कवियों से व पढ़ते हैं रक्त शिराओं में अग्नि प्रज्वलित कर देने वाली उनकी वीर रस की कविताएं. (१) भूषण (1613 -1705) रीतिकाल के तीन प्रमुख कवियों में से एक हैं.रीति काल में जब अन्य कवि शृंगार रस में रचना कर रहे थे, तब वीर रस में प्रमुखता से रचना कर भूषण ने खुद को सबसे अलग साबित किया. भूषण का वास्तविक नाम घनश्याम था. शिवराज भूषण ग्रंथ के निम्न दोहे के अनुसार 'भूषण' उनकी उपाधि है जो उन्हें चित्रकूट के राज हृदयराम के पुत्र रुद्रशाह ने दी थी - कुल सुलंकि चित्रकूट-पति साहस सील-समुद्र। कवि भूषण पदवी दई, हृदय राम सुत रुद्र॥ रीति युग था पर भूषण ने वीर रस में कविता रची. उनके काव्य की मूल संवेदना वीर-प्रशस्ति, जातीय गौरव तथा शौर्य वर्णन है. प्रस्तुत हैं उनकी वीर रस की कविताएं- [१] साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धरि सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है भूषण भनत नाद बिहद नगारन के...

रीति काल

इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर (जून 2015) स्रोत खोजें: · · · · सन् 1700 ई. के आस-पास रीतिकाव्य' कहा गया। इस काव्य की शृंगारी प्रवृत्तियों की पुरानी परंपरा के स्पष्ट संकेत इस काल में कई कवि ऐसे हुए हैं जो आचार्य भी थे और जिन्होंने विविध काव्यांगों के लक्षण देने वाले ग्रंथ भी लिखे। इस युग में श्रृंगार की प्रधानता रही। यह युग मुक्तक-रचना का युग रहा। मुख्यतया कवि राजाश्रित होते थे इसलिए इस युग की कविता अधिकतर दरबारी रही जिसके फलस्वरूप इसमें चमत्कारपूर्ण व्यंजना की विशेष मात्रा तो मिलती है परंतु कविता साधारण जनता से विमुख भी हो गई। रीतिकाल के अधिकांश कवि दरबारी थे। रीतिकाव्य रचना का आरंभ एक संस्कृतज्ञ ने किया। ये थे आचार्य परिचय [ ] रीतिकाल के कवि राजाओं और रईसों के आश्रय में रहते थे। वहाँ मनोरंजन और कलाविलास का वातावरण स्वाभाविक था। बौद्धिक आनंद का मुख्य साधन वहाँ उक्तिवैचित्रय समझा जाता था। ऐसे वातावरण में लिखा गया साहित्य अधिकतर शृंगारमूलक और कलावैचित्रय से युक्त था। पर इसी समय प्रेम के स्वच्छंद गायक भी हुए जिन्होंने प्रेम की गहराइयों का स्पर्श किया है। मात्रा और काव्यगुण दोनों ही दृष्टियों से इस समय का नर-नारी-प्रेम और सौंदर्य की मार्मिक व्यंजना करनेवाला काव्यसाहित्य महत्वपूर्ण है। इस समय वीरकाव्य भी लिखा गया। मुगल शासक रीतिकाव्य मुख्यत: मांसल इतिहास साक्षी है कि अपने पराभव काल में भी यह युग वैभव विकास का था। मुगल दरबार के हरम में पाँच-पाँच हजार रूपसियाँ रहती थीं। मीना बाज़ार लगते थे, सुरा-सुन्दरी का उन्मुक्त व्यापार होता था। डॉ॰ नगेन्द्र लिखते हैं- "वासना का सागर ऐसे प्रबल वेग से उमड़ रहा था कि शुद्धिवाद सम्राट के सभी ...

आइये मिलते है वीर रस के कुछ श्रेष्ठ कवियों से व पढ़ते हैं रक्त शिराओं में अग्नि प्रज्वलित कर देने वाली उनकी वीर रस की कविताएं

[Kavishala Labs] हिंदी साहित्य व्यापक और समृद्ध है. साहित्य की विभिन्न शाखाएं समाज को राह दिखाने का कार्य करती हैं. साहित्य की इन विधाओं में काव्य साहित्य का विशेष महत्व है. कविता की विशेषता है कि बड़ी ही सरलता से किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर लेती है. प्रारम्भ से ही कविता ने मानव मन को संबल देने का कार्य किया है. स्थिति चाहे प्रेम की हो, विरह की हो, वेदना की हो या फिर आनंद की. कविता ने सदैव मानव मन को सम्मोहित किया है. हिंदी कविता न केवल मानव मन को आकर्षित व सम्मोहित करती है बल्कि उसमे नई चेतना और ऊर्जा भरने का कार्य भी करती है. जब स्थिति प्रतिकूल हो, निराशा व पराजय की शंका मन में भरी हो तो ऐसे समय में वीर रस की कविताएं न केवल मानव मन को संबल देती हैं बल्कि उसमे नई चेतना जाग्रत कर देती है. आइये मिलते है वीर रस के कुछ श्रेष्ठ कवियों से व पढ़ते हैं रक्त शिराओं में अग्नि प्रज्वलित कर देने वाली उनकी वीर रस की कविताएं. (१) भूषण (1613 -1705) रीतिकाल के तीन प्रमुख कवियों में से एक हैं.रीति काल में जब अन्य कवि शृंगार रस में रचना कर रहे थे, तब वीर रस में प्रमुखता से रचना कर भूषण ने खुद को सबसे अलग साबित किया. भूषण का वास्तविक नाम घनश्याम था. शिवराज भूषण ग्रंथ के निम्न दोहे के अनुसार 'भूषण' उनकी उपाधि है जो उन्हें चित्रकूट के राज हृदयराम के पुत्र रुद्रशाह ने दी थी - कुल सुलंकि चित्रकूट-पति साहस सील-समुद्र। कवि भूषण पदवी दई, हृदय राम सुत रुद्र॥ रीति युग था पर भूषण ने वीर रस में कविता रची. उनके काव्य की मूल संवेदना वीर-प्रशस्ति, जातीय गौरव तथा शौर्य वर्णन है. प्रस्तुत हैं उनकी वीर रस की कविताएं- [१] साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धरि सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है भूषण भनत नाद बिहद नगारन के...

रीतिकाल के कवि और उनकी रचनाएँ

रीतिकाल की रचनाएं रीतिकाल के कवि रीतिकाल के प्रमुख कवि चिंतामणि, मतिराम, राजा जसवंत सिंह, भिखारी दास, याकूब खाँ, रसिक सुमति, दूलह, देव, कुलपति मिश्र, सुखदेव मिश्र, रसलीन, दलपति राय, माखन, बिहारी, रसनिधि, घनानन्द, आलम, ठाकुर, बोधा, द्विजदेव, लाल कवि, पद्माकर भट्ट, सूदन, खुमान, जोधराज, भूषण, वृन्द, राम सहाय दास, दीन दयाल गिरि, गिरिधर कविराय, गुरु गोविंद सिंह आदि हैं। रीतिकाल के कवि और उनकी रचनाएँ क्रम कवि (रचनाकर) रचनाएं (उत्तर-मध्यकालीन/रीतिकालीन रचना) 1. चिंतामणि कविकुल कल्पतरु, रस विलास, काव्य विवेक, शृंगार मंजरी, छंद विचार 2. मतिराम रसराज, ललित ललाम, अलंकार पंचाशिका, वृत्तकौमुदी 3. राजा जसवंत सिंह भाषा भूषण 4. भिखारी दास काव्य निर्णय, श्रृंगार निर्णय 5. याकूब खाँ रस भूषण 6. रसिक सुमति अलंकार चन्द्रोदय 7. दूलह। कवि कुल कण्ठाभरण 8. देव शब्द रसायन, काव्य रसायन, भाव विलास, भवानी विलास, सुजान विनोद, सुख सागर तरंग 9. कुलपति मिश्र रस रहस्य 10. सुखदेव मिश्र रसार्णव 11. रसलीन रस प्रबोध 12. दलपति राय अलंकार लाकर 13. माखन छंद विलास 14. बिहारी बिहारी सतसई 15. रसनिधि रतनहजारा 16. घनानन्द सुजान हित प्रबंध, वियोग बेलि, इश्कलता, प्रीति पावस, पदावली 17. आलम आलम केलि 18. ठाकुर ठाकुर ठसक 19. बोधा विरह वारीश, इश्कनामा 20. द्विजदेव श्रृंगार बत्तीसी, श्रृंगार चालीसी, श्रृंगार लतिका 21. लाल कवि छत्र प्रकाश (प्रबंध)। 22. पद्माकर भट्ट हिम्मत बहादुर विरुदावली (प्रबंध) 23. सूदन सुजान चरित (प्रबंध) 24. खुमान लक्ष्मण शतक 25. जोधराज हमीर रासो 26. भूषण शिवराज भूषण, शिवा बावनी, छत्रसाल दशक 27. वृन्द वृन्द सतसई 28. राम सहाय दास राम सतसई 29. दीन दयाल गिरि अन्योक्ति कल्पद्रुम 30. गिरिधर कविराय स्फुट छन्द ...

रीतिकाल

रीतिकाल रीतिकाल का सामान्य परिचय – [1643 ई.-1843 ई. ] रीति से विद्वानों का तात्पर्य पद्धति ,शैली तथा काव्यांग निरूपण से है | रीतिकाल को श्रृंगार काल, अलंकृत काल आदि नामों से जाना जाता है | इस काल का नाम “रीतिकाल”रखने का श्रेय आचार्य रामचंद्र शुक्ल को है | यद्यपि शुक्ल जी ने रस या भाव की दृष्टि से श्रृंगार काल कहने की छूट दी है |आचार्य शुक्ल ने रीतिकाल का प्रवर्तक आचार्य चिंतामणि को माना है | विभिन्न विद्वानों ने रीतिकाल को श्रृंगार काल ,अलंकृत काल ,रीतिकाव्य ,कलाकाव्यआदि नामों से उद्बोधन करते है | प्रत्येक काल के पीछे विद्वानों द्वारा काव्य प्रवृत्तियों एवं उस समय की सामाजिक ,राजनीतिक ,साहित्यिक परिस्थितियों को ध्यान में रख कर दिया गया है | सामान्यतया इस काल के कवि अधिकतर राजदरबारों में रहा करते थे | अत: वे कवि अपने आश्रयदाता को प्रसन्न करने के लिये उनके विचारों के अनुरूप कविता पाठ करते थे | श्रृंगार परक रचनाओं की अधिकता थी| इसी काल में इस धारा के विपरित ऐसे कवि भी हुये है जो स्वच्छंद विचारधारा से उन्मुख होकर कविता पाठ करते थे | ऐसे कवियों की श्रेणी में आलम ,बोधा ,ठाकुर ,घनानंद आदि को रखा जा सकता है | एक बात स्पष्ट है कि इस काल को देखा जाय तो अलंकार की दृष्टिसे कविता उत्कृष्ट ऊचाईं पर पहुची है| कवियों की चमत्कार प्रवृत्ति के कारण काव्य में उत्तरोत्तर निखार आता गया | अलंकारों एवं छंदों का काव्य में विभिन्न प्रकार से प्रयोग होने लगे | “ रामचंद्रिका” में तो छंदों की विविधता इस सीमा तक पहुँच गई कि विद्वानों ने इसे “ छंदों का अज़ायबघर” तक कह दिया | हिंदी साहित्य को कलापक्ष की दृष्टि से देखा जाय तो इस काल के कवियों ने अपना उत्कृष्ट योगदान देकर हिंदी साहित्य को नई पहचान दी है | री...