रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है

  1. हिंदी साहित्य का इतिहास नोट्स
  2. रीति काल
  3. MP Board Class
  4. रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है रीतिकाल के दो प्रवृतियां भी लिखिए
  5. रीतिकाल की प्रमुख विशेषता क्या है? – ElegantAnswer.com
  6. रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियां
  7. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र : रीतिकाल के मर्मज्ञ आचार्य
  8. रीतिकाल: नामकरण
  9. रीतिकाल को श्रृंगार काल किसने कहा है?


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हिंदी साहित्य का इतिहास नोट्स

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम Hindi Sahitya Ka Itihas टॉपिक का एक विस्तृत अध्ययन करेंगे , आज के इस लेख में हम हिंदी साहित्य का इतिहास , हिन्दी साहित्य का नामकरण , हिंदी साहित्य का काल विभाजन , आदिकाल , भक्ति काल , रीति काल , आधुनिक काल , हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की प्रमुख समस्याएं , हिन्दी साहित्य के प्रमुख कवि,लेखक और उनकी रचनाएँ , आदि काल के प्रमुख कवि, लेखक और उनकी रचनाएँ , भक्तिकाल के प्रमुख कवि, लेखक और उनकी रचनाएँ , रीति काल के प्रमुख कवि, लेखक और उनकी रचनाएँ , आधुनिक काल के प्रमुख कवि, लेखक और उनकी रचनाएँ के बारे में पढ़ेंगे एवं अंत में हिंदी साहित्य का इतिहास Questions and Answers पर भी एक नजर डालेंगे 1.5 हिंदी साहित्य का इतिहास Questions and Answers | hindisahitya ka itihas Questions and Answers हिन्दी साहित्य का इतिहास विभिन्न लेखकों द्वारा वर्गीकृत किया गया जिनमें डॉ. नागेन्द्र ,आचार्य रामचंद्र शुक्ल,रामकुमार वर्मा एवं बाबू श्याम सुन्दर दास का नाम प्रमुखता से लिया जाता है | आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित, हिन्दी साहित्य का इतिहास सर्वाधिक प्रामाणिक माना जाता हैं दोस्तों लेख़ के अंत में आप हिंदी साहित्य का इतिहास नोट्स PDF DOWNLOAD कर सकते हैं तो चलिए दोस्तों शुरू करते हैं हिंदी साहित्य का इतिहास हिंदी साहित्य का इतिहास लिखने की सर्वप्रथम कोशिश एक फ्रेंच विद्वान् ने की जिनका नाम गार्सा द तासी था ,इनके फ्रेंच भाषा में लिखे ‘ इसवार द ला सितरेत्युर रहुई ए हिन्दुस्तानी‘ नामक ग्रन्थ में हिंदी तथा उर्दु भाषा के कवियों का वर्णन है, परन्तु इस प्रयास में काल विभाजन एवं उनका नामकरण नहीं किया गया है ,काल विभाजन एवं नामकरण के बारे में प्रयास करने का श्रेय जॉर्ज ग्ति...

रीति काल

रीतिकाल या मध्यकालीन साहित्य रीतिकाल साहित्य (Reetikaal Hindi Sahitya) का समयकाल 1650 ई० से 1850 ई० तक माना जाता है। नामांकरण की दृष्टि से उत्तर-मध्यकाल हिंदी साहित्य के इतिहास में विवादास्पद है। इसे मिश्र बंधु ने- ‘ अलंकृत काल‘, तथा रामचंद्र शुक्ल ने- ‘ रीतिकाल‘, और विश्वनाथ प्रसाद ने- ‘ श्रृंगार काल‘ कहा है। रीतिकाल के उदय के संबंध में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का मत है- इसका कारण जनता की रुचि नहीं, आश्रय दाताओं की रूचि थी, जिसके लिए वीरता और अकर्मण्यता का जीवन बहुत कम रह गया था। रीतिकालीन कविता में लक्ष्मण ग्रंथ, नायिका भेद, श्रृंगारिकता आदि की जो प्रवृतियां मिलती है उसकी परंपरा संस्कृत साहित्य से चली आ रही थी। हिंदी में “ रीति” या “ काव्यरीति” शब्द का प्रयोग काव्यशास्त्र के लिए हुआ था। इसलिए काव्यशास्त्रबद्ध सामान्य सृजनप्रवृत्ति और रीतिकाव्य” कहा गया। इस काव्य की शृंगारी प्रवृत्तियों की पुरानी परंपरा के स्पष्ट संकेत आदिकाव्य तथा कृष्णकाव्य की शृंगारी प्रवृत्तियों में मिलते हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार संस्कृत के प्राचीन साहित्य विशेषता रामायण और महाभारत से यदि इस काल में कई कवि ऐसे हुए हैं जो आचार्य भी थे और जिन्होंने विविध काव्यांगों के लक्षण देने वाले ग्रंथ भी लिखे। इस युग में शृंगार रस की प्रधानता रही। यह युग मुक्तक-रचना का युग रहा। मुख्यतया कवित्त, सवैये और दोहे इस युग में लिखे गए। कवि राजाश्रित होते थे इसलिए इस युग की कविता अधिकतर दरबारी रही जिसके फलस्वरूप इसमें चमत्कारपूर्ण व्यंजना की विशेष मात्रा तो मिलती है परंतु कविता साधारण जनता से विमुख भी हो गई। रीतिकाल के कवियों का इतिहास रीतिकाल के अधिकांश कवि दरवारी थे अर्थात राजाओ के दरवार में अपनी कविता किया करते ...

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रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है रीतिकाल के दो प्रवृतियां भी लिखिए

Teacher Teacher 0:30 चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है तो रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है जिसका जवाब है रीतिकाल में जितने भी रे देवी देवताओं का ताल रहा है और इस काल में जितने भी कवि थे उन्होंने सभी देवी देवताओं के सिंगार का ही वर्णन अपनी कविता के माध्यम से किया है इसके लिए रीतिकाल को श्रृंगार काल कहा जाता है Romanized Version 23663 ऐसे और सवाल रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है... रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है तो रीतिकाल को श्रृंगार काल देवी-देवताओं कृष्ण और पढ़ें TeacherTeacher रीतिकाल को चरण काल किसने कहा?... डॉ कुमार वर्मा ने रीतिकाल के प्रमुख कृतियों और प्रवृत्तियों के आधार पर इसे चारण और पढ़ें Kamal Singh Bhadoriya रीतिकाल का प्रवर्तक किसे कहते हैं?... रीतिकाल के प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद हैं और पढ़ें Kuldeep KumarTeacher रीतिकाल को श्रृंगार काल किसने कहा था?... आचार्य विश्वनाथ प्रसाद ने रीतिकाल को श्रृंगार काल कहा था... और पढ़ें Vikram KumarPsychologist | Life Coach श्रृंगार काल को और किस-किस नामों से जाना जाता है?... श्रृंगार काल को रीति काल एवं वीरगाथा काल के नाम से भी जाना जाता है और पढ़ें Rabindra ThakurTeacher रीतिकाल के प्रतिनिधि कौन है?... 1780 के आसपास हिंदी कविता की में एक नया मोड़ आया काव्यशास्त्र वृद्ध सामान्य सर्जन... और पढ़ें Pushpa AdigaTeacher श्रृंगार काल को किन-किन नामों से जाना जाता है?... देखिए सिंगार काल जो है उस 1650 ईस्वी से लेकर 18 से 50 ईसवी तक और पढ़ें Gautam Kumar PandeyAthlete रीतिकाल की प्...

रीतिकाल की प्रमुख विशेषता क्या है? – ElegantAnswer.com

रीतिकाल की प्रमुख विशेषता क्या है? इसे सुनेंरोकेंरीतिकाल की प्रमुख विशेषता रीतिप्रधान रचनाएँ हैं। तत्कालीन कवियों ने भामह, दण्डी, मम्मट, विश्वनाथ आदि काव्याचार्यों के ग्रंथों का गहन अध्ययन करके हिंदी साहित्य को रीति ग्रंथ प्रदान किए। इन ग्रंथों में रस, अलंकरम ध्वनि आदि का विवेचन, लक्षण और उदाहरण शैली में किया गया है। रीतिकाल का क्या अर्थ है? इसे सुनेंरोकेंहिंदी साहित्य में सम्वत् 1700 से 1900 (वर्ष 1643ई. से 1843 ई. तक) का समय रीतिकाल के नाम से जाना जाता है । रस, अलंकार, गुण, ध्वनि और नायिका भेद आदि काव्यांगों के विवेचन करते हुए, इनके लक्षण बताते हुए रचे गए काव्य की प्रधानता के कारण इस काल को रीतिकाल कहा गया । रीति काव्य को दरबार काव्य क्यों कहा जाता है? इसे सुनेंरोकेंAnswer:रीतिकालीन काव्य को इसी दरबारी संस्कृति का काव्य बताया जाता है। रीतिकाव्य की श्रृंगारिकता में प्रेम की एकनिष्ठता न होकर विलास की रसिकता ही प्राय: मिलती है। और उसमें भी सूक्ष्म आंतरिकता की अपेक्षा स्थूल शारीरिकता का प्राधान्य है। रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि बिहारी,मतिराम, पदमाकर रसिक ही थे, प्रेमी नहीं। रीतिकाल की दो प्रवृतियां कौन सी है? इसे सुनेंरोकेंRitikal Ki Do Pramukh Pravritiyan Kaun Si Hain. रीतिकाल की रचना क्या है? इसे सुनेंरोकेंरीतिकाल के अधिकांश कवि दरबारी थे। रीतिकाव्य रचना का आरंभ एक संस्कृतज्ञ ने किया। ये थे आचार्य केशवदास, जिनकी सर्वप्रसिद्ध रचनाएँ कविप्रिया, रसिकप्रिया और रामचंद्रिका हैं। कविप्रिया में अलंकार और रसिकप्रिया में रस का सोदाहरण निरूपण है। रीतिकाल के प्रथम कवि कौन थे? इसे सुनेंरोकेंइसी कारण आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने चिंतामणि को रीतिकाल का प्रवर्तक माना है तथा केशव को रीतिकाल का प...

रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियां

रीतिकाल (1700 विक्रम से 1900 विक्रम संवत) • उत्तर मध्यकाल को ' रीतिकाल' कहा जाता है। • रीति का अर्थ है काव्य को पाठक/श्रोता द्वारा लिखना पढ़ना अथवा सुनने की विधि। • काव्य का अर्थ विश्वनाथ ने बताया— 'वाक्यम रसात्मक काव्यम्' • रीतिकाल का आरंभ सूरदास की 'साहित्य लहरी', कृपाराम की 'हित तरंगिणी' और नंद दास की 'रसमंजरी' को माना जाता है। रीतिकाल के अन्य नामकरण • अलंकृत — मिश्र बंधु • श्रृंगार काल — पंडित विश्वनाथ प्रसाद मिश्र • रीति श्रृंगार काल — डॉ. भागीरथ मिश्र • कला काल — डॉ. रमाशंकर शुक्ल 'रसाल' रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियां • श्रृंगारिकता मुख्य काव्य प्रवृत्ति • रीति की प्रधानता • प्रकृति के आलंबन की अपेक्षा उद्दीपन रूप को प्रमुखता • कला पक्ष मुख्य रूप से उजागर • प्रबंध एवं मुक्तक काव्य इसकी विशेषता • आलंकारिकता की प्रधानता • ब्रजभाषा का रीतिकालीन साहित्य में प्रयोग • लाक्षणिक ग्रंथों का निर्माण रीतिकाल के मुख्य संप्रदाय एवं प्रवर्तक • संप्रदायप्रवर्तक • रसआचार्य भरत मुनि • अलंकार : भामह और दंडी • रीति : आचार्य वामन • वक्रोक्ति : आचार्य कुंतक • ध्वनि :आनंद वर्धन • औचित्य :आचार्य महेंद्र रीतिकालीन कवि और उनकी प्रसिद्ध रचनाएं • केशवदास : रसिकप्रिया, कविप्रिया, रतनबावनी, वीरसिंह देव चरित, छंदमाला, नखशिख आदि। • मतिराम : फूलमंजरी, रसराज, ललित ललाम, अलंकार पंचाशिका, वृत कौमुदी। • बिहारी : बिहारी की रचना 'बिहारी सतसई' जिसमें 713 दोहे हैं। • भिखारी दास : रस सारांश, श्रृंगार निर्णय आदि • भूषण : छत्रसाल दशक, शिवराज भूषण, शिवा बावनी आदि • चिंतामणि त्रिपाठी : कविकुल कल्पतरु, काव्य विवेक आदि। • कुलपति मिश्र : रस रहस्य • कवि देव : भाव विलास, अष्टयाम, भवानी विलास, प्रेम तरंग, कुशल—विलास,...

विश्वनाथ प्रसाद मिश्र : रीतिकाल के मर्मज्ञ आचार्य

“हिंदी के आलोचक” शृंखला में कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर और हिन्दी विभागाध्यक्ष डा. अमरनाथ ने 50 से अधिक हिंदी-आलोचकों के अवदान को रेखांकित करते हुए उनकी आलोचना दृष्टि के विशिष्ट बिंदुओं को उद्घाटित किया है। इन आलोचकों पर यह अद्भुत सामग्री यहां प्रस्तुत है। इस शृंखला को आप यहां पढ़ सकते हैं। विश्वनाथ प्रसाद मिश्र काशी में जन्मे, वहीं पढ़े-लिखे और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में शिक्षक रहे आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र (01.04.1906- 12.07.1982) रीतिकाल के मर्मज्ञ विद्वान हैं. उन्होंने संपादन किया, आलोचनाएं लिखीं, अनुसंधान किया और अनेक ग्रंथों की टीकाएं भी लिखीं. ‘हिन्दी साहित्य का अतीत’, ‘हिन्दी का सामयिक साहित्य’, ‘वाड़्मय विमर्श’, ‘हिन्दी नाट्य साहित्य का विकास’, ‘बिहारी की वाग्विभूति’, ‘काव्यांगकौमुदी’ आदि उनकी मौलिक आलोचनात्मक पुस्तकें हैं. इसके अलावा उन्होंने ‘रसखानि’, ‘घनानंद ग्रंथावली’, ‘घनानंद कवित्त’, ‘पद्माकर ग्रंथावली’, ‘रसिकप्रिया’, ‘कवितावली’, ‘बिहारी’, ‘केशवदास’, ‘केशवदास ग्रंथावली’, ‘भिखारीदास ग्रंथावली’, ‘रामचरितमानस’ (काशिराज संस्करण), ‘भूषण ग्रंथावली’, ‘जगद्विनोद’, ‘पद्माभरण’, ‘सुदामाचरित’, ठाकुर ग्रंथावली, ‘सत्य हरिश्चंद्र नाटक’, ‘हम्म्रीर हठ’ आदि ग्रंथों का पाठ संपादन किया है और टीकाएं भी लिखी हैं. उनकी पुस्तक ‘वाड़्मय विमर्श’ को 1944 ई. में हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ कृति मानकर नागरी प्रचारिणी सभा काशी ने ‘आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी स्वर्ण पदक’ प्रदान किया था. आचार्य शुक्ल के असामयिक निधन के बाद उन्होंने आचार्य शुक्ल की पुस्तकों- ‘सूरदास’ और ‘रसमीमांसा’ का संपादन भी किया था. आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र मूलत: आचार्य रामचंद्र शुक्ल के शिष्य और उनकी प...

रीतिकाल: नामकरण

रीतिकाल: नामकरण हमारे साहित्य का मध्यकाल दो भागो में विभक्त है। भक्तिकाल और रीतिकाल मध्यकाल के दो हिस्से है। भक्तिकाल के आध्यात्यिक प्रेम की मिटती हुई छाया ने मानवीय प्रेम को प्रस्तावित किया। प्रेम और भक्ति की अद्वैत अनुभूति के बीच से प्रेम का संबंध श्रृंगारिक मनोवृत्ति से जुड़ता गया। रीतिकाल में साहित्य और दरबारी संस्कृति के बीच बड़ा गहरा संबंध है। इस काल के कवि अपने आश्रयदाता सामंतो के यहाँ रहते थे। उन्ही के मनोरंजन के लिए साहित्य रचना करते थे। कवि अब सहज अनुभूति की प्रेरणा से काव्य रचना नहीं करते थे। साहित्य कवियों के अर्थ प्राप्ति का साधन हो गया था। इस स्थिति में रीतिकाव्य में रसिकता और शास्त्रीयता का योग हुआ जो समांतो द्वारा पोषित थी और शास्त्र द्वारा रक्षित। इन कवियों के मानसिक गठन में किसी प्रकार का कोई द्वन्द्व नहीं मिलता है। उन्होनें जीवन के प्रश्न से अलग हटकर विशुद्ध कला के प्रश्नों को अपने साहित्य की बुनियाद में रखा। हिन्दी साहित्य के ‘‘उत्तरमध्यकाल’’ के नाम को लेकर विद्पानों में विवाद है। इस काल को नामांकित करने के लिए तीन चार नाम सुझाए गए हैं। रीतिकाल के लिए विभिन्न विद्वानों द्वारा सुझाएँ गए नाम निम्नवत् हैं - मिश्रबंधु - अलकृंत काल आचार्य रामचंद्र शुक्ल - रीतिकाल रामकुमार वर्मा - कलाकाल डॉ रसाल - काव्यकला काल आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र- श्रृंगार काल सर्वप्रथम ‘‘मिश्रबंधु बिनोद’’ ने उस काल को ‘‘अलकृंत काल’’ कहा। मिश्रबंधु के बाद आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने व्यवस्थित इतिहास अध्ययन और इतिहास दृष्टि के आधार पर उत्तर मध्यकाल को रीतिकाल नाम से संबोधित किया। शुक्ल जी के बाद के इतिहासकारों में रामकुमार वर्मा ने उस युग की संवेदना के मूल में कलात्मक गौरव को रेखांकित...

रीतिकाल को श्रृंगार काल किसने कहा है?

Explanation : रीतिकाल को श्रृंगार काल आचार्य विश्वनाथ मिश्र ने कहा है। जबकि मिश्र बंधुओं ने रीतिकाल को अलंकृत काल कहा है, आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रीतिकाल को रीतिकाल ही कहा है तथा रमाशंकर शुक्ल रसाल ने रीतिकाल को कलाकाल की संज्ञा प्रदान की है। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र की प्रमुख रचनाएं वाङ्मय विमर्श, हिन्दी का सामयिक साहित्य, बिहारी की वाग्विभूति, नीला कण्ठ उजले बोल, काव्यांग कौमुदी, गोसाईं तुलसीदास, केशव ग्रंथावली (सं.), रामचरितमानस (सं.) आदि है।