सामाजिक परिवर्तन के कारण एवं परिणाम

  1. सामाजिक परिवर्तन परिभाषा प्रक्रिया 3 रूप
  2. सामाजिक परिवर्तन का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, कारण/कारक
  3. # सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारक (कारण)
  4. 02: ग्रामीण तथा नगरीय समाज में सामाजिक परिवर्तन तथा सामाजिक व्यस्था / Samaj ka Bodh
  5. सामाजिक परिवर्तन क्या है इसकी विशेषताएं?
  6. सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया और सामाजिक परिवर्तन के कारक
  7. सामाजिक परिवर्तन क्या है? अर्थ, परिभाषा, प्रकार, विशेषताएं, कारण


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सामाजिक परिवर्तन परिभाषा प्रक्रिया 3 रूप

सामाजिक परिवर्तन- परिवर्तन प्रकृति का नियम है। परिवर्तन का आशय पूर्व की स्थिति या रहन सहन के ढंग में भिन्नता से है। प्रकृति के समान ही प्रत्येक सामाजिक परिवर्तन दो शब्दों से मिलकर बना है समाज और परिवर्तन। समाज का अर्थ केवल व्यक्तियों का समूह नहीं है, समूह में रहने वाले व्यक्तियों के आपस में जो संबंध है उस संबंध के संगठित रूप को समाज कहते हैं। साथ ही साथ परिवर्तन का अर्थ है बदलाव अर्थात पहले की स्थिति में बदलाव। समाज की पहले की स्थिति और आज की स्थिति में आने वाला अंतर या बदलाव ही परिवर्तन है जिसे सामाजिक परिवर्तन कहते हैं। जिस किसी भी समाज के जीवित होने का प्रमाण ही परिवर्तन है। अपरिवर्तित अथवा बगैर परिवर्तन के समाज का सामाजिक परिवर्तन परिभाषा Social Change के संबंध में समाज शास्त्रियों ने इसे निम्न प्रकार से परिभाषित किया है- सामाजिक संरचना तथा उसके कार्यों में होने वाले परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन कहते हैं। किंग्सले डेविस सामाजिक संरचना या संबंधों में होने वाले परिवर्तन को ही सामाजिक परिवर्तन कहते हैं। मैकाइवर एंड पेज सांस्कृतिक परिवर्तन ही सामाजिक परिवर्तन है क्योंकि संपूर्ण संस्कृति अपनी उत्पत्ति अर्थ तथा प्रयोग में सामाजिक हैं। डॉसन तथा गेटिस सामाजिक परिवर्तन को व्यक्ति के कार्य एवं विचार करने के तरीकों में उत्पन्न होने वाला परिवर्तन कह कर परिभाषित किया जा सकता है। जेन्सन उपर्युक्त परिभाषा ओं से यह स्पष्ट है कि सामाजिक परिवर्तन में निम्नांकित परिवर्तन नहीं होते हैं- सामाजिक परिवर्तन को एक विकासशील प्रक्रिया नहीं कहा जा सकता क्योंकि परिवर्तन कभी उन्नत की ओर हो सकता है। तो कभी अवनत की ओर तथा यह अनुकूल एवं प्रतिकूल स्थाई एवं अस्थाई भी हो सकता है। इस प्रकार अनेक प्रकार के...

सामाजिक परिवर्तन का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, कारण/कारक

Samajik parivartan arth paribhasha visheshta karan;सामाजिक परिवर्तन मे दो शब्द है-- प्रथम सामाजिक और दूसरा परिवर्तन। सामाजिक शब्द से आशय है-- समाज से सम्बंधित। मैकाइवर ने समाज को सामाजिक सम्बंधों का जाल बताया है। परिवर्तन शब्द का प्रयोग हम बहुधा करते है, किन्तु उसके अर्थ के प्रति बहुत सचेत नही होते। परिवर्तन का अर्थ है किसी वस्तु, चाहे वह भौतिक हो अथवा अभौतिक, मे समय के साथ भिन्नता उत्पन्न होना। भिन्नता वस्तु के बाहरी स्वरूप मे हो सकती है अथवा उसके आन्तरिक संगठन, बनावट या गुण मे। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। यह सर्वकालीन एवं सर्वव्यापी है। यह भौतिक एवं जैविक जगत मे हो सकता है अथवा सामाजिक एवं सांस्कृतिक जगत में। सामाजिक परिवर्तन समाज से सम्बंधित होता है। कुछ विद्वानों के विचार मे सामाजिक ढांचे मे होने वाला परिवर्तन, सामाजिक परिवर्तन कहलाता है। इसके विपरीत, अन्य विद्वान सामाजिक सम्बंधों के के अंतर को सामाजिक परिवर्तन कहते हैं। इस लेख हम सामाजिक परिवर्तन क्या हैं? सामाजिक परिवर्तन किसे कहते है? सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा, विशेषताएं एवं सामाजिक परिवर्तन के कारक या कारण जानेंगे। सामाजिक परिवर्तन के सम्बन्ध मे लैंडिस का कहना हैं कि " निश्चित अर्थों मे सामाजिक परिवर्तन से आश्य केवल उन परिवर्तनों से है जो समाज मे अर्थात् सामाजिक संबंधों के ढांचे और प्रकार्यों मे होते है। किंग्सले डेविस ने भी सामाजिक परिवर्तन को सामाजिक संगठन अर्थात् सामाजिक संरचना एवं प्रकार्यों मे परिवर्तन के रूप मे स्पष्ट किया है। सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा (samajik parivartan ki paribhasha) जाॅनसन के अनुसार " अपने मौलिक अर्थ मे, सामाजिक परिवर्तन का तात्पर्य होता है सामाजिक संरचना मे परिवर्तन।" गिलन और गिलिन ...

# सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारक (कारण)

Table of Contents • • • • • • • • • • • • सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारक (कारण) किसी भी समाज में परिवर्तन बिना कारण के नहीं होता बल्कि सामाजिक परिवर्तन के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है, यह कारण एक न होकर अनेक होते हैं। इन्हीं एक या अनेक कारणों से सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया निरन्तर क्रियाशील रहती है। सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारण/कारक सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न कारकों में कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं – (1) प्राकृतिक या भौगोलिक कारक – समाज के तथ्यों में प्राकृतिक और भौगोलिक कारकों के प्रभाव से भी परिवर्तन होता है अर्थात् सामाजिक परिवर्तन प्राकृतिक घटनाओं और भौगोलिक दशाओं के फलस्वरूप भी होता है। यद्यपि मानव निरन्तर प्रयत्नशील रहता है कि प्रकृति पर नियन्त्रण करे किन्तु ज्ञान-विज्ञान की उत्तरोत्तर वृद्धि होने के पश्चात् भी मानव प्राकृतिक एवं भौगोलिक घटनाओं पर पूर्ण नियन्त्रण नहीं कर पाया। फलस्वरूप प्राकृतिक घटनाएँ और भौगोलिक दशाएँ अपने विकराल स्वरूप और क्रूर घटनाओं के द्वारा मानवीय समाज की विभिन्न योजनाओं को धूल-धूसरित करके समाज को परिवर्तित करती रहती हैं। इतिहास इस बात का प्रमाण है कि जिस प्रकार से भौगोलिक पर्यावरण और भौतिक तत्त्वों द्वारा मानव का रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, आचार-विचार, आदर्श प्रतिमान तथा सामाजिक समिति और संस्थाओं की संरचना निश्चित होती है, उसी प्रकार इन भौगोलिक पर्यावरण और भौतिक तत्त्वों के विकराल स्वरुप और रौद्र प्रकृति के फलस्वरुप एक क्षण में सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों में परिवर्तित हो जाते हैं। ऋतु परिवर्तन, अत्यधिक जल वृष्टि, अनावश्यक वृष्टि, तूफान, भूकम्प, दुर्भिक्ष, अकाल, महामारी, बाढ़ आदि भयंकर प्रकृति और भौगोलिक घटनाओं के कारण सामाजिक...

02: ग्रामीण तथा नगरीय समाज में सामाजिक परिवर्तन तथा सामाजिक व्यस्था / Samaj ka Bodh

एेसा अकसर कहा जाता है कि परिवर्तन ही समाज का अपिरवर्तनीय पक्ष है। आधुनिक समाज में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को यह याद दिलाने की आवश्यकता नहीं होती कि परिवर्तन हमारे समाज की ए क विशिष्ट पहचान है। वास्तव में, समाजशास्त्र का एक विष य के रूप में उद्भव, सत्रहवीं से उन्नीसवीं सदी के मध्य पश्चिमी यूरोपीय समाज में तीव्र गति से बदलते परिवेश को समझने के प्रयास में हुआ। सामाजिक परिवर्तन आधुनिक जीवन का एक आम तथा चिर-परिचित सत्य है। तुलनात्मक दृष्टिकोण से भी यह एक सर्वथा नवीन तथा हाल की सच्चाई है। यह अनुमान लगाया जाता है कि मानव जाति का पृथ्वी पर अस्तित्व तकरीबन 5,00,000 (पाँच लाख) वर्षों से है, परंतु उनकी सभ् यता का अस्तित्व मात्र 6,000 वर्षों से ही माना जाता रहा है। इन सभ्य माने जाने वाले वर्षों में, पिछले मात्र 400 वर्षों से ही हमने लगातार एवं तीव्र परिवर्तन देखे हैं। इन परिवर्तनशील वर्षों में भी, इसके परिवर्तन में तेज़ीमात्र पिछले 100 वर्षों में आई है। जिस गति से परिवर्तन होता है, वह चूँकि लगातार बढ़ता रहता है, शायद यह सही है कि पिछले सौ वर्षों में, सबसे अधिक परिवर्तन प्रथम पचास वर्षों की तुलना में अंतिम पचास वर्षों में हुए और आखिरी पचास वर्षों के अंतर्गत, पहले तीस वर्षों की तुलना में विश्व में परिवर्तन अंतिम बीस वर्षों में अधिक आया... मनुष्य के इतिहास का परिवर्तित चक्र पृथ्वी पर मनुष्य का अस्तित्व पचास लाख वर्षों से है। स्थायी जीवन की बुनियादी आवश्यकता कृषि , मात्र बारह हज़ार वर्ष प्राचीन है। सभ्यता छह हज़ार वर्षाें से अधिक प्राचीन नहीं है। यदि हम मनुष्य के संपूर्ण अस्तित्व को एक दिन मान लें (अर्द्धरात्रि से अर्द्धरात्रि तक) तो कृषि 11:56 मिनट तथा सभ्यता 11:57 मिनट पर अस्तित् व में आई...

सामाजिक परिवर्तन क्या है इसकी विशेषताएं?

5. डेविस (K. Davis) के अनुसार सामाजिक परिवर्तन का तात्पर्य सामाजिक संगठन अर्थात् समाज की संरचना एवं प्रकार्यों में परिवर्तन है। 6. एच0एम0 जॉनसन (H.M. Johnson) ने सामाजिक परिवर्तन को बहुत ही संक्षिप्त एवं अर्थपूर्ण शब्दों में स्पष्ट करते हुए बताया कि मूल अर्थों में सामाजिक परिवर्तन का अर्थ संरचनात्मक परिवर्तन है। सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएं • सामाजिक परिवर्तन एक विश्वव्यापी प्रक्रिया (Universal Process) है। अर्थात् सामाजिक परिवर्तन दुनिया के हर समाज में घटित होता है। दुनिया में ऐसा कोई भी समाज नजर नहीं आता, जो लम्बे समय तक स्थिर रहा हो या स्थिर है। यह संभव है कि परिवर्तन की रफ्तार कभी धीमी और कभी तीव्र हो, लेकिन परिवर्तन समाज में चलने वाली एक अनवरत प्रक्रिया है। • सामुदायिक परिवर्तन ही वस्तुत: सामाजिक परिवर्तन है। इस कथन का मतलब यह है कि सामाजिक परिवर्तन का नाता किसी विशेष व्यक्ति या समूह के विशेष भाग तक नहीं होता है। वे ही परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन कहे जाते हैं जिनका प्रभाव समस्त समाज में अनुभव किया जाता है। • सामाजिक परिवर्तन के विविध स्वरूप होते हैं। प्रत्येक समाज में सहयोग, समायोजन, संघर्ष या प्रतियोगिता की प्रक्रियाएँ चलती रहती हैं जिनसे सामाजिक परिवर्तन विभिन्न रूपों में प्रकट होता है। परिवर्तन कभी एकरेखीय (Unilinear) तो कभी बहुरेखीय (Multilinear) होता है। उसी तरह परिवर्तन कभी समस्यामूलक होता है तो कभी कल्याणकारी। परिवर्तन कभी चक्रीय होता है तो कभी उद्विकासीय। कभी-कभी सामाजिक परिवर्तन क्रांतिकारी भी हो सकता है। परिवर्तन कभी अल्प अवधि के लिए होता है तो कभी दीर्घकालीन। • सामाजिक परिवर्तन की गति असमान तथा सापेक्षिक (Irregular and Relative) होती है। समाज की विभिन्न इकाइ...

सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया और सामाजिक परिवर्तन के कारक

मनुष्य को इस धरती पर रहते हुए कोई 5 लाख से अधिक वर्ष हो गये है। कृषि और आवास उसके जीवन के साथ कोई 10-12 हजार वर्ष हजार वर्ष पहले जुड़े है। इतिहासकारों की अटकल है कि दुनिया में सभ्यता का सूत्रपात कोई 6 हजार वर्ष से अधिक पुराना नहीं हैं। आज जब सामाजिक परिवर्तन का मूल्याकंन किया जाता है तो इसे तकनीकी विकास के साथ जोड़ा जाता है। तकनीकी विकास कोयले और बिजली के बाद आज के सूचना युग में तीव्रतम हो गया है। कम्पयूटर सूचनाओं का संग्रहित करने का एक बहुत बड़ा यांत्रिक साधन है। इस वैज्ञानिक आयाम को ध्यान में रखते हुए सामाजिक परिवर्तन का सैद्धांतिक विश्लेषण किया जाना चाहिए। सामाजिक परिवर्तन की सैद्धांतिकव्याख्या पहले समाजशास्त्र के जनक विचारकों ने की थी। शायद सबसे पहले ई. 1893 में दुर्ख्ीम ने श्रम विभाजन की व्याख्या में सामाजिक परिवर्तन का उल्लेख किया था। दुख्र्ाीम ने पूर्व औद्योगिक समाज की तुलना औद्योगिकरण समाज से की। पूर्व औद्योगिकरण समाजों में सामाजिक स्तरीकरण किसी भी अर्थ में चौकने वाला नहीं था। औद्योगिक समाज में स्तरीकरण अधिक तीव्र हो गया। इस समाज में मानदण्ड एंव मूल्यों में भी परिवर्तन आ गया। दुख्र्ाीम की पदावली में पूर्व औद्योगिक समाज वस्तुत: यांत्रिक समाज थ्ज्ञा। जब इस समाज का उद्विकास सावयवी समाज में हुआ तक परिवर्तन की गति तीव्र हो गयी। इस परिवर्तन का मूल्याकंन दुख्र्ाीम ने किया है। औद्योगिकरण समाज में जो परिवर्तन देखने को मिलता है वह समानता पर आधारित नहीं है, विभिन्नता या स्तरीकरण पर आधारित है। कार्ल माक्र्स ने सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या और संदर्श में की है। उन्होंने कहा है कि सामाजिक परिवर्तन का कारण वर्ग संघर्ष हैं मेक्स वेबर भी सामाजिक परिवर्तक की व्याख्या वर्ग के संदर्श म...

सामाजिक परिवर्तन क्या है? अर्थ, परिभाषा, प्रकार, विशेषताएं, कारण

त्येक समाज में दो प्रकार की शक्तियाँ पाई जाती हैं—पहली, वे जोकि समाज में यथास्थिति बनाए रखना चाहती हैं तथा दूसरी, वे जोकि समाज को परिवर्तित करना चाहती हैं। दोनों में सामंजस्य होना समाज में निरन्तरता के लिए अनिवार्य है। लूमले (Lumley) का कथन है कि कई कारणों से सामाजिक परिवर्तन अवश्यम्भावी रहा है, और है। अठारहवीं एवं उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप के समाजों में हो रहे तीव्र परिवर्तनों के अध्ययन में प्रारम्भ से ही समाजशास्त्र में रुचि स्पष्टतः देखी जा सकती है। कॉम्ट (Comte), मार्क्स (Marx) तथा स्पेन्सर (Spencer) इत्यादि प्रारम्भिक विद्वानों की कृतियों में परिवर्तन के प्रति रुचि स्पष्ट दिखाई देती है। इतना ही नहीं, उन्नीसवीं शताब्दी में उदविकासवादी (Evolutionary) तथा ऐतिहासिक (Historical) दृष्टिकोणों का विकास परिवर्तन के अध्ययनों के परिणामस्वरूप ही विकसित हुआ है। परन्तु प्रारम्भिक विद्वानों के लेखों में सामाजिक परिवर्तन की अवधारणा का प्रयोग भिन्न शब्दों द्वारा किया गया है। सामाजिक परिवर्तन की आवधारणा परिवर्तन के अभाव में हमारी सामाजिक उपलब्धि, समाजीकरण, सामाजिक सीख तथा सामाजिक नियन्त्रण कुछ भी सम्भव नहीं है। निश्चित और निरन्तर परिवर्तन मानव समाज की विशेषता है। सामाजिक परिवर्तन का विरोध होता है क्योंकि समाज में रूढ़िवादी तत्त्व प्राचीनता से ही चिपटे रहना पसन्द करते हैं। स्त्री स्वतन्त्रता और समान अधिकार की भावना, स्त्रियों की शिक्षा, परदा प्रथा की समाप्ति, स्त्रियों का आत्म-निर्भर होना, दलितों, अन्त्यजों और निम्न जातियों की प्रगति आदि अनेक परिवर्तनों को आज भी समाज के कुछ तत्त्व स्वीकार नहीं कर पाते हैं तथापि इनमें परिवर्तन होता जा रहा है। सामाजिक परिवर्तन का अर्थ एवं परिभाषाएँ ‘परि...