Sangeet mein kitne swar hote hain

  1. संगीत शास्त्र परिचय
  2. हिंदी वर्णमाला में कितने स्वर और व्यंजन हैं?
  3. ग्राम
  4. संगीत शास्त्र परिचय
  5. हिंदी वर्णमाला में कितने स्वर और व्यंजन हैं?
  6. ग्राम
  7. संगीत शास्त्र परिचय
  8. हिंदी वर्णमाला में कितने स्वर और व्यंजन हैं?
  9. ग्राम
  10. हिंदी वर्णमाला में कितने स्वर और व्यंजन हैं?


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संगीत शास्त्र परिचय

संगीत शास्त्र परिचय भारतीय संगीत से, सम्पूर्ण भारतवर्ष की गायन वादन कला का बोध होता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत की 2 प्रणालियाँ हैं। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति अथवा कर्नाटक संगीत प्रणाली और दूसरी हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली, जो कि समुचे उत्तर भारतवर्ष मे प्रचलित है। दक्षिण भारतीय संगीत कलात्मक खूबियों से परिपूर्ण है। और उसमें जनता जनार्दन को आकर्षित करने की और समाज मे संगीत कला की मौलिक विधियों द्वारा कलात्मक संस्कार करने की क्षमता है। हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली के गायन वादन में, जन साधारण को कला की ओर आकर्षित करते हुए, भावना तथा रस का ऐसा स्त्रोत बहता है कि श्रोतृवर्ग स्वरसागर में डूब जाता है और न केवल मनोरन्जन होता है अपितु आत्मानन्द की अनुभूति भी होती है; जो कि योगीजन अपनी आत्मसमाधि मे लाभ करते हैं। आवाज अथवा ध्वनि विशेष को नाद कहते हैं। दो पदार्थों के परस्पर टकराने से नाद या आवाज उत्पन्न होती है। इसके दो भेद हैं - एक, जो नाद क्षणिक हो, लहर शून्य अथवा जड़ हो, तो वह आवाज संगीत के लिये अनुपयोगी तथा स्वर शून्य रहेगी। लेकिन दूसरे प्रकार की आवाज कुछ देर तक वायुमंडल पर अपना मधुर प्रभाव डालती है। वह सस्वर होने के कारण संगीत के लिये उपयोगी है। नाद के दो प्रकार हैं, अनहद नाद और लौकिक नाद। ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है जिसने संगीत रूपी दैवी शक्ति को न सुना हो। नदियों की मधुर कलकल ध्वनि, झरनों की झरझर, पक्षियों का कूजन किसने नहीं सुना है। प्रकृति प्रदत्त जो नाद लहरी उत्पन्न होती है, वह अनहद नाद का स्वरूप है जो कि प्रकृति की स्वाभाविक प्रक्रिया है। लेकिन जो नाद स्वर लहरी, दो वस्तुओं के परस्पर घर्षण से अथवा टकराने से पैदा होती है उसे लौकिक नाद कहते हैं। वातावरण पर अपने नाद को बिखेरने के ल...

हिंदी वर्णमाला में कितने स्वर और व्यंजन हैं?

3 Conclusion Points अब प्रश्न उठ रहा होगा कि सही मायने में व्यंजन एवं स्वर कितने होते हैं? प्रतिष्ठित भाषा वैज्ञानिक साहित्य विद इन सभी • स्वरों की संख्या – 11 आधुनिक हिंदी भाषा में अब स्वरों (vowels) की संख्या 11 है. अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ. • व्यंजनों की संख्या – 33 व्यंजनों (consonants)की संख्या 33 है – क ख ग घ ड़, च छ ज झ ञ, ट ठ ड ढ ण, त थ द ध न, प फ ब भ म, य र ल व, श ष स ह । • संयुक्त व्यंजनों की संख्या – 4 संयुक्त व्यंजनों यानी combined consonants की कुल संख्या 4 है – क्ष त्र ज्ञ श्र. • द्विगुण व्यंजनों की संख्या – 2 द्विगुण व्यंजनों (binary consonant) की कुल संख्या दो हैं – ड़ ढ़. • अनुस्वार यानि चंद्रबिंदु की संख्या – 1 अनुस्वार या चंद्रबिंदु को इस प्रकार से लिखा जाता है – अं (ं) या अँ (ँ). • विसर्ग की संख्या – 1 विसर्ग को इस प्रकार से लिखा जाता है – अः या (:). नन्हे बच्चों को वर्णमाला कैसे सिखाएं? हिंदी वर्णमाला सीखना बच्चों और वयस्कों के लिए समान रूप से एक चुनौतीपूर्ण लेकिन पुरस्कृत कार्य हो सकता है। बच्चों को वर्णमाला सिखाना भाषा सीखने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि ऐसा करते समय उन्हें मज़ा आए। यहां बच्चों को हिंदी वर्णमाला सिखाने के कुछ ऐसे तरीके दिए गए हैं जो आकर्षक और प्रभावी दोनों हैं। हिंदी वर्णमाला सिखाने का एक तरीका खेल-आधारित गतिविधियों जैसे मैचिंग गेम्स या पज़ल्स के माध्यम से है। उदाहरण के लिए, आप प्रत्येक अक्षर के चित्रों के साथ फ्लैशकार्ड बना सकते हैं और अपने बच्चे को उनकी संबंधित ध्वनि या प्रतीक के साथ उनका मिलान करने के लिए कह सकते हैं। आपको ऐसे ढेर सारे ऐप भी मिल सकते हैं जो प्रत्येक अक्षर के संवादात्मक, द...

ग्राम

ग्राम हमारा प्राचीन संगीत ग्राम शब्द से संबध्द रहा है। भरत ने केवल दो ग्रामो – षडज ग्राम और मध्यम ग्राम का वर्णन किया है और गांधार ग्राम को स्वर्ग ,में बताया है। मतंग ने भी तीसरे ग्राम का नाम तो लिया, किन्तु उसे स्वर्ग में बताया। उसके बाद के सरे लेखकों ने तीसरे की खोज की चेष्टा नहीं की और तीन ग्रामों का उल्लेख करते हुये गंधार ग्राम के लोप होने की बात ज्यों की त्यों मान लिया है। संगीत रत्नाकर ,संगीत मकरंद तथा अन्य कुछ ग्रंथों में गंधार ग्राम का थोड़ा – बहुत उल्लेख मिलता है कुछ विद्वानों का विचार है कि गंधार ग्राम वास्तव में निषाद ग्राम था ,जो निषाद से प्रारम्भ होता था। गंधार ग्राम के लोप होने का कारण नहीं बताया। केवल इतना ही कहा कि गान्धर्वों के साथ यह भी स्वर्ग में चला गया। अतः केवल दो ग्राम ही बचते हैं – षडज ग्राम और माध्यम ग्राम।पीछे हम देख चुके हैं कि ग्राम स्वरों का ऐसा समूह है जिससे मूर्छना की रचना होती है। यहाँ पर यह भी जानना आवश्यक है कि ग्राम के स्वर निष्चित श्रुत्यान्तरों पर स्थापित है। किसी एक स्वर को अपने स्थान से हटा देने से ग्राम का स्वरुप बिगड़ जाता है। अतः ग्राम की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है , निश्चित श्रुतियान्तरो पर स्थापित सात स्वरों के समूह को ग्राम कहते हैं। ये स्वर चतुश्तुश्चतुश्चैव दोहे के आधार पर बाईस श्रुतियों के अंतर्गत फैले हुये हैं। ग्राम से मूर्छना की रचना हुई। ग्राम शब्द का अर्थ व्यवस्थित स्वर समूह है , जिस प्रकार ग्राम या गांव घरों का व्यवस्थित समूह होता है , उसी प्रकार संगीत का विशिष्ष्ट स्वरों का समूह है। अन्य सशब्द में ,हम कह सकते हैं कि मूर्छना आदि को आश्रय देने वाले नियम स्वरों के समूह को ग्राम कहा जाता है। पंडित अहोबल के अनुसार ,निश...

संगीत शास्त्र परिचय

संगीत शास्त्र परिचय भारतीय संगीत से, सम्पूर्ण भारतवर्ष की गायन वादन कला का बोध होता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत की 2 प्रणालियाँ हैं। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति अथवा कर्नाटक संगीत प्रणाली और दूसरी हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली, जो कि समुचे उत्तर भारतवर्ष मे प्रचलित है। दक्षिण भारतीय संगीत कलात्मक खूबियों से परिपूर्ण है। और उसमें जनता जनार्दन को आकर्षित करने की और समाज मे संगीत कला की मौलिक विधियों द्वारा कलात्मक संस्कार करने की क्षमता है। हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली के गायन वादन में, जन साधारण को कला की ओर आकर्षित करते हुए, भावना तथा रस का ऐसा स्त्रोत बहता है कि श्रोतृवर्ग स्वरसागर में डूब जाता है और न केवल मनोरन्जन होता है अपितु आत्मानन्द की अनुभूति भी होती है; जो कि योगीजन अपनी आत्मसमाधि मे लाभ करते हैं। आवाज अथवा ध्वनि विशेष को नाद कहते हैं। दो पदार्थों के परस्पर टकराने से नाद या आवाज उत्पन्न होती है। इसके दो भेद हैं - एक, जो नाद क्षणिक हो, लहर शून्य अथवा जड़ हो, तो वह आवाज संगीत के लिये अनुपयोगी तथा स्वर शून्य रहेगी। लेकिन दूसरे प्रकार की आवाज कुछ देर तक वायुमंडल पर अपना मधुर प्रभाव डालती है। वह सस्वर होने के कारण संगीत के लिये उपयोगी है। नाद के दो प्रकार हैं, अनहद नाद और लौकिक नाद। ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है जिसने संगीत रूपी दैवी शक्ति को न सुना हो। नदियों की मधुर कलकल ध्वनि, झरनों की झरझर, पक्षियों का कूजन किसने नहीं सुना है। प्रकृति प्रदत्त जो नाद लहरी उत्पन्न होती है, वह अनहद नाद का स्वरूप है जो कि प्रकृति की स्वाभाविक प्रक्रिया है। लेकिन जो नाद स्वर लहरी, दो वस्तुओं के परस्पर घर्षण से अथवा टकराने से पैदा होती है उसे लौकिक नाद कहते हैं। वातावरण पर अपने नाद को बिखेरने के ल...

हिंदी वर्णमाला में कितने स्वर और व्यंजन हैं?

3 Conclusion Points अब प्रश्न उठ रहा होगा कि सही मायने में व्यंजन एवं स्वर कितने होते हैं? प्रतिष्ठित भाषा वैज्ञानिक साहित्य विद इन सभी • स्वरों की संख्या – 11 आधुनिक हिंदी भाषा में अब स्वरों (vowels) की संख्या 11 है. अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ. • व्यंजनों की संख्या – 33 व्यंजनों (consonants)की संख्या 33 है – क ख ग घ ड़, च छ ज झ ञ, ट ठ ड ढ ण, त थ द ध न, प फ ब भ म, य र ल व, श ष स ह । • संयुक्त व्यंजनों की संख्या – 4 संयुक्त व्यंजनों यानी combined consonants की कुल संख्या 4 है – क्ष त्र ज्ञ श्र. • द्विगुण व्यंजनों की संख्या – 2 द्विगुण व्यंजनों (binary consonant) की कुल संख्या दो हैं – ड़ ढ़. • अनुस्वार यानि चंद्रबिंदु की संख्या – 1 अनुस्वार या चंद्रबिंदु को इस प्रकार से लिखा जाता है – अं (ं) या अँ (ँ). • विसर्ग की संख्या – 1 विसर्ग को इस प्रकार से लिखा जाता है – अः या (:). नन्हे बच्चों को वर्णमाला कैसे सिखाएं? हिंदी वर्णमाला सीखना बच्चों और वयस्कों के लिए समान रूप से एक चुनौतीपूर्ण लेकिन पुरस्कृत कार्य हो सकता है। बच्चों को वर्णमाला सिखाना भाषा सीखने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि ऐसा करते समय उन्हें मज़ा आए। यहां बच्चों को हिंदी वर्णमाला सिखाने के कुछ ऐसे तरीके दिए गए हैं जो आकर्षक और प्रभावी दोनों हैं। हिंदी वर्णमाला सिखाने का एक तरीका खेल-आधारित गतिविधियों जैसे मैचिंग गेम्स या पज़ल्स के माध्यम से है। उदाहरण के लिए, आप प्रत्येक अक्षर के चित्रों के साथ फ्लैशकार्ड बना सकते हैं और अपने बच्चे को उनकी संबंधित ध्वनि या प्रतीक के साथ उनका मिलान करने के लिए कह सकते हैं। आपको ऐसे ढेर सारे ऐप भी मिल सकते हैं जो प्रत्येक अक्षर के संवादात्मक, द...

ग्राम

ग्राम हमारा प्राचीन संगीत ग्राम शब्द से संबध्द रहा है। भरत ने केवल दो ग्रामो – षडज ग्राम और मध्यम ग्राम का वर्णन किया है और गांधार ग्राम को स्वर्ग ,में बताया है। मतंग ने भी तीसरे ग्राम का नाम तो लिया, किन्तु उसे स्वर्ग में बताया। उसके बाद के सरे लेखकों ने तीसरे की खोज की चेष्टा नहीं की और तीन ग्रामों का उल्लेख करते हुये गंधार ग्राम के लोप होने की बात ज्यों की त्यों मान लिया है। संगीत रत्नाकर ,संगीत मकरंद तथा अन्य कुछ ग्रंथों में गंधार ग्राम का थोड़ा – बहुत उल्लेख मिलता है कुछ विद्वानों का विचार है कि गंधार ग्राम वास्तव में निषाद ग्राम था ,जो निषाद से प्रारम्भ होता था। गंधार ग्राम के लोप होने का कारण नहीं बताया। केवल इतना ही कहा कि गान्धर्वों के साथ यह भी स्वर्ग में चला गया। अतः केवल दो ग्राम ही बचते हैं – षडज ग्राम और माध्यम ग्राम।पीछे हम देख चुके हैं कि ग्राम स्वरों का ऐसा समूह है जिससे मूर्छना की रचना होती है। यहाँ पर यह भी जानना आवश्यक है कि ग्राम के स्वर निष्चित श्रुत्यान्तरों पर स्थापित है। किसी एक स्वर को अपने स्थान से हटा देने से ग्राम का स्वरुप बिगड़ जाता है। अतः ग्राम की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है , निश्चित श्रुतियान्तरो पर स्थापित सात स्वरों के समूह को ग्राम कहते हैं। ये स्वर चतुश्तुश्चतुश्चैव दोहे के आधार पर बाईस श्रुतियों के अंतर्गत फैले हुये हैं। ग्राम से मूर्छना की रचना हुई। ग्राम शब्द का अर्थ व्यवस्थित स्वर समूह है , जिस प्रकार ग्राम या गांव घरों का व्यवस्थित समूह होता है , उसी प्रकार संगीत का विशिष्ष्ट स्वरों का समूह है। अन्य सशब्द में ,हम कह सकते हैं कि मूर्छना आदि को आश्रय देने वाले नियम स्वरों के समूह को ग्राम कहा जाता है। पंडित अहोबल के अनुसार ,निश...

संगीत शास्त्र परिचय

संगीत शास्त्र परिचय भारतीय संगीत से, सम्पूर्ण भारतवर्ष की गायन वादन कला का बोध होता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत की 2 प्रणालियाँ हैं। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति अथवा कर्नाटक संगीत प्रणाली और दूसरी हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली, जो कि समुचे उत्तर भारतवर्ष मे प्रचलित है। दक्षिण भारतीय संगीत कलात्मक खूबियों से परिपूर्ण है। और उसमें जनता जनार्दन को आकर्षित करने की और समाज मे संगीत कला की मौलिक विधियों द्वारा कलात्मक संस्कार करने की क्षमता है। हिन्दुस्तानी संगीत प्रणाली के गायन वादन में, जन साधारण को कला की ओर आकर्षित करते हुए, भावना तथा रस का ऐसा स्त्रोत बहता है कि श्रोतृवर्ग स्वरसागर में डूब जाता है और न केवल मनोरन्जन होता है अपितु आत्मानन्द की अनुभूति भी होती है; जो कि योगीजन अपनी आत्मसमाधि मे लाभ करते हैं। आवाज अथवा ध्वनि विशेष को नाद कहते हैं। दो पदार्थों के परस्पर टकराने से नाद या आवाज उत्पन्न होती है। इसके दो भेद हैं - एक, जो नाद क्षणिक हो, लहर शून्य अथवा जड़ हो, तो वह आवाज संगीत के लिये अनुपयोगी तथा स्वर शून्य रहेगी। लेकिन दूसरे प्रकार की आवाज कुछ देर तक वायुमंडल पर अपना मधुर प्रभाव डालती है। वह सस्वर होने के कारण संगीत के लिये उपयोगी है। नाद के दो प्रकार हैं, अनहद नाद और लौकिक नाद। ऐसा कोई भी प्राणी नहीं है जिसने संगीत रूपी दैवी शक्ति को न सुना हो। नदियों की मधुर कलकल ध्वनि, झरनों की झरझर, पक्षियों का कूजन किसने नहीं सुना है। प्रकृति प्रदत्त जो नाद लहरी उत्पन्न होती है, वह अनहद नाद का स्वरूप है जो कि प्रकृति की स्वाभाविक प्रक्रिया है। लेकिन जो नाद स्वर लहरी, दो वस्तुओं के परस्पर घर्षण से अथवा टकराने से पैदा होती है उसे लौकिक नाद कहते हैं। वातावरण पर अपने नाद को बिखेरने के ल...

हिंदी वर्णमाला में कितने स्वर और व्यंजन हैं?

3 Conclusion Points अब प्रश्न उठ रहा होगा कि सही मायने में व्यंजन एवं स्वर कितने होते हैं? प्रतिष्ठित भाषा वैज्ञानिक साहित्य विद इन सभी • स्वरों की संख्या – 11 आधुनिक हिंदी भाषा में अब स्वरों (vowels) की संख्या 11 है. अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ. • व्यंजनों की संख्या – 33 व्यंजनों (consonants)की संख्या 33 है – क ख ग घ ड़, च छ ज झ ञ, ट ठ ड ढ ण, त थ द ध न, प फ ब भ म, य र ल व, श ष स ह । • संयुक्त व्यंजनों की संख्या – 4 संयुक्त व्यंजनों यानी combined consonants की कुल संख्या 4 है – क्ष त्र ज्ञ श्र. • द्विगुण व्यंजनों की संख्या – 2 द्विगुण व्यंजनों (binary consonant) की कुल संख्या दो हैं – ड़ ढ़. • अनुस्वार यानि चंद्रबिंदु की संख्या – 1 अनुस्वार या चंद्रबिंदु को इस प्रकार से लिखा जाता है – अं (ं) या अँ (ँ). • विसर्ग की संख्या – 1 विसर्ग को इस प्रकार से लिखा जाता है – अः या (:). नन्हे बच्चों को वर्णमाला कैसे सिखाएं? हिंदी वर्णमाला सीखना बच्चों और वयस्कों के लिए समान रूप से एक चुनौतीपूर्ण लेकिन पुरस्कृत कार्य हो सकता है। बच्चों को वर्णमाला सिखाना भाषा सीखने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि ऐसा करते समय उन्हें मज़ा आए। यहां बच्चों को हिंदी वर्णमाला सिखाने के कुछ ऐसे तरीके दिए गए हैं जो आकर्षक और प्रभावी दोनों हैं। हिंदी वर्णमाला सिखाने का एक तरीका खेल-आधारित गतिविधियों जैसे मैचिंग गेम्स या पज़ल्स के माध्यम से है। उदाहरण के लिए, आप प्रत्येक अक्षर के चित्रों के साथ फ्लैशकार्ड बना सकते हैं और अपने बच्चे को उनकी संबंधित ध्वनि या प्रतीक के साथ उनका मिलान करने के लिए कह सकते हैं। आपको ऐसे ढेर सारे ऐप भी मिल सकते हैं जो प्रत्येक अक्षर के संवादात्मक, द...

ग्राम

ग्राम हमारा प्राचीन संगीत ग्राम शब्द से संबध्द रहा है। भरत ने केवल दो ग्रामो – षडज ग्राम और मध्यम ग्राम का वर्णन किया है और गांधार ग्राम को स्वर्ग ,में बताया है। मतंग ने भी तीसरे ग्राम का नाम तो लिया, किन्तु उसे स्वर्ग में बताया। उसके बाद के सरे लेखकों ने तीसरे की खोज की चेष्टा नहीं की और तीन ग्रामों का उल्लेख करते हुये गंधार ग्राम के लोप होने की बात ज्यों की त्यों मान लिया है। संगीत रत्नाकर ,संगीत मकरंद तथा अन्य कुछ ग्रंथों में गंधार ग्राम का थोड़ा – बहुत उल्लेख मिलता है कुछ विद्वानों का विचार है कि गंधार ग्राम वास्तव में निषाद ग्राम था ,जो निषाद से प्रारम्भ होता था। गंधार ग्राम के लोप होने का कारण नहीं बताया। केवल इतना ही कहा कि गान्धर्वों के साथ यह भी स्वर्ग में चला गया। अतः केवल दो ग्राम ही बचते हैं – षडज ग्राम और माध्यम ग्राम।पीछे हम देख चुके हैं कि ग्राम स्वरों का ऐसा समूह है जिससे मूर्छना की रचना होती है। यहाँ पर यह भी जानना आवश्यक है कि ग्राम के स्वर निष्चित श्रुत्यान्तरों पर स्थापित है। किसी एक स्वर को अपने स्थान से हटा देने से ग्राम का स्वरुप बिगड़ जाता है। अतः ग्राम की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है , निश्चित श्रुतियान्तरो पर स्थापित सात स्वरों के समूह को ग्राम कहते हैं। ये स्वर चतुश्तुश्चतुश्चैव दोहे के आधार पर बाईस श्रुतियों के अंतर्गत फैले हुये हैं। ग्राम से मूर्छना की रचना हुई। ग्राम शब्द का अर्थ व्यवस्थित स्वर समूह है , जिस प्रकार ग्राम या गांव घरों का व्यवस्थित समूह होता है , उसी प्रकार संगीत का विशिष्ष्ट स्वरों का समूह है। अन्य सशब्द में ,हम कह सकते हैं कि मूर्छना आदि को आश्रय देने वाले नियम स्वरों के समूह को ग्राम कहा जाता है। पंडित अहोबल के अनुसार ,निश...

हिंदी वर्णमाला में कितने स्वर और व्यंजन हैं?

3 Conclusion Points अब प्रश्न उठ रहा होगा कि सही मायने में व्यंजन एवं स्वर कितने होते हैं? प्रतिष्ठित भाषा वैज्ञानिक साहित्य विद इन सभी • स्वरों की संख्या – 11 आधुनिक हिंदी भाषा में अब स्वरों (vowels) की संख्या 11 है. अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ. • व्यंजनों की संख्या – 33 व्यंजनों (consonants)की संख्या 33 है – क ख ग घ ड़, च छ ज झ ञ, ट ठ ड ढ ण, त थ द ध न, प फ ब भ म, य र ल व, श ष स ह । • संयुक्त व्यंजनों की संख्या – 4 संयुक्त व्यंजनों यानी combined consonants की कुल संख्या 4 है – क्ष त्र ज्ञ श्र. • द्विगुण व्यंजनों की संख्या – 2 द्विगुण व्यंजनों (binary consonant) की कुल संख्या दो हैं – ड़ ढ़. • अनुस्वार यानि चंद्रबिंदु की संख्या – 1 अनुस्वार या चंद्रबिंदु को इस प्रकार से लिखा जाता है – अं (ं) या अँ (ँ). • विसर्ग की संख्या – 1 विसर्ग को इस प्रकार से लिखा जाता है – अः या (:). नन्हे बच्चों को वर्णमाला कैसे सिखाएं? हिंदी वर्णमाला सीखना बच्चों और वयस्कों के लिए समान रूप से एक चुनौतीपूर्ण लेकिन पुरस्कृत कार्य हो सकता है। बच्चों को वर्णमाला सिखाना भाषा सीखने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि ऐसा करते समय उन्हें मज़ा आए। यहां बच्चों को हिंदी वर्णमाला सिखाने के कुछ ऐसे तरीके दिए गए हैं जो आकर्षक और प्रभावी दोनों हैं। हिंदी वर्णमाला सिखाने का एक तरीका खेल-आधारित गतिविधियों जैसे मैचिंग गेम्स या पज़ल्स के माध्यम से है। उदाहरण के लिए, आप प्रत्येक अक्षर के चित्रों के साथ फ्लैशकार्ड बना सकते हैं और अपने बच्चे को उनकी संबंधित ध्वनि या प्रतीक के साथ उनका मिलान करने के लिए कह सकते हैं। आपको ऐसे ढेर सारे ऐप भी मिल सकते हैं जो प्रत्येक अक्षर के संवादात्मक, द...