Sant namdev information in hindi

  1. 10 Lines on Sant Namdev in Hindi
  2. संत नामदेव की रचनाएँ व कविता Sant namdev ki rachnaye, poems in hindi
  3. भगवान की खोज ! Sant Namdev Prerak Prasang
  4. दोहे : संत नामदेव जी (हिन्दी कविता)
  5. Sant Namdev Biography Hindi
  6. संत नामदेव जी वाणी हिन्दी कविता
  7. अभंगवाणी : संत नामदेव जी (हिन्दी कविता)


Download: Sant namdev information in hindi
Size: 25.27 MB

10 Lines on Sant Namdev in Hindi

• संतनामदेव जी का जन्म नरसी बामणी महाराष्ट्र में 26 अक्टूबर 1270 को हुआ था। • संतनामदेवजीके पिता का नाम दामाशेट और माता का नाम गोणाई देवी था। • संतनामदेव जी ने विसोबा खेचर को परम गुरु के रूप में अपनाया था। • संतनामदेव जी का परिवार भगवान विट्ठल का परम भक्त था। • संतनामदेव जी का विवाह कल्याण निवासी राजाई (राधाबाई) के साथ हुआ था। • संतनामदेव जी वारकरी संप्रदायके एक प्रमुख संत माने जाते हैं। • संतनामदेव जी मानते थे कि आत्मा और परमात्मा में कोई अंतर नहीं है। • संतनामदेव जी ने मराठी, हिंदी और पंजाबी में काव्य रचना की। • पंजाब में सिक्ख समुदाय के लोग उन्हें नामदेव बाबा के नाम से जानते थे। • संतनामदेव जी की याद में सिक्खों द्वारा राजस्थान में मंदिर भी बनवाया गया है। • संतनामदेव जी की मृत्युजुलाई 1350 में 80 साल की उम्र में पंढरपुर में में हो गई। • आज भी संत नामदेव द्वारारचित गीत पूरे महाराष्ट्र में भक्ति भावके साथ गाए जाते हैं। https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhqlA7LDWatB1Ly2A1b_QeUBWd8uwqITaP1aPhV54DlU62TAu9dyQjVg5yOi-OLHbhlACID5Fs_RadT7DKKTTvTdYZNts4E0VxaUcB4EwH60kSIjEOmwj5E4BmOc1z4HEP3aicz60RCP760U8T31YJOkxX_VmQwriiVDEKQY-69lYOm3JiCT2ZWJm2Wrw/w400-h199/%E0%A4%B8%E0%A5%82%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%B8%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%2010%20%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0%20%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A4%82%E0%A4%A7.png https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhqlA7LDWatB1Ly2A1b_QeUBWd8uwqITaP1aPhV54DlU6...

संत नामदेव की रचनाएँ व कविता Sant namdev ki rachnaye, poems in hindi

Sant namdev ki rachnaye in hindi दोस्तों कैसे है आप सभी, आज हम पढने वाले है महान संत एवं कवि संत नामदेव जी की कुछ रचनाये.संत नामदेव जी का जन्म 1270 में महाराष्ट्र में हुआ था इनके पिता का नाम दमशेटी था जो सिलाई का कार्य करते थे. संत नामदेव जी ने अपने जीवन में जो रचनाये एवं कविताएं लिखी है वो वास्तव में काफी प्रसिद्ध है तो चलिए पढ़ते है इनकी रचनाओं को नीर बिहूणी नांव, कैसे तिरिबो केसवे अभि अंतरी काला रहे, बाहरी करे उजास नांम कहे हरी भजन बिन,निह्चे नरक निवास अभी अंतरी राता रहे, बाहरी रहे उदास नाम कहे में पाइयो,भाव भगती बिस्वास बालापन ते हरी भज्यो,जग तै रहे निरास नामदेव चन्दन भया सीतल सबद निवास पै पायो देवल फिरयो,भगती न आई तोहि साधन की सेवा करिहो नामदेव,जो मिलियो चाहे मोहि जेता अंतर भगत सू तेता हरी सू होई नाम कहे ता दास की मुक्ति कहा ते होई ढिग ढिग ढूंढें अंध ज्यू,चीन्हे नाही संत नाम कहे क्यों पाइए,बिन भागता भगवंत बिन चिन्हया नहीं पाइयो, कपट सरे नहीं काम नाम कहे निति पाइए,राम जनां तै राम नांम कहै रे प्रानीयां,नीदंन कूं कछू नांहि कौन भाँती हरी सेयिये, राम सबन ही मांही समझया घट्कूं यू बणे, इहु तो बात अगाधि सबहनी सूं निर्बैर्ता, पूजन कूं ऐ साध साह सिहाणों जीव मै, तुला चाहोडो प्यंड नाम कहे हरि नाम समि, तुले न सब ब्रह्मण्ड • sant namdev poems in hindi घर की नारी तिआगे अंधा पर नारी सिउ घाले धंधा जैसे सिम्बलू देखि सूआ बिगसाना अंत की बार मूआ लपटाना पापी का घरु अगने माहि जलत रहे मितवे कब नाहि हरी की भगति न देखे जाई मारगु छोड़ी अमारगी पाई मूलहू भूला आवे जाई अम्रितु डारी लादि बिखु खाई जिउ बेसवा के परे अखारा कापरू पहिरी करही सींगारा पूरे ताल निहाले सास वा के गले जम का है फास जा के मसतकि लिख...

भगवान की खोज ! Sant Namdev Prerak Prasang

एक बार संत नामदेव अपने शिष्यों को ज्ञान -भक्ति का प्रवचन दे रहे थे। तभी श्रोताओं में बैठे किसी शिष्य ने एक प्रश्न किया , ” गुरुवर , हमें बताया जाता है कि ईश्वर हर जगह मौजूद है , पर यदि ऐसा है तो वो हमें कभी दिखाई क्यों नहीं देता , हम कैसे मान लें कि वो सचमुच है , और यदि वो है तो हम उसे कैसे प्राप्त कर सकते हैं ?” नामदेव मुस्कुराये और एक शिष्य को एक लोटा पानी और थोड़ा सा नमक लाने का आदेश दिया। शिष्य तुरंत दोनों चीजें लेकर आ गया। वहां बैठे शिष्य सोच रहे थे कि भला इन चीजों का प्रश्न से क्या सम्बन्ध , तभी संत नामदेव ने पुनः उस शिष्य से कहा , ” पुत्र , तुम नमक को लोटे में डाल कर मिला दो। “ शिष्य ने ठीक वैसा ही किया। संत बोले , ” बताइये , क्या इस पानी में किसी को नमक दिखाई दे रहा है ?” सबने ‘नहीं ‘ में सिर हिला दिए। “ठीक है !, अब कोई ज़रा इसे चख कर देखे , क्या चखने पर नमक का स्वाद आ रहा है ?”, संत ने पुछा। “जी ” , एक शिष्य पानी चखते हुए बोला। “अच्छा , अब जरा इस पानी को कुछ देर उबालो।”, संत ने निर्देश दिया। कुछ देर तक पानी उबलता रहा और जब सारा पानी भाप बन कर उड़ गया , तो संत ने पुनः शिष्यों को लोटे में देखने को कहा और पुछा , ” क्या अब आपको इसमें कुछ दिखाई दे रहा है ?” “जी , हमें नमक के कण दिख रहे हैं।”, एक शिष्य बोला। संत मुस्कुराये और समझाते हुए बोले ,” जिस प्रकार तुम पानी में नमक का स्वाद तो अनुभव कर पाये पर उसे देख नहीं पाये उसी प्रकार इस जग में तुम्हे ईश्वर हर जगह दिखाई नहीं देता पर तुम उसे अनुभव कर सकते हो। और जिस तरह अग्नि के ताप से पानी भाप बन कर उड़ गया और नमक दिखाई देने लगा उसी प्रकार तुम भक्ति ,ध्यान और सत्कर्म द्वारा अपने विकारों का अंत कर भगवान को प्राप्त कर सकते हो।” ———...

दोहे : संत नामदेव जी (हिन्दी कविता)

अभिअंतर नहीं भाव, नाम कहै हरि नांव सूं । नीर बिहूणी नांव, कैसे तिरिबौ केसवे ॥१॥ अभि अंतरि काला रहै, बाहरि करै उजास । नांम कहै हरि भजन बिन, निहचै नरक निवास ॥२॥ अभि अंतरि राता रहै, बाहरि रहै उदास । नांम कहै मैं पाइयौ, भाव भगति बिसवास ॥३॥ बालापन तैं हरि भज्यौं, जग तैं रहे निरास । नांमदेव चंदन भया सीतल सबद निवास ॥४॥ पै पायौ देवल फिरयौ, भगति न आई तोहि । साधन की सेवा करीहौ नामदेव, जौ मिलियौ चाहे मोहि ॥५॥ जेता अंतर भगत सूं तेता हरि सूं होइ । नाम कहै ता दास की मुक्ति कहां तैं होइ ॥६॥ ढिग ढिग ढूंढै अंध ज्यूं, चीन्है नाहीं संत । नांम कहै क्यूं पाईये, बिन भगता भगवंत ॥७॥ बिन चीन्हया नहीं पाईयो, कपट सरै नहीं काम । नांम कहै निति पाईये, रांम जनां तैं राम ॥८॥ नांम कहै रे प्रानीयां, नीदंन कूं कछू नांहि । कौन भांति हरि सेईये, रांम सबन ही मांहि ॥९॥ समझ्या घटकूं यूं बणै, इहु तौ बात अगाधि । सबहनि सूं निरबैरता, पूजन कूं ऐ साध ॥१०॥ साह सिहाणौ जीव मैं, तुला चहोडो प्यंड । नाम कहै हरि नाम समि, तुलै न सब ब्रह्मंड ॥११॥ तन तौल्या तौ क्या भया, मन तोल्या नहि जाइ । सांच बिना सीझसि नहीं, नाम कहै समझाइ ॥१२॥ दान पुनि पासंग तुलै, अहंडै सब आचार । नाम कहै हरि नाम समि, तुलै न जग ब्यौहार ॥१३॥ • •

Sant Namdev Biography Hindi

1.3 मृत्यु नामदेव की जीवनी – Sant Namdev Biography Hindi जन्म Namdev का जन्म यात्रा संत ज्ञानदेव और दूसरे संतों के साथ उन्होने सारे देश का भ्रमण किया। वह पंजाब के गुरदासपुर ज़िला के गाँव घुमाण में बीस साल रहे। उन्होंने मराठी, हिंदी और पंजाबी में काव्य रचना की। उनकी वाणी गुरू ग्रंथ साहिब में भी दर्ज है। Sant Namdev ने भारत के बहुत से भागो की यात्रा कर अपनी कविताओ को लोगो तक पहुचाया है। मुश्किल समय में उन्होंने महाराष्ट्र के लोगो को एकता के सूत्र में बांधने का भी काम किया है। कहा जाता है की पंजाब के गुरदासपुर जिले के घुमन ग्राम में उन्होंने 20 साल से भी ज्यादा समय व्यतीत किया था। पंजाब में सिक्ख समुदाय के लोग उन्हें नामदेव बाबा के नाम से जानते थे। संत नामदेव में हिंदी भाषा में तक़रीबन 125 अभंगो की रचना की है। जिनमे से 61 अभंग को गुरु ग्रंथ साहिब (सिक्ख शास्त्र) में नामदेवजी की मुखबानी के नाम से शामिल किया गया है। पंजाब के शब्द कीर्तन और महाराष्ट्र के वारकरी कीर्तन में हमें बहुत से समानताये भी दिखाई देती है। पंजाब के घुमन में उनका शहीद स्मारक भी बनवाया गया है। उनकी याद में सिक्खों द्वारा राजस्थान में उनका मंदिर भी बनवाया गया है। 50 साल की उम्र के आस-पास संत नामदेव पंढरपुर में आकर बस चुके थे, जहाँ उनके आस-पास उनके भक्त होते थे। उनके अभंग काफी प्रसिद्ध बन चुके थे और लोग दूर-दूर से उनके कीर्तन सुनने के लिए आते थे। नामदेव के तक़रीबन 2500 अभंगो को नामदेव वाची गाथा में शामिल किया गया है। साथ ही इस किताब में लंबी आत्मकथात्मक कविता तीर्थावली को भी शामिल किया गया है, जिसमे नामदेव और संत ज्ञानेश्वर की यात्रा के बारे में बताया गया है। इस कविता ने उन्हें मराठी साहित्य का पहला आत्मजीवनी लेखक...

संत नामदेव जी वाणी हिन्दी कविता

संत नामदेव जी संत नामदेव जी (२९ अक्तूबर, १२७० –१३५०) का जन्म महाराष्ट्र के गाँव नरसी-वामनी में हुआ था । यह गाँव ज़िला सितारा में है और अब इसका नाम नरसी नामदेव है । उन के पिता जी का नाम दमशेटी और माता जी का नाम गोनाबाई था। उनके पिता जी छीपे थे जो कपड़ों की सिलाई का काम करते थे। उन्होंने ईश्वर की भक्ति और गृहस्थ जीवन की श्रेष्ठता पर ज़ोर दिया। संत ज्ञानदेव और दूसरे संतों के साथ आप ने सारे देश का भ्रमण किया। वह पंजाब के गुरदासपुर ज़िला के गाँव घुमाण में बीस साल रहे। उन्होंने मराठी, हिंदी और पंजाबी में काव्य रचना की। उन की वाणी गुरू ग्रंथ साहिब में भी दर्ज है।

अभंगवाणी : संत नामदेव जी (हिन्दी कविता)

राग टोडी 1 हरि नांव हीरा हरि नांव हीरा । हरि नांव लेत मिटै सब पीरा ॥टेक॥ हरि नांव जाती हरि नांव पांती । हरि नांव सकल जीवन मैं क्रांती ॥1॥ हरि नांव सकल सुषन की रासी । हरि नांव काटै जम की पासी ॥2॥ हरि नांव सकल भुवन ततसारा । हरि नांव नामदेव उतरे पारा ॥3॥ 2 रांम नांम षेती रांम नांम बारी । हमारै धन बाबा बनवारी ॥टेक॥ या धन की देषहु अधिकाई । तसकर हरै न लागै काई ॥1॥ दहदिसि राम रह्या भरपूरि । संतनि नीयरै साकत दूरि ॥2॥ नामदेव कहै मेरे क्रिसन सोई । कूंत मसाहति करै न कोई ॥3॥ 3 रांमसो धन ताको कहा अब थोरौ । अठ सिधि नव निधि करत निहोरौ ॥टेक॥ हरिन कसिब बधकरि अधपति देई । इंद्रकौ विभौ प्रहलाद न लेई ॥1॥ देव दानवं जाहि संपदा करि मानै । गोविंद सेवग ताहि आपदा करि जानै ॥2॥ अर्थ धरम काम की कहा मोषि मांगै । दास नांमदेव प्रेम भगति अंतरि जो जागै ॥3॥ 4 मंझा प्रांन तूं बीठला । पैडी अटकी हो बाबुला ॥टेक॥ कलि षोटी कुसमल कलिकाल । बंधन मोचउ श्री गोपाल ॥1॥ काटि नरांइण भौचे बंध । सम्रथ दिढकरि ओडौ कंध ॥2॥ नांमदेव नरांइण कीन्ही सार । चले परोहन उतरे पार ॥3॥ 5 रांम रमे रमि रांम संभारै । मैं बलि ताकी छिन न बिचारै ॥टेक॥ रांम रमे रमि दीजै तारी । वैकुंठनाथ मिलै बनवारी ॥1॥ रांम रमे रमि दीजै हेरी । लाज न कीजै पसुवां केरी ॥2॥ सरीर सभागा सो मोहि भावै । पारब्रह्म का जे गुन गावै ॥3॥ सरीर धरे की इहै बडाई । नांमदेव राम न बीसरि जाई ॥4॥ 6 रांम बोले राम बोले राम बिना को बोले रे भाई ॥टेक॥ ऐकल मींटी कुंजर चीटी भाजन रे बहु नाना । थावर जंगम कीट पतंगा, सब घटि रांम समाना ॥1॥ ऐकल चिता राहिले निता छूटे सब आसा । प्रणवत नांमा भये निहकामा तुम ठाकुर मैं दासा ॥2॥ 7 रांम सो नामा नाम सो रांमा । तुम साहिब मैं सेवग स्वामां ॥टेक॥ हरि सरवर जन तरं...