शनि देव

  1. शनि देव आरती
  2. Shani Dev: शनिवार को इन मंत्रों से कीजिए शनिदेव की पूजा, खुल जाएगा भाग्य
  3. शनि देव
  4. Shani Jayanti 2023 Katha Shani Dev Birth Story In Hindi Significance
  5. शनि (ज्योतिष)
  6. Mysterious story of fight between lord hanuman and shani dev
  7. Shani Katha Know Why People Offer Mustard Oil To Lord Shani Dev Mythology
  8. Mysterious story of fight between lord hanuman and shani dev
  9. शनि देव आरती
  10. Shani Katha Know Why People Offer Mustard Oil To Lord Shani Dev Mythology


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शनि देव आरती

शनि महाराजांना तेल, उडीद आणि रुईच्या फुलाचा हार अर्पण करून त्यांची मनोभावे पूजा करीत असतात. तसचं, शनि मंत्राचा जप केल्यानंतर त्यांची आरती केली जाते. मंदिरात पठन करण्यात येत असलेल्या शनि महाराज यांच्या आरतीला विशेष असे महत्व असून आपण नियमित त्यांचे पठन केले पाहिजे. मित्रांनो, आज आम्ही देखील या लेखाच्या माध्यमातून शनि महाराज यांच्या आरतीचे लिखाण केलं आहे. तरी आपण या लेखाचे महत्व समजून घेऊन नियमित आरतीचे पठन करावे. शनि देव आरती – Shani Dev Aarti Marathi Shani Dev Aarti जय जय श्री शनीदेवा | पद्मकर शिरी ठेवा आरती ओवाळतो | मनोभावे करुनी सेवा || धृ || सुर्यसुता शनिमूर्ती | तुझी अगाध कीर्ति एकमुखे काय वर्णू | शेषा न चले स्फुर्ती || जय || १ || नवग्रहांमाजी श्रेष्ठ | पराक्रम थोर तुझा ज्यावरी कृपा करिसी | होय रंकाचा राजा || जय || २ || विक्रमासारिखा हो | शककरता पुण्यराशी गर्व धरिता शिक्षा केली | बहु छळीयेले त्यासी || जय || ३ || शंकराच्या वरदाने | गर्व रावणाने केला साडेसाती येता त्यासी | समूळ नाशासी नेला || जय || ४ || प्रत्यक्ष गुरुनाथ | चमत्कार दावियेला नेऊनि शुळापाशी | पुन्हा सन्मान केला || जय || ५ || ऐसे गुण किती गाऊ | धणी न पुरे गातां कृपा करि दिनांवरी | महाराजा समर्था || जय || ६ || दोन्ही कर जोडनियां | रुक्मालीन सदा पायी प्रसाद हाची मागे | उदय काळ सौख्यदावी || जय || ७ || जय जय श्री शनीदेवा | पद्मकर शिरी ठेवा आरती ओवाळीतो | मनोभावे करुनी सेवा || शनि महाराज यांच्या बद्दल पौराणिक कथा – Shani Dev Story शनि महाराज यांची महिमा फार थोर असून भाविकांच्या कर्मानुसार ते त्यांना न्यायदान करीत असतात. तसचं, त्यांच्या जन्माबद्दल पुराणांमध्ये अनेक दंत कथा प्रचलित आहेत. त्यानुसार, शनि महाराज हे सू...

Shani Dev: शनिवार को इन मंत्रों से कीजिए शनिदेव की पूजा, खुल जाएगा भाग्य

• ऊँ श्रां श्रीं श्रूं शनैश्चाराय नमः। • ऊँ हलृशं शनिदेवाय नमः। • ऊँ एं हलृ श्रीं शनैश्चाराय नमः। • कोणस्थ पिंगलो बभ्रु: कृष्णो रौद्रोन्तको यम:। • सौरि: शनैश्चरो मंद: पिप्पलादेन संस्तुत:।। • शनि का तंत्रोक्त मंत्र- ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम: • ऊं कृष्णांगाय विद्महे रविपुत्राय धीमहि तन्न: सौरि: प्रचोदयात

शनि देव

शनि देव परिचय शनिदेव का जन्म ब्रह्म पुराण में शनि कथा बचपन से ही शनि भगवान शनि के अधिदेवता शनि के अधिदेवता प्रजापति ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि ग्रह यदि कहीं रोहिणी-शकट भेदन कर दे तो दंडाधिकारी सूर्य देव के कहने पर भगवान महत्त्वपूर्ण तथ्य शनि देव के विषय में यह कहा जाता है कि- • शनिदेव के कारण • शनिदेव के कारण • • शनिदेव के कारण • शनि के क्रोध के कारण • शनिदेव के कारण राजा • राजा शान्ति के उपाय इनकी शान्ति के लिये मृत्युंजय जप, नीलम-धारण तथा ब्राह्मण को तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, नीलम, काली गौ, जूता, कस्तूरी और सुवर्ण का दान देना चाहिये। जप का वैदिक मन्त्र इनके जप का वैदिक मन्त्र- ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्त्रवन्तु न:॥', पौराणिक मन्त्र पौराणिक मन्त्र- 'नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामी शनैश्चरम्॥' बीज मन्त्र बीज मन्त्र - 'ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:।' सामान्य मन्त्र सामान्य मन्त्र - 'ॐ शं शनैश्चराय नम:' है। इनमें से किसी एक का श्रद्धानुसार नित्य एक निश्चित संख्या में जप करना चाहिये। जप का समय सन्ध्या काल तथा कुल संख्या 23,000 होनी चाहिये। पन्ने की प्रगति अवस्था संबंधित लेख

Shani Jayanti 2023 Katha Shani Dev Birth Story In Hindi Significance

Shani Jayanti 2023: 19 मई 2023 को शनि जयंती का पर्व है. शनि की देव की कृपा पाने के लिए हिंदू धर्म में इस दिन का खास महत्व है. धार्मिक मान्यता है कि जो इस दिन शनि देव की भक्तिपूर्वक व्रतोपासना करते हैं वह पाप की ओर जाने से बच जाते हैं, जिससे शनि की दशा आने पर उन्हें कष्ट नहीं भोगना पड़ता. शनि देव की पूजा से जाने-अनजाने में किए पाप कर्मों के दोष से भी मुक्ति मिल जाती है. शनि देव सूर्य और माता छाया के पुत्र है लेकिन शनि देव और सूर्य एक दूसरे के विरोधी माने जाते हैं. शास्त्रों के अनुसार इसका संबंध शनि देव के जन्म से जुड़ा है. आइए जानते हैं शनि जयंती की कथा. शनि जयंती की कथा (Shani Jayanti Katha) स्कंदपुराण की कथा के अनुसार सूर्यकी शादी राजा दक्ष की पुत्री संज्ञा से हुई थी. संज्ञा सूर्य देव के तेज से परेशान हो चुकी थी. संज्ञा और सूर्य देव की तीन संतान हुई जिनका नामवैवस्वत मनु, यमुना और यमराज हैं. कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ रिश्ता निभाने की कोशिश की, लेकिन संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं. सूर्य देव के तेज को कम करने के लिए संज्ञा ने एक उपाय, सूर्य देव को इस की भनक न हो इसलिए जाने से पहले वह संतान के लालन-पालन और पति की सेवा के लिए उन्होंने तपोबल से अपनी हमशक्ल संवर्णा को उत्पन्न किया, जिसे छाया के नाम से जाना जाता है. सूर्य देव और छाया के पुत्र शनि का जन्म छाया को पारिवारिक जिम्मेदारी सौंपकर संज्ञा पिता दक्ष के घर चली गईं लेकिन पिता ने उनका इस कार्य का समर्थन नहीं किया और वापस उन्हें सूर्यलोक जाने को कहा, लेकिन संज्ञा नहीं मानी और वन में घोड़ी बनकर तपस्या करने लगी. वहीं छाया रूप होने के कारण सवर्णा को सूर्य देव के तेज से कोई परेशानी नहीं हुई और कुछ समय ब...

शनि (ज्योतिष)

अनुक्रम • 1 शनि देव का जन्म [3] • 2 पौराणिक संदर्भ • 3 खगोलीय विवरण • 4 ज्योतिष में शनि • 4.1 द्वादस भावों मे शनि • 4.2 प्रथम भाव मे शनि • 4.3 दूसरे भाव में शनि • 4.4 तीसरे भाव में शनि • 4.5 चौथे भाव मे शनि • 4.6 पंचम भाव का शनि • 4.7 षष्ठ भाव में शनि • 4.8 सप्तम भाव मे शनि • 4.9 अष्टम भाव में शनि • 4.10 नवम भाव का शनि • 4.11 दसम भाव का शनि • 4.12 ग्यारहवां शनि • 4.13 बारहवां शनि • 4.14 शनि की पहिचान • 5 अंकशास्त्र में शनि • 5.1 अंक आठ की ज्योतिषीय परिभाषा • 6 शनि के प्रति अन्य जानकारियां • 6.1 भारत में तीन चमत्कारिक शनि सिद्ध पीठ • 6.2 महाराष्ट्र का शिंगणापुर गांव का सिद्ध पीठ • 6.3 मध्यप्रदेश के ग्वालियर के पास शनिश्चरा मन्दिर • 6.4 उत्तर प्रदेश के कोशी के पास कौकिला वन में सिद्ध शनि देव का मन्दिर • 7 शनि की साढ़े साती • 8 शनि परमकल्याण की तरफ़ भेजता है • 9 काशी में शनिदेव ने तपस्या करने के बाद ग्रहत्व प्राप्त किया था • 10 शनि मंत्र [4] • 11 शनि बीज मन्त्र और अष्टोत्तरशतनामावली [5] • 12 शनि स्तोत्रम् [6] • 13 शनि चालीसा [7] • 14 शनि वज्रपिञ्जर-कवचम् [8] • 15 शनि संबंधी रोग [9] • 16 शनि यंत्र विधान [10] • 17 शनि संबंधी वस्तुएँ • 17.1 शनि की जुड़ी बूटियां • 17.2 शनि सम्बन्धी व्यापार और नौकरी • 17.3 शनि सम्बन्धी दान पुण्य • 17.4 शनि सम्बन्धी वस्तुओं की दानोपचार विधि • 17.5 शनि ग्रह के द्वारा परेशान करने का कारण • 18 बाहरी कड़ियाँ • 19 स्रोत • 20 इन्हें भी देखें शनि देव का जन्म [ ] धर्मग्रंथो के अनुसार सूर्य की पत्नी संज्ञा की छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ, जब शनि देव छाया के गर्भ में थे तब छाया भगवान शंकर की भक्ति में इतनी ध्यान मग्न थी की उसने अपने खाने पिने तक शुध न...

Mysterious story of fight between lord hanuman and shani dev

जानिए क्यों हनुमान जी ने की थी शनि देव की पिटाई शनि देव हमारे सौर मंडल के सबसे शक्तिशाली ग्रह हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि शनि देव की हनुमान जी ने पिटाई भी की थी. इसी घटना की वजह से शनिवार के दिन शनिदेव को सरसों का तेल भी चढ़ाया जाता है. आईए आपको बताते हैं क्या हुआ था शनिदेव और हनुमान जी के बीच. जानिए पूरी कहानी- सरसों तेल और शनि देव के बीच संबंध दरअसल इसके पीछे एक पौराणिक कथा बताई जाती है. जिसके अनुसार रामायण काल यानी त्रेता युग में शनि देव को अपने बल और पराक्रम पर अहंकार हो था. इस दौर में शनि देव ने हनुमान जी के बल और पराक्रम की प्रशंसा सुनी तो वे बजरंग बली से युद्ध करने के लिए निकल पड़े. लेकिन उस समय हनुमान जी अपने प्रभु श्रीराम की भक्‍ति में लीन थे. तभी अपने बल के घमंड में चूर शनिदेव आ पहुंचे और उन्‍होंने हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारना शुरु किया. रामभक्त हनुमान जी को शनिदेव के क्रोध और घमंड का कारण समझ आ चुका था इसलिए उन्‍होंने युद्ध को स्‍वीकार करने की बजाय उन्‍हें शांत करना उचित समझा। मजबूरी में किया बजरंग बली ने युद्ध लेकिन शनि देव माने नहीं और लगातार हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारते रहे. जिसके बाद मजबूर होकर हनुमान जी को युद्ध करने के लिए आगे आना ही पड़ा. शनिदेव और बजरंग बली के बीच घमासान युद्ध हुआ. स्वयं शिव के अंशावतार और श्रीहरि के अवतार राम जी के भक्त हनुमान के आगे भला कौन टिक सकता था. इस युद्ध का अंजाम वही हुआ जो होना था. शनि देव को हनुमान जी ने परास्‍त कर दिया. शनिदेव को सरसों तेल से मिली राहत लेकिन इस युद्ध के दौरान शनि देव बेहद घायल हो गए. बजरंग बली की गदा के भीषण प्रहारों से उन्हें बेहद चोट लगी और शरीर पर कई जगह घाव बन गए. जिसकी पीड़ा से शनिदेव व्या...

Shani Katha Know Why People Offer Mustard Oil To Lord Shani Dev Mythology

Shani Dev Katha: हिंदू धर्म में शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित माना गया है. आज के दिन शनि देव को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के उपाय किए जाते हैं. माना जाता है कि इन उपायों से शनि देव जल्द प्रसन्न होते हैं और लोगों पर अपनी कृपा बरसाते हैं. शनिवार के दिन शनि को प्रसन्न के सभी उपायों में से एक उपाय को बहुत लाभकारी माना जाता है और ये शनि को सरसों का तेल अर्पित करना. कुछ लोग इस दिन सरसों के तेल का दिया भी जलाते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार शनि को सरसों का तेल बेहद प्रिय है. इसलिए शनिवार के दिन उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा में सरसों के तेल का इस्तेमाल होता है. आइए जानते हैं कि आखिर शनि देव को सरसों का तेल इतना प्रिय क्यों है. शनि को क्यों प्रिय है सरसों का तेल? शास्त्रों के अनुसार, अपनी शक्तियों और ताकत के कारण शनि देव में घमंड आ गया था. वहीं इस समय हनुमान जी की कीर्ति और बल की चर्चा चारों ओर थी. हर कोई बजरंगबली की यश, कीर्ति और बल की तारीफ करता था. शनि देव को हनुमान के बल का गुणगान रास नहीं आया और उन्होंने हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारा. जब शनि देव युद्ध के लिए हनुमान जी के पास गए तो वह उस समय भगवान राम की भक्ति में लीन थे. शनि देव ने हनुमान जी से युद्ध के लिए कहा. हनुमान जी ने शनि देव को समझाने की कोशिश की वो अभी युद्ध नहीं कर सकते लेकिन शनि देव नहीं माने और युद्ध पर अड़े रहे. आखिरकार हनुमान जी को युद्ध के लिए उठना पड़ा और इसके बाद दोनों में जमकर युद्ध हुआ. हनुमान जी ने शनि देव पर तीखे प्रहार किए जिसकी वजह से उनके शरीर पर काफी घाव बन गए. इस युद्ध में शनि देव बुरी तरह से घायल हो गए और उन्हें पीड़ा होने लगी. शनि देव की पीड़ा को देखते हुए हनुमान जी ने उन्हें सरसों का ...

Mysterious story of fight between lord hanuman and shani dev

जानिए क्यों हनुमान जी ने की थी शनि देव की पिटाई शनि देव हमारे सौर मंडल के सबसे शक्तिशाली ग्रह हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि शनि देव की हनुमान जी ने पिटाई भी की थी. इसी घटना की वजह से शनिवार के दिन शनिदेव को सरसों का तेल भी चढ़ाया जाता है. आईए आपको बताते हैं क्या हुआ था शनिदेव और हनुमान जी के बीच. जानिए पूरी कहानी- सरसों तेल और शनि देव के बीच संबंध दरअसल इसके पीछे एक पौराणिक कथा बताई जाती है. जिसके अनुसार रामायण काल यानी त्रेता युग में शनि देव को अपने बल और पराक्रम पर अहंकार हो था. इस दौर में शनि देव ने हनुमान जी के बल और पराक्रम की प्रशंसा सुनी तो वे बजरंग बली से युद्ध करने के लिए निकल पड़े. लेकिन उस समय हनुमान जी अपने प्रभु श्रीराम की भक्‍ति में लीन थे. तभी अपने बल के घमंड में चूर शनिदेव आ पहुंचे और उन्‍होंने हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारना शुरु किया. रामभक्त हनुमान जी को शनिदेव के क्रोध और घमंड का कारण समझ आ चुका था इसलिए उन्‍होंने युद्ध को स्‍वीकार करने की बजाय उन्‍हें शांत करना उचित समझा। मजबूरी में किया बजरंग बली ने युद्ध लेकिन शनि देव माने नहीं और लगातार हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारते रहे. जिसके बाद मजबूर होकर हनुमान जी को युद्ध करने के लिए आगे आना ही पड़ा. शनिदेव और बजरंग बली के बीच घमासान युद्ध हुआ. स्वयं शिव के अंशावतार और श्रीहरि के अवतार राम जी के भक्त हनुमान के आगे भला कौन टिक सकता था. इस युद्ध का अंजाम वही हुआ जो होना था. शनि देव को हनुमान जी ने परास्‍त कर दिया. शनिदेव को सरसों तेल से मिली राहत लेकिन इस युद्ध के दौरान शनि देव बेहद घायल हो गए. बजरंग बली की गदा के भीषण प्रहारों से उन्हें बेहद चोट लगी और शरीर पर कई जगह घाव बन गए. जिसकी पीड़ा से शनिदेव व्या...

शनि देव आरती

शनि महाराजांना तेल, उडीद आणि रुईच्या फुलाचा हार अर्पण करून त्यांची मनोभावे पूजा करीत असतात. तसचं, शनि मंत्राचा जप केल्यानंतर त्यांची आरती केली जाते. मंदिरात पठन करण्यात येत असलेल्या शनि महाराज यांच्या आरतीला विशेष असे महत्व असून आपण नियमित त्यांचे पठन केले पाहिजे. मित्रांनो, आज आम्ही देखील या लेखाच्या माध्यमातून शनि महाराज यांच्या आरतीचे लिखाण केलं आहे. तरी आपण या लेखाचे महत्व समजून घेऊन नियमित आरतीचे पठन करावे. शनि देव आरती – Shani Dev Aarti Marathi Shani Dev Aarti जय जय श्री शनीदेवा | पद्मकर शिरी ठेवा आरती ओवाळतो | मनोभावे करुनी सेवा || धृ || सुर्यसुता शनिमूर्ती | तुझी अगाध कीर्ति एकमुखे काय वर्णू | शेषा न चले स्फुर्ती || जय || १ || नवग्रहांमाजी श्रेष्ठ | पराक्रम थोर तुझा ज्यावरी कृपा करिसी | होय रंकाचा राजा || जय || २ || विक्रमासारिखा हो | शककरता पुण्यराशी गर्व धरिता शिक्षा केली | बहु छळीयेले त्यासी || जय || ३ || शंकराच्या वरदाने | गर्व रावणाने केला साडेसाती येता त्यासी | समूळ नाशासी नेला || जय || ४ || प्रत्यक्ष गुरुनाथ | चमत्कार दावियेला नेऊनि शुळापाशी | पुन्हा सन्मान केला || जय || ५ || ऐसे गुण किती गाऊ | धणी न पुरे गातां कृपा करि दिनांवरी | महाराजा समर्था || जय || ६ || दोन्ही कर जोडनियां | रुक्मालीन सदा पायी प्रसाद हाची मागे | उदय काळ सौख्यदावी || जय || ७ || जय जय श्री शनीदेवा | पद्मकर शिरी ठेवा आरती ओवाळीतो | मनोभावे करुनी सेवा || शनि महाराज यांच्या बद्दल पौराणिक कथा – Shani Dev Story शनि महाराज यांची महिमा फार थोर असून भाविकांच्या कर्मानुसार ते त्यांना न्यायदान करीत असतात. तसचं, त्यांच्या जन्माबद्दल पुराणांमध्ये अनेक दंत कथा प्रचलित आहेत. त्यानुसार, शनि महाराज हे सू...

Shani Katha Know Why People Offer Mustard Oil To Lord Shani Dev Mythology

Shani Dev Katha: हिंदू धर्म में शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित माना गया है. आज के दिन शनि देव को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के उपाय किए जाते हैं. माना जाता है कि इन उपायों से शनि देव जल्द प्रसन्न होते हैं और लोगों पर अपनी कृपा बरसाते हैं. शनिवार के दिन शनि को प्रसन्न के सभी उपायों में से एक उपाय को बहुत लाभकारी माना जाता है और ये शनि को सरसों का तेल अर्पित करना. कुछ लोग इस दिन सरसों के तेल का दिया भी जलाते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार शनि को सरसों का तेल बेहद प्रिय है. इसलिए शनिवार के दिन उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा में सरसों के तेल का इस्तेमाल होता है. आइए जानते हैं कि आखिर शनि देव को सरसों का तेल इतना प्रिय क्यों है. शनि को क्यों प्रिय है सरसों का तेल? शास्त्रों के अनुसार, अपनी शक्तियों और ताकत के कारण शनि देव में घमंड आ गया था. वहीं इस समय हनुमान जी की कीर्ति और बल की चर्चा चारों ओर थी. हर कोई बजरंगबली की यश, कीर्ति और बल की तारीफ करता था. शनि देव को हनुमान के बल का गुणगान रास नहीं आया और उन्होंने हनुमान जी को युद्ध के लिए ललकारा. जब शनि देव युद्ध के लिए हनुमान जी के पास गए तो वह उस समय भगवान राम की भक्ति में लीन थे. शनि देव ने हनुमान जी से युद्ध के लिए कहा. हनुमान जी ने शनि देव को समझाने की कोशिश की वो अभी युद्ध नहीं कर सकते लेकिन शनि देव नहीं माने और युद्ध पर अड़े रहे. आखिरकार हनुमान जी को युद्ध के लिए उठना पड़ा और इसके बाद दोनों में जमकर युद्ध हुआ. हनुमान जी ने शनि देव पर तीखे प्रहार किए जिसकी वजह से उनके शरीर पर काफी घाव बन गए. इस युद्ध में शनि देव बुरी तरह से घायल हो गए और उन्हें पीड़ा होने लगी. शनि देव की पीड़ा को देखते हुए हनुमान जी ने उन्हें सरसों का ...