श्रद्धा भक्ति निबंध के लेखक हैं

  1. [Solved] 'श्रद्धा और प्रेम के य
  2. Acharya Ramchandra Shukla In Hindi
  3. निबंध और निबंधकार
  4. श्रद्धा और भक्ति(shraddha aur bhakti)
  5. बालकृष्ण भट्ट :: :: :: ज्ञान और भक्ति :: निबंध


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[Solved] 'श्रद्धा और प्रेम के य

'श्रद्धा और प्रेम के योग का नाम भक्ति है' यह कथन है : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल Key Points • इस संकलन के अन्य निबंध- भाव या मनोविकार, उत्साह, श्रद्धा और भक्ति, लज्जाऔर ग्लानि, घृणा, ईर्ष्या, भय, क्रोध, कविता क्या है, काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था आदिI • चिंतामणि का पहला भाग 1939 में तथा दूसरा भाग 1945 में प्रकाशित हुआI • आचार्य रामचंद्र शुक्लअपनी मौलिक निबंध लेखन शैली के लिए प्रसिद्ध हैंI • उनके निबंधों की भाषा परिष्कृत साहित्यिक हिन्दी भाषा हैI • चिंतामणि पर आचार्य शुक्ल को हिन्दी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग द्वारा 1200 रूपये का मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ थाI • इन्होने सैद्धांतिक और व्यावहारिक आलोचना में महत्वपूर्ण योगदान दिया हैI • रामविलास शर्माके अनुसार - '' कथा साहित्य में जो कार्य प्रेमचन्द ने किया है, काव्य क्षेत्र में जो निराला ने किया है, वही कार्य आलोचना के क्षेत्र में रामचंद्र शुक्ल ने किया हैI''

Acharya Ramchandra Shukla In Hindi

Acharya Ramchandra Shukla In Hindi – आचार्य रामचंद्र शुक्ल जीवन परिचय आचार्य रामचंद्र शुक्ल ( Acharya Ramchandra Shukla )को हिंदी साहित्य का कीर्ति स्तंभ माना जाता है। हिंदी साहित्य में वैज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात उन्होंने ही की। हिन्दी निबंध के क्षेत्र में शुक्ल जी का स्थान सर्वोपरि है। हिन्दी साहित्य का इतिहास उनकी द्वारा लिखित प्रमुख पुस्तकों मे एक है। शुक्ल जी हिन्दी के अद्वितीय, मौलिक और गंभीर निबंधकार थे। उन्होंने अपने दृष्टिकोण से विभिन्न भावों की पुनर्व्याख्या की। आचार्य शुक्ल ( Acharya Ramchandra Shukla) में बहुआयामी प्रतिभा मौजूद थी, जिससे उनके आलोचकीय व्यक्तित्व को निखारने में मदद मिली। उनकी आलोचकीय व्याख्या बहुत गंभीर और रोचक थी। उन्होंने हिन्दी शब्द सागर तथा नागरी प्रचारिणी का संपादन किया। कासी हिन्दू विश्वविध्यालय में वे हिन्दी के विभागाध्यक्ष के पद पर आसीन रहे। उन्होंने व्यावहारिक तथा भावात्मक निबंधों की रचना के द्वारा हिंदी साहित्य की अद्वितीय सेवा की। शुक्ल जी ने अपनी रचनाओं में कोमलता, भवात्मक मधुरता और सहृदयता जैसे भावों के समायोजन से गंभीर विचारात्मक निबंधों की रचना की। संस्कृत काव्यशास्त्र की नये ढंग से व्यावहारिक व्याख्या की। उन्होंने हिंदी साहित्य का पहली बार व्यवस्थित और वैज्ञानिक ढंग से इतिहास लिखा। आचार्य रामचंद्र शुक्ल बीसवीं शताब्दी के हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार थे। तो दोस्तों आईये Acharya Ramchandra Shukla के बारें में विस्तार से जानते हैं। Acharya Ramchandra Shukla In Hindi – आचार्य रामचंद्र शुक्ल जीवन परिचय आचार्य रामचंद्र शुक्ल संक्षिप्त झलक – Acharya Ramchandra Shukla in hindi • जन्म – 4 अक्टूबर 1884ईस्वी, बस्ती, उत्तर प्रदेश • रचना – हिं...

निबंध और निबंधकार

हिन्दी के निबंध और निबंधकार निबन्ध शब्द ऐसे‘ (Essay) का बोध होता है, फ्रेंच में इसे ‘ एसाई‘ (Essie) कहते थे, वहीं अँग्रेजी में ‘ऐसे’ के नाम से जाना गया, इसका अर्थ होता है प्रयोग करना। हिंदी के प्रथम राजा भोज का सपना” (1839 ई.) है, जिसके रचयिता शिवप्रसाद ‘सितारे-हिंद’ हैं। कुछ विद्वान सदासुखलाल के ‘ सुरासुरनिर्णय‘ के आधार पर इन्हें हिंदी का प्रथम निबंधकार मानते हैं। (जानें – निबंध और निबंधकार क्रम निबंध निबंधकार 1. राजा भोज का सपना शिवप्रसाद ‘सितारे-हिंद’ 2. म्युनिसिपैलिटी के कारनामे, जनकस्य दण्ड, रसज्ञ रंजन, कवि और कविता, लेखांजलि, आत्मनिवेदन, सुतापराधे महावीर प्रसाद द्विवेदी 3. विक्रमोर्वशी की मूल कथा, अमंगल के स्थान में मंगल शब्द, मारेसि मोहि कुठाँव, कछुवा धर्म चंद्रधर शर्मा गुलेरी 4. शिवशंभू के चिट्ठे, चिट्ठे और खत बालमुकुंद गुप्त 5. निबंध नवनीत, खुशामद, आप, बात, भौं, प्रताप पीयूष प्रतापनारायण मिश्र 6. पद्म पराग, प्रबंध मंजरी में संकलित निबंध पद्मसिंह शर्मा 7. साहित्य सरोज, भट्ट निबंधावली (आँसू, रुचि, जात पाँत, सीमा रहस्य, आशा, चलन आदि), साहित्य जनसमूह के हृदय का विकास है (नि.) बालकृष्ण भट्ट 8. पाँचवें पैगम्बर भारतेंदु 9. मजदूरी और प्रेम, सच्ची वीरता, अमरीका का मस्त जोगी वाल्ट ह्विटमैन, पवित्रता, कन्यादान, आचरण की सभ्यता सरदार पूर्णसिंह 10. फिर निराशा क्यों, ठलुआ क्लब, मन की बातें, मेरी असफलताएँ, कुछ उथले कुछ गहरे बाबू गुलाबराय 11. चिंतामणि (चार भाग) में संकलित निबंध, कविता क्या है, साधारणीकरण और व्यक्ति-वैचित्र्यवाद रामचंद्र शुक्ल 12. पंचपात्र (संग्रह) पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी 13. कुछ (संग्रह) शिवपूजन सहाय 14. बुढ़ापा, गाली ‘उग्र’ 15. साहित्य देवता, अमीर देवता, गरीब देव...

श्रद्धा और भक्ति(shraddha aur bhakti)

• चिंतामणि भाग प्रथम (1939ई.) निबंध संग्रह से(सम्पादन – आ. रामचंद्र शुक्ल ने) • चिंतामणि भाग – प्रथम (1939ई.)में 17 निबंध संगृहीत है। जिनके नाम :- भाव एवं मनोविकार, उत्साह, श्रद्धा और भक्ति, करुणा, लज्जा और ग्लानि, लोभ और प्रीति, घृणा, ईर्ष्या, भय,क्रोध, कविता क्या है, भारतेंदु हरिश्चंद्र, तुलसी का भक्ति मार्ग,मानस की धर्म,काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था, साधारणीकरण और व्यक्ति वैचित्र्यवाद,रसात्मक बोध के विविध रूप। • श्रद्धा की परिभाषा :- किसी मनुष्य में जन साधारण से विशेष गुण या शक्ति का विकास देख उसके संबंध में जो एक स्थायी आनंद – पद्धति हृदय में स्थापित हो जाती है उसे श्रद्धा कहते हैं । • श्रद्धा के साथ उच्च पूज्य – बुद्धि का संचार है । • जिन कर्मों के प्रति श्रद्धा होती है उनका होना संसार को वांछित है। • विश्व कामना श्रद्धा की प्रेरणा का मेल है। • किसी कवि का काव्य बहुत अच्छा लगा, किसी चित्रकार का बनाया हुआ चित्र बहुत सुंदर लगा और हमारे चित्त में उस कवि या चित्रकार के प्रति एक सुहृदय-भाव उत्पन्न हुआ तो वह श्रद्धा है, क्योंकि यह काव्य की या चित्ररूप का मध्यस्थ द्वारा प्राप्त हुआ है। • व्यक्ति को कर्मों के द्वारा मनोहरता प्राप्त होती है। (कर्म प्रधान) :- श्रद्धा • कर्मों का व्यक्ति द्वारा मनोहरता प्राप्त होती है।(व्यक्ति प्रधान) :- प्रेम • श्रद्धा एक सामाजिक भाव है, इसमें अपनी श्रद्धा के बदले में हम श्रद्धेय से अपने लिए कोई बात नहीं चाहते । • श्रद्धा एक ऐसी आनंदपूर्ण कृतज्ञता है जिस हम केवल समाज के प्रतिनिधि के रूप में प्रकट करते हैं। ★ कृतज्ञता का अर्थ :- अपने प्रति की हुई श्रेष्ठ और उत्कृष्ट सहायता के लिए श्रद्धावान होकर दूसरे व्यक्ति के समक्ष सम्मान प्रदर्शन करना। • स...

बालकृष्ण भट्ट :: :: :: ज्ञान और भक्ति :: निबंध

ज्ञान और भक्ति दोनों परस्‍पर प्रतिकूल अर्थ के द्योतक मालूम होते हैं, ज्ञान के अर्थ हैं जानना या जानकारी और ज्ञ धातु से बना है। भक्ति भज धातु से बनी है जिसके अर्थ हैं सेवा करना या लगाना (टू सर्व आर टू डिवोट)। मनुष्‍य में जानकारी स्‍वच्‍छंद या सर्वोपरि रहने के लिए प्रेरणा करती है, जो अज्ञ या अबोधोपाहत हैं वे ही दूसरे के अधीन या मातहत रहना पसंद करते हैं। एक या दो मनुष्‍यों की कौन कहे समस्‍त जाति की जाति या देश का देश के साथ यह पूर्वोक्‍त सूत्र लगाया जा सकता है। अमेरिका में ईस्‍ट इंडियंस और अफ्रीका के काफिर अथवा काले कुरूप हब्‍शी क्‍यों गुलाम बना लिये गये और यूरोप की सभ्‍य जाति ने सहज में उन्‍हें जीत अपने वशंवद तथा अधीन बना लिया? इसलिये कि इन हब्शियों में तथा ईस्‍ट इण्डियंस में ज्ञान तथा बु‍द्धि तत्‍व की कमी थी जो सर्वथा अज्ञ और अबोधोपहत होते हैं। ज्ञान आध्‍यात्मिक उन्‍नति (स्पिरिचुअल प्रोग्रेस) का मुख्‍य द्वार है। नेशन में 'नेशनैलिटी' जातीयता और आध्‍यात्मिक उन्‍नति (स्पिरिचुअलिटी) दोनों साथ-साथ चलती हैं अर्थात् कोई कौम जब तक अपनी पूरी तरक्‍की पर रहती है तब तक रूहानी तरक्‍की का घाटा या अभाव उसमें नहीं पाया जाता। भारत में वैदिक समय आध्‍यात्मिक उन्‍नति का मानो एक उदाहरण था, ज्‍यो-जयों उसमें अंतर पड़ता गया। भारत आरत दशा में आय बराबर नीचे को गिरता गया। उपरांत पुराणों की सृष्टि ने लोगों में बुद्धि का पैनापन न देख भक्ति को उठाय खड़ी किया इसलिये कि लोग ब्रह्यचर्य क ह्रास से बुद्धि की तीक्ष्‍णता खो बैठे थे उतने कुशाग्र बुद्धि के न रहे कि आध्‍यात्मिक बातों को भली-भाँति समझ सकें। भक्ति ऐसी रसीली और हृदयग्राहिणी हुई कि इसका सहारा पाय लोग रूखे ज्ञान को अवज्ञा और अनादर की दृष्टि से देखने ल...