श्री लक्ष्मी सूक्त पाठ हिंदी में

  1. श्री लक्ष्मी सूक्त
  2. श्री लक्ष्मी सूक्तम्
  3. श्री सूक्त हिंदी अर्थ सहित
  4. Sri suktam श्री सूक्त shree suktam paath – Astrologer


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श्री लक्ष्मी सूक्त

श्री लक्ष्मी सूक्तम का पाठ करने की विधि: श्रीलक्ष्मी सूक्त का पाठ हमेशा विश्वास और श्रद्धा के साथ करना चाहिए इससे लक्ष्मी जी बहुत जल्दी प्रसन्न होती है और पूजा करने वाले व्यक्ति को धन संपदा और ऐश्वर्य प्रदान करती है। अगर आप प्रतिदिन लक्ष्मी सूक्त का पाठ न कर पाए तो आपको हर हफ्ते शुक्रवार को लक्ष्मी जी का पाठ अवश्य करना चाहिए। • सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। • पूजा के स्थान को साफ करके वहां पर लाल कपड़े पर लक्ष्मी माता की मूर्ति अथवा तस्वीर को स्थापित करें। • माता लक्ष्मी को लाल पुष्प एवं अन्य पूजा सामग्री – जैसे गुलाल, चंदन, चावल आदि चढ़ाएं और प्रसाद का भोग लगाएं। • इसके बाद आप श्री लक्ष्मी सूक्त का पाठ करें और महालक्ष्मी जी की आरती करें। • अगर आप संस्कृत में श्री लक्ष्मी सूक्त का पाठ नहीं कर पाए तो हिंदी में ही इस का पाठ करें। नवरात्रा, दिवाली आदि पर लक्ष्मी सूक्त का विधि विधान से पाठ करने का विशेष महत्व है।

श्री लक्ष्मी सूक्तम्

श्री लक्ष्मी सूक्तम् श्री लक्ष्मी सूक्तम् हे कमलवासिनी, कमल के समान हाथों वाली, अत्यंत स्वच्छ तथा सुगन्धित, पुष्प माला धारण करने से सुशोभित, हे विष्णुवल्लभे, सबके मनोभावों की ज्ञाता, हे त्रिलोकी को ऐश्वर्य तथा आनन्द प्रदान करने वाली देवी ! आप मुझ पर प्रसन्न हो जाओ || १ || अग्निदेव हमें धन दे, वायु देव हमें धन दे,इसी प्रकार वसु, इन्द्र, बृहस्पति, वरुण, अश्विनी कुमार आदि समस्त देवता हमारे घर में निवास करते हुए हमें धन दें || २ || हे गरुड़ देव ! आप सोमरस पिएँ | इन्द्र देव आप भी सोमरस पिएँ | सोमरस पीने वाले कुबेर आदि समस्त देव मुझे भी सोमरस दें और सोमरस को पीने वाले सदा हमारे घर में निवास करें, जिससे मैं भी ऐश्वर्यवान् बन जाऊँ || ३ || जो इस सूक्त का पाठ करते हैं उन भक्तों को एवं जिन्होंने पुण्य किए हैं ऐसे भक्तों को केवल पाठ मात्र करने से क्रोध, मद-मोह-लोभ और अशुभ मति आदि सताते नहीं है || ४ || हे कमल के समान मुखवाली, हे कमल के समान जांधों वाली ! हे कमलनयने ! हे कमल में निवास करने वाली, हे पद्माक्षि ! आप मेरे यहाँ सदा निवास करो जिससे की मैं सुख को प्राप्त करता रहूँ || ५ || मैं विष्णु पत्नी, क्षमारूपिणी, माधवी, माधवप्रिय, विष्णु भगवान् की प्रिया सखी, दिव्या गुणसम्पन्ना, सच्चिदानन्द परमेश्वर की वल्लभा को प्रणाम करता हूँ || ६ || हम महालक्ष्मी जी की जिज्ञासा करते हैं और विष्णुपति का ध्यान करते हैं | अतएव श्री महालक्ष्मी जी हमें शुभ कर्मों में प्रेरित करती रहे | जिससे कि वे हमारे घर में सदा बनी रहें || ७ || हे कमल के समान मुखवाली ! हे कमलवाली, कमल के पत्तों वाली, हे कमलों से प्रेम करने वाली ! हे कमल के समान विशाल नेत्रों वाली, सम्पूर्ण संसार की प्रिय ! संसार के मन के अनुकूल चलने वाली...

श्री सूक्त हिंदी अर्थ सहित

श्री सूक्त या श्री सूक्तम महालक्ष्मी की उपासना के लिए श्री सूक्त का पाठ महालक्ष्मी की प्रसन्नता एवं उनकी कृपा प्राप्त कराने वाला है साथ ही व्यापार में वृद्धि, ऋण से मुक्ति और धन प्राप्ति के लिए भी इसका पाठ तथा अनुष्ठान किया जाता है। श्रद्धा एवं विश्वास के साथ इस स्तोत्र का पाठ करने वाले व्यक्ति पर माता लक्ष्मी कृपा करती हैं। लक्ष्मी जी की कृपा होने पर व्यक्ति सिर्फ धन और ऐश्वर्य ही नहीं बल्कि यश एवं कीर्ति भी प्राप्त करता है। ॥ श्री सूक्त ॥ ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्। चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥1॥ अर्थ – हे सर्वज्ञ अग्निदेव ! सुवर्ण के रंग वाली, सोने और चाँदी के हार पहनने वाली, चन्द्रमा के समान प्रसन्नकांति, स्वर्णमयी लक्ष्मीदेवी को मेरे लिये आवाहन करो। तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्। यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥2॥ अर्थ – अग्ने ! उन लक्ष्मीदेवी को, जिनका कभी विनाश नहीं होता तथा जिनके आगमन से मैं सोना, गौ, घोड़े तथा पुत्रादि को प्राप्त करूँगा, मेरे लिये आवाहन करो। अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम्। श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥3॥ अर्थ – जिन देवी के आगे घोड़े तथा उनके पीछे रथ रहते हैं तथा जो हस्तिनाद को सुनकर प्रमुदित होती हैं, उन्हीं श्रीदेवी का मैं आवाहन करता हूँ; लक्ष्मीदेवी मुझे प्राप्त हों। कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥4॥ अर्थ – जो साक्षात ब्रह्मरूपा, मंद-मंद मुसकराने वाली, सोने के आवरण से आवृत, दयार्द्र, तेजोमयी, पूर्णकामा, अपने भक्तों पर अनुग्रह करनेवाली, कमल के आसन पर विराजमान तथा पद्मवर्णा हैं, उन लक्ष्मीदेवी ...

Sri suktam श्री सूक्त shree suktam paath – Astrologer

ऋग्वेद के दो सूक्त श्री सूक्त और पुरुष सूक्त सर्व प्रसिद्ध हैं जिनका उपयोग सभी बड़े अनुष्ठानों में होता है . भगवान लक्ष्मी पति विष्णु का अभिषेक और पूजन बगैर पुरुष सूक्त के सम्भव नहीं है उसी तरह लक्ष्मी पूजन बगैर श्री सूक्त के सम्भव नहीं है . ऐसा शास्त्रों का कहना है कि श्री सूक्त से छह महीने यदि देवी लक्ष्मी की विधि पूर्व पूजा कर ली जाय तो वे उसके घर में सदैव के लिए स्थिर हो जाती हैं | श्री सूक्त से देवी लक्ष्मी पूजा की विधि का पूर्ण वर्णन किया जा रहा है- ॐ हिरण्य-वर्णामित्यादि-पञ्चदशर्चस्य श्रीसूक्तस्याद्यायाः ऋचः श्री ऋषिः तां म आवहेति चतुर्दशानामृचां आनन्द-कर्दम-चिक्लीत-इन्दिरा-सुताश्चत्वारः ऋचयः, आद्य-मन्त्र-त्रयाणां अनुष्टुप् छन्दः, कांसोऽस्मीत्यस्याः चतुर्थ्या वृहती छन्दः, पञ्चम-षष्ठयोः त्रिष्टुप् छन्दः, ततोऽष्टावनुष्टुभः, अन्त्या प्रस्तार-पंक्तिः छन्दः । श्रीरग्निश्च देवते । हिरण्य-वर्णां बीजं । “तां म आवह जातवेद” शक्तिः । कीर्तिसमृद्धिं ददातु मे” कीलकम् । मम श्रीमहालक्ष्मी-प्रसाद-सिद्धयर्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादि-न्यासः- श्री-आनन्द-कर्दम-चिक्लीत-इन्दिरा-सुतेभ्यः ऋषिभ्यो नमः-शिरसि । अनुष्टुप्-बृहती-त्रिष्टुप्-प्रस्तार-पंक्ति-छन्दोभ्यो नमः-मुखे । श्रीरग्निश्च देवताभ्यां नमः – हृदि । हिरण्य-वर्णां बीजाय नमः गुह्ये । “तां म आवह जातवेद” शक्तये नमः – पादयो । कीर्तिसमृद्धिं ददातु मे” कीलकाय नमः नाभौ । मम श्रीमहालक्ष्मी-प्रसाद-सिद्धयर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे । “ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हौं हंसः श्रीमहा-लक्ष्मी-देवतायाः प्राणाः । ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हौं हंसः श्रीमहा-लक्ष्मी-देवतायाः जीव इह स्थितः । ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हौ...