सिया राम मैं सब जग जानी

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  2. प्रेरक कहानी: सिय राम मय सब जग जानी
  3. siddh choupaiyan bhajan lyrics
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हिंदू धर्म शास्त्र में भगवान के तीन प्रमुख रूप माने गये हैं- ब्रह्मा, विष्णु और महेश. इन तीनों में विष्णु के ही अवतार बहुत हुए हैं. राम भी विष्णु के ही अवतार हैं. चूंकि वे विष्णु के अवतार हैं, इसलिए एक तरह से वे विष्णु ही हैं. धार्मिक और आध्यात्मिक लोग राम के प्रति वैसी ही आस्था रखते हैं, जैसी आस्था विष्णु के प्रति है. और भारत के सर्वसाधारण जनमानस में राम आस्था के प्रतीक हैं. लेकिन, राम केवल आस्था तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे तो असीम हैं. यही वजह है कि जो रामकथा है, उस पर लगभग तीन सौ पुस्तकें लिखी गयी हैं और विभिन्न भाषाओं में लिखी गयी हैं. यहां तक कि उर्दू और फारसी में भी रामकथा पर किताबें लिखी गयी हैं. उर्दू में तो कई किताबें हैं, लेकिन फारसी में केवल एक ही किताब है, और वह हिंदुस्तान में ही लिखी गयी है. वह है- मसीही रामायण. मसीही नाम से भ्रम होता है कि शायद यह किसी ईसाई ने लिखी होगी, लेकिन इसे मुल्ला वसी ने लिखी थी. जामिया मिलिया इस्लामिया की लाइब्रेरी में लगभग सारी उर्दू रामायणें मौजूद हैं. अगर तीन सौ से ज्यादा रामकथाएं हैं, तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि राम के प्रति कितना श्रद्धा है, कितनी अकीदत है, और कितना विश्वास लोगों में है. सभी रामकथाओं पर बात करना तो मुश्किल है, लेकिन वाल्मिकी के रामायण पर चर्चा की जा सकती है. राम को हर व्यक्ति अपने नजरिये से देखता है. राम का एक रूप वह है, जिसमें धार्मिक नजरिये से उन्हें अवतार माना जाता है. वह सही है. लेकिन, एक लेखक के तौर पर मैं उन्हें मनुष्य के भीतर एक आदर्श पुरुष के रूप में देखता हूं. यह तो सभी जानते हैं कि उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, यानी जो पुरुषों में भी उत्तम हो. जब हम मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं, तब पुरुष ...

प्रेरक कहानी: सिय राम मय सब जग जानी

तुलसीदास जी जब रामचरितमानस लिख रहे थे, तो उन्होंने एक चौपाई लिखी: सिय राम मय सब जग जानी, करहु प्रणाम जोरी जुग पानी ॥ अर्थात: पूरे संसार में श्री राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए। चौपाई लिखने के बाद तुलसीदास जी विश्राम करने अपने घर की ओर चल दिए। रास्ते में जाते हुए उन्हें एक लड़का मिला और बोला: अरे महात्मा जी, इस रास्ते से मत जाइये आगे एक बैल गुस्से में लोगों को मारता हुआ घूम रहा है। और आपने तो लाल वस्त्र भी पहन रखे हैं तो आप इस रास्ते से बिल्कुल मत जाइये। तुलसीदास जी ने सोचा: ये कल का बालक मुझे चला रहा है। मुझे पता है। सबमें राम का वास है। मैं उस बैल के हाथ जोड़ लूँगा और शान्ति से चला जाऊंगा। लेकिन तुलसीदास जी जैसे ही आगे बढे तभी बिगड़े बैल ने उन्हें जोरदार टक्कर मारी और वो बुरी तरह गिर पड़े। अब तुलसीदास जी घर जाने की बजाय सीधे उस जगह पहुंचे जहाँ वो रामचरित मानस लिख रहे थे। और उस चौपाई को फाड़ने लगे, तभी वहाँ हनुमान जी प्रकट हुए और बोले: श्रीमान ये आप क्या कर रहे हैं? तुलसीदास जी उस समय बहुत गुस्से में थे, वो बोले: ये चौपाई बिल्कुल गलत है। ऐसा कहते हुए उन्होंने हनुमान जी को सारी बात बताई। हनुमान जी मुस्कुराकर तुलसीदास जी से बोले: श्रीमान, ये चौपाई तो शत प्रतिशत सही है। आपने उस बैल में तो श्री राम को देखा लेकिन उस बच्चे में राम को नहीं देखा जो आपको बचाने आये थे। भगवान तो बालक के रूप में आपके पास पहले ही आये थे लेकिन आपने देखा ही नहीं। ऐसा सुनते ही तुलसीदास जी ने हनुमान जी को गले से लगा लिया। दोस्तों हम भी अपने जीवन में कई बार छोटी छोटी चीज़ों पर ध्यान नहीं देते और बाद में बड़ी समस्या का शिकार हो जाते हैं। ये किसी एक इंसान की परेशानी नहीं...

siddh choupaiyan bhajan lyrics

सिया राम मय सब जग जानी, करहु प्रणाम जोरी जुग पानी। मंगल भवन अमंगल हारी, द्रबहु सुदशरथ अजर बिहारी। दीन दयाल बिरिदु संभारी, हरहु नाथ मम संकट भारी। सीता राम चरन रति मोरे, अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरे। सनमुख होइ जीव मोहि जबही, जन्म कोटि अघ नासहिं तबही। अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँती, सब तजि भजनु करौं दिन राती।। मंगल मूर्ति मारुती नंदन, सकल अमंगल मूल निकंदन, बिनु सत्संग विवेक न होई, रामकृपा बिनु सुलभ न सोई। होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा, तब रघुनाथ चरन अनुरागा। उमा कहउँ मैं अनुभव अपना, सत हरि भगति जगत सब सपना। हरि ब्यापक सर्बत्र समाना, प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना। बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा, सुरुचि सुबास सरस अनुरागा। देह धरे कर यह फल भाई, भजिअ राम सब काम बिहाई। मन क्रम बचन छाड़ि चतुराई, भजत कृपा करिहहिं रघुराई। पर हित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई। जहाँ सुमति तहाँ सम्पति नाना, जहाँ कुमति तहाँ बिपति निदाना। कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ, मति अनुरूप राम गुन गावउँ॥ कवित विवेक एक नहिं मोरे, सत्य कहउँ लिखि कागद कोरे। जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं, तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं। बरषहिं राम सुजस बर बारी, मधुर मनोहर मंगलकारी॥ जय जय राम, सियाराम, जय जय राम, सियाराम, जय जय राम, सियाराम, जय जय राम, सियाराम.....

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हिंदू धर्म शास्त्र में भगवान के तीन प्रमुख रूप माने गये हैं- ब्रह्मा, विष्णु और महेश. इन तीनों में विष्णु के ही अवतार बहुत हुए हैं. राम भी विष्णु के ही अवतार हैं. चूंकि वे विष्णु के अवतार हैं, इसलिए एक तरह से वे विष्णु ही हैं. धार्मिक और आध्यात्मिक लोग राम के प्रति वैसी ही आस्था रखते हैं, जैसी आस्था विष्णु के प्रति है. और भारत के सर्वसाधारण जनमानस में राम आस्था के प्रतीक हैं. लेकिन, राम केवल आस्था तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे तो असीम हैं. यही वजह है कि जो रामकथा है, उस पर लगभग तीन सौ पुस्तकें लिखी गयी हैं और विभिन्न भाषाओं में लिखी गयी हैं. यहां तक कि उर्दू और फारसी में भी रामकथा पर किताबें लिखी गयी हैं. उर्दू में तो कई किताबें हैं, लेकिन फारसी में केवल एक ही किताब है, और वह हिंदुस्तान में ही लिखी गयी है. वह है- मसीही रामायण. मसीही नाम से भ्रम होता है कि शायद यह किसी ईसाई ने लिखी होगी, लेकिन इसे मुल्ला वसी ने लिखी थी. जामिया मिलिया इस्लामिया की लाइब्रेरी में लगभग सारी उर्दू रामायणें मौजूद हैं. अगर तीन सौ से ज्यादा रामकथाएं हैं, तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि राम के प्रति कितना श्रद्धा है, कितनी अकीदत है, और कितना विश्वास लोगों में है. सभी रामकथाओं पर बात करना तो मुश्किल है, लेकिन वाल्मिकी के रामायण पर चर्चा की जा सकती है. राम को हर व्यक्ति अपने नजरिये से देखता है. राम का एक रूप वह है, जिसमें धार्मिक नजरिये से उन्हें अवतार माना जाता है. वह सही है. लेकिन, एक लेखक के तौर पर मैं उन्हें मनुष्य के भीतर एक आदर्श पुरुष के रूप में देखता हूं. यह तो सभी जानते हैं कि उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, यानी जो पुरुषों में भी उत्तम हो. जब हम मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं, तब पुरुष ...

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सिया राम मय सब जग जानी, करहु प्रणाम जोरी जुग पानी। मंगल भवन अमंगल हारी, द्रबहु सुदशरथ अजर बिहारी। दीन दयाल बिरिदु संभारी, हरहु नाथ मम संकट भारी। सीता राम चरन रति मोरे, अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरे। सनमुख होइ जीव मोहि जबही, जन्म कोटि अघ नासहिं तबही। अब प्रभु कृपा करहु एहि भाँती, सब तजि भजनु करौं दिन राती।। मंगल मूर्ति मारुती नंदन, सकल अमंगल मूल निकंदन, बिनु सत्संग विवेक न होई, रामकृपा बिनु सुलभ न सोई। होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा, तब रघुनाथ चरन अनुरागा। उमा कहउँ मैं अनुभव अपना, सत हरि भगति जगत सब सपना। हरि ब्यापक सर्बत्र समाना, प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना। बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा, सुरुचि सुबास सरस अनुरागा। देह धरे कर यह फल भाई, भजिअ राम सब काम बिहाई। मन क्रम बचन छाड़ि चतुराई, भजत कृपा करिहहिं रघुराई। पर हित सरिस धर्म नहिं भाई, पर पीड़ा सम नहिं अधमाई। जहाँ सुमति तहाँ सम्पति नाना, जहाँ कुमति तहाँ बिपति निदाना। कबि न होउँ नहिं चतुर कहावउँ, मति अनुरूप राम गुन गावउँ॥ कवित विवेक एक नहिं मोरे, सत्य कहउँ लिखि कागद कोरे। जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं, तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं। बरषहिं राम सुजस बर बारी, मधुर मनोहर मंगलकारी॥ जय जय राम, सियाराम, जय जय राम, सियाराम, जय जय राम, सियाराम, जय जय राम, सियाराम.....

प्रेरक कहानी: सिय राम मय सब जग जानी

तुलसीदास जी जब रामचरितमानस लिख रहे थे, तो उन्होंने एक चौपाई लिखी: सिय राम मय सब जग जानी, करहु प्रणाम जोरी जुग पानी ॥ अर्थात: पूरे संसार में श्री राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए। चौपाई लिखने के बाद तुलसीदास जी विश्राम करने अपने घर की ओर चल दिए। रास्ते में जाते हुए उन्हें एक लड़का मिला और बोला: अरे महात्मा जी, इस रास्ते से मत जाइये आगे एक बैल गुस्से में लोगों को मारता हुआ घूम रहा है। और आपने तो लाल वस्त्र भी पहन रखे हैं तो आप इस रास्ते से बिल्कुल मत जाइये। तुलसीदास जी ने सोचा: ये कल का बालक मुझे चला रहा है। मुझे पता है। सबमें राम का वास है। मैं उस बैल के हाथ जोड़ लूँगा और शान्ति से चला जाऊंगा। लेकिन तुलसीदास जी जैसे ही आगे बढे तभी बिगड़े बैल ने उन्हें जोरदार टक्कर मारी और वो बुरी तरह गिर पड़े। अब तुलसीदास जी घर जाने की बजाय सीधे उस जगह पहुंचे जहाँ वो रामचरित मानस लिख रहे थे। और उस चौपाई को फाड़ने लगे, तभी वहाँ हनुमान जी प्रकट हुए और बोले: श्रीमान ये आप क्या कर रहे हैं? तुलसीदास जी उस समय बहुत गुस्से में थे, वो बोले: ये चौपाई बिल्कुल गलत है। ऐसा कहते हुए उन्होंने हनुमान जी को सारी बात बताई। हनुमान जी मुस्कुराकर तुलसीदास जी से बोले: श्रीमान, ये चौपाई तो शत प्रतिशत सही है। आपने उस बैल में तो श्री राम को देखा लेकिन उस बच्चे में राम को नहीं देखा जो आपको बचाने आये थे। भगवान तो बालक के रूप में आपके पास पहले ही आये थे लेकिन आपने देखा ही नहीं। ऐसा सुनते ही तुलसीदास जी ने हनुमान जी को गले से लगा लिया। दोस्तों हम भी अपने जीवन में कई बार छोटी छोटी चीज़ों पर ध्यान नहीं देते और बाद में बड़ी समस्या का शिकार हो जाते हैं। ये किसी एक इंसान की परेशानी नहीं...