स्कंदगुप्त नाटक का सारांश

  1. स्कन्दगुप्त नाटक
  2. स्कन्दगुप्त नाटक: जयशंकर प्रसाद : मुख्य अंश
  3. चन्द्रगुप्त नाटक (chandragupta natak)
  4. चन्द्रगुप्त (नाटक)
  5. चन्द्रगुप्त नाटक
  6. Class 12 Hindi Antra Chapter 1 Summary – Devsena Ka Geet, Karneliya Ka Geet Summary Vyakhya
  7. चन्द्रगुप्त नाटक: जयशंकर प्रसाद


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स्कन्दगुप्त नाटक

स्कन्दगुप्त नाटक 1928 में प्रकाशित हुआ। नाटक पाँच अंकों में विभाजित है और प्रत्येक अंक दृश्यों में। स्कन्दगुप्त ने भारत की हूणों से रक्षा की। इन्होंने पुष्यमित्रों को हराकर विक्रमादित्य की उपाधि प्राप्त की। पात्र परिचय स्कन्दगुप्त– युवराज (विक्रमादित्य)। जो कि स्कन्दगुप्त नाटक का नायक है। स्वाभिमानी, नीतिज्ञ, देश-प्रेमी, वीर तथा स्त्रियों का सम्मान करता है। कुमारगुप्त– मगध का सम्राट और महादंडनायक है। गोविंदगुप्त– कुमारगुप्त का भाई। पुरगुप्त– कुमारगुप्त का छोटा भाई। पर्णदत्त– मगध का महानायक। चक्रपालित– पर्णदत्त का पुत्र। बंधुवर्म्मा– मालव का राजा। भीमवर्म्मा– बंधुवर्म्मा का भाई। मातृगुप्त– काव्यकर्त्ता कालिदास। प्रपंचबुद्धि– बौद्ध कापालिक। शर्वनाग– अन्तर्वेद का विषयपति। धातुसेन(कुमारदास)– कुमारदास के प्रछन्न रूप में सिंहल का राजकुमार। भटार्क– नवीन महाबलाधिकृत। पृथ्वीसेन– मंत्री कुमारामात्य। खिंगिल– हूण आक्रमणकारी। मृद्गल– विदूषक। प्रख्यातकीर्ति– लंकाराज – कुल का श्रमण, महाबोधि – विहार का स्थविर (महाप्रतिहार, महादंडनायक, नंदीग्राम का दंडनायक, प्रहरी, सैनिक इत्यादि।) देवकी– कुमारगुप्त की बड़ी रानी – स्कन्दगुप्त की माता। अनंतदेवी– कुमारगुप्त की छोटी रानी – पुरगुप्त की माता। जयमाला– बंधुवर्म्मा की स्त्री – मालव की रानी। देवसेना– बंधुवर्म्मा की बहिन जो गरीबों और असहायों की सेवा में अपना जीवन अर्पण कर देती है। विजया– मालव के धनकुबेर की कन्या। कमला– भटार्क की जननी। रामा– शर्वनाग की स्त्री। मालिनी– मातृगुप्त की प्रणयिनी (सखी, दासी, इत्यादि) स्कन्दगुप्त नाटक की समीक्षा स्कन्दगुप्त नाटक राष्ट्रीय उन्नति की संवेदना को जागृत करता है। व्यक्तिगत स्तर पर स्कन्दगुप्त अपने मनः स्थिति से जूझत...

स्कन्दगुप्त नाटक: जयशंकर प्रसाद : मुख्य अंश

स्कन्दगुप्त-जयशंकर प्रसाद ●प्रकाशन- 1928 ●अंक- 5 पहले अंक में 7 दृश्य है। दूसरे अंक में भी 7 दृश्य है। तीसरे अंक में 6 दृश्य है चौथे अंक में 7 दृश्य है पाँचवे अंक में 6 दृश्य है। ●पात्र-(पुरुष पात्र) स्कन्दगुप्त,कुमारगुप्त,गोविंदगुप्त,पर्णदत्त,चक्रपालित,बन्धुवर्म्मा,भीमवर्म्मा,मातृगुप्त,प्रपंचबुद्धि,शर्वनाग,धातुसेन, पुरगुप्त, भटार्क,पृथ्वीसेन,मुद्गल,प्रख्यातकीति। ●स्त्री पात्र देवकी,देवसेना,विजया,अन्नतदेवी,जयमाला,कमला, रामा,मालिनी। ◆मुख्य बिंदु:- ●हिंदी नवजागरण के समय की रचना है। ●इतिहास के आवरण को लेकर वतर्मान की समस्याओं को दिखाया गया है। ●मुख्य रूप से तीन समस्याएँ हैं:- 1.राष्ट्रीय एकीकरण की समस्या। 2.स्त्री-पुरुष समानता की बात। 3.जीवन जीने का उद्देश्य क्या है?जीवन की सार्थकता क्या है? ●छायावादी कृति हैं और काव्यभाषा संस्कृतनिष्ठ है। ●प्रसाद के नाटकों पर संस्कृत और पाश्चात्य नाटकों का प्रभाव है। ●नाम के आधार पर व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्माण किया गया है। ●पात्रों का शील-निरूपण आशावादी भाव का है। ●प्रसाद के नाटकों पर पारसी थिएटर का प्रभाव भी देखने को मिलता है। ●वीरेंद्र नारायण ने सबसे पहले 1960 में प्रसाद के नाटकों पर व्यवस्थित रूप से रंगमंच की दृष्टि से विचार किया। ● 1968 में शांता गाँधी ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में खेला। ● 1977 में रामगोपाल बज़ाज ने भी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में खेला। ●लेकिन सबसे सफल प्रस्तुति 1984 में बाबा कारंत ने किया था। ●दशरथ ओझाहिन्दी नाटकः उद्भव और विकासमें लिखते हैं कि- ”‘स्कन्दगुप्त’ नाटक के वस्तु-विन्यास में प्रसाद की प्रतिभा सजीव हो उठी है और उनकी नाट्यकला ने अपना अपूर्व कौशल दिखाया है। इस नाटक में भारतीय और यूरोपीय दोनों नाट्यकलाओं का...

चन्द्रगुप्त नाटक (chandragupta natak)

💐💐 चन्द्रगुप्त (नाटक) 💐💐 ◆ प्रकाशन :- 1931ई. ◆ रचियता :- जयशंकर प्रसाद ◆ अकं – चार अंक में ◆ चारों अंकों में कुल दृश्य :- 44 दृश्य(क्रमशः 11,10,9,14) ◆ कुल पात्र :- 35( 24 पुरुष और 11स्त्री पात्र) ◆ इतिहास की तीन घटनाएँ :- अलक्षेद्र का आक्रमण, नंदकुल की पराजय और सिल्यूकस का पराभव। ◆ नाटक का आधार : मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त का इतिहास ◆ नाटक का विषय :- ★ चन्द्रगुप्त मौर्य के समय भारत परिस्थितियां का चित्रण ★ विदेशी आक्रमण का चित्रण ( सिकन्दर और सिल्यूकस का आक्रमण) ★ आंतरिक कूटनीतियों का चित्रण ★ विदेशियों से भारत का संघर्ष और उस संघर्ष में भारत की विजय की थीम उठायी गयी है। ◆ पात्र :- ★ पुरुष पात्र :- 1. चाणक्य (विष्णुगुप्त) – मौर्य साम्राज्य का निर्माता 2. चंद्रगुप्त (मौर्य सम्राट्) 3. नंद (मगध राजा) 4. राक्षस (मगध का अमात्य) 5. वररुचि (कात्यायन) – मगध का अमात्य 6. शकटार (मगध का मंत्री) 7. आंभीक (तक्षशिला का राजकुमार) 8. सिंहरण 9. पर्वेतेश्वर (पंजाब का राजा) 10. सिकंदर (ग्रीक विजेता) 11. फिलिप्स 12. मौर्य सेनापति 13. एनीसा क्रोटीज (सिकंदर का सहचर) 14. देवबल, नागदत्त, गणमुख्य (मालव गणतंत्र के पदाधिकारी) 15. साइबर्टियस (मेगास्थनीज यवन दूत) 16. गांधार नरेश (आभीक का पिता) 17. सिल्यूकस (सिकंदर का सेनापति) 18. दाण्ड्यायन (एक तपस्वी) ★ स्त्री पात्र 1. अलका (तक्षशिला की राजकुमारी) 2. सुवासिनी (शकटार की कन्या,नन्द की नर्तकी,चाणक्य की पूर्व परिचिता,राक्षस की प्रणयिनी) 3. कल्याणी (मगध राजकुमारी) 4. नीला (कल्याणी की सहेली) 5. लीला (कल्याणी की सहेली) 6. मालविका (सिंधु देश की कुमारी) 7. कार्नेलिया (सिल्यूकस की कन्या) 8. मौर्य पत्नी (चंद्रगुप्त की माता) 9. एलिस (कार्नेलिया की सहेली) ◆ महत्त...

चन्द्रगुप्त (नाटक)

चन्द्रगुप्त (सन् 1931 में रचित) हिन्दी के प्रसिद्ध नाटककार जयशंकर प्रसाद का प्रमुख नाटक है। इसमें विदेशियों से भारत का संघर्ष और उस संघर्ष में भारत की विजय की थीम उठायी गयी है। प्रसाद जी के मन में भारत की गुलामी को लेकर गहरी व्यथा थी। इस ऐतिहासिक प्रसंग के माध्यम से उन्होंने अपने इसी विश्वास को वाणी दी है। शिल्प की दृष्टि से इसकी गति अपेक्षाकृत शिथिल है। इसकी कथा में वह संगठन, संतुलन और एकतानता नहीं है, जो ‘स्कंदगुप्त’ में है। अंक और दृश्यों का विभाजन भी असंगत है। चरित्रों का विकास भी ठीक तरह से नहीं हो पाया है। फिर भी ‘चंद्रगुप्त’ हिंदी की एक श्रेष्ठ नाट्यकृति है, प्रसाद जी की प्रतिभा ने इसकी त्रुटियों को ढंक दिया है। ‘चन्द्रगुप्त’, जय शंकर प्रसाद जी द्वारा लिखित नाटक है जो हिंदी-साहित्य के क्षेत्र में बहुत ही नामी-गिरामी पुस्तक है। यह नाटक मौर्य साम्राज्य के संस्थापक ‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ के उत्थान की कथा नाट्य रूप में कहता है। यह नाटक ‘चन्द्रगुप्त मौर्य’ के उत्थान के साथ-साथ उस समय के महाशक्तिशाली राज्य ‘मगध’ के राजा ‘धनानंद’ के पतन की कहानी भी कहता है। यह नाटक ‘चाणक्य’ के प्रतिशोध और विश्वास की कहानी भी कहता है। यह नाटक राजनीति, कूटनीति, षड़यंत्र, घात-आघात-प्रतिघात, द्वेष, घृणा, महत्वाकांक्षा, बलिदान और राष्ट्र-प्रेम की कहानी भी कहता है। यह नाटक ग्रीक के विश्वविजेता सिकंदर या अलेक्सेंडर या अलक्षेन्द्र के लालच, कूटनीति एवं डर की कहानी भी कहता है। यह नाटक प्रेम और प्रेम के लिए दिए गए बलिदान की कहानी भी कहता है। यह नाटक त्याग और त्याग से सिद्ध हुए राष्ट्रीय एकता की कहानी भी कहता है। ‘चन्द्रगुप्त’ और ‘चाणक्य’ के ऊपर कई विदेशी और देशी लेखकों ने बहुत कुछ लिखा है। अलग-अलग प्रका...

चन्द्रगुप्त नाटक

चन्द्रगुप्त नाटक का प्रकाशन 1931 में हुआ। चंद्रगुप्त के जन्म के पहले तक मौर्य वंश ने कोई भी ऐतिहासिक कार्य नहीं किया था। तब तक मौर्य शब्द का कोई नामोनिशान नहीं था। चंद्रगुप्त के कारण मौर्य वंश का नाम सर्वत्र फैला केवल भारतवर्ष ही नहीं बल्कि ग्रीस आदि समस्त देशों से परिचित करा दिया। नाटक के पात्र चाणक्य ( विष्णुगुप्त) – मौर्य साम्रज्य का निर्माता। मुख्य पात्र। नाटक पूरा इसी पात्र के ऊपर निर्भर है। चंद्रगुप्त – मौर्य-सम्राट। नाटक का नायक है। जो कि निर्भीक, दृढ़ और आत्मविश्वास से परिपूर्ण है नंद – मगध का सम्राट। राक्षस – मगध का अमात्य। वररुचि (कात्यायन) – मगध का अमात्य। शकटार –मगध का मंत्री। आम्भीक – तक्षशिला का राजकुमार। पर्वतेश्वर– पंजाब का राजा (पोरस)। सिंहरण – मालव गण-मुख्य का कुमार। जो कि एक गौण पात्र है। लेकिन चाणक्य, चन्द्रगुप्त, अलका, आम्भीक इन सभी पात्रों पर इसका प्रभाव है। नाटक को प्रचालित करने का कार्य करता है। सिकंदर – ग्रीक-विजेता। फिलिप्स – सिकंदर का क्षत्रप। मौर्य सेनापति – चंद्रगुप्त का पिता। एनिसाक्रिटीज़ – सिकंदर का सहचर। देवबल, नागदत्त, गण-मुख्य – मालव-गणतंत्र के पदाधिकारी। साइबर्टियस, मेगास्थनीज – यवन दूत। गांधार-नरेश – आम्भीक का पिता। सिल्यूकस – सिकंदर का सेनापति। दण्डयायन – एक तपस्वी। अलका – मुख्य नारी पात्र। गांधार नरेश की पुत्री। तक्षशिला की राजकुमारी। आम्भीक की बहन। राजकुमारी दयालु, गुणी और साहसी थी। सुवासिनी – शकटार की कन्या। कल्याणी –मगध-राजकुमारी। नीला, लीला – कल्याणी की सहेलियाँ। मालविका – सिंधु-देश की कुमारी। मुख्य नारी पात्र। यह एक संघर्षशील, स्वाभिमानी स्त्री है। जो कि अशिक्षित भी है। कार्नेलिया – सिल्यूकस की कन्या। मौर्य-पत्नी – चंद्रगुप्त की म...

Class 12 Hindi Antra Chapter 1 Summary – Devsena Ka Geet, Karneliya Ka Geet Summary Vyakhya

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चन्द्रगुप्त नाटक: जयशंकर प्रसाद

प्रकाशन-1931 • यह 4 अंको में विभाजित है। • नाटक के प्रथम अंक में- 11 दृश्य है। • (शुरुआत-तक्षशिला के गुरुकुल का मठ।चाणक्य और सिंहरण) • दूसरे अंक में- 10 दृश्य है। • (इसकी शुरुआत-उद्भाण्ड में सिंधु-तट पर ग्रीक-शिविर के पास वृक्ष के नीचे कार्नेलिया) • तीसरे अंक में- 9 दृश्य है। • (इसकी शुरुआत-विपाशा-तट के शिविर में राक्षस टहलता हुआ) • चौथे अंक में- 14 दृश्य है। • (इसकी शुरुआत-मगध में राजकीय उपवन में कल्याणी) • इसमें में 13 गीत है • चाणक्य का ही नाम- (विष्णुगुप्त है) • प्रसाद का उद्देश्य-पराधीनता से मुक्ति के लिए प्रदेशों,क्षेत्रों,जातियों, धर्मों,आदि की निजताओं ,स्वातंत्र्य कामनाओं और अहन्ताओं को भुलाकर विशाल आर्यवर्त को स्वाधीन और अजेय बनाना है। पुरुष-पात्र चाणक्य (विष्णुगुप्त) : मौर्य साम्राज्य का निर्माता चन्द्रगुप्त : मौर्य सम्राट नन्द : मगध-सम्राट राक्षस : मगध का अमात्य वररुचि (कात्यायन) : मगध का अमात्य शकटार : मगध का मंत्री आम्भीक : तक्षशिला का राजकुमार सिंहरण : मालव गणमुख्य का कुमार पर्वतेश्वर : पंजाब का राजा (पोरस) सिकन्दर : ग्रीक विजेता फिलिप्स : सिकन्दर का क्षत्रप मौर्य्य-सेनापति : चन्द्रगुप्त का पिता एनीसाक्रीटीज : सिकन्दर का सहचर देवबल, नागदत्त, गणमुख्य : मालव गणतंत्र के पदाधिकारी साइबर्टियस, मेगास्थनीज : यवन दूत गान्धार-नरेश : आम्भीक का पिता सिल्यूकस : सिकन्दर का सेनापति दाण्ड्यायन : एक तपस्वी नारी-पात्र अलका : तक्षशिला की राजकुमारी सुवासिनी : शकटार की कन्या कल्याणी : मगध राजकुमारी नीला, लीला : कल्याणी की सहेलियाँ मालविका : सिन्धु देश की राजक्मारी कार्नेलिया : सिल्यूकस की कन्या मौर्य्य-पत्नी : चन्द्रगुप्त की माता एलिस : कार्नेलिया की सहेली • यह एक ऐतिहासिक नाटक ...