सुप्रीम कोर्ट

  1. लव जिहाद के विरोध में कल होने जा रही उत्तरकाशी महापंचायत के खिलाफ सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
  2. उत्तरकाशी महापंचायत पर रोक लगाने वाली मांग पर जल्द सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
  3. Former Judge Madan b lokur slams Supreme Court delhi police Brij Bhushan Sharan WFI Anurag Thakur
  4. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई, दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला
  5. उत्तरकाशी महापंचायत पर रोक लगाने वाली मांग पर जल्द सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
  6. लव जिहाद के विरोध में कल होने जा रही उत्तरकाशी महापंचायत के खिलाफ सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार
  7. Former Judge Madan b lokur slams Supreme Court delhi police Brij Bhushan Sharan WFI Anurag Thakur
  8. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई, दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला


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लव जिहाद के विरोध में कल होने जा रही उत्तरकाशी महापंचायत के खिलाफ सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

Supreme Court: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में 15 जून को होने जा रही महापंचायत के खिलाफ सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. हिंदू संगठनों ने लव जिहाद और लैंड जिहाद के खिलाफ उत्तरकाशी के पुरोला में यह महापंचायत बुलाई है. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से मना करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट में अपनी बात रखनी चाहिए. याचिकाकर्ता एसोसिएशन फ़ॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स की तरफ से वकील शाहरुख आलम ने मामला सुप्रीम कोर्ट में रखा. उन्होंने जजों से कहा कि एक समुदाय को जगह खाली करने के लिए धमकाया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को भड़काऊ भाषण पर कार्रवाई का आदेश दिया हुआ है. इसलिए, कार्यक्रम पर रोक लगनी चाहिए. कानून-व्यवस्था प्रशासन का कम- सुप्रीम कोर्ट जस्टिस विक्रम नाथ और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की अवकाशकालीन बेंच सुनवाई को तैयार नहीं हुई. जस्टिस नाथ ने कहा - "कानून-व्यवस्था देखना प्रशासन का काम है. आप हाई कोर्ट को हमारे पिछले आदेश की जानकारी देकर सुनवाई का अनुरोध कर सकते हैं." वकील ने सुनवाई पर ज़ोर देते हुए कहा कि महापंचायत में बहुत कम समय बचा है. इस ओर जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा, "हम यह नहीं समझ पा रहे कि आपको हाई कोर्ट जाने में क्या समस्या है? अगर सुप्रीम कोर्ट ने पहले कोई आदेश दिया है, तो मामला यहीं रखना ज़रूरी नहीं. आप को हाई कोर्ट पर विश्वास रखना चाहिए." याचिका ली गई वापस जजों के रुख को देखते हुए वकील ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी. उन्होंने कहा कि वह प्रशासन को ज्ञापन देंगे. हाई कोर्ट में भी याचिका दाखिल करेंगे. इसके बाद जजों ने उन्हें याचिका वापस लेने की इजाज़त दे दी. इस महापंचायत के खिलाफ दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद और लेखक अशोक वाजपेयी ने चीफ...

उत्तरकाशी महापंचायत पर रोक लगाने वाली मांग पर जल्द सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में 15 जून को होने वाली महापंचायत पर रोक लगाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. सुपीम कोर्ट से याचिकाकर्ता को फिलहाल राहत नहीं मिली है. उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि कानून के मुताबिक, यह प्रशासनिक मामला है, इसको लेकर आप हाई कोर्ट जा सकते हैं. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि कानून व्यवस्था राज्य सरकार का मसला है. आप सुप्रीम कोर्ट क्यों आ गए? आपको पहले हाई कोर्ट जाना चाहिए. आप हाई कोर्ट जाइए. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि आपको प्रशासन पर भरोसा क्यों नहीं है? आपको क्यों लगता है कि प्रशासन इस पर कोई कार्रवाई नहीं करेगा? बता दें कि दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद और अशोक वाजपेयी ने CJI जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र भेजकर महापंचायत पर रोक लगाने की मांग की थी. याचिका में क्या कहा गया है? इस याचिका में कहा गया है, "इस तरह की घटनाएं समाज और कानून के लिए अभिशाप हैं और संसदीय लोकतंत्र में इसका समर्थन नहीं किया जा सकता है. ऐसी चीजें उस सेक्युलर ताने-बाने को खतरे में डालती हैं, जिनसे देश एकता में बंधता है... अगर महापंचायत होने की अनुमति दी जाती है, तो इससे राज्य में सांप्रदायिक तनाव हो सकता है. ऐसे में जिनके खिलाफ महापंचायत आयोजित की जानी है, उनके जीवन और संपत्ति की रक्षा के लिए तत्काल कोर्ट के हस्तक्षेप की जरूरत है.” राज्य सरकार को निर्देश देने की मांग याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट निर्देश दे कि राज्य सरकार उत्तरकाशी के उन लोगों की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाए, जिन्हें इस समय खतरा है. साथ ही सरकार उन लोगों को पर्याप्त मुआवजा दे, जिन्हे...

Former Judge Madan b lokur slams Supreme Court delhi police Brij Bhushan Sharan WFI Anurag Thakur

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के दिल्ली पुलिस को ऐसे नहीं छोड़ना चाहिए था… जस्टिस लोकुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को एफआईआर दर्ज करने में देरी पर दिल्ली पुलिस को इतनी आसानी से नहीं छोड़ना चाहिए था। कम से कम सुप्रीम कोर्ट को पूरी जांच की खुद निगरानी करनी चाहिए थी। ‘अनहद’ (ANHAD) और नेशनल अलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट की तरफ से आयोजित एक वेबीनार में जस्टिस लोकुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को सबसे पहले दिल्ली पुलिस से पूछना चाहिए था क्या कि आपने FIR में देरी क्यों की? लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा नहीं किया। पहलवानों को ही अपराधी बना दिया Bar & Bench की एक रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस लोकुर ने पहलवानों के खिलाफ दिल्ली पुलिस की कार्रवाई पर भी सवाल खड़े किए और कहा कि जो लोग पीड़ित थे और जंतर-मंतर पर अपना दर्द बयां करने आए थे, उन्हीं को सेक्शन 144 के तहत अपराधी बना दिया गया। फिर कहा गया कि अब आप जंतर-मतर पर नहीं बैठ सकते। ऐसे में वे कहां जाएंगे? किससे अपनी बात कहेंगे? अनुराग ठाकुर पर भी सवाल? जस्टिस मदन लोकुर ने खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के उस बयान पर भी सवाल खड़े किए, जिसमें उन्होंने कहा था कि जांच 15 जून तक पूरी हो जाएगी। जस्टिस लोकुर ने कहा कि उन्हें (अनुराग ठाकुर को) यह कैसे पता है? इस मामले में कोई बयान सिर्फ जांच अधिकारी (IO) ही दे सकता है, इसके अलावा दूसरा कोई नहीं। ज्यादा से ज्यादा वह अपने सीनियर अफसर या पुलिस कमिश्नर को जांच से जुड़ी जानकारी दे सकता है। इसका मतलब यह है कि पर्दे के पीछे भी कुछ चल रहा है, जो बहुत गंभीर है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट खुद कई बार कह चुका है कि जांच में कोई दखल नहीं दे सकता है, उच्चतम न्यायालय भी नहीं। पीड़िता से 5 घंटे पूछताछ क्यों? जस्टिस लोकुर ने नाबालिग पीड़ित...

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई, दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला

दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई रोक दिल्ली सरकार ने कहा था कि जब तक दोपहिया टैक्सी के ऑपरेशन को लेकर पॉलिसी फाइनल नहीं हो जाती, तब तक बाइक टैक्सी सर्विस न शुरू की जाए। इस पर रैपिडो और उबर जैसी कंपनियों ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार के इस नोटिस पर स्टे लगा दिया था। साथ ही पॉलिसी फाइनल होने तक एग्रीगेटर्स को सेवाएं जारी रखने का फैसला दिया था। बाइक टैक्सी पर कोई भी एक्शन लेने पर भी रोक लगा दी थी। दिल्ली सरकार ने 26 मई को हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। जिस पर जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस राजेश बिंदल की वेकेशन बेंच ने सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया और दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। दिल्ली सरकार ने फरवरी 2023 में राजधानी में बाइक टैक्सी पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी। केजरीवाल सरकार में परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने कहा था कि सरकार जल्द ही टू-व्हीलर, थ्री-व्हीलर और फोर-व्हीलर एग्रीगेटर्स के लिए नई पॉलिसी लेकर आएगी। दिल्ली सरकार बोली- लाइसेंस और परमिट के बिना चल रहीं बाइक टैक्सी बाइक टैक्सी को लेकर दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि एग्रीगेटर्स की तरफ से दोपहिया वाहनों का इस्‍तेमाल बिना प्रॉपर लाइसेंस और परमिट के हो रहा है। एग्रीगेटर के लिए कॉमर्शियल लाइसेंस की जरूरत का प्रावधान मोटर व्हीकल एक्‍ट की धारा 93 में है। दिल्‍ली सरकार की दलील थी कि ये गाइडलाइंस चार पहिया और दो पहिया, दोनों तरह के वाहनों के लिए है। ऐसे में बिना पॉलिसी लाए नॉन ट्रांसपोर्ट टू-व्हीलर्स का यूज एग्रीगेटर्स नहीं कर सकते। बाइक टैक्सी कंपनियां बोलीं- हजारों राइडर्स पर फर्क पड़ेगा रैपिडो और उबर का कहना थ...

उत्तरकाशी महापंचायत पर रोक लगाने वाली मांग पर जल्द सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में 15 जून को होने वाली महापंचायत पर रोक लगाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. सुपीम कोर्ट से याचिकाकर्ता को फिलहाल राहत नहीं मिली है. उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि कानून के मुताबिक, यह प्रशासनिक मामला है, इसको लेकर आप हाई कोर्ट जा सकते हैं. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि कानून व्यवस्था राज्य सरकार का मसला है. आप सुप्रीम कोर्ट क्यों आ गए? आपको पहले हाई कोर्ट जाना चाहिए. आप हाई कोर्ट जाइए. कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि आपको प्रशासन पर भरोसा क्यों नहीं है? आपको क्यों लगता है कि प्रशासन इस पर कोई कार्रवाई नहीं करेगा? बता दें कि दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद और अशोक वाजपेयी ने CJI जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र भेजकर महापंचायत पर रोक लगाने की मांग की थी. याचिका में क्या कहा गया है? इस याचिका में कहा गया है, "इस तरह की घटनाएं समाज और कानून के लिए अभिशाप हैं और संसदीय लोकतंत्र में इसका समर्थन नहीं किया जा सकता है. ऐसी चीजें उस सेक्युलर ताने-बाने को खतरे में डालती हैं, जिनसे देश एकता में बंधता है... अगर महापंचायत होने की अनुमति दी जाती है, तो इससे राज्य में सांप्रदायिक तनाव हो सकता है. ऐसे में जिनके खिलाफ महापंचायत आयोजित की जानी है, उनके जीवन और संपत्ति की रक्षा के लिए तत्काल कोर्ट के हस्तक्षेप की जरूरत है.” राज्य सरकार को निर्देश देने की मांग याचिका में मांग की गई है कि कोर्ट निर्देश दे कि राज्य सरकार उत्तरकाशी के उन लोगों की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम उठाए, जिन्हें इस समय खतरा है. साथ ही सरकार उन लोगों को पर्याप्त मुआवजा दे, जिन्हे...

लव जिहाद के विरोध में कल होने जा रही उत्तरकाशी महापंचायत के खिलाफ सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

Supreme Court: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में 15 जून को होने जा रही महापंचायत के खिलाफ सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. हिंदू संगठनों ने लव जिहाद और लैंड जिहाद के खिलाफ उत्तरकाशी के पुरोला में यह महापंचायत बुलाई है. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से मना करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट में अपनी बात रखनी चाहिए. याचिकाकर्ता एसोसिएशन फ़ॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स की तरफ से वकील शाहरुख आलम ने मामला सुप्रीम कोर्ट में रखा. उन्होंने जजों से कहा कि एक समुदाय को जगह खाली करने के लिए धमकाया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को भड़काऊ भाषण पर कार्रवाई का आदेश दिया हुआ है. इसलिए, कार्यक्रम पर रोक लगनी चाहिए. कानून-व्यवस्था प्रशासन का कम- सुप्रीम कोर्ट जस्टिस विक्रम नाथ और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की अवकाशकालीन बेंच सुनवाई को तैयार नहीं हुई. जस्टिस नाथ ने कहा - "कानून-व्यवस्था देखना प्रशासन का काम है. आप हाई कोर्ट को हमारे पिछले आदेश की जानकारी देकर सुनवाई का अनुरोध कर सकते हैं." वकील ने सुनवाई पर ज़ोर देते हुए कहा कि महापंचायत में बहुत कम समय बचा है. इस ओर जस्टिस अमानुल्लाह ने कहा, "हम यह नहीं समझ पा रहे कि आपको हाई कोर्ट जाने में क्या समस्या है? अगर सुप्रीम कोर्ट ने पहले कोई आदेश दिया है, तो मामला यहीं रखना ज़रूरी नहीं. आप को हाई कोर्ट पर विश्वास रखना चाहिए." याचिका ली गई वापस जजों के रुख को देखते हुए वकील ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी. उन्होंने कहा कि वह प्रशासन को ज्ञापन देंगे. हाई कोर्ट में भी याचिका दाखिल करेंगे. इसके बाद जजों ने उन्हें याचिका वापस लेने की इजाज़त दे दी. इस महापंचायत के खिलाफ दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद और लेखक अशोक वाजपेयी ने चीफ...

Former Judge Madan b lokur slams Supreme Court delhi police Brij Bhushan Sharan WFI Anurag Thakur

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के दिल्ली पुलिस को ऐसे नहीं छोड़ना चाहिए था… जस्टिस लोकुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को एफआईआर दर्ज करने में देरी पर दिल्ली पुलिस को इतनी आसानी से नहीं छोड़ना चाहिए था। कम से कम सुप्रीम कोर्ट को पूरी जांच की खुद निगरानी करनी चाहिए थी। ‘अनहद’ (ANHAD) और नेशनल अलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट की तरफ से आयोजित एक वेबीनार में जस्टिस लोकुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को सबसे पहले दिल्ली पुलिस से पूछना चाहिए था क्या कि आपने FIR में देरी क्यों की? लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा नहीं किया। पहलवानों को ही अपराधी बना दिया Bar & Bench की एक रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस लोकुर ने पहलवानों के खिलाफ दिल्ली पुलिस की कार्रवाई पर भी सवाल खड़े किए और कहा कि जो लोग पीड़ित थे और जंतर-मंतर पर अपना दर्द बयां करने आए थे, उन्हीं को सेक्शन 144 के तहत अपराधी बना दिया गया। फिर कहा गया कि अब आप जंतर-मतर पर नहीं बैठ सकते। ऐसे में वे कहां जाएंगे? किससे अपनी बात कहेंगे? अनुराग ठाकुर पर भी सवाल? जस्टिस मदन लोकुर ने खेल मंत्री अनुराग ठाकुर के उस बयान पर भी सवाल खड़े किए, जिसमें उन्होंने कहा था कि जांच 15 जून तक पूरी हो जाएगी। जस्टिस लोकुर ने कहा कि उन्हें (अनुराग ठाकुर को) यह कैसे पता है? इस मामले में कोई बयान सिर्फ जांच अधिकारी (IO) ही दे सकता है, इसके अलावा दूसरा कोई नहीं। ज्यादा से ज्यादा वह अपने सीनियर अफसर या पुलिस कमिश्नर को जांच से जुड़ी जानकारी दे सकता है। इसका मतलब यह है कि पर्दे के पीछे भी कुछ चल रहा है, जो बहुत गंभीर है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट खुद कई बार कह चुका है कि जांच में कोई दखल नहीं दे सकता है, उच्चतम न्यायालय भी नहीं। पीड़िता से 5 घंटे पूछताछ क्यों? जस्टिस लोकुर ने नाबालिग पीड़ित...

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई, दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला

दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई रोक दिल्ली सरकार ने कहा था कि जब तक दोपहिया टैक्सी के ऑपरेशन को लेकर पॉलिसी फाइनल नहीं हो जाती, तब तक बाइक टैक्सी सर्विस न शुरू की जाए। इस पर रैपिडो और उबर जैसी कंपनियों ने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार के इस नोटिस पर स्टे लगा दिया था। साथ ही पॉलिसी फाइनल होने तक एग्रीगेटर्स को सेवाएं जारी रखने का फैसला दिया था। बाइक टैक्सी पर कोई भी एक्शन लेने पर भी रोक लगा दी थी। दिल्ली सरकार ने 26 मई को हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। जिस पर जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस राजेश बिंदल की वेकेशन बेंच ने सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया और दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। दिल्ली सरकार ने फरवरी 2023 में राजधानी में बाइक टैक्सी पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी। केजरीवाल सरकार में परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने कहा था कि सरकार जल्द ही टू-व्हीलर, थ्री-व्हीलर और फोर-व्हीलर एग्रीगेटर्स के लिए नई पॉलिसी लेकर आएगी। दिल्ली सरकार बोली- लाइसेंस और परमिट के बिना चल रहीं बाइक टैक्सी बाइक टैक्सी को लेकर दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि एग्रीगेटर्स की तरफ से दोपहिया वाहनों का इस्‍तेमाल बिना प्रॉपर लाइसेंस और परमिट के हो रहा है। एग्रीगेटर के लिए कॉमर्शियल लाइसेंस की जरूरत का प्रावधान मोटर व्हीकल एक्‍ट की धारा 93 में है। दिल्‍ली सरकार की दलील थी कि ये गाइडलाइंस चार पहिया और दो पहिया, दोनों तरह के वाहनों के लिए है। ऐसे में बिना पॉलिसी लाए नॉन ट्रांसपोर्ट टू-व्हीलर्स का यूज एग्रीगेटर्स नहीं कर सकते। बाइक टैक्सी कंपनियां बोलीं- हजारों राइडर्स पर फर्क पड़ेगा रैपिडो और उबर का कहना थ...