स्वास्तिक चिन्ह का अर्थ

  1. स्वास्तिक का चिन्ह Ivery Blog
  2. स्‍वास्तिक के चिन्‍ह का क्‍या मतलब है?, कितना पुराना है इसका इतिहास
  3. स्वस्तिक चिन्ह क्या है?
  4. सपने में स्वास्तिक चिन्ह (Swastika symbol in Dream) देखने का क्या अर्थ होता है?
  5. स्वास्तिक क्या है? इसका धार्मिक महत्व क्यों हैं? WonderHindi
  6. स्‍वास्तिक का अर्थ और इतिहास
  7. हिंदू धर्म के लोग क्यों बनाते हैं स्वास्तिक (Swastik) का चिन्ह – HindiThreads.com


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स्वास्तिक का चिन्ह Ivery Blog

Facebook Twitter Pinterest WhatsApp स्वास्तिक का चिन्ह ? स्वास्तिक का चिन्ह किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पहले हिन्दू धर्म में स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उसकी पूजा करने का महत्व है। मान्यता है कि ऐसा करने से कार्य सफल होता है। स्वास्तिक के चिन्ह को मंगल प्रतीक भी माना जाता है। स्वास्तिक शब्द को ‘सु’ और ‘अस्ति’ का मिश्रण योग माना जाता है। यहां ‘सु’ का अर्थ है शुभ और ‘अस्ति’ से तात्पर्य है होना। अर्थात स्वास्तिक का मौलिक अर्थ है ‘शुभ हो’, ‘कल्याण हो’। शुभ कार्य, यही कारण है स्वास्तिक का चिन्ह किसी भी शुभ कार्य के दौरान स्वास्तिक को पूजना अति आवश्यक माना गया है। लेकिन असल में स्वस्तिक का यह चिन्ह क्या दर्शाता है, इसके पीछे ढेरों तथ्य हैं। स्वास्तिक में चार प्रकार की रेखाएं होती हैं, जिनका आकार एक समान होता है। चार रेखाएं, मान्यता है कि यह रेखाएं चार दिशाओं – पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण की ओर इशारा करती हैं। लेकिन हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह रेखाएं चार वेदों – ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद का प्रतीक हैं। (कुछ यह भी मानते हैं कि यह चार रेखाएं सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा के चार सिरों को दर्शाती हैं।(शायद यह तथ्य वैज्ञानिक नही है) चार देवों का प्रतीक, इसके अलावा इन चार रेखाओं की चार पुरुषार्थ, स्वास्तिक का चिन्ह चार आश्रम, चार लोक और चार देवों यानी कि भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश (भगवान शिव) और गणेश से तुलना की गई है। स्वास्तिक की चार रेखाओं को जोड़ने के बाद मध्य में बने बिंदु को भी विभिन्न मान्यताओं द्वारा परिभाषित किया जाता है। सूर्य भगवान का चिन्ह, स्वास्तिक की चार रेखाएं एक घड़ी की दिशा में चलती हैं, जो संसार के सही दिशा में चलने का प्रतीक है। हिन्दू मान्यताओं...

स्‍वास्तिक के चिन्‍ह का क्‍या मतलब है?, कितना पुराना है इसका इतिहास

स्वास्तिक के चिन्ह को मंगल प्रतीक भी माना जाता है। स्वास्तिक शब्द का उद्भव संस्‍कृत के 'सु' और 'अस्ति' से मिलकर बना है। यहां 'सु' का अर्थ है शुभ और 'अस्ति' से तात्पर्य है होना। स्‍वास्तिक का अर्थ है 'शुभ हो', 'कल्याण हो'। स्‍वास्तिक के चिन्‍ह का इस्‍तेमाल कई सदियो से हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म में होता आ रहा है। प्राचीन समय में एशिया आने वाले पश्चिमी यात्रियों इस चिन्‍ह के सकारात्‍मकता से प्रभावित होकर घर लौटने पर अपने घरों पर इसका इस्‍तेमाल करने लगे। 20 वीं शताब्‍दी आते आते स्‍वास्तिक पूरे विश्‍व में सौभाग्‍य और मंगल कामना के रुप में इस्‍तेमाल होने लगा। स्‍वास्तिक के चिन्‍ह का इतिहास बहुत ही पुराना है। चार रेखाओं का महत्‍व मान्यता है कि स्‍वास्तिक की यह रेखाएं चार दिशाओं - पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण की ओर इशारा करती हैं। लेकिन हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह रेखाएं चार वेदों - ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद का प्रतीक हैं। कुछ यह भी मानते हैं कि यह चार रेखाएं सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा के चार सिरों को दर्शाती हैं। मध्य स्थान का महत्‍व ह‍िंदू धर्म में माना जाता है कि यदि स्वास्तिक की चार रेखाओं को भगवान ब्रह्मा के चार सिरों के समान माना गया है, तो फलस्वरूप मध्य में मौजूद बिंदु भगवान विष्णु की नाभि है, जिसमें से भगवान ब्रह्मा प्रकट होते हैं। इसके अलावा यह मध्य भाग संसार के एक धुर से शुरू होने की ओर भी इशारा करता है। सूर्य भगवान का चिन्ह स्वास्तिक की चार रेखाएं एक घड़ी की दिशा में चलती हैं, जो संसार के सही दिशा में चलने का प्रतीक है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यदि स्वास्तिक के आसपास एक गोलाकार रेखा खींच दी जाए, तो यह सूर्य भगवान का चिन्ह माना जाता है। वह सूर्य देव ...

स्वस्तिक चिन्ह क्या है?

स्वास्तिक हिन्दू धर्म में शुभता का प्रतीक माना जाता है। हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य करने के लिए स्वास्तिक चिन्ह बनाया जाता है। स्वास्तिक चिन्ह को हिन्दू धर्म को मानने वाले अपने घरों के बाहर और मन्दिरों में देखा जा सकता है। स्वास्तिक सामान्य शुभता का प्रतीक माना जाता है। स्वास्तिक आत्मा की शुद्धता, सत्य, और स्थिरता, वैकल्पिक रूप से सूर्य का प्रतिनिधित्व कर सकता है। स्वास्तिक चिन्ह का उपयोग प्राचीन काल से किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि स्वास्तिक का चिन्ह भगवान गणेश का प्रतीक है। स्वास्तिक चिन्ह का वर्णन स्वास्तिक के मध्य में ब्रह्म, मध्य के निकलतें हुई चार भुजायें को धर्म, मोक्ष, अर्थ और काम कहा जाता है। भुजायें के मुडने के बाद की सीधी रेखा को सारुप्य, सालोक्य, सामीप्य और सायुज्य कहा जाता है। स्वास्तिक की चिन्ह की भुजायें के सीरे को अहंकार, मन, चित्त और बुद्धि कहा जाता हैं। स्वास्तिक के भुजायें के खाली स्थान को समर्पण, प्रेम या आस्था, विश्वास और श्रद्धा कहा जाता है। • पुरुषाथों के निम्न चार प्रकार - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। • मुक्ति के चार प्रकार - सारुप्य, सालोक्य, सामीप्य और सायुज्य। • अंतः करण निम्न चार प्रकार - अहंकार, मन, चित्त और बुद्धि। • भक्ति निम्न चार प्रकार - समर्पण, प्रेम, विश्वास और श्रद्धा। स्वास्तिक चिन्ह का वर्णन हिन्दू धर्म में कई प्रकार से किया गया है। जैसे स्वास्तिक की चार भुजायें - चार दिशाओं, चार वेदों और उनके सामंजस्यपूर्ण संपूर्ण का वर्णन करता हैं। स्वास्तिक चिन्ह का धार्मिक महत्व हिंदू धर्म में स्वास्तिक चिन्ह को गणपति का प्रतीक माना जाता है। भगवान गणेश जो सभी विघ्नों को दूर करके, सुख-समृद्धि का वरदान देते हैं। हिन्दू धर्म में किसी भी कार्य ...

सपने में स्वास्तिक चिन्ह (Swastika symbol in Dream) देखने का क्या अर्थ होता है?

सपने में स्वास्तिक का निशान देखने का मतलब हिंदू धर्म में स्वास्तिक के निशान को अत्यंत ही शुभ माना गया है। सनातन धर्म का पालन करने वालों के घरों की दीवारों पर स्वास्तिक का निशान देखा जा सकता है। लोग अपने में घरों में तुलसी के पौधे के गमले पर भी स्वास्तिक का निशान बनाते हैं। इसे बहुत ही शुभ माना जाता है। सपने में स्वास्तिक का चिन्ह देखना बेहद ही शुभ माना जाता है। अगर किसी व्यक्ति को सपने में स्वास्तिक का चिन्ह या निशान दिखता है तो इसका मतलब होता है कि उस व्यक्ति के जीवन में जल्द ही कोई महत्वपूर्ण कार्य होने वाला है। स्वप्न शास्त्र के मुताबिक, सपने में स्वास्तिक चिन्ह देखने का अर्थ है कि आपके मान-सम्मान में वृद्धि होने वाली है और आपके जीवन में से आर्थिक संकट भी दूर होगा। इसी प्रकार सपने में संतरे का पौधा देखना भी शुभ माना जाता है। अगर कोई व्यक्ति सपने में संतरा का पौधा देखता है तो इसका अर्थ होता है कि उसकी आर्थिक समस्या का समाधान जल्द ही होने वाला है। ऐसे सपने में बेहद की प्रभावशाली माने जाते हैं। स्वप्न शास्त्र के मुताबिक, जब किसी व्यक्ति को कहीं से अचानक धन की प्राप्ति होने वाली होती है तब सपने में संतरे का पौधा दिखाई देता है।

स्वास्तिक क्या है? इसका धार्मिक महत्व क्यों हैं? WonderHindi

इस लेख में हम स्वास्तिक पर सरल एवं सहज चर्चा करेंगे एवं जानेंगे कि इसका धार्मिक महत्व क्यों हैं, ये इतना पवित्र क्यों है? आदि। तो इस तथ्य को अच्छी तरह से समझने के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़ें साथ ही साइट पर उपलब्ध अन्य दिलचस्प तथ्यों को भी जानें। स्वास्तिक को पुण्य का प्रतीक क्यूँ माना जाता है? बहुत समय पहले मैंने एक मूवी में बौद्ध धर्म में भी स्वस्तिक के चिन्ह को अपनाया गया है। बौद्ध धर्म में, स्वस्तिक को बुद्ध के पैरों के निशान का प्रतिनिधित्व करने के लिए माना जाता है। जैन धर्म में भी स्वास्तिक चिन्ह को अपनाया गया है। जैन संप्रदाय में लाल,पीले एवं श्वेत रंग से अंकित स्वस्तिक का प्रयोग होता रहा है । मेसोपोटामिया सभ्यता में इसका इस्तेमाल सिक्कों पर किया जाता था। यह अफ्रीका और एशिया में प्राचीन मिट्टी के बर्तनों पर पाया गया है। इसे जर्मनिक और वाइकिंग संस्कृतियों में भी अपनाया गया। 19 वीं और 20 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में, स्वस्तिक पश्चिमी संस्कृति में अच्छी तरह से प्रतीक के रूप में स्थापित हो गया। और तब पता चला कि क्यों हिटलर ने इस प्रतीक का इस्तेमाल किया। हालांकि हिटलर ने स्वस्तिक का उपयोग नफरत फैलाने के लिए किया पर हिन्दू धर्म के लिए ये एक पुण्य प्रतीक है। स्वास्तिक का मतलब स्वस्तिक शब्द सु+अस्ति+क से बना है। यानी शुभ करने वाला । मूल संस्कृत में इसका इसका अर्थ है “कल्याण के लिए अनुकूल।” इसमें चारों दिशाओं में जाती रेखाएँ होती है, जो दाई ओर मुड़ जाती हैं। धन चिन्ह(प्लस) बना कर उसकी चारों भुजाओं के कोने से समकोण बननेवाली एक रेखा दाहिनी ओर खींचने से स्वास्तिक बन जाता है। इसका धार्मिक महत्व भारतीय संस्कृति में लाल रंग का महत्व है इसीलिए हिंदुओं के व्रतों, पर्वों, त्योहारों, प...

——–स्वास्तिक——

——–स्वास्तिक——- अर्थ::महत्व::व्याख्या ——————————– स्वास्तिक हिंदु धर्म का सनातन एवं शुभता का प्रतीक माना गया है ।हर शुभ कार्य करने से पहले इसका चिन्ह बनाया जाता है। ईश्वर दसों दिशाओं के कण कण में विद्यमान हो और उसका प्रत्येक जीव उसका अस्तित्व स्वीकार करे।सु अर्थात शुभ और अस्ति का अर्थ होना।स्वास्तिक का उद्भव वेदों के साथ ही हुआ।यदि आप स्वास्तिक को देखें तो यह चार प्रमुख दिशायें और चार उपदिशायें और चार ही केंद्रक हैं।इसको जिस ओर से घुमाओ यह एक समान दिखाई देता है।हिंदु धर्म में स्वास्तिक और ॐ के साथ ही मंगल और शुभता का प्रतीक माना गया है।यह वास्तु दोषों का निवारक भी माना गया है। विवेचना:— राजेश’ललित’

स्‍वास्तिक का अर्थ और इतिहास

हिन्दू धर्म में स्‍वास्तिक चिन्ह का बहुत अधिक महत्व है। किसी भी मांगलिक एवं शुभ कार्य को शुरू करने से पूर्व देहरी या पूजा-स्थल पर स्‍वास्तिक का चिन्ह बनाया जाता है। भारतीय परंपरा में स्‍वास्तिक सदियों से उपयोग किया जाता रहा है। हमारे देश में सनातन धर्म के अतिरिक्त बौद्धों और जैन धर्म के अनुयायियों के मध्य भी इस प्रतीक का अत्यंत महत्व है। ऐसे में इस चिन्ह का अर्थ, इसकी मान्यता, इतिहास और इस प्रतीक का महत्व जानना आवश्यक है। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको स्‍वास्तिक का अर्थ और इतिहास (Swastika Meaning & History in Hindi) सम्बंधित सभी जानकारी प्रदान करने वाले है। इस आर्टिकल के माध्यम से आप स्वास्तिक के अर्थ और इससे जुड़ी हुयी विभिन मान्यताओं से परिचित हो सकेंगे। स्वास्तिक का अर्थ एवं इतिहास स्‍वास्तिक का अर्थ स्वास्तिक हिन्दू धर्म में सदियों से उपयोग किया जाने वाला प्रतीक है जिसकी चार भुजाएँ चारो दिशाओ को प्रकट करती है। स्वास्तिक संस्कृत शब्द ‘सु’ और ‘अस्ति’ के संयोग से बना है। यहाँ ‘सु’ का अर्थ अच्छा, मंगल एवं कल्याणकारी होता है वहीं ‘अस्ति’ का अर्थ संस्कृत भाषा में “है” या “होना” होता है। साथ ही यहाँ ‘का’का उपयोग एक प्रत्यय चिन्ह के रूप में किया जाता है। इस प्रकार से स्‍वास्तिक का शाब्दिक अर्थ “मंगल एवं कल्याणकारी होना” होता है। यहाँ भी देखें -->> स्वास्तिक का उपयोग भारत में प्राचीन-काल से ही किया जा रहा है। भारत में स्थित “दुनिया की प्राचीन सभ्यताओं में से एक हड़प्पा” में भी स्वास्तिक के उपयोग के प्रमाण मिले है। पूजा एवं अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान स्वास्तिक का उपयोग शुभ-प्रतीक के रूप में किया जाता है। इसके अतिरिक्त बौद्ध-धर्म में भी इसे समृद्धि, सौभाग्य एवं आध्या...

हिंदू धर्म के लोग क्यों बनाते हैं स्वास्तिक (Swastik) का चिन्ह – HindiThreads.com

हिंदू धर्म में प्राचीन काल से ही किसी शुभ कार्य को करने से पहले स्वास्तिक चिन्ह(Swastik) बनाने व उसके पूजन की प्रथा चली आ रही है। स्वास्तिक शब्द का अर्थ है- अच्छा या मंगल करने वाला। यह तीन शब्दों की व्याख्या करता है- सु +अस + क। सु अर्थात अच्छा, अस अर्थात सत्ता (अस्तित्व), क अर्थात कर्ता। मांगलिक कार्यक्रमों में स्वास्तिक का चिन्ह सिंदूर, रोली या कुमकुम से बनाया जाता है। यह कल्याण का प्रतीक है। भारतीय दर्शन के अनुसार स्वास्तिक की चारो रेखाएं चार वेद, चार आश्रम, चार पुरुषार्थ चार लोक और चार देवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश व गणेश) को दर्शाते हैं। स्वास्तिक चिन्ह केवल हिंदुओं में ही नहीं प्रचलित है बल्कि अन्य धर्म संप्रदाय के लोग भी इसे पवित्र मानते हैं। ईसाइयों में पवित्र क्रॉस को लोग गले में धारण करते हैं। स्वस्तिक (Swastik) को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो धन आवेश के रूप में समझ सकते हैं। धन आवेश अर्थात पॉजिटिव पॉइंट। दो ऋणात्मक शक्ति प्रवाहों के मिलने से धनात्मक आवेश (+) बना। यह स्वस्तिक का अपभ्रंश ही है। ईसाइयों के क्रॉस शब्द का विच्छेद करने पर शब्द मिलता है- करि+आस्य जिसका अर्थ होता है ‘हाथी के मुख वाला’। ईसाइयों के प्रसिद्ध शब्द क्राइस्ट का संधि विच्छेद करने पर 3 शब्द मिलते हैं कर + आस्य + इष्ट इसका तात्पर्य हाथी के समान मुख वाला होता है। हाथी के समान मुख वाले अग्रपूज्य देव गणेश जी हैं। स्वास्तिक (Swastik) चिन्ह श्री गणेश जी के साकार विग्रह का स्वरुप है। स्वास्तिक चिन्ह के दोनों तरफ दो रेखाएं गणेश जी की पत्नी रिद्धि और सिद्धि और दो पुत्रों शुभ और लाभ को दर्शाती हैं स्वस्तिक की चार भुजाएं श्री विष्णु जी के चार हाथ माने गए हैं। स्वास्तिक चारों दिशाओं की ओर शुभ संकेत दे...