वेचुर गाय

  1. बकरी से भी छोटी दुनिया की सबसे छोटी नस्ल की गाय जिसके दूध से औषधि बनाई जाती है: गिनीज़ बुक में है नाम दर्ज
  2. दुनिया की सबसे छोटी गाय जिसके दूध से बनती है ओषधि, गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड दर्ज हो चुका है नाम
  3. वेचुर मवेशी इतिहास देखें अर्थ और सामग्री
  4. साहिवाल गाय की फोटो
  5. भारतीय गाय
  6. वेचुर गाय
  7. गोव्‍याची ‘श्‍वेतकपिला’ गाय अशी नवी ओळख; वाळपई गोशाळेत संवर्धनासाठी संधी


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बकरी से भी छोटी दुनिया की सबसे छोटी नस्ल की गाय जिसके दूध से औषधि बनाई जाती है: गिनीज़ बुक में है नाम दर्ज

मनिकयम! यह केरल में पाए जाने वाले वेचूर नस्ल की एक गाय हैं जिसके नाम पर गिनीज बुक में रिकॉर्ड दर्ज है। यह दुनिया की सबसे छोटी गाय है, जिसका उम्र 6 साल है। मनिकयम को देखने हजारों लोग आते हैं। इस गाय की लंबाई बकरे से भी कम है। जहां आमतौर पर गायों की हाइट 4.7 से 5 फिट तक होती है वहीं इस गाय की लंबाई केवल 1.75 फीट है।इसका वजन 40 किलो का है. मनिकयम के शरीर में पिछले दो साल से किसी खास तरह का कोई परिर्वतन नहीं आया है और उसकी लंबाई उतनी ही है। यह सही है कि मनिकयम सबसे छोटी गाय है पर वेचूर नस्ल की अन्य गायें भी समान्य गायों के मुकाबले काफी छोटी होती है। इस गाय के लालन-पालन में बकरी से भी कम खर्च आता है। वेचूर गाय की शारीरिक विशेषता किसी-किसी पशु में सींग बहुत छोटे होते हैं और मुश्किल से दिखाई देते हैं। 124 सेमी की लंबाई, 85 से.मी की ऊंचाई.) और 130 किलोग्राम वजन के साथ वेचूर गाय को गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्डस में सबसे छोटे कद की गौ-प्रजाति माना जाता है । वेचूर गाय की अन्य विशेषतायें इस प्रजाति की गायों पर जहां रोगों का प्रभाव बहुत ही कम पड़ता है, वहीं इन गायों के दूध में सर्वाधिक औषधीय गुण पाए जाते हैं। यहां तक कि इसके पालने में बहुत ही कम खर्च आता है, जो एक बकरी पालने के खर्च जैसा ही होता है। हल्के लाल, काले और सफेद रंगों के खूबसूरत मेल की इस नस्ल की गायों का सिर लंबा और संकरा होता है, जबकि सिंगें छोटी, पूंछ लंबी और कान सामान्य लेकिन दिखने में आकर्षक होते हैं। वेचुर नस्ल की गाय जिसका नाम मनिकयम है वेचुर पशु गर्म और आर्द्र जलवायु के लिए अनुकूल माने जाते हैं. इस नस्ल के पशुओं को दूध और खाद के लिए पाला जाता है। वेचुर पशु की रोग प्रतिरोध एवं विभिन्न मौसम को सहने की क्षमता उत्तम होती है. इसक...

दुनिया की सबसे छोटी गाय जिसके दूध से बनती है ओषधि, गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड दर्ज हो चुका है नाम

गाय का यूं तो पूरी दुनिया में ही काफी महत्व है, लेकिन भारत के संदर्भ में बात की जाए तो प्राचीन काल से यह भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। चाहे वह दूध का मामला हो या फिर खेती के काम में आने वाले बैलों का। वैदिक काल में गायों की संख्याू व्यक्ति की समृद्धि का मानक हुआ करती थी। दुधारू पशु होने के कारण यह बहुत उपयोगी घरेलू पशु है। अन्य पशुओं की तुलना में गाय का दूध बहुत उपयोगी होता है। बच्चों को विशेष तौर पर गाय का दूध पिलाने की सलाह दी जाती है क्योंकि भैंस का दूध जहां सुस्ती लाता है, वहीं गाय का दूध बच्चों में चंचलता बनाए रखता है। माना जाता है कि भैंस का बच्चा (पाड़ा) दूध पीने के बाद सो जाता है, जबकि गाय का बछड़ा अपनी मां का दूध पीने के बाद उछल-कूद करता है। गाय न सिर्फ अपने जीवन में लोगों के लिए उपयोगी होती है वरन मरने के बाद भी उसके शरीर का हर अंग काम आता है। गाय का चमड़ा, सींग, खुर से दैनिक जीवनोपयोगी सामान तैयार होता है। गाय की हड्डि यों से तैयार खाद खेती के काम आती है। गाय का दूध बहुत ही पौष्टिक होता है। यह बीमारों और बच्चों के लिए बेहद उपयोगी आहार माना जाता है। इसके अलावा दूध से कई तरह के पकवान बनते हैं। दूध से दही, पनीर, मक्खन और घी भी बनाता है। गाय का घी और गोमूत्र अनेक आयुर्वेदिक औषधियां बनाने के काम भी काम आता है। और आज हम उसी औषधि से जुड़ी ये खबर और इसी खबर से जुड़ी दुनिया की सबसे छोटी गाय की बात बताने जा रहे हैं जो बेहद उपयोगी है और उसकी भूमिका अपने आप में बहुत ही ज़बरदस्त है। दरअसल ये पूरी खबर केरल से है और ये गाय भी वहीं की है। दुनिया की सबसे छोटी गाय का यहां पाया जाना, जिसके लिए इस गाय को गिनीज़ बुक में बी शामिल किया जा चुका है। जी हां, केरल में एक मनिकयम नाम...

वेचुर मवेशी इतिहास देखें अर्थ और सामग्री

वेचुर मवेशी वेचुर गाय ( വെച്ചൂർ പശു) भारत इंडिकस है । वेचूर गाय 1960 के दशक तक केरल में लोकप्रिय थी, लेकिन जब देशी मवेशियों को विदेशी किस्मों के साथ संकरण कराया गया तो यह दुर्लभ हो गई। नस्ल की ऊंचाई लगभग 90 सेमी और वजन लगभग 130 किलोग्राम है, जो एक दिन में 3 लीटर दूध देती है। यह संकर किस्मों की तुलना में बहुत कम है, लेकिन, उनके विपरीत, वेचुर गाय को भी चारा या रखरखाव के रूप में बहुत कम आवश्यकता होती है। [ अविश्वसनीय स्रोत? ] वेचूर गाय के दूध के औषधीय गुणों को पारंपरिक रूप से आयुर्वेद द्वारा प्रलेखित किया गया है और हाल के वैज्ञानिक अध्ययनों ने इसकी पुष्टि की है। वेचूर गाय के दूध के प्रोटीन घटक में एक बेहतर रोगाणुरोधी गुण होता है। [14] [15]

साहिवाल गाय की फोटो

साहिवाल गाय के बारें में (About Sahiwal Cow In Hindi) : यह गाय सबसे ज्यादा दूध देने वाली भारतीय नस्ल है। यह नस्ल (sahiwal cow price) पंजाब के फिरोजपुर और अमृतसर जिलों में और राजस्थान के श्री गंगानगर जिले में पायी जाती है। इस नस्ल के पशु सामान्य रूप से हल्के पीले रंग के लाली लिए हुए होते हैं लेकिन कुछ पशु सफेदी लिए हुए भी होते हैं। पर अधिकतर पशु गहरे लाल रंग के होते हैं। कुछ पशु सफेदी लिए हुए गहरे भूरे या लगभग काले रंग के भी मिल जाते हैं और कुछ पशुओं में शरीर का लगभग 80% भाग सफेदी लिए हुए होता है। साहिवाल गाय की फोटो : उपरोक्त तस्वीर के माध्यम से आप साहिवाल गाय (sahiwal cow images) के बारें में पहचान कर सकते है। इस नस्ल की गाय का सिर चौड़ा, सींग मोटी और छोटी, शरीर मध्यम आकार का होता है। और इसकी गर्दन के नीचे की चमड़ी लटकती हुई भारी लेवा होती है। इस नस्ल (pure sahiwal cow) का वयस्क बैल औसतन 450 से 500 KG और मादा गाय का भार 300 से 400 KG होता है। आपको जानकारी रहे की यह गाय पहली बार 32-36 महीने में बच्चे को जन्म देती है, तथा प्रजनन अवधि का अंतराल 15 माह का होता है। इसकी खासियत यह है कि यह रोजाना (sahiwal cow milk per day) 10 से 16 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है। और एक बार बच्चा जन्म देने के बाद यह लगभग 2250 से 2300 लीटर तक दूध दे देती है। गाय की नस्ल का नाम : यहाँ हम आपको भारत में आमतौर पर पाई जाने वाली गाय की प्रमुख नस्लों (Cow Types) के नामों से अवगत करा रहे है, जो इस प्रकार है... • अमृतमहल (कर्नाटक) • बचौर (बिहार) • बर्गुर (तमिलनाडु) • डांगी (महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश) • गिर (गुजरात) • हल्लीकर (कर्नाटक) • कंगायम (तमिलनाडु) • केनकथा (उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश) • गओलाओ ...

भारतीय गाय

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वेचुर गाय

वेचुर किंवा वेच्चुर (मल्याळम:വെച്ചൂര്‍ പശു) हा शुद्ध भारतीय गोवंश असून हा मुख्यतः वेचुर, ता.वैकम, जिल्हा कोट्टायम येथील असल्यामुळे या गोवंशाला वेचुर हे नाव पडले. शारीरिक रचना [ ] या गोवंशाच्या बैलाची सरासरी उंची ९४ सें.मी. असून वजन १७० किलोपर्यंत असते. तर गायीची सरासरी उंची ८९ सें.मी. असून वजन १३० किलोपर्यंत असते. या गोवंशातील गाई-बैलांचा रंग गडद काळपट लाल, तपकिरी असून क्वचितच पांढरे ठिपके किंवा पट्टे दिसून येतात. शिंगे मध्यम लहान असून पाठीमागे वळलेली असतात. वैशिष्ट्य [ ] या गोवंशाची दूध देण्याची क्षमता दिवसाला ३ लिटर असून, या गोवंशाला तुलनेने चारा कमीच लागतो. वेचुर गायीच्या दुधात फॅटचे प्रमाण मात्र ६% पर्यंत असते. आयुर्वेदानुसार या गायीचे दूध औषधी गुणधर्मांनी युक्त असून ते विविध आजार घालवते. राष्ट्रीय डेअरी विकास बोर्डाच्या (NDDB) निकषानुसार हा दुभत्या जातीचा गोवंश म्हणून ओळखला जातो. भारतीय गायीच्या इतर प्रजाती [ ] भारतीय गायीच्या इतर प्रजातींची माहिती मिळवण्यासाठी येथे टिचकी द्या ― हे सुद्धा पहा [ ] • • • • संदर्भ [ ]

गोव्‍याची ‘श्‍वेतकपिला’ गाय अशी नवी ओळख; वाळपई गोशाळेत संवर्धनासाठी संधी

वाळपई: भारतात देशी गोवंशाला फार अनन्यसाधारण महत्त्‍व आहे. वेदांमध्ये देशी गायींचे अपार विशेष महत्त्‍व आहे. भारतात काही राज्यात देशी विविध नावाने परिचित असून त्या त्या राज्यांची अशी वेगळी ओळख आहे. उदाहरण सांगायचे झाल्यास वेचुर ही गाय केरळ राज्यात, राठी ही गाय राजस्थान, डांगी व देवणी ही गाय महाराष्ट्र, कांकरेंज व गीर ही गाय गुजरात राज्याची अशी ओळख बनली आहे. अशा अन्य राज्यांप्रमाणे गोवा राज्यातही श्‍वेतकपिला गाय या नावाने वेगळी ओळख बनली आहे. श्‍वेतकपिला देशी गाय पूर्णपणे पांढऱ्या रंगाची आहे. गोव्यात उत्तर गोवा व दक्षिण गोव्यात अशा दोन्ही जिल्ह्यात विविध ठिकाणी ती आढळून येते. वाळपई नाणूस येथील अखिल विश्व जय श्रीराम गोसंवर्धन केंद्रात ही श्‍वेतकपिला गाय स्थान करून आहे. या गायीचे शिंग, पाय, डोळ्यांच्या भुवया, शेपटीचा तुरा असे सर्व अंग हे पांढरे आहेत. ही श्‍वेतकपिला देशी गाय प्रथम वर्गातील उच्च स्थानातील आहे. तिची पवित्रता, निर्मलता परिपूर्ण अशी आहे. त्यामुळे माणसाच्या आरोग्य जीवनात या गायीला महत्त्‍व आहे. सेंट्रल कोस्टल अॅग्रीकल्चर रिसर्च इन्स्‍टिट्यूट जुने गोवे येथे तिची तशी नोंद आहे. सुंदर देखणी अशी श्‍वेतकपिला गाय वाळपई नाणूस गोशाळेचे वैशिष्‍ट्य बनले आहे. श्‍वेतकपिला गाईत दररोज तिच्यात साडेतीन लिटर दूध देण्याची क्षमता आहे. सध्‍या देशात जर्सी गायीचे वावगं उठलेले आहे. भरपूर दूध मिळविण्यासाठी मानव जर्सी गायीच्या आहारी जात आहे. माणसाला जर चांगले निरोगी जीवन जगायचे असेल, तर देशी गायीला पसंती देण्याची गरज आहे. श्‍वेतकपिला ही देशी गायीपासून चांगली पिढी तयार करण्याची संधी आहे. गोव्यात पांढरी म्हणजेच श्‍वेतकपिला गाय वेगळेपण सांगणारी ठरली आहे. - डॉ. रघुनाथ धुरी, गोशाळेचे पशुवैद्यकीय सेवक