वर्ण

  1. (Varn) वर्ण meaning in hindi
  2. वर्ण की परिभाषा, वर्ण के प्रकार और उदाहरण
  3. हिन्दू वर्ण व्यवस्था
  4. वर्ण किसे कहते हैं? (परिभाषा, भेद और उदाहरण)
  5. Varna (Hinduism)
  6. वर्ण व्यवस्था क्या है? सिद्धांत, महत्व, दोष
  7. वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति के सिद्धांत


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(Varn) वर्ण meaning in hindi

[सं-पु.] - 1. रंगों का क्रम 2. वर्णमाला के अक्षरों का क्रम। [वि.] - वर्णक्रम के अनुरूप। [सं-स्त्री.] - 1. आँखें बंद कर लेने पर भी देखी हुई वस्तु की दिखाई देने वाली आकृति 2. प्रिज़्म के माध्यम से दिखाई देने वाली रंगों की छटा; (स्पेक्ट्रम)। [सं-पु.] - हिंदुओं में प्राचीन मान्यता के आधार पर चारों वर्णों के लिए निर्धारित किए गए कर्तव्य। [सं-पु.] - 1. किसी बात को ब्योरेवार कहना; मौखिक बयान 2. किसी बात को ब्योरेवार लिखना; लिखित बयान 3. गुणकथन 4. चित्रण। [सं-पु.] - वर्णन या व्याख्या करने वाला व्यक्ति; व्याख्याता। [वि.] - जिसका वर्णन या निर्वचन संभव न हो; वर्णन से परे; अनिर्वचनीय।

वर्ण की परिभाषा, वर्ण के प्रकार और उदाहरण

देवनागरी लिपि में प्रत्येक ध्वनि के लिए एक निश्चित संकेत (वर्ण) होता हैं। भाषा की सबसे छोटी इकाई वर्ण या ध्वनि होती हैं जबकि भाषा की सबसे छोटी सार्थक इकाई हिंदी भाषा कीउत्पत्ति निम्न तरीके से हुआ। संस्कृति – पाली – प्राकृत – अपभ्रंश – अपहटटय – आधुनिक – हिंदी हिंदी में उच्चारण की दृष्टि से वर्णो की संख्या 45 (35 व्यंजन + 10 स्वर) जबकि लेखन की दृष्टि से कुल वर्ण 52 (39 व्यंजन + 13 स्वर) होते हैं। हिंदी भाषा में प्रयुक्त सबसे छोटी ध्वनि वर्ण कहलाती है। यह मूल ध्वनि होती है, इसके और खण्ड नहीं हो सकते। जैसे :- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क्, ख् आदि। वर्णमाला :- दूसरे शब्दों में इसे हम ऐसे भी कह सकते है, किसी भाषा के समस्त वर्णो के समूह को वर्णमाला कहते हैै। प्रत्येक भाषा की अपनी वर्णमाला होती है। जैसे :- हिंदी भाषा की वर्णमाला अ, आ, क, ख, ग….ज्ञा है और अंग्रेजी भाषा की वर्णमाला A, B, C, D, E….Z है। वर्ण के प्रकार वर्णों के समुदाय को ही वर्णमाला कहते हैं हिंदी वर्णमाला में 44 वर्ण हैं। उच्चारण और प्रयोग के आधार पर हिंदी वर्णमाला में वर्णों के दो प्रकार होते हैं। हिंदी भाषा में वर्ण दो प्रकार के होते है। • • 1. स्वर (Vowel) वे वर्ण जिनका उच्चारण स्वतंत्र रूप से किया जाता हैं। अर्थात इनके उच्चारण में अन्य किसी किसी वर्ण की सहायता नहीं ली जाती इनकी कुल संख्या 13 हैं जबकि मुख्य रूप से इनकी संख्या 11 मानी जाती हैं वे वे वर्ण जिनके उच्चारण में किसी अन्य वर्ण की सहायता की आवश्यकता नहीं होती स्वर कहलाता है। इसके उच्चारण में कंठ, तालु का उपयोग होता है, जीभ, होठ का नहीं। हिंदी वर्णमाला में 16 स्वर है। जैसे:- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अः, ऋ, ॠ, ऌ, ॡ। स्वर के भेद स्वर के दो भेद होते है • मूल ...

हिन्दू वर्ण व्यवस्था

इस संदूक को: देखें • संवाद • संपादन सम्बन्धित वर्ण), के कई अर्थ होते हैं, जैसे प्रकार, क्रम, रंग या वर्ग। निरुक्त के'वर्णो वृणोते:' सूत्र के अनुसार 'वर्ण' वह है, जिसका गुणानुसार परखकर वरण किया जाए। • • • • कालांतर में समुदाय वर्णों से संबंधित हो गए। डी. आर. जटावा के अनुसार समुदाय जो चार वर्णों या वर्गों में से एक से संबंधित थे, उन्हें सवर्ण कहा जाता था, जो लोग किसी वर्ण से संबंध नहीं रखते थे, उन्हें अवर्ण कहा जाता था। अनुक्रम • 1 वर्ण व्यवस्था: इतिहास और उसके उत्पत्ति संबन्धी सिद्धांत ? • 2 वर्ण व्यवस्था • 2.1 अनुलोम और प्रतिलोम विवाह क्या था? • 2.2 वर्ण व्यवस्था और जाति की उत्पत्ति के सिद्धांत • 2.3 वैदिक समाज • 2.4 गुप्त काल और गुप्तोत्तर काल में वर्ण एवं जाति व्यवस्था • 3 इन्हें भी देखें • 4 सन्दर्भ वर्ण व्यवस्था: इतिहास और उसके उत्पत्ति संबन्धी सिद्धांत ? [ ] प्राचीन भारतीय सामाजिक ढांचे को समझने के लिए आवश्यक है कि पहले वर्ण और जाति के स्वरुप को समझ लिया जाए। ऋग्वैदिक वर्ण वयवस्था के अनुसार वर्ण का निर्धारण कर्म से माना गया और समाज को उसी आधार पर – ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र के अलग-अलग वर्ण निर्धारित किये गए। सामजिक स्थिति और शुद्धता की दृष्टि से ब्रह्मण प्रथम पायदान पर, क्षत्रिय द्वितीय, वैश्य तृतीय और शूद्र चतुर्थ स्थान पर रखा गया। ‘वर्ण व्यवस्था का इतिहास और उसके उत्पत्ति संबन्धी सिद्धांत’ को समझने के लिए हमें इस व्यवस्था के धार्मिक, सामजिक, और आर्थिक महत्व को समझाना होगा साथ ही ही इसके ऐतिहासिक पहलू को भी ध्यानपूर्वक समझने का प्रयास करना होगा। वर्ण व्यवस्था [ ] प्रारम्भ में वर्ण को बड़ी इकाई माना जाता था और एक वर्ण में अनेक जातियां हो सकती थीं। वर्ण विभाजित...

वर्ण किसे कहते हैं? (परिभाषा, भेद और उदाहरण)

विषय सूची • • • • • • वर्ण किसे कहते हैं? वर्ण की परिभाषा (Varn ki Paribhasha): वर्ण उस मूल ध्वनि को कहा जाता है, जिसके खंड व टुकड़े नहीं किये जा सकते हैं। वर्णों की इकाइयां हमेशा समान रहती हैं, परंतु इन्हें अलग-अलग भागों में विभाजित नहीं किया जा सकता। यह सभी वर्ण खुद में ही अपनी एक विशेष भूमिका अदा करते हैं। दूसरे शब्दों में बात करें तो वर्ण ध्वनि के वे सूक्ष्म रूप होते हैं, जिन्हें विभाजित नहीं किया जा सकता और इन्हें कभी भी खंडों में विभक्त नहीं किया जा सकता, इसे ही वर्ण कहते हैं। वर्णों के मौलिक रूप को मिलाकर एक साथ कहने को अक्षर कहते हैं और इस से बने हुए शब्दों के उच्चारण को ध्वनि कहते हैं। अर्थात मानव के द्वारा प्रस्तुत की गई सार्थक व अर्थ से परिपूर्ण ध्वनि को भाषा की संज्ञा दी जाए और भाषा को चिन्हों के द्वारा लिखी गयी भाषा मे परिवर्तित किया जाए, इसी चिन्ह को वर्ण कहा जाता है। वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है व इसके टुकड़े या खण्ड नहीं किये जा सकते हैं। जैसे:- क, ख, व, च, प आदि। आइए अब हम उदाहरण के द्वारा मूल ध्वनियों और उसके वर्णों को स्पष्ट कर सकते हैं। जैसे:- काम (क + आ + म + अ) में चार मूल ध्वनियां हैं। वर्णमाला की परिभाषा अब तक हम सभी लोगों ने वर्णमाला के वर्णों के विषय में जाना अब हम आइए जानते हैं कि वर्णमाला क्या होती है? भाषा के ध्वनि चिन्हों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहा जाता है, हिंदी भाषा की वर्णमाला में 47 वर्ण माने गए हैं, इन 47 वर्णों में 35 व्यंजन और 10 स्वर होते हैं। वर्ण और वर्णमाला में अंतर वर्णमाला पर ही पूरी दुनिया के अलग-अलग भाषाओं का सार निर्भर होता है, परंतु स्वयं वर्णमाला वर्णों पर निर्भर होती है क्योंकि वर्णों के मेल से ही वर्णमाला बनता...

Varna (Hinduism)

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वर्ण व्यवस्था क्या है? सिद्धांत, महत्व, दोष

वर्ण व्यवस्था क्या है (varna vyavastha ka arth) varna vyavastha meaning in hindi;वर्ण-व्यवस्था का सैद्धांतिक अर्थ हैः गुण, कर्म अथवा व्यवसाय पर आधारित समाज का चार मुख्य वर्णों मे विभाजन के आधार पर संगठन। वर्ण का शाब्दिक अर्थ वरण करना या चयन करना है। ऐसा अनुमान किया जाता है कि प्राचीन भारतीय सामाजिक व्यवस्था मे व्यवसाय के चयन के पश्चात ही उसका "वर्ण" निश्चित किया जाता था। होकाटे के अनुसार " वर्ण तथा जाति की प्रकृति तथा कार्य समान है। दोनों मे नाम का अंतर है। पर प्रो. हट्टन ऐसा नही मानते। उन्होंने वर्ण तथा जाति को पृथक माना है। सांख्य दर्शन के अनुसार " वर्ण का अर्थ रंग भी बताया गया है। वैदिक युग मे आर्यों का विभाजन, सम्भवतः " आर्य वर्ण " तथा दास वर्ण रहा था। 1. ॠग्वेद का सिद्धांत ऋग्वेद आर्यों का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। ऋग्वेद मे वर्ण-व्यवस्था से सम्बंधित निम्न श्लोक है-- "ब्राह्राणोडस्य मुखमासीद् बाहू राजन्म कृतः। उरू तदस्य यद्वैश्य पदभ्यां शुद्रोडजायत्।।" इस श्लोक का अर्थ यह है कि विराट पुरूष (ईश्वर) के मुखारबिन्द से ब्राह्मण की उत्पत्ति हुई है। बाहु से क्षत्रिय, जंघाओं से वैश्य तथा पैरों से शुद्रों की उत्पत्ति हुई है। मुख का कार्य पढ़ाना, प्रवचन करना या भाषण देना है। अतः ब्राह्मणों का कार्य वेदों का पढ़ना तथा पढ़ना माना गया है। चूंकि क्षत्रियों की उत्पत्ति बाहुओं से मानी गयी है, अतः क्षत्रियों का धर्म युद्ध करना बताया गया है। जंघाओं से उत्पत्ति मानी जाने के कारण वैश्यों का कार्य उत्पादन करना है। अतः वैश्यों का कार्य कृषि तथा व्यापार करना बताया गया है। शुद्रों की उत्पत्ति पैरों से हुई मानी गयी है। पैरों का कार्य शरीर की सेवा करना है। इस प्रकार शुद्रों का कार्य तीनों वर्णों...

वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति के सिद्धांत

वर्ण शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के‘वृ’ वरणे धातु से हुई है, जिसका अर्थ है‘चुनना’ या‘वरण करना’। सम्भवतः‘वर्ण’ से तात्पर्य ‘वृति’ या किसी विशेष व्यवसाय के चुनने से है। समाज शास्त्रीय भाषा में‘वर्ण’ का अर्थ ‘वर्ग’ से है, जो अपने चुने हुए विशिष्ट व्यवसाय से आबद्ध है। वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत समाज का चार भागों में कार्यात्मक विभाजन किया जा सकता है, यथा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र। वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति आर्य जब भारत वर्ष में आए उस समय त्वचाभेदक आधार (रंग के आधार पर भारतीय समाज दो वर्गों में विभक्त था, पहला आर्य तथा दूसरा अनार्य । ऋग्वेद के प्रारंभिक काल में भारतीय समाज में वर्ण-व्यवस्था जैसी कोई सामाजिक संस्था नहीं थी, लेकिन जब आर्यों का अनार्यों से संघर्ष हुआ तो उस समय आर्यों का समाज तीन वर्गों में विभाजित हो गया, पहला वर्ग जो देव पूजा, यज्ञ आदि धार्मिक कार्यों को करता था। दूसरा योद्धा वर्ग जो शुद्ध वीर होने के कारण अनार्यों से युद्ध तथा शेष आर्यों की रक्षा करता था। तीसरा विश् वर्ग जो पशुपालन एवं कृषि करके आर्यों के भरण-पोषण का दायित्व संभाल रहा था। समाज में ये ही तीनों वर्ग आगे चल कर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य के नाम से अभिहित हुए। जब आर्यों ने अनार्यों को पराजित कर अपने वशीभूत कर लिया तथा धीरे-धीरे अनार्य उनके परिचारक (दास) बन गये और ये दस्यु बन गये तथा ऋग्वेद के उत्तर काल में शूद्र के नाम से अभिहित हुए और इस काल में चार वर्ग बन गए ।' दैवी सिद्धांत के रूप में वर्ण व्यवस्था के उद्भव का वर्णन महाभारत में भी किया गया है, इसमें वर्णों की उत्पत्ति ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, बाहु से क्षत्रीय, उरू (जंघा) से वैश्य और तीनों वर्णों के सेवार्थ पद (पैर ) से शूद्र का निर्माण...